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धर्म संसार / शौर्यपथ / प्रभु यीशु के जन्म की ख़ुशी में मनाया जाने वाला क्रिसमस का त्योहार पूरी दुनिया में मनाया जाता है। यह त्योहार कई मायनों में बेहद खास है। क्रिसमस को बड़ा दिन, सेंट स्टीफेंस डे या फीस्ट ऑफ़ सेंट स्टीफेंस भी कहा जाता है। प्रभु यीशु ने दुनिया को प्यार और इंसानियत की शिक्षा दी। उन्होंने लोगों को प्रेम और भाईचारे के साथ रहने का संदेश दिया। प्रभु यीशु को ईश्वर का इकलौता प्यारा पुत्र माना जाता है। इस त्योहार से कई रोचक तथ्य जुड़े हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में।
क्रिसमस ऐसा त्योहार है जिसे हर धर्म के लोग उत्साह से मनाते हैं। यह एकमात्र ऐसा त्योहार है जिस दिन लगभग पूरे विश्व में अवकाश रहता है। 25 दिसंबर को मनाया जाने वाला यह त्योहार आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च में 6 जनवरी को मनाया जाता है। कई देशों में क्रिसमस का अगला दिन 26 दिसंबर बॉक्सिंग डे के रूप मे मनाया जाता है। क्रिसमस पर सांता क्लॉज़ को लेकर मान्यता है कि चौथी शताब्दी में संत निकोलस जो तुर्की के मीरा नामक शहर के बिशप थे, वही सांता थे। वह गरीबों की हमेशा मदद करते थे उनको उपहार देते थे। क्रिसमस के तीन पारंपरिक रंग हैं हरा, लाल और सुनहरा। हरा रंग जीवन का प्रतीक है, जबकि लाल रंग ईसा मसीह के रक्त और सुनहरा रंग रोशनी का प्रतीक है। क्रिसमस की रात को जादुई रात कहा जाता है। माना जाता है कि इस रात सच्चे दिल वाले लोग जानवरों की बोली को समझ सकते हैं। क्रिसमस पर घर के आंगन में क्रिसमस ट्री लगाया जाता है। क्रिसमस ट्री को दक्षिण पूर्व दिशा में लगाना शुभ माना जाता है। फेंगशुई के मुताबिक ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि आती है। पोलैंड में मकड़ी के जालों से क्रिसमस ट्री को सजाने की परंपरा है। मान्यता है कि मकड़ी ने सबसे पहले जीसस के लिए कंबल बुना था।
भिलाई / शौर्यपथ / पुलिस द्वारा लगातार ऑनलाइन फ्रॉड को लेकर लोगों को जागरुक किया जा रहा है इसके बाद भी ठगी की घटनाएं लगातार हो रही हैं। शातिर ठग रोज नए नए तरीके खोज कर लोगों को ठगने का कार्य कर रहे हैं। ऐसा ही एक मामला सुपेला थाने में दर्ज हुआ। इस बार प्रार्थी को बैंक कर्मी के नाम से फोन आया और क्रेडिट कार्ड से डेबिट कार्ड में बैलेंस ट्रांसफर करने का झांसा देकर खाते से रकम उड़ा दी। जब के्रडिट कार्ड से रुपए उड़े और डेबिट कार्ड एकाउंट में जमा नहीं हुए तो उसके होश उड़े। खुद का ठगी का शिकार हुआ मानकर व्यक्ति ने सुपेला थाने में शिकायत दर्ज कराई। सुपेला पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ धारा 420 के तहत अपराध दर्ज कर लिया है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक राधिका नगर निवासी ओम प्रकाश के मोबाइल नंबर पर 7024018856 से फोन आया। सामने से महिला की आवाज थी जिसमें कहा गया कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से बोल रही हूं। आपका क्रेडिट कार्ड नंबर 4726428024018929 जो पैसा बैलेंस बचा है उसे डेबिट कार्ड मे नंबर 5103720462106798 में ट्रांसफर कर देंगे। बैंक कर्मी के झांसे में आकर ओम प्रकाश ने अपनी कार्ड की डिटेल दे दी। पहली बार में 1500 रुपए, दूसरी बार 4999 रूपये एकाउंट से कट गए। तीसरा बार 4999 रुपए कट गए। इस प्रकार 17997 रुपए कट गए। उक्त रुपए जब एकाउंट में ट्रांसफर नहीं हुए तो ठगी का शक हुआ। मामले में सुपेला थाने में शिकायत दर्ज कराई गई जिस पर जांच के बाद अपराध कायम किया गया।
दुर्ग / शौर्यपथ / जिले के ग्राम औरी, पटवारी हल्का नम्बर 04, राज्य निगम मंण्डल भिलाई-03, तहसील पाटन, जिला दुर्ग में नया कोरोना पाॅजिटिव केस पाये जाने पर संबंधित क्षेत्रों को कन्टेनमेंट जोन घोषित किया गया है। उक्त क्षेत्र को कन्टेनमेंट जोन घोषित करने के परिणामस्वरूप कन्टेनमेंट जोन में चिन्हांकित क्षेत्र में सभी प्रकार के दुकानें व वाणिज्यिक प्रतिष्ठान बंद रहेगी। इसके अलावा सभी प्रकार की वाहनों के आवागमन पर प्रतिबंध रहेगा। मेडिकल इमरजेंसी को छोड़कर अन्य किसी भी कारण से घर से बाहर निकलना प्रतिबंधित होगा। उक्त क्षेत्र की निगरानी पुलिस विभाग के द्वारा पेट्रोलिंग कर की जावेगी। जिला चिकित्सालय व स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से संबंधित क्षेत्र में स्वास्थ्य की निगरानी के साथ ही निर्देशानुसार सेम्पल की जांच की जायेगी।
नई दिल्ली / शौर्यपथ / दिल्ली के नजदीक मानेसर में एक रिसॉर्ट में राजस्थान के बागी कांग्रेस नेता सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों के ठहरने के बाद, रिसॉर्ट कोरोनोवायरस महामारी के लिए "क्वॉरंटीन सेंटर" होने का दावा कर रहा है. ये इसलिए अहम हो जाता है क्योंकि कांग्रेस ने बुधवार को सचिन पायलट से कहा कि वे हरियाणा में बीजेपी सरकार की सुरक्षा से बाहर आएं और जयपुर वापिस लौटें. राजस्थान में कांग्रेस सरकार के लिए एक बड़ा संकट खड़ा करने वाले पायलट ने बीजेपी में शामिल होने की किसी भी योजना से इनकार किया है. बेस्ट वेस्टर्न रिसोर्ट के प्रवेश द्वार पर "क्वॉरंटीन सेंटर" साइन लगाया गया है. किसी को भी अंदर नहीं जाने दिया जा रहा है,
गेट पर तैनात गार्ड ने NDTV को बताया ,"COVID मरीज अंदर हैं." हालांकि गार्ड ने मरीजों की संख्या और नए क्वॉरंटीन सेंटर के बारे में अन्य सवालों के जवाब देने से इनकार कर दिया. रिसॉर्ट के कर्मचारियों ने भी जानकारी देने से इनकार कर दिया कि सोमवार से रिसॉर्ट "क्वॉरंटीन सेंटर " के रूप में कैसे काम कर रहा है.
पायलट का समर्थन करने वाले विधायक पहले मानेसर के आईटीसी ग्रैंड भारत होटल में ठहरे थे. बाद में उनमें से कुछ बेस्ट वेस्टर्न रिसोर्ट में शिफ्ट हो गए. इस हफ्ते की शुरुआत में विधायकों के रिसॉर्ट में होने का वीडियो सामने आयाा था. 16 विधायकों को लॉन में बैठा देखा गया था. हालांकि पायलट वीडियो में नजर नहीं आए.
नई दिल्ली / शौर्यपथ /
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) देश की सैन्य तैयारियों का जायजा लेने और समग्र स्थिति की समीक्षा करने के लिए शुक्रवार को लद्दाख (Ladakh) का दौरा करेंगे. सरकारी सूत्रों ने बुधवार को यह जानकारी दी. सिंह का यह दौरा ऐसे समय हो रहा है जब भारत और चीन (China) तनातनी वाले स्थानों से सैनिकों को पूरी तरह पीछे हटाने के लिए एक कार्ययोजना को अंतिम रूप देने की ओर बढ़ रहे हैं. रक्षा मंत्री के साथ थलसेना अध्यक्ष जनरल एम एम नरवणे भी होंगे.
सूत्रों ने कहा कि सिंह जनरल नरवणे, उत्तरी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल योगेश कुमार जोशी, 14वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह तथा अन्य वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के साथ क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति की समग्र समीक्षा करेंगे. लद्दाख से रक्षा मंत्री श्रीनगर जाएंगे जहां वह शनिवार को वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के साथ उच्चस्तरीय बैठक में पाकिस्तान से लगती नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर स्थिति की समीक्षा करेंगे.
सिंह को पहले तीन जुलाई को लद्दाख जाना था, लेकिन उनका यह दौरा टल गया था. पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन की सेनाओं के बीच कई स्थानों पर पांच मई से गतिरोध जारी था. गलवान घाटी (Galwan Valley) में हिंसक झड़प के बाद भारत और चीन के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था जिसमें भारतीय सेना के 20 जवानों को जान गंवानी पड़ी थी.
झड़प में चीनी सेना को भी नुकसान हुआ जिसकी उसने अब तक जानकारी नहीं दी है. अमेरिका की एक खुफिया रिपोर्ट के अनुसार इस झड़प में चीन के 35 सैनिक हताहत हुए, जबकि भारतीय पक्ष ने विभिन्न आकलन के आधार पर यह संख्या इससे भी अधिक बताई थी. हालांकि, कूटनीतिक और सैन्य स्तर की सिलसिलेवार बातचीत के चलते दोनों पक्षों ने पारस्परिक सहमति के आधार पर छह जुलाई से सैनिकों को हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी और अब तनातनी वाले ज्यादातर स्थानों से सैनिक पीछे हट गए हैं.
गुना / शौर्यपथ / मध्यप्रदेश के गुना जिले में किराए की जमीन पर खेती कर रहे किसान पति-पत्नी ने आत्महत्या करने का प्रयास किया. स्थानीय प्रशासन पुलिस वालों के साथ सरकारी जमीन पर अतिक्रमण हटाने पहुंचे था. परिजनों के मुताबिक परिवार पर तीन लाख रूपये से अधिक का कर्जा है, वो किराए पर खेत लेकर कर्ज की रकम चुकाना चाहते थे. दोनों को अस्पताल में भर्ती कराया गया. महिला की हालत नाजुक है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घटना की उच्च स्तरीय जांच का आदेश दे दिया है. गुना की घटना का गंभीरता से संज्ञान में लेते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गुना के कलेक्टर और एसपी को तत्काल प्रभाव से हटाने के निर्देश दिए हैं.
गुना के सरकारी पीजी कॉलेज की जमीन पर राजकुमार अहिरवार लंबे समय से खेती कर रहे थे, मंगलवार दोपहर अचानक गुना नगर पालिका का अतिक्रमण हटाओ दस्ता एसडीएम के नेतृत्व में यहां पहुंचा और राजकुमार की फसल पर जेसीबी चलवाना शुरू कर दिया. राजकुमार ने विरोध किया तो उसे पुलिस ने पकड़ लिया.
राजकुमार का कहना था कि ये उसकी पैतृक जमीन है. दादा-परदादा इस जमीन पर खेती करते आ रहे हैं. उसके पास पट्टा नहीं है. जब जमीन खाली पड़ी थी तो कोई नहीं आया. उसने 4 लाख रुपए का कर्ज लेकर बोवनी की है. अब फसल अंकुरित हो आई है. इस पर बुल्डोजर न चलाया जाया. मेरे परिवार में 10-12 लोग हैं. अब मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है. आत्महत्या करूंगा.
थोड़ी देर बाद उसकी पत्नी ने भी जान देने की कोशिश की, अतिक्रमण हटाने आए दस्ते के लोगों ने दोनों को पकड़ने का प्रयास किया तब तक काफी देर हो चुकी थी. बाद में दोनों को जबरन अस्पताल पहुंचाया गया. गुना तहसीलदार निर्मल राठौर ने कहा भूमि की नाप के बाद जब जेसीबी से कब्जा हटाया जा रहा था उस वक्त जो बटाईदार हैं उन्होंने किसी जहरीली वस्तु का सेवन कर लिया, उन्हें इलाज के लिये अस्पताल भेज दिया गया है. अस्पताल में राजकुमार की पत्नी की हालत नाजुक बताई जा रही है.
गुना की घटना का गंभीरता से संज्ञान में लेते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गुना के कलेक्टर और एसपी को तत्काल प्रभाव से हटाने के निर्देश दिए हैं. मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया है कि किसी भी प्रकार की बर्बरता बर्दाश्त नहीं की जाएगी. गुना मामले में उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए गए हैं. जो भी इस घटना में दोषी है उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा है कि कल हुई घटना को सरकार ने काफी गंभीरता से लिया है. मुख्यमंत्री ने इस मामले की उच्च स्तरीय जांच के निर्देश दिए हैं. घटना क्यों हुई, कैसे हुई और इसके पीछे कौन दोषी है, इन सब बातों की जल्द रिपोर्ट देने के लिए एक टीम भोपाल से गुना रवाना कर दी गई है.
नई दिल्ली /शौर्यपथ / देश में बुधवार सुबह तक, बीते 24 घंटे में 20,572 लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमण मुक्त होने के बाद रोगियों के ठीक होने की दर 63.24 प्रतिशत हो गई है. केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है. हालांकि इस दौरान देश में संक्रमण के 29,429 नए मामले भी सामने आए हैं. मंत्रालय ने कहा कि जांच में तेजी, समय पर इलाज और रोगियों की प्रभावी देखभाल के चलते ठीक होने वालों की संख्या में तेज वृद्धि हुई है. फिलहाल देश में ठीक हो चुके लोगों की तादाद मौजूदा संक्रमितों की तुलना में 2,72,191 अधिक है.
इस, बीच देश में संक्रमित पाए गए लोगों की कुल संख्या बुधवार को 9,36,181 हो गई. इसके अलावा 582 रोगियों की मौत के साथ ही मृतकों की तादाद 24,309 तक पहुंच गई है. भारत में लगातार चौथे दिन कोरोना वायरस संक्रमण के 28 हजार से अधिक मामले सामने आए हैं. सुबह आठ बजे तक अपडेट किये गए स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार बीमारी से उबर चुके लोगों की तादाद 5,92,031 हो गई है. देश में अब भी 3,19,840 लोग वायरस से संक्रमित हैं. सभी रोगी चिकित्सा निगरानी में हैं.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा, ''रोगियों के ठीक होने की दर आज बढ़कर 63.24 प्रतिशत हो गई है.'' मंत्रालय ने एक बयान में कहा, 'मौजूदा रोगियों और ठीक हो चुके लोगों की संख्या में अंतराल लगातार बढ़ रहा है. फिलहाल मौजूदा रोगियों के मुकाबले 2,72,191 अधिक लोग ठीक हो चुके हैं.' मंत्रालय ने कहा कि घर में पृथक रहने के नियमों और मानकों तथा ऑक्सीमीटर के इस्तेमाल से अस्पतालों पर दबाव डाले बगैर हल्के लक्षणों वाले या बिना लक्षणों वाले रोगियों का पता लगाने में मदद मिली है.
देश में कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिये 1,378 पूरी तरह से कोविड के लिये समर्पित अस्पताल, 3,077 कोविड स्वास्थ्य केन्द्र, 21,738 वेंटिलेटरों वाले 10,351 कोविड देखभाल केन्द्र, 46,487 आईसीयू बिस्तर और 1,65,361 ऑक्सीजन बिस्तर मौजूद हैं. केन्द्र सरकार ने कोविड-19 का प्रभावी नैदानिक प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये राज्यों, केन्द्र शासित प्रदेशों और केन्द्रीय संस्थानों को 230.98 लाख एन-95 मास्क, 123.56 लाख पीपीई किट और 11,660 वेंटिलेटर वितरित किये हैं.
पटना / शौर्यपथ / बिहार के गोपालगंज में 264 करोड़ की लागत से बना सत्तरघाट महासेतु बुधवार को पानी के दबाव से ध्वस्त हो गया. वहीं इस महासेतु के ध्वस्त होने से चंपारण तिरहुत और सारण के कई जिलों का संपर्क टूट गया है. इस पुल पर आवागमन पूरी तरह बाधित हो गया है. बीते 16 जून को सीएम नीतीश कुमार ने पटना से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस महासेतु का उद्घाटन किया था. गोपालगंज को चंपारण से और इसके साथ तिरहुत के कई जिलों से इस माह सेतु को जोड़ने का यह अतिमहत्वकांक्षी पुल था. इसके निर्माण में करीब 264 करोड़ की लागत आई थी.
गोपालगंज में आज तीन लाख से ज्यादा क्यूसेक पानी का बहाव था गंडक के इतने बड़े जलस्तर के दबाव से इस महासेतु का एप्रोच रोड टूट गया. जिसकी वजह से आवागमन बंद हो गया है. बैकुंठपुर के फैजुल्लाहपुर में यह पुल टूटा है. जहां पर देखने के लिए लोगो का तांता लगा है.
भाजपा विधायक मिथिलेश तिवारी ने इस मामले की जानकारी बिहार के पथ निर्माण मंत्री नंदकिशोर यादव को दी है. उन्होंने कहा है कि इस मामले की जांच करने के लिए वह आगामी चार अगस्त को शुरू होने वाले विधानसभा सत्र में उठाएंगे.
इस सेतु का निर्माण बिहार पुल निर्माण विभाग द्वारा कराया गया था. वर्ष 2012 में इस पुल का निर्माण शुरू किया गया था. निर्माण पूरा होने के बाद 16 जून 2020 को इस महासेतु का उद्घाटन किया गया था.
रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेश के दो विकास प्राधिकरणों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की नियुक्ति की है। डोंगरगढ़ के विधायक भुवनेश्वर बघेल को अनुसूचित जाति विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया गया है। इस प्राधिकरण के लिए दो उपाध्यक्ष की नियुक्ति की गई है। सरायपाली के विधायक किस्मत लाल नंद तथा सारंगढ़ की विधायक श्रीमती उत्तरी जांगड़े को अनुसूचित जाति विकास प्राधिकरण का उपाध्यक्ष बनाया गया है।
इसी तरह छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण एवं अन्य पिछड़ा वर्ग विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष पद पर डोंगरगांव के विधायक दलेश्वर साहू की नियुक्ति की गई है । रायगढ़ के विधायक प्रकाश नायक एवं चन्द्रपुर के विधायक रामकुमार यादव को इस प्राधिकरण का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
शौर्यगाथा / भारत के कई सैन्य इतिहासकारों की राय है कि अगर ब्रिगेडियर उस्मान की समय से पहले मौत न हो गई होती तो वो शायद भारत के पहले मुस्लिम थल सेनाध्यक्ष होते.एक कहावत है कि ईश्वर जिसे चाहता है उसे जल्दी अपने पास बुला लेता है. बहादुरों की बहुत कम लंबी आयु होती है. ब्रिगेडियर उस्मान के साथ भी ऐसा ही था.
जब उन्होंने अपने देश के लिए अपनी जान दी तो उनके 36वें जन्मदिन में 12 दिन बाकी थे. लेकिन अपने छोटे से जीवनकाल में उन्होंने वो सब हासिल कर लिया जिसको बहुत से लोग उनसे दोहरा जी कर भी नहीं पा पाते हैं. वो शायद अकेले भारतीय सैनिक थे जिनके सिर पर पाकिस्तान ने 50,000 रुपए का ईनाम रखा था जो उस ज़माने में बहुत बड़ी रक़म हुआ करती थी. 1948 में नौशेरा का लड़ाई के बाद उन्हें 'नौशेरा का शेर' कहा जाने लगा था.
12 साल की उम्र में कुएं में डूबते बच्चे को बचाया
उस्मान का जन्म 15 जुलाई 1912 को मऊ ज़िले के बीबीपुर गाँव में हुआ था. उनके पिता काज़ी मोहम्मद फ़ारूक़ बनारस शहर के कोतवाल थे और उन्हें अंग्रेज़ सरकार ने ख़ान बहादुर का ख़िताब दिया था. एक बार जब वो 12 साल के थे तो वो एक कुएं के पास से गुज़र रहे थे. उसके चारों तरफ़ भीड़ जमा देखकर वो वहाँ रुक गए. पता चला कि एक बच्चा कुएं में गिर पड़ा है. 12 साल के उस्मान ने आव देखा न ताव, वो उस बच्चे को बचाने के लिए कुएं में कूद पड़े. उस्मान बचपन में हकलाया करते थे उनके पिता ने सोचा कि इस कमी के कारण वो शायद सिविल सेवा में न चुने जाएं. इसलिए उन्होंने उन्हें पुलिस में जाने के लिए प्रेरित किया. वो उन्हें अपने साथ अपने बॉस के पास ले गए. इत्तेफ़ाक़ से वो भी हकलाया करते थे.
उन्होंने उस्मान से कुछ सवाल पूछे और जब उन्होंने उनके जवाब दिए तो अंग्रेज़ अफ़सर ने समझा कि वो उनकी नकल उतार रहे हैं. वो बहुत नाराज़ हुआ और इस तरह उस्मान का पुलिस में जाने का सपना भी टूट गया.
पाकिस्तान न जाने का फ़ैसला
उस्मान ने सेना में जाने का फ़ैसला किया. उन्होंने सैंडहर्स्ट में चुने जाने के लिए आवेदन किया और उनको चुन लिया गया. 1 फ़रवरी 1934 को वो सैंडहर्स्ट से पास होकर निकले. वो इस कोर्स में चुने गए 10 भारतियों में से एक थे. सैम मानेकशॉ और मोहम्मद मूसा उनके बैचमेट थे जो बाद में भारतीय और पाकिस्तानी सेना के चीफ़ बने. वर्ष 1947 तक वो ब्रिगेडियर बन चुके थे. वो एक वरिष्ठ मुस्लिम सैन्य अधिकारी थे, इसलिए हर कोई उम्मीद कर रहा था कि वो पाकिस्तान जाना पसंद करेंगे लेकिन उन्होंने भारत में ही रहने का फ़ैसला किया. बलूच रेजिमेंट के कई अधिकारयों ने जिसके कि वो सदस्य थे, उनके इस फ़ैसले पर सवाल उठाए और उस पर पुनर्विचार करने के लिए कहा.
ब्रिगेडियर उस्मान की जीवनी लिखने वाले मेजर जनरल वीके सिंह बताते हैं, "मोहम्मद अली जिन्ना और लियाक़त अली दोनों ने कोशिश की कि उस्मान भारत में रहने का अपना फ़ैसला बदल दें. उन्होंने उनको तुरंत पदोन्नति देने का लालच भी दिया लेकिन अपने फ़ैसले पर क़ायम रहे. मुसलमान होते हुए भी उनमें कोई धार्मिक पूर्वाग्रह नहीं था. अपनी निष्पक्षता, ईमानदारी और न्यायप्रियता से उन्होंने अपने मातहत सिपाहियों का दिल जीत लिया."
कबाइलियों का झंगड़ पर कब्ज़ा
अक्तूबर, 1947 में क़बाइलियों ने पाकिस्तानी सेना की मदद से कश्मीर पर हमला बोल दिया और 26 अक्तूबर तक वो श्रीनगर के बाहरी इलाक़ों तक बढ़ते चले आए. अगले दिन भारत ने उनको रोकने के लिए अपने सैनिक भेजने का फ़ैसला किया. 7 नवंबर को कबाइलियों ने राजौरी पर क़ब्ज़ा कर लिया और बहुत बड़ी संख्या में वहाँ रहने वाले लोगों का क़त्लेआम हुआ. 50 पैरा ब्रिगेड के कमांडर ब्रिगेडियर उस्मान नौशेरा में डटे तो हुए थे लेकिन क़बाइलियों ने उसके आसपास के इलाक़ों ख़ासकर उत्तर में नियंत्रण बना रखा था.
उस्मान उनको वहाँ से हटाकर चिंगास तक का रास्ता साफ़ कर देना चाहते थे लेकिन उनके पास पर्याप्त संख्या में सैनिक नहीं थे, इसलिए उन्हें सफलता नहीं मिल पाई. 24 दिसंबर को क़बाइलियों ने अचानक हमला कर झंगड़ पर क़ब्ज़ा कर लिया. इसके बाद उनका अगला लक्ष्य नौशेरा था. उन्होंने इस शहर को चारों तरफ़ से घेरना शुरू कर दिया.
उस्मान की सबसे बड़ी चुनौती
4 जनवरी, 1948 को उस्मान ने अपनी बटालियन को आदेश दिया कि वो झंगड़ रोड पर भजनोआ से क़बाइलियों को हटाना शुरू करें. ये हमला बग़ैर तोपखाने के किया गया. लेकिन ये असफल हो गया और क़बाइली अपनी जगह से टस से मस नहीं हुए. इस सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने उसी शाम नौशेरा पर हमला बोल दिया. लेकिन भारतीय सैनिकों ने उस हमले को नाकाम कर दिया. दो दिन बाद उन्होंने उत्तर पश्चिम से दूसरा हमला बोला. ये भी नाकामयाब रहा. फिर उसी शाम क़बाइलियों ने 5000 लोगों और तोपखाने के साथ एक और हमला बोला. ब्रिगेडियर उस्मान के सैनिकों ने अपना पूरा ज़ोर लगाकर तीसरी बार भी क़बाइलियों को नौशेरा पर कब्ज़ा नहीं करने दिया.
उस्मान की जीवनी लिखने वाले जनरल वी.के सिंह बताते हैं, "क़बाइलियों के हमले नाकाम करने के बावजूद गैरिसन के सैनिकों का मनोबल बहुत ऊँचा नहीं था. विभाजन के बाद फैले सांप्रदायिक वैमनस्य की वजह से कुछ सैनिक अपने मुस्लिम कमांडर की वफ़ादारी के बारे में निश्चिंत नहीं थे. उस्मान को न सिर्फ़ अपने दुश्मनों के मंसूबों को ध्वस्त करना था बल्कि अपने सैनिकों का भी विश्वास जीतना था. उनके शानदार व्यक्तित्व, व्यक्ति प्रबंधन और पेशेवर रवैये ने कुछ ही दिनों में हालात बदल दिए. उस्मान ने ब्रिगेड में एक दूसरे से बात करते हुए जय हिंद कहने का प्रचलन शुरू करवाया."
करियप्पा की फ़रमाइश
जनवरी 1948 में ही पश्चिमी कमान का चार्ज लेने के बाद लेफ़्टिनेंट जनरल करियप्पा ने नौशेरा का दौरा किया. मेजर एसके सिन्हा के साथ वो टू सीटर ऑस्टर विमान से नौशेरा की हवाई पट्टी पर उतरे. उस्मान ने उनका स्वागत किया और अपनी ब्रिगेड के सैनिकों से उनको मिलवाया.
अर्जुन सुब्रमणियम अपनी किताब 'इंडियाज़ वार्स' में लिखते हैं, "वापस लौटने से पहले करियप्पा ब्रिगेडियर उस्मान की तरफ़ मुड़े और उन्होंने उनसे कहा कि मैं आपसे एक तोहफ़ा चाहता हूँ. मैं चाहता हूँ कि आप नौशेरा के पास के सबसे ऊँचे इलाके कोट पर क़ब्ज़ा करें, क्योंकि दुश्मन वहाँ से नौशेरा पर हमला करने की योजना बना रहा है. इससे पहले कि वो ऐसा कर पाए आप कोट पर कब्ज़ा कर लीजिए. उस्मान ने करियप्पा से वादा किया कि वो उनकी फ़रमाइश को कुछ ही दिनों में पूरा कर देंगे."
'बोल छत्रपति शिवाजी महाराज की जय'
कोट नौशेरा से 9 किलोमीटर उत्तर पूर्व में था. ये क़बाइलियों के लिए एक तरह से ट्राँसिट कैंप का काम करता था क्योंकि वो राजौरी से सियोट के रास्ते में था. उस्मान ने कोट पर क़ब्ज़ा करने के ऑप्रेशन को 'किपर' का नाम दिया. करियप्पा इसी नाम से सैनिक हल्कों में जाने जाते थे. उन्होंने कोट पर दो बटालियनों के ताथ दोतरफ़ा हमला बोला.
3 पैरा ने दाहिनी तरफ़ से पथरडी और उपर्ला डंडेसर पर चढ़ाई की और 2/2 पंजाब ने बाईं तरफ़ से कोट पर हमला बोला. वायुसेना ने जम्मू एयरबेस से उड़ान भर कर एयर सपोर्ट दिया. क़बाइलियों को ये आभास दिया गया कि हमला वास्तव में झंगड़ पर हो रहा है. इसके लिए घोड़े और खच्चरों का इंतेज़ाम किया गया. भारतीय सैनिकों ने मराठों का नारा 'बोल श्री छत्रपति शिवाजी महराज की जय' बोलते हुए क़बाइलियों पर हमला किया. इस लड़ाई में हाथों और संगीनों का जम कर इस्तेमाल किया गया.
कोट पर क़ब्ज़ा
कोट पर हमला 1 फ़रवरी, 1948 की सुबह 6 बजे किया गया था और 7 बजे तक ये लगने लगा था कि कोट पर भारतीय सैनिकों का क़ब्ज़ा हो जाएगा. 2/2 पंजाब ने अपनी कामयाबी का संदेश भी भेज दिया था. बाद में पता चला कि बटालियन ने गाँव के घरों की अच्छी तरह से तलाशी नहीं ली थी और वो कुछ क़बाइलियों को पहचान नहीं पाए थे जो सो रहे थे. थोड़ी देर में उन्होंने जवाबी हमला बोल दिया और आधे घंटे के अंदर क़बाइलियों ने कोट पर दोबारा क़ब्ज़ा कर लिया.
उस्मान ने इसका पहले से ही अंदाज़ा लगाते हुए दो कंपनियाँ रिज़र्व में रख छोड़ी थीं. उनको तुरंत आगे बढ़ाया गया और भारी गोलाबारी और हवाई बमबारी के बीच 10 बजे कोट पर दोबारा क़ब्ज़ा कर लिया गया. इस लड़ाई में क़बालियों के 156 लोग मरे जबकि 2/2 पंजाब के सिर्फ़ 7 लोग मारे गए.
क़बाइलियों का नौशेरा पर हमला
6 फ़रवरी, 1948 को कश्मीर युद्ध की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ी गई. सुबह 6 बजे उस्मान कलाल पर हमला करने वाले थे लेकिन तभी उन्हें पता चला कि कबाइली उसी दिन नौशेरा पर हमला करने वाले हैं. इस हमले में क़बाइलियों की तरफ़ से 11000 लोगों ने भाग लिया. 20 मिनट तक गोलाबारी के बाद क़रीब 3000 पठानों ने तेनधर पर हमला किया और लगभग इतने ही लोगों ने कोट पर हमला बोला. इसके अलावा लगभग 5000 लोगों ने आसपास के इलाके कंगोटा और रेदियाँ को अपना निशाना बनाया. जैसे ही पौ फटी हमलावरों की ने रक्षण कर रहे उस्मान के सैनिकों पर ज़ोरदार हमला बोल दिया.
1 राजपूत की पलटन नंबर 2 ने इस हमले के पूरे आवेग को झेला. 27 लोगों की पिकेट में 24 लोग या तो मारे गए या बुरी तरह से घायल हो गए. बचे हुए तीन सैनिकों ने तब तक लड़ना जारी रखा जब तक उनमें से दो सैनिक धराशाई नहीं हो गए. सिर्फ़ एक सैनिक बचा था. तभी वहाँ कुमुक पहुंच गई और उसने स्थिति को बदल दिया.
अगर उनके वहाँ पहुंचने में कुछ मिनटों की भी देरी हो जाती तो तेनधार भारतीय सैनिकों के हाथ से जाता रहता. अभी तेनधार और कोट पर हमला जारी था कि 5000 पठानों के झुंड ने पश्चिम और दक्षिण पश्चिम की ओर से हमला किया. ये हमला नाकामयाब किया गया. इस असफलता के बाद पठान पीछे चले गए और लड़ाई का रुख़ बदल गया.
सफ़ाई कर्मचारी और बच्चों की बहादुरी
इस लड़ाई में सैनिकों के अलावा 1 राजपूत के एक सफ़ाई कर्मचारी ने भी असाधारण वीरता दिखाई. क़बाइलियों के ख़त्म न होने वाले जत्थों के हमले के दौरान जब भारतीय सैनिक धराशाई होने लगे तो उसने एक घायल सैनिक के हाथ से राइफ़ल लेकर क़बाइलियों पर गोली चलानी शुरू कर दी. उसने एक हमलावर के हाथ से तलवार खींचकर तीन क़बाइलियों को भी मारा.
इस अभियान में 'बालक सेना' की भी बड़ी भूमिका रही जिसे ब्रिगेडियर उस्मान ने नौशेरा में अनाथ हो गए 6 से 12 साल के बच्चों को शामिल कर बनाया था. उन्होंने उनकी शिक्षा और ट्रेनिंग की व्यवस्था की थी. नौशेरा की लड़ाई के दौरान इनका इस्तेमाल चलती हुई गोलियों के बीच संदेश पहुंचाने के लिए किया गया था. लड़ाई ख़त्म होने के बाद इनमें से तीन बालकों को बहादुरी दिखाने के लिए सम्मानित किया गया और प्रधानमंत्री नेहरू ने उन्हें सोने की घड़ियाँ ईनाम में दीं.
रातों-रात देश के हीरो
नौशेरा की लड़ाई के बाद ब्रिगेडियर उस्मान का हर जगह नाम हो गया और रातों रात वो देश के हीरो बन गए. जेएके डिवीज़न के जनरल ऑफ़िसर कमाँडिंग मेजर जनरल कलवंत सिंह ने एक प्रेस कान्फ़्रेंस कर नौशेरा की सफलता का पूरा सेहरा 50 पैरा ब्रिगेड के कमाँडर ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान के सिर पर बाँधा. जब उस्मान को इसका पता चला तो उन्होंने कलवंत सिंह को अपना विरोध प्रकट करते हुए पत्र लिखा कि "इस जीत का श्रेय सैनिकों को मिलना चाहिए जिन्होंने इतनी बहादुरी से लड़कर देश के लिए अपनी जान दी, न कि ब्रिगेड के कमाँडर के रूप में उनको."
10 मार्च, 1948 को मेजर जनरल कलवंत सिह ने झंगड़ पर पुन: क़ब्ज़ा करने के आदेश दिए. जब ब्रिगेडियर उस्मान ने अपने सैनिकों को वो मशहूर आदेश दिया जिसमें लिखा था, "पूरी दुनिया की निगाहें आप के ऊपर हैं. हमारे देशवासियों की उम्मीदें और आशाएं हमारे प्रयासों पर लगी हुई हैं. हमें उन्हें निराश नहीं करना चाहिए. हम बिना डरे झंगड़ पर क़ब्ज़ा करने के लिए आगे बढ़ेंगे. भारत आपसे अपना कर्तव्य पूरा करने की उम्मीद करता है."
झंगड़ पर दोबारा क़ब्ज़ा न होने तक पलंग पर न सोने का प्रण
इस अभियान को 'ऑपरेशन विजय' का नाम दिया गया था. इसको 12 मार्च को शुरू होना था लेकिन भारी बारिश के कारण इसको दो दिनों के लिए टाल दिया गया था. जब भारतीय सैनिक क़बाइलियों के बंकर में पहुंचे तो उन्होंने पाया कि वहाँ खाना पक रहा था और केतलियों में चाय उबाली जा रही थी. उनको आग बुझाने का भी मौक़ा नहीं मिल पाया था. 18 मार्च को झंगड़ भारतीय सेना के नियंत्रण में आ गया था.
जनरल वीके सिंह ब्रिगेडियर उस्मान की जीवनी में लिखते हैं, "दिसंबर, 1947 में भारतीय सेना के हाथ से झंगड़ निकल जाने के बाद ब्रिगेडियर उस्मान ने राणा प्रताप की तरह प्रण किया था कि वो तब तक पलंग पर नहीं सोएंगे जब तक झंगड़ दोबारा भारतीय सेना के नियंत्रण में नहीं आ जाता. जब झंगड़ पर क़ब्ज़ा हुआ तो ब्रिगेडियर उस्मान के लिए एक पलंग मंगवाई गई. लेकिन ब्रिगेड मुख्यालय पर कोई पलंग उपलब्ध नहीं थी, इसलिए नज़दीक के एक गाँव से एक पलंग उधार ली गई और ब्रिगेडियर उस्मान उस रात उस पर सोए."
तोप के गोले से हुई ब्रिगेडियर उस्मान की मौत
ब्रिगेडियर उस्मान 3 जुलाई 1948 को पाकिस्तानी घुसपैठियों से लड़ते हुए मारे गए. उस समय बाद में भारत के उप-थलसेनाध्यक्ष बने जनरल एस के सिन्हा मौजूद थे. उन्होंने इसका विवरण देते हुए मुझे बताया था, "हर शाम साढ़े पाँच बजे ब्रिगेडियर उस्मान अपने मातहतों की बैठक लिया करते थे. उस दिन बैठक आधे घंटे पहले बुलाई गई और जल्दी समाप्त हो गई."
"5 बज कर 45 पर क़बाइलियों ने ब्रिगेड मुख्यालय पर गोले बरसाने शुरू कर दिए. चार गोले तंबू से क़रीब 500 मीटर उत्तर में गिरे. हर कोई आड़ लेने के लिए भागा. उस्मान ने सिग्नलर्स के बंकर को ऊपर एक चट्टान के पीछे आड़ ली. उनकी तोपों को चुप कराने के लिए हमने भी गोलाबारी शुरू कर दी." "अचानक उस्मान ने मेजर भगवान सिंह को आदेश दिया कि वो तोप को पश्चिम की तरफ़ घुमाएं और प्वाएंट 3150 पर निशाना लें. भगवान ये आदेश सुन कर थोड़ा चकित हुए, क्योंकि दुश्मन की तरफ़ से तो दक्षिण की तरफ़ से फ़ायर आ रहा था. लेकिन उन्होंने उस्मान के आदेश का पालन करते हुए अपनी तोपों के मुँह उस तरफ़ कर दिए जहाँ उस्मान ने इशारा किया था. वहाँ पर कबाइलियों की 'आर्टलरी ऑब्ज़रवेशन पोस्ट' थी. इसका नतीजा ये हुआ कि वहाँ से फ़ायर आना बंद हो गया."
गोले के उड़ते हुए टुकड़े उस्मान के शरीर में धँसे
जनरल सिन्हा ने मुझे आगे बताया, "गोलाबारी रुकते ही सिग्नल्स के लेफ़्टिनेंट राम सिंह अपने साथियों के साथ नष्ट हो गए एरियल्स की मरम्मत करने लगे. उस्मान भी ब्रिगेड कमाँड की पोस्ट की तरफ़ बढ़ने लगे. मेजर भगवान सिंह और मैं उनके पीछे चल रहा था. हमने कुछ ही क़दम लिए होंगे कि भगवान सिंह ने एक गोले की आवाज़ सुनी. उन्होंने मेरी बाँह पकड़ कर मुझे पीछे खींच लिया. अब तक उस्मान कमांड पोस्ट के दरवाज़े पर पहुंच गए थे और वहाँ रुक कर सिग्नल वालों से बात कर रहे थे. तभी 25 पाउंड का एक गोला पास की चट्टान पर गिरा. उसके उड़ते हुए टुकड़े ब्रिगेडियर उस्मान के शरीर में धँस गए और उनकी उसी जगह पर मौत हो गई. उस रात पूरी रात गोलाबारी हुई और झंगड़ पर करीब 800 गोले दागे गए."
नेहरू जनाज़े में शामिल हुए
ब्रिगेडियर उस्मान के मरते ही पूरी गैरिसन में शोक छा गया. जब भारतीय सैनिकों ने सड़क पर खड़े हो कर अपने ब्रिगेडियर को अंतिम विदाई दी तो सब की आँखों में आँसू थे. सारे सैनिक उस अफ़सर के लिए रो रहे थे जिसने बहुत कम समय में उन्हें अपना बना लिया था. पहले उनके पार्थिव शरीर को जम्मू लाया गया. वहाँ से उसे दिल्ली ले जाया गया.
देश के लिए अपनी ज़िंदगी देने वाले इस शख़्स के सम्मान में दिल्ली हवाई अड्डे पर बहुत बड़ी भीड़ जमा हो गई थी. सरकार ने राजकीय सम्मान के साथ उनकी अंतयेष्ठि की. उनका अंतिम संस्कार जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में किया गया जिसमें भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों के साथ मौजूद थे. इसके तुरंत बाद ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को मरणोपराँत महावीर चक्र देने की घोषणा कर दी गई.
वीरगति को प्राप्त होने वाले सबसे वरिष्ठ सैन्य अधिकारी
उस समय ब्रिगेडियर उस्मान ने अपनी ज़िदगी के 36 साल भी पूरे नहीं किए थे. अगर वो जीवित रहते तो निश्चित रूप से वो अपने पेशे के सर्वोच्च पद पर पहुंचते. झंगड़ के भारतीय सेना के हाथ से निकल जाने के बाद बहुत से आम नागरिकों ने नौशेरा में शरण ली थी. उस समय वहाँ खाने की कमी थी. उस्मान ने अपने सैनिकों को मंगलवार को व्रत रखने का आदेश दिया ताकि उस दिन का बचा हुआ राशन आम लोगों को दिया जा सके.
ब्रिगेडियर उस्मान ने ताउम्र शराब नहीं पी. डोगरों के साथ काम करते हुए वो शाकाहारी भी हो गए थे. वो पूरी उम्र अविवाहित रहे और उनके वेतन का बहुत बड़ा हिस्सा ग़रीब बच्चों की मदद के लिए जाता रहा. पक्के मुसलमान होने के बावजूद उस्मान बहुत बड़े देशभक्त थे. वो हमेशा अपने धर्म और देश दोनों के लिए वफ़ादार रहे.
उनके जीवनीकार जनरल वी के सिंह एक क़िस्सा सुनाते हैं, "नौशेरा पर हमले के दौरान उन्हें बताया गया कि कुछ क़बाइली एक मस्जिद के पीछे छिपे हुए हैं और भारतीय सैनिक पूजास्थल पर फ़ायरिंग करने से झिझक रहे हैं. उस्मान ने कहा कि अगर मस्जिद का इस्तेमाल दुश्मन को शरण देने के लिए किया जाता है तो वो पवित्र नहीं है. उन्होंने उस मस्जिद को ध्वस्त करने के आदेश दे दिए."
भारत के सैनिक इतिहास में अब तक ब्रिगेडियर उस्मान वीर गति को प्राप्त होने वाले सबसे वरिष्ठ सैन्य अधिकारी हैं. झंगड़ मे उसी चट्टान पर उनका स्मारक बना हुआ है जहाँ गिरे तोप के एक गोले ने उनकी जान ले ली थी.
शौर्यपथ । जयपुर । राजस्थान सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट को मंत्री पद से हटा दिया वही प्रदेज़ह कांग्रेस के अध्यक्ष पद से भी सचिन पायलट की छुट्टी हो गई । कांग्रेस के इस फैसले से राजस्थान की राजनीति में भूचाल सा आ गया वही सचिन पायलट ने अपने ट्वीटर में कांग्रेस शब्द हटा लिया । वही ट्वीटर पर मैसेज सत्य कभी पराजित नही होता " चर्चा का विषय बन गया है । सचिन पायलट के करीबी मंत्रियों की भी मंत्री पद से छुट्टी की खबर सामने आ रही है । सचिन पायलट के लिए फैसले से कांग्रेस संगठन को किंतना फायदा व नुकसान होगा ये आने वाले समय मे ही पता चलेगा ।
शौर्यपथ लेख । अगर राजस्थान में कांग्रेस की सरकार गिरती है तो इसका दोष भाजपा को देना कही से भी सही नही है भाजपा एक राजनैतिक पार्टी है और सत्ता के लिए जो संविधान के दायरे में रहकर प्रयास किया जा रहा है कर रही है । ये अलग बात है कि बहुमत नही मिलने के बाद भी कई राज्यो में सत्ता में विराजमान है और हो भी क्यो ना केंद्र में बहुमत से सत्ता में काबिज होने का फायदा तो मिलता ही है राजनैतिक पार्टियों को चाहे जिसकी भी सत्ता हो केंद्र में । मेरी विचार से दोषी कांग्रेस के वो लालची नेता है जो सत्ता में रहने के लिए अपने ज़मीर का सौदा करते है दोषी वो कांग्रेसी होंगे जो सालो से अंगद की तरह जमे हुए है और युवाओं को आगे बढ़ने का मौका नही दे रहे । नई सोंच के साथ अनुभव की भी आवश्यकता है किंतु कांग्रेस को जो नुकसान हो रहा है वह एकमेव अधिकार का ही परिणाम है कोई बड़ी बात नही होगी अगर राजस्थान से भी कांग्रेस की सत्ता चली जाती है तो सिंद्धान्तों की बात कहे या खरीद फरोख्त को सब अपनी अपनी सुविधा से अपनी बात रखेंगे और नैतिकता की दुहाई भी देंगे किन्तु काम अपने फायदे का ही करेंगे । ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट दो बड़े प्रदेश में कांग्रेस को सत्ता में पहुंचाने के लिए प्रयास किये है ये सभी जानते है । कुछ ना कुछ उपेक्षा और कोई ना कोई नैतिकता का मुखोटा ओढ़े हुए लालच का ही कमाल होगा जो mp में शिव का राज है और अब राजस्थान में बुआ के राज के लिए प्रयास आरंभ है ....( शरद पंसारी )