May 15, 2024
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शौर्यपथ

शौर्यपथ

लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / अनियमित दिनचर्या और खान-पान के कारण कब्ज की समस्या होना आम बात है। भोजन के बाद बैठे रहने और रात के खाने के बाद सीधे सो जाने जैसी आदतें कब्ज के लिए जिम्मेदार होती हैं। अगर आपको भी होती है यह समस्या, तो हम बता रहे हैं, इससे निपटने के 10 घरेलू उपाय -

1 सुबह उठने के बाद पानी में नींबू का रस और काला नमक मिलाकर पिएं। इससे पेट अच्छी तरह साफ होगा, और कब्ज की समस्या नहीं होगी।

2 कब्ज के लिए शहद बहुत फायदेमंद है। रात को सोने से पहले एक चम्मच शहद को एक गिलास पानी के साथ मिलाकर पिएं। इसके नियमित सेवन से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है।

3 सुबह उठकर प्रतिदिन खाली पेट, 4 से 5 काजू, उतने ही मुनक्का के साथ मिलाकर खाने से भी, कब्ज की शिकायत समाप्त हो जाती है। इसके अलावा रात को सोने से पहले 6 से 7 मुनक्का खाने से भी कब्ज ठीक हो जाता है।

4 प्रतिदिन रात में हरड़ के चूर्ण या त्रिफला को कुनकुने पानी के साथ पिएं। इससे कब्ज दूर हेगा, साथ ही पेट में गैस बनने की समस्या से भी निजात मिलेगी।

5 कब्ज के लिए आप सोते समय अरंडी के तेल को हल्के गर्म दूध में मिलाकर पी सकते हैं। इससे पेट साफ होता है, और कब्ज की समस्या नहीं होती।

6 र्इसबगोल की भूसी कब्ज के लिए रामबाण इलाज है। आप इसका प्रयोग दूध या पानी के साथ, रात को सोते वक्त कर सकते हैं। इससे कब्ज की समस्या बिल्कुल समाप्त हो जाएगी।

7 फलों में अमरूद और पपीता, कब्ज के लि बेहद फायदेमंद होते हैं। इनका सेवन किसी भी समय किया जा सकता है। इन्हें खाने से पेट की समस्याएं तो समाप्त होती ही हैं, त्वचा भी खूबसूरत बनती है।
8 किशमिश को कुछ देर तक पानी में गलाने के बाद, इसका सेवन करने से कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है। इसके अलावा अंजीर को भी रातभर पानी में गलाने के बाद उसका सेवन करने से कब्ज की समस्या खत्म होती है।
9 पालक भी कब्ज के मरीजों के लिए एक अच्छा विकल्प है। प्रतिदिन पालक के रस को दिनचर्या में शामिल कर, आप कब्ज से आजाादी पा सकते हैं, साथ ही इसकी सब्जी भी सेहत के लिए अच्छी होती है। लेकिन अगर आप पथरी के मरीज हैं, तो इसका इस्तेमाल न करें।

10 कब्ज से बचने के लिए नियमित रूप से व्यायाम और योगा करना बेहद फायदेमंद होता है। इसके अलावा हमेशा गरिष्ठ भोजन करने से बचना चाहिए।

इसके अलावा कब्ज की परेशानी अत्यधिक होने पर आप डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।

सेहत / शौर्यपथ / जीरे का इस्तेमाल तो हर घर में होता है लेकिन आपको शायद ये ना पता हो कि जीरा केवल खाने में तड़का लगाने के लिए ही इस्तेमाल नहीं होता है, बल्कि छोटा सा जीरा कई औषधीय गुणों से भरपूर है। जीरा पाचक और सुगंधित मसाला है। भोजन में अरुचि, पेट फूलना, अपच आदि को दूर करने में जीरा विश्वसनीय औषधि है।

भुने हुए जीरे को लगातार सूँघने से जुकाम की छीकें आना बंद हो जाती है।

प्रसूति के पश्चात जीरे के सेवन से गर्भाशय की सफाई हो जाती है।

जीरा गरम प्रकृति का होता है अत: इसके अधिक सेवन से उल्टी भी हो सकती है।

जीरा कृमिनाशक है और ज्वरनिवारक भी।

जीरे को उबाल कर उस पानी से स्नान करने से खुजली मिटती है।


बवासीर में मिश्री के साथ सेवन करने से शांति मिलती है।

जीरे व नमक को पीसकर घी व शहद में मिलाकर थोड़ा गर्म करके बिच्छू के डंक पर लगाने से विष उतर जाता है।


जीरे का चूर्ण 4 से 6 ग्राम दही में मिलाकर खाने से अतिसार मिटता है।


आइए, जानते हैं काला जीरा कैसे आपकी सेहत के लिए फायदेमंद है और किन औषधीय गुणों से भरपूर हैं -

1 वजन कम करने में कारगर -
अगर 3 महीने तक लगातार काले जीरे का सेवन किया जाए, तो शरीर में जमा अनावश्यक फैट घटाने में मदद मिलती है। काला जीरा फैट को गला कर अपशिष्ट पदार्थों (मल-मूत्र) के माध्यम से शरीर से बाहर कर देता है।

2 इम्यून विकार को करें दूर -
इसके नियमित सेवन से रोग-प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है, ये शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने में बोन मैरो, नेचुरल इंटरफेरॉन और रोग-प्रतिरोधक सेल्स की मदद करता है। साथ ही इसका सेवन शरीर में ऊर्जा का संचार करता है जिससे जल्द थकान और कमजोरी महसूस नहीं होती।

3 पेट की तकलीफ करें दूर -
काले जीरे में एंटीमाइक्रोबियल गुण होते है जिसके कारण ये पेट संबंधी कई समस्याओं में लाभकारी है, जैसे पाचन संबंधी गड़बड़ी, गैस्ट्रिक, पेट फूलना, पेट-दर्द, दस्त, पेट में कीड़े होना आदि समस्याओं में यह राहत देता है। धीरे-धीरे पचने वाला खाना खाने के बाद थोड़ा-सा काला जीरा खाने से तत्काल लाभ होता है।

4 सर्दी-जुकाम, कफ में फायदेमंद -
सर्दी-जुकाम, कफ से बंद नाक के लिए काला जीरा इन्हेलर का काम भी करता है। ऐसी स्थिति में थोड़ा सा भुना जीरा रूमाल में बांध कर सूंघने से आराम मिलता है। अस्थमा, काली खांसी, ब्रोंकाइटिस, एलर्जी से होने वाली सांस की बीमारियों में भी यह फायदेमंद है।


5 सिरदर्द व दांत दर्द में दे राहत -
काले जीरे का तेल सिर और माथे पर लगाने से माइग्रेन जैसे दर्द में लाभ होता है। गर्म पानी में काले जीरे के तेल की कुछ बूंदें डाल कर कुल्ला करने से दांत दर्द में काफी राहत मिलती है।

6 एंटीसेप्टिक का काम करें -
एंटी बैक्टीरियल गुणों के कारण काला जीरा संक्रमण को फैलने से रोकता है। काले जीरे के पाउडर का लेप घाव, फोड़े-फुंसियां आदि पर लगाने से वे आसानी से भर जाते हैं।

नोट :

* काला जीरा तासीर में गर्म होता है जिस कारण इसका सेवन एक दिन में तीन ग्राम से ज्यादा नहीं करना चाहिए।
* जिन्हें ज्यादा गर्मी लगती है या जो हाई ब्लडप्रेशर के मरीज है, गर्भवती महिलाएं, छोटे बच्चों के मामले में डॉक्टर से सलाह लेकर ही इसका सेवन करें।

धर्म संसार / शौर्यपथ / धन मिलना, बढ़ना और बचना बहुत जरूरी है। कई लोगों को यह शिकायत रहती है कि पैसे इस हाथ आता है और उस हाथ चला भी जाता है। कुछ को शिकायत रहती है कि पैसा आता ही नहीं तो बढ़ेगा कैसे। सांसारिक जीवन में अर्थ बिना सब व्यर्थ है। इसीलिए हम जानते हैं वे चार तरीके जिनसे धन सुरक्षित भी रहेगा।

हिन्दू धर्मग्रंथ महाभारत की विदुर नीति में लक्ष्मी का अधिकारी बनने के लिए विचार और कर्म से जुड़े 4 अहम सूत्र बताए गए हैं। जानिए, ये चार तरीके जिनको अपनाकर ज्ञानी हो या अल्प ज्ञानी दोनों ही धनवान बन सकते हैं।

श्लोक:-
श्रीर्मङ्गलात् प्रभवति प्रागल्भात् सम्प्रवर्धते।
दाक्ष्यात्तु कुरुते मूलं संयमात् प्रतितिष्ठत्ति।।

इस श्लोक का अर्थ विस्तार:-

1.पहला तरीका
अच्छे या मंगल कर्म से स्थाई रूप से लक्ष्मी आती है। इसका मतलब यह कि परिश्रम और ईमानदारी से किए गए कार्यों से धन की प्राति होती है।

1.दूसरा तरीका
प्रगल्भता अर्थात धन का सही प्रबंधन और निवेश एवं बचत से वह लगातार बढ़ता है। यदि हम धन को उचित आय बढ़ने वाले सही कार्यों में लगाएंगे तो निश्चित ही लाभ मिलेगा।
3.तीसरा तरीका
चातुर्य या चतुराई अर्थात अगर धन का सोच-समझकर उपयोग किया जाए और आय-व्यय का विशेष रूप से ध्यान रखा जाए तो धन की बचत भी होगी और वह बढ़ता भी रहेगा। इससे धन का संतुलन बना रहेगा।

4.चौथा तरीका
चौथा और अंतिम सूत्र संयम अर्थात मानसिक, शारीरिक और वैचारिक संयम रखने से धन की रक्षा होती है। इसका मतलब यह कि सुख पाने और शौक पूरा करने की चाहत में धन का दुरुपयोग न करें। धन को घर और परिवार की आवश्यक जरूरतों पर ही खर्च करें।
तो यह था विदुर नीति अनुसार धन को प्राप्त करने, बढ़ाने और बचाने के चार तरीके। दरअसल, हमें धन को बचाने से ज्यादा उसे बढ़ाने की दिशा में ज्यादा सोचना चाहिए। आप यहां यह भी जान लें कि धन उस परिवार में ही टिकता हैं जहां प्रसन्नता, प्रेम, भाईचारा और स्वच्छता विद्यमान है। यह भी जरूरी है कि घर होना चाहिए वास्तु अनुसार।

धर्म संसार / शौर्यपथ / धर्म में तो हजारों बातें लिखी हैं किंतु कोई उसका अनुसरण करता है और कोई नहीं। धर्म में लिखी हजारों बातों में से मात्र 20 बातों का ही अनुसरण कर लिया जाए तो जीवन में सुख और शांति स्थापित हो सकती है।

1. ज्यादातर लोग इस खयाल में रहते हैं कि आज नहीं कल सेहत सुधार लेंगे। धर्म कहता है कि समस्या और बीमारी को मामूली समझकर शुरू में इलाज न करना घातक सिद्ध होता है। अत: जैसे ही पता चले कि कुछ समस्या या बीमारी है तो सब कार्य छोड़कर पहले उसका समाधान और इलाज करना चाहिए अन्यथा रोग बढ़ते देर नहीं लगती।

2. ज्यादातर लोग इसी ख्याल में रहते हैं कि जवानी और तंदुरुस्ती हमेशा रहेगी या वे कभी इस और ध्यान ही नहीं दे पाते हैं कि एक न एक दिन यह जवानी ढल जाएगी। आज जवानी पर इतराने वाले बहुत सारे युवक और युवतियां मिल जाएंगे।
3. देखा गया है कि अधिकतर व्यक्ति लोगों के दुखों में शामिल नहीं होते और खुद यह अपेक्षा रखते हैं कि कोई हमारे दुख-दर्द सुन ले और हमारी मदद करें। इसके लिए वे उन लोगों के पास भी चले जाते हैं जिनके दुखों में वे कभी खुद नहीं गए।

4. आज के दौर में ऐसे भी बहुत से लोग मिल जाएंगे जिन्होंने शायद ही कभी माता-पिता की सेवा की हो, लेकिन अब वे अपनी संतानों से सेवा की उम्मीद रखते हैं। माता-पिता से झगड़ा करने वाले बहुत से जवान बेटे मिल जाएंगे। उनकी बुढ़ापे में बहुत बुरी दुर्गति होती है यह गरूड़ पुराण में लिखा है।
5. खुद को दूसरों से बेहतर समझने वाले अहंकारी लोगों की भरमार है। ऐसे लोग अपनी अक्ल को सबसे बढ़कर समझते हैं। परमेश्वर ने सभी को दो हाथ, कान, नाक, दिमाग बनाकर दिया है। ज्यादा पढ़ने और सोचने या धन अर्जित करने से कोई दूसरों से बेहतर नहीं बन जाता। बड़े से बड़े ज्ञानियों के भी सुख-दुख गरीबों और अज्ञानियों के समान ही हैं।


6. ज्यादातर लोग यह समझते हैं कि आज नहीं, कल यह कार्य कर लेंगे यानी किसी काम को ये सोचकर अधूरा छोड़ना कि फिर किसी दिन पूरा कर लिया जाएगा, यह लापरवाही जीवन में असफलता का कारण बन जाती है।
7. बहुत से ऐसे लोग हैं, जो खुद तो दूसरों के साथ खराब बर्ताव करते हैं और अपेक्षा यह रखते हैं कि सभी उनसे अच्छा व्यवहार करें। ऐसे लोग नकारात्मक विचारों के होते हैं और हमेशा वे दूसरों की बातों को काटते रहते हैं और अपना ही बखान करते रहते हैं।

8. कोई अच्छी राय दे तो उस पर ध्यान न देना भी कई लोगों की आदत है। ऐसे लोग न चाहने पर भी दूसरों को राय बांटते रहते हैं। ऐसे लोग कभी किसी की बात ध्यान से नहीं सुनते लेकिन अपेक्षा रखते हैं कि कोई हमारी बातें ध्यान से सुने। ऐसे में यदि कोई उनकी बातें ध्यान से नहीं सुनता हैं तो उन्हें गुस्सा आता है।
9. बहुत से लोगों में आदत होती है किसी भी मामले में दखलअंदाजी करना। उनमें भी वे लोग सबसे खराब हैं, जो बिना कारण के किसी के घरेलू मामले में दखल देते हैं और मामले को और बिगाड़ देते हैं।

10. बहुत से लोग अपने स्वार्थ के लिए या निष्प्रयोजन झूठ बोलते रहते हैं। वे हर वक्त झूठी कसम खाते रहते हैं। उनमें भी वे लोग अपराधी हैं तो कसम खाकर, झूठ बोलकर और धोखा देकर अपना माल बेचते या व्यापार करते हैं।
11. अपनी बुरी आदतों को ढंकने या उनको सही ठहराने वाले लोग भी बहुत मिल जाएंगे। यदि वे शराब पी रहे हैं तो शराब के अच्छे होने का तर्क देंगे। यदि वे अन्य कोई धर्मविरुद्ध कार्य कर रहे हैं तो उस कार्य को ढंकने के लिए कुतर्क का सहारा लेंगे।

12. पराई स्त्री से संबंध रखने वाले भी बहुत मिल जाएंगे। ऐसी स्‍त्रियां भी मिल जाएंगी, जो अपने पति को धोखा देकर दूसरे मर्द के साथ हैं। यह हमारे पारिवारिक समाज की नैतिकता के विरुद्ध है। इस तरह के लोगों को देखकर कुछ तो उनका विरोध करते हैं और कुछ उनके जैसा जीवन जीने की सोचते हैं। सभी तरह के अनैतिक संबंधों को सही ठहराने वाले धर्म की नजर में अपराधी हैं।
13. बहुत से लोग ऐसे हैं, जो हर एक के सामने अपना दुख-दर्द सुनाते रहते हैं और अपने घर का भेद दूसरों पर जाहिर करते हैं। इससे घर और परिवार में बिखराव होता है। ऐसे लोग कमजोर माने जाते हैं। ऐसे लोगों का बहुत से दूसरे लोग शोषण भी करते हैं।

14. सिनेमा, नशा, पान आदि पर अनाप-शनाप खर्चा कर देते हैं लेकिन अपने द्वार या दुकान पर आए फकीरों और गरीबों को धक्का देकर भगा देते हैं।


15. लाखों लोग हैं, ऐसे जो अपनी जुबान बंद नहीं रख सकते। वे दूसरों को कभी बोलने का अवसर नहीं देते। हर बात में वे अपनी राय रखना चाहते हैं भले ही वे उस विषय का ज्ञान नहीं रखते हों। ऐसे लोग जरूरत से ज्यादा बातचीत करते हैं। वे बगैर सोचे-समझे करते हैं। इनमें से अधिकतर ऐसे हैं, जो हमेशा नकारात्मक बातें ही करते रहते हैं। हमेशा उनके मुंह से कटु वचन ही निकले रहते हैं। ऐसे लोगों से आप कभी भी संवाद स्थापित नहीं कर सकते।
16. पड़ोसियों से अच्छा व्यवहार करना हर धर्म सिखाता है लेकिन कितने हैं, जो ऐसा करते हैं। पड़ोसियों से अच्‍छा व्यवहार न करने का मतलब है कि आप खुद की और दूसरों की शांति भंग कर रहे हैं। आप जहां भी जाएंगे शांति भंग ही करते रहेंगे। ऐसे लोग हमेशा यदि सोचते रहते हैं कि शांति भंग करने वाला मैं नहीं पड़ोसी ही है, यह जाएगा तभी जीवन में शांति आएगी। ऐसे लोग एक दिन खुद बेघर हो जाते हैं।

17. आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपय्या यानी आमदनी से अधिक खर्च करने वाले उधार लेकर भी जिंदगी बसर करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते और एक दिन वे बुरे दौर में फंस जाते हैं। वे सोचते रहते हैं कि आज तो कर लो खर्चा कल से बचत करेंगे या ज्यादा खर्चा नहीं करेंगे। ऐसे लोगों को बुरा इसलिए कहा जा सकता है, क्योंकि इनकी वजह से दूसरों का जीवन भी संकट में आ जाता है।

 

नजरिया /शौर्यपथ / बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों के गांव लौटने के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराने की चुनौती पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। इस स्थिति में मनरेगा के वार्षिक बजट को लगभग 60,000 करोड़ रुपये से लगभग एक लाख करोड़ रुपये करके सरकार ने एक सराहनीय कदम उठाया है। जिस तरह से रोजगार की मांग के समाचार मिल रहे हैं, उससे तो लगता है कि वह 40,000 करोड़ रुपये की एकमुश्त वृद्धि भी पर्याप्त नहीं है। जैसा कि मनरेगा के कानून में प्रावधान है, अधिक मांग होने पर संसाधन वृद्धि के लिए गुंजाइश बनी रहनी चाहिए। हालांकि मजदूरों को अब शहरी उद्योग और राज्य वापस भी बुलाने लगे हैं। लौटने के लिए मजदूरों को तरह-तरह से प्रलोभन देने की शुरुआत हो चुकी है। मजदूरों को वापस काम पर लाने के लिए विशेष श्रमिक रेल की भी मांग हो रही है। इसके बावजूद मोटे तौर पर अनुमान है कि करीब 30 प्रतिशत मजदूर गांव में ही रह जाएंगे, इसलिए अभी मनरेगा की बहुत मांग है।
मनरेगा के बढ़ते दायरे के इस दौर में हमें बहुत सावधान रहना चाहिए और यह देखना चाहिए कि किन कारणों से इस अच्छी योजना के बहुत अनुकूल परिणाम नहीं मिले हैं। इसका एक प्रमुख कारण तरह-तरह का भ्रष्टाचार रहा है। एक प्रचलन है कि प्रधान या सरपंच अपने नजदीकी अनेक व्यक्तियों के नाम से जॉब कार्ड बनवाकर अपने पास रख लेते हैं। मनरेगा का कार्य जल्दबाजी में मशीनों का उपयोग करके आधा-अधूरा कराते हैं व फिर इन जॉब कार्ड पर मजदूरी दर्ज कर बैंक खातों में डाल दी जाती है। फिर प्रधान साहब इस मजदूरी का बड़ा हिस्सा अपने नजदीकी व्यक्तियों से ले लेते हैं। कुछ अन्य जिम्मेदार लोगों को भी हिस्सा मिल जाता है।
इस अनियमितता का असर यह है कि सरकारी रिकॉर्ड में तो मनरेगा कार्य उत्साहवद्र्धक लगते हैं, पर गांवों में पूछने पर पता चलता है कि जरूरमंदों को रोजगार बहुत कम मिला। एक अन्य समस्या यह रही है कि मजदूरी मिलने में बहुत देर होती है। इस तरह जरूरत के समय राहत देने का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता। मजदूर पहले मेहनत करे, फिर बार-बार दूर के बैंक जाकर पता करे कि उसका पैसा आया है कि नहीं, यह न्यायसंगत नहीं है।
अत: कोरोना के दौर में मनरेगा से जुड़े भ्रष्टाचार को दूर करना और भी अधिक जरूरी हो गया है। ध्यान रहे, जो असरदार लोग भ्रष्टाचार करते रहे हैं, वे आज भी हैं। अत: सरकारों की ओर से विशेष प्रयास जरूरी हैं। एक सप्ताह काम करो और उसी सप्ताह के अंत में पूरी मजदूरी मिल जाए, तो अपनी जरूरतों को पूरा करने में लोगों को बहुत मदद मिलेगी। मनरेगा कानून में मजदूरों की ओर से मांग उठने पर एक प्रक्रिया के अंतर्गत रोजगार मिलता है। इसमें कुछ देर लग सकती है, जबकि आज अनेक जगहों पर तुरंत रोजगार देने की जरूरत है। अत: कानूनी प्रक्रियाओं में कुछ ढील देकर सरकारी स्तर पर अपनी पहल से भी रोजगार की व्यवस्था हो सकती है। हां, इस बात का पूरा ध्यान रखना होगा कि जो भी कार्य हों, वे वास्तविक उपयोगिता के हों।
मनरेगा व अधिक रोजगार देने वाली सरकारी स्कीमों को बढ़ाने के साथ यह समय गांवों के सामाजिक ताने-बाने को सुधारने के लिए भी अनुकूल है। अनेक गांवों में किसान और मजदूर में दूरी आ गई है, जिससे किसान मशीनों की ओर अधिक बढ़ने लगे और मजदूर प्रवासी मजदूरी की ओर। इन बढ़ती दूरियों से किसी को लाभ नहीं हुआ। अब समय है, इन दूरियों को पाटने का, विभिन्न समुदायों की आपसी नजदीकी बढ़ाने का। इस तरह गांव में खेती-किसानी के कार्यों में मजदूरों को गरिमामय माहौल में अधिक कार्य मिल सकेगा। गांव से छुआछूत और भेदभाव जैसी बुराई को पूरी तरह दूर करने के विशेष प्रयास भी होने चाहिए। सभी मजहबों, जातियों व समुदायों के बीच एकता बढ़नी चाहिए, जिससे गांव के सामान्य हित के कार्य में सब आपसी सहयोग से योगदान कर सकें। इस तरह की एकता व समरसता के कारण लोगों को नशे से दूर रहने में भी मदद मिलेगी। इससे महिलाओं को अधिक सुरक्षित माहौल मिलेगा, शिक्षा में प्रगति होगी।
यह सकारात्मक सोच वाले ग्रामीणों के लिए भी कुछ कर दिखाने का समय है। अपने स्तर पर और सरकार के साथ मिलकर वे तमाम योजनाओं को साकार करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) भारत डोगरा, सामाजिक कार्यकर्ता

 

सम्पादकीय लेख /शौर्यपथ / कोरोना के तेज होते संक्रमण के बीच सोमवार को भारत अनलॉक होने की ओर एक बड़ा कदम उठाएगा, अब जितना महत्व जहान का होगा, उससे कहीं अधिक जान का होगा। जहां एक ओर, मॉल खुल जाएंगे, वहीं आधे से ज्यादा धर्मस्थल भी गुलजार हो जाएंगे। रेस्तरां, बाजार में रौनक बढ़ जाएगी, लेकिन यह रौनक तभी सार्थक कही जाएगी, जब संक्रमण काबू में रहेगा। संक्रमण होते ही वह इलाका सील हो जाएगा, लेकिन गौर करने की बात यह है कि अब लगभग सभी सरकारें संक्रमण का जोखिम उठाते हुए भी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना चाहती हैं। केंद्र सरकार के साथ-साथ उन राज्य सरकारों के लिए भी अनलॉक होना मजबूरी है, जिनका खजाना तेजी से खाली हो रहा है। जिन इलाकों में संक्रमण की रफ्तार तेज है, वहां राज्य सरकारों के पास अधिकार है कि वे किसी भी सीमा तक लॉकडाउन रख सकती हैं।
संपूर्णता में देखें, तो ज्यादातर गांव और शहर अब खुल चुके हैं और आज से जैसे-जैसे सार्वजनिक वाहनों की सड़कों पर वापसी होने लगेगी, वैसे-वैसे चहल-पहल बढ़ती जाएगी। इस बीच लोगों को यह सतत ध्यान रखना होगा कि भारत में प्रतिदिन 10,000 के करीब मामले सामने आने लगे हैं, करीब 7,000 लोग जान गंवा चुके हैं और 2.50 लाख से अधिक संक्रमित हो चुके हैं। इसी में एक सुखद संकेत यह भी है कि करीब 1.20 लाख लोग ठीक हो चुके हैं। बहरहाल, जब हम अपने जहान की चिंता में निकल पड़े हैं, तो सबसे बड़ा यह सवाल लोगों को मथ रहा है कि आखिर कोरोना कब पीछा छोडे़गा? देश के स्वास्थ्य मंत्रालय के दो वरिष्ठ विशेषज्ञ अधिकारियों ने अनुमान लगाया है कि भारत को सितंबर के मध्य में कोरोना संक्रमण से मुक्ति मिलेगी। इन दोनों अधिकारियों, अनिल कुमार और रुपाली रॉय का शोध इपेडिमियोलॉजी इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इन आला अधिकारियों ने बेलीज गणितीय प्रणाली का इस्तेमाल करके नतीजा निकाला है कि कोरोना लगभग तीन महीने का मेहमान है। संक्रामक रोगों के प्रभाव के आकलन के लिए प्रचलित इस गणितीय प्रणाली को मोटे तौर पर अगर हम समझें, तो जब संक्रमितों की कुल संख्या ठीक होने व मरने वालों की सम्मिलित संख्या के बराबर पहुंच जाएगी, तब इस बीमारी का अंत होगा। 19 मई को पहली बार इस प्रणाली से की गई गणना के अनुसार, हम उस राह पर 42 प्रतिशत चल चुके थे और अभी कोरोना की यात्रा 50 प्रतिशत ही पूरी हुई है। सितंबर के मध्य में यह यात्रा 100 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी और तभी कोरोना का अंत होगा।
अब सवाल यह कि यह गणना कितनी सटीक है? वैसे, वैज्ञानिक-गणितीय गणनाएं अमूमन गलत नहीं होतीं, पर अहम सवाल यह कि इन गणनाओं में इस्तेमाल डाटा कितने पुख्ता हैं? देश में कोरोना-जांच कितनी होनी चाहिए और कितनी हो रही है? कुछ जगहों पर तो कोरोना संक्रमण के हल्के मामलों की गणना ही नहीं हो रही, सिर्फ गंभीर मामले दर्ज किए जा रहे हैं। कुल मिलाकर, यह गणितीय भविष्यवाणी भी हमें परोक्ष रूप से प्रेरित करती है कि हम कोरोना को कतई हल्के में न लें। कोरोना संक्रमण से हरसंभव तरीके से बचें। शंका हो, तो जांच करने-कराने में रत्ती भर कोताही न बरतें। सतर्कता सोलह आना होगी, हमारे आंकडे़ दुरुस्त होंगे, तो हम महामारी को बेहतर ढंग से पटकनी दे पाएंगे।

 

मेलबॉक्स / शौर्यपथ / धीरे-धीरे देश खुलने लगा है। अर्थव्यवस्था भी पटरी पर आने लगी है। इसी कड़ी में स्कूल खोलने का प्रस्ताव भी है। जब जून-जुलाई में कोरोना संक्रमण के शीर्ष स्तर पर पहुंचने की आशंका हो और संक्रमित मरीजों की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही हो, तब बच्चों को स्कूल बुलाने का निर्णय जल्दबाजी भरा और नौनिहालों के लिए घातक हो सकता है। यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि विद्यालयों में तमाम इंतजाम के बाद भी दो गज की दूरी का पालन करना कठिन होगा, खासतौर से छोटे बच्चों को लेकर चिंता ज्यादा है। लिहाजा सरकार को चाहिए कि वह इस संवेदनशील विषय पर पर्याप्त विचार-विमर्श करे और संक्रमण-दर में स्थिरता आने पर ही कोई फैसला ले। जल्दबाजी में किसी भी प्रकार का निर्णय बच्चों के खिलाफ जा सकता है।
शंकर वर्मा, मीत नगर, शाहदरा

मानसून की दस्तक
अर्थव्यवस्था की तमाम मुश्किलों के बीच एक राहत देने वाली खबर है। मानसून दस्तक दे चुका है। उम्मीद है कि इस बार यह बेहतर साबित होगा। कृषि-प्रधान भारत में मानसून का वक्त पर आना और पर्याप्त बारिश का होना अत्यावश्यक है। मगर हर बार की तरह इस साल भी देश ने मानसूनी बारिश से होने वाले नुकसान से बचने की शायद ही तैयारी की है। सैकड़ों टन अनाज खुले में रखे हुए हैं। खेतों में वाटर रिचार्जिंग के प्रति भी सजगता का अभाव दिख रहा है। साफ है, इस बाबत जब तक कोई सख्त कानून नहीं बनेगा, तस्वीर नहीं बदलेगी। वर्षा जल का संरक्षण कई मायनों में हमारे लिए फायदेमंद हो सकता है।
सुभाष बुड़ावन वाला, रतलाम

चीनी उत्पादों के खिलाफ
भारत में चीनी सामान के बहिष्कार की बात हमेशा से की जाती रही है, पर व्यापक स्तर पर इसे कभी अमल में नहीं लाया गया। मगर अब चीनी उत्पादों के पूर्ण बहिष्कार का समय आ गया है। एक तो कोरोना जैसी महामारी को फैलाने का आरोप चीन पर है, और फिर वह भारत से सीमा-संबंधी विवाद में उलझा हुआ है। वह हमारे सामने लगातार बाधाएं खड़ी कर रहा है। ऐसे में, सभी भारतीयों को चीनी उत्पादों के बहिष्कार का प्रण लेना चाहिए। इसका असर जैसे ही चीन के बाजार पर पडे़गा, उसको अपनी हैसियत का अंदाजा हो जाएगा। भारतीय कितने प्रभावशाली हो गए हैं, इसका एहसास इससे भी होता है कि टिक टॉक के खिलाफ भारतीयों की मुहिम के बाद इस एप की रेटिंग गिरकर जमीन पर आ गई थी। चीनी उत्पादों के बहिष्कार के दो फायदे होंगे। एक तो चीन को सबक मिलेगा, और दूसरा, भारत के कुटीर उद्योगों को नई ताकत मिलेगी। इससे लघु उद्योगों से जुड़े हमारे लोगों की स्थिति सुदृढ़ होगी और हमारे देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी।
नीतीश पाठक, औरंगाबाद, बिहार

निजीकरण का नया क्षेत्र
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और वहां की निजी अंतरिक्ष कंपनी स्पेसएक्स के संयुक्त प्रयास से पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर दो यात्रियों को पहुंचाया गया। ऐसा पहली बार हुआ, जब किसी निजी कंपनी के रॉकेट से अंतरिक्ष यात्रियों को भेजा गया। यह स्पेसएक्स के लिए बेहतरीन उपलब्धि है। भारत को भी इससे सीख लेनी चाहिए। हाल के दिनों में भारत सरकार ने यह घोषणा की भी है कि अंतरिक्ष अभियानों में इसरो के साथ-साथ निजी कंपनियों को बढ़ावा दिया जाएगा। हालांकि, हम अमेरिका से प्रतिस्पद्र्धा नहीं कर सकते, पर यह एक अच्छी शुरुआत है। प्रतिभा और निवेश का सही उपयोग करके ही कठिन लक्ष्यों को साधा जा सकता है। अंतरिक्ष-खोज कार्यक्रम में भारत को आत्मनिर्भर बनाने और विश्व पटल पर एक स्पेस पावर बनाने की दिशा में यह बेहद सराहनीय प्रयास है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए।
ऋत्विक रवि, टैगोर गार्डन, नई दिल्ली

 

अम्बिकापुर/ शौर्यपथ / मानव कल्याण एवं समाजिक विकास संगठन द्वारा संचालित शोध प्रोत्साहन मंच के तत्वाधान में विश्व पर्यावरण दिवस के परिपेक्ष में ऑनलाइन सेमिनार का आयोजन किया गया जिसका विषय पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन की सार्थकता पर था । इस आयोजन में छत्तीसगढ़ प्रदेश स्तर की विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के प्राध्यापक, एवं समाज सेवकों के द्वारा व्याख्यान ऑनलाइन माध्यमों से प्रस्तुत किए। व्याख्यान की समीक्षा उमेश कुमार पांडे जी के द्वारा किया गया जिनके अनुसार यह कहा गया कि सभी प्राध्यापकों के द्वारा व्याख्यान के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन के संबंध में बहुत सारी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई जिनमें एक बात तो सामने आती है जो हम सबको यह बताती है कि वर्तमान समय पूरे पृथ्वी में और पर्यावरण संकट की ओर हम सभी का ध्यान आकर्षित कर रहा है . हमें इसमें संतुलन बनाए रखने के लिए आपसी सामंजस्य व भोग विलास की चीजों का उपयोग उसी आशय पर करें ताकि पर्यावरण संरक्षित व संवर्धित हो सके। इस व्याख्यानमाला में शोध प्रोत्साहन मंच के व्हाट्सएप ग्रुप के अंतर्गत प्राध्यापकों एवं अन्य बाैध्दिक जनों के द्वारा आमंत्रित व्याख्यान व प्रस्तुति के आधार पर उत्कृष्ट प्रस्तुति हेतु सभी को विश्व पर्यावरण दिवस के परिपेक्ष्य में *पर्यावरण मित्र* सम्मान से सम्मानित किया गया एवं यह सम्मान पत्र संगठन के संरक्षक आदरणीय ललित मिश्र जी के द्वारा व्हाट्सएप के जरिए प्रेषित किया गया इस अवसर पर सभी प्राध्यापक गण जो कि व्याख्यानमाला में मौजूद थे सह: सम्मान ऑनलाइन माध्यम से अपना प्रमाण पत्र प्राप्त किये जिनमें डा. ए. के. श्रीवास्तव, श्री अजीत कुमार मिश्रा, डॉ आशुतोष पांडेय डॉ. एम. के. मौर्य, डॉक्टर धर दीवान ,डॉ. स्नेहलता बर्डे, डॉ. अजय पाल सिंह, पत्रकार अमित गौतम, ज्ञानी दास मानिकपुरी, धर्मेंद्र श्रीवास्तव , श्रीमती मनीषा दास, अंचल सिन्हा , श्रीमती अर्चना पाठक, श्रीमती पूनम दुबे, श्रीमती अनीता मंदिलवार, श्रीमती आशा पांडेय , वनवासी यादव, कुंज बिहारी सिंह पैकरा ,बालकृष्ण मेहराेत्रा, पुखराज यादव , कृष्ण शरण पटेल, अमन कुमार गुप्ता के साथ अन्य प्राध्यापक व अधिक चिंतक मौजूद रहे इस अवसर पर संगठन के संस्थापक अध्यक्ष के द्वारा इस कार्यक्रम में सभी की सहभागिता एवं सहयोग के लिए आभार व्यक्त किया गया साथ ही साथ शोध प्रोत्साहन मंच के मार्गदर्शक आदरणीय प्राे. डॉक्टर एस. के. श्रीवास्तव सर एवं प्रदेश संरक्षक आदरणीय ललित मिश्र जी को सह:सम्मान पर्यावरण मित्र सम्मान पत्र प्रदान किया गया । उक्त जानकारी संगठन के संस्थापक अध्यक्ष उमेश पांडेय ने दी ।

ओपिनियन /शौर्यपथ / उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद की एक छोटी सी कॉलोनी है कौशांबी। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण की इस कॉलोनी की अकेली विशेषता यही है कि यह बिल्कुल दिल्ली की सीमा पर है। सड़कके इस पार कौशांबी है, उस पार दिल्ली के पटपड़गंज और आनंद विहार। आनंद विहार की गिनती दिल्ली के सबसे प्रदूषित इलाकों में होती है और जिन दिनों यह प्रदूषण अपने चरम पर पहुंचता है, तो जिस सबसे नजदीकी रिहाइशी बस्ती को इसका प्रकोप झेलना पड़ता है, वह कौशांबी ही है। इसी कौशांबी में रहने वाला एक शख्स साल 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन खड़ा करके रातों-रात राष्ट्रीय परिदृश्य पर छा गया था। आंदोलन का असर इतना ज्यादा हुआ कि कुछ ही महीनों के भीतर जब विधानसभा के चुनाव हुए, तो दिल्ली की जनता ने उस शख्स को मुख्यमंत्री की कुरसी तक पहुंचा दिया।
जब तक उनकी शर्तों के हिसाब से दिल्ली में मुख्यमंत्री निवास का इंतजाम नहीं हो गया, अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के कई दिन बाद तक कौशांबी के अपने फ्लैट से ही काम करते रहे। यानी कुछ दिनों के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री का निवास उत्तर प्रदेश में था। उन दिनों यह भी कहा जाता था कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली के पहले अनिवासी मुख्यमंत्री हैं। उनके मुख्यमंत्री बनने से उन दिनों अगर कोई सबसे ज्यादा खुश था, तो कौशांबी के निवासी, क्योंकि उनके बीच का एक शख्स दिल्ली का मुख्यमंत्री बन गया था।
लेकिन अब शायद कौशांबी के यही लोग सबसे ज्यादा निराश भी होंगे। दिल्ली का सबसे ज्यादा प्रदूषण सूंघने वाले इन लोगों के लिए दिल्ली के अस्पतालों के दरवाजे अब बंद हो गए हैं। कोरोना-काल में अरविंद केजरीवाल सरकार ने आदेश जारी करके दिल्ली के अस्पतालों को अब दिल्ली निवासियों के लिए ही आरक्षित कर दिया है। गाजियाबाद ही नहीं, नोएडा, गुड़गांव (अब गुरुग्राम), फरीदाबाद और सोनीपत वगैरह दिल्ली के पड़ोसी जिलों में रहने वाले अब दिल्ली के किसी सरकारी या सरकारी मदद से चल रहे अस्पताल में अपना इलाज नहीं करा सकेंगे, भले ही उन्हें मर्ज दिल्ली से ही क्यों न मिला हो।
पिछले दिनों जब दिल्ली में कोविड-19 का संक्रमण तेजी से बढ़ने लगा, तो हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने दिल्ली से लगी अपनी सीमाओं को सील कर दिया। यह ठीक है कि दिल्ली में कोरोना संक्रमण काफी तेजी से फैल रहा है और मुंबई के बाद यह संक्रमण का सबसे घना क्षेत्र बन गया है, लेकिन सिर्फ इसी से पूरी दिल्ली के साथ संक्रमण क्षेत्र जैसा व्यवहार करते हुए सीमाओं को सील करने की काफी आलोचना हुई। यह एक तरह से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की उस अवधारणा को भी नकारना था, जिसका लाभ प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से इन दोनों राज्यों को भी मिलता है, लेकिन अब अरविंद केजरीवाल ने इलाज के लिए भी दिल्ली के दरवाजे बंद करके इस अवधारणा को नए रसातल में पहुंचाने की तैयारी कर ली है।
गाजियाबाद, नोएडा, गुड़गांव, फरीदाबाद और सोनीपत में कौन लोग रहते हैं? ये ज्यादातर वे लोग हैं, जो या तो सीधे दिल्ली में काम करते हैं या उनके रोजगार किसी न किसी तरह से दिल्ली से जुड़े हुए हैं। ये हर सुबह दिल्ली पहुंचते हैं, दिन भर उसकी जीडीपी में योगदान देते हैं और शाम को थके-हारे मेट्रो, बस, टैंपो वगैरह में धक्के खाते हुए अपने घर वापस आ जाते हैं। पिछले तीन-चार दशक में दिल्ली के भूगोल में यह गुंजाइश लगातार खत्म होती जा रही है कि वह अपने ऐसे सभी कामगारों, पेशेवरों और कारोबारियों को छत मुहैया कर सके। दिल्ली को उन सबकी जरूरत है, पर वह उनकी आवास जरूरत को पूरी करने की स्थिति में नहीं है। सीमित जगह होने के कारण दिल्ली में जमीन-जायदाद की कीमतें भी इस तरह आसमान पर जा पहुंची हैं कि बहुत समृद्ध लोगों के लिए भी वहां आवास बनाना अब आसान नहीं रह गया है। जो सुबह से शाम तक दिल्ली को समृद्ध बनाने में जुटते हैं, वे कभी ऐसी हैसियत में नहीं पहुंच पाते कि वहां अपना घर बना सकें। ऐसे लोग पड़ोसी जिलों में शरण लेने को मजबूर होते हैं और वहां के ‘प्रॉपर्टी बूम’ का कारण बनते हैं। इसमें कोई नई बात भी नहीं है। दुनिया भर में यही होता है। आगे बढ़ते और तरक्की करते हुए नगर इसी तरह विस्तार पाते हैं और फिर महानगर में तब्दील हो जाते हैं।
यही वे स्थितियां रही होंगी, जिनके चलते कभी अरविंद केजरीवाल को कौशांबी में घर लेने को मजबूर होना पड़ा होगा। दिल्ली के जीवन में उन्होंने अपना योगदान पहले नौकरी करके दिया, उसके बाद एक लोकतांत्रिक जनांदोलन चलाकर और फिर उसकी पूरी राजनीति को बदलकर। दिल्ली में हर रोज आने-जाने वाले बाकी लोगों का योगदान हो सकता है कि किसी को इतना उल्लेखनीय न लगे, पर वे भी योगदान तो देते ही हैं।
बहरहाल, दिल्ली सरकार के ताजा फैसले ने बता दिया है कि जिनके लिए इस शहर के भूगोल में जगह नहीं है, उनके लिए स्थानीय सरकार के दिल में भी जगह नहीं है। यह फैसला उस समय हुआ है, जब लॉकडाउन खुलने के बाद कोरोना वायरस का संक्रमण दिल्ली में काफी तेजी से फैल रहा है और पड़ोसी जिलों के तमाम लोग इस जोखिम के बीच हर रोज दिल्ली जाने और वहां से लौटने को मजबूर हैं। दिल्ली में उनके लिए संक्रमण की आशंकाएं अपने निवास वाले जिले से कहीं अधिक हैं, पर दिल्ली में उनके इलाज की संभावनाएं अब शून्य हो चुकी हैं। दुर्भाग्य यह है कि जिन जिलों में उनका निवास है, वहां चिकित्सा सुविधाएं इसी सोच के साथ बहुत ज्यादा विकसित नहीं की गईं कि पड़ोस में दिल्ली तो है ही, पर अब दिल्ली ने भी हाथ झाड़ लिए हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) हरजिंदर, वरिष्ठ पत्रकार

 

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