
CONTECT NO. - 8962936808
EMAIL ID - shouryapath12@gmail.com
Address - SHOURYA NIWAS, SARSWATI GYAN MANDIR SCHOOL, SUBHASH NAGAR, KASARIDIH - DURG ( CHHATTISGARH )
LEGAL ADVISOR - DEEPAK KHOBRAGADE (ADVOCATE)
सुनो भई कहानी /शौर्यपथ/
कल्पना का रोचक संसार बनाना कोई बच्चों से सीखे। चलिए डोलू से सीखते हैं, जो दरअसल एक परी को जानती है।
आपको उसका भरोसा करना होगा, तभी तो कहानी में मज़ा आएगा। ना विश्वास हो, तो सुनो कहानी।
‘ना नी मैं पहाड़ ला सकती हूं’- कहकर डोलू हंसी। नानी चौंकी। बोलीं- ‘हे भगवान! लड़की है कि तूफान। लेकिन कैसे? क्या तुम्हारी कोई परी दोस्त है, जो मदद करेगी?’ ‘हां नानी! है न मेरी परी दोस्त।’ ‘अच्छा!’ नानी ने आश्चर्य से आंखें फैलाई - ‘पर तुझ पर विश्वास कौन करेगा। कम्प्यूटर के जमाने में कैसी बातें कर रही है?’ ‘नानी जब देखो तब अपनी ही बातें करती हो। मुझे परी अच्छी लगती है। वही मेरी दोस्त है। ‘अच्छा क्या तुम्हारी परी पहाड़ उठा सकती है?’ नानी ने बात टालने को पूछा। ‘हां, हां...!’ ‘पर परी तो कोमल होती है?’ ‘पर उसमें ताक़त बहुत है। वह बहुत कुछ कर सकती है। एक बार मैंने परी दोस्त से कहा कि धरती पर खड़ी-खड़ी तारा छुओ। परी ने मुझे गोद में उठाया और लम्बी होती चली गई और पहुंच गए हम तारे के पास। मैंने तो ख़ूब छुआ तारे को।’ ‘और क्या-क्या था तारे पर?’ नानी ने पूछा। डोलू को नानी की जिज्ञासा अच्छी लगी। उसने उत्साह से जवाब दिया- ‘तारे पर लम्बे-लम्बे बच्चे थे। बांस जैसे! नीचे खड़े-खड़े ही पहली मंज़िल की छत से सामान उतार सकते थे। मुझे तो ऐसा लगा जैसे कुतुब मीनार के पास खड़ी हूं। सच्ची! और इससे मज़ेदार बात यह है कि उनके मां-पापा क़द में बौने थे।’ ‘ऐं!’ नानी सचमुच चौंक गई थीं। ‘हां मुझे भी अचरज हुआ था नानी। पर परी दोस्त ने बताया कि तारे पर आयु बढ़ने के साथ क़द छोटा होता है धरती पर बड़ा।’ ‘और क्या वे बोलते भी थे। तूने बात की?’ नानी ने पूछा। ‘हां…हां नानी, ख़ूब बातें की। पर मैं आपको बताऊंगी नहीं। अरे, मैंने तो परी को नदी उठाकर आसमान में उड़ते भी देखा है।’ डोलू ने बताया। ‘नदी को उठाकर! और पानी?’ ‘अरे नानी, पानी समेत। बिल्कुल लहराते लम्बे-से कपड़े-सी लग रही थी। दूर-दूर तक। कितना मज़ा आया था।’ नानी को डोलू की बात पर बहुत मज़ा आ रहा था। पर डोलू नाराज होकर कहीं बात रोक न दे, इसका भी तो डर था न! सो बोलीं- ‘अच्छा डोलू तू तो रोज़ परी से मिलती है, परी कभी थकती है कि नहीं?’ ‘थकती है न नानी। जब कोई उस पर विश्वास नहीं करता। जब कोई उसे बोर करता है, तो बहुत थक जाती है। ऐसे लोगों को वह पसंद नहीं करती। मैं तो ना उस पर शक करती हूं और ना ही उसे बोर करती हूं।’ ‘चलो आज से मैं भी तुझ जैसी ही हो गई।’ नानी ने कहा। ‘तो सुनो नानी। एक बार मुस्कराते हुए परी ने कहा - चलो आज तुम्हें पूरा जंगल निगल कर दिखाती हूं। सुनकर मुझे कुछ कुछ अविश्वास हुआ। देखते ही देखते परी का मुंह उतरने लगा। उदासी छाने लगी। मैंने झट से अपनी ग़लती समझी। परी पर विश्वास किया। परी के मुंह पर ख़ुशी लौट आई। वह मुझे जंगल के पास ले गई। परी ने देखते ही देखते पूरा जंगल निगल लिया। मैं तो अचरज से भरी थी। पर ख़ुश बहुत थी। मैंने पूछा- ‘परी, यह जंगल अब क्या तुम्हारे पेट में ही रहेगा?’ परी बोली- ‘नहीं… नहीं! मैंने तो इसे बस तुम्हें मज़ा देने के लिए निगला था। जंगल तो हमारा दोस्त है। क्या-क्या नहीं देता आदमी को! जंगल ख़त्म हो जाए तो आदमी का जीना ही दूभर हो जाए। पता नहीं कैसे राक्षस हैं वे जो जंगलों को काट कर तबाह कर रहे हैं। लो, यह रहा तुम्हारा जंगल कहते-कहते परी ने जंगल उगल दिया। जंगल फिर अपनी जगह था। धुला-धुला शायद परी के पेट में धुल गया था।’ नानी डोलू का मन रखने और उसकी बातों का मज़ा लेने के लिए उत्सुकता दिखा रही थी। उधर डोलू को पूरा मज़ा आ रहा था। ख़ुश होकर बोली- ‘नानी, आप विश्वास करें, तो एक और कारनामा बताऊं।’ ‘हां...हां, ज़रूर सुनाओ!’ डोलू हंसी। उसका चेहरा गर्व से भर उठा था। थोड़ा पानी पीया और दादी-नानी की तरह खंखारा। बोली- ‘नानी, परी तो अपनी आंखों में पूरा समुद्र भी भर सकती है। मछलियों और जीव-जंतुओं समेत। बिल्कुल ‘एक्वेरियम’ लगती हैं तब परी की आंखें। एक बार तो सारे बादल ही पकड़ कर अपने बालों में भर लिए थे। बाल तब कितने सुंदर लगे थे। काले-सफेद। फूले-फूले से। मैंने हाथ लगा कर देखा, तो गीले भी थे। पर थोड़ी ही देर में परी ने उन्हें छोड़ भी दिया। अगर उन्हें पकड़े रखती तो बारिश कैसे होती? और बारिश न होती, तो पूरी धरती को कितना दुःख पहुंचता। परी कहती है कि हमें हमेशा पूरी धरती का हित करना चाहिए। कोई भी नुकसान पहुंचाने वाली बात नहीं करनी चाहिए। नानी, मैं भी किसी को कभी भी नुकसान नहीं पहुंचाऊंगी, प्रॉमिस...’ ‘नानी कहीं आप झूठ तो नहीं समझ रही न?' नानी ज़रा संभलीं। आंखें मसलीं। सिर को भी सहलाया। बोलीं - ‘नहीं-नहीं डोलू! सच जब ऐसे-ऐसे कारनामे अपनी आंखों से देखूंगी, तो कितना मज़ा आएगा। सच, मैं तो अविश्वास की बात मन में लाऊंगी तक नहीं।’ ‘हां-हां, मैं उससे आपको मिला दूंगी!’ डोलू की आवाज़ में गज़ब का विश्वास था। ‘पर पहले यह तो बताओ कि मैं पहाड़ लाकर दिखाऊं?’ ‘अच्छा, दिखा। पर चोट नहीं खा जाना।’- नानी ने बच्चों की तरह कहा। ‘तो फिर आंखें बंद करो। मैं अभी आई पहाड़ लेकर।’ नानी ने आंखें बंद कर लीं। बच्ची जो बन गईं थीं। डोलू थोड़ी ही देर में पहाड़ लेकर आ गई। बोली - ‘नानी आंखें खोलो और देखो यह पहाड़!’ नानी ने आंखें खोल दीं। पूछा - ‘कहां?’ ‘यहां। यह क्या है?’ ‘पहाड़!’ अब क्या था, दोनों ख़ूब हंसीं, ख़ूब हंसी। नानी ने डोलू को खींचकर उसका माथा चूम लिया। प्यार-से बोलीं- ‘तुम सचमुच बहुत नटखट हो डोलू!’ असल में डोलू ने एक काग़ज़ पर पहाड़ का चित्र बना रखा था। उसी को दिखाकर जब उसने नानी से पूछा- ‘यह क्या है’ तो नानी के मुंह से सहज ही निकला- ‘पहाड़!’ नानी ने मुस्कराते हुए पूछा- ‘भई डोलू अपनी परी दोस्त से कब मिलवाओगी?’ ‘कहो तो अभी।’ ‘ठीक है। मिलाओ!’ ‘तो करो आंखें बंद।’ नानी ने आंखें बंद कर लीं। थोड़ी ही देर में डोलू ने कहा- ‘नानी आंखें खोलो।’ नानी ने आंखें खोल दीं। पूछा-‘कहां है परी?’ ‘तो यह क्या है?’ ‘परी।’- नानी ने कहा। दोनों फिर ख़ूब हंसी, ख़ूब हंसी। असल में इस बार डोलू ने अपनी ही फ्रॉक पर कागज लगा रखा था। जिस पर लिखा था- ‘परी।’ नानी ने हंसते-हंसते पूछा- ‘और वे सब कारनामे?’ ‘आप अविश्वास तो नहीं करेंगी न नानी?’ - डोलू ने थोड़ा गम्भीर होते हुए पूछा। ‘अरे, नहीं।’ ‘जब परी मैं हूं तो कारनामे भी तो मेरे ही हुए न!’ नानी की आंखें ख़ुशी से भर आईं। सोचा - ‘कितनी कल्पनाशील है मेरी बच्ची। ईश्वर इसे इसी तरह सृजनात्मक बनाए रखे।’
Make sure you enter all the required information, indicated by an asterisk (*). HTML code is not allowed.