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सम्पादकीय लेख / शौर्यपथ / केरल में एक हथिनी की जिस तरह दर्दनाक मौत हुई है, उससे न केवल कानून-व्यवस्था, बल्कि मानवीयता पर भी सवाल खडे़ हो गए हैं। अब जब भारी विरोध और आलोचना के बाद इस मौत या हत्या के दोषियों की गिरफ्तारी शुरू हो गई है, तब हमें पशु क्रूरता निवारण की दिशा में हर पहल का स्वागत करना चाहिए। गांधीजी ने स्पष्ट इशारा किया था कि आपकी सभ्यता की परख इस बात से होगी कि आप अपने पशुओं के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। लेकिन पता यह लगा है कि फल में छिपाकर पशुओं को बारूद या पटाखे खिला देना नई बात नहीं है। चुपचाप न जाने कितने पशु मार दिए गए होंगे। वह गर्भवती हथिनी भी बारूद वाला अनानास खाकर वहीं मारी जाती, तो यह खबर देश-दुनिया में सुर्खियां नहीं बनती, शायद अब तक ऐसा ही होता आया होगा। पर वर्षों से चल रहे इस अत्याचार का घड़ा शायद भर गया था। निर्दोष बेजुबानों की पीड़ा तब दूर तलक गई, जब उस बुरी तरह घायल हथिनी ने तीन दिन पानी में खड़े होकर लगभग सत्याग्रह या विलाप किया। हथिनी अकेली नहीं थी, उसके पेट में शिशु था। यह एक ऐसा घटनाक्रम है, जो दशकों तक याद रखा जाएगा और संवेदनशील लोगों को रुलाता रहेगा। आम तौर पर घायल होने के बाद जानवर आक्रामक हो जाते हैं, लेकिन वह हथिनी आक्रामक नहीं हुई, असह्य वेदना से बचने के लिए और शायद अपने गर्भ की चिंता में वह पानी की गोद में जा खड़ी हुई। काश! उसे तुरंत पानी से बाहर निकाल लिया जाता और उसका हरसंभव इलाज हो पाता, तो मानवता यूं शर्मसार नहीं हो रही होती।
दोषियों को कतई माफ न किया जाए, साथ ही, अपनी फसलों को बचाने के इस बारूदी तरीके पर भी पूरी कड़ाई से रोक लगनी चाहिए। अभी पशुओं के साथ होने वाली क्रूरता को रोकने के लिए जो कानून हैं, वे शायद अपर्याप्त हैं और उन्हें लागू करने में सरकारी एजेंसियों की कोई खास रुचि नहीं है। ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए केरल सरकार को अपने स्तर पर पूरे इंतजाम करने होंगे। केरल की व्यापक छवि में हाथियों की अपनी गरिमामय उपस्थिति है। इसी प्रेम भाव के विकास के लिए पूरे राज्य में काम होने चाहिए। केरल या उसके किसी जिले या किसी समुदाय के खिलाफ नफरत की राजनीति समस्या का निदान नहीं है, लेकिन यह विवाद जिस तरह से बढ़ रहा है, उससे लगता है, यह सड़क, कोर्ट से विधानसभा तक गरमाएगा। अत: पशुओं के अधिकारों के लिए सक्रिय लोगों को पूरी सावधानी और संयम से स्थाई समाधान की ओर बढ़ना होगा, तभी वे लक्ष्य तक पहुंचेंगे।
वैसे हाथियों के प्रति क्रूरता केवल केरल की समस्या नहीं है। छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, झारखंड, ओडिशा, पूर्वोत्तर से भी शिकायतें आती रहती हैं। इन हाथियों को जंगल से बाहर न आना पडे़, इसके प्रबंध बार-बार चर्चा व सिफारिश के बावजूद नहीं हो रहे हैं। कई बार चर्चा हुई है कि हाथियों के लिए जंगलों में फलदार पेड़ों के गलियारे होने चाहिए, ताकि उनकी जरूरत वहीं पूरी हो जाए। अब समय आ गया है, जब हाथी ही नहीं, तमाम वन्य जीवों-पशुओं को तरह-तरह से मारने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगना चाहिए। तभी अपार पीड़ा से लाचार उस हथिनी का जल-सत्याग्रह सफल होगा और हम अपने हृदय में मानव होने का तार्किक गर्व सहेज सकेंगे।
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