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नजरिया / शौर्यपथ / साल 1997 में एशियाई आर्थिक संकट के मद्देनजर तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने सात देशों के उस समूह के विस्तार की जरूरत पर बल दिया था, जिसे जी-7 कहा जाता है। उनकी कोशिश के चलते साल 1999 में जी-20 समूह की शुरुआत हुई थी और इसमें यूरोपीय संघ और 19 देश शामिल थे।
अब उस घटनाक्रम के चौबीस साल बाद एक और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उसी जी-7 के विस्तार की अपील की है और अपनी अपील को आधार देने के लिए उन्होंने इस समूह को ‘बहुत पुराना’ बताया है। वैसे ट्रंप इस विस्तार से चाहते क्या हैं, यह साफ नहीं है। हालांकि, तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन जो चाहते थे, वह भी पहले स्पष्ट नहीं था। अब ट्रंप अतिरिक्त सदस्यों के रूप में भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और रूस को शामिल करते हुए जी-10 या जी-11 बनाने की सोच रहे हैं। इसका गणित स्पष्ट है; यह जी-11 बन जाना चाहिए, लेकिन जी-10 की चर्चा क्यों? गौरतलब है, रूस को 2014 में इस अहम समूह से बाहर कर दिया गया था। तब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था और इसी के कारण जी-8 तब जी-7 बन गया था। दिलचस्प यह है कि जी-7 में शामिल अन्य देशों के अधिकांश प्रमुख रूस के प्रति ट्रंप के उत्साह को साझा नहीं करते हैं। लेकिन अकेली इसी अनिश्चितता की वजह से ट्रंप की जी-7 विस्तार की योजना पर संदेह नहीं करना चाहिए। इस समूह के विस्तार पर चर्चा करने वालों ने वर्ष 1997-99 में भी शामिल होने योग्य प्रत्याशियों पर विचार किया था, लेकिन उन्होंने तब सदस्य संख्या कम रखने को ही सही माना था। उस समूह में भारत के लिए भी जगह बनी थी।
वाकई 1997 में एशियाई देशों में व्यापक आर्थिक संकट के कारण वैश्विक वित्तीय स्थिरता की राह में खड़ी चुनौतियों से मुकाबले के लिए एक बडे़ मंच की जरूरत थी और जी-20 ने उसकी पूर्ति की। साल 2008 के आर्थिक संकट के बाद भी जी-20 ने प्रभावी भूमिका निभाई थी। अब कहा जा सकता है कि तत्कालीन योजना अपेक्षाकृत ज्यादा सोची-समझी थी।
दूसरी ओर, ट्रंप की विस्तार योजना अच्छी तरह से सोची-समझी नहीं है। दुनिया कोरोना वायरस के कारण पिछले 100 साल के सबसे खराब स्वास्थ्य संकट का सामना कर रही है, पर ट्रंप की नई कोशिश इस महामारी पर केंद्रित नहीं दिखती। यदि वह इस समस्या से निपटने की कोेशिश में बहुपक्षपवाद पर विश्वास करते, तो विश्व स्वास्थ्य संगठन में अपने देश के आर्थिक सहयोग को जारी रखते और इस संस्था को भीतर से बदलने के लिए मजबूर करते। इसके साथ ही, समूह विस्तार की उनकी पहल महामारी के समय पैदा हुए आर्थिक संकट पर भी केंद्रित नहीं दिखती है।
इस समय डोनाल्ड ट्रंप को सबसे ज्यादा चिंता अपने चुनाव की है। वह जीत की संभावनाएं तलाश रहे हैं। यही कारण है, जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल, जो पश्चिमी दुनिया के राजनेताओं में सबसे तेज हैं, चुनावी साल में अमेरिका दौरा करने से परहेज करती हैं, वह शिखर सम्मेलन में नहीं जाएंगी और न जाने की उनके पास अन्य वजहें मौजूद हैं। मर्केल चीन के खिलाफ गुट बनाने के किसी भी प्रयास में शामिल होने को तैयार नहीं हैं। ट्रंप के एक सहयोगी ने संकेत दिया है कि राष्ट्रपति ट्रंप जी-7 की अगली बैठक में चीन के भविष्य पर चर्चा करना चाहेंगे। अमेरिका-चीन संबंधों में जो तेज गिरावट देखी जा रही है, उसकी पृष्ठभूमि में यह चर्चा अस्वाभाविक नहीं है। हालांकि इससे यूरोपीय देश सहमत नहीं लगते। चीन को अलग-थलग करने के लिए जी-7 का विस्तार करने पर यूरोपीय देशों को राजी करना मुश्किल है।
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेहमान के रूप में बैठक में भाग लेने के लिए ट्रंप का निमंत्रण स्वीकार कर लिया है। भारतीय प्रधानमंत्री ने साल 2019 में राष्ट्रपति इमेनुएल मेक्रॉन के निमंत्रण पर जी-7 शिखर सम्मेलन में मेहमान के रूप में भाग लिया था। फ्रांस के राष्ट्रपति मेक्रॉन ने भी विस्तारित जी-7 में भारत को शामिल करने के ट्रंप के प्रस्ताव का स्वागत किया है। यह समूह, दुनिया की विकसित अर्थव्यवस्थाओं का सबसे अभिजात्य क्लब है, लेकिन बेहतर है कि भारत तब तक अपनी हसरतों को काबू में रखे, जब तक कि वह असली नतीजों और घटनाक्रम के साथ पूरी योजना को देख नहीं लेता।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) यशवंत राज, अमेरिका में हिन्दुस्तान टाइम्स संवाददाता
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