September 07, 2025
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     ओपिनियन / शौर्यपथ / कोविड-19 ने दुनिया को खासा प्रभावित किया है। इससे लोगों की मौत हो रही है, उनके रोजगार खत्म हो रहे हैं, और रोजमर्रा के जीवन में उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इन तमाम परेशानियों के बावजूद, कोविड-19 के घने अंधियारे में उम्मीद की किरण मौजूद है। यह संकट दरअसल विभिन्न क्षेत्रों में इनोवेशन यानी नवाचार को बढ़ावा दे सकता है, और बिल्कुल नए तरीके से सोचने वाला समाज गढ़ सकता है।
अतीत में भी महामारी ने नवाचार को गति देने का काम किया है और नए विचारों के साथ बदलाव को मुमकिन बनाया है। जैसे, 2002 में चीन और अन्य पूर्वी एशियाई देशों में फैले सार्स ने दुनिया को बदल दिया था। माना जाता है कि सार्स से वैश्विक अर्थव्यवस्था को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ था, क्योंकि आज की तरह ही उन दिनों लोगों ने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था। हालांकि, उस संकट ने उन तमाम राष्ट्रों में इंटरनेट की पहुंच बढ़ा दी, जहां इसका नेटवर्क काफी कम था। ई-कॉमर्स यानी ऑनलाइन खरीदारी को लोकप्रियता मिली, जबकि पहले इसका अस्तित्व ही नहीं था। चीनी ई-कॉमर्स कंपनियां अलीबाबा और जेडी डॉट कॉम ने इसका खूब फायदा उठाया और वे दुनिया की प्रभावशाली कंपनियां बन गईं। इसीलिए, मौजूदा कोविड-19 संकट के दौरान अलीबाबा या जेडी डॉट कॉम से बड़ी किसी भारतीय कंपनी के सृजन का सपना देखना लाजिमी है।
भारत में पिछले एक दशक में इटरनेट और स्मार्टफोन ने गहरी पैठ बनाई है। इससे डिजिटल समाधान और नवाचार बढ़ाए जा सकते हैं। ‘लो टच ऑर कॉन्टैक्टलेस’ यानी ‘कम-स्पर्श या संपर्क-विहीन’ सेवा पहुंचाना अब अर्थव्यवस्था का नया मानक बनता जा रहा है। इसका मतलब है कि अब हर लेन-देन में उन स्थितियों से बचा जाएगा, जहां स्पर्श की गुंजाइश होती है। मसलन, किसी किराना स्टोर में जाने की बजाय लोग ऑनलाइन खरीदारी करना पसंद करेंगे। डॉक्टर भी मरीज को क्लिनिक में बुलाने से बेहतर ऑनलाइन देखना चाहेंगे। आने-जाने से तौबा करके लोग ऑनलाइन ही भेंट-मुलाकात करेंगे। इसीलिए, ‘लो टच’ को केंद्र में रखकर कई तरह के नए इनोवेशन हो सकते हैं। ये लंबे समय तक सामाजिक बदलाव के कारक भी बनेंगे। जैसे, ‘पोस्टमैट्स’ और ‘इंस्टाकार्ट’ जैसे स्टार्टअप कूरियर ब्यॉय और ग्राहक के बीच संपर्क कम करने के लिए ‘कॉन्टैक्टलेस’ डिलीवरी कर रहे हैं।
कोविड-19 महामारी ने सामाजिक और व्यावसायिक नियम बदल दिए हैं। ‘वर्किंग फ्रॉम होम’ यानी घर से काम अब सामान्य बात हो गई है, क्योंकि यह व्यवस्था आर्थिक रूप से किफायती है व कामकाज के लिहाज से लचीली भी। चूंकि अचल संपत्ति की कीमतें आसमान छू रही हैं, इसलिए आजकल बडे़ शहरों में ऑफिस रखना महंगा सौदा साबित हो रहा है। इसके अलावा, फर्नीचर, पार्किंग, साज-सज्जा, परिवहन आदि पर भी कंपनियों को बहुत खर्च करना पड़ता है। लिहाजा, अपने कर्मियों को घर से काम करने की अनुमति देकर कंपनियां इस तरह के खर्च कम कर सकती हैं। महानगरों या बड़े शहरों में एक ही स्थान पर आपसी तालमेल करके दो-तीन कंपनियों को चलाने का चलन लोकप्रिय होने ही लगा है। चूंकि इस व्यवस्था में कम संख्या में लोग आना-जाना करेंगे, इसलिए प्रदूषण भी कम होगा, सार्वजनिक परिवहन पर भार घटेगा और ईंधन जैसे बहुमूल्य राष्ट्रीय संसाधन की बचत होगी।
मौजूदा उथल-पुथल में उद्योग जगत ‘इंडस्ट्री 4.0’ या चौथी औद्योगिक क्रांति की ओर बढ़ने का प्रयास करेंगे। इससे कारोबारी दुनिया में महत्वपूर्ण बदलाव आएंगे। फैक्टरियां ऑटोमेशन अपनाएंगी और रोबोटिक्स का इस्तेमाल ज्यादा होगा। ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स’ बहुत सारे लोगों के रहन-सहन और कामकाज को बदल देगा, क्योंकि घरों और ऑफिस में बौद्धिक उपकरणों पर हमारी निर्भरता बढ़ जाएगी। एक ड्रोन से कई तरह के सामान मुहैया कराए जा सकते हैं।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमता और इंटरनेट ऑफ थिंग्स के इस्तेमाल की काफी ज्यादा संभावनाएं भारत के स्वास्थ्य ढांचे में हैं। सर्जरी में मददगार रोबोटिक्स का इस्तेमाल देश में बढ़ भी रहा है। इंटरनेट ऑफ थिंग्स का उपयोग मरीजों की सेहत का रिकॉर्ड रखने में हो सकता है। यह बीमारी के लक्षण की सटीक सूचना सही वक्त पर दे सकता है। आरोग्य सेतु एप इसका एक उदाहरण है। यह एप फोन के जीपीएस और ब्लूटुथ का इस्तेमाल करके बता सकता है कि आप किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में तो नहीं आए हैं। एक और डिजिटल इनोवेशन सार्वजनिक वितरण प्रणाली में संभव है। बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और एप का इस्तेमाल करते हुए ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ की संकल्पना साकार की जा सकती है।
हमारी शिक्षा प्रणाली में भी प्रौद्योगिकी-आधारित नवाचार की काफी संभावनाएं हैं। विश्वविद्यालयों को सूचना प्रौद्योगिकी के लिहाज से तैयार करने को लेकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने कई तरह के कदम उठाए हैं। केंद्र सरकार ने भी देश में ऑनलाइन शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए ‘ई-विद्या’ कार्यक्रम की घोषणा की है। इसमें अब सबसे बड़ी चुनौती स्कूलों और कॉलेजों में परीक्षा आयोजित करने की है, क्योंकि हमारे यहां परीक्षा में शामिल होने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या काफी ज्यादा है। उत्तर प्रदेश बोर्ड परीक्षा में ही हर साल लाखों परीक्षार्थी बैठते हैं। लिहाजा सार्वजनिक-निजी भागीदारी के रूप में ‘एग्जाम-सेवा’ की शुरुआत की जा सकती है, जिसका मकसद परीक्षाओं का बोझ कम करने के लिए ऑनलाइन मूल्यांकन को हकीकत बनाना हो। टीसीएस द्वारा संचालित ‘पासपोर्ट सेवा’ देश में एक सफल डिजिटल पहल है ही। कोरोना-काल के बाद भी यह प्रयास उपयोगी साबित हो सकता है।
कोरोना वायरस के कहर ने आपूर्ति शृंखला को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया है। अभी प्रौद्योगिकी आधारित एक वैकल्पिक आपूर्ति शृंखला की दरकार है, जो प्रवासी मजदूरों या किसानों की समस्याओं का हल करे। प्रमुख कॉरपोरेट घराने और आईआईएम या आईआईटी का ऐसा कोई संयुक्त संगठन बनाया जा सकता है, जो सरकार के अधीन हो। पुराने जिला उद्योग केंद्र (डीआईसी) को इसकी जिला नोडल एजेंसी का रूप दिया जा सकता है। आधुनिक डीआईसी यह सुनिश्चित करने का काम करेगा कि आपूर्ति शृंखला प्रक्रिया में किसानों की सीधी सहभागिता हो। उम्मीद की जा सकती है कि अलीबाबा, अमेजन या जेडी डॉट कॉम जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का भारतीय संस्करण बनाने में भी यह संगठन कामयाब होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) साभार लेख का नाम दीपक कुमार श्रीवास्तव, प्रोफेसर, आईआईएम, तिरूचिरापल्ली

 

प्रदेश के किसानों को मिलेगी बड़ी राहतरू 5700 करोड़ रूपए की राशि डीबीटी के माध्यम से चार किश्तों में जाएगी किसानों के खातों में
प्रदेश में धान, मक्का और गन्ना (रबी) के 19 लाख किसानों को मिलेगा फायदा
प्रथम किश्त के रूप में 1500 करोड़ रूपए कृषकों के खातों में होगा ऑनलाईन अंतरण
किसानों को खेती किसानी से जोडऩे देश में अपने किस्म की पहली योजना
मुख्यमंत्री बघेल ने योजना के शुभारंभ कार्यक्रम की तैयारियों की समीक्षा की

रायपुर / शौर्यपथ / पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय राजीव गांधी के शहादत दिवस 21 मई के दिन छत्तीसगढ़ सरकार किसानों के लिए न्याय योजना शुरू कर रही है। दिल्ली से श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल गांधी वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए इस योजना के शुभारंभ कार्यक्रम में शामिल होंगे। मुख्यमंत्री बघेल और मंत्रीमण्डल के सदस्यगण मुख्यमंत्री निवास कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम में दोपहर 12 बजे स्वर्गीय राजीव गांधी के तैल चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करेंगे। इसके पश्चात् किसानों को दी जाने वाली 5700 करोड़ रूपए की राशि में से प्रथम किश्त के रूप में 1500 करोड़ रूपए की राशि के कृषकों के खातों में ऑनलाईन अंतरण की जाएगी। कार्यक्रम में जिलों से सांसद, विधायक, अन्य जनप्रतिनिधि, किसान और विभिन्न योजनाओं के हितग्राही भी वीडियो कांफ्रेसिंग से जुड़ेंगे।
मुख्यमंत्री बघेल आज यहां अपने निवास कार्यालय में योजना के शुभारंभ के लिए की जा रही तैयारियों की वरिष्ठ अधिकारियों के साथ समीक्षा भी की। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ देश में पहला ऐसा राज्य है जो किसानों को सीधे तौर पर बैंक खातों में राशि ट्रांसफर कर 5700 करोड़ रूपए की राहत प्रदान कर रहा है। कोरोना संकट के काल में किसानों को छत्तीसगढ़ सरकार राजीव गांधी किसान न्याय योजना के माध्यम से बड़ी राहत प्रदान करने जा रही है। इस योजना का उद्देश्य फसल उत्पादन को प्रोत्साहित करना और किसानों को उनकी उपज का सही दाम दिलाना है।
मुख्यमंत्री बघेल कार्यक्रम के आरंभ में राजीव गांधी किसान न्याय योजना के संबंध में संक्षिप्त उद्बोधन देगें । कार्यक्रम में किसानों को दी जाने वाली 5700 करोड़ रूपए की राशि में से प्रथम किश्त के रूप में 1500 करोड़ रूपए की राशि के कृषकों के खातों में अंतरित की जाएगी। इस अवसर पर जिला मुख्यालयों में उपस्थित योजना के हितग्राहियों के साथ ही महिला स्व-सहायता समूहों के सदस्यों, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और लघु वनोपज के हितग्राही तथा गन्ना और मक्का उत्पादक किसानों से वीडियो कांफ्रेसिंग से जरिए चर्चा भी की जाएगी।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देने तथा कृषि के क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर सृजित करने लिए यह महत्वाकांक्षी योजना लागू की जा रही है। इस योजना से न केवल प्रदेश में फसल उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा बल्कि किसानों को उनकी उपज का सही दाम भी मिलेगा। इस योजना के तहत प्रदेश के 19 लाख किसानों को 5700 करोड़ रूपए की राशि चार किश्तों में सीधे उनके खातों में अंतरित की जाएगी। यह योजना किसानों को खेती-किसानी के लिए प्रोत्साहित करने की देश में अपने तरह की एक बडी योजना है।
     राज्य सरकार इस योजना के जरिए किसानों को खेती किसानी के लिए प्रोत्साहित करने के लिए खरीफ 2019 से धान तथा मक्का लगाने वाले किसानों को सहकारी समिति के माध्यम से उपार्जित मात्रा के आधार पर अधिकतम 10 हजार रूपए प्रति एकड़ की दर से अनुपातिक रूप से आदान सहायता राशि दी जाएगी। इस योजना में धान फसल के लिए 18 लाख 34 हजार 834 किसानो को प्रथम किश्त के रूप में 1500 करोड़ रूपए की राशि प्रदान की जाएगी। योजना से प्रदेश के 9 लाख 53 हजार 706 सीमांत कृषक, 5 लाख 60 हजार 284 लघु कृषक और 3 लाख 20 हजार 844 बड़े किसान लाभान्वित होंगें।
इसी तरह गन्ना फसल के लिए पेराई वर्ष 2019-20 में सहकारी कारखाना द्वारा क्रय किए गए गन्ना की मात्रा के आधार पर एफआरपी राशि 261 रूपए प्रति क्विंटल और प्रोत्साहन एवं आदान सहायता राशि 93.75 रूपए प्रति क्विंटल अर्थात अधिकतम 355 रूपए प्रति क्विंटल की दर से भुगतान किया जाएगा। इसके तहत प्रदेश के 34 हजार 637 किसानों को 73 करोड़ 55 लाख रूपए चार किश्तों में मिलेगा। जिसमें प्रथम किश्त 18.43 करोड़ रूपए की राशि 21 मई को अंतरित की जाएगी।
     छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा इसके साथ ही वर्ष 2018-19 में सहकारी शक्कर कारखानों के माध्यम से खरीदे गए गन्ना की मात्रा के आधार पर 50 रूपए प्रति क्विंटल की दर से प्रोत्साहन राशि (बकाया बोनस) भी प्रदान करने जा रही है। इसके तहत प्रदेश के 24 हजार 414 किसानों को 10 करोड़ 27 लाख रूपए राशि दी जाएगी। राज्य सरकार ने इस योजना के तहत खरीफ 2019 में सहकारी समिति, लैम्पस के माध्यम से उपार्जित मक्का फसल के किसानों को भी लाभ देने का निर्णय लिया है। मक्का फसल के आकड़े लिए जा रहे हैं, जिसके आधार पर आगामी किश्त में उनको भुगतान किया जाएगा।
         इस योजना में राज्य सरकार ने खरीफ 2020 से इसमें धान, मक्का, सोयाबीन, मूंगफली, तिल, अरहर, मूंग, उड़द, कुल्थी, रामतिल, कोदो, कोटकी तथा रबी में गन्ना फसल को शामिल किया है। सरकार ने यह भी कहा है कि अनुदान लेने वाला किसान यदि गत वर्ष धान की फसल लेता है और इस साल धान के स्थान पर योजना में शामिल अन्य फसल लेता हैं तो ऐसी स्थिति में उन्हें प्रति एकड़ अतिरिक्त सहायता दी जायेगी।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा प्रदेश की अर्थव्यवस्था को गतिशील और मजबूत बनाने के लिए लॉकडाउन जैसे संकट के समय में किसानों को फसल बीमा और प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के तहत 900 करोड़ की राशि उनके खातों में अंतरित की गई है। मुख्यमंत्री बघेल के नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा इसके पहले लगभग 18 लाख किसानों का 8800 करोड़ रूपए का कर्ज माफ किया गया है साथ ही कृषि भूमि अर्जन पर चार गुना मुआवजा, सिंचाई कर माफी जैसे कदम उठाकर किसानों को राहत पहुंचाई गई है।

रसोई / शौर्य पथ 

वेज मोमोज
सामग्री :
2 कप मैदा, 1/2 कप पत्ता गोभी किसी हुई, 1/4 कप किसी शिमला मिर्च, 1/2 कप किसा प्याज, अजवायन आवश्यकतानुसार, 1 चम्मच तेल, नमक स्वादानुसार।
विधि :
सबसे पहले मैदा छानकर उसमें थोड़ा सा नमक, तेल और अजवायन डालकर मठरी जैसा आटा गूंथ कर रख दें। अब पत्ता गोभी, प्याज और शिमला मिर्च में नमक और अजवाइन डालें। फिर आटे की छोटी-छोटी लोई लेकर हाथ से चपटी करें। अब इसमें 1 चम्मच तैयार मिश्रण को भरकर चारों ओर से चुन्नटें डालते हुए बंद करें।
इडली के सांचे में पानी रखकर गरम कर लें और इडली पात्र में मोमोज रखकर 15 से 20 मिनट तक धीमी आंच पर भाप में पकाएं। लीजिए झटपट तैयार होने वाला यह स्वादिष्ट व्यंजन घर में सभी को जरूर पसंद आएगा। अब हरी चटनी के साथ मोमोज सर्व करें।
टेस्‍टी पास्‍ता
सामग्री :
250 ग्राम पास्‍ता, 1 बड़ी लहसुन की कली कटी हुई, 2 सूखी लाल मि‍र्च पानी में भि‍गाई हुई, 1 चम्‍मच तेल, 1 रसीला नींबू, 1 कप सब्‍जि‍यों को उबालकर तैयार कि‍या गया पानी या रस।
वि‍धि ‍:
सब्‍जि‍यों के पानी में पास्‍ता को उच्‍छी तरह से उबालकर पका लें। अब पास्‍ते का पानी नि‍कालकर उसे एक बाउल में अलग कर लें।
कड़ाही में धीमी आंच पर तेल गरम करें। इसमें कटी हुई लहसुन और लाल मि‍र्च डालें और हल्‍का गुलाबी होने तक भूनें।
अब इसमें उबला हुआ पास्‍ता डाल दें और अच्‍छी तरह मि‍लाएं। ऊपर से जैतून, नमक व मि‍र्च डालकर गरम परोसें।
बचे चावल के कुरकुरे पकौड़े
सामग्री :
एक कटोरी या उससे अधिक बचे हुए उबले चावल, एक कप बेसन, दो हरी मिर्च बारीक कटी हुई, पाव कप गेहूं का आटा, आधा चम्मच लाल मिर्च पाउडर, आधा चम्मच जीरा, एक चुटकी हींग, पाव चम्मच हल्दी पाउडर, स्वादानुसार नमक, हरा धनिया बारीक कटा हुआ, तलने के लिए तेल।
विधि :
सबसे पहले एक बर्तन में बचे हुए चावल लें और उसमें तेल को छोड़कर सभी सामग्री मिला लें। आवश्यकतानुसार पानी डालकर अच्छे से मिलाएं और चावल को घोल में ही मसल लें तथा पकौड़े का घोल तैयार कर लें।
अब एक कड़ाही में तेल गरम करके तैयार मिश्रण के छोटे-छोटे पकौड़े बनाएं और धीमी आंच पर क्रिस्पी होने तक तल लें। तैयार बचे हुए चावल के क्रिस्पी पकौड़ों को गरमा-गरम ही सॉस और चाय के साथ पेश करें।
स्पाइसी पोटॅटो सैंडविच
सामग्री :
1 पैकेट ब्रेड, 250 ग्राम आलू, 1 प्याज कटा हुआ, 2 हरी मिर्च, 1 चम्मच लाल मिर्च पाउडर, नमक स्वादानुसार, 1 चम्चम सौंफ, थोड़ा-सा हरा धनिया और तेल।
विधि :
आलू का सैंडविच बनाने में एकदम आसान होता है। सबसे पहले आलू को उबाल लें। अब इसमें सभी मसाले, प्याज, हरी मिर्च मिला लें।
इसके बाद ब्रेड स्लाइस के अंदर मसाला भरें और इसे ग्रिल कर लें। अब हरी चटनी या टोमॅटो सॉस के साथ स्पाइसी पोटॅटो सैंडविच पेश करें।

झन्नाट क्रंची पकौड़े

सामग्री :

तीन आलू (बड़े साइज के), आधा-आधा कप चावल का आटा व बेसन, आधा कटोरी लहसुन-मूंगफली की तैयार चटनी, एक चम्मच लाल मिर्च, चुटकी भर हल्दी एवं एक चुटकी हींग, तेल (तलने के लिए), नमक स्वादानुसार।

विधि :

सर्वप्रथम कच्चे आलू को छिल लें और पतले चिप्स में काट कर अलग रख दें। अब चावल का आटा व बेसन लेकर मसाला सामग्री डालकर घोल तैयार करें। ध्यान रहें कि घोल गाढ़ा हो। तत्पश्चात आलू स्लाइस पर दोनों तरफ दाने की लहसुनी चटनी की तह लगाएं और दूसरे आलू चिप्स से ढंक कर तैयार घोल में डुबोएं।

एक कड़ाही में तेल गर्म करके धीमी आंच पर कुरकुरे होने तक तल लें। लहसुनी स्वाद में लाजवाब आलू स्लाइस के चटपटे नमकीन पकौड़े हरी और इमली के चटनी के साथ मेहमानों को पेश करें। चाय के साथ झन्नाट क्रंची पकौड़े का लुत्फ उठाएं।

         सेहत / शौर्यपथ / इस संकट की घड़ी में आपके लोकप्रिय अखबार हिंदुस्तान में हेल्पलाइन सेवा शुरू की गई है। बड़ी संख्या में लोग हेल्पलाइन सेवा का लाभ उठा रहे हैं।मंगलवार को आप आयुर्वेद पद्धति का लाभ उठा सकते हैं। आयुर्वेद विशेषज्ञ टेलीफोन पर दोपहर 12 से 2 बजे तक सलाह देंगे।

हिन्दुस्तान की हेल्पलाइन पर मंगलवार को आयुर्वेद विशेषज्ञों ने लोगों को उनकी बीमारी से जुड़े सवालों के जवाब देकर जिज्ञासा शांत की। साथ ही अपील की कि लोग कोरोना को लेकर डरे नहीं। बिना डर के कोरोना न फैले। इसके लिए पूरा सहयोग करें। खुद को सुरक्षित रखने के साथ परिवारीजनों, परिचितों को सुरक्षित रखें। लॉकडाउन का पूरा पालन करें।
मुझे बीपी की शिकायत है। सिर दर्द हो रहा है, क्या यह बीपी की वजह से है ? -
पहले तो आप जो बीपी बढ़-घट नहीं रहा है तो जो दवा डॉक्टर ने दी, उसे खाते रहें। नमक भोजन में कम कर दें। सुपाच्य भोजन व अन्य पदार्थ खाएं। गुनगुने पानी का सेवन करें। भाप लें।


सर मुझे खांसी, जुकाम, गले व बदन में दर्द, नाक बहने की समस्या है, क्या करें ?
आप 8 से 10 बार गुनगुने पानी में नमक डालकर गरारा करें। गुनगुना पानी पिएं। काली मिर्च, अदरख, तुलसी पत्र एवं पुराने गुड़ को मिलाकर काढ़ा बना लें। उसे जितना गर्म सेवन कर सकते हो, जिससे जुबान-मुंह न जले, दिन में तीन बार 20 से 30 एमएल पिएं। इसके अलावा गिलोयधन वटी दो-दो गोली तीन बार खाएं। इससे प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। ’

मेरे खांसी जुकाम व बदन दर्द है, कोरोना तो नहीं है ? -
यह कोरोना का लक्षण नहीं है। अपने मन से पहले कोरोना वायरस का खौफ निकाल दें। आप कई बार गुनगुने पानी में नमक डालकर गरारा करें। काली मिर्च, अदरक, तुलसी पत्र एवं पुराने गुड़ का काढ़ा बनाकर पिएं। गुनगुना पानी पीती रहें।

हमारे कमर और घुटनों में दर्द हो रहा है। इसके लिए क्या करें? -
आप सहजन की पत्ती को उबालकर, उसी गुनगुने पानी से सिंकाई करें। उसी सहजन के पत्तों को बांध लें, जहां दर्द हो रहा हो। योगराज गुग्गुल की दो-दो गोली सुबह शाम खाएं। अपनी कमर, घुटनों व दर्द वाली जगह पर पंचगुण तेल लगाएं। इससे बहुत आराम मिलेगा।

’ सर मेरे बदन, गले में दर्द व खराश है। क्या करें ? -
आप काढ़ा का सेवन करें। गुनगुने पानी व नमक का गरारा करें। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत रखने के लिए गिलोयधन वटी दो-दो गोली तीन बार खाएं। ’ घर में पड़े-पड़े गैस, कब्ज हो गई है। खाने का भी मन नहीं करता है, क्या करें ? रजनीश, चौक गुनगुना पानी पिएं। घर में खूब टहलें। एक ही जगह पर सिर्फ लेटे या बैठे नहीं रहें। मुलैठी का चूर्ण बना लें। इसे तीन-तीन ग्राम सुबह और शाम को गुनगुने पानी से ही खा लें। अविपत्तिकर चूर्ण तीन बार तीन-तीन ग्राम खाएं। साथ ही आरोग्यवर्धनी वटी की दो-दो गोली सुबह व शाम को खाएं। ’

मेरे डायबिटीज है। बुखार आ रहा है। पेट भी गड़बड़ है, क्या करें ? -
आप सबसे पहले खट्टा और मिर्चे को भोजन में बंद कर दें। बुखार की जो दवा ले रहे हैं, बुखार न आने पर उसे न खाएं। हर्बुलेक्स आयुर्वेदिक दवा ले लें। घर में थोड़ा जरूर टहलें।

इन लक्षणों को पहचानें
- शरीर में तेज दर्द के साथ कमजोरी
- लिवर और किडनी में परेशानी
- सांस में तकलीफ होना
- निमोनिया के लखण दिखना
- पाचन क्रिया में अचानक तकलीफ होना, ऐसा होने पर डॉक्टर से संपर्क करें।

डॉक्टरों की सलाह
दफ्तरों में काम करने वाले लोग घर पर खाली हैं। ऐसे में कोई भी बीमारी होती है तो लोग पहले कोरोना सोचने लगते हैं। मन में वहम है। इसलिए जरूरी है कि घर में टहलें, व्यायाम करें और खुद को इंडोर गेम में व्यस्त करें।-

बुखार, बदन व गले के दर्द को कोरोना से न जोड़ें। एहतियात बरतें। अपनी दिनचर्या में चाय की जगह पर दिन में दो-तीन बार काढ़ा पिएं। हो सके तो गिलोयधन वटी दो-दो गोली तीन बार खाएं। -

 

      सेहत / शौर्यपथ / रुटीन वर्कआउट में स्ट्रेचिंग को शामिल करना बहुत जरूरी है। मांसपेशियों में खिंचाव से जुड़े ये व्यायाम न सिर्फ वॉर्मअप का काम करते हैं, बल्कि इससे मसल की जकड़न दूर होती है और शरीर लचीला बनता है। आज हम आपको तीन स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज के बारे में बता रहे हैं जिनसे शरीर मजबूत होगा और पीठ दर्द में राहत भी मिलेगी।

सीटेड हिप ट्विस्ट-
दायें पैर को बायीं जांघ के ऊपर रखते हुए चटाई पर बैठ जाएं। जब आप श्वास लेंगे तो आपका मेरुदंड तना रहेगा। अब आपको श्वास छोड़ते हुए खुद को बायीं ओर मोड़ना है। दोनों तरफ से इस व्यायाम को पांच-पांच बार करें।

लाभ : इस व्यायाम में जब आप पैर और नितंब को मोड़ते हैं तो शरीर को स्थिर होने का प्रशिक्षण मिलता है। उदर की मांसपेशियां मजबूत होती हैं।

काउ फेस पोज-
जमीन पर दोनों पैरों को एक-दूसरे के ऊपर मोड़कर इस तरह रखें कि एक घुटना दूसरे घुटने के ऊपर आ जाए। अब दायें हाथ को कंघे से ऊपर से पीछे की ओर ले जाएं। अब बायां हाथ मोड़ते हुए कमर की ओर से पीछे ले जाएं। दोनों हाथ पीठ पर एकदूसरे को छूने चाहिए। रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें, अब इस अवस्था में रहते हुए कई मिनट तक गहरी सांस भरें।

लाभ : इसे करने से कूल्हों, टखनों, जांघ, कंधे, कांख, छाती की मांसपेशियों में गहरा खिंचाव होता है। घुटनों के दर्द में राहत मिलती है।

कैट-काउ पोज-
अपने दोनों हाथों और घुटने के बल लेट जाएं। इस अवस्था में कंधे और घुटने नितंब से एकसीध में रहेंगे। अब धीरे से नितंब की हड्डी (टेलबोन) को उठाएं और अपने कंघों को झुकाते निगाह जमीन पर ले जाएं। आपका सिर नीचे झुक जाएंगा, रीढ़ की हड्डी गोलाकार मुद्रा में होगी। इस अवस्था में पेट का तानते हुए नाभि की ओर ध्यान ले जाएं। अब इस व्यायाम को दोहराएं।

लाभ : इस मुद्रा से गर्दन, कंधे और रीढ़ में लचीलापन बढ़ता है। साथ ही मासिक धर्म के दौरान होने वाली ऐंठन, पीठ के निचले हिस्से के दर्द में राहत मिलती है।

 

      सेहत / शौर्यपथ / कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। भारत में भी कोविड-19 के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। लोगों के मन में रोज नए-नए सवाल उठ रहे हैं। यहां हम विश्व स्वास्थ्य संगठन, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और विशेषज्ञों द्वारा दी जा रही कोरोना से जुड़ी जानकारियों को आप तक पहुंचाएंगे।

अपने शरीर को लॉकडाउन के बाद के लिए किस तरह तैयार करें?
जवाब-
हाथ धोना, साफ-सफाई व सामाजिक दूरी का पालन करना ही सर्वोत्तम उपाय है। इसके अलावा भी कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी होगा। इंपीरियल कॉलेज ऑफ लंदन के कार्डियोलॉजिस्ट प्रोफेसर कौशिक रे के अनुसार, अपने ब्लड शुगर की जांच करते रहें। उसे काबू में रखें। बढ़ा हुआ ब्लड शुगर इम्यूनिटी कम करता है। दिल को स्वस्थ रखें। पहले से कोई समस्या है तो दवाएं लेने और रेगुलर चेकअप में लापरवाही न बरतें। तंबाकू और धूम्रपान छोड़ने की कोशिश करें। वजन ज्यादा है तो उसे कम करें। नियमित व्यायाम करें।

क्या हर समय मास्क पहने रखना हानिकारक साबित हो सकता है?
जवाब-
न्यू जर्सी में एक ड्राइवर के एक्सीडेंट का मामला सामने आया है, जिसमें लंबे समय तक एन-95 मास्क पहनने से कन्फ्यूजन, सांस लेने में दिक्कत और चक्कर आने की स्थिति पैदा हुई। फरीदाबाद में एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के डॉ. बुद्धिराजा के अनुसार, यह रेयर मामला है। लंबे समय तक एन-95 मास्क पहनने से ऑक्सीजन की कमी और कार्बनडाईऑक्साइड का स्तर ज्यादा हो सकता है। कपड़े के मास्क इस मायने में सुरक्षित हैं। एन-95 मास्क पहना है, तो शीशे खोल कर कार चलाएं। लगातार कई घंटे इसे न पहनें। अकेले हों तो मास्क कुछदेर उतार दें।

गले और नाक को ठीक रखने के घरेलू उपाय क्या हैं-
जवाब-
कोविड-19 के मद्देनजर आयुष मंत्रालय ने कुछ पारंपरिक आयुर्वेदिक उपायों के बारे में बताया है। नाक को साफ रखने के लिए सुबह-शाम तिल या नारियल का तेल या फिर घी नाक के दोनों छिद्रों में लगाएं। दिन में दो या तीन बार एक चम्मच तिल या नारियल का तेल दो से तीन मिनट तक मुंह में घुमाएं और थूक दें। फिर गर्म पानी से कुल्ला करें। सूखी खांसी या गले में खराश हो तो पानी में पुदीने की पत्तियां या अजवाइन डाल कर दिन में एक बार भाप लें। लौंग के पाउडर में शहद मिलाकर दिन में दो-तीन बार सेवन करें।

 

सेहत / शौर्यपथ / लॉकडाउन के कारण अगर आप अपने बच्चे का जरूरी टीका लगवाने से रह गए हैं तो आपकी चिंता जायज है। असल में कोविड-19 के कारण हेल्थ संसाधनों पर ज्यादा बोझ होने से नियमित टीकाकरण में व्यवधान पैदा हुआ है। जिससे ये समस्या पैदा हुई है। ऐसी स्थिति से निटपने के लिए इंडियन अकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने कुछ निर्देश जारी किए हैं, जिनका पालन करते हुए इस असाधारण समय में बच्चे की देखभाल की जा सकती है।

लॉकडाउन में 32 लाख बच्चे रह जाएंगे वंचित-
-01 साल पहले पैदा हुए खसरा या एमएमआर डोज से वंचित रह सकते हैं।
-5.5 लाख नए बच्चे हर सप्ताह जुड़ रहे हैं टीकाकरण से पूर्ण या आंशिक वंचितों में।
-2020 के जनवरी-फरवरी में पैदा हुए बच्चों को मार्च-अप्रैल में दी जाने वाली डीटीपी-पोलियो खुराक छूटी।
-32.4 लाख बच्चे देश में टीकाकरण से छूट जाएंगे या उनको सभी टीके नहीं लग सकेंगे।

(स्त्रोत - इंडियन अकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स )

इम्यूनिटी मजबूत करता है टीकाकरण-
टीका बीमारियों के वायरस को कमजोर कर देता है या उसे खत्म कर देता है। टीकाकरण से शिशु के शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र (इम्यूनिटी) मजबूत रहती है। जिससे भविष्य में बीमारियों से बचने में मदद मिलती है। टीकाकरण संक्रामक बीमारियों जैसे पोलियो आदि के प्रसार को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका है।

इम्यूनाइजेशन न होने पर संक्रमण का खतरा-
विश्व स्वास्थ्य संगठन यह चिंता जता चुका है कि जिन देशों में रुटीन टीकाकरण नहीं हो पा रहा है, वहां बच्चों के शरीर में कोरोना व अन्य तरह के वायरस व रोगों से लड़ने के लिए मजबूत प्रतिरक्षा तंत्र नहीं तैयार नहीं हो पाएगा।

मां क्वारंटाइन हो तो ये करें-
किसी बच्चे की मां अगर कोरोना ग्रस्त रही हो या उन्हें होम क्वारंटाइन किया गया हो तो उस बच्चे को वैक्सीनेट करने की आवश्यकता है। ऐसी स्थिति में अभिभावक अपने डॉक्टर की सलाह लेकर बच्चे का टीकाकरण कराएं।

टीका छूटने पर ऐसा करें अभिभावक-
इंडियन अकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने अभिभावकों को सलाह दी है कि कोविड-19 के कारण बच्चों के छूटे टीके को आगे की तारीखों में लगवाना ठीक रहेगा। यह सुनिश्चित किया जाए कि नवजात को बीसीजी, बी-ओपीवी और हेपेटाइटिस बी की बर्थ डोज मिली है या नहीं। स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र के संपर्क में रहें और शिशु की पोलियो, इन्फ्लूएंजा, एमएमआर और खसरा की खुराक प्राथमिकता से लगावाएं।

 

     शौर्यपथ /धर्म संसार / कंस ने बालकृष्ण को मारने के लिए पहले पूतना, श्रीधर तांत्रिक, उत्कच, तृणासुर, तृणावर्त आदि कई अनुरों और राक्षसों को भेजा लेकिन बालकृष्ण ने सभी का वध कर दिया। कुछ समय बाद फिर नंदबाबा गोकुल से वृंदावन चले गए। वहां श्रीकृष्ण ने गोप और गोपियों के साथ खूब रास रचाया। फिर एक दिन कंस ने बलदेव और श्रीकृष्ण को मारने की एक नई योजना बनाई।
अक्रूरजी भगवान श्रीकृष्ण के काका थे, जो मथुरा में रहते ते। उन्हें वसुदेवजी का भाई बताया गया है। अक्रूरजी कंस के पिता उग्रसेन के दरबार में एक दरबारी के रूप में कार्य करते थे। जब कंस ने उग्रसेन को बंदी बना लिया तो अक्रूरजी की शक्तियां कमजोर हो गई।
         कहते हैं कि जब नारद मुनि द्वारा कंस को यह पता चला कि कृष्ण देवकी का तथा बलराम रोहिणी का पुत्र है तो उसने अपनी योजना के तहत कंस ने अक्रूरजी के माध्यय से उनसे दोनों ही वीर बालकों को मल्ल युद्ध (पहलवानी) की एक प्रतियोगिता में आमंत्रित कर दोनों का वध करने की योजना बनाई। अक्रूरजी दोनों ही बालकों को निमंत्रण दे आए।
           चाणूर और मुष्टिक मथुरा के राजा कंस के राज्य में उसके प्रमुख पहलवान थे। कंस चाहता था कि यह दोनों मिलकर दोनों बालकों का वध कर दें। चाणूर और मुष्टिक के अलावा शल तथा तोषल नामक मल्ल भी तैयार थे। साथ ही कुबलयापीड नाम के एक हाथी को विशेष प्रशिक्षण दिलाकर कृष्ण और बलराम को मार डालने के लिए रखा गया था।
श्रीकृष्ण और बलराम पहली बार ग्वालबालों के साथ मथुरा पधारे तो नगर भ्रमण के दौरान जहां दंगल हो रहा था उस रंगशाला का पता पूछते-पूछते वहां पहुंच गए। रंगशाला सजी हुई थी। विशालकाय शिव का धनुष रखा हुआ था। द्वार के पास ही हाथी भी बंधा हुआ था। रंगशाला के अखाड़े में चाणूर, मुष्टिक, शल, तोषल आदि बड़े-बड़े मल्ल दंगल के लिए उतावले खड़े थे। दंगल देखने के लिए महाराज कंस उच्च मंच पर रखे सिंहासन पर अपने मंत्रियों के साथ विराजमान था।

रंगशाला में प्रवेश करते ही सहसा ही श्रीकृष्ण से शिव का धनुष उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाई तो वह अनायास ही टूट गया। यह देखकर उसकी सुरक्षा में लगे सैनिकों ने हमला कर दिया। दोनों भाइयों ने मिलकर सैनिकों को मार दिया। इस घटना से वहां हाहाकार मच गया तभी हाथी को छोड़ दिया गया। दोनों भाइयों ने हाथी का भी वध कर दिया। यह देखकर कंस ने चाणूर, मुष्टिक को इशारा किया। दोनों मल्ल अखाड़े में उतर गए।

चाणूर        ने श्रीकृष्ण को और मुष्टिक ने बलराम जी को ललकारा। इस प्रकार मल्लयुद्ध आरम्भ हो गया। सभी प्रजा यह युद्ध देखने के लिए जुटी हुई थी। दोनों भाइयों ने दोनों का वध कर दिया तो कंस घबरा गया फिर उसने अपने अन्य मल्लों को इंगित किया। कूट, शल, तोषल आदि भी मारे गए तब कंस ने सैनिकों को आदेश दिया की इन दोनों दुष्ट बालकों को पकड़कर मथुरा से निष्कासित किया जाए और नंद को पकड़कर कारागार में डाला जाए और दुष्ट वसुदेव और उग्रसेन का बिना विलंब किए वध कर दिया जाए। लेकिन कंस के आदेश का पालन होता उससे पहले ही श्रीकृष्ण और बलराम उछलकर कंस के सम्मुख पहुंच गए और श्रीकृष्ण ने बड़े ही जोर से कंस की छाती पर एक लात मारा ‍जिसके चलते वह नीचे गिर पड़ा। फिर श्रीकृष्ण उसके केश पकड़कर उसे खींचकर अखाड़े में ले आए। असहाय कंस चीखने पुकारने लगा लेकिन श्रीकृष्ण ने उसकी छाती पर मुष्टिक प्रहार करके उसका वध कर दिया। यह देख और सुनकर मथुरा में हर्ष व्याप्त हो गया।
कहते हैं कि कंस वध करने के बाद दोनों ही अक्रूरजी के घर गए।

कहते हैं कि श्रीकृष्‍ण और बलराम ने 16 वर्ष की उम्र में चाणूर और मुष्टिक जैसे खतरनाक मल्लों का वध किया था। मथुरा में दुष्ट रजक के सिर को हथेली के प्रहार से काट दिया था। कहते हैं कि यह मार्शल आर्ट की विद्या थी। पूर्व में इस विद्या का नाम कलारिपट्टू था। जनश्रुतियों के अनुसार श्रीकृष्ण ने मार्शल आर्ट का विकास ब्रज क्षेत्र के वनों में किया था। डांडिया रास उसी का एक नृत्य रूप है। कलारिपट्टू विद्या के प्रथम आचार्य श्रीकृष्ण को ही माना जाता है।

     शौर्यपथ / किसी देश के इतिहास में ऐसे मौके बहुत नहीं होते, जब विकास की राह बदलने का मौका मिलता है। देश में यह ऐतिहासिक मौका ‘आत्मनिर्भर भारत’ को महत्व देने के साथ ही विकास के स्थानीयकरण पर केंद्रित है। यह भारत में आर्थिक तरक्की की राह बदलने की एक विलक्षण सोच है। स्वायत्तशासी विकास की रणनीति का मुख्य तत्व एक ऐसी आर्थिक संरचना का निर्माण है, जो देश में उपलब्ध सभी संसाधनों की मात्रा और गुणवत्ता के लिए सबसे मुफीद हो। इसमें अपने संसाधनों पर आधारित राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के आत्मनिर्भर विकास, सार्वजनिक व निजी उद्यमों के बीच संबंध-सहयोग और एमएसएमई व ग्रामीण अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण जैसे उपायों को रणनीति का अभिन्न अंग बनाया गया है।
आर्थिक पैकेज का यह प्रयास आर्थिक सुधारों को एक विशेष क्रम में रखने की वकालत भी करता है। यह एक ऐसी बहस है, जो 1991 के बाद से शैक्षणिक और नीतिगत स्तर पर होती रही है। राहत पैकेज का विवरण वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 13 से 17 मई तक पांच दिन में विस्तार से बताया है। प्रयास यह है कि लॉकडाउन से बाहर निकलने के साथ ही अर्थव्यवस्था के सामने जो प्रमुख चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं, उन्हें संभालने के साथ-साथ उन प्रवासियों को लाभदायक रोजगार देना, जो शहर लौटना नहीं चाहते। प्रयास यह भी है कि आपूर्ति में पैदा व्यवधानों को दूर किया जाए। यह दर्ज करना दिलचस्प है कि इस आर्थिक पैकेज कार्यक्रम के तहत पांच अलग-अलग क्षेत्रों पर गौर करना प्रस्तावित है। सबसे अव्वल है, प्रभावित लोगों को सामाजिक सुरक्षा देना। दूसरा, ऋण और नकदी प्रवाह से समर्थन करना। तीसरा, बुनियादी ढांचा निर्माण को वित्तीय सहयोग देना। चौथा, शिक्षा के क्षेत्र में तकनीक आधारित सुधार करना। पांचवां, श्रम बाजार में नीतिगत सुधार करना। खासकर कोयला, रक्षा, खनिज, नागरिक उड्डयन, अंतरिक्ष व परमाणु ऊर्जा, रियल इस्टेट आदि में श्रम सुधार।
वैश्विक स्तर पर हम पाते हैं कि भारत द्वारा उठाए गए कदम अन्य देशों से मेल खाते हैं। विशिष्ट पैकेज के आकार, दायरे और आर्थिक सुधार कुछ भिन्न हो सकते हैं, लेकिन मजबूत नीति के लिए तय क्षेत्र कमोबेश समान हैं। आर्थिक पैकेज में सरकारों ने राजकोषीय, मौद्रिक व वृहद आर्थिक मजबूत नीतियों, दवाओं की पर्याप्त आपूर्ति, उपकरण व स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे, टीका विकसित करने, बेरोजगारों, कमजोर और बीमार व्यक्तियों को राहत देने, आवश्यक आपूर्ति सुनिश्चित करने, खाद्य सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया है।
आर्थिक पैकेज के आकार को देखें, तो कुछ देशों में दिए गए पैकेज ज्यादा हैं, जैसे जापान में जो आर्थिक पैकेज दिया गया है, वह वहां की जीडीपी का 21.1 प्रतिशत है, बेल्जियम में 13.5 प्रतिशत, ईरान में 13.7 प्रतिशत, सिंगापुर में 91.3 प्रतिशत और अमेरिका में 11 प्रतिशत है। अन्य ज्यादातर विकसित या विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में दिए गए आर्थिक पैकेज उनकी जीडीपी का तीन से आठ प्रतिशत तक हैं। कुछ अफ्रीकी और एशियाई देशों में इससे भी कम आर्थिक पैकेज दिया गया है। भारत में दिया गया कुल आर्थिक पैकेज जीडीपी के 11 प्रतिशत से भी ज्यादा है। दुनिया के उभरते देशों के बीच देखें, तो भारत में दिया गया पैकेज अधिक ही है। मौजूदा स्थिति में आर्थिक पैकेज के पीछे जो मूल भावना है, उसे तेजी से लागू करने की जरूरत है। संबंधित मंत्रालयों को अति-सक्रियता से काम करना होगा, सामूहिक रूप से आगे बढ़ने के लिए सबको एक साथ लाना होगा। नौकरशाही को प्रेरित करना होगा।
दो अन्य खास कारक और भी हैं। एक यह कि देश में ज्यादा पूंजी वाली दीर्घकालिक परियोजनाओं के वित्त पोषण को संस्थागत तंत्र की जरूरत है। आईडीबीआई और आईसीआईसीआई के निजीकरण के बाद से भारत ने बहुत हद तक औद्योगिक विकास के वित्त पोषण को गंवा दिया है। जिन वित्तीय संस्थाओं पर बड़ी कंपनियां निर्भर रहती हैं, वे पूंजी संग्रह में धीमी वृद्धि का सामना कर रही हैं। दूसरा कारक, आरबीआई को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए वह सरकारी बैंकों (पीएसबी) के साथ मिलकर बेहतर काम करे। जो सरकारी सहायता मिली है, उसे सरकारी बैंकों को हल्के में नहीं लेना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

     शौर्यपथ / कोरोना के खतरे के बावजूद चिकित्सक, पुलिसकर्मी, नर्स, स्वास्थ्यकर्मी, किराना व्यापारी, दवा विक्रेता जैसे लोग जनता की सेवा में लगे हुए हैं। किंतु यह अफसोस की बात है कि कुछ सिरफिरों द्वारा इन पर, खासतौर से पुलिसकर्मियों पर हमला किया जाता है। यह अपने आप में बहुत ही शर्मनाक विषय है। ऐसी प्रवृत्ति वाले लोगों पर सिर्फ मुकदमा दर्ज करने से कुछ नहीं होगा, बल्कि फास्ट ट्रैक कोर्ट में पेश करते हुए उन्हें सख्त से सख्त सजा देने की व्यवस्था होनी चाहिए। तभी इस प्रकार की घटनाओं को हम रोक सकेंगे। हमें अपने कोरोना योद्धाओं का सम्मान करना चाहिए और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए अवश्य प्रोत्साहित करना चाहिए।
प्रमोद अग्रवाल गोल्डी, हल्द्वानी

लाल फीताशाही 
पिछली सदी के आखिरी दशक तक नौकरशाह खुद को सेवक नहीं, मालिक समझते थे। इसका दुष्प्रभाव हमने देखा भी। आज बेशक वह व्यवस्था कायम नहीं है, लेकिन सोच अब भी बहुत ज्यादा नहीं बदली है। ऐसे में, केंद्र सरकार ने जिस आर्थिक पैकेज की घोषणा की है, उसको जमीन पर लागू करने की भी उसे संजीदा कोशिश करनी होगी, ताकि वह लाल फीताशाही का शिकार न बने। जरूरी है कि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर समन्वय हो, अन्यथा ‘एक देश एक राशनकार्ड’ जैसी योजना को जमीन पर उतारना और लाभार्थियों को समुचित मदद करना मुश्किल होगा। असल में, हमारे नौकरशाह अमूमन परंपरागत तौर-तरीकों के आदी हैं। उनकी कार्यशैली जटिल है, जिसे वे बदलना नहीं चाहते। वे आमतौर पर सब कुछ अपने नियंत्रण में रखना चाहते हैं। इस सोच को बदलना जरूरी है। सरकार उन लोगों तक खुद पहुंचे, जिनके लिए नीतियां बनाई जाती हैं।
शादाब हुसैन खान, मांझी, छपरा

गांव लौटते मजदूर
जो संकट आज हम सड़कों पर देख रहे हैं, उसे जल्द भूल पाना आसान नहीं होगा। ये मजदूरों का पलायन नहीं, बल्कि मानव पूंजी का पलायन है, क्योंकि यही लोग हमारे देश की अर्थव्यवस्था के स्तंभ हैं। गांव लौटना इनको उचित इसलिए लगा कि वहां लोग उन्हें भूख से मरने नहीं देंगे। मुमकिन है कि इनमें से ज्यादातर अब फिर से गांव छोड़ना नहीं चाहें, क्योंकि उन्होंने सड़कों पर कई-कई दिनों तक तपती हुई दोपहर में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ी है। साफ है, इनके दोबारा न लौटने से शहरों में कामगारों की कमी महसूस होगी, जिससे उत्पादन पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा। हमारी अर्थव्यवस्था में रोबोट या ऑटोमेशन, या यूं कहें कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका बहुत सीमित है, इसलिए कामगारों पर उद्योगों की निर्भरता बनी हुई है। ऐसे में, इनका हमेशा के लिए पलायन चिंतनीय हो सकता है।
नीलम वर्मा,  अलीगंज, लखनऊ

प्रवासी सोचकर कदम बढ़ाएं
हर भारतीय का यह अधिकार है कि वह अपनी इच्छा के अनुसार कहीं भी जाकर अपने सपनों को पूरा करे। पलायन कोई आज की परिघटना नहीं है, पर क्या यह न्यायोचित है कि जब संकट विकराल हो, तो सावधानियों को ताक पर रखकर लोग ऐसा करें? भविष्य की चिंता, पैसे की तंगी, परिवार का भरण-पोषण, बीमारी का डर, अशिक्षा, राजनीति आदि कारणों से श्रमिक वर्ग ने पलायन का रास्ता चुना। वरना यह कैसे संभव है कि कोई इंसान वर्षों से जहां रह रहा हो, वहां सिर्फ एक संकट आने पर वह  पलायन की सोच ले। सड़कों पर उमड़ा जन-सैलाब संवेदनशील तबके का है। केवल स्थान बदलने से उनकी मुश्किलों का हल नहीं होगा, बल्कि गांव लौटने वाले लोग खतरा बढ़ाएंगे। इसलिए प्रवासियों को आगे कदम बढ़ाने से पहले यह सोचना चाहिए कि वे अपने साथ कितनी जान जोखिम में डाल रहे हैं? उन्हें थोड़ा इंतजार करना चाहिए, ताकि परिस्थिति बदलते ही वे अपने गंतव्य की ओर रवाना हो सकें। 
मृदुल कुमार शर्मा, गाजियाबाद

 

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