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ग्राम धानापायली में 05 दिवसीय कोया पूनेम संस्कृति गाथा एवं प्रवचन कार्यक्रम संपन्न
समाज के विकास के लिए शिक्षा, संगठन एवं मद्यपान के परित्याग को बताया आवश्यक
राजनांदगांव / शौर्यपथ /
गोण्डवाना समाज के अधिकारी-कर्मचारी प्रकोष्ठ के संभागीय अध्यक्ष श्री चंद्रेश ठाकुर ने कहा कि आदिवासी समाज की गौरवशाली संस्कृति आदिवासी समाज का मेरूदण्ड एवं आधार स्तंभ है। उन्होंने आदिवासियों की संस्कृति को अत्यंत वैभवशाली बताते हुए कहा कि आदिवासियों की संस्कृति विश्व की समस्त संस्कृतियों की जननी है। जिसका उल्लेख देश के प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने अपने विश्व विख्यात पुस्तक ’डिस्कवरी आॅफ इण्डिया’ में किया है। श्री ठाकुर मोहला-मानपुर एवं अंबागढ़ चैकी जिले के ग्राम धानापायली में आयोजित विशाल मूल निवासी कोया पूनेम संस्कृति गाथा एवं प्रवचन कार्यक्रम में अपना उदगार व्यक्त कर रहे थे। कार्यक्रम में पूनेमाचार्य तिरूमाल शंकरशाह इरपाचे एवं राज्य बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष श्रीमती तेजकुंवर नेताम विशेष रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता सरपंच ग्राम पंचायत सेम्हरबांधा श्रीमती सतरूपा परतेती ने किया। कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में गोण्डवाना समाज के युवा प्रभाग के संभागीय अध्यक्ष श्री अंगद सलामे, सर्व आदिवासी समाज के युवा प्रभाग के जिला अध्यक्ष श्री प्रकाश नेताम, प्रदेश संयुक्त सचिव श्री राकेश नेताम, गोण्डवाना युवा प्रभाग के ब्लाॅक अध्यक्ष युवराज नेताम, श्री राजू परतेती, शेरसिंह परतेती एवं अन्य समाज प्रमुखगण उपस्थित थे।
श्री चंद्रेश ठाकुर ने कहा कि संस्कृति किसी भी समाज की आत्मा होती है। किसी समाज को यदि समाप्त करना है तो उसकी संस्कृति को समाप्त कर दो। वह समाज स्वतः समाप्त हो जाएगी। उन्होंने समाज के सभी लोगों को समाज के गौरवशाली संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने तथा उसके संरक्षण व संवर्धन में सहयोग करने की अपील की। श्री ठाकुर ने समाज के विकास के लिए शिक्षा एवं ज्ञान को ब्रह्मास्त्र बताते हुए समाज के लोगों को आने वाली पीढ़ी को उच्च शिक्षित, ज्ञानवान, उद्यमी, संस्कारी एवं नशामुक्त बनाने हेतु प्रण लेने की अपील की। उन्होंने कहा कि समाज के विकास के लिए शिक्षा, संगठन, नशापान का परित्याग एवं आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनना अत्यंत आवश्यक है। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए युवा प्रभाग के संभागीय अध्यक्ष श्री अंगद सलामे ने कहा कि हमारे आने वाली पीढ़ी को औपचारिक शिक्षा के अलावा हमारे गौरवशाली संस्कृति, रीति-रिवाज, परंपरा का भी ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। जिससे हमारी संस्कृति का संरक्षण एवं संवर्धन हो सके। इसके लिए इस प्रकार का आयोजन होना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने समाज के प्रबुद्ध लोगों एवं नवयुवकों से अपने ऊर्जा का उपयोग सकारात्मक कार्यों में कर समाज हित में अपना योगदान देने की अपील भी की है। इस अवसर पर पूनेमाचार्य श्री इरपाचे ने आदिवासी संस्कृति के विविध पहलुओं की तात्विक एवं सम-सामयिक विवेचना कर विविध पहुलओं पर रोचक एवं प्रेरणास्पद ढंग से प्रकाश डाला। कार्यक्रम में विशाल संख्या में आदिवासी समाज के लोगों ने अपनी उपस्थिति प्रदान कर कार्यक्रम को सफल बनाने में अपनी सहभागिता निभाई।
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