February 06, 2025
Hindi Hindi

जिंदगी से शिकायत नहीं रही

       जीना इसी का नाम / शौर्यपथ /कोई मां अपनी ग्यारह साल की बेटी को मजदूरी करने के वास्ते साथ चलने को कहे, तो उसे कैसा लगा होगा? मां को भी और उस मासूम को भी? मगर कहना पड़ता है। दुनिया की बहुत सारी माओं को उनकी किस्मत इस आजमाइश में डालती रही है। ढाका की एक बेहद गरीब बस्ती में पैदा हुई नजमा को जब उनकी मां ने अपने साथ गारमेंट फैक्टरी चलने को कहा, तब उन्हें बहुत दुख हुआ था, मगर उनके पास तो इसरार करने का भी विकल्प न था।
घर से फैक्टरी के रास्ते में नजमा जब अपनी हमउम्र बच्चियों को स्कूल जाते या खेलते देखतीं, तो उनका बालमन उदास हो जाता, मगर ऐसी तमाम हसरतें घर की दहलीज पर पहुंच दम तोड़ देतीं, क्योंकि अंदर एक बड़ा कुनबा इस इंतजार में होता कि मां-बेटी बाजार से कुछ सौदा लेकर आई हैं या नहीं? दादी-नानी और छोटे भाई-बहनों की आंखें उन दोनों पर ही टिकी होती थीं, क्योंकि नजमा के पिता की कमाई इतनी भी न थी कि वह सबका पेट भर पाते।
वर्षों के संघर्ष ने जिंदगी से शिकायतों का जैसे पन्ना ही फाड़ दिया। घरवालों को अभावों से कुछ राहत मिले, इसकी एक ही सूरत थी कि घर में पैसे आएं और इसके लिए नजमा ने दिल लगाकर काम सीखा। फिर वह लंबे-लंबे वक्त तक काम करने लगीं। किसी-किसी दिन तो चौदह घंटे तक सिलाई करती रह जातीं। मगर हासिल क्या होता? पगार में देरी, किसी न किसी बहाने उसमें कटौती, बल्कि कई बार तो बेवजह ही कम भुगतान किया जाता और सुपरवाइजरों, मालिकों के हाथों बेइज्जती सहनी पड़ती थी।
नजमा के भीतर इस शोषण और नाइंसाफी के खिलाफ गुस्सा गहराता रहा। फिर एक मोड़ आया, जब उन्होंने कुछ महिला कामगारों के साथ मिलकर इस सबका मुखर विरोध किया। जाहिर है, फैक्टरी प्रबंधन को यह नागवार गुजरा और उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। यही नहीं, नजमा का नाम काली सूची में डाल दिया गया, ताकि उन्हें फिर कभी काम पर नहीं रखा जा सके।
औरत की बगावत सामंती समाजों को हजम नहीं होती। फिर नजमा तो जिस फैक्टरी में काम करती थीं, वह एक स्थानीय बाहुबली की थी। वह अक्सर अपने कामगारों को डराता-धमकाता रहता। लेकिन इस बार सामने नजमा थीं। बदलाव के संकल्प से भरी एक युवती। फिर उनकी मांग भी कुछ ऐसी थी, जो ज्यादातर कामगारों को अपील कर रही थी। दरअसल, बांग्लादेश में रेडीमेड वस्त्र बनाने वाली फैक्टरियों में ज्यादातर औरतें काम करती हैं। बकौल नजमा इस क्षेत्र के कामगारों में महिलाओं की भागीदारी 80 प्रतिशत से भी ज्यादा है। फिर भी उनके साथ अच्छा सुलूक नहीं होता था।
नजमा की उम्र तब 27-28 साल रही होगी। उन्होंने कई मजदूर संघों से संपर्क किया। कुछ के लिए तो बाद में काम भी किया, मगर वे सब किसी न किसी सियासी जमात के हित-पोषक ज्यादा थे। इन मजदूर संगठनों में भी औरतों के अधिकारों को लेकर नजमा को दोहरापन महसूस हुआ। तब उन्होंने कुछ साथी कामगारों के साथ मिलकर अपना संगठन बनाने का फैसला किया। नाम रखा- ‘सम्मिलतो गारमेंट्स श्रमिक फेडरेशन।’ आज सत्तर हजार से अधिक महिला कामगार इसकी सदस्य हैं। नजमा ने इसके जरिए महिला कामगारों को समान तनख्वाह, फैक्टरियों के निर्णायक बोर्ड में उनकी नुमाइंदगी और उनके खिलाफ यौन हिंसा समेत हर तरह के दुव्र्यवहार पर रोक की मांग जोरदार तरीके से उठाई।
लड़ाई आसान न थी। नजमा ने एक जमे-जमाए सिस्टम को चुनौती दी थी। उन्हें जान से मारने की धमकियां दी जाने लगीं। जब नजमा इससे नहीं डरीं, तो फिर जैसा कि अक्सर महिलाओं के मामले में होता है, उनके चरित्र पर कीचड़ उछाला जाने लगा। बिरादरी में उनके बारे में तरह-तरह की अफवाहें उड़ाई गईं।
मेहनतकश लोगों को रोटी से कुछ कम अजीज अपनी आबरू नहीं होती। नजमा पर उनके बाबा और चाचा का दबाव पड़ने लगा कि वह इस सबमें और मुब्तला न हों। मगर उन्होंने अपने घर वालों को समझाया कि अगर वह झुक गईं, तो यह न सिर्फ अपने खिलाफ जारी दुष्प्रचार को सही ठहराना होगा, बल्कि उनके ऐसा करने से अनेक साथियों की उम्मीदें भी टूट जाएंगी। नजमा ने अपना संघर्ष जारी रखा। समूचे रेडीमेड गारमेंट सेक्टर के मजदूरों को उनका अधिकार दिलाने के इरादे से साल 2003 में नजमा ने आवाज फाउंडेशन की बुनियाद रखी। उनका यह संगठन ढाका और चिटगांव इलाके के हजारों मजदूरों को अब तक लगभग 19 करोड़ टका का बकाया हक दिला चुका है।
औपचारिक शिक्षा और स्कूल का कभी मुंह न देखने वाली नजमा अख्तर आज धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलती हैं। उन्होंने स्वाध्याय से यह ज्ञान अर्जित किया है। वह साल 2006 से ही ‘बांग्लादेश मिनिमम वेज बोर्ड’ की सदस्य हैं। उनके प्रेरक संघर्ष और योगदान को सम्मान देते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2018 में उन्हें सुनने के लिए बुलाया। वह कहती हैं- इतने कम समय में इतना कुछ मिल गया कि जिंदगी से अब कोई शिकायत नहीं रही!
प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह नजमा अख्तर, बांग्लादेशी मजदूर नेता

 

Rate this item
(0 votes)

Leave a comment

Make sure you enter all the required information, indicated by an asterisk (*). HTML code is not allowed.

हमारा शौर्य

हमारे बारे मे

whatsapp-image-2020-06-03-at-11.08.16-pm.jpeg
 
CHIEF EDITOR -  SHARAD PANSARI
CONTECT NO.  -  8962936808
EMAIL ID         -  shouryapath12@gmail.com
Address           -  SHOURYA NIWAS, SARSWATI GYAN MANDIR SCHOOL, SUBHASH NAGAR, KASARIDIH - DURG ( CHHATTISGARH )
LEGAL ADVISOR - DEEPAK KHOBRAGADE (ADVOCATE)