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नई दिल्ली / शौर्यपथ / दुनिया भर में अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़ी महिलाओं को सम्मान देने के लिहाज से हर साल 8 मार्च को अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इस खास अवसर पर खास महिलाओं को सम्मानित किया जाता है। ऐसे में आज आपको दो ऐसी बहनों के बारे में बता रहे है जिनकी सफलता पर आप गर्व करेंगे।
दरअसल, हरियाणा के सोनीपत की रहने वाली दो जुड़वा बहन नुंग्शी और ताशी मलिक ने माउंट एवरेस्ट पर फतह हाशिल कार विश्व रिकॉर्ड कायम किया, इन बनहनों ने पहली जुड़वा बहन, जिसने ऐवरेस्ट फतह किया का रिकॉर्ड अपने नाम किया है।
दोनों बहनों की सफलता पर हरियाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी ने कहा था कि, इन दोनों ने न सिर्फ राज्य का बल्कि देश का नाम रौशन किया है और अन्य लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनी हैं। इन दोनों जुड़वा बहनों ने विश्व के सातों महाद्वीप के सबसे ऊंचे पर्वत शिखरों पर चढऩे के लक्ष्य के साथ माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया है।
नुंग्शी और ताशी ने माऊंट एवरेस्ट के अलावा अब तक माऊंट किलिमानजारो, यूरोप में माउंट एलब्रस, दक्षिण अमेरिका में माऊंट एकोनकागुआ और आस्ट्रेलिया में माउंट कार्सटेन्स्ज पिरामिड पर भी फतह हाशिल किया है और अब भी अपनी सफता के पथ पर आगे बढ़ रही है।
आपको बता दें कि इन दोनों बहनों को अपने सफर के शुरुआती दौर में काफी संघर्ष का सामना किया। लेकिन इन बच्चियों को इनके पिता और परिवार से सहयोग मिला जिलका परिणाम है कि ये बेटियां आय दिन सफलता के नए झंडे गाड़ते हुए घर, परिवार और देश का नाम रोशन रही है।
ये दोनों बहने हॉकी और एथलेटिक्स की खिलाड़ी रह चुकी हैं, जिसके बाद ताशी-नुंग्शी ने पर्वतारोहण की शुरुआत साल 2009 में उत्तरकाशी स्थित नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग में पर्वतारोहण के कोर्स के साथ किया।महिला दिवस के खास अवसर पर ऐसी सभी बेटियों और महिलाओं को शौर्यपथ परिवार की ओर से खास बधाई, अपने पथ पर ऐसे ही बढ़ते रहिए...
शौर्यपथ / चोरी करने से पहले चोर अपनी पहचान छुपाने के लिए नक़ाब आदि पहनते हैं. मगर अमेरिका में दो चोर एक दुकान में चोरी करने लिए ख़ास मास्क लगा कर पहुंचे. ये मास्क बना था तरबूज़ से, जी हां, तरबूज. इनकी तस्वीरें सीसीटीवी में कैद हो गई थीं, जिनमें वो फ़ोटो के लिए बड़े ही शान से पोज देते नज़र आ रहे थे.
ये पूरा मामला अमेरिका के Virginia राज्य का है. यहां दो चोर एक स्टोर में तरबूज़ का मास्क लगाकर चोरी करने गए थे. उनकी पहचान करने के लिए Louisa Police Department ने इनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर की थीं, जो देखते ही देखते वायरल हो गईं.
पुलिस के अनुसार, दोनों चोर तरबूज़ का मास्क लगाकर एक काले कलर के ट्रक में दुकान को लूटने आए थे. उन्होंने तरबूज़ के खोल को इस तरह पहना था कि उससे सिर्फ़ उनकी आंखें ही दिखाई दे रही थी. उन्हें ऐसे पहचानना मुश्किल था.
ग़ौरतलब है कि पुलिस ने इन दोनों चोरों को पकड़ लिया है. उनकी असल तस्वीर किसी ने पुलिस को सोशल मीडिया की मदद से सेंड कर दी थी. इन तस्वीरों में वो दोनों वही कपड़े पहने हुए थे, बस उन्होंने तरबूज़ वाला मास्क नहीं लगा रखा था. इन्हें चोरी से कुछ समय पहले एक सीसीटीवी ने कैद किया था.
शौर्य की दुनिया / शख्सियत /
गिरीश कर्नाड एक जाने-माने राइटर, एक्टर, डायरेक्टर और नाटककार थे. इसके साथ ही सामाजिक मुद्दों पर भी वो खुलकर अपनी राय दुनिया के सामने रखते थे. बाबरी मस्जिद को गिराने का विरोध करने से लेकर पीएम मोदी को सत्ता से बाहर रखने के लिए साइन किए पीटिशन तक में उनकी बेबाकी झलकती है.
उन्होंने हिंदी सिनेमा और थिएटर में भी ख़ूब काम किया. उनकी गिनती ऐसी शख़्सियतों में होती है जिन्होंने भारतीय थिएटर के लिए सबसे गंभीर नाटकीय लेखन की नींव रखी थी. गिरीश कर्नाड जी को लिखने का बहुत शौक़ था. साहित्य में रूची होने के चलते ही उन्होंने रंगमंच के लिए कई नाटक भी लिखे. 'ययाति', 'अंजु मल्लिगे', 'तुगलक', 'हयवदन', 'अग्निमतु माले', 'नागमंडल' ,'अग्नि और बरखा' जैसे नाटक उन्होंने लिखे थे. उनके इन नाटकों की दर्शकों ने ख़ूब प्रशंसा की थी.
गिरीश कर्नाड जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मश्री और पद्म भूषण जैसे कई अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था. उन्होंने 1970 में कन्नड़ फ़िल्म 'संस्कार' से अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत की थी. इसके बाद उन्होंने कन्नड़, तमिल, मलयालम, तेलुगू, मराठी और हिंदी फ़िल्मों में बेहतरीन अभिनय से दर्शकों का दिल जीता था.
उन्होंने 'निशांत', 'मंथन', 'पुकार', 'डोर', 'टाइगर ज़िंदा है', 'एक था टाइगर' जैसी हिंदी फ़िल्मों में काम किया था. गिरीशी जी ने छोटे पर्दे में भी अपना हाथ आज़माया था, इसमें 'मालगुड़ी डेज़' सबसे ख़ास है. इसमें उन्होंने शो के लीड कैरेक्टर स्वामी के पिता की भूमिका निभाई थी. लोग भले ही उन्हें फ़िल्में और थिएटर के लिए जानते हों मगर बचपन में वो एक कवि बनना चाहते थे. गिरीश कर्नाड ने अपने एक इंटरव्यू में इस बात का ख़ुलासा किया है.
कहते हैं- ’मेरे माता-पिता को नाटकों का शौक़ था. उनके साथ मैं भी नाटक देखने जाता था. यहीं से नाटकों ने मेरे मन में जगह बना ली थी. मैं बचपन से ही ‘यक्षगान’ का बहुत बड़ा फ़ैन रहा हूं. बचपन से ही मैं अंग्रेज़ी भाषा का कवि बनने का सपना देखता था. यहां तक कि जब मैं अपना पहला और सबसे प्रिय नाटक 'ययाति' लिख रहा था, तब नाटकों में रुचि होने के बावजूद मैंने नाटककार बनने का नहीं सोचा था.‘
उनकी आख़िरी हिंदी फ़िल्म 'टाइगर ज़िंदा है' थी. अपनी फ़िल्मों और नाटकों के ज़रिये वो सदा हमारे साथ रहेंगे.
शौर्य की दुनिया / कुदरत ने फुर्सत के पलों में कई जीवों में जान फूंकी है. ज़रा अपने दायरे से बाहर निकल कर देखिए, दुनिया की हज़ारों ऐसी प्रजाती हैं जिन तक सिर्फ़ National Geographic या Discovery Channel वाले ही पहुंच सकते हैं. इन प्रजातियों का जिक्र किताबों में मिलना भी मुश्किल है. कुछ महासागर की गहराई में पाए जाते हैं, तो कुछ घने जंगलों के बीच बसे हैं. ऐसे ही दुर्लभ जीवों की सूची पेश है आपके लिए.
ये जानवर ज़ेब्रा और जिराफ का मिश्रण है. ये मध्य अफ्रीका में पाया जाता है.
Sea Pig को ज़्यादातर लोग Scotoplanes के नाम से भी जानते हैं. ये अटलांटिक, प्रशांत और हिंद महासागर की 1000 मीटर गहराई में पाए जाते हैं.
इनकी चोंच जूते के आकार की होती है. इसी वजह से इनका नाम Shoebill पड़ा है.
ये छिपकली आसानी से रेगिस्तान की मिट्टी में छिप जाती है. इसका एक नकली सिर होता है जिसे ये लोगों को धोखा देने के लिए निकालती है.
ये नीली मछली अटलांटिक महासागर में पायी जाती है.
भारत में पाई जाने वाली मेंढ़कों की ये एक विचित्र प्रजाती है. इनका शरीर अजीब सा मोटा होता है. ये साल भर धरती के अंदर रहते हैं और संभोग के लिए सिर्फ़ दो हफ़्ते धरातल पर बिताते हैं.
ये साइगा हिरण अपनी अजीब नाक के लिए जाना जाता है.
ये सांप अफ्रीका के ट्रॉपिकल जंगलों में पाया जाता है और अपना ज़्यादातर शिकार रात के अंधेरे में करता है.
इस मछली को Ball Cutter भी कहते हैं. इसके दांत कुछ-कुछ इंसानों जैसे होते हैं और ये अपने शिकार को काटने से चूकती नहीं हैं.
इसे ब्लू ड्रैगन भी कहते हैं. इसके पेट में गैस भरी होती जिसकी वजह से ये समुद्र के गुनगुने पानी की सतह पर तैरते दिखाई देते हैं.
ये कीट फीलों के पराग खा कर जीवत रहते हैं और इनकी आवाज़ भी Hummingbird की तरह होती है.
ये पतंगा और मधुमक्खी जैसा दिखने वाला अजीब सा जीव साल 2009 में Venezuela में पाया गया था. इस जीव की कोई खास जानकारी नहीं है जीव वैज्ञानिकों के पास.
ये कीड़े अपने चोंच से फूल के तने में छेद करके खाना खाते हैं. वैज्ञानिकों को इनके बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है.
इस जीव को Sea Locusts, Prawn Killer या Thumb Splitters भी कहते हैं. ये ट्रॉपिकल और सब-ट्रॉपिकल पानी में पाए जाते हैं. ये अधिक्तर वक्त अपने बिल में छिपे रहते हैं.
इन चीटों के शरीर पर सफेद और काले रोए होते हैं. जिसकी वजह से इन्हें Panda Ant कहते हैं. ये Chile में पाए जाते हैं और इनके रेशे काफी नोकीले होते हैं.
इस जानवर को वास्तव में Atretochoana Eiselti कहते हैं. इसका अगला हिस्सा Penis जैसा दिखता है.ये एक चपटे सिर वाला बड़ा जीव है, जिसका शरीर काफी चिकना होता है.
ये लाल होठों वाली मछली Galápagos Islands में पाई जाती है. ये मछली तैर नहीं पाती इसलिए समुद्री तल पर चलती है.
Goblin Shark लगभग पूरी दुनिया में पाई जाती है, पर समुद्री सतह के 100 मीटर की गहराई में. ये लोगों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती है.
शौर्य की दुनिया / किसी बात की आदत होना गलत बात नहीं, लेकिन लत यानी एडिक्शन कई बार बहुत हानिकारक हो सकता है. दिल्ली में एक ऐसे ही हानिकारक एडिक्शन की बात पता चली है. दिल्ली के नजफगढ़ इलाके के रहने वाले सनी को एक ऐसे ड्रग की आदत लग गई थी जिसे घोड़ों को दिया जाता था. ये ऐसा ड्रग था जो परफॉर्मेंस बढ़ाता था और सनी को बॉडीबिल्डिंग का शौख था. धीरे-धीरे कर इंजेक्शन लेने लगे और इसके कारण ही अब उन्हें अस्पताल जाना पड़ा. वहां उनका इलाज हो रहा है.
एडिक्शन कई बार इतने अजीब हो जाते हैं कि बाकी सभी चीज़ें आम लगने लगती हैं. ये विक्स वेपोरब सूंघने या वीडियो गेम के दीवाने हो जाने जैसे एडिक्शन नहीं बल्कि कुछ तो इतने भयावह हैं कि उनके बारे में सोचकर ही डर लग जाए. दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जो इतने अजीबो-गरीब एडिक्शन का शिकार हैं कि वो आम लोगों की तरह न जिंदगी जी सकते हैं और न ही अपने रोजमर्रा के काम कर सकते हैं.
1. कार के साथ सेक्स
एक इंसान जो कार के साथ सेक्शुअल रिलेशनशिप में है और उसी में अपना पार्टनर खोजता है. एरिजोना के निएंड्रिथल असल में Mechanophilia के मरीज हैं. इस बीमारी के मरीज मशीनों से खास तौर पर आकर्षित होते हैं और उनके साथ सेक्शुअल रिलेशनशिप भी रखते हैं.
2. तकिए का एडिक्शन
जोहानसबर्ग में रहने वाली टैमरा असल में अपने तकिए की एडिक्ट हैं. वो चाय पीने, खाना खाने, बाहर जाने, शॉपिंग करने हर काम के लिए अपने तकिए के साथ रहती हैं. उनके अनुसार उनके इस बॉन्ड को सिर्फ वही जान सकती हैं.
3. बिल्ली के बाल खाने वाली महिला
अमेरिका के मिशिगन राज्य के डेट्रॉइट शहर में रहने वाली लीज़ा की लत बेहद अजीब है. उन्हें अपनी बिल्ली के बाल खाना पसंद है. वो दिन में तीन हेयरबॉल (बालों का गुच्छा) खा लेती हैं और 20 साल से ये कर रही हैं. इतना ही नहीं वो अपनी बिल्ली के बाल उसी तरह से निकालती हैं जैसे जानवर एक दूसरे को जुबान से चाटते हैं.
बिल्ली के बाल खाती लीजा
4. अपने पति की चिता की राख खाने वाली महिला
केसी के पति की मौत 2011 में हो गई थी और तब से लेकर अब तक वो अपने पति की मौत का दुख नहीं भुला पा रही हैं. वो एक बर्तन में अपने पति की राख संजो कर रखे हुए हैं और उन्हें उसे खाने का एडिक्शन है. वो अपनी उंगलियां बर्तन में डालती हैं. उनपर थोड़ी सी राख लग जाती है और फिर उसे चाट लेती हैं.
केसी अपने पति की राख हर रोज थोड़ी-थोड़ी कर खाती हैं.
5. हवा भरे हुए खिलौनो से प्यार
खिलौनों का प्यार अधिकतर बच्चों में पाया जाता है, लेकिन अगर कोई आपसे बोले कि एक आदमी अपने खिलौनो से इतना प्यार करे कि उनके साथ सेक्स भी करे तो? मार्क अपने 15 हवा भरने वाले खिलौनो के साथ रिलेशनशिप में हैं और वो नाहाने, सोने से लेकर दिन के हर काम को उन खिलौनो के साथ ही करते हैं.
6. शवों को सूंघने का एडिक्शन
लुइस स्क्वारिसी ब्राजीलियन नागरिक हैं. पिछले 35 सालों से वो एक अजीबोगरीब सनक के शिकार हैं. उन्हें शवों को सूंघना अच्छा लगता है और इस एडिक्शन के कारण वो कई बार अपनी नौकरी भी छोड़ चुके हैं. उन्हें शवों को सूंघना और लोगों की शवयात्रा में जाना बहुत पसंद है. 1983 में उनके पिता की मृत्यु हो गई थी और तब से ही वो ब्राजील के Batatais शहर की हर शवयात्रा में जाते हैं.
लुइस को अपनी नौकरी सिर्फ इस एडिक्शन के कारण छोड़नी पड़ी.
7. इंसान और सुअर का खून पीने वाली महिला
कैलिफोर्निया की मिशेल असल मायने में वैंपायर की तरह हैं. उन्हें इंसान और सुअर का खून पीने की आदत है. पिछले 15 सालों में वो इतना खून पी चुकी हैं कि 23 बाथटब पूरे भर जाएं.
मिशेल ने धोखे से एक बार सुअर का खून पी लिया था और फिर उन्हें उसकी भी आदत लग गई.
8. घर की दीवारें खाने वाली महिला
किसी को ईंठ खाने का इतना शौख हो कि वो अपने घर की दीवारों पर ही छेद कर दे ऐसा सोचकर ही अजीब लगेगा. Patrice Benjamin-Ramgoolam असल में इतनी ही दीवानी हैं. उन्होंने 18 साल की उम्र से ही ये खाना शुरू किया और एक समय पर वो इतनी दीवानी हो गईं थीं कि उन्होंने अपने घर की दीवारों पर ही छेद कर दिया था.
9. सोफे और गद्दे खाने वाली महिला
अब ये एडिक्शन भी खाने से ही जुड़ा है. एक महिला सोफे और गद्दे के कुशन खाने की इतनी आदी है कि वो कई गद्दे और सोफे खा चुकी हैं.
10. टॉयलेट पेपर खाने का एडिक्शन
प्रेग्नेंसी में महिलाओं को अचार खाने का मन करता है, लेकिन ब्रिटेन की जेड सिल्वेस्टर को बेहद अजीब एडिक्शन होता है. जेड 5 बच्चों की मां हैं और प्रेग्नेंसी के वक्त वो टॉयलेट पेपर सूंघती हैं और खाती हैं. जेड एक दिन में प्रेग्नेंसी के दौरान पूरा एक रोल टॉयलेट पेपर खा जाती थीं.
जेड पांच बच्चों की मां हैं.
साभार ( एजेंसी )
शौर्यपथ / राजतंत्र के जमाने में नेपाल में एक तंजतारी चलती थी, ‘मुखे कानून छ’ यानी जो मुंह से निकल गया, वही कानून है। 28 मई, 2008 को राजशाही खत्म कर नेपाल में लोकशाही की घोषणा कर दी गई, मगर शासन का ढब वहां बदला नहीं। विगत बुधवार को सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने बयान दिया था कि नेपाल भी नक्शा जारी करेगा। उनके इस बयान के पांच दिन बाद सोमवार को नए नेपाल का राजनीतिक नक्शा मंत्रिपरिषद ने जारी भी कर दिया। जो काम पिछले 26 साल में नहीं हो सका था, प्रधानमंत्री ओली ने पांच दिन में कर दिया?
इस नए राजनीतिक नक्शे में लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी से लगे भारतीय इलाकों को भी नेपाल का हिस्सा बता दिया गया है। नए नक्शे में गुंजी, नाभी और कुटी जैसे गांवों को भी नेपाली इलाके में दिखाया गया है। यह दीगर है कि 1975 में नेपाल ने जो नक्शा जारी किया था, उसमें लिंपियाधुरा के 335 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र नहीं दर्शाए गए थे। मंगलवार 19 मई, 2020 से यह नेपाली संविधान की अनुसूची, सरकारी निशान और उसके पाठ्यक्रम का हिस्सा हो गया। सवाल यह है कि क्या इस नए नक्शे को हेग स्थित ‘आईसीजे’ या दुनिया की कोई भी न्यायपालिका मान लेगी?
ब्रिटिश भारत में 1798 से लेकर 1947 तक जो नक्शे समय-समय पर जारी किए गए, उन पर नेपाल को कोई आपत्ति नहीं थी। प्रोफेसर लोकराज बराल 1996 में नई दिल्ली में नेपाल के राजदूत रह चुके थे। पिछले हफ्ते एक बातचीत में उन्होंने माना कि नेपाल उस दौर में भी ब्रिटिश इंडिया के नक्शे पर आश्रित था। भारत-नेपाल संयुक्त प्राविधिक समिति ने 26 वर्षों का समय लगाकर 182 स्ट्रीप मैप के साथ 98 प्रतिशत रेखांकन का कार्य संपन्न किया है। इसमें दो फीसदी कार्य कई वर्षों से बाकी है। इस पर भारतीय पक्ष की मुहर भी नहीं लगी है। नया विवाद 2 नवंबर, 2019 को शुरू हुआ, जब भारत ने कश्मीर-लद्दाख को लेकर नक्शा पुनर्प्रकाशित किया था। उसमें पड़ोसी मुल्कों को बांटती सीमाओं में कोई रद्दो-बदल नहीं हुआ था, पर भारतीय विदेश मंत्रालय के स्पष्टीकरण के बावजूद नेपाल मानने को तैयार नहीं था। वह विदेश सचिव स्तर पर इसे सुलझाना चाहता था।
नए विदेश सचिव हर्षवद्र्धन शृंखला 29 जनवरी, 2020 को चार्ज लेने के साथ नेपाल से इस विषय पर संवाद करते, यह संभव नहीं था। उसके अगले पखवाडे़ इसकी तैयारी हो, तब तक कोरोना महामारी प्रारंभ हो चुकी थी। प्रश्न यह है कि यदि लिपुलेख मुद्दा ओली सरकार के लिए इतना ही महत्वपूर्ण था, तो 28 मार्च, 2019 को विदेश सचिव स्तर की बैठक में इसे शामिल क्यों नहीं किया गया? काठमांडू में आहूत उस बैठक में तत्कालीन भारतीय विदेश सचिव विजय कृष्ण गोखले व उनके नेपाली समकक्ष शंकरलाल वैरागी क्रॉस बॉर्डर रेलवे, मोतिहारी-अमलेखगंज तेल पाइपलाइन व अरुण-तीन जल विद्युत परियोजना पर सहमति बना रहे थे।
दो-तीन बातें ध्यान में रखने की हैं। 1962 में युद्ध के समय से ही यहां पर इंडो-तिब्बतन फोर्स की तैनाती भारत ने कर रखी है। नेपाल इसे हटाने की मांग कई बार कर चुका है। कायदे से नेपाल को ऐसा कोई पत्र दिखाना चाहिए, जिसमें तत्कालीन भारत सरकार ने लिपुलेख ट्राइजंक्शन पर इंडो-तिब्बतन फोर्स की तैनाती का कोई अनुरोध किया था। सितंबर 1961 में जब कालापानी विवाद उठा था, उससे काफी पहले 29 अप्रैल, 1954 को भारत-चीन के बीच शिप्ला-लिपुलेख दर्रे के रास्ते व्यापार समझौता हो चुका था। सन 1954 से लेकर 2015 तक चीन ने कभी नहीं माना कि लिपुलेख वाले हिस्से में, जहां से उसे भारत से व्यापार करना था, नेपाल भी एक पार्टी है या यह ‘ट्राइजंक्शन’ है। 2002 में एक ज्वॉइंट टेक्नीकल कमेटी भी बनी। उन दिनों नेपाल की कोशिश थी कि चीन को इसमें शामिल करें। चीनी विदेश मंत्रालय ने 10 मई, 2005 को एक प्रेस रिलीज द्वारा स्पष्ट किया कि कालापानी भारत और नेपाल के बीच का मामला है, इसे इन दोनों को ही सुलझाना है।
नेपाल, 1950 की संधि को भी ध्यान से नहीं देखता है। 31 जुलाई, 1950 को हुई भारत-नेपाल संधि के अनुच्छेद आठ में स्पष्ट कहा गया है कि इससे पहले ब्रिटिश इंडिया के साथ जितने भी समझौते हुए, उन्हें रद्द माना जाए। यह एक ऐसा महत्वपूर्ण बिंदु है, जो कालापानी के नेपाली दावों पर पानी फेर देता है। दरअसल, ओली सरकार कालापानी-लिपुलेख विवाद में फंसी हुई है। स्वयं सरकार के मंत्रियों को नहीं मालूम कि जिस सड़क का उद्घाटन 8 मई, 2020 को विडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया है, वह सड़क कब से बननी शुरू हुई थी।
विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञावाली कहते हैं, ‘भारत, लिपुलेख में 2012 से सड़क बना रहा था, यह मीडिया रिपोर्ट से मुझे मालूम हुआ।’ यह कुछ अजीब नहीं लगता कि जो विवादित इलाका नेपाल की राजनीति का ‘एपीसेंटर’ बना हुआ है, वहां की जमीनी गतिविधियों से ओली और ज्ञावाली अनभिज्ञ थे? पुराने टेंडर व दस्तावेज बताते हैं कि शिप्किला-लिपुलेख दर्रे को जोड़ने वाली 75 किलोमीटर दुर्गम सड़क 2002 से निर्माणाधीन थी। यह परियोजना 2007 में ही पूरी हो जानी थी, जो बढ़ते-बढ़ते 2020 में पहुंच गई।
सोचने वाली बात है कि प्रधानमंत्री ओली इस पूरे मामले को राष्ट्रीय अस्मिता की ओर क्यों धकेल रहे हैं? सर्वदलीय बैठक में पूर्व प्रधानमंत्री व जनता समाजवादी पार्टी के नेता बाबुराम भट्टराई ने यूं ही नहीं कहा था कि राष्ट्रवाद का भौकाल खड़ा करने की बजाय सरकार पुराने दस्तावेजों को जुटाए और कालक्रम को व्यवस्थित करे, तभी इस लड़ाई को वह अंतरराष्ट्रीय फोरम पर ले जा सकेगी।
परिस्थितियां बता रही हैं कि लिपुलेख विवाद में पीएम ओली ने जान-बूझकर पेट्रोल डाला है। कालापानी के छांगरू गांव में नेपाली अद्र्धसैनिक बल, आम्र्ड पुलिस फोर्स (एपीएफ) की तैनाती ओली का खुद का फैसला था। उसके बारे में बुधवार को हुई सर्वदलीय बैठक में चर्चा तक नहीं हुई थी। ओली चाहते हैं कि सीमा पर तनाव बढ़े, ताकि देश का ध्यान उधर ही उलझा रहे। 29 मई, 2020 को बजट प्रस्ताव के बाद ओली पद पर रहें न रहें, कहना मुश्किल है। 44 सदस्यीय स्टैंडिंग कमेटी में प्रधानमंत्री ओली के पक्ष में केवल 14 सदस्य हैं। प्रचंड गुट के 17 और माधव नेपाल के 13 सदस्य मिलकर कोई नया गुल खिलाने का मन बना चुके हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
दुर्ग / शौर्यपथ / दुर्ग सीमा पर पहुंचने वाले श्रमिकों को किसी तरह की दिक्कत न हो, इसका पूरा ध्यान प्रशासन द्वारा रखा जा रहा है। यहां से राजनांदगांव बार्डर में श्रमिकों को उनके गंतव्य तक ले जाने के लिए 40 बसें निरंतर आपरेट कर रही हैं। इसके अलावा जो लोग जिले की सरहद से प्रवेश कर रहे हैं उन्हें संबंधित गांवों के क्वारंटीन केंद्रों तक पहुंचाने के लिए चेकपोस्ट में पांच बसें उपलब्ध कराई गई हैं। ट्रेनों के माध्यम से पहुंचने वाले लोगों को क्वारंटीन केंद्रों तक पहुंचाने के लिए भी पृथक से बसों की व्यवस्था की गई है। सभी चेकपोस्ट में स्वास्थ्य परीक्षण करने के लिए स्वास्थ्य अमला मौजूद है। ट्रेनों के माध्यम से आने वाले लोगों के लिए स्वास्थ्य जांच स्टेशन में ही कराया जा रहा है। इसके पश्चात उन्हें भोजन पैकेट उपलब्ध कराये जा रहे हैं।
अब तक बाहर से आने वाले श्रमिकों एवं ग्रामीणों के लिए क्वारंटीन सेंटर बनाये गए हैं जिनमें अभी तक 2125 ग्रामीण क्वारंटीन किये गए हैं। इनके भोजन-पानी की एवं अन्य बुनियादी सुविधाएं स्थानीय अमले द्वारा उपलब्ध कराई गई है। यहां हेल्थ टीम भी मौजूद रहती है जो लगातार क्वारंटीन में रह रहे लोगों के स्वास्थ्य की मानिटरिंग करती है। कलेक्टर श्री अंकित आनंद एवं जिला पंचायत सीईओ श्री कुंदन कुमार ने तीनों ब्लाकों के क्वारंटीन केंद्रों की स्थिति जानी। उन्होंने चेकपोस्ट पर भी स्थिति जानी। यहां धमधा नाका के पास बेमेतरा के अधिकतर प्रवासी श्रमिक थे। हर आधे घंटे में बसों का फेरा लगाकर लगभग तीन हजार लोगों को उनके जिले तक छोड़ा गया। इसके अलावा अन्य पड़ोसी जिलों में भी श्रमिकों को छोडऩे के लिए वाहनों की व्यवस्था की गई।
उसके परिजनों के खातें में भी दिये 11 हजार रूपये आर्थिक मदद
दुर्ग / शौर्यपथ / दुर्ग थाना अंतर्गत अंजोरा बाइपास पर विनोद हेम्ब्रोम पिता रसिक हेम्ब्रोम नामक नव युवक का शव मिला था। जो ग्राम गरंग थाना भेलवाघाटी देवरी, जिला गिरिडीह, झारखंड का निवासी था। उक्त युवक के निवास क्षेत्र अंतर्गत पडऩे वाले थाने भेलवाघाटी से दुर्ग पुलिस द्वारा संपर्क कर उनके रिश्तेदारों परिजनों से बात की गई] उन्हें यह बताया गया कि अगर वे चाहें तो मृत शरीर को झारखंड हमारे द्वारा भेजा जा सकता हैं, या वे स्वयं आना चाहे तो हमारे द्वारा उनका इंतजार किया जाएगा। उनके परिजनों द्वारा कहा गया कि वह तो कोरोना महामारी के चलते स्वयं दुर्ग आने में असमर्थ हैं।
ऐसे में उन्होंने दुर्ग पुलिस प्रशासन को अनुरोध किया कि उनके पुत्र का पीएम एवं अंतिम संस्कार दुर्ग में ही कर दिया जाए। ऐसे में दुर्ग जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अजय यादव एवम अतरिक्त पुलिस अधीक्षक शहर रोहित झा द्वारा मृतक का ससम्मान अंतिम संस्कार करने हेतु नगर पुलिस अधीक्षक दुर्ग एवं थाना प्रभारी को निर्देशित किया गया। तत्पश्चात परिजनों से संपर्क कर उनके यहां प्रचलित अंतिम संस्कार के विधि विधान की जानकारी ली गई।
पी एम पश्चात मृतक को रायपुर नाका स्थित मुक्तिधाम ले जाया गया वहां संपूर्ण अंतिम संस्कार को वीडियो कॉल के माध्यम से उनके परिजनों को दिखाया गया। पुलिस के द्वारा मजदूर का पीएम एवं अंतिम संस्कार उनके परिजनों से पूछ कर उनके रीति रिवाज के अनुरूप कराया गया। परिवार की निम्न आर्थिक स्थिति को देखते हुए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक दुर्ग के द्वारा मृतक के मां के खाते में 11000 की आर्थिक सहायता भी प्रदान की गई। अंतिम संस्कार में नगर पुलिस अधीक्षक विवेक शुक्ला दुर्ग थाना प्रभारी राजेश बागड़े एवं तहसीलदार पार्वती पटेल तथा आस्था संगठन के सदस्य उपस्थित थे।
*भिलाई इस्पात मजदूर संघ ने सीजीएम पर्सनल से मिलकर की शिकायत*
भिलाई / शौर्यपथ / भिलाई इस्पात मजदूर संघ के महामंत्री दिनेश कुमार पांडे ने कहा कि भिलाई इस्पात संयंत्र के कर्मचारियों को आवागमन में मेन गेट व बोरिया गेट मे अत्यधिक असुविधा का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि सुबह दोनों तरफ ट्रक की लंबी कतारें लगा दी जा रही जिससे लोगों को आवागमन में दिक्कत हो रही है जाम की स्थिति पैदा हो रही है यही स्थिति बोरिया गेट में भी हो रही है जिससे संयंत्र कर्मियों को आवागमन में भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा था आज भिलाई इस्पात मजदूर संघ के प्रतिनिधियों ने मौके पर जाकर स्थिति का जायजा लिया एवं भिलाई इस्पात मजदूर संघ के महामंत्री दिनेश कुमार पांडे के नेतृत्व में सीजीएम पर्सनल डीपी सतपति से मुलाकात कर मेन गेट में हो रहे जाम की स्थिति के विषय में चर्चा की गई .
सतपति ने आश्वासन दिया कि निकट भविष्य में इस प्रकार की स्थितियां पैदा नहीं होने दी जाएगी तत्काल उन्होंने संबंधित अधिकारियों को निर्देश जारी किया इस अवसर पर प्रमुख रूप से भिलाई इस्पात मजदूर संघ के महामंत्री दिनेश कुमार पांडे उपाध्यक्ष हरिशंकर त्रिवेदी शारदा गुप्ता उपस्थित थे।
//देशभर में धार्मिक सौहाद्र्र को ठेस पहुंचाने और कांग्रेस अध्यक्ष के विरुद्ध अप्रासंगिक अपमानजनक टिप्पणियों पर न्याय आवश्यक
// अर्णव का मामला सीबीआई को ट्रांसफर करने से सुप्रीम कोर्ट ने किया इंकार
रायपुर/ शौर्यपथ / निजी समाचार चैनल के संपादक अर्णब गोस्वामी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कांग्रेस संचार विभाग के प्रमुख शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि अर्णब पर जहाँ भी जिस भी एफआईआर पर मुकदमा चलेगा, हमें पूरी उम्मीद है कि न्याय होगा। देशभर में धार्मिक सौहाद्र्र को ठेस पहुंचाने और कांग्रेस अध्यक्ष के विरुद्ध अप्रासंगिक अपमानजनक टिप्पणियों पर न्याय आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गोस्वामी की याचिका को अनुच्छेद 32 के अंदर सुने जाने योग्य नहीं माना गया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गोस्वामी को अपने विरुद्ध दायर की गई एफ आई आर को चुनौती देने के लिए सही फोरम में चुनौती देने को कहा है।
अर्णब गोस्वामी के विरुद्ध देशभर में धार्मिक सौहाद्र्र को ठेस पहुंचाने एवं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विरुद्ध अप्रासंगिक एवं अपमानजनक बातों का उपयोग करने एवं समाज के वर्ग विशेष को ठेस पहुंचाने के आरोप में एफ आई आर हुई थी। गोस्वामी द्वारा इन एफआईआर को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। गोस्वामी द्वारा अपनी याचिका में अपने विरुद्ध हुए सभी एफ आई आर रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना की गई थी। जिस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह टिप्पणी करते हुए गोस्वामी की याचिका का निपटारा कर दिया गया है कि किसी एक व्यक्ति के लिए विशेष नियम बनाकर भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता से परे जाते हुए कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गोस्वामी को 3 हफ्तों की अग्रिम जमानत का लाभ दिया गया है।
अर्णब गोस्वामी अपने विरुद्ध देशभर में हुए एफ आई आर को चुनौती देने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पहुंचे थे। उनकी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से यह प्रार्थना की गई थी की इनके विरुद्ध हुए एफ आई आर की जांच मुंबई पुलिस द्वारा न करवाते हुए सीबीआई को सौंप दी जाए। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गोस्वामी के इस आवेदन को खारिज कर दिया गया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने गोस्वामी के विरुद्ध दायर की गई जो एफ आई आर मुंबई पुलिस के पास है, उसी पर जांच करने का आदेश दिया है।