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नजरिया /शौर्यपथ / सभ्य समाज में सार्वजनिक स्थानों पर थूकने को कभी अच्छा नहीं माना गया है, लेकिन खेलों में खिलाड़ियों का थूकना आम बात है। फुटबॉल और बेसबॉल खिलाड़ियों को थूकते देखना बहुत आम है, लेकिन कोरोना संक्रमण थूक के छींटे के माध्यम से भी होता है, तो खेल जगत खिलाड़ियों की इस आदत से दहला हुआ है। फुटबॉल और क्रिकेट में खिलाड़ियों के मैदान में थूकने पर एकदम से रोक लगाने पर आजकल बहस चल रही है।
पिछले दिनों रोमानिया फुटबॉल फेडरेशन ने सुझाव दिया कि कोई भी खिलाड़ी मैदान में थूकता पाया जाए, तो उस पर छह से 12 मैचों का प्रतिबंध लगा दिया जाए। इसके अलावा कुछ लोग मैदान में थूकने वाले खिलाड़ी को येलो कार्ड दिखाकर बुक करने का सुझाव दे रहे हैं। इनका मानना है कि बिना सजा इस समस्या से निजात पाना संभव नहीं है। लेकिन विश्व फुटबॉल की संचालक संस्था फीफा को लगता है कि मैच का संचालन करने वाले अधिकारियों के लिए यह पता लगाना संभव नहीं होगा कि कौन खिलाड़ी कब थूक रहा है। इसलिए फीफा रेफरी कमेटी के चेयरमैन कोलिना का कहना है कि लीग या टूर्नामेंट के आयोजक मसविदा बनाएं और थूकने वाले खिलाड़ियों पर मैच के बाद हिसाब से कार्रवाई की जाए। कोलिना कहते हैं कि मैदान में थूकने वाले खिलाड़ी को येलो कार्ड दिखाना थोड़ा अव्यावहारिक भी होगा, क्योंकि एक तो मैच के संचालक के लिए हर घटना पर निगाह रखना संभव नहीं होगा और कुछ पर कार्रवाई करना उनके साथ अन्याय हो जाएगा। फुटबॉल में किसी खिलाड़ी का दूसरे खिलाड़ी पर थूकना रेड कार्ड वाला अपराध है और सामान्य तौर पर थूकने वाले के प्रति इतनी कठोर कार्रवाई उचित नहीं लगती।
क्रिकेट में तेज गेंदबाज गेंद चमकाने के लिए लार का प्रयोग करते हैं। लार से संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। तेज गेंदबाज गेंद के एक हिस्से को चमकाकर गेंद का संतुलन बिगाड़ देते हैं, जिससे गेंद स्विंग होने लगती है। आईसीसी की क्रिकेट समिति ने फिलहाल गेंद पर लार के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है, लेकिन उसने तेज गेंदबाजों के मैदान पर थूकने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है। आने वाले दिनों में मैदान पर थूकने पर भी पाबंदी की मांग उठ सकती है। समिति के प्रमुख अनिल कुंबले का कहना है कि गेंद पर लार का इस्तेमाल नहीं करना अंतरिम व्यवस्था है, कोरोना की समस्या खत्म होने पर यह प्रतिबंध खत्म हो सकता है।
अब सवाल यह है कि खिलाड़ी मैदान में थूकते क्यों हैं? तमाम अध्ययनों के अनुसार, ज्यादा कसरत या मेहनत करने पर लार में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है। खासतौर से म्यूकस की मात्रा बढ़ने से थूक गाढ़ा हो जाता है, जिसे निगलना मुश्किल होता है। ऐसे में, सांस लेने में दिक्कत होने लगती है और थूकने से ही स्थिति सामान्य होती है। क्रिकेट में खिलाड़ियों को लगातार नहीं दौड़ना पड़ता, इसलिए थूकने की समस्या कम होती है। इसमें आमतौर पर तेज गेंदबाज लंबे रनअप की वजह से थूकते मिल जाते हैं। टेनिस खिलाड़ी ब्रेक के समय ड्रिंक के कारण थूकने की समस्या से बचे रहते हैं। थूकने की मजबूरी फुटबॉल में ज्यादा है।
क्या फुटबॉलरों के थूकने पर रोक लगने से उनके खेल पर गलत प्रभाव तो नहीं पड़ेगा? शायद मैच के दौरान खिलाड़ियों का गला तर रखने की व्यवस्था करनी पडे़गी। इसके अलावा खिलाड़ियों को मैदान पर मिलकर जश्न मनाने से बचने की सलाह दी गई है। अक्सर खिलाड़ी खुशी में एक-दूसरे पर कूद पड़ते हैं। मैचों में आमतौर पर दोनों टीमों के कप्तान सद्भाव के तौर पर एक-दूसरे से जर्सी बदलते हैं, इस पर भी रोक लगा दी गई है।
ऐसी समस्याएं अनेक खेलों में आएंगी। खिलाड़ियों द्वारा मिलकर घेरा बनाना बंद हो जाएगा। टेनिस में तो अपनी गेंदें और तौलिया लाने की शुरुआत की जा रही है। सवाल यह है कि इतना सब होने के बाद भी क्या खेलों में पहले जैसा लुत्फ बना रहेगा? पिछले दिनों शुरू हुई जर्मन फुटबॉल लीग के मैच बिना दर्शक खेले जा रहे हैं। इसी तरह इंग्लिश प्रीमियर लीग की भी शुरुआत होने जा रही है। जुलाई में इंग्लैंड और वेस्ट इंडीज के बीच क्रिकेट सीरीज भी बिना दर्शक खेली जानी है। इन हालात में दर्शकों का खेलों के प्रति कितना लगाव बना रहता है, यह भी शायद कोरोना से ही तय होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) मनोज चतुर्वेदी, वरिष्ठ खेल पत्रकार
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