November 22, 2024
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विभिन्न विभागों के द्वारा लगाए जाएंगे शिविर, महिला समूह द्वारा बनाई सामग्री का किया जाएगा प्रदर्शन

जांजगीर-चांपा / शौर्यपथ / जिले के गांवों की गौठानों में 19 जून को विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इस दौरान पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, कृषि विभाग, पशु चिकित्सा, पशुपालन, मछलीपालन आदि विभागों के द्वारा गौठान में शिविर एवं समूह की महिलाओं द्वारा सामग्री का प्रदर्शन किया जाएगा। गांवों में रोका छेका की व्यवस्था करने बैठक का आयोजन भी किया जाएगा, जिसमें पंच, सरपंच, जनप्रतिनिधि, ग्राम के नागरिक और चरवाहे शामिल होंगे
मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री तीर्थराज अग्रवाल ने बताया कि राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गरवा, घुरवा और बाड़ी के तहत बनाए जा रहे गौठानों का सुचारू रूप से संचालन किया जा रहा है। इसी कड़ी में 19 जून को कलेक्टर श्री यशवंत कुमार के मार्ग निर्देशन में गौठान में विविध कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। उन्होंने सभी विभागों के अधिकारियों एवं फील्ड के अमले को आवश्यक तैयारी करने के निर्देश दिए हैं।
पशुओं के लिए गौठान में शिविर
जिपं सीईओ ने बताया कि 19 जून को गौठान में महिला समूहों द्वारा तैयार की जा रही कम्पोस्ट खाद का वितरण किसानों को किया जाएगा। इसके अलावा समूह के माध्यम से बनाई जा रही सामग्री का प्रदर्शन भी होगा। वहीं मवेशियों के लिए स्वास्थ्य संबंधी परीक्षण शिविर का आयोजन पशु चिकित्सा विभाग के माध्यम से किया जाएगा। गौठान में पर्याप्त मात्रा में पशुओं के लिए चारा रखने एवं संग्रहण करने की मुहिम चलाई जाएगी।
किसान क्रेडिट कार्ड शिविर
गौठान ग्राम में 19 जून को पशुपालन, मछलीपालन के लिए किसानों की सुविधा के लिए किसान क्रेडिट कार्ड बनाने के लिए शिविर लगाया जाएगा। ताकि उन्हें किसी तरह की कोई परेशानियों का सामना न करना पड़े। इसके अलावा कृषि, पशुपालन, मछलीपालन की विभिन्न योजनाओं की जानकारी देते हुए लाभ प्रदाय किया जाएगा।
रोका छेका की चली आ रही परंपरा
जिपं सीईओ श्री अग्रवाल ने बताया कि 19 जून को आयोजित कार्यक्रम के दौरान गांव में बैठक करते हुए पुरानी व्यवस्था रोका छेका के लिए ग्रामीणों से अपील की जाएगी, कि वे अपने मवेशियों को गौठान में ही छोड़। इस बैठक में पंच, सरपंच, जनप्रतिनिधि, ग्राम के नागरिक और चरवाहे शामिल होंगे। इससे किसानों की फसलों को मवेशियों से चरने से बचाया जा सकेगा। उन्होंने बताया कि रोका-छेका की परंपरा गांवों में चली आ रही है। इससे यह होगा कि जो पशु खुले में चरते हैं उन्हें रोका जा सकेगा।

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