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धर्म संसार / शौर्यपथ / प्रभु यीशु के जन्म की ख़ुशी में मनाया जाने वाला क्रिसमस का त्योहार पूरी दुनिया में मनाया जाता है। यह त्योहार कई मायनों में बेहद खास है। क्रिसमस को बड़ा दिन, सेंट स्टीफेंस डे या फीस्ट ऑफ़ सेंट स्टीफेंस भी कहा जाता है। प्रभु यीशु ने दुनिया को प्यार और इंसानियत की शिक्षा दी। उन्होंने लोगों को प्रेम और भाईचारे के साथ रहने का संदेश दिया। प्रभु यीशु को ईश्वर का इकलौता प्यारा पुत्र माना जाता है। इस त्योहार से कई रोचक तथ्य जुड़े हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में।
क्रिसमस ऐसा त्योहार है जिसे हर धर्म के लोग उत्साह से मनाते हैं। यह एकमात्र ऐसा त्योहार है जिस दिन लगभग पूरे विश्व में अवकाश रहता है। 25 दिसंबर को मनाया जाने वाला यह त्योहार आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च में 6 जनवरी को मनाया जाता है। कई देशों में क्रिसमस का अगला दिन 26 दिसंबर बॉक्सिंग डे के रूप मे मनाया जाता है। क्रिसमस पर सांता क्लॉज़ को लेकर मान्यता है कि चौथी शताब्दी में संत निकोलस जो तुर्की के मीरा नामक शहर के बिशप थे, वही सांता थे। वह गरीबों की हमेशा मदद करते थे उनको उपहार देते थे। क्रिसमस के तीन पारंपरिक रंग हैं हरा, लाल और सुनहरा। हरा रंग जीवन का प्रतीक है, जबकि लाल रंग ईसा मसीह के रक्त और सुनहरा रंग रोशनी का प्रतीक है। क्रिसमस की रात को जादुई रात कहा जाता है। माना जाता है कि इस रात सच्चे दिल वाले लोग जानवरों की बोली को समझ सकते हैं। क्रिसमस पर घर के आंगन में क्रिसमस ट्री लगाया जाता है। क्रिसमस ट्री को दक्षिण पूर्व दिशा में लगाना शुभ माना जाता है। फेंगशुई के मुताबिक ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि आती है। पोलैंड में मकड़ी के जालों से क्रिसमस ट्री को सजाने की परंपरा है। मान्यता है कि मकड़ी ने सबसे पहले जीसस के लिए कंबल बुना था।
धमतरी शौर्यपथ
आश्रय स्थलों में ठहरे हुए प्रवासी श्रमिकों को अवसाद, चिंता, बेचैनी और घबराहट दूर करने के लिये नियमित रूप से परामर्श प्रदान किया जा रहा है ।इसी के तहत लाभांडी स्थित आश्रय स्थल में रुके लगभग 100 प्रवासी श्रमिकों को चिंता से उबारने के लिये विशेषज्ञों द्वारा परामर्श प्रदान किया गया ।
ज़िले के विभिन्न आश्रय स्थलों में रुके छत्तीसगढ के अलावा अन्य राज्यों के प्रवासी श्रमिकों को ज़िला मानसिक स्वास्थ्य द्वारा गठित दल के माध्यम से परामर्श दिया गया है ।
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, रायपुर डॉ मीरा बघेल ने बताया परामर्श के लिए तीन सदसीय दल का गठन किया गया है जोनियमित रुप से प्रवासी श्रमिकों के लियें बने आश्रय स्थलों पर जा कर सेवाएंप्रदानकर रहे है। ज्यादातर श्रमिक घर पहुंचने की चिंता को लेकर अवसाद से ग्रसित है।लॉक डाउन में घर से और परिवार से दूर पर होने वाली बेचैनी और घबराहट महसूस कर रहे है जिसको दूर करने के लिए विषय विशेषज्ञों द्वारा उन्हें सलाह दी जा रही है ।
मनोचिकित्सक डॉ.अविनाश शुक्ला ने बताया साफ-सफाई, सोशल डिस्टेंसिंग और आपसी व्यवहारिक वातावरण बनाने की सलाह दी जाती है| मुख्य रूप से लोगों में परिवार से मिलने के प्रति चिंता ज्यादा है, जिसकी समझाइश देकर और फोन के माध्यम से बात करवाकर उनके तनाव को कम करने का प्रयास किया जा रहा है।
मनोवैज्ञानिक सुश्री ममता गिरी गोस्वामी ने बताया लॉक डाउन के चलते में आश्रय स्थल में रहने वाले काफी प्रवासी श्रामिकों कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है। यह लोग किसी भी तरह अपने-अपने घरों को जाना चाह रहे हैं। उन्हें अपने परिवार की चिंता सता रही है। परामर्श के दौरान देखने में आया है कि अधिकतर यही सोच रहे हैं कि उनकी पीछे परिवार का पालन पोषण कैसे हो रहा होगा । उन्हें खाना मिल रहा है या भूखे हैं। परामर्श में उन्हें समझाया गया कि सरकार उनका ध्यान रख रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था आदेश
कोविड-19 के संक्रमण को ध्यान में रखते हुए प्रवासी श्रमिकों का मानसिक तनाव दूर करने के संबंध में 31 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने जागरूकता कार्यक्रम चलाने का आदेश दिया। न्यायालय के आदेश पर राज्य मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के द्वारा सभी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी और सिविल सर्जन को पत्र लिखकर निर्देश दिया है।
प्रवासियों को तनाव दूर करने के दिए गए सुझाव
कोविड -19 के संबंध में केवल विश्वसनीय माध्यमों से ही जानकारी प्राप्त करें। ऐसे में केंद्र या राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए वेबसाइट व हेल्पलाइन से जानकारी लेना लाभकारी है ।
व्हाट्सएप, फेसबुक या अपने पड़ोसी द्वारा बताई गई जानकारी पर जल्द विश्वास न करें और न ही जल्दी चितित हो।
स्वस्थ रहने के लिए संतुलित आहार लें। पर्याप्त पानी व नींद लेने के साथ प्रतिदिन व्यायाम करें।
घर पर खेलना, कुछ नया कौशल सीखने या सिखाने का अभ्यास करें। प्रतिदिन कुछ देर ध्यान करने के साथ दस मिनट तक सांस लेने व छोड़ने की क्रिया का अभ्यास करें।
प्रियजनों से फोन से बात करें। साथ ही साबुन या हैंडवाश से हाथ धोते हुए शारीरिक दूरी हर हाल में बनाए रखें। सरकार व प्रशासन द्वारा आप की सुरक्षा के लिए जो नियम बनाए जाए उसका पालन करें।
जीवन को जीतना है
डॉ. शैल चन्द्रा की कविता
क्या हुआ जो घरों में बंद हैं।
होगा आगे आनंद ही आनंद है।
अभी इक्कीस दिन सब्र के साथ रहो घर के अंदर।
नहीं तो महाप्रलय का आएगा समंदर।
बाहर घूमने वालों कुछ दिन खा लो दाल -रोटी।
भीड़ लगाने वालों संभलो,
वरना कोरोना नोच लेगी तुम्हारी बोटी -बोटी।
यह वक्त जिंदगी और मौत का छोड़ रही है सवाल।
भीड़ बढ़ाकर मत करो तुम बवाल।
घर में रहकर लगा दो हर द्वार में ताले।
बच जाओगे तुम हो किस्मत वाले।
हर हालत में बाहर न रखना कदम ।
वरना निकल जायेगा तुम्हारा दम।
घर में रहकर कोरोना को हराना है।
मौत को मात देकर जीवन को जीतना है।
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मौत मंडरा रहा है सर पर।
रहो लोगों तुम घर पर।
घर पर रहने से ही बचोगे।
इसी तरह मौत से जंग जीतोगे।
घर पर रहना ही देशभक्ति है।
कोरोना से लड़ने की यही शक्ति है।
देवेन्द्र कुमार बघेल की ख़ास रिपोर्ट
शौर्यपथ लेख / कोरोना संक्रमण के कारण पुरे देश में लॉक डाउन की घोषणा तो हो गयी किन्तु लॉक डाउन की घोषणा के बाद सरकार अपनी जिम्मेदारी का वहां करने में कई मामलो में असफल हुई . मजदूरो की भुखमरी और हिंसक घटना के सहित भूख से मौत के कई प्रकरण सामने आते गए और मामले के सामने आते ही आरोप प्रत्यारोप का दौर चलने लगा . आरोप प्रत्यारोप में ये भी भूल गए कि ऐसी घटना उन सरकारों के राज्यों में भी घटित हो रही है . हर प्रदेश से मजदुर अपने गृह नगर पहुँच रहे है और अव्यस्था के आलम में राज्य सरकारे घरती जा रही है . सभी अपने अपने दायित्व को पूरा करने का प्रचार तो कर रहे है किन्तु मजदूरो की मौते , भूखे पेट सैकड़ो किलोमीटर की यात्रा की खबरे सामने आ रही है .
लॉक डाउन के पहले चरण तक लोगो का विश्वास सरकार पर कायम रहा , परन्तु दूसरे और तीसरे चरण के लॉक डाउन ने लोगो को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि वे अब , क्या करे ? क्योंकि मजदूरों के पास जमापूंजी खत्म हो चुकी थी ? परिवार भूख मरने की कगार पर पहुंच चुके था ? मकान मालिक लोगो को खदेड़ रहे थे या फिर उनसे किराया मांगा जा रहा था , मजदूरों को अब इस स्थिति में सीधे मौत दिखाई देने लगी थी ? और उन्होंने अपना और अपने परिवार की जान जोखिम में डाल कर जैसे बना वैसे ही पैदल घर की तरफ निकल पड़े , उन्होंने है नहीं सोचा कि उनके घर की दूरी हजारों किलोमीटर है , रास्ते में कई परेशानियों और संकटों का सामना करना पड़ेगा ? लेकिन मजदूर इन सब कि , परवाह किए बिना तप्ती धूप में सह परिवार निकल पड़े । महाराष्ट्र में औरंगाबाद के पास रेलवे ट्रैक पर 16 प्रवासी मजदूरों की मालगाड़ी की चपेट में आने से मौत हो गई।सभी मजदूर मध्यप्रदेश जा रहे थे। हादसा औरंगाबाद में करमाड स्टेशन के पास हुआ। घटना उस वक्त हुई, जब मजदूर रेलवे ट्रैक पर सो रहे थे। 4 घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी घटना पर दुख जताया है। मध्य प्रदेशऔर महाराष्ट्र सरकार ने मृतकों के परिजन को 5-5 लाख रु. की सहायता देने का ऐलान किया है।
मौत कब आई मजदूरों को पता ही नहीं चला ?
रेल मंत्रालय ने बताया कि घटना बदनापुर और करनाड स्टेशन के बीच की है। यह इलाका रेलवे के परभणी-मनमाड़ सेक्शन में आता है। 8 मई दिन शुक्रवार तड़के मजदूर रेलवे ट्रैक पर सो रहे थे। मालगाड़ी के ड्राइवर ने उन्हें देख लिया था, बचाने की कोशिश भी की, पर हादसा हो गया। मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं।
ट्रेन से जाने कि तैयारी में थे मजदूर ?
मजदूर जालना की एसआरजे स्टील फैक्ट्री में काम करते थे। औरंगाबाद से 7 मई दिन गुरुवार को मध्य प्रदेश के कुछ जिलों के लिए ट्रेन रवाना हुई थी। इसी वजह से जालना से ये मजदूर औरंगाबाद के लिए रवाना हुए। रेलवे ट्रैक के बगल में 40 किमी चलने के बाद वे करमाड के करीब थककर पटरी पर ही सो गए। औरंगाबाद ग्रामीण एसपी मोक्षदा पाटिल ने बताया,‘‘हादसे में 14 मजदूरों की मौके पर ही मौत हो गई। बाद में 2 और ने दम तोड़ दिया। एक की हालत गंभीर है। बचे 4 अन्य लोगों से बातचीत की जा रही है।’’ मृतक मध्य प्रदेश के शहडोल और उमरिया के हैं। सिंह गोंड (शहडोल) , निर्वेश सिंह गोंड (शहडोल) , बुद्धराज सिंह गोंड (शहडोल) , अच्छेलाल सिंह (उमरिया) , रबेंन्द्र सिंह गोंड (शहडोल) , सुरेश सिंह कौल (शहडोल) , राजबोहरम पारस सिंह (शहडोल) , धर्मेंद्र सिंह गोंड (शहडोल) , बिगेंद्र सिंह चैनसिंग (उमरिया) , प्रदीप सिंह गोंड (उमरिया) , संतोष नापित , बृजेश भैयादीन (शहडोल) , मुनीम सिंह शिवरतन सिंह, (उमरिया) , श्रीदयाल सिंह (शहडोल) , नेमशाह सिंह (उमरिया) , दीपक सिंह गौड़ (शहडोल) , जख्मी: सज्जन सिंह माखन सिंह धुर्वे (खजेरी)
अपने साथियों को खोने वाले मजदूर ने बताया- न पैसे मिल रहे थे, न पास बन पा रहा था, इसलिए पैदल ही निकल पड़े ?
लॉकडाउन के 45 दिन से ज्यादाबीत चुके थे। मजदूरी का काम भी बंद था। पैसा खत्म हो रहा था। ऐसे में महाराष्ट्र के जालना में रहने वाले 20 मजदूर पिछले कुछ दिन से घर जाना चाहते थे। इन्हें पता चला कि भुसावल या औरंगाबाद से मध्यप्रदेश के भोपाल के लिए ट्रेन मिल जाएगी। फिर क्या था सभी ने निकलने का फैसला लिया। सोचा था कि ट्रेन मिली तो ठीक नहीं तो पैदल ही घर तक का सफर किया जाएगा। सड़क पर पुलिस का पहरा था। इसलिए, ट्रेन की पटरियों का रास्ता चुना। यही, रास्ता उन्हें मौत तक ले गया। पैदल चलते-चलते औरंगाबाद में करमाड स्टेशन के पास पहुंच गए। इतना थक गए कि पटरियों पर ही लेट गए। सुबह मालगाड़ी की चपेट में आकर इनमें से 16 की मौत हो गई। इस हादसे में दोमजदूरवीरेंद्र सिंह औरसज्जन सिंह ने बतायाकी नींद टूटी तो उनके सामने उसके 16 साथियों की लाशें बिखरी हुई थीं।
ठेकेदार ने पैसा दिए बिना ही भाग गया
अपने साथी को खोने वाले मजदूर वीरेंद्र सिंह ने दिव्य मराठी को बताया, ‘‘ठेकेदार हमें पैसे दे पाने की स्थिति में नहीं था। वादा किया कि 7 मई को पैसे मिलेंगे। लेकिन 7 तारीख को भी पगार नहीं मिला। मध्यप्रदेश में हमारे परिवार को भी हमारी जरूरत थी। घर के लोग परेशान हो रहे थे। इसलिए हम एक हफ्ते से पास बनवाने की कोशिश में थे। दो-तीन बार कोशिश कर चुके थे, लेकिन मदद नहीं मिल पा रही थी।’’
मालगाड़ी के ड्राइवर ने हॉर्न बजाया था , लेकिन उसकी रफ्तार काफी तेज थी , फिर भी उसने ब्रेक मारने का प्रयास किया था ?
वीरेंद्र सिंह ने बताया,‘‘जब कोई रास्ता नहीं बचा तो हमने तय किया कि पटरियों के रास्ते हम सफर तय करते हैं। पहले औरंगाबाद पहुंचेंगे और वहां से आगे का रास्ता तय करेंगे। हम जालना से 7 मई दिन गुरुवार शाम 7 बजे रवाना हुए। कई किलोमीटर का रास्ता तय कर लिया। देर रात जब थक गए तो कुछ-कुछ दूरी पर हमारे साथी पटरियों पर बैठने लगे। मैंने कई साथियों से कहा कि पटरियों से दूर रहो। लेकिन जो साथी आगे निकल गए थे, वे पटरी पर लेट गए। उनकी नींद लग गई। हम पटरी से थोड़ा दूर थे, इसलिए बच गए। हमने मालगाड़ी को आते देखा। मालगाड़ी के ड्राइवर ने हॉर्न भी बजाया, लेकिन उसकी रफ्तार तेज थी। हमने आवाज दी, लेकिन तब तक सबकुछ खत्म हो चुका था। हम दौड़कर नजदीक पहुंचते तब तक मालगाड़ी गुजर चुकी थी।’’
हादसे के बाद मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने स्थानीय लोगों की सहायता से शव के टुकड़ों को इकट्ठा किया
इस हादसे में बाल-बाल बचे और हॉस्पिटल में भर्ती सज्जन सिंह ने बताया कि हमारी आंख लग गई थी। हम इतना थक गए थे कि मालगाड़ी की आवाज ही नहीं आई। हम लोग पटरी से थोड़ा दूर थे। हमने बैग पीठ पर लाद रखा था। बैग लादे ही हम उसके सहारे टिककर सो गए। जब मालगाड़ी गुजरी तो बैग खींचते हुए ले गई। जान तो बच गई, लेकिन चोटें आईं। जो साथी बैग सहित पटरी के बीच में थे, वे नहीं बच सके।
150 रोटियां और चटनी लेकर चले थे 20 मजदूर, 16 के लिए आखिरी सफर बन गया; आंख खुली तो करीब में रोटी और दूर - दूर तक लाशें दिखीं
जालना की एक सरिया फैक्ट्री। 45 दिन पहले लॉकडाउन के चलते यह बंद हो गई। रोज कमाने-खाने वाले मजदूरों को दो वक्त की रोटी के लाले पड़ गए। ज्यादातर यूपी, बिहार और मध्य प्रदेश के थे। नाम की जमापूंजी थी। किसी तरह महीनाभर काम चलाया। फिर सामाजिक संगठनों और सरकार के भरोसे। पेट भरने की ये मदद दो या तीन दिन में एक बार ही नसीब हो रही थी। इस बीच एक खबर आई। पता लगा कि सरकार दूसरे राज्यों के मजदूरों को घर भेजने के लिए औरंगाबाद या भुसावल से कोई ट्रेन चलाने वाली है। जालना से औरंगाबाद की दूरी 50 किमी है। मध्य प्रदेश के 20 मजदूर रेलवे ट्रैक से सफर पर निकल पड़े। पास कुछ था तो बस, 150 रोटियां और एक टिफिन चटनी। 16 के लिए यहयात्रा, अंतिम यात्रा साबित हुई। मजदूरों ने सोचा, घर पहुंच जाएंगे। गुरुवार शाम मिलकर 150 रोटियां बनाईं। एक टिफिन में चटनी भी थी। ताकि, सूखी रोटी मुंहसे पेट तक का सफर आसानी से कर सके। कुछ देर बाद सब भुसावल के लिए निकल पड़े। सभी की उम्र 21 से 45 साल के बीच थी। कुछ शहडोल के थे तो कुछ कटनी के। औरंगाबाद जिले के करमाड तक पहुंचे तो रात गहरी हो चली थी। सोचा, खाना खाकर कुछआराम कर लिया जाए। सज्जन सिंह इसी जत्थे में शामिल थे। वो बच गए। कहते हैं, “भूख लगी थी साहब। ट्रैक पर ही बैठकर खाना खाने लगे। हमें वो साफ और सुरक्षित लगा। खाना खत्म हुआ। कुछ चाहते थे कि सफर फिर शुरू किया जाए। कुछ का दिल कर रहा था कि थोड़ा सुस्ता लिया जाए। सहमति आराम करने पर बनी। भूखे पेट को रोटी मिली थी। इसलिए, पटरी का सिरहाना और गिट्टियां भी नहीं अखरीं। सो गए। नींद खुली तो भयानक मंजर था। मेरे करीब इंटरलाल सो रहा था। उसने मुझे खींच लिया। मैं जिंदा हूं।”
इसलिए हुई गलती ?
सज्जन आगे कहते हैं, “आंख खुली तो होश आया। देखा मेरा बैग ट्रेन में उलझकर जा रहा है। हमने सोचा था कि ट्रेनें तो बंद हैं। इसलिए, ट्रैक पर कोई गाड़ी नहीं आएगी। आसपास झाड़ियां थीं। लिहाजा, ट्रैक पर ही झपकी का ख्याल आया। ट्रेन जब रुकी तब तक तो सब खत्म हो चुका था। 16 साथियों के क्षत विक्षत शव ट्रैक पर पड़े थे। किसी को पहचान पाना मुश्किल था।” सज्जन के मुुताबिक, “ पहले तो लगा कि कोई बुरा सपना देखा है। पल भर में हकीकत पर यकीन हो गया। 20 में से चार जिंदा बचे। डर को थोड़ा दूर किया।ट्रैक से कुछ दूर बने एक घर पहुंचे। मदद मांगी। उन्होंने पानी पिलाया। फिर पुलिस को जानकारी दी।” आधे घंटे बाद पुलिस पहुंची। उसने अपना काम शुरू किया। रुंधे गले को संभालकर और भीगी आंखों को पोंछकर वीरेंद्र शांत आसमान की तरफ देखते हैं। फिर कहते हैं, “जिन लोगों के साथ कुछ घंटे पहले बैठकर रोटी खाई थी। अब उनकी लाशें मेरे सामने हैं। कुछ तो मेरे बहुत करीबी दोस्त थे। अब, क्या कहूंगा उनके घरवालों से? कैसे सामना करूंगा उनका? मेरा फोन, बैग सब गायब हैं। पीठ में चोट है। ये जख्म भर जाएगा। लेकिन, दिल में जो नासूर पैदा हो गया है, वो तो लाईलाज रहेगा। ताउम्र।” मामले की गंभीरता को देखते हुए शासन प्रशासन के द्वारा सभी मृतकों की लाशों को , स्पेशल ट्रेन के माध्यम से उनके घर तक पहुंचवाया गया , और उन्हें सहायता राशि प्रदान की गई ।
धमतरी/नगरी शौर्यपथ
*नगरी के ग्राम गोरेगांव की घटना
लॉकडॉउन की वजह से गांव की गलियों में पसरे सन्नाटे की वजह से जंगली जानवर रिहायशी इलाकों में पहुंच रहे हैं। आज सुबह गोरेगांव निवासी प्रदीप अटल खाम जब अपने घर के पीछे बाड़ी में कटहल तोड़ने गए तो वहां वन्य पशु बारहसिंगा देखकर आश्चर्यचकित हो गए। सूचना लगने पर बारहसिंगा देखने ग्राम वासियों का हुजूम उमड़ पड़ा।
घायल बारहसिंगा की जानकारी वन विभाग के अधिकारियों को दी गई।
जब तक कि वन विभाग नगरी के अधिकारी घायल बारहसिंह के बचाव के लिए पहुंचते उसके पहले ही ग्रामीणों को देखकर घबराया हुआ बारहसिंह से जंगलों की ओर भाग गया।
ग्रामीणों का कहना है की रियासी इलाके में पहुंचने के बाद कुत्तों के झुंड ने बारहसिंह को घेरा लिया होगा ।जिससे वह घायल हो गया। और प्राण बचाने बाड़ी में आ धुसा।
ग्रामीणों ने ये भी बताया की कुछ लोग इन वन्य प्राणियों के शिकार भी कर रहे हैं । हो सकता है उन्ही शिकारियों के कुत्तें के झुंड ने बारहसिंह को घायल किया होगा।
नई दिल्ली / शौर्यपथ / सत्ता आने के बाद से ही केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा कांग्रेस के घोटालो की जाँच तेजी से शुरू हो गयी थी . कांग्रेस के नेशनल हेराल्ट मामले में सम्बंधित तीनो संस्था नेशल हेराल्ट , यंग इण्डिया और कांग्रेस संगठन में कोषाध्यक्ष की महत्तव पूर्ण भूमिका निभाने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता मोती लाल वोरा पर ईडी ने शिकंजा कसते हुए देर रात महत्तवपूर्ण फैसला लेते हुए एजेएल और कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा की संपत्ति कुर्क करने का आदेश दे दिया .
प्रवर्तन निदेशालय ने शनिवार को कहा कि इसने कांग्रेस पार्टी की ओर से प्रवर्तित एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) और कांग्रेस पार्टी के नेता मोती लाल वोरा की 16.38 करोड़ रुपए की संपत्ति कुर्क करने का आदेश जारी किया है। एक मनी लॉन्ड्रिंग केस में यह कार्रवाई की गई है।
ईडी ने कहा कि कुर्क की गई संपत्ति मुंबई में 9 मंजिला इमारत है, इसमें दो बेसमेंट भी हैं और 15 हजार स्क्वायर मीटर में बना हुआ है। इसकी कुल कीमत 120 करोड़ रुपए है। इसमें से 16.38 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की गई है। इमारत बांद्रा ईस्ट में ईपीएफ ऑफिस, कला नगर के पास प्लॉट नंबर 2 और सर्वे नंबर 341 पर है।
एजेंसी ने कहा कि इस केस में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और मोती लाल वोरा हैं। एजेंसी ने कहा कि हरियाणा के पंचकुला में अवैध रूप से आवंटित भूमि पर दिल्ली में बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित सिंडिकेट बैंक ब्रान्च से लोन लिया गया और इससे बांद्रा में यह इमारत खड़ी की गई।
प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएल) के तहत प्रोविजनल अटैचमेंट आदेश एजेएल और मोती लाल वोरा के नाम जारी किया गया है। वोरा एजेएल के प्रबंधकीय निदेशक हैं। एजेएल, वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं द्वारा नियंत्रित है, जिसमें गांधी परिवार के सदस्य भी शामिल हैं। यह समूह नेशनल हेराल्ड अखबार चलाता है।
एजेंसी ने एक बयान में कहा कि अपराध के धन से अर्जित 16.38 करोड़ रुपये कीमत की संपत्ति जब्त की गई है। इससे पहले पंचकुला के प्लॉट को भी ईटी ने अटैच किया था। हुड्डा और वोरा से पूछताछ भी की गई थी। पंजकूला के सेक्टर 6 में प्लॉट सी-17 को पहली बार 1982 में हरियाणा सरकार ने आवंटित किया था।
क्या है एजेएल
नेशनल हेराल्ड अखबार की स्थापना 1938 में जवाहरलाल नेहरू ने की थी। उस समय से यह अखबार कांग्रेस का मुखपत्र माना जाता रहा। अखबार का मालिकाना हक एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड यानी 'एजेएल' के पास था। आजादी के बाद 1956 में एसोसिएटेड जर्नल को अव्यवसायिक कंपनी के रूप में स्थापित किया गया। वर्ष 2008 में 'एजेएल' के सभी प्रकाशनों को निलंबित कर दिया गया और कंपनी पर 90 करोड़ रुपए का कर्ज भी चढ़ गया।
कांग्रेस नेतृत्व ने 'यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड' नाम की एक नई अव्यवसायिक कंपनी बनाई जिसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित मोतीलाल वोरा, सुमन दुबे, ऑस्कर फर्नांडिस और सैम पित्रोदा को निदेशक बनाया गया। नई कंपनी में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास 76 प्रतिशत शेयर थे जबकि बाकी के 24 प्रतिशत शेयर अन्य निदेशकों के पास थे।
धमतरी शौर्यपथ ।
हरी सब्जी बेचकर लॉक-डाउन में भी हर महीने कमा रहे
दस हजार रुपए
मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना) ग्रामीणों की जिंदगी कैसे बदल रही है, इसकी मिसाल हैं किसान श्री उत्तम साहू। जिले के कुरूद विकासखंड के ग्राम चर्रा निवासी सीमांत किसान श्री उत्तम पहले मजदूरी करते थे। मनरेगा के तहत खेत में कुएं के निर्माण के बाद अब वे साल भर साग-सब्जियों की खेती करते हैं, जिसे बेचकर उनके जीवन की दशा और दिशा दोनों बदल गई। वे सब्जी बेचकर मौजूदा लॉक-डाउन के प्रतिकूल दौर में भी हर महीने औसतन दस हजार रूपए की शुद्ध आय अर्जित कर रहे हैं। कुएं के निर्माण और सब्जी की खेती शुरू करने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति लगातार मजबूत होती जा रही है।
किसान श्री साहू मनरेगा से अपने खेत में कुआं खुदाई के दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि कुआं निर्माण के समय उनके साथ उनकी पत्नी श्रीमती पुनिया बाई, बेटे महेन्द्र और पुत्रवधु महेश्वरी ने भी काम किया था। उनके परिवार को मजदूरी के रुप में 26 हजार 436 रुपए मिले थे। कुएं के निर्माण में एक लाख 88 हजार रूपए की लागत आई थी। उत्तम साल भर भरे रहने वाले अपने कुएं में एक हॉर्स-पॉवर का पंप लगाकर सब्जियों की खेती कर रहे हैं। उनके खेतों में अभी चेंच भाजी, अमारी भाजी, पटवा भाजी, धनिया पत्ती, गलका, करेला, टमाटर और नींबू का उत्पादन हो रहा है। मौजूदा लॉक-डाउन में बाजार न जाकर वे गलियों में आवाज देकर सुरक्षित ढंग से सब्जियां बेच रहे हैं। इससे हर महीने उन्हें औसतन दस हजार रूपए की आमदनी हो रही है। उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएँ के कारण आज लॉक-डाउन में भी उनकी रोजी-रोटी पर किसी तरह का फर्क नहीं आया। सब्ज़ियों की रोजाना बिक्री बदस्तूर जारी है।‘
उल्लेखनीय है कि कोविड-19 का संक्रमण रोकने लागू देशव्यापी लॉक-डाउन में मनरेगा के अंतर्गत आजीविका संवर्धन के लिए निर्मित परिसम्पत्तियों ने हितग्राहियों को आर्थिक संबल प्रदान करने के साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी गतिमान बनाए रखा है। मनरेगा के कार्यों का लाभ व्यक्तिगत और सामुदायिक दोनों स्तर पर मिल रहा है। जॉबकार्डधारियों की निजी भूमि पर डबरी निर्माण, निजी तालाब निर्माण, भूमि सुधार, कूप निर्माण, मुर्गी शेड, बकरी शेड, पशु शेड और मिश्रित फलदार पौधरोपण जैसे आजीविका सृजन और संवर्धन होने से ग्रामीणों के जीवन में तेजी से बदलाव आ रहा है।
मनरेगा से जुड़कर ग्रामीणों को जो आर्थिक संसाधन प्राप्त हुए हैं, उससे वे मौजूदा हालात में काफी राहत महसूस कर रहे हैं। लॉक-डाउन से निपटने गांव-गांव में मनरेगा से ज्यादा से ज्यादा हितग्राहीमूलक कार्य शुरू किए जा रहे हैं। इससे हितग्राहियों को लंबे समय तक फायदा देने वाले संसाधन के साथ ही स्थानीय स्तर पर ग्रामीणों को सीधे रोजगार मिल रहा है। यह हितग्राही के साथ श्रमिकों को भी आर्थिक संबल दे रहा है।
धमतरी शौर्यपध
विगत कुछ दिनों से लगातार हो रही वर्षा व आंधी तूफान ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है ।ग्रीष्मकालीन धान की फसल के साथ सब्जीयों के फसल का नुकसान किसानो को हो रहा है ।
नगरी के किसान मोहन साहु व कई अन्य सरकार से फसल क्षतिपूर्ति की मांग कर रहे हैं।
धमतरी /शौर्यपथ
बिहान योजना जहां महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने में सहायक सिद्ध हो रहा, वहीं उनकी आय का जरिया बन आत्म विश्वास बढ़ाने में भी कारगार हो रहा है। जिले में 8372 समूह में 92 हजार 878 महिलाएं जुड़ ना केवल कपड़ा सिलाई, सब्जी उत्पादन, रेडी-टू-ईट बना रहीं, बल्कि जैविक खाद का निर्माण कर स्थानीय स्तर पर ही बेच रही हैं।
कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए लाॅकडाउन अवधि के दौरान भी यह महिलाओं का समूह जैविक खाद तैयार कर बेच रहा है। मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत श्रीमती नम्रता गांधी बताती हैं कि नरवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी के जरिए कृषि क्षेत्र में 71 बिहान समूह की महिलाओं को रोजगार के बेहतर अवसर मिले हैं। गांव में जहां गौठान बनाए गए हैं, वहां चारागाह भी विकसित किए गए हैं। गौठान में बने नाडेप टांके से महिलाओं द्वारा जैविक खाद का उत्पादन किया जा रहा है। गौरतलब है कि अब तक समूहों द्वारा 73 मीट्रिक टन जैविक खाद तैयार कर 43 मीट्रिक टन खाद 10 रूपए 23 पैसे प्रति किलो की दर पर किसानों के अलावा उद्यानिकी और वन विभाग को बेचा जा रहा है। अब तक समूहों को कुल चार लाख 48 हजार 820 रूपए की आमदनी हुई है। इसी तरह धमतरी जनपद पंचायत के ग्राम मुजगहन की जय मां विंध्यवासिनी महिला स्व सहायता समूह की सदस्यों द्वारा 35 क्विंटल जैविक खाद तैयार कर अब तक 30 क्विंटल बेचा गया है। इससे उन्हें दो लाख 40 हजार रूपए की आमदनी हुई है। मनरेगा के तहत जाॅबकार्डधारी इन महिलाओं को लाॅकडाउन की अवधि में जैविक खाद बेच परिवार का भरण-पोषण के लिए आय तो मिला, साथ ही कृषि कार्य के लिए जैविक खाद मिलना किसानों के लिए भी काफी सहयोगी रही।
धमतरी/नगरी शौर्यपथ
नगर के हृदय स्थल में, स्थित,
श्रृंगी ऋषि हाई स्कूल मैदान के बुरी हाल के जिम्मेवार अधिकारियों पर आखिर कब होगी कार्रवाई ?
खेल मैदान के उद्धार का सपना संजोये नगर के खिलाड़ियों का ख्वाब कब होगा पूरा ?
नगर के होनहार प्रतिभावान खिलाड़ियों को आखिर कब साफ सुथरा खेल मैदान शासन उपलब्ध कराएगी?
खेल मैदान में चारों तरफ फैली गंदगी ,निर्माण सामग्रियों के मलवे, कीचड़, सीवर के गंदे पानी की बदबू, शाम होते ही
शराब खोरी करने वालों के झुंड, मैदान में कभी सब्जी बाजार ,तो कभी सांस्कृतिक आयोजन।
नगर के खेल प्रतिभाओं की आशाओं पर खेल मैदान के रखवाले बरसों से पानी फेर रहे हैं।
धमतरी/नगरी,शौर्यपथ
आज मदर्स डे के अवसर पर नगरी अंचल में चाक कलाकर भानुप्रताप कुंजाम ने मातृशक्ति को सम्मानित करने पेंसिल की नोक व चाक को तराश कर मां के मातृत्व को बखूबी उकेरा है।
इसके पूर्व भी भानुप्रताप कुंजाम ने चाक में सैकड़ो कलाकृति को उभार कर इस कला को एक नई ऊंचाई प्रदान की है ।
आधुनिक मातृ दिवस का ग्राफटन वेस्ट वर्जिनिया में एना जार्विस के द्वारा समस्त माताओं तथा मातृत्व के लिए खास तौर पर पारिवारिक एवं उनके आपसी संबंधों को सम्मान देने आरम्भ किया गया था।
नगरी
नगर पंचायत नगरी में वार्ड नंबर 5 और 6 में किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा नोट को बिखेर दिया गया है। जिसे पूरे मोहल्ले वासी देखने के लिए उमड़ पड़े।गली और नाली में 10 व 20 के नोट फ़टे हुए पड़े हैं।मोहल्ले वालों ने पुलिस को जानकारी दी तत्काल पुलिस मौक़े पर पहुँच गई है।
पुलिस जांच में जुटी है कि आखिर माजरा क्या है?
लोगों को कोरोना संक्रमण का भय है, चूंकि ऐसी घटनाएं शहरों में हो चुकी है इसलिए पूरे वार्ड वासी दहशत में है लोगों को कोरोना का भय है ।फिलहाल स्थल पर मोहल्ले की भीड़ उमड़ पड़ी है वहीं एसडीओपी,थाना प्रभारी अपने स्टाफ के साथ मौके पर मौजूद है और जांच कर रहे हैं।