February 06, 2025
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राज्यों की संभावनाएं

         शौर्यपथ / किसी भी उद्योग के लिए दो घटक अहम होते हैं। एक, पूंजी और दूसरा, मजदूर। हालांकि, कोरोना-काल में मजदूरों की दयनीय दशा को देखते हुए पूंजी की महत्ता अधिक प्रभावी लग रही है, लेकिन श्रम शक्ति के बिना भी उद्योगों का चलना मुश्किल है। ऐसे में, प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के बाद उन्हें रोजगार देना एक बड़ी चुनौती है। राज्य सरकारें इस दिशा में काम कर रही हैं, लेकिन कुछ और भी करने की जरूरत है। अगर मजदूरों को संगठित करके अपने ही प्रदेशों में रखा जाए, तो बाहर के उद्योगपति अवश्य वहां उद्योग लगाने को मजबूर होंगे, जहां मजदूर मिलेंगे। इसलिए बिहार जैसे राज्यों के पास कई संभावनाएं हैं। मगर इसके लिए सरकार और मजदूरों के बीच एक विश्वास का रिश्ता होना चाहिए। अभी प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर बनने की बात कही है। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
क्यों दें ऐसी परीक्षा
आज दरभंगा की ज्योति ने जो करनामा किया है, उस पर बिहार ही नहीं, पूरे भारत और विश्व को नाज है, क्योंकि वह अपने पिता को गुरुग्राम से दरभंगा तक साइकिल पर ले आई। अब सारे लोग ज्योति के स्वागत के लिए उमड़ रहे हैं। कोई उन्हें मिठाई दे रहा है, तो कोई पढ़ाने का भरोसा। रोजगार देने तक के वादे किए जा रहे हैं। मगर क्या किसी भी बच्ची या बच्चे को ऐसा सम्मान पाने के लिए इस तरह की कठोर परीक्षा देनी होगी? आज ज्योति के नाम की गूंज अमेरिका तक पहुंच चुकी है, इसलिए सभी उसे सिर-आंखों पर बिठाए हुए हैं। लेकिन समाज में ऐसी कई ज्योति हैं, जो मुश्किल हालात में हैं। उन पर लोगों की नजर नहीं है, क्योंकि वे खबरों में नहीं हैं। क्या इस तरह की पब्लिसिटी बंद नहीं हो जानी चाहिए? ऐसी नौबत ही न आने दें कि किसी बच्ची को ऐसी दुखद परीक्षा से गुजरना पड़े।
लौटती कांग्रेस
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी, जो वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर में बुझ-सी गई थी, आहिस्ते-आहिस्ते अपनी पकड़ बनाने लगी है। कोरोना या अन्य किसी भी घटना में कांग्रेस खुद को जनता से जोड़ रही है। एक समय था, जब वह लोगों से कट गई थी। सोशल मीडिया पर तो मानो थी ही नहीं। लेकिन अब उसने वहां भी भाजपा की तर्ज पर खुद को खड़ा किया है। मजदूरों की समस्या को सर्वप्रथम कांग्रेस ने ही उठाया और मदद की जिम्मेदारी ली। फिर तो मजदूरों पर बात चल निकली। आगामी चुनाव में कांगे्रस को यह सक्रियता फायदा पहुंचा सकती है।
शिक्षा का बदलता स्वरूप
लंबे समय से यह बात कही जा रही है कि स्कूल-कॉलेज में ऑनलाइन पढ़ाई संभव नहीं है, लेकिन मौजूदा परिस्थिति में लगता है कि हमारे लिए ऑनलाइन शिक्षा ही एकमात्र विकल्प है। इस वैश्विक महामारी में बच्चे कितने दिनों तक स्कूल नहीं जा पाएंगे, यह कहना मुश्किल है। ऐसे में, सरकार ने निर्देश जारी किए हैं कि स्कूली बच्चों के लिए नए सत्र की शुरुआत ऑनलाइन शिक्षा से की जाए। अब सवाल यह है कि ऑनलाइन शिक्षा किस हद तक सफल होगी? फिलहाल इसका ठीक-ठीक जवाब नहीं दिया जा सकता, परंतु गांव के बच्चों को इससे परेशानी हो सकती है। वहां संचार के साधन भी बमुश्किल उपलब्ध हैं। बिजली की उपलब्धता भी एक समस्या है। फिर जन-जागरूकता, संसाधनों की व्यवस्था और सुरक्षा के उपाय पर भी सोचना जरूरी है। हालांकि एक राहत भी है। अभी हम देख रहे थे कि छोटा बच्चा भी पांच-छह किलो का बस्ता ढोकर स्कूल जाता था। ऑनलाइन शिक्षा में बच्चों को इस समस्या से नहीं जूझना होगा।

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