August 03, 2025
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शौर्यपथ

शौर्यपथ

            खाना खजाना / शौर्यपथ / कच्चे आम का पना गर्मियों के मौसम में सर्वाधिक पसंद किया जाने वाला पारंपरिक भारतीय पेय हैं। यह बहुत ही स्वादिष्ट होता है। जब गर्मियां अपने चरम पर हों तब आप 'पना' बनाकर पी सकते हैं। यह आपके शरीर को शीतलता व तरावट देता है और आपको गर्मी व लू से भी बचाता है। इसे बनाना ना केवल बेहद आसान है, बल्कि यह बहुत जल्दी भी बन जाता है। तो आइए हम बनाते हैं आम का पना और जानते हैं सेहत के फायदे-
सामग्री :

300 ग्राम कच्चे आम (2-3 मीडियम आकार के), 2 छोटे चम्मच भुना जीरा पावडर, स्वादानुसार काला नमक, एक चौथाई छोटी चम्मच काली मिर्च, 100-150 ग्राम (1/2 - 3/4 कप) चीनी, 20-30 पुदीना की पत्तियां, सादा नमक आवश्यकतानुसार।

विधि :

पुराने समय में जब खाना चूल्हे पर बनाया जाता था, तब लोग कच्चे आम को चूल्हे की राख में दबा कर भून लिया करते थे और फिर इन भूने हुए कच्चे आमों से आम का पना बनाते थे।

आजकल हम कच्चे आम को उबाल कर पीस लेते हैं और फिर इससे आम का पना बना लेते हैं। लेकिन उबले हुए आमों को छील कर उनका गूदा निकालने की जगह कच्चे आमों को उबालने से पहले ही छील लेना ज्यादा सुविधाजनक होता है। आज हम आम का पना इसी तरीके से बनाएंगे।
इसके लिए सबसे पहले कच्चे आमों को धोकर उन्हें छील लीजिए और फिर उनकी गुठलियों से गूदे को अलग करके एक-दो कप पानी में डालकर उबाल लीजिए। अब मिक्सी में यह उबला हुआ गूदा, चीनी, काला नमक और पुदीने की पत्तियां डालकर अच्छी तरह से पीस लीजिए और फिर इसमें एक लीटर ठंडा पानी मिला कर इसे छलनी में छान लीजिए।
आम का पना तैयार है। अब इसमें काली मिर्च व भूना हुआ जीरा पावडर डालकर अच्छे से मिलाइए और फिर बर्फ के टुकड़े डालकर ठंडा-ठंडा परोसिए। यदि आप चाहें तो इस आम के पने को पुदीने की पत्तियों से सजा कर भी परोस सकते हैं।

कैरी का पना पीने के फायदे

1. गर्मी के दिनों में इसका रोजाना इस्तेमाल पेट की समस्याओं से दूर रखेगा और पाचनक्रिया को दुरुस्त रखने में भी सहायक होगा। यह एक बढ़िया पाचक पेय है।

2. कैरी का पना गर्मी के दुष्प्रभावों से बचाने में बेहद फायदेमंद है। यह आपको लू की चपेट में आने से बचाएगा और शरीर में तरलता बनाए रखने में मददगार होगा।

3. पेट की गर्मी को खत्म करने के साथ ही यह पाचक रसों के निर्माण में मदद करता है।


4. विटामिन सी से भरपूर हेने के कारण यह आपकी प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा करता है और कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से आपकी रक्षा करता है।


5. टीबी, एनिमिया, हैजा जैसी बीमारियों के लिए भी यह टॉनिक की तरह काम करता है। साथ ही पसीने में शरीर से निकलने वाले सोडियम और जिंक का स्तर भी बनाए रखता है।

     धर्म संसार / शौर्यपथ / हिंदू धर्म ग्रंथों में स्कंदपुराण को महापुराण कहा जाता है। पुराणों के क्रम में इसका तेरहवां स्थान है इसके खंडात्मक और संहितात्मक उपलब्ध दो रूपों में से प्रत्येक में 81 हजार श्लोक हैं। इस पुराण का नाम भगवान शंकर के बड़े पुत्र कार्तिकेय के नाम पर है। कार्तिकेय का ही नाम स्‍कन्‍द है। यह शैव संप्रदाय का पुराण है जिसमें स्कन्द द्वारा तारकासुर के वध की कथा का वर्णन मिलेगा।
इस पुराण में काशीखंड, महेश्वर खंड, रेवाखंड, अवन्तिका खण्ड, प्रभास खण्ड, ब्रह्म खण्ड और वैष्णव खण्ड आदि कुल सात खंड है। कुछ विद्वान छह खंड बताते हैं। इसमें सती दाह, समुद्र मंथन, तारकासुर वध, शक्तिपीठ, 27 नक्षत्रों, 18 नदियों, भारत के 12 ज्‍योर्तिलिंगों, गंगा अवतरण सहित पर्वत श्रृंखलाओं के उल्‍लेख के साथ ही सोमदेव, तारा, उनके पुत्र बुध की उत्‍पत्ति की कथा का वर्णन भी मिलती है। इसके अलावा स्कंद पुराण में धर्म ज्ञान और नीतियों से संबंधित कई बातें बताई गई हैं। आओ जानते हैं स्कंद पुराण की 5 खास बातें।

1. शंकरजी होते हैं प्रसन्न : स्कंद पुराण का पाठ करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं। स्कंद पुराण की महाकाल कथा में इसका वर्णन मिलता है। इसमें 12 ज्‍योर्तिलिंगों की उत्पत्ति का वर्णन भी है।

2. प्रदोष व्रत का महत्व : स्कंद पुराण में प्रदोष व्रत के महामात्य का वर्णन मिलता है। इस व्रत को करने से सभी तरह की मनोकामना पूर्ण होती है। इसमें एक विधवा ब्राह्मणी और शांडिल्य ऋषि की कथा के माध्यम से इस व्रत की महिमा का वर्णन मिलेगा।
3. गृहस्थ जीवन :
जीवितं च धनं दारा पुत्राः क्षेत्र गृहाणि च। याति येषां धर्माकृते त भुवि मानवाः॥ [स्कंदपुराण:]

अर्थात- मनुष्य जीवन में धन, स्त्री, पुत्र, घर-धर्म के काम, और खेत– ये 5 चीजें जिस मनुष्य के पास होती हैं, उसी मनुष्य का जीवन इस धरती पर सफल माना जाता है।

4. वैशाख मास का महत्व : स्कंद पुराण के वैष्णव खंड अध्याय 4 में वैशाख मास के महामात्य का विस्तार से वर्णन मिलता है। इसके श्लोक 34 के अनुसार इस मास में तेल लगाना, दिन में सोना, कांसे के बर्तन में भोजन करना, दो बार भोजन करना, रात में खाना आदि वर्जित माना गया है। वैशाख के माह में पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। स्कंदपुराण में उल्लेख है कि महीरथ नाम के राजा ने केवल वैशाख स्नान से ही वैकुण्ठधाम प्राप्त किया था। इस माह में पंखा, खरबूजा, अन्य फल, अनाज, जलदान, प्रदोष व्रत, स्कंद पुराण का पाठ करने का महत्व है।

वैशाखे मेषगे भानौ प्रातःस्नानपरायणः ।।
अर्घ्यं तेऽहं प्रदास्यामि गृहाण मधुसूदन ।। 34 ।।

5. श्रद्धा एवं मेधा का महत्व : संक्षिप्त स्कन्दपुराण के वैष्णवखण्ड-कार्तिकमास-माहात्म्य के अनुसार ब्रम्हाजी कहते हैं कि इस पृथ्वी पर श्रद्धा एवं मेधा ये दो वस्तुएं ऐसी हैं जो काम, क्रोध आदि का नाश करती हैं।

           लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / ना बीबी न भैया “सबसे बड़ा रुपइया” सभी ने सुना होगा। यह पैसा जो सिक्के में या नोटों में भले ही अलग-अलग आकार, रंग-रूप, वजन लिए हुए हो पर जिसकी जेब में ये बसते हैं वो ही इस दुनिया में सबसे रुतबेदार है। इसी के आस-पास सारी दुनिया घूमती है। फिर भी पैसा या धन बहुत कुछ हो सकता है लेकिन सबकुछ नहीं।

“न वित्तेन तर्पणीयोमनुष्यः” -
धन से मनुष्य की तृप्ति नहीं हो सकती।

जिस धन की महिमा इतनी अपरम्पार है उसके बारे में कभी जानने की कोशिश की ? तो आइए जानते हैं कि पैसे,
भारतीय मुद्रा कितनी ऐतिहासिक है?

 

क्या आप जानते हैं कि पंच-चिन्हित सिक्के ईसा से पहले भी मौजूद थे? भारत में सबसे प्रारंभिक सभ्यताओं में, सिक्कों को 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के रूप में देखा जा सकता है। भारतीय मुद्रा/पैसों /रुपयों के बारे में कुछ रोचक तथ्य इस प्रकार हैं:

1.प्राचीन, मध्ययुगीन और मुगल काल, सभी में सिक्के के रूप में मुद्रा का उपयोग किया जाता था। सबसे उल्लेखनीय शेरशाह सूरी का रूपिया था, जो आधुनिक रुपए का अग्रदूत बन गया।


2.कागज का पैसा पहली बार अठारहवीं शताब्दी के अंत में जारी किया गया था। बैंक ऑफ हिंदोस्तान, बंगाल में जनरल बैंक और बंगाल बैंक ऐसे पहले बैंक हैं जिन्होंने कागजी मुद्रा जारी की है।
3. भारत सरकार के नोटों का पहला सेट विक्टोरिया पोर्ट्रेट श्रृंखला था। सुरक्षा कारणों से, इस श्रृंखला के नोट आधे में काट दिए गए थे; एक आधा डाक द्वारा भेजा गया था, और प्राप्ति की पुष्टि होने पर, दूसरा आधा भेजा गया था। उन्हें 1867 में 'अंडरप्रिंट' श्रृंखला द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था।

4.भारतीय रिजर्व बैंक का औपचारिक रूप से 1935 में उद्घाटन किया गया था और भारत सरकार के नोट जारी करने का अधिकार दिया गया था। RBI द्वारा जारी किया गया पहला नोट किंग जॉर्ज VI के चित्र पर आधारित पांच रुपए का नोट था।
5. दृष्टिहीन लोगों के लिए उठाए गए प्रिंट (इंटैग्लियो) के रूप में प्रत्एक नोट के बाएं हाथ पर एक पहचान चिह्न (अलग-अलग ज्यामितीय आकार) है - 1000 रुपए में एक हीरा, 500 रुपए के लिए चक्र, 100 के लिए त्रिकोण , रुपए के लिए वर्ग, 20 रुपए के लिए आयत और 10 रुपए के लिए कोई चिह्न नहीं था।

6.क्या आपने कभी साल के नीचे अलग-अलग प्रतीकों पर ध्यान दिया है। ए प्रतीक वास्तव में निर्दिष्ट कर रहे हैं जहां उत्पत्ति हुई। निम्नलिखित जानकारी मान ली गई है और उन्हें आवंटित किया गया है ।।।

 

         खेल / शौर्यपथ / अनुभवी भारतीय क्रिकेटर सुरेश रैना का अधिकतर करियर महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में बीता है। कठिन समय के दौरान भी रैना का धोनी का भरपूर समर्थन मिला और रैना ने यह भी सुनिश्चित किया कि वह शायद ही कभी अपने कप्तान को निराश करें। कुछ वक्त पहले धोनी और रैना पर कमेंट करते हुए युवराज सिंह ने कहा था कि जब धोनी कप्तान थे, तब सुरेश रैना उनके पसंदीदा खिलाड़ी थे। युवराज सिंह के इस कमेंट का अब सुरेश रैना ने जवाब दिया है।

युवराज सिंह के कमेंट पर जवाब देते हुए बाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने कहा कि धोनी ने हमेशा उनका सपोर्ट किया, क्योंकि वह जानते थे कि कि मुझमें टैलेंट है। सुरेश रैना ने यह भी याद किया कि धोनी उनके खराब फॉर्म के दौरान उन्हें कैसे सावधान करते थे। इसके बाद रैना भी यह सुनिश्चित करते थे कि वह आने वाले मैचों में पुरानी गलती को ना दोहराएं और अपने परफॉर्मेंस में सुधार करें।

महेंद्र सिंह धोनी ने निश्चित रूप से मेरा समर्थन किया
सुरेश रैना फैनकोड से बात करते हुए कहा, ''मैं कहूंगा कि महेंद्र सिंह धोनी ने निश्चित रूप से मेरा समर्थन किया। उन्होंने मेरा समर्थन किया, क्योंकि उन्हें पता था कि मेरे पास प्रतिभा है। मैंने उनके लिए करके भी दिखाया है चाहे वह चेन्नई सुपर किंग्स हो या टीम इंडिया। जब भी उन्होंने मेरा सपोर्ट किया।''

उन्होंने आगे कहा, ''धोनी के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि वह आपको दो गेम के बाद बताएंगे। फिर वह कहते थे- यदि आप स्कोर नहीं करते हैं तो मुझे बड़ा कदम उठाना होगा। मैंने उनसे कहा था कि बस मुझे एक या दो गेम दीजिए, मैं विश्वास दिलाता हूं कि गलती नहीं दोहराऊंगा।''

मध्य क्रम के बल्लेबाजों के सामने काफी चुनौतियां
सुरेश रैना ने इस दौरान मिडिल ऑर्डर बल्लेबाजी के चैलेंज के बारे में भी बात की। उनका कहना है कि मध्य क्रम के बल्लेबाजों के सामने काफी चुनौतियां होती हैं, क्योंकि उन्हें लगभग हर खेल में अलग-अलग परिस्थितियों में बल्लेबाजी करनी होती है। रैना ने ज्यादातर भारत के लिए पांच या छह में बल्लेबाजी की और एक बार चौथे नंबर पर जाने की कोशिश की। वर्ल्ड कप के बाद श्रेयस अय्यर के टीम में आने तक नंबर 4 की समस्या एक ज्वलंत मुद्दा बनी हुई थी।

मिडिल ऑर्डर मेरे लिए हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा
उन्होंने कहा, ''आप जानते हैं कि मिडिल ऑर्डर आसान नहीं है। हर मैच में आपको खेलना होता है। कई बार आपको 10-15 ओवर बल्लेबाजी करनी होती है और कई बार यह 30 ओवर तक भी होती है। हमारी स्थिति भिन्न है। हमें गेंदबाजी भी करनी होती है। हमें 2-3 विकेट भी लेने होते हैं और 15-20 रनों का बचाव भी करना होता है। मिडिल ऑर्डर मेरे लिए हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है, लेकिन मैंने मैं हमेशा हर चीज को सकारात्मकता के साथ लेता हूं।''

रैना ने धोनी को कहा- शुक्रिया
सुरेश रैना ने महेंद्र सिंह धोनी को उन्हें सपोर्ट करने के लिए शुक्रिया कहा। रैना ने सौरव गांगुली के बाद धोनी को महानतम कप्तान बताया। सुरेश रैना इस बात से भी संतुष्ट हैं कि धोनी ने जब भी उनका समर्थन किया, वह हमेशा आगे बढ़े। वह इस बात से खुश हैं कि वह 2011 में विश्व कप टीम का हिस्सा थे, जिसे भारत ने जीता था।

वह हमेशा से जानते थे कि मेरे पास किस तरह की प्रतिभा है
उन्होंने कहा, ''मैं एमएस का शुक्रगुजार हूं, क्योंकि वह हमेशा मेरे बहुत बड़े प्रशंसक रहे हैं और वह हमेशा से जानते थे कि मेरे पास किस तरह की प्रतिभा है। मुझे लगता है कि यह सब किस्मत है। दादा के बाद धोनी महानतम कप्तान हैं। इसलिए मुझे लगता है कि विश्व कप खेलने के दौरान हमने चीजों का आनंद लिया।''

रैना ने कहा, ''ईश्वर सभी कठिन परिस्थितियों में मेरे साथ रहा है। अब यह कहना मुश्किल है कि मुझे कम या ज्यादा मौके मिले। मुझे इस बात की खुशी है कि मैं वर्ल्ड कप का हिस्सा था। उन्होंने मुझे सपोर्ट किया। मैंने भी परफॉर्म किया। इसलिए मुझे लगता है कि मैं ज्यादा कुछ मांग सकता हूं।''

 

           मनोरंजन / शौर्यपथ / बाहुबली एक्टर राणा दग्गुबाती इन दिनों गर्लफ्रेंड मिहिका बजाज के साथ सगाई को लेकर चर्चा में हैं। इस दौरान दोनों की कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर सामने आईं। चर्चा है कि दोनों इसी साल शादी के बंधन में बंधने वाले हैं। इस बीच राणा दग्गुबाती की एक ऐसी तस्वीर वायरल हो रही है, जिसे देखकर उनके फैन्स भी चौंक गए।

इस फोटो में राणा को पहचानना भी मुश्किल हो रहा है। एक्टर ने इस फोटो को अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर बहुत समय पहले शेयर किया था। फोटो में वह अपने दोस्तों के साथ नजर आ रहे हैं। तस्वीर शेयर करते हुए उन्होंने कैप्शन में लिखा, ये थ्रोबैक तस्वीर कई सदियों पुरानी है। मुझे तो ऐसा ही महसूस हो कि मेरी इस तस्वीर को लेकर कोई याद नहीं है। फोटो में राणा काफी दुबले और यंग नजर आ रहे हैं।

मामूम हो कि दग्गुबाती ने गर्लफ्रेंड मिहिका बजाज संग सगाई कर सभी फैन्स को सरप्राइज दिया है। सोशल मीडिया पर मिहिका संग अपनी पुरानी फोटो शेयर करते हुए राणा ने लिखा, ‘और उसने हां कह दिया’। जैसे ही राणा ने यह न्यूज सोशल मीडिया पर शेयर की बॉलीवुड सेलेब्स समेत कई फैन्स ने उन्हें बधाई देनी शुरू कर दी।

गौरतलब है कि राणा साउथ इंडस्ट्री के साथ ही हिंदी सिनेमा में भी सक्रिय हैं। राणा साल 2011 में 'दम मारो दम' में नजर आए थे। इस फिल्म में वह बिपाशा बसु के अपोजिट नजर आए थे। इसके अलावा वह 'हाउसफुल 4', 'द गाजी अटैक', 'बेबी' और 'ये जवानी है दीवानी' जैसी फिल्मों में भी नजर आ चुके हैं।

 

           मनोरजन / शौर्यपथ / लॉकडाउन में इन दिनों बॉलीवुड एक्टर सोनू सूद सुर्खियों में बने हुए हैं। वह पिछले कई दिनों से मुंबई में फंसे प्रवासी मजदूरों को उनके घर भेजने का काम कर रहे हैं। सोनू के इस कदम की हर तरफ चर्चा हो रही है। इतना ही नहीं उन्होंने सोशल मीडिया पर एक नंबर जारी कर दिया है, जिसमें कॉल करके कोई भी मदद मांग सकता है। इस बीच एक यूजर ने सोनू सूद से कहा कि वह अपनी गर्लफ्रेंड से चाहता है। इस पर सोनू ने भी मजेदार जवाब दिया।

एक शख्स ने सोनू सूद को टैग कर ट्वीट करते हुए कहा, 'सोनू सूद भैया, एक बार मेरी गर्लफ्रेंड से मिलवा दीजिए, बिहार ही जाना है। सोनू ने इस शख्स के ट्वीट को भी नजरअंदाज नहीं किया और बहुत ही मजेदार जवाब दिया है। उन्होंने रिप्लाई देते हुए कहा, 'थोड़े दिन दूर रहकर देख ले भाई। सच्चे प्यार की परीक्षा भी हो जाएगी।'

इससे पहले एक यूजर ने सोनू सूद से शराब की दुकान तक पहुंचाने की बात कही थी इस पर भी सोनू ने बेहतरीन जवाब दिया था। सोनू ने कहा था कि भई ठेके से घर तक पहुंचाना हो तो बता देना। हाल ही में सोनू ने फीवर डिटजिटल 100 Hours 100 Stars में बात करते हुए कहा था, 'जो लोग इन दिनों बोर हो रहे हैं आप दूसरों के लिए समय निकाल सकते हैं। मैं अपने दोस्तों से भी कहता हूं कि आप थोड़ा एक्स्ट्रा खाना बनाएं और किसी जरूरतमंद इंसान या उनके परिवार को दें। अगर ऐसा होता है तो कोई भी खाली पेट नहीं सोएगा।'

 

          नजरिया / शौर्यपथ / वे डॉक्टर, इंजीनियर और अन्य पेशेवर हैं, जो भारत से संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) आए थे। कुछ लोग यहां अध्ययन के लिए इस योजना के साथ आए थे कि अगर सब ठीक रहा, तो यहीं बस जाएंगे। और कुछ अन्य ऐसे भी हैं, जो बिंदीदार लाइनों वाले उस अनुबंध के साथ यहां स्थाई निवास के इरादे से पहुंचे थे, जिसे ग्रीन कार्ड भी कहा जाता है और जिससे अंतत: नागरिकता हासिल हो जाती है।
अपने ग्रीन कार्ड का इंतजार करते उनमें से कुछ बूढ़े भी हो रहे हैं। वे असुरक्षित, निराश और अब पहले से कहीं अधिक भयभीत भी हो गए हैं। यदि कोरोना वायरस महामारी द्वारा पैदा आर्थिक संकट के कारण उनमें से कुछ की नौकरी चली गई, तो वे ग्रीन कार्ड के लिए अपनी पात्रता गंवा देंगे। कुछ की नौकरी जा भी चुकी है। ऐसे लोगों को प्रत्यर्पण का सामना करना पडे़गा। ऐसा ही उन लोगों के परिवारों के साथ भी होगा, जो कोरोना संक्रमण की वजह से जान गंवा चुके हैं।
वे हताश हैं और इतने हताश कि अपने विस्मय की हद तक वे एक शक्तिशाली अमेरिकी सीनेटर से मुकाबला कर रहे हैं। लोग आश्वस्त हैं कि यही इकलौता आदमी है, जो उनके और ग्रीन कार्ड के बीच खड़ा है : रिचर्ड डर्बिन, इलिनोइस के वरिष्ठ डेमोके्रटिक सीनेटर। ग्रीन कार्ड के भारतीय उम्मीदवार विश्वास करते हैं कि डर्बिन उनका प्रत्यर्पण कराने के लिए दृढ़ हैं। डर्बिन उनके साथ ही उनके उन बच्चों का भी प्रत्यर्पण कराएंगे, जो अमेरिका के अलावा किसी अन्य देश को जानते भी नहीं हैं। ग्रीन कार्ड के लिए आशावान ये लोग अगले सप्ताह से टीवी और अखबारों में पूरे पेज का विज्ञापन चलाने की योजना बनाए बैठे हैं, ताकि अपनी तकलीफ से ज्यादा से ज्यादा लोगों को अवगत करा सकें। इमिग्रेशन वॉयस, एक एक्टिविस्ट ग्रुप है, जो फिलहाल इन भारतीयों का प्रतिनिधित्व कर रहा है। यह गु्रप ग्रीन कार्ड प्रतीक्षा अवधि में कटौती के लिए कानूनों में संशोधन करने की दिशा में अभियान चला रहा है। इस एक्टिविस्ट गु्रप ने सीनेटर रिचर्ड डर्बिन पर ‘नस्लवादी’ होने का आरोप भी लगाया है।
अमेरिका हर साल रोजगार-आधारित और परिवार-आधारित लगभग दस लाख ग्रीन कार्ड देता है। अमेरिका ने कार्य-आधारित श्रेणी में किसी एक देश के आवेदकों के लिए सात प्रतिशत की कैप या कोटा तय कर रखा है। दूसरे देशों के प्रत्याशियों की तुलना में भारतीय प्रत्याशियों की संख्या प्रतीक्षा पंक्ति में बहुत ज्यादा है। जो लोग बच जाते हैं, बैकलॉग में जुड़ जाते हैं। इनमें ज्यादातर भारतीय होते हैं। जुड़ते-जुड़ते यह प्रतीक्षा सूची इतनी लंबी हो गई है कि अमेरिका के एक परंपरावादी थिंक-टैंक कैटो इंस्टीट्यूट का अनुमान है कि अभी कोई अगर आवेदन करे, तो उसे लगभग 150 वर्षों तक इंतजार करना पड़ सकता है, जाहिर है, यह एक असंभव स्थिति है।
समस्या के समाधान के लिए वर्षों से प्रयास चल रहे हैं। एक समाधान है, जो डेमोक्रेट और रिपब्लिकन, दोनों को सबसे अधिक स्वीकार्य है, वह है देश के लिए लगे सात प्रतिशत के कैप को हटाना। इसके लिए संशोधन को पिछले अगस्त में हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में पारित किया गया था, लेकिन सीनेट में इसके पारित होने को सिर्फ एक सीनेटर रिचर्ड डर्बिन ने रोक दिया था। उन्होंने उस संशोधन के जवाब में एक प्रतिकूल विधेयक पेश कर दिया, जो ग्रीन कार्ड की संख्या के विस्तार के कारण निर्मित बैकलॉग के मुद्दे को संबोधित करने की कोशिश करता है।
भारत सरकार इन लोगों की मुश्किलों से वाकिफ है। यूएस सिटिजनशिप के अनुसार, इन भारतीयों की संख्या 3,06,000 है, जबकि एक अन्य संस्था इमीग्रेशेन वॉयस के अनुसार, इनकी संख्या 15 लाख है। भारत सरकार अमेरिका में अपने हितचिंतकों के साथ खामोशी से इस मुद्दे को उठाती है, लेकिन वह बहुत कुछ करने में असमर्थ है। स्थितियों की विषमता के आगे भारत सरकार विवश है। भारत सरकार लगातार यह पैरवी कर रही है कि अमेरिका भारत से ज्यादा अप्रवासियों को अपने यहां स्वीकार करे।
यह अमेरिका में रहने की आशा के साथ वहां अध्ययन या काम करने की योजना बनाने वाले भारतीयों के लिए एक बड़ा संदेश है। ग्रीन कार्ड की कतार में शायद जीवन की सार्थकता नहीं है। इस कतार की दूसरी छोर पर रिचर्ड डर्बिन जैसा कोई इंतजार कर रहा है और यह कोई सोच की आत्म-केंद्रित परिभाषा या मानसिकता भर नहीं है। यशवंत राज, अमेरिका में हिन्दुस्तान टाइम्स संवाददाता

 

           सम्पादकीय / शौर्यपथ / देश में ज्यादातर यात्राएं रद्द हैं, तो स्वाभाविक है, लेकिन किन्हीं जरूरी तय यात्राओं का आखिरी चरण में रद्द होना निंदनीय ही नहीं, दुखद भी है। 25 मई को विशेष हवाई सेवा की शुरुआत हुई और पहले ही दिन 80 से ज्यादा फ्लाइट्स का रद्द होना न जाने कितने लोगों को परेशानी में डाल गया। अव्वल तो हवाई अड्डे पहुंचना ही टेढ़ी खीर है। भारी खर्च करके पहुंच भी गए, तो फ्लाइट का रद्द हो जाना व्यापक विफलता के सिवा और क्या है? कहना न होगा, इन दिनों यात्राओं के साथ हमने बहुत बुरा सुलूक करना शुरू कर दिया है। पैदल यात्रा हो या हवाई यात्रा हर जगह लोगों को परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है, तो इसके लिए सिवाय प्रशासन के कोई और जिम्मेदार नहीं है। जिनकी यात्राएं रद्द हो गईं, उनके नुकसान की भरपाई कौन करेगा? बेशक, कोरोना काल में फ्लाइट के रद्द होने के कारण बढ़ जाएंगे। छोटे-छोटे कारणों से भी फ्लाइट को रद्द करना आम हो जाएगा। अत: यह बहुत जरूरी है कि जिनकी फ्लाइट रद्द हो गई, उनको अगली फ्लाइट से मंजिल तक पहुंचाया जाए। स्वास्थ्य जांच, सैनिटाइजेशन इत्यादि कुछ कारण हैं, जिनका महत्व बहुत बढ़ गया है। इसके अलावा, राज्य सरकारों को भी यह शक्ति मिली हुई है कि वे जब चाहें, अपने यहां विभिन्न कारणों से फ्लाइट को आने-जाने से रोक सकती हैं। जब तक कोरोना है, यह चिंता और चुनौती हमारे साथ रहने वाली है।
आने वाले दिनों में एयरलाइंस संचालकों को ज्यादा चौकसी और सेवा भाव से काम करना है। लोग बहुत जरूरी होने पर ही यात्रा पर निकल रहे हैं, वे पर्यटन या कहीं स्नेह मिलन के लिए नहीं जा रहे हैं। जो यात्राएं जीवन या व्यापार के लिए बहुत आवश्यक हैं, अभी उन्हीं की जरूरत है। तो लोगों की यह मजबूरी एयरलाइंस के भी ध्यान में रहनी चाहिए, तभी कोरोना के समय में उनकी सार्थकता सिद्ध होगी। टैक्सी सेवा हो या रेल या हवाई सेवा, हर तरह की परिवहन सेवाओं को लोगों और देश की नई उम्मीदों पर मुकम्मल उतरना है। इन सेवाओं के संचालक जितनी संवेदना के साथ सक्रिय होंगे, उतने ही कम विवाद होंगे और लोगों को भी सुविधा होगी। मिसाल के लिए, ईद के दिन भी सुप्रीम कोर्ट को एयरलाइंस के खिलाफ सुनवाई करनी पड़ी है, तो यह कोई प्रशंसनीय बात नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासन को भी याद दिलाया है कि एयरलाइंस की आर्थिक सेहत से ज्यादा जरूरी है, लोगों की स्वास्थ्य सुरक्षा। एयरलाइंस अपने फायदे के लिए किसी सीट को खाली नहीं छोड़ रहे हैं। जब यह चर्चा कोरोना की शुरुआत से ही हो रही है कि हवाई जहाज में बीच की सीट खाली रहेगी, तब हवाई जहाज में बीच की सीट खाली करवाने के लिए भला सुप्रीम कोर्ट को क्यों आगे आना पड़ा है? क्या आने वाले दिनों में रेल और बसों में भी बीच की सीट या बर्थ को खाली रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पडे़गा?
यह बहुत संभलकर और नियोजित तरीके से आगे बढ़ने का समय है। जो महाराष्ट्र शरुआत में हवाई सेवा के लिए तैयार नहीं था, वह भला क्यों तैयार हो गया? महाराष्ट्र या मुंबई जैसे जो शहर कोरोना के हॉटस्पॉट बने हुए हैं, उन्हें भला बाकी देश से क्यों जोडे़ रखा जाए? बेशक, तमाम परिवहन सेवाएं शुरू हों, लेकिन ध्यान रहे, वे बीमारी या परेशानी का माध्यम कतई न बनें।

 

         शौर्यपथ / किसी भी उद्योग के लिए दो घटक अहम होते हैं। एक, पूंजी और दूसरा, मजदूर। हालांकि, कोरोना-काल में मजदूरों की दयनीय दशा को देखते हुए पूंजी की महत्ता अधिक प्रभावी लग रही है, लेकिन श्रम शक्ति के बिना भी उद्योगों का चलना मुश्किल है। ऐसे में, प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के बाद उन्हें रोजगार देना एक बड़ी चुनौती है। राज्य सरकारें इस दिशा में काम कर रही हैं, लेकिन कुछ और भी करने की जरूरत है। अगर मजदूरों को संगठित करके अपने ही प्रदेशों में रखा जाए, तो बाहर के उद्योगपति अवश्य वहां उद्योग लगाने को मजबूर होंगे, जहां मजदूर मिलेंगे। इसलिए बिहार जैसे राज्यों के पास कई संभावनाएं हैं। मगर इसके लिए सरकार और मजदूरों के बीच एक विश्वास का रिश्ता होना चाहिए। अभी प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर बनने की बात कही है। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
क्यों दें ऐसी परीक्षा
आज दरभंगा की ज्योति ने जो करनामा किया है, उस पर बिहार ही नहीं, पूरे भारत और विश्व को नाज है, क्योंकि वह अपने पिता को गुरुग्राम से दरभंगा तक साइकिल पर ले आई। अब सारे लोग ज्योति के स्वागत के लिए उमड़ रहे हैं। कोई उन्हें मिठाई दे रहा है, तो कोई पढ़ाने का भरोसा। रोजगार देने तक के वादे किए जा रहे हैं। मगर क्या किसी भी बच्ची या बच्चे को ऐसा सम्मान पाने के लिए इस तरह की कठोर परीक्षा देनी होगी? आज ज्योति के नाम की गूंज अमेरिका तक पहुंच चुकी है, इसलिए सभी उसे सिर-आंखों पर बिठाए हुए हैं। लेकिन समाज में ऐसी कई ज्योति हैं, जो मुश्किल हालात में हैं। उन पर लोगों की नजर नहीं है, क्योंकि वे खबरों में नहीं हैं। क्या इस तरह की पब्लिसिटी बंद नहीं हो जानी चाहिए? ऐसी नौबत ही न आने दें कि किसी बच्ची को ऐसी दुखद परीक्षा से गुजरना पड़े।
लौटती कांग्रेस
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी, जो वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर में बुझ-सी गई थी, आहिस्ते-आहिस्ते अपनी पकड़ बनाने लगी है। कोरोना या अन्य किसी भी घटना में कांग्रेस खुद को जनता से जोड़ रही है। एक समय था, जब वह लोगों से कट गई थी। सोशल मीडिया पर तो मानो थी ही नहीं। लेकिन अब उसने वहां भी भाजपा की तर्ज पर खुद को खड़ा किया है। मजदूरों की समस्या को सर्वप्रथम कांग्रेस ने ही उठाया और मदद की जिम्मेदारी ली। फिर तो मजदूरों पर बात चल निकली। आगामी चुनाव में कांगे्रस को यह सक्रियता फायदा पहुंचा सकती है।
शिक्षा का बदलता स्वरूप
लंबे समय से यह बात कही जा रही है कि स्कूल-कॉलेज में ऑनलाइन पढ़ाई संभव नहीं है, लेकिन मौजूदा परिस्थिति में लगता है कि हमारे लिए ऑनलाइन शिक्षा ही एकमात्र विकल्प है। इस वैश्विक महामारी में बच्चे कितने दिनों तक स्कूल नहीं जा पाएंगे, यह कहना मुश्किल है। ऐसे में, सरकार ने निर्देश जारी किए हैं कि स्कूली बच्चों के लिए नए सत्र की शुरुआत ऑनलाइन शिक्षा से की जाए। अब सवाल यह है कि ऑनलाइन शिक्षा किस हद तक सफल होगी? फिलहाल इसका ठीक-ठीक जवाब नहीं दिया जा सकता, परंतु गांव के बच्चों को इससे परेशानी हो सकती है। वहां संचार के साधन भी बमुश्किल उपलब्ध हैं। बिजली की उपलब्धता भी एक समस्या है। फिर जन-जागरूकता, संसाधनों की व्यवस्था और सुरक्षा के उपाय पर भी सोचना जरूरी है। हालांकि एक राहत भी है। अभी हम देख रहे थे कि छोटा बच्चा भी पांच-छह किलो का बस्ता ढोकर स्कूल जाता था। ऑनलाइन शिक्षा में बच्चों को इस समस्या से नहीं जूझना होगा।

           ओपिनियन / शौर्यपथ / इस फैसले का इससे बुरा वक्त कोई और नहीं हो सकता था। पिछले हफ्ते केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से कहा कि वे अपने यहां डिजिटल मीटर सुनिश्चित करें, ताकि किसानों को दी जाने वाली बिजली सब्सिडी खत्म करने की दिशा में कदम बढ़ाया जा सके। इस फैसले का चारों दक्षिणी राज्यों में भारी विरोध शुरू हो गया है।
बीते रविवार को तमिलनाडु बिजली विभाग के अधिकारी कडलूर जिले में कुछ खेतों पर गए और वहां डिजिटल मीटर लगाने पर जोर दिया। इसका किसानों ने भारी विरोध किया। यह खबर जैसे ही टीवी पर प्रसारित हुई, मुख्यमंत्री ई के पलानीसामी हरकत में आ गए, और बिजली विभाग के प्रभारी मंत्री ने आनन-फानन में फैसला वापस लेने की घोषणा की। पड़ोसी तेलंगाना में चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने भी एक कैबिनेट प्रस्ताव पास करके बिजली सब्सिडी वापस लेने से इनकार कर दिया है। सरकारी प्रवक्ता का कहना है कि मुफ्त बिजली चुनावी वायदा है और इसे वापस नहीं लिया जा सकता। इसी तरह, आंध्र प्रदेश ने भी इस फैसले को लागू करने से मना कर दिया है।
केरल में मुख्यमंत्री पी विजयन ने विद्युत संशोधन विधेयक-2020 पर चिंता जताई है और कहा है कि इससे राज्य सरकार उपभोक्ताओं को दी जाने वाली विभिन्न तरह की सब्सिडी जारी नहीं रख पाएगी। मुख्यमंत्री ने केंद्र को याद दिलाया कि बिजली समवर्ती सूची का हिस्सा है और यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि राज्य के अधिकारों का हनन न हो। भाजपा शासित कर्नाटक ने तो अभी तक ऐसा कोई रुख नहीं दिखाया है, लेकिन एक संयुक्त बयान में कई बिजली संघ और किसान नेताओं ने इस कदम का कड़ा विरोध किया है। संघों ने चिंता जताई है कि जब पूरा देश एक खतरनाक महामारी से लड़ रहा है, तब केंद्र ढांचागत सुधार की ओर बढ़ रहा है, जबकि ऐसे सुधारों में गंभीर विचार-विमर्श की दरकार होती है।
केंद्र ने इससे पहले भी दो बार विद्युत अधिनियम में संशोधन के प्रयास किए थे। नए संशोधनों के साथ वह कोशिश कर रहा है कि राज्य भी अपने बिजली कानून बदलने में उसका साथ दें। मगर यह मुद्दा विवादास्पद हो गया है, क्योंकि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इन सुधारों को केंद्र की तरफ से राज्यों को कोरोना से लड़ने के लिए दी जाने वाली रियायतों से जोड़ दिया है। वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष में राज्य अपने सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का पांच प्रतिशत कर्ज उठा सकेंगे, जो फिलहाल तीन फीसदी है। इससे राज्यों को 4.28 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त धन मिलेगा। लेकिन इसके लिए अन्य तमाम शर्तों में एक बिजली सुधार भी शामिल है।
किसान मीटर लगाए जाने के खिलाफ हैं, क्योंकि उन्हें अभी तक मुफ्त में बिजली मिलती रही है। उन्हें डर है कि मीटर लगाकर सरकार दरअसल, बिजली बिल वसूलना चाहती है। दूसरी तरफ, सरकार का तर्क है कि ऐसा करके वह बिजली चोरी से होने वाली बर्बादी रोकना चाहती है और सिस्टम को सुधारना चाहती है। मीटर लग जाने के बाद बिजली कंपनियां अपने उपभोक्ताओं की पहचान कर सकेंगी और यह सुनिश्चित कर सकेंगी कि वादे के मुताबिक उन्हें बिजली मिलती रहे। केंद्र प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण यानी डीबीटी का विस्तार किसानों तक करना चाहता है। इस योजना के तहत, किसानों से डिजिटल मीटर लगाने और बिजली बिल जमा करने को कहा जा रहा है। उपयुक्त साक्ष्य पेश करते ही बैंक खातों में डीबीटी के जरिए सब्सिडी जमा करने का वायदा है। मगर किसानों की कई आपत्तियां हैं। उनका पहला तर्क तो यही है कि पर्याप्त नकदी न रहने की वजह से वे बिजली बिल नहीं चुका सकते। फिर, वे इस पूरी प्रक्रिया को अव्यावहारिक भी बता रहे हैं, क्योंकि पूर्व में भी खेतों में मीटर लगाने के प्रयास किए गए थे, पर उनका विफल अंत हुआ था। एक तर्क यह भी है कि कृषि क्षेत्र पहले से ही संकट में है और राहत मांग रहा है। ऐसे में, मीटर लगाने का आदेश देकर सरकार उन पर अतिरिक्त बोझ डाल रही है। तमिलनाडु में मुफ्त बिजली का लाभ पाने वाले किसानों की संख्या 21 लाख है, जबकि तेलंगाना में 25 लाख और आंध्र प्रदेश में 23 लाख है।
किसानों और राज्य बिजली विभाग में काम करने वाले लोगों की एक अन्य चिंता भी है। उन्हें लगता है कि यह पिछले दरवाजे से निजीकरण की कोशिश है। उनका मानना है कि केंद्र सरकार निजी क्षेत्र को राज्यों में बिजली वितरण की अनुमति देने की जुगत में है। और, यदि निजी कंपनियों को सब्सिडी या मुफ्त बिजली देने को कहा जाएगा, तो वे कतई रुझान नहीं दिखाएंगी, क्योंकि उनका उद्देश्य मुनाफा कमाना रहता है।
राज्य सरकारों के लिए भी स्थिति सुखद नहीं है। वे किसानों को मुफ्त बिजली दे रही हैं और अन्य तमाम श्रेणियों के उपभोक्ताओं को सब्सिडी बांट रही हैं। इन सबके बाद ही सरकारी बिजली कंपनियों को भुगतान किया जाता है। यह भुगतान भी नियमित या मासिक आधार पर नहीं होता। उन्हें पैसे तभी दिए जाते हैं, जब राज्य सरकार उसे वहन करने में सक्षम होती है। दूसरी ओर, बिजली वितरण करने वाली सरकारी कंपनियां मनमाफिक बिजली नहीं खरीद पातीं, क्योंकि उन्हें बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों का बिल चुकाना होता है। इस तरह, यह पूरा दुश्चक्र ही बिजली क्षेत्र को अस्थिर बना देता है। केंद्र का मानना है कि नए सुधारों से बिजली क्षेत्र अधिक कुशलता से काम कर सकता है।
निजी कंपनियों ने इस कदम का स्वागत किया है, क्योंकि उनको लगता है कि इस क्षेत्र को उनके लिए खोल दिए जाने से अधिक निवेश लाया जा सकता है। वे भुगतान तंत्र को मजबूत बनाए जाने और सरकारी व निजी क्षेत्र की संस्थाओं के बीच अधिकारियों के अधिकारों को स्पष्ट किए जाने की पक्षधर हैं। दिल्ली में बिजली की आपूर्ति निजी हाथों में है। इससे यहां वितरण में सुधार हुआ है, बिजली की चोरी कम हुई है और उपभोक्ताओं की जेब पर भी बोझ नहीं बढ़ा है। बेशक, मौजूदा मुश्किल समय में एक विवादास्पद मसले पर खुले दिमाग से चर्चा मुश्किल है। मगर केंद्र सरकार अभूतपूर्व आर्थिक मंदी का सामना कर रही है, और कोरोना संकट में उसके पास विकल्प बहुत सीमित हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
एस श्रीनिवासन, वरिष्ठ पत्रकार

 

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