November 14, 2024
Hindi Hindi

सियासत में हाथियों की जगह

ओपिनियन /शौर्यपथ / केरल का एकमात्र मुस्लिम बहुल जिला मलप्पुरम पिछले दिनों गलत वजहों से सुर्खियों में आ गया। 70.2 फीसदी मुस्लिम और 27.6 प्रतिशत हिंदू आबादी वाला यह जिला अक्सर विवाद में घसीट लिया जाता है। हालांकि, स्थानीय बाशिंदे इसे सिरे से नकारते हैं और कहते हैं कि ‘जो लोग इस जिले या राज्य को अच्छी तरह से नहीं समझते, वही ऐसी बातें करते हैं’।
अभी यह जिला इसलिए चर्चा में आया, क्योंकि यहां एक गर्भवती जंगली हथिनी दुखद हालात में मृत पाई गई। उसने पास के पालक्काड जिले में पटाखों से भरा एक अनानास खा लिया था। ये पटाखे किसानों द्वारा उन जंगली सूअरों को मारने के लिए लगाए गए थे, जो उनकी फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसा माना जाता है कि वह हथिनी विस्फोट से घायल होने के बाद साइलेंट वैली के जंगलों से कई किलोमीटर दूर चली गई। मन्नारकाड वन क्षेत्र के अंतर्गत कोट्टप्पडाम पंचायत के अंबलप्पारा में उसे घायल पाया गया। यह इलाका मलप्पुरम नहीं, पालक्काड जिले का हिस्सा है। फिलहाल, वन्य-जीव संरक्षण कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है। जांच और कार्रवाई शुरू कर दी गई है।
इस घटना ने राज्य में सत्तासीन वाम मोर्चा सरकार के विरोधियों को हमलावर होने का मौका दे दिया। सोशल मीडिया पर बड़ा अभियान छेड़ते हुए राज्य सरकार पर हमला बोला गया और मलप्पुरम को निशाना बनाया गया, जबकि इस घटना से उसका कोई रिश्ता नहीं था। वास्तव में, न तो मलप्पुरम देश का सबसे हिंसक जिला है और न ही इस राज्य में हाथियों को निशाना बनाया जाता है। असलियत में हाथी तो देश भर में, विशेषकर दक्षिणी राज्यों में सबसे अधिक प्यारे और पूजनीय जानवरों में शामिल हैं। अनुमान है कि भारत में 28,000 हाथी हैं, जो किसी भी एशियाई देश से ज्यादा हैं।
केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में तो आमतौर पर ये मंदिरों का हिस्सा होते हैं। प्रशिक्षित मंदिर हाथी केरल में आम तौर पर देखे जाते हैं। सभी प्रमुख त्योहारों में यह राजसी जानवर आकर्षण का केंद्र होता है। इस सूबे में एक सालाना कैंप भी लगता है, जहां कुछ पालतू हाथियों को मानव-पशु संघर्ष कम करने के लिए ‘कुमकी’ के रूप में प्रशिक्षित किया जाता है। प्रशिक्षित किए गए ‘कुमकी’ हाथी की मदद से इंसान जंगली हाथियों को वापस जंगलों में भेजता है।
तमिलनाडु में राज्य सरकार हाथियों के लिए सालाना रिट्रीट रखती है, जहां राज्य भर के पालतू हाथियों को ट्रकों में लाया जाता है और उन्हें स्वस्थ माहौल में रखा जाता है। इस कैंप के लिए रजिस्ट्रेशन करवाने के बाद उनका वजन मापा जाता है और पशु चिकित्सक उनकी सेहत की पड़ताल करते हैं। उन्हें अगले चार सप्ताह तक दवाइयां और पौष्टिक आहार दिए जाते हैं। उन्हें सुबह की सैर कराई जाती है और विशेष रूप से तैयार जंबो सॉवर में नहलाया जाता है। कैंप खत्म होने के बाद हाथी बेमन से अपने घर लौटते हैं।
मगर इंसान और जंगल में रहने वाले हाथियों के बीच संघर्ष भी लगातार जारी रहता है। जंगली हाथियों के लिए खास तौर पर जंगल संरक्षित किए गए हैं, फिर भी वे अमूमन खाने और पानी की तलाश में जंगल से बाहर निकल आते हैं। इसी का नतीजा इंसान-हाथी संघर्ष के रूप में सामने आता है। कोई भी किसान कई तरह के उपाय अपनाकर अपनी फसल को बचाने की कोशिश करता है। उसका उद्देश्य हाथियों को मारना कतई नहीं होता। अनुमान है कि हाथियों की वजह से हर वर्ष 600 इंसान मारे जाते हैं, जबकि 100 से अधिक हाथी भी सालाना अकाल मौत पाते हैं। हाथियों पर राष्ट्रीय टास्क फोर्स के प्रमुख महेश रंगराजन कहते हैं कि किसानों और हाथियों, दोनों के लिए माहौल को सुरक्षित बनाना जरूरी है, क्योंकि दोनों पीड़ित हैं। किसान की जरूरत अपनी फसल बचाना है, तो हाथी को उसके माहौल के मुताबिक निवास-स्थान मिलना चाहिए। वह कहते हैं, विभिन्न प्रशासनिक उपायों से दोनों का साथ-साथ अस्तित्व संभव है।
ऐसा अनुमान है कि भारत में हाथियों के लिए 80 गलियारे हैं। ये वे रास्ते हैं, जिनसे जंगली हाथी अपने प्राकृतिक वास के लिए गुजरते हैं, लेकिन विभिन्न निर्माण गतिविधियों को अंजाम देकर इंसान इन स्थानों या गलियारों पर कब्जा कर रहा है। नतीजतन, हाथियों के प्राकृतिक मार्ग खत्म हो रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें, तो हाथी ‘भोजन’ के लिए इंसानों को नहीं मारते। वे तब आक्रामक हो जाते हैं, जब उन्हें अपनी जान पर खतरा महसूस होता है। माना जाता है, जंगली जानवरों की वजह से हर साल पांच लाख से अधिक किसानों को फसलों का नुकसान उठाना पड़ता है। उनका स्वाभाविक प्रयास अपने खेतों की रक्षा करना होता है। इसके लिए कुछ जगहों पर वे बिजली वाले तार लगाते हैं, जिनमें हल्का करंट होता है, तो कुछ स्थानों पर जानवरों को फंसाने के लिए गड्ढा खोद देते हैं। वन्य-जीव संरक्षणवादी जानवर को फंसाने के इन तरीकों की भी मुखालफत करते हैं। हाथियों को किसी भी तरीके से मारना स्वीकार्य नहीं हो सकता। टास्क फोर्स ने किसानों को नुकसान से बचाने के लिए अतिरिक्त फसल बीमा का सुझाव दिया है।
अनुमान यह भी है कि हर साल कम से कम 40 हाथी अपने दांत के लिए शिकारियों के हत्थे चढ़ते हैं। केंद्र और राज्य, दोनों के वन्य-जीव विभागों ने इन घटनाओं को रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं। मगर अब भी इनके निवास-स्थान को सुरक्षित बनाने के लिए बहुत कुछ करने की दरकार है।
पौराणिक कथाओं में खूब उल्लेख के कारण हाथी हिंदुओं द्वारा पूजनीय है। लेकिन आमतौर पर अपने कद और चाल के लिए यह सभी का दुलारा है। बच्चों को तो खासतौर से हाथी पसंद है और वे उसकी तस्वीर भी खूब बनाते हैं। यह बताता है कि हाथी कितना लोकप्रिय है। इसीलिए जब उसकी दुखद मौत की खबर आई, तो यह किसी झटके से कम नहीं था। मगर इससे भी बड़ी त्रासदी थी, उसकी मौत को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश। मलप्पुरम ऐसा अद्भुत जिला है, जहां कई हिंदुओं की बारात मस्जिदों से निकलती है। मेरी नजर में यहां कम से कम एक हिंदू मंदिर ऐसा जरूर है, जिसका पुजारी मुस्लिम है और वह उस वंश का है, जिनके पूर्वज यहां पूजा-पाठ कराते आए हैं। जाहिर है, इंसानों को ही एक-दूसरे के संग और जानवरों के साथ भी सद्भाव से रहना सीखना होगा। हथिनी की मौत की जांच कर रहे रेंज ऑफिसर भी यही संकेत करते हैं, जब वह कहते हैं कि ‘यह मानव-पशु संघर्ष का नतीजा है, सांप्रदायिक संघर्ष का नहीं’।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) एस श्रीनिवासन, वरिष्ठ पत्रकार

 

Rate this item
(0 votes)

Leave a comment

Make sure you enter all the required information, indicated by an asterisk (*). HTML code is not allowed.

हमारा शौर्य

हमारे बारे मे

whatsapp-image-2020-06-03-at-11.08.16-pm.jpeg
 
CHIEF EDITOR -  SHARAD PANSARI
CONTECT NO.  -  8962936808
EMAIL ID         -  shouryapath12@gmail.com
Address           -  SHOURYA NIWAS, SARSWATI GYAN MANDIR SCHOOL, SUBHASH NAGAR, KASARIDIH - DURG ( CHHATTISGARH )
LEGAL ADVISOR - DEEPAK KHOBRAGADE (ADVOCATE)