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रायपुर / शौर्यपथ / यहाँ बात विकास और उन्नति की नहीं परम्परा की है . सरकार कोई भी हो विकास की दिशा में कार्य करती ही है चाहे उनकी रफ़्तार तेज हो या धीमी क्योकि बिना विकास के सत्ता ज्यादा दिन नहीं टिक सकती . छत्तीसगढ़ को अस्तित्व में आये हुए आज 23 साल हो रहे है . इन 23 सालो में अगर भूपेश सरकार के लगभग 5 साल हटा दिए जाए तो 18 साल तक छत्तीसगढ़ में नेताओ को छत्तीसगढ़ी बोलने में हिचक होती थी यहाँ तक छत्तीसगढ़ के हित की बात करते हुए 15 साल तक रमन सरकार ने राज किया किन्तु छत्तीसगढ़ी तीज त्यौहार को कोई महत्तव नहीं दिया . रमन सरकार के मंत्री मंडल में ताकतवर मंत्रियो की बड़ी संख्या ऐसी थी जो सालो से छत्तीसगढ़ में निवास कार रहे किन्तु अभि भी अपने मूल निवास के परिवेश को ही अपनाते हुए चल रहे है . अपने मूल अस्तित्व को नहीं भूलना चाहिए किन्तु साथ ही जिस जमीन ने जिस जगह ने पहचान और रूतबा दिया उसके सम्मान और पर्व को भी अपनाने में कही दिक्कत नहीं होनी चाहिए किन्तु छत्तीसगढ़ का दुर्भाग्य ही रहा कि 18 साल छत्तीसगढ़ अपनी मूल पहचान की तलाश में रहा .
2018 में भूपेश सरकार के आने के बाद छत्तीसगढ़ी भाखा , तीज त्यौहार , खान-पान , परम्परा , खुले मंच में छत्तीसगढ़ी बोली का उद्बोधन ये सब भूपेश सरकार के बाद ही हुआ . जिस तरह से छत्तीसगढ़ियो का तीज त्योहारों का चलन शुरू हुआ उसके बाद 15 साल मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह सहित प्रदेश के अधिकतर नेता चाहे वो किसी भी राजनैतिक दल के हो छत्तीसगढ़ी बोली का उपयोग करने में हिचक महसूस नहीं कर रहे . एक बात जेहन में आयी जब छत्तीसगढ़ में रमन सिंह मुख्यमंत्री थे तब कभी भी छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े त्यौहार तीजा के बधाई सन्देश छत्तीसगढ़ी में नहीं दिए किन्तु सत्ता से हटने के बाद पहले ही तीजा में समाचार पत्रों में जो बधाई सन्देश दिए छत्तीसगढ़ की माताओ बहनों को वो विशुद्ध छत्तीसगढ़ी भाखा में दिए और आज जब रायपुर मे पीएम मोदी का सम्मलेन था तो उन्होंने भी छत्तीसगढ़ी शब्दों का प्रयोग किया . ये शुरुवात हुई अब छत्तीसगढ़ी बोली की उपेक्षा राजनेताओ की पहुँच से दूर हो गयी . मेरी नजर में सीएम बघेल ने जो शुभारम्भ किया खुले मंच में छत्तीसगढ़ी बोली का अब उसका अंत असंभव है .
लेख - शरद पंसारी
संपादक - शौर्यपथ दैनिक समाचार
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