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दुर्ग। शौर्यपथ विशेष रिपोर्ट
धर्म का मार्ग सत्य और सेवा से होकर गुजरता है, किंतु दुर्ग शहर में "राम रसोई" नामक संस्था के संचालन को लेकर जो तस्वीरें सामने आ रही हैं, वह न सिर्फ धर्म की भावना के साथ छल है, बल्कि निगम की चुप्पी इस खेल में मिलीभगत का संकेत देती है।
शहर के बड़े उद्योगपति और भाजपा नेता चतुर्भुज राठी द्वारा संरक्षित यह संस्था – "राम रसोई" – भले ही ₹20 में भोजन उपलब्ध करवा रही हो, परंतु इसका असली स्वाद निगम की नीतियों को निगल रहा है। जानकारी के मुताबिक, राठी द्वारा निगम को दिए गए आवेदन पत्र में तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर बस स्टैंड क्षेत्र की करोड़ों की भूमि पर कब्जा कर लिया गया, वह भी मुफ्त में!
जब एक ओर शहर की गरीब महिलाएं, ठेलेवाले और फुटपाथी दुकानदार निगम की अतिक्रमण कार्रवाई का शिकार बन रहे हैं, वहीं राम नाम की ओट में यह विशेष भूमि आवंटन एक खास नेता के लिए नियमों की धज्जियाँ उड़ाकर कर दिया गया।
जानकारी यह भी सामने आई है कि यह संस्था दरअसल श्री राधा कृष्ण मंदिर समिति, महेश कॉलोनी के अधीन संचालित है और "राम रसोई" नाम से कोई पंजीकृत संस्था नहीं है। फिर भी निगम ने किस आधार पर जमीन आवंटित की? क्या सिर्फ राजनीतिक पहुंच होना ही भूमि आवंटन का पैमाना है?
निगम बाजार विभाग से प्राप्त अनुबंध पत्रों में स्पष्ट है कि आवेदन में गलत जानकारी दी गई, अनुबंध की कई शर्तों का उल्लंघन किया गया और इसके बावजूद भी निगम प्रशासन और वर्तमान महापौर श्रीमती अलका बाघमार ने चुप्पी साध रखी है।
जब नगर सरकार को गरीबों की चप्पल लाइन और ठेले वालों की दुकानें हटाने में प्रशासनिक शक्ति याद आती है, तो फिर राम के नाम पर भूमि कब्जा करने वालों के प्रति यह खामोशी किस डर की वजह से है? क्या इस मौन में सत्ता की साजिश छिपी है या फिर नगर सरकार की प्राथमिकताएं ही अब बदल चुकी हैं?
सवाल यह है कि क्या अब धर्म की आड़ में झूठ बोलना, जमीन हथियाना और राजनैतिक संरक्षण में नियमों की हत्या करना 'नवीन नीति' बन चुकी है? यदि हां, तो यह दुर्ग शहर के प्रशासन और व्यवस्था के लिए एक शर्मनाक अध्याय है।
नगर निगम प्रशासन और महापौर महोदय को चाहिए कि वे तत्काल इस भूमि आवंटन से जुड़े समस्त दस्तावेजों की स्वतंत्र जांच कराएं और दोषियों पर कठोर कार्रवाई करें – न कि राम नाम का राजनीतिक कवच पहनकर उन्हें बख्शें।
"राम" के नाम पर पाप करने वालों पर नगर प्रशासन की चुप्पी कहीं इस बात की घोषणा तो नहीं कि अब धर्म भी व्यापार है, और राजनीति उसकी सबसे बड़ी मंडी?"
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