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सम्पादकीय लेख /शौर्यपथ / कोरोना के तेज होते संक्रमण के बीच सोमवार को भारत अनलॉक होने की ओर एक बड़ा कदम उठाएगा, अब जितना महत्व जहान का होगा, उससे कहीं अधिक जान का होगा। जहां एक ओर, मॉल खुल जाएंगे, वहीं आधे से ज्यादा धर्मस्थल भी गुलजार हो जाएंगे। रेस्तरां, बाजार में रौनक बढ़ जाएगी, लेकिन यह रौनक तभी सार्थक कही जाएगी, जब संक्रमण काबू में रहेगा। संक्रमण होते ही वह इलाका सील हो जाएगा, लेकिन गौर करने की बात यह है कि अब लगभग सभी सरकारें संक्रमण का जोखिम उठाते हुए भी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना चाहती हैं। केंद्र सरकार के साथ-साथ उन राज्य सरकारों के लिए भी अनलॉक होना मजबूरी है, जिनका खजाना तेजी से खाली हो रहा है। जिन इलाकों में संक्रमण की रफ्तार तेज है, वहां राज्य सरकारों के पास अधिकार है कि वे किसी भी सीमा तक लॉकडाउन रख सकती हैं।
संपूर्णता में देखें, तो ज्यादातर गांव और शहर अब खुल चुके हैं और आज से जैसे-जैसे सार्वजनिक वाहनों की सड़कों पर वापसी होने लगेगी, वैसे-वैसे चहल-पहल बढ़ती जाएगी। इस बीच लोगों को यह सतत ध्यान रखना होगा कि भारत में प्रतिदिन 10,000 के करीब मामले सामने आने लगे हैं, करीब 7,000 लोग जान गंवा चुके हैं और 2.50 लाख से अधिक संक्रमित हो चुके हैं। इसी में एक सुखद संकेत यह भी है कि करीब 1.20 लाख लोग ठीक हो चुके हैं। बहरहाल, जब हम अपने जहान की चिंता में निकल पड़े हैं, तो सबसे बड़ा यह सवाल लोगों को मथ रहा है कि आखिर कोरोना कब पीछा छोडे़गा? देश के स्वास्थ्य मंत्रालय के दो वरिष्ठ विशेषज्ञ अधिकारियों ने अनुमान लगाया है कि भारत को सितंबर के मध्य में कोरोना संक्रमण से मुक्ति मिलेगी। इन दोनों अधिकारियों, अनिल कुमार और रुपाली रॉय का शोध इपेडिमियोलॉजी इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इन आला अधिकारियों ने बेलीज गणितीय प्रणाली का इस्तेमाल करके नतीजा निकाला है कि कोरोना लगभग तीन महीने का मेहमान है। संक्रामक रोगों के प्रभाव के आकलन के लिए प्रचलित इस गणितीय प्रणाली को मोटे तौर पर अगर हम समझें, तो जब संक्रमितों की कुल संख्या ठीक होने व मरने वालों की सम्मिलित संख्या के बराबर पहुंच जाएगी, तब इस बीमारी का अंत होगा। 19 मई को पहली बार इस प्रणाली से की गई गणना के अनुसार, हम उस राह पर 42 प्रतिशत चल चुके थे और अभी कोरोना की यात्रा 50 प्रतिशत ही पूरी हुई है। सितंबर के मध्य में यह यात्रा 100 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी और तभी कोरोना का अंत होगा।
अब सवाल यह कि यह गणना कितनी सटीक है? वैसे, वैज्ञानिक-गणितीय गणनाएं अमूमन गलत नहीं होतीं, पर अहम सवाल यह कि इन गणनाओं में इस्तेमाल डाटा कितने पुख्ता हैं? देश में कोरोना-जांच कितनी होनी चाहिए और कितनी हो रही है? कुछ जगहों पर तो कोरोना संक्रमण के हल्के मामलों की गणना ही नहीं हो रही, सिर्फ गंभीर मामले दर्ज किए जा रहे हैं। कुल मिलाकर, यह गणितीय भविष्यवाणी भी हमें परोक्ष रूप से प्रेरित करती है कि हम कोरोना को कतई हल्के में न लें। कोरोना संक्रमण से हरसंभव तरीके से बचें। शंका हो, तो जांच करने-कराने में रत्ती भर कोताही न बरतें। सतर्कता सोलह आना होगी, हमारे आंकडे़ दुरुस्त होंगे, तो हम महामारी को बेहतर ढंग से पटकनी दे पाएंगे।
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