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सम्पादकीय / शौर्यपथ / देश में ज्यादातर यात्राएं रद्द हैं, तो स्वाभाविक है, लेकिन किन्हीं जरूरी तय यात्राओं का आखिरी चरण में रद्द होना निंदनीय ही नहीं, दुखद भी है। 25 मई को विशेष हवाई सेवा की शुरुआत हुई और पहले ही दिन 80 से ज्यादा फ्लाइट्स का रद्द होना न जाने कितने लोगों को परेशानी में डाल गया। अव्वल तो हवाई अड्डे पहुंचना ही टेढ़ी खीर है। भारी खर्च करके पहुंच भी गए, तो फ्लाइट का रद्द हो जाना व्यापक विफलता के सिवा और क्या है? कहना न होगा, इन दिनों यात्राओं के साथ हमने बहुत बुरा सुलूक करना शुरू कर दिया है। पैदल यात्रा हो या हवाई यात्रा हर जगह लोगों को परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है, तो इसके लिए सिवाय प्रशासन के कोई और जिम्मेदार नहीं है। जिनकी यात्राएं रद्द हो गईं, उनके नुकसान की भरपाई कौन करेगा? बेशक, कोरोना काल में फ्लाइट के रद्द होने के कारण बढ़ जाएंगे। छोटे-छोटे कारणों से भी फ्लाइट को रद्द करना आम हो जाएगा। अत: यह बहुत जरूरी है कि जिनकी फ्लाइट रद्द हो गई, उनको अगली फ्लाइट से मंजिल तक पहुंचाया जाए। स्वास्थ्य जांच, सैनिटाइजेशन इत्यादि कुछ कारण हैं, जिनका महत्व बहुत बढ़ गया है। इसके अलावा, राज्य सरकारों को भी यह शक्ति मिली हुई है कि वे जब चाहें, अपने यहां विभिन्न कारणों से फ्लाइट को आने-जाने से रोक सकती हैं। जब तक कोरोना है, यह चिंता और चुनौती हमारे साथ रहने वाली है।
आने वाले दिनों में एयरलाइंस संचालकों को ज्यादा चौकसी और सेवा भाव से काम करना है। लोग बहुत जरूरी होने पर ही यात्रा पर निकल रहे हैं, वे पर्यटन या कहीं स्नेह मिलन के लिए नहीं जा रहे हैं। जो यात्राएं जीवन या व्यापार के लिए बहुत आवश्यक हैं, अभी उन्हीं की जरूरत है। तो लोगों की यह मजबूरी एयरलाइंस के भी ध्यान में रहनी चाहिए, तभी कोरोना के समय में उनकी सार्थकता सिद्ध होगी। टैक्सी सेवा हो या रेल या हवाई सेवा, हर तरह की परिवहन सेवाओं को लोगों और देश की नई उम्मीदों पर मुकम्मल उतरना है। इन सेवाओं के संचालक जितनी संवेदना के साथ सक्रिय होंगे, उतने ही कम विवाद होंगे और लोगों को भी सुविधा होगी। मिसाल के लिए, ईद के दिन भी सुप्रीम कोर्ट को एयरलाइंस के खिलाफ सुनवाई करनी पड़ी है, तो यह कोई प्रशंसनीय बात नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासन को भी याद दिलाया है कि एयरलाइंस की आर्थिक सेहत से ज्यादा जरूरी है, लोगों की स्वास्थ्य सुरक्षा। एयरलाइंस अपने फायदे के लिए किसी सीट को खाली नहीं छोड़ रहे हैं। जब यह चर्चा कोरोना की शुरुआत से ही हो रही है कि हवाई जहाज में बीच की सीट खाली रहेगी, तब हवाई जहाज में बीच की सीट खाली करवाने के लिए भला सुप्रीम कोर्ट को क्यों आगे आना पड़ा है? क्या आने वाले दिनों में रेल और बसों में भी बीच की सीट या बर्थ को खाली रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पडे़गा?
यह बहुत संभलकर और नियोजित तरीके से आगे बढ़ने का समय है। जो महाराष्ट्र शरुआत में हवाई सेवा के लिए तैयार नहीं था, वह भला क्यों तैयार हो गया? महाराष्ट्र या मुंबई जैसे जो शहर कोरोना के हॉटस्पॉट बने हुए हैं, उन्हें भला बाकी देश से क्यों जोडे़ रखा जाए? बेशक, तमाम परिवहन सेवाएं शुरू हों, लेकिन ध्यान रहे, वे बीमारी या परेशानी का माध्यम कतई न बनें।
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