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धर्म संसार / शौर्यपथ / क्या है श्री गणेश और संगीत का रिश्ता
हिन्दू धर्म का नृत्य, कला, योग और संगीत से गहरा नाता रहा है। हिन्दू धर्म मानता है कि ध्वनि और शुद्ध प्रकाश से ही ब्रह्मांड की रचना हुई है। भारत में संगीत की परंपरा अनादिकाल से ही रही है।
हिन्दुओं के लगभग सभी देवी और देवताओं के पास अपना एक अलग वाद्य यंत्र है। विष्णु के पास शंख है तो शिव के पास डमरू, नारद मुनि और सरस्वती के पास वीणा है, तो भगवान श्रीकृष्ण के पास बांसुरी। देवर्षि नारद के हाथों में एकतारा हमेशा रहता है। खजुराहो के मंदिर हो या कोणार्क के मंदिर, प्राचीन मंदिरों की दीवारों में गंधर्वों की मूर्तियां आवेष्टित हैं। उन मूर्तियों में लगभग सभी तरह के वाद्य यंत्र को दर्शाया गया है। गंधर्वों और किन्नरों को संगीत का अच्छा जानकार माना जाता है।
सामवेद उन वैदिक ऋचाओं का संग्रह मात्र है, जो गेय हैं। संगीत का सर्वप्रथम ग्रंथ चार वेदों में से एक सामवेद ही है। इसी के आधार पर भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र लिखा और बाद में संगीत रत्नाकर, अभिनव राग मंजरी लिखा गया। दुनियाभर के संगीत के ग्रंथ सामवेद से प्रेरित हैं।
गणेशजी का वाद्ययंत्र ढोल : गणेशजी को मूर्ति और उनके चित्रों में वीणा, सितार और ढोल बाजाते हुए दर्शाया जाता है। कहीं कहीं पर उन्हें बांसुरी बजाते हुए भी चित्रित किया गया है। वैसे गणेशजी भी संगीत प्रेमी हैं। अक्सर तो उन्हें ढोल व मृदंग बजाते हुए ही चित्रित किया गया है। ढोल सागर ग्रंथ के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने ढोल का निर्माण किया था। कहते हैं कि विष्णुजी ने तांबा धातु को गलाया और ब्रह्माजी ने उस ढोल में ब्रह्म कनौटी लगाई और ढोल के दोनों ओर सूर्य और चंद्रमा के रूप में खालें लगाई गईं।
जब ढोल बन गया तो भगवान शंकर ने खुश होकर नृत्य किया तब उनके पसीने से एक कन्या 'औजी' पैदा हुई जिन्हें इस ढोल को बजाने की जिम्मेदारी दी गई। कहते हैं कि औजी ने ही इस ढोल को उलट-पलट कर चार शब्द- वेद, बेताल, बाहु और बाईल का निर्माण किया था।
श्री गणेश के ये 7 दुर्लभ धन मंत्र आपको कहीं नहीं मिलेंगे
श्रीगणेश के कई मंत्र हैं जो गणेशोत्सव के 10 दिनों में भक्तों द्वारा जपे जाते हैं... वेबदुनिया के पाठकों के लिए हम पुराणों से लाए हैं 7 दुर्लभ धन मंत्र... ये गणेश धन मंत्र निश्चित रुप से असरकारी हैं...
* श्रीपतये नमः,
* रत्नसिंहासनाय नमः
* मणिकुंडलमंडिताय नमः
* महालक्ष्मी प्रियतमाय नमः
* सिद्ध लक्ष्मी मनोरहप्रियाय नमः
* लक्षाधीश प्रियाय नमः
* कोटिधीश्वराय नमः
भगवान श्री गणेश इस समय घर-घर में विराजित हैं,आइए जानते हैं कि लम्बोदर विनायक को कौन से मंत्र से प्रसन्न करें....
1. ॐ सुमुखाय नम:,
2. ॐ एकदंताय नम:,
3. ॐ कपिलाय नम:,
4. ॐ गजकर्णाय नम:,
5. ॐ लंबोदराय नम:,
6. ॐ विकटाय नम:,
7. ॐ विघ्ननाशाय नम:,
8. ॐ विनायकाय नम:,
9. ॐ धूम्रकेतवे नम:,
10. ॐ गणाध्यक्षाय नम:,
11. ॐ भालचंद्राय नम:,
12. ॐ गजाननाय नम:।
श्रीगणेश को प्रिय है यह गणेश कुबेर मंत्र
मंत्र - 'ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा'।
गणेशोत्सव में प्रतिदिन इस मंत्र की एक माला (108 बार मंत्र जाप) करने से मनुष्य के धन संबंधी सारे संकट दूर होते हैं।
श्री गणेश के 108 नामों के हिन्दी अर्थ
भारतीय धर्म और संस्कृति में भगवान गणेशजी सर्वप्रथम पूजनीय और प्रार्थनीय हैं। उनकी पूजा के बगैर कोई भी मंगल कार्य शुरू नहीं होता। उनकी पूजा के दौरान इन 108 नामों का जपने से सभी तरह के मांगलिक कार्य के विघ्न हट जाते हैं।
गणेश नामावली-108
1. बाल गणपति : सबसे प्रिय बालक।
2. भालचन्द्र : जिसके मस्तक पर चंद्रमा हो।
3. बुद्धिनाथ : बुद्धि के भगवान।
4. धूम्रवर्ण : धुएं को उड़ाने वाला।
5. एकाक्षर : एकल अक्षर।
6. एकदन्त : एक दांत वाले।
7. गजकर्ण : हाथी की तरह कान वाला।
8. गजानन : हाथी के मुख वाले भगवान।
9. गजवक्र : हाथी की सूंड वाला।10. गजवक्त्र : जिसका हाथी की तरह मुंह है।
11. गणाध्यक्ष : सभी गणों का मालिक।
12. गणपति : सभी गणों के मालिक।
13. गौरीसुत : माता गौरी का बेटा।
14. लम्बकर्ण : बड़े कान वाले देव।
15. लम्बोदर : बड़े पेट वाले।
16. महाबल : अत्यधिक बलशाली वाले प्रभु।
17. महागणपति : देवातिदेव।18. महेश्वर : सारे ब्रह्मांड के भगवान।
19. मंगलमूर्ति : सभी शुभ कार्य के देव।
20. मूषक वाहन : जिसका सारथी मूषक है।
21. निदीश्वरम : धन और निधि के दाता।
22. प्रथमेश्वर : सबके बीच प्रथम आने वाला।
23. शूपकर्ण : बड़े कान वाले देव।
24. शुभम : सभी शुभ कार्यों के प्रभु।
25. सिद्धिदाता : इच्छाओं और अवसरों के स्वामी।
26. सिद्धिविनायक : सफलता के स्वामी।
27. सुरेश्वरम : देवों के देव।
28. वक्रतुण्ड : घुमावदार सूंड।
29. अखूरथ : जिसका सारथी मूषक है।
30. अलम्पता : अनन्त देव।
31. अमित : अतुलनीय प्रभु।
32. अनन्तचिदरुपम : अनंत और व्यक्ति चेतना।
33. अवनीश : पूरे विश्व के प्रभु।
34. अविघ्न : बाधाओं को हरने वाले।
35. भीम : विशाल।
36. भूपति : धरती के मालिक।
37. भुवनपति : देवों के देव।
38. बुद्धिप्रिय : ज्ञान के दाता।
39. बुद्धिविधाता : बुद्धि के मालिक।
40. चतुर्भुज : चार भुजाओं वाले।
41. देवादेव : सभी भगवान में सर्वोपरि।
42. देवांतकनाशकारी : बुराइयों और असुरों के विनाशक।
43. देवव्रत : सबकी तपस्या स्वीकार करने वाले।
44. देवेन्द्राशिक : सभी देवताओं की रक्षा करने वाले।
45. धार्मिक : दान देने वाला।
46. दूर्जा : अपराजित देव।
47. द्वैमातुर : दो माताओं वाले।
48. एकदंष्ट्र : एक दांत वाले।
49. ईशानपुत्र : भगवान शिव के बेटे।
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50. गदाधर : जिसका हथियार गदा है।
51. गणाध्यक्षिण : सभी पिंडों के नेता।
52. यशस्कर : प्रसिद्धि और भाग्य के स्वामी।
53. गुणिन : जो सभी गुणों के ज्ञानी।
54. हरिद्र : स्वर्ण के रंग वाला।
55. हेरम्ब : मां का प्रिय पुत्र।
56. कपिल : पीले भूरे रंग वाला।
57. कवीश : कवियों के स्वामी।
58. कीर्ति : यश के स्वामी।
59. कृपाकर : कृपा करने वाले।
60. कृष्णपिंगाश : पीली भूरी आंख वाले।
61. क्षेमंकरी : माफी प्रदान करने वाला।
62. क्षिप्रा : आराधना के योग्य।
63. मनोमय : दिल जीतने वाले।
64. मृत्युंजय : मौत को हरने वाले।
65. मूढ़ाकरम : जिनमें खुशी का वास होता है।
66. मुक्तिदायी : शाश्वत आनंद के दाता।
67. नादप्रतिष्ठित : जिसे संगीत से प्यार हो।
68. नमस्थेतु : सभी बुराइयों और पापों पर विजय प्राप्त करने वाले।
69. नन्दन : भगवान शिव का बेटा।
70. सिद्धांथ : सफलता और उपलब्धियों के गुरु।
71. पीताम्बर : पीले वस्त्र धारण करने वाला।
72. प्रमोद : आनंद।
73. पुरुष : अद्भुत व्यक्तित्व।
74. रक्त : लाल रंग के शरीर वाला।
75. रुद्रप्रिय : भगवान शिव के चहेते।
76. सर्वदेवात्मन : सभी स्वर्गीय प्रसाद के स्वीकार्ता।
77. सर्वसिद्धांत : कौशल और बुद्धि के दाता।
78. सर्वात्मन : ब्रह्मांड की रक्षा करने वाला।
79. ओमकार : ओम के आकार वाला।
80. शशिवर्णम : जिसका रंग चंद्रमा को भाता हो।
81. शुभगुणकानन : जो सभी गुण के गुरु हैं।
82. श्वेता : जो सफेद रंग के रूप में शुद्ध है।
83. सिद्धिप्रिय : इच्छापूर्ति वाले।
84. स्कन्दपूर्वज : भगवान कार्तिकेय के भाई।85. सुमुख : शुभ मुख वाले।
86. स्वरूप : सौंदर्य के प्रेमी।
87. तरुण : जिसकी कोई आयु न हो।
88. उद्दण्ड : शरारती।
89. उमापुत्र : पार्वती के बेटे।
90. वरगणपति : अवसरों के स्वामी।
91. वरप्रद : इच्छाओं और अवसरों के अनुदाता।
92. वरदविनायक : सफलता के स्वामी।
93. वीर गणपति : वीर प्रभु।
94. विद्यावारिधि : बुद्धि के देव।
95. विघ्नहर : बाधाओं को दूर करने वाले।
96. विघ्नहर्ता : बुद्धि की देव।
97. विघ्नविनाशन : बाधाओं का अंत करने वाले।
98. विघ्नराज : सभी बाधाओं के मालिक।
99. विघ्नराजेन्द्र : सभी बाधाओं के भगवान।
100. विघ्नविनाशाय : सभी बाधाओं का नाश करने वाला।
101. विघ्नेश्वर : सभी बाधाओं के हरने वाले भगवान।
102. विकट : अत्यंत विशाल।
103. विनायक : सबका भगवान।
104. विश्वमुख : ब्रह्मांड के गुरु।
105. विश्वराजा : संसार के स्वामी।
105. यज्ञकाय : सभी पवित्र और बलि को स्वीकार करने वाला।
107. यशस्विन : सबसे प्यारे और लोकप्रिय देव।
108. योगाधिप : ध्यान के प्रभु।
भगवान गणेश जी का संपूर्ण परिचय
भगवान गणेशजी को भारतीय धर्म और संस्कृति में प्रथम पूज्य देवता माना जाता है। उनकी पूजा के बगैर कोई भी मंगल कार्य शुरू नहीं होता। सभी मांगलिक कार्य में पहले गणेश जी की स्थापना और स्तुति की जाती है। आओ जानते हैं भगवान गणेशजी के संबंध में संपूर्ण परिचय।
गणेश जन्म : माता पार्वती द्वारा पुण्यक व्रत के फलस्वरूप गणेशजी का जन्म हुआ था। बाद के पुराणों में उनके जन्म के संबंध में कहा गया है माता ने अपनी सखी जया और विजया के कहने पर एक गण की उत्पति अपने मैल से की थी। जन्म समय माथुर ब्राह्मणों के इतिहास अनुसार अनुमानत: 9938 विक्रम संवत पूर्व भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय हुआ था। पौराणिक मत के अनुसार सतुयग में हुआ था।
गणेश जन्म स्थान : उत्तरकाशी जिले के डोडीताल को गणेशजी का जन्म स्थान माना जाता है। यहां पर माता अन्नपूर्णा का प्राचीन मंदिर हैं जहां गणेशजी अपनी माता के साथ विराजमान हैं। डोडीताल, जोकि मूल रूप से बुग्याल के बीच में काफी लंबी-चौड़ी झील है, वहीं गणेश का जन्म हुआ था। यह भी कहा जाता है कि केलसू, जो मूल रूप से एक पट्टी है (पहाड़ों में गांवों के समूह को पट्टी के रूप में जाना जाता है) का मूल नाम कैलाशू है। इसे स्थानीय लोग शिव का कैलाश बताते हैं। केलसू क्षेत्र असी गंगा नदी घाटी के सात गांवों को मिलाकर बना है। गणेश भगवान को स्थानीय बोली में डोडी राजा कहा जाता हैं जो केदारखंड में गणेश के लिए प्रचलित नाम डुंडीसर का अपभ्रंश है। मान्यता अनुसार डोडीताल क्षेत्र मध्य कैलाश में आता था और डोडीताल गणेश की माता और शिव की पत्नी पार्वती का स्नान स्थल था। स्वामी चिद्मयानंद के गुरु रहे स्वामी तपोवन ने मुद्गल ऋषि की लिखी मुद्गल पुराण के हवाले से अपनी किताब हिमगिरी विहार में भी डोडीताल को गणेश का जन्मस्थल होने की बात लिखी है। वैसे कैलाश पर्वत तो यहां से सैंकड़ों मील दूर है परंतु स्थानीय लोग मानते हैं कि एक समय यहां माता पार्वती विहार पर थी तभी गणेशजी का जन्म हुआ था।
गणेश के नाम : कहते हैं कि गणेशजी का मूल नाम विनायक है। इसके बाद गणेश और गणों के ईश गणपति हुए। देव समुदाय ने उन्हें गांगेय कहकर सम्मान दिया और ब्रह्मा जी ने उन्हें गणों का आधिपत्य प्रदान करके गणेश नाम दिया। दुनिया के प्रथम धर्मग्रंथ ऋग्वेद में भी भगवान गणेशजी का जिक्र है। ऋग्वेद में 'गणपति' शब्द आया है। यजुर्वेद में भी ये उल्लेख है। बाद के नाम किसी न किसी कथा से जुड़े हैं। गणेशजी नाम : सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र, विघ्नराज, द्वैमातुर, गणाधिप, हेरम्ब, गजानन, अरुणवर्ण, गजमुख, लम्बोदर, अरण-वस्त्र, त्रिपुण्ड्र-तिलक, मूषकवाहन। उन्हें एकदंत इसलिए कहा जाता है क्योंकि परशुरामजी ने उनका एक दांत तोड़ दिया था। उन्हें गजानन इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे गज (हाथी) के मुख के थे।
गणेश जी का मस्तक : उन्हें गजानन इसलिए कहा गया कि उनके सिर को भगवान शंकर ने काट दिया था। बाद में उनके धड़ पर हाथी का सिर लगा कर उन्हें पुन: जीवित किया गया। यह भी कहा जाता है कि शनिदेव जब बाल गणेश को देखने गए तो उनकी दृष्टि से उनका मस्तक भस्म हो गया था बाद में विष्णुजी ने एक हाथी का सिर उनके धड़ पर लगाकर उन्हें पुनर्जिवित कर दिया था।
अग्रपूजक कैसे बने : एक बार देवताओं में धरती की परिक्रमा की प्रतियोगिता हुई जिसमें जो सबसे पहले परिक्रमा करके आ जाता उसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता। प्रतियोगिता प्रारंभ हुई परंतु गणेश जी का वाहन तो मूषक था तब उन्होंने अपनी बुद्धि का प्रयोग किया और उन्होंने अपने माता पिता शिव एवं पार्वती की ही परिक्रमा कर ली। ऐसा करके उन्होंने संपूर्ण ब्रह्माण्ड की ही परिक्रमा कर ली। तब सभी देवों की सर्वसम्मति और ब्रह्माजी की अनुशंसा से उन्हें अग्रपूजक माना गया। इसके पीछे और भी कथाएं हैं। पंच देवोपासना में भगवान गणपति मुख्य हैं।
गणेश जी का परिवार : उनकी माता का नाम पार्वती और पिता का नाम शिव। भाई कार्तिकेय और बहन अशोक सुंदरी है। उनकी पत्नी प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्री ऋद्धि और सिद्धि हैं। सिद्धि से 'क्षेम' और ऋद्धि से 'लाभ' नाम के दो पुत्र हुए। लोक-परंपरा में इन्हें ही शुभ-लाभ कहा जाता है। शुभ और लाभ के पुत्र आमोद और प्रमोद हैं।
गणेशजी की पसंद : उनका प्रिय भोग मोदक लड्डू, प्रिय पुष्प लाल रंग के फूल, प्रिय वस्तु दुर्वा (दूब), प्रिय वृक्ष शमी-पत्र, केल, केला आदि हैं। केसरिया चंदन, अक्षत, दूर्वा अर्पित कर कपूर जलाकर उनकी पूजा और आरती की जाती है। उनको मोदक का लड्डू अर्पित किया जाता है। उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं।
गणेशजी का स्वरूप : जल तत्व के अधिपति, बुधवार और चतुर्थी के स्वामी और केतु एवं बुध के ग्रहाधिपति गणेश जी के प्रभु अस्त्र पाश और अंकुश है। वे मूषक वाहन पर सवार रहते हैं। वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। अपने चारों हाथों में वे क्रमश: पाश, अंकुश, मोदक पात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। वे रक्त चंदन धारण करते हैं।
भगवान गणेशजी का सतयुग में वाहन सिंह है और उनकी भुजाएं 10 हैं तथा नाम विनायक। श्री गणेशजी का त्रेतायुग में वाहन मयूर है इसीलिए उनको मयूरेश्वर कहा गया है। उनकी भुजाएं 6 हैं और रंग श्वेत। द्वापरयुग में उनका वाहन मूषक है और उनकी भुजाएं 4 हैं। इस युग में वे गजानन नाम से प्रसिद्ध हैं और उनका वर्ण लाल है।कलियुग में उनका वाहन घोड़ा है और वर्ण धूम्रवर्ण है। इनकी 2 भुजाएं हैं और इस युग में उनका नाम धूम्रकेतु है।
गणेशजी के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण प्रसंग : मस्तक प्रसंग, पृथ्वी प्रदक्षिणा प्रसंग, मूषक (गजमुख) वाहन प्राप्ति प्रसंग, गणेश विवाह प्रसंग, संतोषी माता उत्पत्ति प्रसंग, विष्णु विवाह में उन्हें नहीं बुलाने का प्रसंग, असुर (देवतान्तक, सिंधु दैत्य, सिंदुरासुर, मत्सरासुर, मदासुर, मोहासुर, कामासुर, लोभासुर, क्रोधासुर, ममासुर, अहंतासुर) वध प्रसंग, महाभारत लेखन प्रसंग आदि। उन्होंने अपने भाई कार्तिकेय के साथ कई युद्धों में लड़ाई की थी।
गणेश ग्रंथ : गणेश का गाणपतेय संप्रदाय है। उनके ग्रंथों में गणेश पुराण, गणेश चालीसा, गणेश स्तुति, श्रीगणेश सहस्रनामावली, गणेशजी की आरती, संकटनाशन गणेश स्तोत्र, गणपति अथर्वशीर्ष, गणेशकवच, संतान गणपति स्तोत्र, ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र, मयूरेश स्तोत्र आदि।
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