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धर्म संसार /शौर्यपथ / भगवान श्रीकृष्ण के कारण हजारों लोगों ने ज्ञान प्राप्त किया था। ज्ञान प्राप्त करने का अर्थ है मोक्ष के मार्ग के दर्शन करना और उसी पर चल पड़ना। हालांकि ऐसे में कई लोग थे जो श्रीकृष्ण के पास होते हुए भी कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाए क्योंकि श्रीकृष्ण और उन लोगों के बीच अहंकार या स्वयं ज्ञानी होने की दीवार थी। आओ जानते हैं कि श्रीकृष्ण के कारण कौन लोग मोक्ष प्राप्त कर गए।
मोक्ष प्राप्त करना अर्था कैवल्य ज्ञान, संबोधि प्राप्त करना होता है। मुक्ति और मोक्ष में फर्क होता है। यहां उन लोगों की बात नहीं जिनका श्रीकृष्ण ने उद्धार किया था या जो पिछले जन्म में देवलोक में थे। जैसे भीष्म पितामह देवलोक के एक वसु थे। विदुर स्वयं ही धर्मराज के अंश थे।
1. अष्ट सखियां : श्रीराधा रानी तो स्वयं संबुद्ध अर्थात मोक्ष प्राप्त कर चुकी महिला थीं। परंतु उनकी अष्ट सखियों ने ही श्रीकृष्ण और राधा के संग रहकर मोक्ष प्राप्त किया था। हालांकि कहते हैं कि ललिता नाम की सखी इससे चूक गई थी और तब उसने कई जन्मों के बाद मीरा या स्वामी हरिदास के रूप में जन्म लेकर मोक्ष प्राप्त किया था।
2. उद्धव : उद्धव श्रीकृष्ण के चाचा देवभाग के लड़के थे जो आयु में श्रीकृष्ण से थोड़े बड़े थे। उनका असली नाम बृहदबल था। उनके पिता का नाम 'उपंग' कहा गया। बाल्यकाल में ही उन्हें देवताओं के गुरु बृहस्पति ने अपना शिष्य बना लिया था। देवगुरु बृहस्पति से उन्हें ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हुई और वे निरंतर प्रभु के निराकार और निर्गुण रूप की उपासना करते रहते थे। वे खुद को ब्रह्मज्ञानी समझते थे। श्रीकृष्ण और राधा के सत्य जानकर ज्ञान से प्रेम मार्ग बन गए थे। इसके बाद श्रीकृष्ण ने उद्धव को योग मार्ग का उपदेश दिया। यह उपदेश उद्धव गीता या अवधूत गीतार्ध के नाम से प्रसिद्ध है। कृष्ण के इच्छा से उद्धव बदरिकाश्रम चले गए और वहीं तपस्या करते हुए उन्होंने अपनी देह त्याग दी थी।
3. सुदामा : सुदामा श्रीकृष्ण के मित्र थे और वे उनके परम भक्त भी थे, क्योंकि सुदामा जान गए थे कि श्रीकृष्ण कोई और नहीं स्वयं भगवान विष्णु है। सुदामा की भक्ति के कारण सुदामा मोक्ष प्राप्त कर गए थे।
4. अन्य लोग : भगवान श्रीकृष्ण के भक्ति के कालांतर में हजारों लोगों के मोक्ष प्राप्त किया। सुदामा से लेकर सुरदास तक उनके भक्तों की अनंत सूची है।
श्रीकृष्ण राधा की सखी ललिता के 7 रहस्य जानकर चौंक जाएंगे
श्रीकृष्ण के बचपन के कई मित्र थे जैसे मनसुखा, मधुमंगल, श्रीदामा, सुदामा, उद्धव, सुबाहु, सुबल, भद्र, सुभद्र, मणिभद्र, भोज, तोककृष्ण, वरूथप, मधुकंड, विशाल, रसाल, मकरन्द, सदानन्द, चन्द्रहास, बकुल, शारद, बुद्धिप्रकाश आदि। बचपन में यह सभी गोकुल और वृंदावन की गलियों में माखन चोरते और उधम मचाते थे। बाल सखियों में चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा आदि के नाम लिए जाते हैं।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सखियों के नाम इस तरह हैं- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा। कुछ जगह ये नाम इस प्रकार हैं- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और सुदेवी। कुछ जगह पर ललिता, विशाखा, चम्पकलता, चित्रादेवी, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और कृत्रिमा (मनेली)। इनमें से कुछ नामों में अंतर है। आओ
जानते हैं श्रीकृष्ण की सखी ललिता के बारे में रोचक जानकारी।
1. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार श्रीजी राधारानी की 8 सखियां थीं। अष्टसखियों के नाम हैं- 1. ललिता, 2. विशाखा, 3. चित्रा, 4. इंदुलेखा, 5. चंपकलता, 6. रंगदेवी, 7. तुंगविद्या और 8. सुदेवी। राधारानी की इन आठ सखियों को ही "अष्टसखी" कहा जाता है। श्रीधाम वृंदावन में इन अष्टसखियों का मंदिर भी स्थित है। इस सखियों में सबसे करीबी ललिता था।
2. कहते हैं कि ललिता भी श्रीकृष्ण से उतना ही प्रेम करती थी जितान की राधा, परंतु ललिता ने अपने प्रेम को कभी भी अभिव्यक्त नहीं किया था।
3. राधा और श्रीकृष्ण के प्रेम और निकुंज लीलाओं की साक्षी थीं ललिता। ललिता ने राधा का हर मौके पर साथ दिया था। ललिताजी का राधारानी की सहचरी के अतिरिक्त खंडिका नायिका के रूप में भी चित्रंण होता है, मतलब सेविका के रूप में राधा माधव के साथ आती हैं, और कभी-कभी नायिका बनकर कृष्णजी के साथ विहार करती हैं।
4. कहते हैं कि स्वयं भगवान शिव ने भी ललिता से 'सखीभाव' की दीक्षा प्राप्त की थी। ललिताजी ने शिवजी से कहा था कि रासलीला में श्रीकृष्ण के अतिरिक्त किसी पुरुष को प्रवेश नहीं है तब शिवजी को भी सखी बनना पड़ा था।
5. कई लोग यह भी मानते हैं कि मीरा के रूप में ललिता ने ही जन्म लेकर श्रीकृष्ण भक्ति का प्रचार प्रसार किया था। भक्त सुरदासजी ने ललिता के बारे में अपनी रचनाओं में बहुत कुछ लिखा है। यह भी कहा जाता है कि भक्त सुरदासजी श्रीकृष्ण के काल में किसी और नाम से जन्में थे और तब भी वे अंधे ही थे। उस काल में वे यादवकुल के गुरु से मिले थे।
6. माना जाता है कि अकबर के समय में राधा रानी की सखी ललिता ने स्वामी हरिदास के रूप में अवतार लिया था। स्वामी हरिदास वृन्दावन के निधिवन के एकांत में अपने दिव्य संगीत से प्रिया-प्रियतम (राधा-कृष्ण) को रिझाते थे। बांके बिहारी नाम से वृन्दावन में मंदिर स्थित है जिसकी स्थापना स्वामी हरिदास ने की थी। तानसेन भी उनके संगीत और गायन के बहुत ही ज्यादा प्रभावित थे।
7. मथुरा जिले में बरसाना के ऊंचागाव में ललिता अटोर नामक पहाड़ी पर ललिता का भव्य मंदिर है। इस मंदिर की जन्मोत्सव परंपरा के अनुसार 2021 में ललिताजी को हुए 5249 वर्ष हो चुके हैं।
भिलाई / शौर्यपथ /.भिलाई इस्पात संयंत्र के एसएमएस.3 ने बेसिक ऑक्सीजन फर्नेस.1 ;कन्वर्टर 1द्ध के रिफ्रेक्टरी लाइनिंग लाइफ में एक नया मील का पत्थर हासिल किया। एसएमएस.3 ने 3 मार्च को 7000 हीट्स का निरंतर उत्पादन कर बेसिक ऑक्सीजन फर्नेस.1 के रिफ्रेक्टरी लाइनिंग लाइफ का एक नया कीर्तिमान रच कर इस महती रिकॉर्ड को हासिल करने में कामयाबी प्राप्त की।
यह उल्लेखनीय है कि बीएसपी के एसएमएस.3 ने अपने दूसरे कैम्पेन में ही 7000 हीट्स का निरंतर उत्पादन कर रिफ्रेक्टरी लाइनिंग लाइफ का एक नया कीर्तिमान स्थापित कर नया बेंचमार्क स्थापित किया।
विदित हो कि बेसिक ऑक्सीजन फर्नेस में मैग्नेशिया कार्बन ब्रिक्स की लाइनिंग लगी होती है। इस ब्रिक्स की खासियत यह है कि यह 1700 डिग्री सेंटिग्रेड तक के उच्च तापमान को सहने योग्य होने के साथ ही यह स्लैग अटैक को भी सहन करती है। बेसिक ऑक्सीजन फर्नेस के कुछ क्षेत्र अत्यधिक तापमान के कारण खराब हो जाता है। अत: इसके जीवनकाल को ब?ाने हेतु इन क्षेत्रों की लेजर प्रोफाइल मेजरमेंट मशीन के माध्यम से इसकी बड़े ही सूक्ष्म ढंग से मॉनीटरिंग की गई तथा आवश्यकतानुसार सुधारात्मक हॉट रिपेयर किया गया।
विदित हो कि 31 मार्च 2018 को एसएमएस.3 के बेसिक ऑक्सीजन फर्नेस.1 को लाइट.अप कर प्रारंभ किया गया था। वर्तमान में एसएमएस.3 अपने प्रारंभिक चुनौतियों से पार पाते हुए नित नये कीर्तिमान स्थापित करते हुए ब?े तेजी से अपने मापित क्षमता की ओर अग्रसर हो रहा है। उल्लेखनीय है कि 7000 हीट्स के निरंतर उत्पादन के पश्चात भी इस बेसिक ऑक्सीजन फर्नेस.1 के इस लाइनिंग में उत्पादन जारी है।
दुर्ग / शौर्यपथ / प्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग ने आठ प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारियों की पदस्थापना की है, जिसको लेकर छत्तीसगढ पैरेंट्स एसोसियेशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल ने सामान्य प्रशासन को पत्र लिखकर इन आठ जिलों में योग्य और वरिष्ठतम जिला शिक्षा अधिकारी की पदस्थापना करने की मांग किया गया था, जिसको लेकर अब सामान्य प्रशासन विभाग ने अवर सचिव स्कूल शिक्षा विभाग को पत्र लिखकर प्रकरण पर परीक्षण कर नियमानुसार आवश्यक कार्यवाही करने और की गई कार्यवाही की जानकारी आवेदक यानि क्रिष्टोफर पॉल को देने का निर्देश दिया है।
सामान्य प्रशासन के स्थायी निर्देश दिनांक 04 अगास्त 2011 के अनुसार वरिष्ठ के रहते कनिष्ठ को चालू कार्यभार नही सौंपा जाना है और छग स्कूल स्कूल सेवा ;शैक्षिक एंव प्रशासनिक संवर्ग भर्ती तथा पदोन्नति नियम 2019 के अनुसार जिला शिक्षा अधिकारी के पद उप संचालक संवर्ग प्राचार्य प्रथम श्रेणी के समकक्ष अधिकारी को ही पदस्थ किये जाने का प्रावधान हैए, लेकिन स्कूल शिक्षा विभाग के द्वारा कनिष्ठ अधिकारियों को जिला शिक्षा अधिकारी के पद पर पदस्थ कर दिया गया है, जबकि इन अधिकारियों से वरिष्ठतम अधिकारी स्कूल शिक्षा विभाग में कार्यरत है।
इनको दिया प्रभार
आशोक नारायण बंजारा प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी रायपुर, प्रवास सिंग बघेल प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी दुगग्, राजेश कर्मा प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी दंतेवाड़ा, श्रीमती रजनी नेलशन प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी धमतरी, श्रीमती मधुलिका तिवारी प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी बेमेतरा, एमआर मंडावी प्रभाारी जिला शिक्षा अधिकारी नारायणपूर, राजेश कुमार झा प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी जगदलपुर और परसराम चंद्राकर प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी महासंमुद शामिल है।
हो सकती है बड़ी कार्यवाही
सामान्य प्रशासन के स्थायी निर्देश 04 अगस्त 2011 के अनुसार इन आठ प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारियों की पदस्थापना की जांच नियमानुसार किया गया तो इन प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारियों के ऊपर गाज गिर सकता है क्योंकि स्कूल शिक्षा विभाग में कई उप.संचालक और कई प्रथम श्रेणी के प्राचार्य कार्यरत है और यह प्रथम श्रेणी के अधिकारी है और जिन आठ व्यक्तियों को प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी का प्रभार सौंपा गया है वे सभी द्वितीय श्रेणी के अधिकारी है।
छत्तीसगढ पैरेंट्स एसोसियेशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल का कहना है कि जिला शिक्षा अधिकारी का पद उप संचालक ;संवर्गद्ध के समकक्ष अधिकारी का पद है एवं उसी संवर्ग के अधिकारी को ही पदस्थ किये जाने का प्रावधान हैए लेकिन स्कूल शिक्षा विभाग के द्वारा विभाग में मूल संवर्ग ;उप संचालकद्ध के प्रथम श्रेणी अधिकारी के रहते हुए द्वितीय श्रेणी अधिकारी को जिला शिक्षा अधिकारी का प्रभार सौंपा जाना स्कूल शिक्षा विभाग और सामान्य प्रशासन के स्थायी निर्देशों और छग स्कूल सेवा ;शैक्षिक एवं प्रशासनिक संवर्गद्ध 0
सेहत /शौर्यपथ /सेहत से जुड़ी एक मशहूर कहावत है ‘इलाज से बेहतर बचाव है’। यह बात पूरी तरह सही भी है कि किसी बीमारी की चपेट में आने के बाद इलाज कराने से बेहतर है कि ऐसे उपाय किए जाएं, जिससे कि आप किसी बीमारी की चपेट में न आ सकें। आज हम आपको ऐसे ही घरेलू उपाय बता रहे हैं जिन्हें अपनाने से आप बीमारियों से बचे रहेंगे।
खराश या सूखी खांसी के लिए अदरक और गुड़
गले में खराश या सूखी खांसी होने पर पिसी हुई अदरक में गुड़ और घी मिलाकर खाएं। गुड़ और घी के स्थान पर शहद का प्रयोग भी किया जा सकता है।
दमे के लिए तुलसी और वासा
दमे के रोगियों को तुलसी की 10 पत्तियों के साथ वासा (अडूसा या वासक) का 250 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर दें। लगभग 21 दिनों तक सुबह यह काढ़ा पीने से आराम आ जाता है।
भूख नहीं लगती, तो मुनक्का हरड़ और चीनी
भूख न लगती हो तो बराबर मात्रा में मुनक्का (बीज निकाल दें) , हरड़ और चीनी को पीसकर चटनी बना लें। इसे पांच छह ग्राम की मात्रा में (एक छोटा चम्मच), थोड़ा शहद मिला कर खाने से पहले दिन में दो बार चाटें।
मौसमी खांसी के लिए सेंधा नमक
सेंधे नमक की लगभग एक सौ ग्राम डली को चिमटे से पकड़कर आग पर, गैस पर या तवे पर अच्छी तरह गर्म कर लें। जब लाल होने लगे तब गर्म डली को तुरंत आधा कप पानी में डुबोकर निकाल लें और नमकीन गर्म पानी को एक ही बार में पी जाएं। ऐसा नमकीन पानी सोते समय लगातार दो-तीन दिन पीने से खांसी, विशेषकर बलगमी खांसी से आराम मिलता है। नमक की डली को सुखाकर रख लें।
बदन के दर्द में कपूर और सरसों का तेल
10 ग्राम कपूर, 200 ग्राम सरसों का तेल-दोनों को शीशी में भरकर मजबूत ठक्कन लगा दें तथा शीशी धूप में रख दें। जब दोनों चीजें मिलकर एक रस होकर घुल जाए। तब इस तेल की मालिश से नसों का दर्द, पीठ और कमर का दर्द और, मांसपेशियों के दर्द शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं।
बैठे हुए गले के लिए मुलेठी का चूर्ण
मुलेठी के चूर्ण को पान के पत्ते में रखकर खाने से बैठा हुआ गला ठीक हो जाता है या सोते समय एक ग्राम मुलेठी के चूर्ण को मुख में रखकर कुछ देर चबाते रहे। फिर वैसे ही मुंह में रखकर सो जाएं। सुबह तक गला साफ हो जाएगा। गले के दर्द और सूजन में भी आराम आ जाता है।
फटे हाथ पैरों के लिए सरसों या जैतून का तेल
नाभि में प्रतिदिन सरसों का तेल लगाने से होंठ नहीं फटते और फटे हुए होंठ मुलायम और सुन्दर हो जाते है। साथ ही नेत्रों की खुजली और खुश्की दूर हो जाती है।
सर्दी बुखार और सांस के पुराने रोगों के लिए तुलसी
तुलसी की 21 पत्तियां स्वच्छ खरल या सिलबट्टे ( जिस पर मसाला न पीसा गया हो ) पर चटनी की तरह पीस लें और से 10 से 30 ग्राम मीठे दही में मिलाकर नित्य प्रातः खाली पेट तीन महीने तक खाएं। याद रहे कि दही खट्टी न हो। यदि दही माफिक न आए, तो एक - दो चम्मच शहद मिलाकर लें। छोटे बच्चों को आधा ग्राम तुलसी की चटनी शहद में मिलाकर दें। दूध के साथ भूलकर भी न दें। औषधि सुबह खाली पेट लें। आधा एक घंटे के बाद नाश्ता ले सकते हैं ।
मुंह और गले के कष्टों के लिए सौंफ और मिश्री
भोजन के बाद दोनों समय आधा चम्मच सौंफ चबाने से मुंह की अनेक बीमारियां और सूखी खांसी दूर होती है। साथ ही बैठी हुई आवाज खुल जाती है, गले की खुश्की ठीक होती है और आवाज मधुर हो जाती है।
जोड़ों के दर्द के लिए बथुए का रस
बथुआ के ताजा पत्तों का रस पन्द्रह ग्राम प्रतिदिन पीने से गठिया दूर होता है। इस रस में नमक - चीनी आदि कुछ न मिलाएं। इसके लेने के आगे पीछे दो - दो घंटे कुछ न लें। दो तीन माह तक लें।
टिप्स ट्रिक्स /शौर्यपथ / दूध उबालते समय अगर बर्तन में उसका तला लग जाए तो दूध में से जलने की बदबू आने लगती है। ऐसे में महिलाओं के पास उसे फेंकने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता है। जले दूध की बदबू न सिर्फ आपकी खीर या चाय का स्वाद खराब कर देती है बल्कि आपका मूड भी ऑफ हो जाता है। अगर अब कभी आपके साथ ऐसा हो तो अपना मूड ऑफ करने की जगह ये 3 आसान किचन टिप्स फॉलो करके दूध से जले की महक को हटाएं। आइए जानते हैं आखिर क्या हैं ये 3 मजेदार किचन टिप्स।
दालचीनी-
अगर दूध ज्यादा जल गया है और उसमें से बहुत तेज जलने की महक आ रही है तो आप सबसे पहले दूध को एक साफ बर्तन में पलट दें। इसके बाद देसी घी में दालचीनी की 1 इंच लंबी 2 स्टिक डालकर उसे गर्म करके दूध में डालकर रख दें। ऐसा करने से दूध जलने की महक काफी हद तक कम हो जाएगी। आप इस दूध का इस्तेमाल रबड़ी बनाने में कर सकती हैं।
तेज पत्ता-
जले दूध की महक दूर करने के लिए सबसे पहले उसे एक दूसरे साफ बर्तन में पलटकर अलग रख दें। अब एक कढ़ाई में 1 छोटा चम्मच देसी घी गर्म करके उसमें 1 तेज पत्ता, 1 छोटी इलायची, 1 बड़ी इलायची और 2 -3 लॉन्ग फ्राई करें। इसके बाद इस मिश्रण को दूध के ऊपर 4-5 घंटे पड़े रहने दें। थोड़ी देर आप देखेंगे कि दूध से जले की महक खत्म हो गई है।
पान के पत्ते-
पान के पत्ते न सिर्फ मुंह का स्वाद बदलने के काम आते हैं बल्कि इनकी मदद से आप जले दूध की महक से भी निजात पा सकते हैं। अगर किसी दिन घर में दूध जल जाए तो आप उसमें पान का पत्ता डाल कर इसकी महक को खत्म कर सकती हैं। याद रखें कम जले हुए दूध में 1 से 2 पान के पत्ते और ज्यादा जले हुए दूध में 4 से 5 पान के पत्ते इस्तेमाल करें। इन पत्तों को दूध में आधा घंटा डालकर निकाल लें। ऐसा करने से दूध से जले की महक हट जाएगी।
खाना खजाना /शौर्यपथ /आपने मैदे या आटे की कचौड़ी तो कई बार खाई होगी लेकिन क्या आप जानते हैं कि सूजी की कचौड़ी सबसे ज्यादा खस्ता होती है. आइए, जानते हैं कैसे बनती है सूजी की कचौड़ी-
सामग्री
भरावन के लिए
तेल- 2 चम्मच
जीरा- 1 चम्मच
दरदरा धनिया- 1/2 चम्मच
सौंफ- 1/2 चम्मच
बारीक कटी मिर्च- 1
अदरक पेस्ट- 1/2 चम्मच
हल्दी- 1/4
चम्मच ’ कश्मीरी लाल मिर्च
पाउडर- 1/2 चम्मच
गरम मसाला पाउडर- 1/2 चम्मच
अमचूर पाउडर- 1/2 चम्मच
हींग- चुटकी भर
उबला और मैश्ड आलू- 2
नमक- 1/2 चम्मच
बारीक कटी धनिया पत्ती
2 चम्मच
पानी- आवश्यकतानुसार
अजवाइन- 1/4 चम्मच
नमक- 1/4 चम्मच
तेल- 1 चम्मच ’ सूजी- 1 कप
तेल- आवश्यकतानुसार
विधि :
उबले हुए आलू का छिलका छीलकर उसे मैश करें। उसमें भरावन की सभी सामग्री डालकर अच्छी तरह से मिला लें। दो कप पानी उबालें। पानी में एक चौथाई चम्मच अजवाइन, एक चौथाई चम्मच नमक और एक चम्मच तेल डालें। जब पानी उबलने लगे तो उसमें धीरे-धीरे सूजी डालें। सूजी को लगातार मिलाते हुए पकाएं ताकि उसमें गांठ न पड़े। जब सूजी का पानी पूरी तरह सूख जाए तो गैस ऑफ करें और सूजी को एक बर्तन में निकाल लें। जब सूजी थोड़ी ठंडी हो जाए तो उसे अच्छी तरह से गूंध लें। हथेली में हल्का-सा तेल लगाएं और सूजी की छोटी-सी लोई काटकर उसे किनारों से दबाते हुए कप का आकार दें। बीच में थोड़ा-सा आलू वाला मिश्रण डालें। लोई को सील करके बीच से हल्का-सा दबा दें। सारी कचौड़ियां ऐसे ही तैयार कर लें। गर्म तेल में कचौड़ियों को सुनहरा होने तक तल लें। हरी चटनी के साथ सर्व करें।
शौर्यपथ / हर घर में कई अवसरों पर केसर का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि केसर किस तरह से भारत में आई, इसकी खेती कहां होती है और इसमें कौन से गुण मौजूद हैं? आइए, जानते हैं केसर से जुड़ी खास बातें :
1 केसर का उत्पत्ति स्थान दक्षिणी यूरोप का स्पेन देश है, जहां से केसर मुंबई आई है और पूरे भारत के बाजारों में पहुंचती है, लेकिन स्पेन के अलावा केसर की पैदावार ईरान, फ्रांस, इटली, ग्रीस, तुर्की, फारस और चीन में भी की जाती है।
2 भारत में, कश्मीर के पंपूर तथा जम्मू के किश्तवाड़ नामक स्थान पर केसर की खेती की जाती है।
3 केसर का उपयोग आयुर्वेदिक नुस्खों में, खाद्य व्यंजनों में और देव पूजा आदि में होता था पर अब पान मसालों और गुटखों में भी इसका उपयोग होने लगा है।
4 केसर बहुत ही उपयोगी गुणों से युक्त होती है। यह उत्तेजक, वाजीकारक, यौनशक्ति बनाए रखने वाली होती है। यह कामोत्तेजक होती है। इसे त्रिदोष नाशक माना गया है।
5 स्वाद और सुगंध में रुचिकर होने के साथ ही मासिक धर्म साफ करना इसका महत्वपूर्ण गुण है।
6 यह गर्भाशय व योनि संकोचन जैसे रोगों को भी दूर करती है।
7 यह त्वचा का रंग उज्ज्वल करने मे मदद करती है। इसे उत्तम रक्तशोधक माना गया है।
8 स्वादिष्ट होने के साथ यह पौष्टिक भी है। प्रदर और निम्न रक्तचाप को ठीक करने में सहायक होती है।
9 यह कफ नाशक का काम करती है। आयुर्वेद में इसे मन को प्रसन्न करने वाली भी माना गया है।
10 स्तनों में वृद्धि करती है तथा व स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए दूधवर्द्धक मानी गई है।
11 मस्तिष्क को बल देती है व हृदय और रक्त के लिए हितकारी होती है।
12 खाद्य पदार्थ और पेय को रंगीन और सुगंधित करती है।
ऐसी अनेक गुणों से संपन्न होने के कारण हमारे रोजमर्रा के जीवन में केसर का अधिक महत्व है।
धर्म संसार /शौर्यपथ /किसी भी मंदिर में जाइए, किसी भी भगवान को देखिए, उनके साथ एक चीज सामान्य रूप से जुड़ी हुई है, वह है उनके वाहन। लगभग सभी भगवान के वाहन पशुओं को ही माना गया है। शिव के नंदी से लेकर दुर्गा के शेर तक और विष्णु के गरूढ़ से लेकर इंद्र के ऐरावत हाथी तक। लगभग सारे देवी-देवता पशुओं पर ही सवार हैं।
आखिर क्यों सर्वशक्तिमान भगवानों को पशुओं की सवारी की आवश्यकता पड़ी, जब की वे तो अपनी दिव्यशक्तियों से पलभर में कहीं भी आ-जा सकते हैं? क्यों हर भगवान के साथ कोई पशु जुड़ा हुआ है?
भगवानों के साथ जानवरों को जोडऩे के पीछे कई सारे कारण हैं। इसमें अध्यात्मिक, वैज्ञानिक और व्यवहारिक कारणों से भारतीय मनीषियों ने भगवानों के वाहनों के रूप पशु-पक्षियों को जोड़ा है। वास्तव में देवताओं के साथ पशुओं को उनके व्यवहार के अनुरूप जोड़ा गया है।
दूसरा सबसे बड़ा कारण है प्रकृति की रक्षा।
अगर पशुओं को भगवान के साथ नहीं जोड़ा जाता तो शायद पशु के प्रति हिंसा का व्यवहार और ज्यादा होता।
हर भगवान के साथ एक पशु को जोड़ कर भारतीय मनीषियों ने प्रकृति और उसमें रहने वाले जीवों की रक्षा का एक संदेश दिया है। हर पशु किसी न किसी भगवान का प्रतिनिधि है, उनका वाहन है, इसलिए इनकी हिंसा नहीं करनी चाहिए। मूलत: इसके पीछे एक यही संदेश सबसे बड़ा है।
आपको क्या लगता है? गणेश जी ने चूहों को यूं ही चुन लिया? या नंदी शिव की सवारी यूं ही बन गए?
भगवानों ने अपनी सवारी बहुत ही विशेष रूप से चुनी। यहां तक कि उनके वाहन उनकी चारित्रिक विशेषताओं को भी बताते हैं... भगवान गणेश और मूषक गणेश जी का वाहन है मूषक। मूषक शब्द संस्कृत के मूष से बना है जिसका अर्थ है लूटना या चुराना। सांकेतिक रूप से मनुष्य का दिमाग मूषक, चुराने वाले यानी चूहे जैसा ही होता है। यह स्वार्थ भाव से गिरा होता है। गणेश जी का चूहे पर बैठना इस बातका संकेत है कि उन्होंने स्वार्थ परविजय पाई है और जनकल्याण के भाव को अपने भीतर जागृत किया है।
शिव और नंदी
जैसे शिव भोलेभाले, सीधे चलने वाले लेकिन कभी-कभी भयंकर क्रोध करने वाले देवता हैं तो उनका वाहन हैं नंदी बैल। संकेतों की भाषा में बैल शक्ति, आस्था व भरोसे का प्रतीक होता है। इसके अतिरिक्त भगवान के शिव का चरित्र मोह माया और भौतिक इच्छाओं से परे रहने वाला बताया गया है। सांकेतिक भाषा में बैल यानी नंदी इन विशेषताओं को पूरी तरह चरितार्थ करते हैं। इसलिए शिव का वाहन नंदी हैं।
कार्तिकेय और मयूर
कार्तिकेय का वाहन है मयूर। एक कथा के अनुसार यह वाहन उनको भगवान विष्णु से भेंट में मिला था। भगवान विष्णु ने कार्तिकेय की साधक क्षमताओं को देखकर उन्हें यह वाहन दिया था, जिसका सांकेतिक अर्थ था कि अपने चंचल मन रूपी मयूर को कार्तिकेय ने साध लिया है। वहीं एक अन्य कथा में इसे दंभ के नाशक के तौरपर कार्तिकेय के साथ बताया गया है।
मां दुर्गा और उनका शेर
दुर्गा तेज, शक्ति और सामथ्र्य का प्रतीक है तो उनके साथ सिंह है। शेर प्रतीक है क्रूरता, आक्रामकता और शौर्य का। यह तीनों विशेषताएं मां दुर्गा के आचरण में भी देखने को मिलती है। यह भी रोचक है कि शेर की दहाड़ को मां दुर्गा की ध्वनि ही माना जाता है, जिसके आगे संसार की बाकी सभी आवाजें कमजोर लगती हैं।
मां सरस्वती और हंस
हंस संकेतों की भाषा में पवित्रता और जिज्ञासा का प्रतीक है जो कि ज्ञान की देवी मां सरस्वती के लिए सबसे बेहतर वाहन है। मां सरस्वती का हंस पर विराजमान होना यह बताता है कि ज्ञान से ही जिज्ञासा को शांत किया जा सकता है और पवित्रता को जस का तस रखा जा सकता है।
भगवान विष्णु और गरुड़
गरुण प्रतीक हैं दिव्य शक्तियों और अधिकार के। भगवद् गीता में कहा गया है कि भगवान विष्णु में ही सारा संसार समाया है। सुनहरे रंग का बड़ेआकार का यह पक्षी भी इसी ओर संकेत करता है। भगवान विष्णु की दिव्यता और अधिकार क्षमता के लिए यह सबसे सही प्रतीक है।
मां लक्ष्मी और उल्लू
मां लक्ष्मी के वाहन उल्लू को सबसे अजीब चयन माना जाता है। कहा जाता है कि उल्लू ठीक से देख नहीं पाता, लेकिन ऐसा सिर्फ दिन के समय होता है। उल्लू शुभता और धन-संपत्ति के प्रतीक भी होते हैं।
धर्म संसार /शौर्यपथ / वेद, पुराण और स्मृति ग्रंथों में हमें वरुण देव के बारे में जानकारी मिलती है। वेदों में इनका उल्लेख प्रकृति की शक्तियों के रूप में मिलता है जबकि पुराणों में ये एक जाग्रत देव हैं। हालांकि वेदों में कहीं कहीं उन्हें देव रूप में भी चित्रित किया गया है। उन्हें खासकर जल का देवता माना जाता है। आओ जानते हैं उनके संबंध में 10 रोचक बातें।
1. भागवत पुराण के अनुसार वरुण और मित्र को कश्यप ऋषि की पत्नीं अदिति की क्रमशः नौंवीं तथा दसवीं संतान बताया गया है। देवताओं में तीसरा स्थान 'वरुण' का माना जाता है।
2. मकर पर विराजमान मित्र और वरुण देव दोनों भाई हैं और यह जल जगत के देवता है। ऋग्वेद के अनुसार वरुण देव सागर के सभी मार्गों के ज्ञाता हैं। उल्लेखनीय है कि एक होता है मगर जो वर्तमान में पाया जाता है जिसे सरीसृप गण क्रोकोडिलिया का सदस्य माना गया है। यह उभयचर प्राणी दिखने में छिपकली जैसा लगता है और मांसभक्षी होता है, जबकि एक होता है समुद्री मकर जिसे समुद्र का ड्रैगन कहा गया है। श्रीमद्भभागवत पुराण में इसका उल्लेख मिलता है जिसे समुद्री डायनासोर माना गया है। वरुण देव इसी पर सवार रहते थे।
3. मित्र देव का शासन सागर की गहराईयों में है और वरुण देव का समुद्र के ऊपरी क्षेत्रों, नदियों एवं तटरेखा पर शासन हैं। वरुण देवता ऋतु के संरक्षक हैं इसलिए इन्हें 'ऋतस्यगोप' भी कहा जाता था। वरुण पश्चिम दिशा के लोकपाल और जलों के अधिपति हैं।
4. वरुण देव को देवता और असुर दोनों का ही मित्र माना जाता है। उनकी गणना देवों और दैत्यों दोनों में की जाती है। वरुण देव देवों और दैत्यों में सुलह करने के लिए भी प्रसिद्ध हैं। वरुण देव का मुख्य अस्त्र पाश है।
5. वेदों में मित्र और वरुण की बहुत अधिक स्तुति की गई है, जिससे जान पड़ता है कि ये दोनों वैदिक ऋषियों के प्रधान देवता थे। वेदों में यह भी लिखा है कि मित्र के द्वारा दिन और वरुण के द्वारा रात होती है। ऋग्वेद में वरुण को वायु का सांस बताया गया है।
6. पहले किसी समय सभी आर्य मित्र की पूजा करते थे, लेकिन बाद में यह पूजा या प्रार्थना घटती गई। पारसियों में इनकी पूजा 'मिथ्र' के नाम से होती थी। मित्र की पत्नी 'मित्रा' भी उनकी पूजनीय थी और अग्नि की आधिष्ठात्री देवी मानी जाती थी।
7. मित्रारुणदेवता को ईरान में 'अहुरमज्द' तथा यूनान में 'यूरेनस' के नाम से जाना जाता है। कदाचित् असीरियावालों की 'माहलेता' तथा अरब के लोगों की 'आलिता देवी' भी यही मित्रा थी।
8. मित्र और वरुण इन दोनों की संतानें भी अयोनि मैथुन यानि असामान्य मैथुन के परिणामस्वरूप हुई बताई गई हैं। उदाहरणार्थ वरुण के दीमक की बांबी (वल्मीक) पर वीर्यपात स्वरूप ऋषि वाल्मीकि की उत्पत्ति हुई। जब मित्र एवं वरुण के वीर्य अप्सरा उर्वशी की उपस्थिति में एक घड़े में गिर गए तब ऋषि अगस्त्य एवं वशिष्ठ की उत्पत्ति हुई। मित्र की संतान उत्सर्ग, अरिष्ट एवं पिप्पल हुए जिनका गोबर, बेर वृक्ष एवं बरगद वृक्ष पर शासन रहता है।
9. वरुण के साथ आप: का भी उल्लेख किया गया है। आप: का अर्थ होता है जल। मित्रःदेव देव और देवगणों के बीच संपर्क का कार्य करते हैं। वे ईमानदारी, मित्रता तथा व्यावहारिक संबंधों के प्रतीक देवता हैं।
10. भगवान झुलेलाल को वरुणदेव का अवतार माना जाता है।
सेहत /शौर्यपथ /छाछ या मट्ठा के पीने के 10 फायदे
गाय के दूध से घी, दही, मक्खन और छाछ बनती है। आजकल तो इससे बिस्किट भी बनाए जाते हैं और भी न जाने क्या क्या बनाया जा रहा है। गर्मी में गाय के दूध का दही और छाछ बहुत ही लाभदायक होता है। आओ जानते हैं छाछ पीने के 10 फायदे।
1. छाछ पीने से पेट की गर्मी हट जाती है और पाचन तंत्र भी सुचारु रूप से कार्य करता है।
2. नींद न आने से परेशान रहने वाले लोगों को दही व छाछ का सेवन करना चाहिए।
3. छाछ में हेल्दी बैक्टीरिया और कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं, साथ ही लैक्टोज शरीर में आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है जिससे आप तुरंत ऊर्जावान हो जाते हैं।
4. अगर कब्ज की शिकायत बनी रहती हो तो अजवाइन मिलाकर छाछ पीएं।
5. पेट की सफाई के लिए गर्मियों में पुदीना मिलाकर छाछ लस्सी बनाकर पीएं।
6. जिन लोगों को खाना ठीक से न पचने की शिकायत होती है, उन्हें रोजाना छाछ में भुने जीरे का चूर्ण, काली मिर्च का चूर्ण और सेंधा नमक का चूर्ण समान मात्रा में मिलाकर धीरे-धीरे पीना चाहिए।
7. यदि आप डाइट पर हैं तो रोज एक गिलास मट्ठा पीना न भूलें। यह लो कैलोरी और फैट में कम होता है।
8. बटर मिल्क अर्थात छाछ में विटामिन सी, ए, ई, के और बी पाए जाते हैं, जो कि शरीर के पोषण की जरूरत को पूरा करता है।
9. यह स्वस्थ पोषक तत्वों जैसे लोहा, जस्ता, फॉस्फोरस और पोटैशियम से भरा होता है, जो कि शरीर के लिए बहुत ही जरूरी मिनरल माना जाता है।
10. गर्मी में छाछ पीने से लू नहीं लगती। लग जाए तो छाछ पीना शुरू कर दें।
1 दही में कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो कि हड्डियों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। दही खाने से दांत भी मजबूत होते हैं। दही (जोडों की बीमारी) यानि कि ऑस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारी से लड़ने में भी मददगार है।
2 दही पेट के लिए बहुत फायदेमंद होता है। दही में अजवाइन मिलाकर पीने से कब्ज की शिकायत समाप्त होती है।
3 लू से बचने के लिए दही का प्रयोग किया जाता है। लू लगने पर दही पीना चाहिए।
4 दही पीने से पाचन क्षमता बढती है और भूख भी अच्छे से लगती है।
5 सर्दी और खांसी के कारण सांस की नली में इन्फेक्शन हो जाता है। इस इंफेक्शन से बचने के लिए दही का प्रयोग करना चाहिए।
6 मुंह के छालों के लिए यह बहुत ही अच्छा घरेलू नुस्खा है। मुंह में छाले होने पर दही से कुल्ला करने पर छाले समाप्त हो जाते हैं।
7 दही के सेवन से हार्ट में होने वाले कोरोनरी आर्टरी रोग से बचाव किया जा सकता है। दही के नियमित सेवन से शरीर में कोलेस्ट्रोल को कम किया जा सकता है।
8 चेहरे पर दही लगाने से त्वचा मुलायम होती है और त्वचा में निखार आता है। दही से चेहरे की मसाज की जाए तो यह ब्लीच के जैसा काम करता है। इसका प्रयोग बालों में कंडीशनर के तौर पर भी किया जाता है।
9 गर्मियों में त्वचा पर सनबर्न होने के बाद दही से मलना चाहिए, इससे सनबर्न और टैन से फायदा मिलता है।
10 त्वचा का रूखापन दूर करने के लिए दही का प्रयोग करना चाहिए। जैतून के तेल और नींबू के रस के साथ दही का चेहरे पर लगाने से चेहरे का रूखापन समाप्त होता है।
11 गर्मी के मौसम में दही और उससे बनी छाछ का ज्यादा मात्रा में प्रयोग किया जाता है। क्योंकि छाछ और लस्सी पीने से पेट की गर्मी शांत होती है। दही का रोजाना सेवन करने से शरीर की बीमारियों से लडने की क्षमता बढती है।
सेहत /शौर्यपथ / एलोवेरा के कई फायदें हैं, यह सेहत के साथ ही स्किन, बालों और वेट लॉस तक में फायदेमंद है। लेकिन इसके इस्तेमाल को लेकर सावधान नहीं रहे तो यह नुकसानदायक भी हो सकता है।
दरअसल, एलोवेरा का सीमित मात्रा में इस्तेमाल बहुत फायदेमंद होता है। लेकिन जरुरत से ज्यादा इसका इस्तेमाल खतरनाक हो सकता है। हम आपको बता रहे हैं कि कैसे एलोवेरा का अधिक इस्तेमाल आपको नुकसान पहुंचा सकता है।
यदि आप एलोवेरा का अत्याधिक सेवन करते हैं तो आपको पेट संबंधित परेशानियां हो सकती हैं। इसका इस्तेमाल सीमित मात्रा में करना चाहिए। एलोवेरा
को स्किन के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है। लेकिन स्किन पर भी एलोवेरा के ज्यादा इस्तेमाल से त्वचा संबधित परेशानी हो सकती है। एलोवेरा को चेहरे पर ज्यादा लगाने के कारण चेहरे पर रूखापन और बारीक दाने हो सकते हैं।
डायबिटीज के मरीजों के लिए एलोवेरा का जूस सही नहीं है। बिना डॉक्टर की सलाह के वह इसका सेवन न करें। एलोवेरा के ज्यादा इस्तेमाल से लिवर से जुड़ी समस्याओं का सामना आपको करना पड़ सकता है। बेहतर यह है कि डॉक्टर से सलाह लेने के बाद ही आप एलोवेरा का सेवन शुरू करें।
धर्म संसार /शौर्यपथ /श्रीराम और राम भक्त हनुमानजी के बारे में कई तरह की कथाएं भारत और भारत के बाहर भी प्रचलित हैं। हालांकि कई कथाएं तो जनश्रुति पर आधारित या प्रचलित मान्यताओं पर आधारित है। लोग इन कथाओं को पीढ़ी दर पीढ़ी सुनते आए हैं। ऐसी ही एक कथा है रावण की बेटी और हनुमानजी के बारे में। हालांकि इन कथाओं का वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास रचित रामचरितमानस में उल्लेख नहीं मिलता है। आओ जानते हैं क्या है यह कथा।
1. राम की कथा को वाल्मीकि के लिखने के बाद दक्षिण भारतीय लोगों ने अलग तरीके से लिखा। दक्षिण भारतीय लोगों के जीवन में राम का बहुत महत्व है। दक्षिण भारत में रावण का ज्यादा महत्व दिया गया था। इसी को देखते हुए श्रीलंका, इंडोनेशिया, मलेशिया, माली, थाईलैंड, कंबोडिया आदि द्वीप राष्ट्रों में रावण की बहुत ख्याति और सम्मान था इसलिए उक्त देशों में रामकथा को अलग तरीके से लिखा गया।
2. कहते हैं कि रावण की बेटी और हनुमानजी की ये कथा थाईलैंड की रामकियेन नामक रामायण और कंबोडिया की रामकेर नामक रामायण में मिलती है। हालांकि कई जगह पर थाई पात्र तोसाकांथ की बेटी बताया गया है।
3. कहते हैं कि रावण की एक बेटी भी था जिसका नाम सुवर्णमछा या सुवर्णमत्स्य था जो देखने में बहुत ही सुंदर थी। उसे सोने की जलपरी कहा गया है। मतलब स्वर्ण के समान उसका शरीर दमकता था। इसका सही अर्थ सुनहरी मछली होता है। थाईलैंड और कंबोडिया में सुनहरी मछली को उसी तरह पूजा जाता है जिस तरह की चीन में ड्रेगन को।
4. भारतीय रामायण के थाई व कम्बोडियाई संस्करणों के बारे में कहा जाता है कि उसमें लिखा है कि रावण की बेटी सुवर्णमछा (सोने की जलपरी) थी। जब नल और नील की योजन के तहत लंका तक सेतु बनाया जा रहा था तो रावण ने सुवर्णमछा को ही सेतु बनाने के प्रयास को विफल करने का कार्य सौंपा था। वह हनुमानजी का लंका तक सेतु बनाने का प्रयास विफल करने की कोशिश करती है, परंतु इस दौरान ही अंततः वह उनसे प्यार करने लगती है।
5. कथा के अनुसार हनुमानजी और वानर सेना समुद्र में पत्थर फेंककर जमाते थे लेकिन वे कुछ समय बाद गायब हो जाते थे। जब हनुमानजी को इस घटना क पता चला तो वे समुद्र में उतरकर देखने लगे कि आखिर ये चट्टाने कहां गायब हो रही है तो उन्होंने देखा कि पानी के अंदर रहने वाले लोग उन्हें कहीं ले जाकर रख देते हैं। तब वे उन लोगों के पीछे गए और वे देखते हैं कि एक मत्स्यकन्या उन सब की नेता है तो वे उसे चुनौती देते हैं। परंतु वह कन्या हनुमानजी को देखकर उनके प्रेम में पड़ जाती है। हनुमानजी ये समझ जाते हैं और तब वे उसे लुभाकर समुद्र के तल पर ले आते हैं और उससे पूछते हैं तुम कौन हो? वह बताती है कि मैं रावण की बेटी हूं। फिर हनुमानजी उस कन्या को समझताते हैं कि रावण ने कितना बुरा कार्य किया और क्यों हम ये पुल बना रहे हैं। तब वह कन्या समझ जाती है और सभी चट्टाने लौटा देती हैं। कहते हैं कि दोनों का एक पुत्र भी होता है जिसका नाम मैकचनू था।
हनुमानजी के कई नाम है और हर नाम के पीछे कुछ ना कुछ रहस्य है। हनुमानजी के लगभग 108 नाम बताए जाते हैं। वैसे प्रमुख रूप से हनुमानजी के 12 नाम बताए जाते हैं। बलशालियों में सर्वश्रेष्ठ है हनुमानजी। कलिकाल में उन्हीं की भक्ति से भक्त का उद्धार होता है। जो जपे हनुमानजी का नाम संकट कटे मिटे सब पीड़ा और पूर्ण हो उसके सारे काम। तो आओ जानते हैं कि हनुमानजी के नामों का रहस्य।
1. मारुति : हनुमानजी का बचपना का यही नाम है। यह उनका असली नाम भी माना जाता है।
2. अंजनी पुत्र : हनुमान की माता का नाम अंजना था। इसीलिए उन्हें अंजनी पुत्र या आंजनेय भी कहा जाता है।
3. केसरीनंदन : हनुमानजी के पिता का नाम केसरी था इसीलिए उन्हें केसरीनंदन भी कहा जाता है।
4. हनुमान : जब बालपन में मारुति ने सूर्य को अपने मुंह में भर लिया था तो इंद्र ने क्रोधित होकर बाल हनुमान पर अपने वज्र से वार किया। वह वज्र जाकर मारुति की हनु यानी कि ठोड़ी पर लगा। इससे उनकी ठोड़ी टूट गई इसीलिए उन्हें हनुमान कहा जाने लगा।
4. पवन पुत्र : उन्हें वायु देवता का पुत्र भी माना जाता है, इसीलिए इनका नाम पवन पुत्र हुआ। उस काल में वायु को मारुत भी कहा जाता था। मारुत अर्थात वायु, इसलिए उन्हें मारुति नंदन भी कहा जाता है। वैसे उनमें पवन के वेग के समान उड़ने की शक्ति होने के कारण भी यह नाम दिया गया।
6. शंकरसुवन : हनुमाजी को शंकर सुवन अर्थात उनका पुत्र भी माना जाता है क्योंकि वे रुद्रावतार थे।
7. बजरंगबली : वज्र को धारण करने वाले और वज्र के समान कठोर अर्थात बलवान शरीर होने के कारण उन्हें वज्रांगबली कहा जाने लगा। अर्थात वज्र के समान अंग वाले बलशाली। लेकिन यह शब्द ब्रज और अवधि के संपर्क में आकर बजरंगबली हो गया। बोलचाल की भाषा में बना बजरंगबली भी सुंदर शब्द है।
8. कपिश्रेष्ठ : हनुमानजी का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। रामायणादि ग्रंथों में हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ 'वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम' आदि विशेषण प्रयुक्त किए गए। उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन इसका प्रमाण है कि वे वानर थे। रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है। अत: सिद्ध होता है कि वे जाति से वानर थे।
9. वानर यूथपति : हनुमानजी को वानर यूथपति भी कहा जाता था। वानर सेना में हर झूंड का एक सेनापति होता था जिसे यूथपति कहा जाता था। अंगद, दधिमुख, मैन्द- द्विविद, नल, नील और केसरी आदि कई यूथपति थे।
10. रामदूत : प्रभु श्रीराम का हर काम करने वाले दूत।
11. पंचमुखी हनुमान : पातल लोक में अहिरावण का वध करने जब वे गए तो वहां पांच दीपक उन्हें पांच जगह पर पांच दिशाओं में मिले जिसे अहिरावण ने मां भवानी के लिए जलाए थे। इन पांचों दीपक को एक साथ बुझाने पर अहिरावन का वध हो जाएगा इसी कारण हनुमान जी ने पंचमुखी रूप धरा। उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख। इस रूप को धरकर उन्होंने वे पांचों दीप बुझाए तथा अहिरावण का वध कर राम,लक्ष्मण को उस से मुक्त किया। मरियल नामक दानव को मारने के लिए भी यह रूप धरा था।
दोहा :
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥
स्तुति :
हनुमान अंजनी सूत् र्वायु पुत्रो महाबलः।
रामेष्टः फाल्गुनसखा पिङ्गाक्षोऽमित विक्रमः॥
उदधिक्रमणश्चैव सीता शोकविनाशनः।
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा॥
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मनः।
सायंकाले प्रबोधे च यात्राकाले च यः पठेत्॥
तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत्।
यहां पढ़ें हनुमानजी के 12 चमत्कारिक नाम
1. हनुमान हैं (टूटी हनु).
2. अंजनी सूत, (माता अंजनी के पुत्र).
3. वायुपुत्र, (पवनदेव के पुत्र).
4. महाबल, (एक हाथ से पहाड़ उठाने और एक छलांग में समुद्र पार करने वाले महाबली).
5. रामेष्ट (राम जी के प्रिय).
6. फाल्गुनसख (अर्जुन के मित्र).
7. पिंगाक्ष (भूरे नेत्र वाले).
8. अमितविक्रम, ( वीरता की साक्षात मूर्ति)
9. उदधिक्रमण (समुद्र को लांघने वाले).
10. सीताशोकविनाशन (सीताजी के शोक को नाश करने वाले).
11. लक्ष्मणप्राणदाता (लक्ष्मण को संजीवनी बूटी द्वारा जीवित करने वाले).
12.. दशग्रीवदर्पहा (रावण के घमंड को चूर करने वाले).
हनुमान जी के 108 नाम :
1.भीमसेन सहायकृते
2. कपीश्वराय
3. महाकायाय
4. कपिसेनानायक
5. कुमार ब्रह्मचारिणे
6. महाबलपराक्रमी
7. रामदूताय
8. वानराय
9. केसरी सुताय
10. शोक निवारणाय
11. अंजनागर्भसंभूताय
12. विभीषणप्रियाय
13. वज्रकायाय
14. रामभक्ताय
15. लंकापुरीविदाहक
16. सुग्रीव सचिवाय
17. पिंगलाक्षाय
18. हरिमर्कटमर्कटाय
19. रामकथालोलाय
20. सीतान्वेणकर्त्ता
21. वज्रनखाय
22. रुद्रवीर्य
23. वायु पुत्र
24. रामभक्त
25. वानरेश्वर
26. ब्रह्मचारी
27. आंजनेय
28. महावीर
29. हनुमत
30. मारुतात्मज
31. तत्वज्ञानप्रदाता
32. सीता मुद्राप्रदाता
33. अशोकवह्रिकक्षेत्रे
34. सर्वमायाविभंजन
35. सर्वबन्धविमोत्र
36. रक्षाविध्वंसकारी
37. परविद्यापरिहारी
38. परमशौर्यविनाशय
39. परमंत्र निराकर्त्रे
40. परयंत्र प्रभेदकाय
41. सर्वग्रह निवासिने
42. सर्वदु:खहराय
43. सर्वलोकचारिणे
44. मनोजवय
45. पारिजातमूलस्थाय
46. सर्वमूत्ररूपवते
47. सर्वतंत्ररूपिणे
48. सर्वयंत्रात्मकाय
49. सर्वरोगहराय
50. प्रभवे
51. सर्वविद्यासम्पत
52. भविष्य चतुरानन
53. रत्नकुण्डल पाहक
54. चंचलद्वाल
55. गंधर्वविद्यात्त्वज्ञ
56. कारागृहविमोक्त्री
57. सर्वबंधमोचकाय
58. सागरोत्तारकाय
59. प्रज्ञाय
60. प्रतापवते
61. बालार्कसदृशनाय
62. दशग्रीवकुलान्तक
63. लक्ष्मण प्राणदाता
64. महाद्युतये
65. चिरंजीवने
66. दैत्यविघातक
67. अक्षहन्त्रे
68. कालनाभाय
69. कांचनाभाय
70. पंचवक्त्राय
71. महातपसी
72. लंकिनीभंजन
73. श्रीमते
74. सिंहिकाप्राणहर्ता
75. लोकपूज्याय
76. धीराय
77. शूराय
78. दैत्यकुलान्तक
79. सुरारर्चित
80. महातेजस
81. रामचूड़ामणिप्रदाय
82. कामरूपिणे
83. मैनाकपूजिताय
84. मार्तण्डमण्डलाय
85. विनितेन्द्रिय
86. रामसुग्रीव सन्धात्रे
87. महारावण मर्दनाय
88. स्फटिकाभाय
89. वागधीक्षाय
90. नवव्याकृतपंडित
91. चतुर्बाहवे
92. दीनबन्धवे
93. महात्मने
94. भक्तवत्सलाय
95.अपराजित
96. शुचये
97. वाग्मिने
98. दृढ़व्रताय
99. कालनेमि प्रमथनाय
100. दान्ताय
101. शान्ताय
102. प्रसनात्मने
103. शतकण्ठमदापहते
104. योगिने
105. अनघ
106. अकाय
107. तत्त्वगम्य
108. लंकारि
शौर्यपथ / दुनिया में अधिकतर लोग भाग्यवादी हैं। उनका विश्वास है कि भाग्य में होगा तो सबकुछ मिलेगा और नहीं होगा तो कुछ भी नहीं मिलेगा। जितना भाग्य में लिखा होगा उतना ही मिलेगा। दूसरी ओर यही भाग्यवादी लोग कहते हैं कि भविष्य भी भगवान के हाथों में ही होता है। ऐसी सोच के निर्मित होने के कई कारण है। हम उनक कारणों की चर्चा नहीं करेंगे।
भाग्यवादियों की सोच :
1. कई बार ऐसा होता है कि भाग्यवादी सोच हमें अकर्मण्य बना देती है। हम सोचते हैं कि भाग्य में होगा तो खुद-ब-खुद ही यह मिल जाएगा मेहनत करने से क्या होगा।
2. जब हम असफल हो जाते हैं तो भाग्य को कोसने लगते हैं, जबकि यह जानने का प्रयास नहीं करते हैं कि असफलता का कारण क्या था।
3. भाग्य भरोसे रहने से जिंदगी का अनमोल समय गुजरता जाता है और आदमी फिर अंत में सोचता है कि मेरे भाग्य में यही लिखा था।
4. भाग्यवाद एक समय बाद निराशा की खाई में धकेल देता है।
5. भाग्य उसी का जागृत होता है जो कर्म का छोटा सा चक्का घुमा देता है। भाग्य और कुछ नहीं बल्कि कर्मों का ही फल है।
कर्मवादियों की सोच :
1. जब तक हम कुछ करेंगे नहीं तब तक हम कुछ बनेंगे नहीं। इसीलिए करने के बाद में सोचो कुछ होने या बनने के बारे में नहीं।
2. व्यक्ति अपने कर्मों से ही महान बनता है और कर्म ही उसे सफल बनाते हैं।
3. कर्मों में कुशलता से ही कोई व्यक्ति लोगों के बीच लोकप्रिय होते हैं और यह कुशलता ही उसके जीवन से संघर्ष को हटा देती हैं।
4. कार्यालय में कार्य ही आपको बचाता है। आपकी चापलूसी या और कुछ नहीं। कार्य करने वाले कभी भी भूखे नहीं मरते हैं चाहे कितने ही संघर्ष क्यों ना उनके सामने खड़े हो।
5. गीता में कर्म को ही महत्व दिया गया है ना कि भाग्य को। कर्म कर और फल की चिंता मत कर क्योंकि फल तो तुझे मिलेगा ही।
निष्कर्ष : कर्म जरूरी है लेकिन सही दिशा में किया गया कर्म भाग्य बनता है। अर्थात भाग्य या दुर्भाग्य हमारे कर्मों का ही फल है। कर्म और भाग्य मिलकर दोनों ही हमारे भविष्य का निर्धारण करते हैं। जब समुद्र मंथन जैसा महान कर्म किया गया तो उसमें से चौदह रत्न निकले और उन सभी रत्नों का वितरण कर्मों के अनुसार ही हुआ।
शौर्यपथ / दुनिया में अधिकतर लोग भाग्यवादी हैं। उनका विश्वास है कि भाग्य में होगा तो सबकुछ मिलेगा और नहीं होगा तो कुछ भी नहीं मिलेगा। जितना भाग्य में लिखा होगा उतना ही मिलेगा। दूसरी ओर यही भाग्यवादी लोग कहते हैं कि भविष्य भी भगवान के हाथों में ही होता है। ऐसी सोच के निर्मित होने के कई कारण है। हम उनक कारणों की चर्चा नहीं करेंगे।
भाग्यवादियों की सोच :
1. कई बार ऐसा होता है कि भाग्यवादी सोच हमें अकर्मण्य बना देती है। हम सोचते हैं कि भाग्य में होगा तो खुद-ब-खुद ही यह मिल जाएगा मेहनत करने से क्या होगा।
2. जब हम असफल हो जाते हैं तो भाग्य को कोसने लगते हैं, जबकि यह जानने का प्रयास नहीं करते हैं कि असफलता का कारण क्या था।
3. भाग्य भरोसे रहने से जिंदगी का अनमोल समय गुजरता जाता है और आदमी फिर अंत में सोचता है कि मेरे भाग्य में यही लिखा था।
4. भाग्यवाद एक समय बाद निराशा की खाई में धकेल देता है।
5. भाग्य उसी का जागृत होता है जो कर्म का छोटा सा चक्का घुमा देता है। भाग्य और कुछ नहीं बल्कि कर्मों का ही फल है।
कर्मवादियों की सोच :
1. जब तक हम कुछ करेंगे नहीं तब तक हम कुछ बनेंगे नहीं। इसीलिए करने के बाद में सोचो कुछ होने या बनने के बारे में नहीं।
2. व्यक्ति अपने कर्मों से ही महान बनता है और कर्म ही उसे सफल बनाते हैं।
3. कर्मों में कुशलता से ही कोई व्यक्ति लोगों के बीच लोकप्रिय होते हैं और यह कुशलता ही उसके जीवन से संघर्ष को हटा देती हैं।
4. कार्यालय में कार्य ही आपको बचाता है। आपकी चापलूसी या और कुछ नहीं। कार्य करने वाले कभी भी भूखे नहीं मरते हैं चाहे कितने ही संघर्ष क्यों ना उनके सामने खड़े हो।
5. गीता में कर्म को ही महत्व दिया गया है ना कि भाग्य को। कर्म कर और फल की चिंता मत कर क्योंकि फल तो तुझे मिलेगा ही।
निष्कर्ष : कर्म जरूरी है लेकिन सही दिशा में किया गया कर्म भाग्य बनता है। अर्थात भाग्य या दुर्भाग्य हमारे कर्मों का ही फल है। कर्म और भाग्य मिलकर दोनों ही हमारे भविष्य का निर्धारण करते हैं। जब समुद्र मंथन जैसा महान कर्म किया गया तो उसमें से चौदह रत्न निकले और उन सभी रत्नों का वितरण कर्मों के अनुसार ही हुआ।