April 25, 2025
Hindi Hindi

धर्म संसार /शौर्यपथ /इस साल माघ पूर्णिमा 27 फरवरी 2021 (शनिवार) को है। माघ पूर्णिमा के दिन दान और स्नान करने से बत्तीस गुना ज्यादा फल की प्राप्ति होती है। इसलिए इसे बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है। भगवान विष्णु और चंद्रदेव को समर्पित पू्र्णिमा तिथि के दिन किए जाते हैं उपाय-
1.माघ मास की पूर्णिमा के दिन किसी पात्र में कच्चा दूध लेकर उसमें चीनी और चावल मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य देने से धन संबंधी परेशानियां दूर होती हैं।

2. धन लाभ के लिए माघ पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए और पूजा स्थान पर 11 कौड़ियां रखकर उनपर हल्दी से तिलक करना चाहिए। इन कौड़ियों को इसी जगह पर रखा रहने दें। अगली सुबह इन कौड़ियों को लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी या धन रखने वाली जगह पर रख दें। ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
3. वैवाहिक जीवन में खुशहाली लाने के लिए माघ पूर्णिमा के दिन व्रत रखने के साथ ही चंद्रोदय के बाद पति-पत्नी को मिलकर गाय के दूध से चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए। ऐसा करने से दांपत्य जीवन सुखमय रहता है।

रायपुर / शौर्यपथ / प्रदेश में स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूल का संचालन विद्यालय के अध्यक्ष और प्रबंध समिति द्वारा किया जाएगा। राज्य शासन के स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा इन अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में प्राचार्यों और शिक्षकों के पद प्रतिनियुक्ति से भरे जाने को भी स्वीकृति प्रदान की है। इस संबंध में इन स्कूलों में पदस्थ प्राचार्यों और शिक्षकों के लिए प्रतिनियुक्ति की सेवा शर्तें भी जारी कर दी गई है। स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा आज जारी आदेश के अनुसार प्रतिनियुक्ति की अवधि सामान्यतः 4 वर्ष की होगी। स्कूल संचालन समिति की अनुशंसा पर प्रतिनियुक्ति अवधि बढ़ाई जा सकेगी। प्रतिनियुक्ति की अवधि में वृद्धि अथवा कमी करने का अधिकार राज्य शासन को होगा।

स्कूल शिक्षा विभाग से जारी आदेशानुसार प्रदेश में संचालित स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूल से संबंधित कर्मचारी के आवेदन, सहमति के आधार पर राज्य शासन द्वारा अनापत्ति दिए जाने के बाद प्रतिनियुक्ति आदेश शाला संचालन समिति द्वारा जारी किए जाएंगे। प्रतिनियुक्ति की अवधि वर्तमान पद पर कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से शुरू होकर आगामी 4 वर्ष के लिए होगी। प्रतिनियुक्ति अवधि में वृद्धि अथवा कमी करने का अधिकार राज्य शासन को होगा। प्रतिनियुक्ति वित्त विभाग के आदेश अनुसार उसके पद के समकक्ष वेतनमान के पद अथवा आगामी पदोन्नति, क्रमोन्नति वेतनमान के समकक्ष वेतनमान के पद पर की जा सकेगी। प्रतिनियुक्ति भत्ता वित्त विभाग के आदेश के अनुरूप दिया जाएगा। अपनी बाह्य सेवा के दौरान प्रतिनियुक्ति सेवक बाह्य नियोजक से उस दर पर महंगाई भत्ता और अंतरिम राहत प्राप्त करेगा जो मूल नियोजक के नियमों के तहत समय-समय पर दिया जाता है।

प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ शासकीय सेवकों के सेवा उल्लेख का संधारण मूल विभाग द्वारा किया जाएगा। प्रतिनियुक्ति सेवक उस अवकाश नियम के अधीन रहेंगे, जो उनकी उस सेवा पर लागू होते हो, जिस सेवा के वे हों। बाह्य सेवा के दौरान लिए गए अवकाश का वेतन बाह्य नियोजक द्वारा ही भुगतान किया जाएगा और बाह्य सेवा के दौरान या उसके अंत में अवकाश अवधियों के लिए किसी भी क्षतिपूर्ति भत्ते का संपूर्ण व्यय संबंधित नियोजक द्वारा वहन किया जाएगा। बाह्य नियोजन प्रतिनियुक्ति सेवक को उनके अधीन सेवा के दौरान और सेवा समाप्ति पर किसी भी निर्योग्यता अवकाश के संबंध में छुट्टी उपलब्धि के भुगतान के लिए उत्तरदायी होगा। प्रतिनियुक्ति पर नियुक्त कर्मचारी की वरिष्ठता का निर्धारण मूल विभाग में प्रतिवर्ष प्रकाशित होने वाली पदक्रम सूची में यथास्थान दर्शाया जाएगा। प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ कर्मचारी की सेवाएं राज्य शासन आवश्यकतानुसार कभी भी वापस ले सकता है। प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ कर्मचारियों को उनकी सेवा में अनुज्ञेय अवकाश के अलावा अन्य कोई अवकाश की पात्रता नहीं होगी।

प्रतिनियुक्ति सेवक को बाह्य सेवा की अवधि मूल नियोजक के अधीन पद का कार्यभार छोड़ने की अवधि की तिथि से प्रारंभ होगी और मूल नियोजन के अधीन पद का कार्यभार उन्हें ग्रहण करने की तारीख से समाप्त होगी। यदि प्रतिनियुक्ति सेवक की प्रतिनियुक्ति अवधि में मृत्यु हो जाती है तो प्रतिनियुक्ति अवधि के लिए वित्त विभाग के नियमानुसार अनुग्रह अनुदान का भुगतान बाह्य नियोजक को करना होगा। प्रतिनियुक्ति अवधि में प्रतिनियुक्ति सेवक को अवकाश के समर्पण और नगदीकरण की पात्रता नहीं होगी। मूल नियोजक के नियमों के अनुसार प्रतिनियुक्ति सेवक से प्रतिनियुक्ति की अवधि में सामान्य भविष्य निधि और फेमिली बेनीफीट फंड, ग्रुप इंश्योरेन्स स्कीम के अंतर्गत निर्धारित किश्त की राशि वसूल की जाएगी। प्रतिनियुक्ति की अवधि में बाह्य नियोजक द्वारा इन आदेशों में उल्लेखित वेतन भत्ते तथा सुविधाओं के अतिरिक्त अन्य कोई सुविधा प्रतिनियुक्ति सेवक को बिना राज्य शासन की पूर्वानुमति के नहीं दी जाएगी। बाह्य नियोजक प्रतिनियुक्ति की निर्धारित अवधि के पूर्व प्रतिनियुक्ति सेवक की सेवाएं राज्य शासन की सहमति के बिना वापस नहीं लौटाई जाएंगी। यदि प्रतिनियुक्ति सेवक की प्रतिनियुक्ति की निर्धारित समय अवधि में वृद्धि आवश्यक हो तो बाह्य नियोजक उसको निर्धारित अवधि की समाप्ति के न्यूनतम एक माह पूर्व अपनी अनुशंसा अग्रेसित करेगा।

सेहत /शौर्यपथ /स्वस्थ रहने के लिए हम कितनी ही कोशिशें करते हैं। योग, एक्सरसाइज, मॉर्निंग वॉक और डाइटिंग ये कुछ टिप्स हैं जिन्हें ज्यादातर लोग फॉलो करते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि आयुर्वेद में खान-पान को लेकर ऐसी कई बातें लिखी गई हैं जिनका पालन करने से न सिर्फ आपकी इम्युनिटी मजबूत होती है बल्कि इससे आपका वेट भी कंट्रोल रहता है। आइए, जानते हैं आयुर्वेद के वे नियम क्या हैं-
स्टीम या हाफ बॉयल करके खाएं सब्जियां
अगर आप सब्जियों को पूरी तरह या ज्यादा गला कर खाते हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि आप उसे बहुत ज्यादा न पकाएं। ऐसा करने से उनके पोषक तत्व कम होते हैं। लेकिन अगर आप उनको कच्चा छोड़ देंगे, तो ये आपकी सेहत को नुकसान भी पहुंचा सकती हैं। खाना बनाते समय इस बात का ध्यान रखें कि आप सब्जियों को न तो ज्यादा पकाएं न ही उन्हें कच्चा छोड़ें।
कच्चे मसालों को भूनकर और पीसकर करें इस्तेमाल
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए खड़े मसालों को तवे पर भूनकर और पीसकर इसका इस्तेमाल करें। खासतौर पर सर्दियों या बरसात के मौसम में अदरक को तवे पर भून कर खा सकते है।
छानकर न करें आटे का इस्तेमाल
गेंहूं में फाइबर होता है। लेकिन इसका ज्यादातर फाइबर ब्राउन वाले भाग में होता है। तो आप जब भी आटा इस्तेमाल करें इस बात का ध्यान रखें कि इसे बिना छाने इस्तेमाल करें। चोकर वाला आटा सेहत के लिए अच्छा माना जाता है।
ठंडा भोजन करने से कमजोर होती है पाचन क्रिया
ठंडा खाना खाने से बचें। यह आपके पाचन को प्रभावित कर सकता है। इसके साथ ही इस बात का ध्यान भी रखें कि पूरा पेट भर कर कभी न खाएं। आयुर्वेद के अनुसार भरपेट न खाने से भोजन आसानी से पचता है।
मीठा कम खाएं
आयुर्वेद के अनुसार मीठा कम खाना चाहिए। आप मीठे के विकल्प के तौर पर शहद या गुड़ का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह आपको डायबिटीज जैसे रोगों से बचा सकता है।

खाना खजाना /शौर्यपथ /खाने में सोया चिली बहुत ही स्वादिष्ट होता है। इसे आप आसानी से घर में बना सकती है। यह बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी बहुत पसंद आता है आइए जानते हैं कैसे बनाते है सोया चिली:
सामग्री :
सोयाबीन नगेट्स - 100 ग्राम
लहसुन पेस्ट- 1/2 चम्मच
तेल- 2 चम्मच
बारीक कटा हरा प्याज- 1 कप
कटी हुई हरी मिर्च- 2
सोया सॉस- 2 चम्मच
विनिगर- 2 चम्मच ’
नमक- स्वादानुसार
विधि :
सोयाबीन नगेट्स को आधे घंटे के लिए पानी में भिगोने के बाद पानी निचोड़ दें। एक बाउल में सोया नगेट्स, एक चम्मच नमक और लहसुन का पेस्ट डालकर अच्छी तरह से मिलाएं। कड़ाही में तेल गर्म करें और उसमें हरे प्याज को डालकर थोड़ी देर भूनें। हरी मिर्च डालें और कुछ सेकेंड पकाएं। अब कड़ाही में बचा हुआ नमक, सोया सॉस, विनिगर और सोयाबीन डालें, अच्छी तरह से मिलाएं। तेज आंच पर दो-चार मिनट पकाएं और सर्व करें।

शौर्यपथ /मां बनने के बाद सबसे बड़ी समस्या होती है बढ़े हुए वजन को कम करना। इसके अलावा भी डिलीवरी के बाद मां को कई तरह की परेशानियां होती हैं। जैसे शरीर में दर्द या कमजोरी महसूस होना। ऐसे में बहुत जरूरी है कि मां और बच्चे की देखभाल के साथ उनकी डाइट का भी ख्याल रखा जाए।आज हम आपको अजवाइन के ऐसे देसी लड्डू की रेसिपी बता रहे हैं, जो डिलीवरी के बाद बच्चे और मां दोनों के लिए बेहद लाभदायक है।अजवाइन में आयरन, सोडियम, मैग्नीशियम, विटामिन ए और विटामिन सी पाया जाता है, जो हमारी त्वचा और शरीर दोनों के लिए फायदेमंद होता है। इसमें प्रचुर मात्रा में फाइबर भी होता है जो पाचन क्रिया को ठीक रखने में मदद करता है।
सामग्री :
अजवाइन के लड्डू बनाने के लिए 1 किलो अजवाइन पिसी हुई, डेढ़ किलो गेहूं के आटे, 250 ग्राम गोंद, 1 सूखा नारियल कटा हुआ, देसी चीनी या गुड़ और आवश्यकतानुसार देसी घी की जरूरत होती है।
अजवाइन के लड्डू ऐसे बनाएं :
गैस पर कढ़ाई रखें और उसे गर्म होने दें।
अब कढ़ाई में 1 बड़ा चम्मच घी डालें और धीमी आंच पर घी को गर्म होने दें।
इसके बाद घी में गोंद डालें और इसे अच्छी तरह से भूनने के बाद किसी खाली बर्तन में निकाल लें।
अब गर्म-गर्म ही गोंद को पीस लें।
दोबारा कढ़ाई को गर्म करके उसमें घी डालें।
अब आटा डाल दें और इसको तब तक धीमी आंच पर पकाएं जब तक कि उसमें से खुशबू न आने लगे।
फिर इसमें गोंद और पिसा हुआ नारियल डालें।
इसमें पिसी हुई अजवाइन डालकर आटे के साथ मिला दें।
ठंडा होने पर इसमें चीनी या गुड़ डाल दें
चीनी मिलाने से अजवाइन का तीखापन कम हो जाता है।
अब इस चूरमे से लड्डू बना लें।
अजवाइन के लड्डू खाने के फायदे
-अजवाइन महिलाओं को प्रसव के बाद होने वाली पीड़ा से राहत दिलाने का सबसे अच्छा उपाय है। इसमें एंटी-इंफ्लामेट्री गुण होते हैं जो प्रसव के बाद होने वाले दर्द को दूर करते हैं।
-अजवाइन मां और बच्चे दोनों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है।
-यह कफ और बलगम को भी ठीक करती है और सर्दी, जुकाम से बचाती है।
-अजवाइन का पानी नियमित रूप से पीने से शरीर से सारी गंदगी बाहर निकल जाती है। अजवाइन डिलीवरी के बाद शरीर को डिटॉक्सिफाई करने के गुण रखती है।
-इसमें कुछ ऐसे गुण होते हैं जो स्तनपान करवाने वाली महिलाओं के दूध को और पौष्टिक बनाते हैं।
-गर्भावस्था के बाद महिलाओं को हमेशा वजन बढ़ने की शिकायत होती है जिसे अजवाइन से कम किया जा सकता है।
-अक्सर प्रसव के बाद महिलाओं को पीठ और पैरों में दर्द की परेशानी होती है, अजवाइन खाने से इस दर्द में राहत मिलती है।

धर्म संसार /शौर्यपथ /हम द्वार के आसपास स्वस्तिक बनाकर शुभ और लाभ लिखते हैं। आखिर यह शुभ लाभ क्यों लिखते हैं और इनका भगवान शिव या शंकरजी से क्या संबंध है यह बहुत ही कम लोग जानते होंगे। आओ आज हम बताते हैं कि इसका रहस्य क्या है।
शिवपुत्र गणेशजी को देवगणों का अधिपति नियुक्त किया गया है। गणेशजी की बहन का नाम अशोक सुंदरी हैं और उनके भाई का नाम कार्तिकेय है। दुनिया के प्रथम धर्मग्रंथ ऋग्वेद में भी भगवान गणेशजी का जिक्र है। ऋग्वेद में 'गणपतिÓ शब्द आया है। यजुर्वेद में भी ये उल्लेख है।
दरअसल, भारतीय धर्म और संस्कृति में भगवान गणेशजी सर्वप्रथम पूजनीय और प्रार्थनीय हैं। उनकी पूजा के बगैर कोई भी मंगल कार्य शुरू नहीं होता। कोई उनकी पूजा के बगैर कार्य शुरू कर देता है तो किसी न किसी प्रकार के विघ्न आते ही हैं। सभी धर्मों में गणेश की किसी न किसी रूप में पूजा या उनका आह्वान किया ही जाता है। गणेशजी की पूर्ति या चित्र के आसपास रिद्धि सिद्धि और शुभ लाभ क्यों लिखा जाता है यह कई लोग जानते होंगे।
दरअसल विघ्ननाशक की ऋद्धि और सिद्धि नामक दो पत्नियां हैं जो प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्रियां हैं। सिद्धि से 'क्षेमÓ और ऋद्धि से 'लाभÓ नाम के दो पुत्र हुए। लोक-परंपरा में इन्हें ही शुभ-लाभ कहा जाता है। कहते हैं शिवपुत्र गणेश के भाई कार्तिकेय ने विवाह नहीं किया था।
शुभ और लाभ गणेशजी के पुत्र होने के नाते भगवान शंकर के पोते हुए यानि की शिवजी शुभ और लाभ के दादाजी हुए।

धर्म संसार /शौर्यपथ / महालक्ष्मी ने क्यों धरा बेलवृक्ष का रूप, शिव ने क्यों माना बिल्ववृक्ष को शिवस्वरूप ? नारदजी ने एक बार भोलेनाथ की स्तुति कर पूछा – प्रभु आपको प्रसन्न करने के लिए सबसे उत्तम और सुलभ साधन क्या है. हे त्रिलोकीनाथ आप तो निर्विकार और निष्काम हैं, आप सहज ही प्रसन्न हो जाते हैं। फिर भी मेरी जानने की इच्छा है कि आपको क्या प्रिय है?
शिवजी बोले- नारदजी वैसे तो मुझे भक्त के भाव सबसे प्रिय हैं, फिर भी आपने पूछा है तो बताता हूं
मुझे जल के साथ-साथ बिल्वपत्र बहुत प्रिय है।जो अखंड बिल्वपत्र मुझे श्रद्धा से अर्पित करते हैं मैं उन्हें अपने लोक में स्थान देता हूं।
नारदजी भगवान शंकर औऱ माता पार्वती की वंदना कर अपने लोक को चले गए। उनके जाने के पश्चात पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा- हे प्रभु मेरी यह जानने की बड़ी उत्कट इच्छा हो रही है कि आपको बेलपत्र इतने प्रिय क्यों है। कृपा करके मेरी जिज्ञासा शांत करें।
शिवजी बोले- हे शिवे! बिल्व के पत्ते मेरी जटा के समान हैं।उसका त्रिपत्र यानी तीन पत्ते, ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद हैं। शाखाएं समस्त शास्त्र का स्वरूप हैं। बिल्ववृक्ष को आप पृथ्वी का कल्पवृक्ष समझें जो ब्रह्मा-विष्णु-शिवस्वरूप है।
हे पार्वती! स्वयं महालक्ष्मी ने शैल पर्वत पर बिल्ववृक्ष रूप में जन्म लिया था इस कारण भी बेल का वृक्ष मेरे लिए अतिप्रिय है। महालक्ष्मी ने बिल्व का रूप धरा, यह सुनकर पार्वतीजी कौतूहल में पड़ गईं।
पार्वतीजी कौतूहल से उपजी जिज्ञासा को रोक न पाई।उन्होंने पूछा- देवी लक्ष्मी ने आखिर बिल्ववृक्ष का रूप क्यों लिया? आप यह कथा विस्तार से कहें।
भोलेनाथ ने देवी पार्वती को कथा सुनानी शुरू की। हे देवी, सत्ययुग में ज्योतिरूप में मेरे अंश का रामेश्वर लिंग था। ब्रह्मा आदि देवों ने उसका विधिवत पूजन-अर्चन किया था।
इसका परिणाम यह हुआ कि मेरे अनुग्रह से वाणी देवी सबकी प्रिया हो गईं। वह भगवान विष्णु को सतत प्रिय हो गईं।
मेरे प्रभाव से भगवान केशव के मन में वाग्देवी के लिए जितनी प्रीति उपजी हुई वह स्वयं लक्ष्मी को नहीं भाई।
लक्ष्मी देवी का श्रीहरि के प्रति मन में कुछ दुराव पैदा हो गया। वह चिंतित और रूष्ट होकर चुपचाप परम उत्तम श्रीशैल पर्वत पर चली गईं।
वहां उन्होंने तप करने का निर्णय किया और उत्तम स्थान का चयन करने लगीं।
महालक्ष्मी ने उत्तम स्थान का निश्चय करके मेरे लिंग विग्रह की उग्र तपस्या प्रारम्भ कर दी। उनकी तपस्या कठोरतम होती जा रही थी।
हे परमेश्वरी कुछ समय बाद महालक्ष्मी जी ने मेरे लिंग विग्रह से थोड़ा उध्र्व में एक वृक्ष का रूप धारण कर लिया।अपने पत्तों और पुष्प द्वारा निरंतर मेरा पूजन करने लगीं।
इस तरह महालक्ष्मी ने कोटि वर्ष ( एक करोड़ वर्ष) तक घोर आराधना की। अंतत: उन्हें मेरा अनुग्रह प्राप्त हुआ।
मैं वहां प्रकट हुआ और देवी से इस घोर तप की आकांक्षा पूछकर वरदान देने को तैयार हुआ।
महालक्ष्मी ने मांगा कि श्रीहरि के हृदय में मेरे प्रभाव से वाग्देवी के लिए जो स्नेह हुआ है वह समाप्त हो जाए।
शिवजी बोले- मैंने महालक्ष्मी को समझाया कि श्रीहरि के हृदय में आपके अतिरिक्त किसी और के लिए कोई प्रेम नहीं है। वाग्देवी के प्रति उनका प्रेम नहीं अपितु श्रद्धा है।
यह सुनकर लक्ष्मीजी प्रसन्न हो गईं और पुन: श्रीविष्णु के ह्रदय में स्थित होकर निरंतर उनके साथ विहार करने लगी।
हे पार्वती! महालक्ष्मी के हृदय का एक बड़ा विकार इस प्रकार दूर हुआ था। इस कारण हरिप्रिया उसी वृक्षरूपं में सर्वदा अतिशय भक्ति से भरकर यत्नपूर्वक मेरी पूजा करने लगी।
हे पार्वती इसी कारण बिल्व का वृक्ष, उसके पत्ते, फलफूल आदि मुझे बहुत प्रिय है। मैं निर्जन स्थान में बिल्ववृक्ष का आश्रय लेकर रहता हूं।
बिल्ववृक्ष को सदा सर्वतीर्थमय एवं सर्वदेवमय मानना चाहिए. इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। बिल्वपत्र, बिल्वफूल, बिल्ववृक्ष अथवा बिल्वकाष्ठ के चन्दन से जो मेरा पूजन करता है वह भक्त मेरा प्रिय है।
बिल्ववृक्ष को शिव के समान ही समझो।वह मेरा शरीर है. जो विल्व पर चंदन से मेरा नाम अंकित करके मुझे अर्पण करता है मैं उसे सभी पापों से मुक्त करके अपने लोक में स्थान देता हूं।
हे देवी उस व्यक्ति को स्वयं लक्ष्मीजी भी नमस्कार करती हैं जो बिल्व से मेरा पूजन करते हैं। जो बिल्वमूल में प्राण छोड़ता है उसको रूद्र देह प्राप्त होता है।
मेरी पूजा के लिए बेल के उत्तम पत्तों का ही प्रयोग करना चाहिए.

धर्म संसार /शौर्यपथ /भगवान विश्वकर्मा की पूजा के दिन कुछ ऐसे भी कार्य हैं जिन्हें करना वर्जित माना गया है। आइए जानते हैं कि कौन से वो कार्य हैं जो विश्वकर्मा पूजा के दिन नहीं करना चाहिए और कौन-कौन से कार्य करना चाहिए।
- विश्वकर्मा पूजा पर भूलकर भी औजारों को इधर-उधर न फेंके नहीं तो आपको विश्वकर्मा भगवान के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है।
1- इस दिन आप न तो स्वयं अपने औजारों का इस्तेमाल करें और न हीं किसी और को करने दें।
2- जिन वस्तुओं का आप अपने जीवन में रोज प्रयोग करते हैं उनकी विश्वकर्मा पूजा पर साफ-सफाई करना न भूलें।
3- अगर आप विश्वकर्मा भगवान की मूर्ति रखकर उनकी पूजा कर रहे हैं तो अपने औजारों को पूजा में रखना न भूलें।
4- अगर आपकी कोई फैक्ट्री है तो विश्वकर्मा पूजा के दिन उनकी पूजा न करना भूलें।
5- जिन लोगों की भी फैक्ट्री आदि है या फिर उनका मशीन से जुड़ा कोई काम है तो उन्हें विश्वकर्मा पूजा के दिन अपनी मशीनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
6- यदि आपके पास कोई वाहन हैं तो आपको विश्वकर्मा पूजा के दिन उसकी साफ-सफाई और पूजा करना नहीं भूलना चाहिए।
7- विश्वकर्मा पूजा के दिन किसी भी पुराने औजार को अपने घर, फैक्ट्री या दुकान से बाहर न फेंकें, ऐसा करना विश्वकर्मा जी का अपमान जाता है।
8- आपको विश्वकर्मा पूजा के दिन भूलकर भी मांस और मदिरा का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
9- अपने व्यापार की वृद्धि के लिए आपको विश्वकर्मा पूजा के दिन निर्धन व्यक्ति और ब्राह्मण को दान अवश्य देना चाहिए।

खाना खजाना /शौर्यपथ लंच या डिनर के बाद अगर कुछ मीठा खाने का मन है लेकिन कोई झंझट नहीं चाहते तो ट्राई करें ये झटपट बनने वाली ब्रेड रसमलाई रेसिपी। यह खाने में टेस्टी होने के साथ सिर्फ 10 मिनट में बनकर तैयार हो जाती है। तो आइए जानते हैं कैसे बनाई जाती है यह टेस्टी रेसिपी।
ब्रेड रसमलाई बनाने के लिए सामग्री
-ब्राउन ब्रेड- 4
-2 छोटी चम्मच स्किम्ड मिल्क पाउडर
-4 बड़ी चम्मच फुल क्रीम मिल्क
-3/4 कप गाढ़ा दूध
-जरूरत अनुसार हरी इलायची
-जरूरत अनुसार बादाम
-जरूरत अनुसार पिस्ता
-जरूरत अनुसार केसर
ब्रेड रसमलाई बनाने की विधि-
ब्रेड रसमलाई बनाने के लिए सबसे पहले एक सैंडविच ब्रेड के सभी किनारे काटकर ब्रेड को गोलाई का आकार दें। अब एक पैन में दूध उबाल लें। दूध को उबलते समय लगातार उसे चम्मच से हिलाते रहें ताकि दूध पैन के तले में ना चिपक जाए। दूध को तब तक पकाएं जब तक दूध की मात्रा का एक तिहाई हिस्सा ना बच जाए। अब इस गाढे़ दूध में मिल्क पाउडर डालकर उसे अच्छी तरह से मिलाएं। मिल्क पाउडर को मिलाते समय गैस की आंच धीमी करके इस मिक्सर को 2 से 3 मिनट तक पकाएं।
उसके बाद इसमें कंडेंस मिल्क डालकर अच्छी तरह से मिला लें।अब इस मिश्रण में केसर, इलायची का पाउडर, बारीक कटे बादाम और पिस्ता डालकर पैन में ही इसे अच्छी तरह से मिला लें। इन सभी सामग्रियों को डालने के बाद इस पूरे मिश्रण को गाढ़ा होने तक 4 से 5 मिनट तक तेज आंच में पकाएं। अब कटे हुए ब्रेड को सर्विंग प्लेट में रखें और कंडेंस मिल्क, इलायची पाउडर, बारीक कटे बदाम, पिस्ता सभी के द्वारा तैयार किए गए मिश्रण को इनके ऊपर डालें। आपकी ब्रेड रसमलाई तैयार है। इसे ठंडा होने के बाद सर्व करें।

योग /शौर्यपथ / दिन की अच्छी शुरुआत करने के लिए सूर्य नमस्कार सबसे अच्छा व्यायाम है। जिस प्रकार 12 राशियां, 12 महीने होते हैं, उसी प्रकार सूर्य नमस्कार भी 12 स्थितियों से मिलकर बना है। अभी लॉकडाउन का समय चल रहा है, ऐसे समय में आप सूर्य नमस्कार को अपना कर अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते हैं-
सूर्य नमस्कार का अभ्यास इन 12 स्थितियों में किया जाता है, आइए जानें-
(1) दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें। ध्यान 'आज्ञा चक्र' पर केंद्रित करके 'सूर्य भगवान' का आह्वान 'ॐ मित्राय नमः' मंत्र के द्वारा करें।
(2) श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।
(3) तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।
(4) इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएं। मुखाकृति सामान्य रखें।
(5) श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।
(6) श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें। ध्यान को 'अनाहत चक्र' पर टिका दें। श्वास की गति सामान्य करें।
(7) इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें।
(8) यह स्थिति - पांचवीं स्थिति के समान
(9) यह स्थिति - चौथी स्थिति के समान
(10) यह स्थिति- तीसरी स्थिति के समान
(11) यह स्थिति - दूसरी स्थिति के समान
(12) यह स्थिति - पहली स्थिति की भांति रहेगी।
सूर्य नमस्कार की उपरोक्त बारह स्थितियां हमारे शरीर को संपूर्ण अंगों की विकृतियों को दूर करके निरोग बना देती हैं। यह पूरी प्रक्रिया अत्यधिक लाभकारी है। इसके अभ्यासी के हाथों-पैरों के दर्द दूर होकर उनमें सबलता आ जाती है। गर्दन, फेफड़े तथा पसलियों की मांसपेशियां सशक्त हो जाती हैं, शरीर की फालतू चर्बी कम होकर शरीर हल्का-फुल्का हो जाता है।
सूर्य नमस्कार के द्वारा त्वचा रोग समाप्त हो जाते हैं अथवा इनके होने की संभावना समाप्त हो जाती है। इस अभ्यास से कब्ज आदि उदर रोग समाप्त हो जाते हैं और पाचनतंत्र की क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाती है। इस अभ्यास के द्वारा हमारे शरीर की छोटी-बड़ी सभी नस-नाड़ियां क्रियाशील हो जाती हैं, इसलिए आलस्य, अतिनिद्रा आदि विकार दूर हो जाते हैं।

हमारा शौर्य

हमारे बारे मे

whatsapp-image-2020-06-03-at-11.08.16-pm.jpeg
 
CHIEF EDITOR -  SHARAD PANSARI
CONTECT NO.  -  8962936808
EMAIL ID         -  shouryapath12@gmail.com
Address           -  SHOURYA NIWAS, SARSWATI GYAN MANDIR SCHOOL, SUBHASH NAGAR, KASARIDIH - DURG ( CHHATTISGARH )
LEGAL ADVISOR - DEEPAK KHOBRAGADE (ADVOCATE)