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सेहत /शौर्यपथ /कोरोना संक्रमण होने पर अस्पताल में भर्ती लगभग 15 फीसदी मरीजों में मस्तिष्क से जुड़ी दिक्कते होती हैं। ऐसे गंभीर मरीजो में चेतना की अवस्था में नहीं होना, भ्रम की स्थिति और गुस्सा आने जैसे लक्षण पाए जाते हैं। हालांकि अभी तक मस्तिष्क पर कोरोना प्रभावों को ठीक से नहीं समझा जा सका है। लेकिन अब नए शोध में खुलासा हुआ है कि कोरोना से ठीक हो चुके लोगों में छह महीने के भीतर गंभीर अक्षमता पैदा हो सकती है।
अटलांटा में जॉर्जिया स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह खुलासा किया है। शोधकर्ताओं ने इटली के ब्रेशिया शहर में एक विशेष अस्पताल में मस्तिष्क से जुड़ी दिक्कतों वाले मरीजों का सीटी स्कैन का विश्लेषण करने के बाद यह दावा किया है। इस दौरान शोध में पता चला कि कोरोना होने के दौरान जिन लोगों को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी उनके दिमाग के लालट वाले हिस्से में काफी बदलाव दिखा।
साथ ही ऐसे लोगों में ग्रे मैटर भी कम था। हालांकि जिन्हें ऑक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ी उनमें यह बदलाव नहीं देखा गया। गौरतलब है कि ग्रै मैटर में दिमागी तंत्रिकाएं होती हैं। इस दौरान शोधकर्ताओं ने बताया कि ग्रै मैटर का कम होना गंभीर अक्षमता होने की ओर इशारा करता है। जोकि अस्पताल से छुट्टी मिलने के छह महीने बाद तक हो सकता है। वहीं जिन मरीजों को बुखार के लक्षण दिखे थे उनके मस्तिष्क के टेम्पोरल हिस्से में ग्रे मैटर कम पाया गया।
उग्र होने जैसे लक्षण देखने को मिले
अध्ययन में पाया गया कि मस्तिष्क के ललाट क्षेत्रों में ग्रे मैटर में कमी से ऐसे लोगों में उग्र होने जैसे लक्षण देखने को मिली। शोधकर्ताओं में शामिल और ट्राई-इंस्टीट्यूशनल सेंटर फॉर ट्रांशलेशनल रिसर्च इन न्यूरोइमैजिंग एंड डाटा साइंस और जॉर्जिया में मनोविज्ञान के प्रोफेसर विंस कैलहौन ने बताया कि कोरोना के रोगियों के लिए मस्तिष्क संबंधी जटिलताओं का तेजी से दस्तावेजीकरण किया जा रहा है। इसके साथ ही अन्य मनोदशा संबंधी विकारों में भी ग्रे मैटर की कमी देखी गई है, जैसे कि सिजोफ्रेनिया में होती है। उन्होंने आगे कहा कि संभावना है कि ग्रे मैटर न्यूरॉन फंक्शन को भी प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।
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