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शौर्यपथ / केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन का विश्व स्वास्थ्य संगठन का कार्यकारी बोर्ड का अध्यक्ष चुना जाना भारत के लिए गौरव की बात है। हम उनके पोलियो उन्मूलन अभियान के साक्षी हैं कि किस प्रकार सीमित संसाधनों के साथ हम इस बीमारी पर काबू पाने में सफल रहे। कोविड-19 पर भी हम विजय पाएंगे, ऐसा हमें विश्वास है, क्योंकि स्वास्थ्य मंत्री के एक आह्वान पर देश पर्सनल प्रोटेक्शन किट व मास्क बनाने में मात्र दो माह में आत्मनिर्भर बन चुका है। इन कार्यों में हम इसलिए सफल रहे, क्योंकि प्रभावशाली नेतृत्व और आम जनमानस को आपस में जोड़ा गया। अब पूरे विश्व को हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और हर्षवर्धन के अनुभव का फायदा मिलेगा।
लोकल के लिए वोकल
कोरोना संकट के कारण देश में आई आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए हमें लोकल के लिए वोकल होना ही पड़ेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने भाषण में स्थानीय उत्पादों के प्रति देश को प्रोत्साहित किया था। आज देश में तमाम विदेशी कंपनियों का राज है, और यदि हम विदेशी पर निर्भर न होकर स्वदेशी अपनाएंगे, तो यह आत्मनिर्भरता की ओर एक अहम कदम होगा। हम लोकल पर गर्व करेंगे, तो वे देश ही नहीं, बल्कि विदेश में एक ग्लोबल प्रोडक्ट बनकर भारत की अर्थव्यवस्था में तेजी लाएंगे, हालांकि उनका निर्माण गुणवत्तापूर्ण होना चाहिए। सरकार ने आत्मनिर्भर भारत के तहत दिए गए राहत पैकेज में इसके लिए अहम फैसले लिए हैं।
अमीर बनाम गरीब
आजादी के इतने वर्षों के बाद भी जो अब तक नहीं बदला, वह है हमारी हुकूमत का रवैया। वह आम आदमी की खैरख्वाह होने का दम तो भरती है, परंतु जब मजदूरों-किसानों पर कोरोना की वजह से मुसीबत आई, तो सरकार ने उनके अनुसार फैसले लिए, जो अपने घर में सुरक्षित बैठे थे। जब लॉकडाउन के कारण ये गरीब दो जून की रोटी के लिए भी दूसरों पर आश्रित हो गए, तब लोगों ने उन्हें खाना तो दिया, लेकिन उनकी तस्वीर भी दुनिया को दिखाई, मानो वे भिखारी हों। सबने सोचा कि सिर्फ दो वक्त की रोटी ही उनकी जिंदगी है। कब तक सरकार यह नहीं मानेगी कि उनका भी स्वाभिमान है, घर है, बच्चे हैं। आज हजारों मजदूर घर जाने की जद्दोजहद में पैदल ही हजारों किलोमीटर की यात्रा कर रहे हैं, पुलिस की मार खा रहे हैं, लेकिन सरकार को यह सब दिखाई नहीं देता। साफ है, जनता की होने का दावा करने वाली सरकार सिर्फ अमीरों की है। आमजन तो उसके लिए वोट बैंक हैं, जिनकी याद उसे सिर्फ चुनाव में आती है। सरकार तब तक यह सब करती रहेगी, जब तक गरीब खुद नहीं जाग जाएगा।
अमेरिका की दादागिरी
अंगे्रजी में एक कहावत है ‘माई वे ऑर द हाईवे’। इसका अर्थ है, तुम मेरी तरफ हो या कहीं के नहीं हो। इस समय अमेरिका और उसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप यही कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन पर दबाव बनाकर उसे कोरोना वायरस के जन्मदाता का नाम उजागर करने संबंधी जांच कराने के लिए बाध्य किया जा रहा है, जबकि इस समय महामारी उफान पर है। अभी सबको मिलकर कोरोना से लड़ना चाहिए, पर कुछ देश आपस में लड़ रहे हैं। ट्रंप डब्ल्यूएचओ को पैसा देने से मना कर रहे हैं और संस्था छोड़ने की भी धमकी दे रहे हैं। पूर्व में भी राष्ट्रपति ट्रंप जलवायु परिवर्तन संबंधी समझौते से बाहर निकल चुके हैं। विज्ञान की खोज शायद उनके लिए मायने नहीं रखती। ऐसे में, अगर अगला चुनाव वह जीतते हैं, तो संयुक्त राष्ट्र को अपना मुख्यालय भी संभवत: न्यूयॉर्क से बाहर ले जाना पड़ेगा।
जंग बहादुर सिंह
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