November 22, 2024
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धर्म संसार / शौर्यपथ / प्रभु यीशु के जन्म की ख़ुशी में मनाया जाने वाला क्रिसमस का त्योहार पूरी दुनिया में मनाया जाता है। यह त्योहार कई मायनों में बेहद खास है। क्रिसमस को बड़ा दिन, सेंट स्टीफेंस डे या फीस्ट ऑफ़ सेंट स्टीफेंस भी कहा जाता है। प्रभु यीशु ने दुनिया को प्यार और इंसानियत की शिक्षा दी। उन्होंने लोगों को प्रेम और भाईचारे के साथ रहने का संदेश दिया। प्रभु यीशु को ईश्वर का इकलौता प्यारा पुत्र माना जाता है। इस त्योहार से कई रोचक तथ्य जुड़े हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में।
क्रिसमस ऐसा त्योहार है जिसे हर धर्म के लोग उत्साह से मनाते हैं। यह एकमात्र ऐसा त्योहार है जिस दिन लगभग पूरे विश्व में अवकाश रहता है। 25 दिसंबर को मनाया जाने वाला यह त्योहार आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च में 6 जनवरी को मनाया जाता है। कई देशों में क्रिसमस का अगला दिन 26 दिसंबर बॉक्सिंग डे के रूप मे मनाया जाता है। क्रिसमस पर सांता क्लॉज़ को लेकर मान्यता है कि चौथी शताब्दी में संत निकोलस जो तुर्की के मीरा नामक शहर के बिशप थे, वही सांता थे। वह गरीबों की हमेशा मदद करते थे उनको उपहार देते थे। क्रिसमस के तीन पारंपरिक रंग हैं हरा, लाल और सुनहरा। हरा रंग जीवन का प्रतीक है, जबकि लाल रंग ईसा मसीह के रक्त और सुनहरा रंग रोशनी का प्रतीक है। क्रिसमस की रात को जादुई रात कहा जाता है। माना जाता है कि इस रात सच्चे दिल वाले लोग जानवरों की बोली को समझ सकते हैं। क्रिसमस पर घर के आंगन में क्रिसमस ट्री लगाया जाता है। क्रिसमस ट्री को दक्षिण पूर्व दिशा में लगाना शुभ माना जाता है। फेंगशुई के मुताबिक ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि आती है। पोलैंड में मकड़ी के जालों से क्रिसमस ट्री को सजाने की परंपरा है। मान्यता है कि मकड़ी ने सबसे पहले जीसस के लिए कंबल बुना था।

नगरी/ शौर्यपथ ग्राम सेमरा का 22 वर्षीय युवक पारुल मरकाम पिता रामस्वरूप मरकाम की अचानक मौत होने से परिजन स्तब्ध नजर आ रहे हैं।ज्ञात हो कि पारुल नेताम ग्राम सेमरा में चल रहे मनरेगा कार्य मे अपने परिजन के नाम पर कार्य करने जा रहा था।इस बीच पिछले एक दो दिन से छाती में दर्द की शिकायत हो रही थी। परिजनों ने उपचार हेतु 8 मई को शासकीय अस्पताल नगरी लाया जहां पर्ची क्रमांक 18761 से डा डी आर ठाकुर ने युवक का उपचार भी किया और कुछ दवाइयां लिखी।इसके पश्चात दूसरे दिन 9 मई को सुबह 8 बजे युवक की अचानक मौत हो गई।युवक के अचानक मौत से पूरा परिवार सदमे में है।घटना की जानकारी मिलने पर एसडीओपी नीतीश ठाकुर मृतक के घर की ओर रवाना हो गए हैं इस सम्बंध में बीएमओ डॉ डी आर ठाकुर ने बताया कि एक दिन पूर्व ही युवक इलाज के लिए अस्पताल आया था।जिसे सीने व पेट मे दर्द की शिकायत थी ।एसिडिटी की भी शिकायत थी जिसका उपचार कर दवाई दिया गया था और कोई गम्भीर बात नजर नही आ रही थी। फिलहाल युवक की मौत पर गांव में तरह तरह की चर्चाएं होने लगी है।जिसका निराकरण जांच के बाद ही हो पायेगा।

पशुधन विकास विभाग से बटेर के चूजे लेकर व्यवसाय किया प्रारंभ

    सुकमा / शौर्यपथ /  स्वाद के शौकीनों में अब बटेर की मांग बढ़ने लगी है। बाजार में बटेर की मांग को देखते हुए सुकमा जिले में इसके व्यावसायिक पालन को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है। पशुधन विकास विभाग द्वारा बटेरपालन के लिए स्वसहायता समूह की महिलाओं को प्रोत्साहित करने के साथ ही आवश्यक संसाधन भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं, ताकि वे आसानी से बटेर का व्यावसायिक पालन कर सकें।

          पशुधन विकास विभाग के उप संचालक शेख जहीरुद्दीन ने बताया कि बटेर पालन योजना से जहां स्वाद के शौकीनों के लिए आसानी से बटेर उपलब्ध होगा, वहीं स्थानीय लोगों की आय में भी वृद्धि होगी। विभाग द्वारा इस योजना के तहत गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाली स्वसहायता समूह की महिलाओं को बटेर सहित आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराया गया है। उन्होंने बताया कि सौतनार की तुलसी डोंगरी स्वसहायता समूह, संतोषी मां स्वसहायता समूह, मां दुर्गा स्वसहायता समूह, लक्ष्मी स्वसहायता समूह, नर्मदा स्वसहायता समूह और सूरज स्वसहायता समूह की महिलाएं बटेरपालन प्रारंभ कर चुकी हैं। इसके लिए सभी स्वसहायता समूहों को 80-80 नग बटेर के चुजे और 16-16 किलो दाना उपलब्ध कराया गया। इन महिलाओं को बटेरपालन और रखरखाव का प्रशिक्षण दिया गया है

          पिछले कुछ वर्षो में अंडे और मांस का कारोबार तेजी से बड़ा है जिसके लिए ब्रायलर फार्मिंग करते हैं ,जिसमें मुनाफा भी मिलता है लेकिन बीमारीयों का डर भी बना रहता है। ऐसे में बटेर पालन कर कम खर्च में ही ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता हैं।

          समूह बटेर पालन कर अपनी आय बढ़ा सकेंगे। इनके आहार में भी ज्यादा खर्च नहीं आता है। ये  घर में बने कनकी, मक्का आदि को भोजन के रुप में ग्रहण करते हैं। एक बंद पिंजरे में ही इसका पालन पोषण किया जाता हैं। इनके मांस की मांग भी बहुत ज्यादा है। उपसंचालक ने बजाया कि एक बटेर 7 सप्ताह में ही अंडे देना शुरु कर देती है इनका जीवनकाल 2 साल का होता है। ये अपने जीवनकाल में 400 से 500 अण्डे देती है ।

         बटेर में बीमारी का खतरा भी कम पाया जाता है ये जल्दी बीमार भी नहीं होते और न ही इन्हें वेक्सीनेशन की जरूरत पड़ती है इसका मांस मुर्गे की अपेक्षा ज्यादा महंगा बिकता है। इनको खिलाने पर ज्यादा खर्च भी नहीं आता है इनका पालन कम स्थान में ही किया जा सकता है जिससे इसे कम लागत में ही शुरू किया जा सकता है।

साकार होगा उत्पादन को बढ़ाने का सपना: आधुनिक कृषि से आय बढ़ाने का बुलंद हुआ हौसला

     कोण्डागांव / शौर्यपथ / सपने कई लोग देखा करते हैं पर उन्हें साकार करने का दम कुछ ही रखते हैं, ऐसे ही स्वप्नशील जनजातीय समुदाय के प्रयत्नशील कृषकों को राज्य सरकार की अनुसूचित जन जाति ट्रेक्टर ट्राली योजना द्वारा उनके सपनों को पंख लगाने का प्रयत्न किया जा रहा है। ज्ञात हो कि रघुराम नाग, पिता रामसाय नाग विकासखण्ड बडे़राजपुर के एक छोटे से गांव ढोन्ढरा का एक कृषक है जो की अपनी पुश्तैनी बारह एकड़ भूमि पर वर्षों से कृषि कार्य में कार्यरत है। उंसके द्वारा आधुनिक कृषि पर रुचि देख कर जिला अंत्यावसायी सहकारी समिति के कार्यपालन अधिकारी बाबू भाई श्रीवास ने इस संबंध में जानकारी प्रदान की। इसके पश्चात उसने कलेक्टोरेट में स्थित जिला अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति कार्यालय में संपर्क कर अनुसूचित जनजाति ट्रेक्टर ट्राली योजना के तहत ऋण से ट्रेक्टर प्राप्त करने की योजना का लाभ लेकर कृषि कार्य को और बेहतर बनाने की इच्छा व्यक्त की। इसके लिए उन्होंने जिला अत्यावसायी सहकारी समिति के कार्यालय में आवेदन प्रस्तुत किया, प्राप्त आवेदनों का स्क्रूटनिंग कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित समिति के द्वारा किया गया। जिसमें रघुराम नाग को इस योजना के हितग्राही के रूप में चयनित हुआ। जिस पर आज जिले के विधायक मोहन मरकाम एवं कलेक्टर नीलकण्ठ टीकाम ने रघुराम को ट्रेक्टर की चाबी उसके बेहतर भविष्य की कामना करते हुए प्रदान किया गया।
    उल्लेखनीय है कि राज्य शासन ने जनजातीय उन्नतशील किसानो को सहायता के लिए बाजार दरों से कम दरों पर जिले के किसी जनजातीय कृषक को अनुसूचित जनजाति ट्रेक्टर ट्राली योजना के तहत लाभ प्रदान किया जाता है।
इस संबंध में कृषक रघुराम ने बताया कि वह ट्रेक्टर प्राप्त कर बहुत खुश है और उसने शासन एवं जिला प्रशासन के सहयोग के लिए धन्यवाद भी दिया और कहा कि वह योजना के तहत ट्रेक्टर मिलने से अपने सभी खेती-किसानी का कार्य समय कर सकेगा और खेती के बाद बचे समय में वे इसका उपयोग परिवहन के रूप में भी करेगा। जिससे उसकी आय में वृद्धि के साथ खाली वक्त में आजीविका भी प्राप्त होगी। रघुराम अपने खेतों में खरीफ के मौसम में धान की कृषि करते हैं एवं अन्य मौसमों में मौसमी फल सब्जी और दालों का उत्पादन करते हैं। इस मौके पर विधायक एवं कलेक्टर ने रघुराम को भविष्य के लिए शुभकामनाएं देते हुए कहा कि जिले के अन्य जनजातीय कृषकों को भी आगे आकर अपने सपनों को पूरा करने के लिए शासन की विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाने की जरुरत है इसके लिए शासन-प्रशासन हर संभव मदद करेगा।

स्वास्थ्य साथी का हौसला लाया रंग

   नारायणपुर / शौर्यपथ / जुड़वा बच्चे पैदा हुए थे। मैं खुश थी और परेशान भी, क्योंकि बच्चों के हिसाब से मुझे अपनी दिनचर्या को सेट करना पड़ा। सुबह 9 बजे पहले नंबर के बच्चे को दूध पिलाने का सही समय था और उसके बाद दूसरे नंबर के बच्चे को। इसी प्रकार एक बजे पहले नंबर के बच्चे को दूध पिलाने का समय था और उसके बाद दूसरे नंबर के बच्चे का। उसकी मदद के लिए सास थी, जिसको अपनी नींद पूरी करने के लिए दस घंटे की जरूरत होती थी। इसलिए वह बरामदे में सोती थी।

हां, जब बच्चे सो रहे होते, तो वे कम परेशान करते थे। बीच-बीच में दूध पिलाने के लिए उन्हें तकलीफ देकर जगाना पड़ता था। कुदरत के इन तोहफों को पाकर मैं वाकई बहुत खुश थी। पर गरीबी और अनपढ़ता की मार कहें या समुचित पोषण आहार की कमी, जिससे बच्चे का वजन नही बढ़ रहा था। वह हैरान-परेशान थी। यह बात सोनाय पति सन्नूराम की है, जिसने माह फरवरी के बीच में घर पर जुड़वा बच्चों आरोही-आदित्त को जन्म दिया। माँ-बाप ने यही मार्डन नाम दिया।

  यह हकीकत भरी कहानी छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिला नारायणपुर के ओरछा ब्लॉक के धुर नक्सल हिंसाग्रस्त गाँव मूसेर की है। जहाँ जाने के लिए बड़ा हौसला और जिगर चाहिए होता है। मुसेर गाँव की आबादी बमुश्किल 70 होगी। यहाँ सबसे नजदीक पंचायत कच्चापाल है। यहाँ तक बारिश से पहले तक अनुभवी वाहन चालक के जरिए जैसे-तैसे छोटी गाड़ी से पहुँचा जा सकता है। असली कहानी यही से शुरू होती है। कच्चापाल से मुसेर लगभग 35-40 कि.मी.दूर है। ग्राम कच्चापाल के स्वास्थ्य साथी कमलेश नाग और सुकदेव को खबर लगी कि मुसेर गांव में जुड़वा अतिकुपोषित बच्चे है। माँ परेशान है और बच्चों को लेकर व्याकुल भी। पोषण पुनर्वास केंद्र का सहारा नहीं मिला तो जीवित नही रहेंगे। दोनों स्वास्थ्य साथी ने बच्चों की जान बचाने की चिंता सताने लगी।

    मगर मुसेर जाना जोखिम, दर्द भरा और डरावना था। सूरज की तेज तपन का एहसास और परिवार की काउंसलिंग करना जैसे ‘टेढ़ी खीर’ समान नजर आ रहा था। आना-जाना लगभग 70 किलोमीटर वह भी जंगल-पहाड़ी रास्ता, पर बच्चों की जान बचना, उनके निष्ठा और कर्तव्य में शामिल था। उन्होंने पोषण पुनर्वास केंद्र की महिला स्वास्थ्यकर्ता श्रीमती निरमणि ठाकुर को राजी किया। स्वास्थ्य साथियों का हौसला रंग लाया और उन्होंने तीन दिनों का सफर पूरा कर बच्चों और माँ को कुंदला पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया। जहाँ अभी बच्ची की हालत स्थिर है।

नारायणपुर जिले खासकर ओरछा ब्लाक (अबूझमाड़) का स्वास्थ्य विभाग का मैदानी अमला कोरोना के अलावा कुपोषण और मलेरिया जैसी जानलेवा बीमारी से लोगों को बचाने का काम कर रहा है। जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दुर्गम चारों ओर से घने जंगल-पहाड़ों घिरे गाँव मुसेर में 70 दिन के गंभीर कुपोषित जुड़वा बच्चों को तीन दिन 70 घण्टे पैदल चलकर माँ-बच्चों को कुंदला लाकर पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में रखा गया। जहां बच्चों की बेहतर देखभाल हो रही है। जुड़वा बच्चों में एक लड़का और एक लड़की है। लड़की का वजन काफी कम है। वह काफी गम्भीर कुपोषण की शिकार है। केंद्र नहीं लाते, तो उसका बचना मुश्किल था। अब माँ और बच्चों की हालत ठीक हो जाएगी ।

राज्य सरकार बच्चों को कुपोषण से मुक्त करने पोषण आहार से लेकर उपचार तक की सेवाएं मुहैय्या करा रही है। जिले में संचालित एनआरसी (पोषण पुनर्वास केन्द्र) कुपोषित बच्चों के चिकित्सकीय देखभाल के साथ समुचित पोषण आहार प्रदान कर सुपोषित कर तंदुरुस्त कर रहा है। पिछले एक वर्ष में जिले के 400 कुपोषित बच्चे पोषण पुर्नवास केंद्र में भर्ती के बाद सुपोषित हुए हैं। कलेक्टर श्री पी.एस.एल्मा ने जिले के मैदानी स्वास्थ्य अमलों की प्रति सप्ताह बैठक लेकर उन्हें मार्गदर्शन और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं और गांव की बुनियादी जरूरतों के बारे में भी जानकारी लेते रहे हैें। कलेक्टर श्री एल्मा लॉकडाउन से पहले कलस्टरवॉर प्रति सप्ताह स्वास्थ्य एवं महिला एवं बाल विकास विभाग के आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मितानिन और मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की बैठक लेते थे, जिसमें वे उनके कार्य के दौरान आने वाली दिक्कतों की भी जानकारी लेते थे। इसके साथ ही कलेक्टर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मितानिन और मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित भी करते थे।

  रायपुर / शौर्यपथ /  कोरोना महामारी के चलते देशव्यापी लॉक-डाउन के कारण जहाँ एक तरफ आर्थिक गतिविधियाँ ठप्प हैं, वहीं बीजापुर के गाँवों में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) से बनी हितग्राहीमूलक परिसम्पत्तियाँ कुएँ, डबरी, निजी तालाब, पशु शेड और कम्पोस्ट पिट ग्रामीणों की आजीविका उपार्जन का महत्वपूर्ण जरिया बने हुए हैं। लॉक-डाउन के इस कठिन दौर में भी उनकी कमाई अप्रभावित है और वे निर्बाध रूप से जीविकोपार्जन कर रहे हैं।

  बीजापुर जिले में मनरेगा के अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2019-20 में कुल 1067 हितग्राहीमूलक कार्य स्वीकृत किये गये थे। इनमें से 588 कार्य पूर्ण किये जा चुके हैं और 479 प्रगतिरत हैं। पूर्ण हुए हितग्राहीमूलक कार्यों में सबसे अधिक कार्य डबरी (खेत तालाब) निर्माण के हैं, जिनकी संख्या 551 हैं। इनके अलावा कुएँ के नौ, फलदार पौधरोपण के तीन, अजोला टैंक, गाय शेड और बकरी शेड के दो-दो तथा मुर्गी शेड के 19 कार्य पूर्ण हुए हैं। इन कार्यों के पूर्ण होने से निर्मित परिसम्पत्तियों से हितग्राहियों को मिल रही राहत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लॉक-डाउन में जहाँ एक ओर सभी कार्य ठप्प हैं, वहीं दूसरी ओर मनरेगा हितग्राही इनसे नियमित आय प्राप्त कर रहे हैं। वे निर्बाध रूप से अपनी आजीविका संचालित कर रहे हैं। मनरेगा के अंतर्गत बनी हितग्राहीमूलक परिसम्पत्तियाँ आर्थिक तालाबंदी की चाबी बन गई हैं।

   बीजापुर जिले के भोपालपट्टनम विकासखण्ड के मिनकापल्ली पंचायत के श्री गडडेम बोरैया के खेत में मनरेगा से निर्मित कुएं से अब साल भर सिंचाई हो रही है। वे अभी अपने खेतों में सब्जियां उगा रहे हैं। खेत में लगे भिंडी, बैगन, लौकी, टमाटर और मिर्ची वे आसपास के गांवों में बेचते हैं और रोज 300-400 रूपए कमा रहे हैं। बीजापुर विकासखंड के ग्राम बोरजे के श्री नारायण रमेश भी मनेरगा के तहत निर्मित कुएं की बदौलत गर्मियों में सब्जियों की खेती कर रहे हैं। सब्जी बेचकर लाक-डाउन के मौजूदा दौर में भी वे हर दिन 200 रूपए कमा रहे हैं।
       मनरेगा के अंतर्गत पिछले साल हुए आजीविका संवर्धन के कार्यों के साथ ही वर्तमान में संचालित मनरेगा कार्य भी लोगों को राहत पहुंचा रहे हैं। उसूर विकासखण्ड के हीरापुर ग्राम पंचायत के आश्रित गाँव पुसकोंटा के श्री मडकम गनपत अभी गांव में खोदे जा रहे नवीन तालाब में काम करने जाते हैं। वहां उन्हें अभी तक 11 दिनों का रोजगार मिल चुका है। वे कहते हैं कि यह काम हमें बहुत जरूरत के वक्त मिला है। लॉक-डाउन के कारण अभी दूसरी जगह काम पर जाना मुश्किल है। मनरेगा के तहत भैरमगढ़ विकासखंड के ग्राम हितुलवाडा की श्रीमती कुसुमलता वट्टी की निजी भूमि पर डबरी की खुदाई चल रही है। वे बताती हैं कि इस कार्य में उन्हें 30 दिनों का रोजगार मिल चुका है। उन्हें अभी हाल ही में पुराने काम की मजदूरी के रूप में 5280 रुपये भी मिले हैं। डबरी का काम पूरा हो जाने के बाद वह इसमें मछली पालन करना चाहती है।

 दंतेवाड़ा / शौर्यपथ 

       जिले के चितालंका और फरसपाल गाँव के किसान रेशम कीट केंद्र में रेशम कीट पालन का काम कर रहे हैं जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा तो हो जाता है। पर कीट से उत्पाद प्राप्त हो तब तक  उनके पास दूसरा काम नहीं होता था । तब रेशम  विभाग ने उन्हें रेशम कीट पालन के साथ खाद्य पौधों के बीच रिक्त पड़े क्षेत्र में अंतर फसल में साग सब्जी आदि लगाने को कहा । रेशम केंद्र चितालंका के एक एकड़ एवं फरस पाल के 2 एकड़ में हितग्राहियों ने 2019- 20 में बरबट्टी, भाटा, मूली, सेमी ,गवारफली भिंडी, भाजी आदि की सब्जियां लगाई ,जिससे उन्हें अभी तक कुल  20 हजार 800 रूपये की राशि प्राप्त हो चुकी है और अभी भी निरन्तर सब्जियों का उत्पादन जारी है ,हितग्राहियों में से चम्पी यादव का कहना है कि लॉकडाउन के समय में हम अतिरिक्त आय प्राप्त कर रहे हैं जो सराहनीय है, अभी उन्हें अच्छी आमदनी की उम्मीद है, सहायक संचालक रेशम श्री श्याम कुमार का कहना है अभी इसे प्रयोगिक तौर पर शुरू किया गया था भविष्य में इसे व्यापक स्तर पर किया जाएगा ताकि किसान रेशम कीट के अतिरिक्त आय प्राप्त कर सके ।

  रायपुर / शौर्यपथ / कोरोना वायरस के संक्रमण काल के कठिन दौर में महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा कोरोना वायरस से बचाव हेतु बड़ी संख्या में तेन्दूपत्ता संग्रहकों और वनोपज संग्रहकों के लिए मास्क तैयार कर रही है। मास्क बनाकर ये ग्रामीण महिलाएं अपने परिवार के लिए अतिरिक्त आय प्राप्त कर रही है, वही लॉकडाउन समय में समाज को कोरोना संक्रमण से बचाने और रोकथाम में सहयोग कर रही है। इस कार्य से उत्तर बस्तर कांकेर जिले की लगभग 500 महिलाएं कोरोना वारियर्स के रूप में कार्य करते हुए रोजगार से जुड़ी हुई है और कपड़े का मास्क तैयार कर बाजार दर से भी कम मूल्य पर उपलब्ध करा रही है।

     राष्ट्रीय ग्रामीण अजीविका मिशन एवं महिला एवं बाल विकास विभाग की महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा मास्क तैयार कर जिला प्रशासन एवं वन विभाग को उपलब्ध करवाएं जा रहे हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग की ग्रामीण महिला स्व-सहायता समूह की महिलाएं 75 हजार और राष्ट्रीय अजीविका मिशन की महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा 50 हजार मास्क तैयार किया जा रहा है। अभी तक उक्त समूहों में 55 हजार मास्क तैयार कर वन विभाग को प्रदाय कर दिया गया है। जिला प्रशासन मास्क बनाने के लिए सस्ते दर पर कपड़े समूहों को उपलब्ध कराये जा रहे है। इसके अलावा समूहों द्वारा उत्पादित मास्क की बिक्री में भी सहयोग दिया जा रहा है। 

      दुर्ग / शौर्यपथ / अमृत मिशन के कर्मचारियों का कोरोना वायरस संक्रमण की निगेटिव रिर्पोट आने से नगर पालिक निगम दुर्ग को बेहद राहत मिली है। निगम क्षेत्र में अमृत मिशन योजना के तहत् पाइप लाईन विस्तार एवं अन्य कार्य में कार्यरत 11 कर्मचारियों द्वारा एक पॉजेटिव मिल कर्मचारी के संपर्क में रहने के कारण सभी 11 कर्मचारियों का संक्रमण की जांच कराया गया था। निगम आयुक्त इंद्रजीत बर्मन ने बताया अमृत मिशन योजना में कार्यरत दो कर्मचारियों को कोरोना वायरस संक्रमण पॉजेटिव मिलने से योजना के कार्य बंद कर दिया गया था। परन्तु अब जॉच रिर्पोट निगेटिव आ जाने के बाद अमृत मिशन योजना के कार्यो को कराया जा सकेगा।
उल्लेखनीय है कि नगर पालिक निगम दुर्ग में अमृत मिशन योजना के कार्य प्रगति पर था । इस दौरान मिशन के कार्य में संलग्न कर्मचारी आनंद बिहार फेस 3 में निवास करता था । इस संबंध में आयुक्त इंद्रजीत बर्मन ने बताया कि अमृत मिशन योजना में कार्य करने वाले कर्मचारी 24 एमएलडी फिल्टर प्लांट के आफिस में कार्यरत थे । सभी कर्मचारी आनंद बिहार फेस 3 में किराये पर रहते थे । एक कर्मचारी कोरोना वायरस संक्रमण पॉजेटिव मिलने के बाद हमने आनंद बिहार फेस 3 को सील बंद कर दिये। इसके अलावा उक्त कर्मचारी के संपर्क में रहने वाले सभी 11 कर्मचारियों की जॉच करायी गयी । उन सभी की जॉच रिर्पोट आ गई है । जिन कर्मचारियों का संक्रमण जॉच किया गया था उनमें ललीत पटले, पारस लिल्हारे, आदेश नारंग, विकास तिवारी, सम्भा जी पाटिल, सुभम गवई, विनायक महेकर, पिंटू, आदि कुमार, निलकंठ निषाद, राजेश कुमार शामिल है । उन्होनें बताया अमृत मिशन योजना के कार्य में लगे अन्य 16 कर्मचारियों को होम क्वांरेटाईन में रख दिया गया है।

रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देशन पर लॉकडाउन के कारण अन्य राज्यों में फंसे छत्तीसगढ़ के मजदूरों की वापसी के प्रयास छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा तेजी से किए जा रहे है। राज्य शासन द्वारा मजदूरों को वापस लाने के लिए स्पेशल ट्रेनों के साथ ही बसों की भी व्यवस्था की जा रही है। भारत सरकार की एडवायजरी के तहत मजदूरों की वापसी के पश्चात् उन्हें क्वारेंटाईन में रखने के लिए सभी ग्राम पंचायतों में सेंटर भी बनाए गए हैं जहां उनके ठहरने, भोजन, पेयजल और चिकित्सा सहित अन्य आवश्यक व्यवस्था सुनिश्चित की गई है।
      गौरतलब है कि कोरोना वायरस (कोविड-19) के संक्रमण को रोकने के लिए पूरे देश में किए गए लॉकडाउन के कारण छत्तीसगढ़ के करीब सवा लाख मजदूर जो दूसरे राज्यों में काम के लिए गए थे वो वहीं पर फंसे हुए है। इन मजदूरों की छत्तीसगढ़ वापसी के लिए मुख्यमंत्री बघेल ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर 28 विशेष ट्रेन की मांग की है साथ ही मजदूरों के यात्रा व्यय भी राज्य सरकार द्वारा वहन करने को कहा है।
मुख्यमंत्री के निर्देश पर राज्य के परिवहन सचिव ने रायपुर के डिवीजनल रेलवे मेनेजर को छत्तीसगढ़ के 8 स्टेशनों बिलासपुर, चांपा, विश्रामपुर, जगदलपुर, भाटापारा, रायपुर, दुर्ग और राजनांदगांव में श्रमिकों की स्पेशल ट्रेनों के स्टापेज को प्रस्तावित किया है। इन स्टेशनों पर श्रमिकों को रेल मंत्रालय की गाइड लाइन के अनुसार होल्डिंग एरिया में स्वास्थ्य परीक्षण कराया जाएगा और उन्हें गतंव्य स्थल तक पहुंचाने के लिए बसों की व्यवस्था की जाएगी।
प्रदेश के सभी जिलों में जिला प्रशासन द्वारा ग्राम पंचायतों के सहयोग से मजदूरों की वापसी पर उन्हें क्वारेंटाईन में रखने के लिए सामुदायिक भवन, छात्रावास सहित अन्य शासकीय भवनों में आवश्यक व्यवस्था की गई है।

अवधेश टंडन की रिपोर्ट
   मालखरौदा / शौर्यपथ / आज विश्व वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से जुझ रहा है ऐसे मे छत्तीसगढ सरकार द्वारा रोजगार गारंटी योजना के तहत कार्य करवा कर प्रत्येक गांव के ग्रामीणो के सुनहरा अवसर प्रदान कर रहे है। प्रशासन ने कार्य करवाने के साथ साथ नियम कानून भी लागू किया है मगर वही पर कुछ ऐसे ग्राम है जहा पर कार्य तो करवाया जा रहा है मगर वहा पर नियमो को ताक मे रख कर कार्य करवाया जा रहा है। ऐसे ही ताजा मामला जाँजगीर चापा जिला के मालखरौदा जनपद पंचायत अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत चिखली का है जहा पर रोजगार गारंटी योजना के तहत मनरेगा का कार्य मे तालाब गहरीकरण का कार्य चलाया गया है जहां पर दो सप्ताह से कार्य चलाया गया है मगर वही पर शासन के नियमो धज्जियां उड़ाते हुये कार्य कार्य करवाये दो सप्ताह के बाद भी सूचना बोर्ड का निर्माण नही हुआ है .
       इसके विषय मे जब ग्राम पंचायत के सचिव से बात करने पर उनका कहना है की रेत, गिट्टी नही मिल पाने के कारण नही बन पाया है । जब इस के विषय में हमारे चैनल में न्यूज़ प्रकाशित किया गया तो उसके बाद ग्राम पंचायत चिखली के रोजगार सहायक के पति द्वारा फोन करके यह कहा जाता है की सूचना बोर्ड तो नही बना है और अब तुम लोगो ने न्यूज़ चला दिये हो अब मै सुचना बोर्ड बिलकुल नही बनाऊंगा तुम लोगो को क्या करना है कर लो मैने जनपद पंचायत के सूचना बोर्ड के लिए आये पैसा को खा दिया हू क्या करना है कर लो तुम लोगो को जितना न्यूज़ चलाना है चला लो मेरा कुछ नही होगा। अब यहा पर यह देखना होगा की इन सब के बाद भी अधिकारीयों की आंखे खुलती है या उनको अधिकारियो का संरक्षण प्राप्त होता रहेगा।

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