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राजनांदगांव/शौर्यपथ / हनफ़ी मस्जिद गोलबाजार में मोहर्रम पर 1 अगस्त से 8 अगस्त तक रात 10 बजे से तक़रीर जारी है बरेली उत्तरप्रदेश से आये मुफ़्ती मोहम्मद तनविरुल क़ादरी साहब ने कहा मोहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना होता है, इस्लामिक साल की जो "इब्तेदा"शुरुआत होती है, यह मुहर्रम से होती है यह महीना मुसलमानों के लिए बहुत यादगार महीना होता है, इस्लाम की हिस्ट्री में इस महीने की बहुत बड़ी अहमियत है यह महीना हजरत इमाम हुसैन की शहादत से मशहूर है इसीलिए इस महीने को शहादत्ते हुसैन का महीना भी कहते हैं। मोहर्रम शरीफ का इतिहास यह है हजरत ए हुसैन इस्लाम के आखरी पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो वाले वसल्लम के प्यारे नवासे और लाडले हैं हजरत ए हुसैन और उनके साथियों ने दुनिया से आतंकवाद को मिटाने के लिए इंसानियत को जिंदा रखने के लिए कर्बला के मैदान में भूखे प्यासे अपने सर को दिया और अपने परिवार की कुर्बानियां दी और दुनिया को बताया है कि इस्लाम कभी भी ना गलत राह पर चलने का हुक़्म देता है और ना साथ देता है, बल्कि इमाम हुसैन ने जो कुर्बानी कर्बला के मैदान में दी थी मोहर्रम के महीने में उसका मकसद यही था कि दुनिया के सामने हक्कानीयत (हक सच्चाई)को उजागर कर दिया जाए और बता दिया जाए के अगरचे बातिल (झूठा मक्कार) कितना भी ज्यादा तगड़ा हो बड़ा हो मजबूत हो लेकिन कभी हक से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए हजरत इमाम हुसैन ने 22000 लश्कर के सामने अपनी हार नहीं मानी बल्कि कहा मैं अपना सर को दे सकता हूं लेकिन कभी गलत का साथ नहीं दे सकता, हजरत ने कहा के मोहर्रम पर इस्लाम मे नाच गाने ढोल ताशे और मन्नती शेर वगैरह का कोई हुक़्म मतलब नहीं है। इमाम हुसैन ने अपनी और अपने पूरे घर की कुर्बानियां इस्लाम और इंसानियत को बचाने के लिए दी थी, मोहर्रम गमी का महीना है हज़रत हुसैन से मोहब्बत करने वाले उन दर्दनाक दोनों को याद करके मोहर्रम के इन खास दिनों को अपनी इबादत नमाजो में गुजारे। उक्त मौक़े पर शोहदा-ए-करबला कमेटी के अध्यक्ष रशीद भाई बेरिंग, हाजी मंसूर अंसारी, हाजी रज्जाक बड़गुजर, हनफ़ी मस्ज़िद के सदर जनाब जावेद अंसारी, हाजी तनवीर अहमद तन्नू भाई ) कब्रस्तान कमेटी के सदर जलालुद्दीन निर्वाण, मौजूद रहें उक्त जानकारी मुस्लिम समाज के सैय्यद अफज़ल अली ने दी।
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