September 06, 2025
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‘मैं निर्दोष हूँ’ – कैटरिंग व्यवसायी की गुहार, पुलिस मनमानी से मानसिक रूप से टुटा राजकुमार मिश्रा

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रायपुर पुलिस की कार्यशैली पर उठे सवाल, निष्पक्ष जांच की मांग तेज

   रायपुर / शौर्यपथ / राजधानी रायपुर में पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। कबीर नगर थाना क्षेत्र के निवासी राजकुमार मिश्रा, जो पेशे से कैटरिंग व्यवसाय से जुड़े हैं, ने आरोप लगाया है कि पुलिस अधिकारी नारायण सेन ने उन्हें बिना किसी अपराध और बिना शिकायत के ही जबरन गिरफ्तार कर लिया। इस घटना ने न केवल नागरिक अधिकारों पर प्रश्नचिह्न खड़ा किया है बल्कि पुलिस की जवाबदेही पर भी बहस छेड़ दी है।

शिकायत का विवरण

राजकुमार मिश्रा ने उच्च अधिकारियों को लिखित शिकायत सौंपी है। उनके अनुसार,17 अगस्त 2025 को कुछ लोगों के इशारे पर उन्हें थाने बुलाया गया।थाने में उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया और उनकी तबीयत खराब होने के बावजूद जबरन मेडिकल परीक्षण के लिए ले जाया गया। डॉक्टर ने बीपी अधिक होने की वजह से परीक्षण से इनकार किया, इसके बावजूद पुलिस ने उन्हें थाने में बैठाकर घंटों परेशान किया।बाद में उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें जमानत पर रिहाई मिली।
  शिकायतकर्ता का कहना है कि वे नशा नहीं करते और उनका सामाजिक एवं व्यावसायिक जीवन पूरी तरह साफ-सुथरा है। इसके बावजूद पुलिस ने किसी प्रभावशाली व्यक्ति के दबाव में झूठा मामला दर्ज कर उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की।
मानसिक और सामाजिक आघात
  राजकुमार मिश्रा ने कहा कि इस पूरे प्रकरण ने उन्हें मानसिक रूप से आहत किया है। समाज में उनकी छवि खराब हुई है, जिससे व्यवसाय पर भी असर पड़ने की आशंका है। उन्होंने मामले की निष्पक्ष जांच और संबंधित पुलिसकर्मी पर कार्रवाई की मांग की है।

प्रशासनिक और कानूनी पहलू
  मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति निर्दोष होते हुए भी इस तरह पुलिस की मनमानी का शिकार होता है तो यह न केवल संविधान प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन है बल्कि पुलिस की जवाबदेही पर भी गंभीर प्रश्न उठाता है।
 कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, इस मामले में यदि शिकायतकर्ता के आरोप सही पाए जाते हैं तो पुलिसकर्मी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई के साथ-साथ फौजदारी अपराध के तहत भी कार्रवाई संभव है।

पुलिस प्रशासन की प्रतिक्रिया
  इस मामले में पुलिस प्रशासन की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है।

निष्कर्ष : यह घटना एक बार फिर उस मूलभूत सवाल को सामने लाती है कि –"क्या आम नागरिक अपने अधिकारों के संरक्षण को लेकर पुलिस पर भरोसा कर सकते हैं, और क्या मनमानी के खिलाफ उन्हें न्याय मिल पाएगा?"

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