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मेरी कहानी / शौर्यपथ / विदेश जाने की खुशी ऐसी थी कि पंख लग गए थे। मन सुने-सुनाए लंदन में पहुंचकर टहलने लगा था और तन को वहां पहुंचाने के लिए जल-जहाज का टिकट भी खरीद लिया गया था। बडे़ भाई साहब लंदन में ही रहते थे, तो उन्होंने छोटे को बुला भेजा कि आ जाओ, यहीं से इंजीनिर्यंरग पढ़ लो, जिंदगी संवर जाएगी। पिता भी फूले नहीं समा रहे थे। बड़ा बेटा पहले ही विलायत जा जमा था और अब दूसरा भी उसी नक्शेकदम पर चले, तो इससे अच्छा और क्या हो सकता है? पिता ने अंग्रेज शिक्षकों के स्कूल में बेटे को पढ़ाया भी यही सोचकर कि बेटा पठानों के इलाकाई खून-खराबे से अलग रहकर दुनिया के लायक बनेगा। एक तरह से पिता का सोचा हुआ ही साकार हो रहा था।
बेटे को इस बात की भी खुशी थी कि एक ठंडे देश में जाकर रहना-पढ़ना होगा। उन दिनों गरमी की छुट्टियां चल रही थीं। उस अलीगढ़ में कॉलेज बंद हो गया था, जहां बहुत गरमी थी। पेशावरी इलाके से अलग माहौल उसे बेचैन कर देता था। यह खुशी थी कि अब मंजिल अलीगढ़ नहीं, इंग्लैंड है। स्कूल में पढ़ाने वाले अंग्रेज शिक्षक रेवेरेंड विगरैम के भी आनंद का ठिकाना न था। आर्थिक रूप से सक्षम पिता बहराम खान कितनी खुशी से बेटे को लंदन भेज रहे थे, इसका पता इसी से चलता है कि जिस जमाने में दस ग्राम सोना 20 रुपये का भी नहीं था, तब पिता ने बेटे को 3,000 रुपये थमा दिए थे। अब न धन की कमी थी और न लंदन पहुंचकर ठौर-कौर की चिंता। देखते-देखते वह दिन भी आ गया, जब लंदन के लिए निकलना था। पूरा बिस्तर-सामान बंध चुका था। चंद मिनटों में घर से रवानगी थी। छह फुट से भी लंबा हो चला नौजवान बेटा लंबे-लंबे डग भरता मां के पास पहुंचा कि चलते-चलते आशीर्वाद ले लिया जाए।
झुककर अभिवादन करते हुए बेटे ने कहा, ‘मां, अब मैं चलूं’।
मां कुछ नहीं बोली। बेटे ने हाथ बढ़ाया और मां ने बेटे के हाथ को अपनी हथेलियों से घेर लिया। बेटा मां के पास बैठ गया। मां की हथेलियां बेटे की हथेलियों पर कसती गईं। बेटे की हथेलियां इतनी निर्मोही नहीं थीं कि मां की हथेलियों से खुद को छुड़ा लें। वैसे भी ऐसा नाजुक वक्त जब गुजरता है, तब थामने वाली हथेलियां सीधे दिल थामने लगती हैं। मां ने पूरे दिल से थाम लिया था। बेटे के दिल में भी नमी उमड़ने लगी थी, लेकिन वह बही पहले मां की आंखों से। मां के कांपते होंठों से गुहार फूटी, ‘नहीं, तुम नहीं।...मेरी आखिरी औलाद’।
फिर तो आंसू रोके न रुके। वह मां अड़ गई, जो बडे़ बेटे को पहले ही विलायत के हाथों गंवा चुकी थी। वह वहीं निकाह कर घर-बार बसा चुका था। परदेश को लोग इतना अपना क्यों मान लेते हैं कि अपना सगा घर-गांव पराया हो जाता है? बड़ा गया, अब छोटा भी चला जाएगा, तो फिर पीछे साथ कौन रह जाएगा? क्या यही इल्म है, जिसे हासिल करने जाने वाले लौटते नहीं हैं? कोई मां क्या इसलिए अपनी औलाद को अपने साये में पोसती है कि वह बच्चा जब सायादार हो जाए, तो किसी परदेश को फल-छांव दे और देश में बूढ़े मां-बाप सिर पर साये को मोहताज हो जाएं? एक पल को बेटे ने सोचा, क्या वह मां के बिना रह सकता है, और वह भी ऐसी मां, जो हथेलियां थामे जार-जार रो रही है? और ऐसी मां को यूं गंवाकर कौन-सी कमाई करने वह परदेश जा रहा है? यह वही मां है, जिसने खूंखार पठानी लड़ाइयों-झंझावातों से बचाकर सीने से लगाए पाला है।
फिर क्या था, फैसला हो गया। जो मन लंदन जा चुका था, वह मां की गोद में सिमट आया। तय हो गया, कहीं नहीं जाना, यहीं मां की निगहबानी में रहना है। मां की ही सेवा करनी है। अपनी मां, अपनी जमीन, अपना मुल्क, इनका भला क्या विकल्प है? मां ने रोक लिया। 3,000 रुपये पिता को वापस हो गए। भाई को खत चला गया कि अपना देश प्यारा है। फिर अलीगढ़ भी लौटना न हुआ। पढ़ाई छूट गई। वहीं अपने खेतों में पसीना लहलहाने लगा। तब तक जो इल्म हासिल हो चुका था, वह भी कम न था। महज 20 की उम्र में मां के उस दुलारे ने स्कूल खोलकर जननी जन्मभूमि की सेवा शुरू कर दी। पठानों के तमाम इलाकों में एक सेकुलर, सेवाभावी, एकजुट भारत के निर्माण के लिए उन्होंने स्वयंसेवकों का एक संगठन बनाया- खुदाई खिदमतगार। मातृभूमि की इतनी सेवा हुई कि अंग्रेजों को चुभने लगी। गिरफ्तारी के वारंट जारी होने लगे। अंग्रेज खोजने लगे कि कहां हैं वह अब्दुल गफ्फार खान, उर्फ बादशाह खान, उर्फ बच्चा खान? वही, जिन्हें दुनिया आज ‘सरहदी गांधी’ के नाम से जानती है। महात्मा गांधी के परमप्रिय, सत्य-अहिंसा के झंडाबरदार। विभाजन के दुर्भाग्य से पाकिस्तान के हिस्से में चले गए ऐसे पहले स्वजन-विदेशी, जो भारत रत्न हैं।
प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय
शौर्यपथ / भारतीय रिजर्व बैंक ने देश की अर्थव्यवस्था को बल देने के लिए जो ताजा घोषणाएं की हैं, वे कुछ और कदम भर हैं। कोरोना के लॉकडाउन दौर में यह तीसरी बार है, जब भारतीय केंद्रीय बैंक ने अपनी ओर से सुधार के कदम उठाए हैं। विशेष रूप से दो बड़ी घोषणाएं हैं, जिन पर गौर किया जा सकता है। पहली घोषणा यह कि रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में कमी की गई है, ताकि बाजार में नकदी का प्रवाह बने। नकदी का प्रवाह बनने से न केवल ऋण सस्ते या आसान होंगे, बल्कि इससे अर्थव्यवस्था में भी तेजी आएगी। रेपो रेट घटकर अब चार प्रतिशत पर आ गया है, ताकि बैंकों के पास खर्च या निवेश के लिए ज्यादा नकदी उपलब्ध हो। इसके साथ ही रिजर्व बैंक यह भी चाहता है कि बैंकों के पास ज्यादा धन रहे और वे रिजर्व बैंक के पास ब्याज के लिए धन रखने की बजाय उसे बाजार में लगाएं। अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक की यह मंशा स्वागतयोग्य है।
दूसरी घोषणा उन लोगों के लिए खुशखबरी है, जो अभी ऋण वापस करने की स्थिति में नहीं हैं। टर्म लोन पर पहले ही तीन महीने की छूट मिली हुई थी और अब इस छूट को तीन महीने और बढ़ाकर एक बड़ी आबादी को राहत देने की कोशिश हुई है। ज्यादातर तरह के ऋण लेने वालों को अब अगस्त महीने तक कोई भी ऋण चुकाने से राहत मिलेगी। यदि किसी ने गृह ऋण, वाहन ऋण, कॉरपोरेट, कारोबारी, क्रेडिट कार्ड ऋण ले रखा है और ईएमआई नहीं चुका पा रहा, तो बैंक अपने आप आपके ऋण को मोरेटोरियम में भेज देंगे। हालांकि बेहतर सलाह यह है कि आप बैंक को स्वयं मोरेटोरियम के लिए आवेदन कर दें, ताकि आपको अगस्त के महीने तक ईएमआई का दबाव न झेलना पडे़। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि लॉकडाउन के कारण ज्यादातर कामकाज बंद हैं, और बड़ी संख्या में लोगों की आय प्रभावित हुई है। मोरेटोरियम से उन्हें यह तो फायदा है कि कर्जदाता बैंक उन्हें अभी परेशान नहीं करेंगे, अलग से कोई पेनाल्टी नहीं लगाएंगे, लेकिन इस अवधि का ब्याज तो बैंक जरूर जोड़ेंगे। अब आशंका यह है कि ऋण चुकाने की अवधि भी बढे़गी और र्ईएमआई भी। ऐसे में, लोग मोरेटोरियम को किसी बड़ी राहत के रूप में नहीं देख रहे हैं। यह तात्कालिक राहत है और इससे दूरगामी परेशानियां बढ़ सकती हैं।
आज के हालात में लोगों को बैंकों पर बहुत भरोसा नहीं है और बैंक भी लोगों के प्रति यथोचित उदार नहीं हैं। इस अविश्वास के कारण ही ऋण के लेन-देन का बाजार लगातार मंदा चल रहा है। रिजर्व बैंक जो प्रयास कर रहा है, वह आम दिनों के लिए तो ठीक है, लेकिन जिस तरह की आपातकालीन स्थिति से देश गुजर रहा है, उसमें लोगों को रिजर्व बैंक से बड़ी राहत की उम्मीद है। ऋण के बोझ से दबे लोगों के मन में यह सवाल हैै कि सरकार या रिजर्व बैंक ने हमारे लिए क्या किया है? लॉकडाउन के दौर में अर्थव्यवस्था को बल देने की दिशा में रिजर्व बैंक की यह तीसरी घोषणा अच्छी तो है, लेकिन जरूरतमंद लोगों की उम्मीद से कम है। इसीलिए रिजर्व बैंक की घोषणा के बावजूद शुक्रवार को शेयर बाजार गिरकर बंद हुए। यहां तक कि विभिन्न बैंकों के शेयरों ने भी अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। जाहिर है, आने वाले दिनों में सभी को और बेहतर राहत की उम्मीद है।
शौर्यपथ / केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन का विश्व स्वास्थ्य संगठन का कार्यकारी बोर्ड का अध्यक्ष चुना जाना भारत के लिए गौरव की बात है। हम उनके पोलियो उन्मूलन अभियान के साक्षी हैं कि किस प्रकार सीमित संसाधनों के साथ हम इस बीमारी पर काबू पाने में सफल रहे। कोविड-19 पर भी हम विजय पाएंगे, ऐसा हमें विश्वास है, क्योंकि स्वास्थ्य मंत्री के एक आह्वान पर देश पर्सनल प्रोटेक्शन किट व मास्क बनाने में मात्र दो माह में आत्मनिर्भर बन चुका है। इन कार्यों में हम इसलिए सफल रहे, क्योंकि प्रभावशाली नेतृत्व और आम जनमानस को आपस में जोड़ा गया। अब पूरे विश्व को हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और हर्षवर्धन के अनुभव का फायदा मिलेगा।
लोकल के लिए वोकल
कोरोना संकट के कारण देश में आई आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए हमें लोकल के लिए वोकल होना ही पड़ेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने भाषण में स्थानीय उत्पादों के प्रति देश को प्रोत्साहित किया था। आज देश में तमाम विदेशी कंपनियों का राज है, और यदि हम विदेशी पर निर्भर न होकर स्वदेशी अपनाएंगे, तो यह आत्मनिर्भरता की ओर एक अहम कदम होगा। हम लोकल पर गर्व करेंगे, तो वे देश ही नहीं, बल्कि विदेश में एक ग्लोबल प्रोडक्ट बनकर भारत की अर्थव्यवस्था में तेजी लाएंगे, हालांकि उनका निर्माण गुणवत्तापूर्ण होना चाहिए। सरकार ने आत्मनिर्भर भारत के तहत दिए गए राहत पैकेज में इसके लिए अहम फैसले लिए हैं।
अमीर बनाम गरीब
आजादी के इतने वर्षों के बाद भी जो अब तक नहीं बदला, वह है हमारी हुकूमत का रवैया। वह आम आदमी की खैरख्वाह होने का दम तो भरती है, परंतु जब मजदूरों-किसानों पर कोरोना की वजह से मुसीबत आई, तो सरकार ने उनके अनुसार फैसले लिए, जो अपने घर में सुरक्षित बैठे थे। जब लॉकडाउन के कारण ये गरीब दो जून की रोटी के लिए भी दूसरों पर आश्रित हो गए, तब लोगों ने उन्हें खाना तो दिया, लेकिन उनकी तस्वीर भी दुनिया को दिखाई, मानो वे भिखारी हों। सबने सोचा कि सिर्फ दो वक्त की रोटी ही उनकी जिंदगी है। कब तक सरकार यह नहीं मानेगी कि उनका भी स्वाभिमान है, घर है, बच्चे हैं। आज हजारों मजदूर घर जाने की जद्दोजहद में पैदल ही हजारों किलोमीटर की यात्रा कर रहे हैं, पुलिस की मार खा रहे हैं, लेकिन सरकार को यह सब दिखाई नहीं देता। साफ है, जनता की होने का दावा करने वाली सरकार सिर्फ अमीरों की है। आमजन तो उसके लिए वोट बैंक हैं, जिनकी याद उसे सिर्फ चुनाव में आती है। सरकार तब तक यह सब करती रहेगी, जब तक गरीब खुद नहीं जाग जाएगा।
अमेरिका की दादागिरी
अंगे्रजी में एक कहावत है ‘माई वे ऑर द हाईवे’। इसका अर्थ है, तुम मेरी तरफ हो या कहीं के नहीं हो। इस समय अमेरिका और उसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप यही कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन पर दबाव बनाकर उसे कोरोना वायरस के जन्मदाता का नाम उजागर करने संबंधी जांच कराने के लिए बाध्य किया जा रहा है, जबकि इस समय महामारी उफान पर है। अभी सबको मिलकर कोरोना से लड़ना चाहिए, पर कुछ देश आपस में लड़ रहे हैं। ट्रंप डब्ल्यूएचओ को पैसा देने से मना कर रहे हैं और संस्था छोड़ने की भी धमकी दे रहे हैं। पूर्व में भी राष्ट्रपति ट्रंप जलवायु परिवर्तन संबंधी समझौते से बाहर निकल चुके हैं। विज्ञान की खोज शायद उनके लिए मायने नहीं रखती। ऐसे में, अगर अगला चुनाव वह जीतते हैं, तो संयुक्त राष्ट्र को अपना मुख्यालय भी संभवत: न्यूयॉर्क से बाहर ले जाना पड़ेगा।
जंग बहादुर सिंह
ओपिनियन / शौर्यपथ / कुरान में जिन दो त्योहारों का जिक्र है, उनमें ईद-उल-फितर एक है। दूसरा त्योहार करीब दो महीने के बाद मनाया जाने वाला ईद-अल-अजहा है। ईद एक महीने के रोजे के बाद मनाई जाने वाली खुशी है। रोजे सिर्फ रमजान के फर्ज हैं। इस एक महीने में अल्लाह के संदेशों को जीवन में उतारने का अभ्यास किया जाता है। इससे हमें गरीबों की भूख का अंदाजा होता है। इसमें ईबादत की रवायत है, जिससे हमें सारे जहां के मालिक के अस्तित्व का एहसास होता है और जीवन को लेकर अनुशासन पैदा होता है। रोजे में ऐसा कोई काम नहीं किया जाता, जो अल्लाह को पसंद न हो। वैसे, अन्य धर्मों में भी रोजे का जिक्र है।
हालांकि, ईद की खुशी मनाने का यह मतलब नहीं है कि गरीबों को हम भूल जाएं। इस दिन बडे़-बुजुर्गों को याद रखें। अपने पड़ोसियों को घर बुलाएं। जरूरी नहीं है कि वे पड़ोसी अपने मजहब के ही हों। पड़ोसी का अर्थ हर उस व्यक्ति से है, जो रोजेदार के आसपास रहता है। फितरा (दान) इसी की अगली कड़ी है, जो रोजे के लिए ईद की नमाज से पहले दी जाती है। यह वह रकम है, जो संपन्न घरों के लोग आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को देते हैं। मुसलमान जकात के रूप में साल भर की बचत का ढाई फिसदी हिस्सा दान तो करते ही हैं, लेकिन ईद में फितरा का विशेष आग्रह रहता है। इससे उन गरीबों को खासतौर से मदद मिल जाती है, जिनके हालात ऐसे नहीं होते कि वे ईद की खुशियां मना सकें।
जिस तरह रोजे में अल्लाह की मरजी के मुताबिक काम किया जाता है, वही रवायत ईद में आगे बढ़ाई जाती है। ईद की नमाज पढ़कर अल्लाह का शुक्रिया अदा किया जाता है और उसके बाद सामूहिक तौर पर जश्न मनाया जाता है। मसलन, अच्छा खाना बनाया जाता है और उसमें आसपास के लोगों को शरीक किया जाता है। नए कपड़े पहने जाते हैं, तो जरूरतमंदों में नए कपडे़ बांटने की अपेक्षा की जाती है। अगर आर्थिक बदहाली की वजह से कोई ऐसा नहीं कर पाता है, तो दूसरों से यह उम्मीद की जाती है कि वे नए कपडे़ पहनकर उन घरों के बच्चों के सामने न जाएं, जो पैसों की तंगी की वजह से ईद का जश्न नहीं मना पा रहे हैं। इससे उनके अभिभावकों के भीतर मायूसी और कोफ्त पैदा हो सकती है।
इस्लाम के साथ खास बात यह है कि इसकी पैदाइश चौदह-पंद्रह सौ साल पहले हुई है। इसका अर्थ है कि यह नया मजहब है। इसलिए इस पर अमल करने की बात जोर देकर की जाती है। हालांकि, इसका यह अर्थ नहीं है कि दूसरे धर्म को सम्मान न दिया जाए। इसे इस रूप में समझा जा सकता है कि जब किसी किताब का नया संस्करण आता है, तो हम उसे खरीदना पसंद तो करते हैं, मगर नए संस्करण का आधार किताब का पुराना संस्करण ही होता है। कहा जाता है कि अल्लाह ने एक लाख से अधिक पैगंबर धरती पर भेजे। लिहाजा यह मान्यता भी है कि हिंदू धर्म भी आसमानी धर्म हो सकता है और इसमें भी कोई पैगंबर आए होंगे। लिहाजा मुसलमानों को कहा जाता है कि वे किसी भी मजहब के नेतृत्व को बुरा न कहें। मुमकिन है कि हजारों साल पहले ये भी ईश्वर के दूत के रूप में आए हों, लेकिन उनके मानने वालों ने अपने मकसद के लिए उनकी सोच में अपनी मरजी से बदलाव कर दिए हों। मुसलमानों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे सभी मजहब की इज्जत करें, लेकिन अमल अंतिम किताब पर करें। अल्लाह ने इंसान को सोचने की सलाहियत दी है। उसे नहीं भूलना चाहिए कि पैगंबरों के जरिए ईश्वर सिर्फ यही बताना चाहते हैं कि यदि उनके संदेशों पर अमल किया गया, तो इंसान सुख से रहेगा, और यदि इंसान खुश रहेगा, तो समाज और दुनिया में खुशियां फैलेंगी। ऐसे लोगों को जन्नत नसीब होगी।
आज जब कोरोना के रूप में हम एक अभूतपूर्व संकट से गुजर रहे हैं, तब ईद हमें विशेष सावधानी से मनानी होगी। हमें इस दिन अल्लाह के दूसरे बंदों का भी ख्याल रखना होगा। हमें याद रखना चाहिए कि अभी लाखों लोग ऐसे हैं, जिन्हें दो वक्त का खाना भी नहीं मिल पा रहा है। वे सड़कों पर हैं या राहत शिविरों में हैं, और अपने परिजनों के पास नहीं हैं। हमें उनके लिए, या यूं कहें कि दुनिया के तमाम मजलूमों की बेहतरी के लिए अल्लाह से दुआ मांगनी चाहिए। मजहब का फर्क किए बिना अपनी हैसियत के मुताबिक उनकी मदद करनी चाहिए। इस मर्तबा ईद के दिन नए कपडे़ पहनने से बेहतर यह होगा कि किसी बेबस, मजलूम की मदद की जाए, किसी भूखे को खाना खिलाया जाए। ईद की ईबादत हम जरूर करें, लेकिन फिजूल के खर्चों से बचें।
ईद यह भी संदेश देती है कि हम सब एक ही आदम और हव्वा की औलादें हैं। यह सोच हम जितनी जल्दी अपने जीवन में उतार लेंगे, उतना ही बेहतर होगा। यकीन मानिए, जिस दिन हमने ऐसा कर लिया, दुनिया के अधिकतर मसले खत्म हो जाएंगे। लिहाजा, इस बार ईदगाह जाने से बचें। अपने-अपने घर में नमाज पढे़। शासन-प्रशासन की मुश्किलें न बढ़ाएं। यह न भूलें कि हिन्दुस्तान हमारा मादरे-वतन है। रही बात ईद के नमाज की, तो दो महीने के बाद यह मौका हमें अल्लाह ताला फिर अता फरमाएगा। इस वक्त अल्लाह हमारा सख्त इम्तिहान ले रहा है। हमें इसमें खरा उतरना है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
भिलाई / शौर्यपथ / वर्तमान समय में कोविड.19 खतरे को देखते हुए यात्राओं पर प्रतिबंध के साथसाथ सोशल डिस्टेंसिंग के दिशानिर्देशोंका अनुपालन आवश्यक है । आज क्लास रूम प्रशिक्षण का सुचारू संचालन संभव नहीं है, ऐसे परिस्थितियों में सेल स्तर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है ।इस चुनौती को स्वीकार करते हुएए भिलाई इस्पात संयंत्र के मानव संसाधन विकास एचआरडीद्धविभाग द्वारा ऑनलाइन प्रशिक्षण सत्रों की श्रृंखला प्रारम्भ की गई द्यइन ऑनलाइनप्रशिक्षण कार्यक्रमोँ में सेल के विभिन्न संयंत्रों और इकाइयों के प्रतिभागियों ने बढ़.चढ़ कर हिस्सा लिया।
आईडी एक्ट.1947के ऑनलाइन सत्र की सर्वत्र प्रशंसा
आज औद्योगिक संस्थानों सुचारू संचालन के लिए औद्योगिक विवाद अधिनियम.1947 का ज्ञान व जानकारी आवश्यक हो चुका है द्य इस जरुरत को ध्यान में रखते हुएहाल ही मेंऔद्योगिक विवाद अधिनियम.1947परऑनलाइन प्रशिक्षण का आयोजन किया गया द्य सेल वेबेक्स प्लेटफार्म के माध्यम से आयोजित ऑनलाइन सत्र में सेल.बीएसपी के मानव संसाधन विकास विभागकेउप.महाप्रबंधकएश्री अमूल्य प्रियदर्शीद्वारा औद्योगिक विवाद अधिनियम.1947 पर बेहतरीन प्रशिक्षण प्रदान किया गया द्य सेल के प्रबंधन प्रशिक्षण संस्थान ;एमटीआईद्ध द्वारा आयोजित इस सत्र में सेल के विभिन्न संयंत्रों और इकाइयों से 55 प्रतिभागियों ने शिरकत की। सेल.बीएसपी के मानव संसाधन विभाग द्वारा इस तरह का यह पांचवा ऑनलाइन कार्यक्रम था।श्री अमूल्य प्रियदर्शीद्वारा लिए गए इस सत्र की सभी प्रतिभागियों ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की।
डिजिटल प्लेटफार्म से सिखाए लीडरशिपके गुर
इसी क्रम में सातवें ऑनलाइन प्रशिक्षण सत्र का जिसका शीर्षक था ष्लीडरशिप . एट्रीब्युट्स ऑफ एन इमोशनली इंटेलीजेंट लीडरशिप इस सत्र का आयोजन प्लांट के एचआरडीविभाग द्वाराष्गो.टू मीटिंगष्डिजिटल प्लेटफार्म के माध्यम से किया गया। इस ऑनलाइन प्रशिक्षण सत्र में सेल.बीएसपीसहित सेल के अन्य प्लांट्स और यूनिट्स के 23 प्रतिभागियों ने भाग लिया जिसमे आरएमडी और सीएमओ भी शामिल है द्यइस सत्र में बीएसपी के जीएम ;एचआरडीद्धए श्री सौरभ सिन्हाए द्वारा लेक्चर प्रदान किए गया ।
खाना खजाना / शौर्यपथ / रबड़ी तो आपने कई बार खाई होगी, अब रबड़ी में एक्सट्रा न्यूट्रिशन एड करें जिससे कि स्वाद के साथ सेहत के लिए भी यह डिश फायदेमंद हो। आइए, जानते हैं कैसे बनाएं एप्पल रबड़ी-
सामग्री :
3 मध्यम आकार के सेब
1 लीटर दूध
4 टेबल स्पून चीनी
1/4 टी स्पून हरी इलाइची
8-10 बादाम (स्लाइस्ड), हल्का उबला
8-10 पिस्ते (स्लाइस्ड), हल्का उबला
विधि :
एक बड़े बर्तन में दूध डालें और उसमें उबाल आने दें। इसे हल्के हाथ से तब तक चलाती रहें, जब तक दूध आधा न रह जाए। इसके बाद आंच धीमी कर दें और इसमें चीनी डालें। इसे धीमी आंच पर पकाते हुए लगातार चलाते रहें।
सेब को छीलकर कददूकस कर लें। जब दूध की मात्रा और कम हो जाए तो इसमें सेब डालकर अच्छे मिक्स करें। इसे 3 से 4 मिनट के लिए पकाएं। इसमें इलाइची पाउडर, बादाम और पिस्ते डालें। इसे सर्विंग डिश में निकाल लें। सेब के बचे हुए स्लाइस डिश के चारों तरफ लगाएं। इसे गर्म या ठंडा सर्व करें।
लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / कोरोना वायरस से बचाव के लिए घोषित लॉकडाउन लोगों को परिवार और परिजनों के साथ जोड़ने में मददगार साबित हो रहा है। लॉकडाउन में परिवार और प्रियजनों के बीच रहने को लेकर 52 फीसदी लोगों ने खुशी जताई है। हालांकि इस अवधि में कुछ लोगों का अनुभव खराब भी रहा है। 18 फीसदी लोगों ने कहा कि लंबे समय तक परिवार के साथ रहने से तनाव उत्पन्न हुआ है। ये सभी नतीजे जामिया द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आए हैं।
जामिया मिलिया इस्लामिया की राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) इकाई की तरफ से कोरोना वायरस का मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव विषय पर आस-पास के क्षेत्रों में अध्ययन आयोजित किया गया था। कुलपति की अगुवाई में संपन्न हुए इस अध्ययन के तहत जामिया, शाहीनबाग, नूर नगर, अबू फजल, ओखला विहार, बाटला हाउस, जुलैना, तिकोना पार्क, हाजी कॉलोनी, जामिया शिक्षक आवास के निवासियों से ऑनलाइन सवाल पूछ गए थे। इसमें कई वर्ग और श्रेणियों के लोगों को शामिल किया गया था। उनके जवाब के आधार पर रिपोर्ट जारी की है।
दिनचर्या बाधित होने से 28 फीसदी चिंतित-
कोरोना वायरस से बचाव के लिए घोषित लॉकडाउन की वजह से दिनचर्या प्रभावित होने से 28 फीसदी लोग चिंतित हैं। वहीं 19 फीसदी लोग ऐसे हालात में अपने आप को मजबूर महसूस कर रहे हैं। जबकि 13 फीसदी चिंतित और 6 फीसदी लोग इस दौरान उपज रहे नकारात्मक विचारों को लेकर भयभीत हैं।
48 फीसदी ने कहा- कोरोना से डर लगता है-
अध्ययन में लोगों से कोरोना संक्रमण से डर लगने संबंधी सवाल पूछे गए। 48 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें डर लगता है। वहीं 16 फीसदी ने ना में जवाब दिया जबकि 36 फीसदी ने अपने जवाब में अनिश्चितता जताई है।
सेहत /शौर्यपथ / राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की हवा खतरनाक स्तर से छह गुना अधिक जहरीली हो गई है। ऐसे हाल में स्वस्थ व्यक्ति की सेहत पर भी सीधा खतरा है। इससे बचने के लिए हमें अपने शरीर में ऑक्सीकरण रोधी स्तर को बढ़ाना होगा।
हमारी रसोई में ही इसके उपाय छिपे हैं जो शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देंगे, जिससे प्रदूषण के खतरे से लड़ा जा सकता है। शरीर की शक्ति बढ़ाने के लिए नौ पोषक तत्वों का सेवन जरूरी है। जिनमें विटामिन ए, बीटा कारोटीन, विटामिन बी-2, रिबोफ्लेविन, मैग्नीशियम, जिंक, कॉपर, मैग्नीशियम और सेलेनियम शामिल हैं। ये औषधि, फल, सब्जी और मसालों में मिलते हैं।
काली मिर्च : इसमें बहुत प्रभावशाली ऑक्सीकरण रोधी तत्व कैप्सेइसिन होता है जो फेफड़ों की सुरक्षा करता है। प्रदूषण और सिगरेट के धुएं से होने वाले प्रभावों से बचाने में काली मिर्च का सेवन सबसे असरदार है।
अजवायन : प्रदूषित हवा के कारण खांसी और गले में सूजन महसूस हो तो अजवायन की चाय पियें। यह शरीर की अन्य प्रतिरक्षा संबंधी (इम्यून) समस्याओं को खत्म करने कारगर है।
हल्दी : इसे घी के साथ मिलकर खाने से खांसी और अस्थमा में राहत मिलेगी। हल्दी का सेवन कैंसर का खतरा कम करता है। शोध में पाया गया है कि इसमें पाया जाने वाला करक्यूमिन एंटीऑक्सीडेंट जानवरों में कैंसर का खत्मा करने में सक्षम है।
गुड़ : इस समय हर कोई जुकाम और बलगम से परेशान है। इससे राहत के लिए सोने से पहले हरद और गुड़ का सेवन करें तो बलगम घट जाएगा।
रोजमेरी : इसे गुलमेंहदी भी कहते हैं जो भूमध्यसागरीय क्षेत्र में उगने वाला पौधा है। आमतौर पर यह घरों में औषधि की तरह प्रयोग होता है। इस ऑक्सीकरण रोधी पौधे का अर्क पीना फायदेमंद होगा।
जहरीले तत्वों का असर रोकेगा इनका सेवन : इस बेहद संवेदशनशील समय में अगर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए नींबू के पत्तों की चाय, ग्रीन चाय, चुकंदर, नीम, पपीता के पत्ते, आंवला, एलोवेरा, गिलोय, आश्वगंघा, गेहूं की घास, सहजन का सेवन प्रदूषण के जहरीले तत्वों का शरीर पर असर घटाएगा।
देशी घी बढ़ाएगा प्रतिरोधक क्षमता-
देशी घी के अलावा सरसों, नारियल, तिल और जैतून का तेल जैसे वसा खाने से शरीर खतरनाक तत्वों से लड़ने के लिए मजबूत होगा।
भाप लेने से खत्म होगी श्वसन में परेशानी-
इस समय सांस लेने में खासी दिक्कत महसूस होती है, इससे निपटने के लिए भाप लेना फायदेमंद होगा। यह श्वास लेने के तंत्र में नमी आएगी और खून के जमाव की समस्या खत्म होगी। इसके अलावा क्षारीय जल पीने से भी फायदा मिलेगा। ऐसे समय में सेहत सही रखने के लिए कम प्रदूषित स्थान पर ही व्यायाम करें और तनाव घटाने के लिए योग व ध्यान लगाएं।
नोट-
अदरक, दालचीनी, मुलैठी और अन्य औषधीय तत्व प्रदूषण से लड़ने में बेहद सहायक हैं। अगर इन तत्वों से बना काढ़ा या चाय इस सर्दी के मौसम में ली जाए तो आपकी प्रतिरोधी क्षमता बढ़ेगी। घर से बाहर निकलते समय मुंह में लौंग रखना भी बेहतर है। साथ ही गरम पानी ही पिया जाए तो अच्छा है।
लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / मुंह की बदबू एक आम समस्या है। आमतौर पर कहा जाता है कि दांत या मुंह की ठीक से सफाई नहीं करने पर मुंह की बदबू होती है, लेकिन मामला इतना सीधा नहीं है। इसके कई ऐसे कारण हो सकते हैं, जिनके बारे में मरीज ने सोचा भी नहीं होगा। मुंह की बदबू लंबे समय तक बनी रहे तो इसे हेलिटोसिस बीमारी कहा जाता है। इसका इलाज जरूरी है, अन्यथा गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
कि मुंह की बदबू के लक्षण हैं - गले में छाले होना, नाक बहना, लगातार खांसी बनी रहना और बुखार आना। मुंह की बदबू के कारण दांत गिर सकते हैं। मसूड़ों में दर्द हो सकता है और खून निकल सकता है। मुंह की दुर्गंध के कई कारण हो सकते हैं। कुछ मौखिक यानी मुंह से जुड़े कारण हैं तो कुछ मुंह से सीधे तौर पर संबंधित नहीं हैं। मुंह या दांतों की साफ-सफाई नहीं होने के अलावा मुंह में घाव, संक्रमण से पस पड़ना बदबू के अहम कारण हैं। मुंह का कैंसर भी बदबू का कारण बनता है। गैर-मौखिक कारणों में कई गंभीर बीमारियां शामिल हैं जैसे- डायबिटीज, फेफडों या किडनी की बीमारी।
मुंह की बदबू दूर करने के आयुर्वेदिक तरीके
मुंह की बदबू से बचना है तो सबसे पहले मुंह और दांतों की अच्छी तरह सफाई जरूर करें। यह काम सुबह और रात में किया जा सकता है। अच्छी क्वालिटी का टूथब्रश और पेस्ट इस्तेमाल करें। टंग क्लीनर से जीभ भी अच्छी तरह साफ करें। आमतौर पर जीभ के ऊपर जमी परत बदबू का कारण बनती है।
आयुर्वेद के मुताबिक, पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं। पानी पीते रहने से मुंह साफ होता रहता है। दांतों में फंसा खाना निकल जाता है, जो बदबू का सबसे बड़ा कारण होता है। वहीं इस बीमारी से निपटने में ग्रीन टी भी फायदेमंद होती है। ग्रीन में मौजूद एंटीबैक्टीरियल कम्पोनेंट से दुर्गंध दूर होती है। माउथफ्रेशनर के रूप में सूखे धनिये का इस्तेमाल करें। लौंग और सौंफ का उपयोग भी किया जा सकता है। तुलसी की पत्तियां चबाना मुंह की दुर्गंध भगाने का सबसे कारगर तरीका है। सुबह और शाम तुलसी के तीन-चार पत्ते रोज चबाएं। इसी तर्ज पर अमरूद के पत्ते भी चबाए जाते हैं। इससे तत्काल फायदा मिलता है।
मुंह की बदबू दूर करने का एक और तरीका सरसों के तेल और नमक की मालिश है। हथेली में थोड़ा सरसों का तेल लें और एक चुटकी नमक मिलाएं। इस मिश्रण से मसूड़ों पर मालिश करें। न केवल मसूड़े मजबूत होंगे, बल्कि मुंह की बदबू भी चली जाएगी। आयुर्वेद के अनुसार, अनार की छाल भी इसका इलाज है। छाल को पानी में उबाल लें और रोज इससे कुल्ला करें।
जो लोग नकली दांत का उपयोग करते हैं, वे इनकी सफाई का अच्छी तरह ख्याल रखें। शराब और तंबाकू का सेवन न करें। जो लोग तंबाकू खाते हैं, उनके मुंह से लगातार बदबू आती रहती है। खाने में प्याज और लहसुन के उपयोग से बचें। उपरोक्त सावधानियां बरतने और घरेलू इलाज करने के बाद भी बदबू बनी रहती है तो डॉक्टर से सम्पर्क करें।
धर्म संसार / शौर्यपथ / हिंदू धर्म में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए कई व्रत रखती हैं। ऐसे ही व्रतों में से एक है वट सावित्रि व्रत। विवाहित महिलाएं इस दिन अपने सुहाग के दीर्घायु होने के लिए व्रत-उपासना करती हैं। यह व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो स्त्री उस व्रत को सच्ची निष्ठा से रखती है उसे न सिर्फ पुण्य की प्राप्ति होती है बल्कि उसके पति पर आई सभी परेशानियां भी दूर हो जाती हैं।
वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त-
अमावस्या तिथि प्रारम्भ – मई 21, 2020 को रात 09:35 बजे
अमावस्या तिथि समाप्त – मई 22, 2020 को रात 11:08 बजे
वट सावित्री व्रत का महत्व-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सावित्री अपने पति के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर ले आई थी। अतः इस व्रत का महिलाओं के बीच विशेष महत्व बताया जाता है। इस दिन वट (बड़, बरगद) का पूजन होता है। इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं।
वट सावित्री व्रत पूजा विधि-
-इस दिन प्रातःकाल घर की सफाई कर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें।
- इसके बाद पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें।
-बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें।
- ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।
- इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें।
- इसके बाद ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें।
- अब सावित्री और सत्यवान की पूजा करते हुए बड़ की जड़ में पानी दें।
-पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।
-जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करें।
-बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें।
-भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर अपनी सास के पैर छूकर उनका आशीष प्राप्त करें।
-यदि सास वहां न हो तो बायना बनाकर उन तक पहुंचाएं।
-पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें।
-इस व्रत में सावित्री-सत्यवान की पुण्य कथा का श्रवण करना न भूलें। यह कथा पूजा करते समय दूसरों को भी सुनाएं।
खेल / शौर्यपथ / भारतीय ऑलराउंडर हार्दिक पांड्या ने काफी कम वक्त में क्रिकेट जगत में अपना प्रभाव छोड़ा है। उन्होंने 2016 में न्यूजीलैंड के खिलाफ वनडे इंटरनेशनल में डेब्यू किया था। इसके बाद उन्होंने लगातार अपने ऑलराउंड परफॉर्मेंस से इंप्रेस किया और टीम इंडिया का जरूरी हिस्सा बन गए। भारतीय कप्तान विराट कोहली ने कई मौकों पर कहा भी है कि टीम को बैलेंस करने लिए हार्दिक पांड्या कितने जरूरी हैं। हार्दिक पांड्या ने जब इंटरनेशनल क्रिकेट में कदम रखा तब वह 228 नंबर वाली जर्सी पहना करते थे। उनके जर्सी नंबर ने सबका ध्यान खींचा था, लेकिन कुछ वक्त बाद उन्होंने अपनी जर्सी का नंबर बदल कर 33 कर लिया। क्या आप जानते हैं कि पांड्या जर्सी नंबर 228 क्यों पहनते थे? अब इस राज से पर्दा उठ चुका है।
दरअसल, हाल ही में आईसीसी ने हार्दिक पांड्या की जर्सी नंबर 228 की तस्वीर शेयर करते हुए फैन्स से इस बारे में पूछा। आईसीसी ने ऑलराउंडर की जर्सी की फोटो ट्वीट करते हुए पूछा, 'क्या आप बता सकते हैं कि हार्दिक पांड्या जर्सी नंबर 228 क्यों पहनते थे?'
आईसीसी के इस सवाल पर कुछ फैन्स ने इस राज से पर्दा उठाया और बताया कि हार्दिक क्यों इस नंबर वाली जर्सी पहना करते थे। फैन्स ने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा, ''अंडर-16 के दौरान हार्दिक बड़ौदा के लिए खेलते थे। वह अंडर-16 में बड़ौदा के कप्तान थे और टीम के कप्तान रहते हुए उन्होंने शानदार दोहरा शतक जड़ा था। इस दौरान उन्होंने 391 गेंदों में शानदार 228 रन की पारी खेली थी। हार्दिक ने यह पारी 2009 में आठ घंटे में मुंबई अंडर-16 के खिलाफ रिलायंस क्रिकेट स्टेडियम में खेली थी।''
अंडर-16 में खेलते हुए जड़ा यह दोहरा शतक उनके पूरे करियर का इकलौता दोहरा शतक है। 2009 में खेले गए इस मैच में एक समय बड़ौदा ने महज 60 रनों पर चार विकेट गंवा दिए थे। इसके बाद हार्दिक पांड्या मैदान पर उतरे और दोहरा शतक जड़कर स्टार बन गए थे। हार्दिक ने उस मैच में पहली पारी में मुंबई के 5 बल्लेबाजों को भी आउट किया था।
शौर्यपथ / मनोरंजन / शौर्यपथ /‘ससुराल सिमर का’ एक्टर आशीष रॉय अस्पताल में भर्ती हैं। हाल ही में उन्होंने फेसबुक के जरिए लोगों को जानकारी दी थी कि वह आईसीयू में हैं और इलाज कराने के लिए उन्हें पैसों की जरूरत है। अब आशीष ने हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करने की अपील की है। उनका कहना है कि पैसे नहीं बचे हैं और वह अब बिल नहीं भर पाएंगे।
टाइम्स ऑफ इंडिया को इंटरव्यू देते हुए आशीष ने बताया कि मैं पहले से ही पैसे की तंगी देख रहा हूं। मेरी हालत लॉकडाउन की वजह से ज्यादा खराब हुई है। दो लाख की सेविंग थी, जो कि मैंने दो दिन के हॉस्पिटल बिल भरने में इस्तेमाल कर लिए। पहले मुझे कोविड-19 हुआ, जिसमें 11 हजार लगे और बाकी की दवाइयां अलग। 90 हजार रुपये एक बार के डायलेसिस में लगते हैं। मेरे ट्रीटमेंट के लिए चार लाख की जरूरत है, लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं। इसलिए मैं अब घर जाना चाहता हूं। मैं इस ट्रीटमेंट को अफॉर्ड नहीं कर सकता। मेरी कुछ लोग मदद कर रहे हैं जिससे मैं हॉस्पिटल का बकाया भरकर डिस्चार्ज हो सकूं। मैं अब यहां नहीं रुक सकता फिर कल चाहे मुझे मरना ही क्यों न पड़े।
आशीष के को-स्टार सूरज थापर का कहना है कि आशीष अपने दो बीएचके फ्लैट को बेचने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन लॉकडाउन के चलते वह भी जल्दी होना नामुमकिन है।
आशीष ने इससे पहले बताया था कि 18 मई से मैं हॉस्पिटल में भर्ती हूं। हालत काफी गंभीर है। दो दिन में दो लाख रुपये का बिल आ चुका है। और आगे वह इलाज नहीं करा पाएंगे क्योंकि उनके पास पैसे नहीं बचे हैं।
आशीष आगे कहते हैं कि मेरे पास पैसे नहीं है। दो लाख थे वह मैंने हॉस्पिटल में दे दिए क्योंकि दो दिन का बिल इतना बनाकर दिया था। अब एक रुपए भी नहीं बचा है। कई लोग मदद के लिए आगे आ रहे हैं। वह फोन कर रहे हैं और पूछ रहे हैं। देखते हैं आगे क्या होता है। वायरस के चलते मुझे एक अलग वॉर्ड में रखा गया है। जो कि काफी महंगा है। मेरा डायलेसिस होता है। और चार घंटे तक चलता है। दवाइयां और इंजेक्शन भी काफी महंगे हैं।
बता दें कि इस साल के शुरुआत में भी आशीष बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती हुए थे। उनके शरीर में करीब 9 लीटर पानी जमा हो गया था। डॉक्टर्स ने कड़ी मशक्कत के बाद उनके शरीर से पानी निकाला था। गौरतलब है कि आशीष ने 'ससुराल सिमर का', 'बनेगी अपनी बात', 'ब्योमकेश बख्शी', 'यस बॉस', 'बा बहू और बेबी', 'मेरे अंगने में', 'कुछ रंग प्यार के ऐसे भी' और 'आरंभ' जैसे कई टीवी शोज में काम किया है।
शौर्यपथ / मानव जाति के इतिहास में छठी शताब्दी में जस्टिनियन प्लेग से लेकर 1918 में स्पेनिश फ्लू तक कई महामारियां देखी गई हैं। 21वीं सदी में खासकर तीन कोरोना वायरस प्रकोप देखे गए हैं। मर्स, सार्स के बाद हम कोविड-19 का प्रकोप देख रहे हैं। चिकित्सा विज्ञान की तरक्की के बावजूद यह अनुमान लगाना नामुमकिन है कि अगली संक्रामक बीमारी का प्रकोप कब होगा, इसलिए हमें पूरी तरह सचेत रहने की जरूरत है।
संक्रमण के कुल मामलों में जब भारत चीन को पार कर चुका है, तब दोनों की तुलना दिलचस्प होगी। मध्य मार्च के बाद से भारत में जहां संक्रमण के मामलों में क्रमिक वृद्धि देखी गई, वहीं चीन में जनवरी-फरवरी में ही बहुत तेजी देखी गई थी। वहां का प्रशासन मजबूर हो गया था और भारत से करीब दो महीने पहले 23 जनवरी को ही वुहान में सख्त लॉकडाउन लागू हो गया था। वहां 70 दिन चले लॉकडाउन से संक्रमण काबू में आया और अब स्थिर है। चीन जैसी ही तेज बढ़त अमेरिका और यूरोप में देखी गई, इस मामले में भारत कुछ अलग है।
गौरतलब है, भारत में चीन की तुलना में 45 प्रतिशत कम मौतें हुई हैं, हालांकि कुल संक्रमित लोगों में सक्रिय संक्रमित 60 प्रतिशत से ज्यादा रहे हैं, जबकि चीन में सक्रिय संक्रमितों की संख्या शून्य के करीब पहुंच गई है। भारत में 38 प्रतिशत लोग स्वस्थ हो रहे हैं। ठीक होने वालों की संख्या भारत में ज्यादा है। वैसे अभी भी भारत में जर्मनी, स्पेन और इटली इत्यादि हॉटस्पॉट बने देशों की तुलना में ठीक होने की दर कम है।
इसके अलावा, यह बीमारी चीन में मुख्य रूप से हुबेई प्रांत में सीमित थी और वहां भी विशेष रूप से वुहान में, जबकि भारत में चार राज्यों- महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात और दिल्ली में संक्रमण के ज्यादा मामले देखे जा रहे हैं। इन चार राज्यों में भारत के कुल दो-तिहाई मामले मिले हैं। कुल मिलाकर, भारत में ठीक होने की उच्च दर इशारा करती है कि कोरोना के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास यहां कारगर रहा है। आज अहम सवाल यह है कि जो लोग सार्स और कोविड-19 के संक्रमण को हरा सकते हैं, क्या वे भावी वायरस हमलों को भी धता बता पाएंगे? जब हम इसका जवाब खोजेंगे, तब हमें कोविड-19 की वैक्सीन खोजने में मदद मिलेगी।
हमारे शरीर में दो चीजें हैं, एचएलए सिस्टम और केआईआर जींस, दोनों ही कोरोना बीमारी के माइक्रोब्स के खिलाफ रोग प्रतिरोध की दीवार खड़ी कर रही हैं। एचआईवी सहित अन्य संक्रामक रोगों और स्वत:रोग प्रतिरोधी क्षमता के संबंध में एचएलए और केआईआर की जेनेटिक प्रवृत्ति के पर्याप्त डाटा मौजूद हैं। ये दोनों जेनेटिक सिस्टम शरीर के दो रोग-प्रतिरोधी योद्धाओं को चलाते हैं- एक, साइटोक्सिक टी-सेल्स और दूसरा, नेचुरल किलर सेल्स, ये दोनों ही मिलकर वायरस को निशाना बनाते हैं और ठिकाने लगाने में मदद करते हैं। इनका गहन अध्ययन जरूरी है, ताकि कोविड-19 की जांच के कारगर उपकरण बनाए जा सकें। इससे अलग-अलग लोगों में अलग-अलग उपचार रणनीति बनाने में भी मदद मिलेगी। संक्रमित लोगों में एचएलए विविधता की पहचान करने से संक्रमण की गंभीरता का अनुमान लगाने में मदद मिल सकती है और यह तय किया जा सकता है कि आखिरकार टीके से किसको फायदा होगा। भारतीय संदर्भ में वैज्ञानिकों को दो अहम अवलोकनों के जवाब खोजने होंगे। पहला, मुख्य रूप से स्पर्श से हो रही बीमारी के क्लिनिकल कोर्स को देखना होगा और दूसरा, भारत में अभी तक गंभीर और अति-गंभीर मामलों की सीमित संख्या पर भी गौर करना होगा।
एक सवाल यह भी है कि किसी संक्रामक का कारगर उपचार विकसित करने में कितना समय लगता है? ऐतिहासिक रूप से चेचक और पोलियो का प्रभावी टीका खोजने में हजारों साल लगे हैं। इन दिनों विश्व वैज्ञानिक समुदाय ने जिस एकजुटता के साथ कोरोना वायरस को हराने के विलक्षण कार्य में ज्ञान और जानकारी साझा की है, यह वास्तव में अभूतपूर्व है। अकेले विज्ञान ही भविष्य में स्वास्थ्य रक्षकों को अपनी पूरी क्षमता से काम करने, भविष्य के संक्रामकों को रोकने और उनका इलाज करने के लिए जीवन रक्षक उपकरण बनाने के लिए प्रेरित कर सकता है। बेशक, वैश्विक आपात स्थितियों से निपटने के लिए नई प्रौद्योगिकियों की तत्काल जरूरत है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
शौर्यपथ / समुद्री तूफान से हुआ नुकसान जितना दुखद है, उतना ही चिंताजनक भी। दुख इसलिए कि भारतीय राज्यों- पश्चिम बंगाल और ओडिशा सहित बांग्लादेश में न केवल 25 से ज्यादा लोग मारे गए हैं, वहां जो माली नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई में कुछ वर्ष लग जाएंगे। कोरोना की वजह से आर्थिक परेशानी झेल रही एक विशाल आबादी ने अम्फान को अपने सीने पर झेला है। इस पूरी आबादी के साथ-साथ उसे पहुंचे पूरे नुकसान का अनुमान लगाना जरूरी है। पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों को दोहरी मदद की जरूरत पड़ेगी और इसके लिए केंद्र सरकार को कमर कस लेनी चाहिए। तूफान और तेज बारिश से मची तबाही की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उस समय अपने दफ्तर में मौजूद थीं और उन्हें ‘सर्वनाश’ व ‘तांडव’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना पड़ा। मुख्यमंत्री के ऐसे उद्गार से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल में कुछ पीढ़ियां ऐसी हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी में ऐसी त्रासदी का सामना पहले कभी नहीं किया। असंख्य गरीबों और आम लोगों के आशियाने तबाह हो गए हैं। उन सभी को हरसंभव मदद और मुआवजे की जरूरत पडे़गी। इतनी बड़ी संख्या में पेड़ गिरे हैं, बिजली के खंभे टूटे हैं, टीन, छप्पर, बैनर, होर्डिंग उड़े हैं कि राज्य सरकारों ने प्रभावित इलाकों में लोगों को घर के अंदर ही रहने को कहा है। केवल तटीय इलाकों में ही नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल और ओडिशा के भीतरी इलाकों में भी अम्फान से मची तबाही का मंजर है।
पश्चिम बंगाल के बुजुर्ग 1970 में आए उस भोला तूफान को याद कर रहे हैं, जिसमें पांच लाख से अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ी थी और 1991 में आए गोर्की तूफान को भी याद किया जा रहा है, जो अपने साथ 1.39 लाख लोगों को ले गया था। शुक्र है, समय पर जारी हुई चेतावनी ने लोगों की जान की रक्षा की और सौभाग्य है, यह तूफान अपनी रफ्तार थोड़ी कम करते हुए तट पर पहुंचा। एक और अच्छी बात है कि यह भारत में पश्चिम या उत्तर की ओर आगे नहीं बढ़ा और इसका दबाव क्षेत्र बांग्लादेश की ओर मुड़ते हुए लगभग प्रभावहीन हो गया।
तूफान से प्रभावित हुए लोगों के प्रति देश में संवेदनाओं का ज्वार स्वाभाविक है, लेकिन हमें इन तूफानों से स्थाई बचाव के बारे में भी सोचना होगा। अव्वल तो तटीय जिलों में छप्पर या कच्चे मकानों पर पाबंदी समय की मांग है। गरीबों के लिए पक्के मकान बनाने की जो योजनाएं हैं, उन्हें तटीय इलाकों में युद्ध स्तर पर चलाना चाहिए। केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकारों के पास भी यह एक मौका है कि वे समुद्री तट से लेकर अंदर 200-300 किलोमीटर तक कच्चे घरों, भवनों, दुकानों को फिर न खड़ा होने दें। हम ऐसे दौर में हैं, जब समुद्री जल का तापमान बढ़ रहा है और हर दो या तीन वर्ष में एक बडे़ तूफान की आशंका बनेगी। ऐसे में, यह जरूरी है कि गरीबों और जरूरतमंदों तक पक्की या स्थाई सहायता पहुंचे, उन्हें फिर विस्थापित न होना पड़े। ऐसे निर्माणों, बिजली के खंभों और पेड़ों पर भी निगाह रखनी पडे़गी, जो ऐसे तूफानों के समय तबाही का सामान बनते हैं। दिल्ली, कोलकाता से सुदूर इन इलाकों तक प्रशासकों, शासकों को पहले की तुलना में और उदार हो जाना चाहिए, तभी वे पीड़ितों की पीड़ा दूर कर पाएंगे।