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बिहार / शौर्यपथ / मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से कहा कि कोरोना महामारी के मद्देनज़र वो त्योहार के सीज़न में किसी तरह की लापरवाही न बरतें. उन्होंने लोगों से मास्क पहनने और सामाजिक दूरी का पालन जारी रखने के लिए कहा है.
लेकिन, ऐसा लगता है कि शायद उनका यह संदेश बिहार के लोगों तक नहीं पहुंचा है.बिहार में विधानसभा चुनावों में पहले चरण की वोटिंग 28 अक्तूबर को होने वाली है. चुनाव प्रचार के लिए बिहार में बड़ी-बड़ी राजनीतिक रैलियां हो रही हैं और इन रैलियों में लोगों की भारी भीड़ भी उमड़ रही है.
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) समेत चुनावी अखाड़े में उतर रही रही सभी पार्टियों ने प्रचार अभियान तेज़ कर दिया है.कुछ रैलियों की वीडियो फुटेज से दिखाई दे रहा है कि लोगों में नेताओं की एक झलक पाने के लिए भगदड़ जैसे हालात बन रहे हैं. इन रैलियों में शामिल हो रही भीड़ में शायद ही कोई मास्क पहनता दिख रहा है.वायरोलॉजिस्ट और डॉक्टरों ने चुनावी रैलियों में जुट रही इस भारी भीड़ को "संवेदनहीन" करार दिया है और कहा है कि इस तरह की लापरवाही के भयानक दुष्परिणाम हो सकते हैं.
उनका कहना है इससे कोरोना वायरस कहीं ज़्यादा तेज़ी से लोगों में फैल सकता है.भारत में अब तक कोरोना संक्रमण के 70 लाख से अधिक मामले दर्ज किए जो चुके हैं, लेकिन हाल के दिनों में रोज़ाना संक्रमितों की संख्या में गिरावट आ रही है.
जहां कुछ लोगों का कहना है कि महामारी का सबसे बुरा दौर ख़त्म हो चुका है, वहीं कई जानकार चेतावनी दे रहे हैं कि इतनी जल्दी कोरोना के ख़त्म होने का जश्न मनाना सही नहीं होगा.चुनाव आयोग ने कोविड-19 के लिए बताए गए नियमों का उल्लंघन करने वाले नेताओं को चेतावनी दी है. लेकिन, ऐसा लग रहा है कि इसका शायद ही कोई असर हुआ हो क्योंकि रैलियों में भीड़ लगातार इकट्ठी हो रही है.
कोरोना सेफ्टी नियमों का उल्लंघन
वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील का कहना है कि राजनीतिक पार्टियों को और अधिक ज़िम्मेदार होने की ज़रूरत है और उन्हें अपने कार्यकर्ताओं को भी जागरूक बनाना होगा.उन्होंने बताया, "हमें इन रैलियों में हजारों लोग जुटते दिखाई दे रहे हैं और शायद ही कोई व्यक्ति मास्क पहन रहा हो. राजनीतिक पार्टियों की ज़िम्मेदारी बनती है कि वो अपने फ़ॉलोअर्स को कोरोना से बचाव के लिए बनाए गए नियमों का पालन करने के लिए कहें."
बिहार में पहले चरण का मतदान 28 अक्तूबर को होना है. इसके बाद 3 नवंबर और फिर 7 नवंबर को मतदान होना है. चुनावों के नतीजे 10 नवंबर को आएंगे.यहां बीजेपी के अगुवाई वाला गठबंधन एक बार फिर सत्ता में आने की कोशिश कर रहा है. दूसरी ओर, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), कांग्रेस और वामदलों का गठबंधन है. इसके अलावा कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भी चुनाव मैदान में हैं.
इन चुनावों में सभी पार्टियों के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा है. चुनाव में शुरुआती कैंपेन वर्चुअल रहा, लेकिन अब प्रचार पूरी तरह से ऑफ़लाइन हो चुका है. शुक्रवार को यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन रैलियां थीं. वहीं कांग्रेस के राहुल गांधी भी रैलियों में शामिल हो रहे हैं.
राज्य के एक वरिष्ठ पत्रकार ने बीबीसी को बताया कि प्रचार के मुद्दे के तौर पर कोई भी यहां कोरोना के बारे में बात नहीं कर रहा है.उन्होंने कहा, "ऐसा लग रहा है कि जैसे राज्य से कोरोना एकदम ग़ायब चुका है. लोग लापरवाह हो गए हैं और नेता लोगों को सतर्क करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रहे हैं."
राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर चिंता
राज्य सरकार का कहना है कि वह हर दिन औसतन डेढ़ लाख कोरोना टेस्ट कर रही है और गुज़रे कुछ हफ्तों में संक्रमितों का अस्पतालों में आना कम हुआ है.लेकिन, जानकार इसे लेकर संशय जता रहे हैं. उनका कहना है कि जिस टेस्ट की बात राज्य सरकार कर रही है वो रैपिड एंटीजन टेस्ट है जिसका नतीजा 30 मिनट में आ जाता है. लेकिन इनमें कुछ मामलों में एक्युरेसी रेट केवल 30 फीसदी तक होता है.बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 22 सितंबर को कहा था कि राज्य ने पहले रोज़ाना दो लाख टेस्ट किए जा रहे थे. लेकिन, इनमें से केवल 11,732 ही आरटी-पीसीआर टेस्ट थे.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि स्थिति जोख़िम भरी है क्योंकि रैपिड एंटीजन टेस्ट से टेस्ट नतीजे ग़लत आने के आसार बढ़ते हैं. ऐसे में संक्रमित होने के बावजूद लोग इससे अनजान रह सकते हैं और वे इधर-उधर जाकर वायरस फैला सकते हैं.जानेमाने पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. ए फतहउद्दीन कहते हैं कि बिहार सेफ्टी नियमों को तोड़ने का जोखिम नहीं उठा सकता, इससे समस्याओं में और इजाफ़ा होगा.
राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पहले ही लचर हालत में है और यहां डॉक्टरों, प्रशिक्षित पैरामेडिक्स और नर्सों की भारी कमी है. जुलाई और अगस्त महीने की शुरुआत में कोरोना संक्रमण के मामलों में इजाफ़ा होने से राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर भयंकर दबाव बन गया था. कुछ मरीज़ों के परिवारों को ख़ुद ही ऑक्सीजन सिलेंडरों की व्यवस्था करनी पड़ी थी, जबकि इलाज के अभाव में कुछ मरीज़ों की मौत हो गई थी.
डॉ. फतहउद्दीन कहते हैं, "राज्य में जनसंख्या का घनत्व काफी अधिक है और लोग संयुक्त परिवारों में रहते हैं. इन रैलियों में शिरकत करने वाले लोग लौट कर अपने परिवारों में जाएंगे, लोगों से मिलेंगे. ये लोग अपने साथ संक्रमण फैला सकते हैं."त्योहारों के सीज़न और मौसम का भी राज्य में वायरस के फैलने में अहम रोल होगा. नवंबर के बाद से तापमान में गिरावट आने के चलते उत्तर भारत में हवा की गुणवत्ता खराब हो जाती है.
कई अध्ययनों से पता चला है कि प्रदूषण से कोविड-19 से होने वाली मौतों और संक्रमण की दर बढ़ जाती है.डॉ. शाहिद जमील कहते हैं, "रैलियों की ऐसी तस्वीरें, सर्दियों के दिन और आने वाले त्योहार के सीज़न को देखते हुए मैं डर जाता हूं. मुझे डर लगता है कि अगर अगले कुछ हफ्तों में देश में सावधानी नहीं बरती गई तो किस तरह के हालात पैदा हो सकते हैं."जानकारों का कहना है कि बिहार में जो हो रहा है उसका असर दूसरे राज्यों पर भी पड़ सकता है.
डॉ. फतहउद्दीन कहते हैं कि इस तरह की धारणा फैल रही है कि युवा लोगों में वायरस का ज़्यादा असर नहीं होता. वे कहते हैं, "इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि युवा लोग इस वायरस से गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़ सकते हैं." डॉ. फतहउद्दीन कहते हैं कि देश के दूसरे हिस्सों में लोगों को इस तरह की बड़ी भीड़ दिखाई देगी तो उन्हें लग सकता है कि वायरस अब नहीं फैल रहा है. ये अपने आप में काफ़ी ख़तरनाक साबित हो सकता है.
बिहार / शौर्यपथ / मेड़ से थोड़ी ही चौड़ी सड़क है, सड़क के दोनों ओर धान की बालियां लहरा रही हैं. ये सीधी सड़क मुज़फ़्फ़रपुर के रतनौली गांव को जाती है. सड़क के किनारे छोटी सी किराना दुकान पर बैठे शख़्स से संजय सहनी के घर का पता पूछा तो जवाब मिला नरेगा वाले भईया के यहां जाएंगी ना... इसके बाद हमने कुछ क़दम नापे ही थे कि सामने एक तिरपाल में 40 से 50 लोग ज़मीन पर बैठे नज़र आए.
इनमें महिलाएं ज़्यादा और पुरुष कम हैं. लोगों से घिरे संजय सहनी लोगों को बता रहे हैं कि, "जो नेता कभी यहां आए ही नहीं दिल्ली में बैठे हैं उनके नाम पर हमेशा वोट माँग लिया जाता है. जिस नेता को सामने से देखे तक नहीं उनके लिए वोट करने को कहा जाता है."
नीली सफ़ेद धारियों वाली शर्ट, गहरे भूरे रंग की पतलून और काले रंग की स्लीपर पहने संजय सहनी असाधारण रूप से सफ़ेद कुर्ते और गेंदे के फूलों की माला से लदे नेताओं से बिलकुल अलग दिखते हैं. ना ही उनकी बातों में आम नेताओं सी लफ़्फ़ाज़ी है और ना ही नेताओं से तेवर.
उन्हें घेर कर बैठीं तमाम बूढ़ी-अधेड़ उम्र की महिलाओं के लिए वह किसी उम्मीदवार से ज़्यादा उनके संजय भईया हैं.संजय सहनी मुज़फ़्फ़रपुर के कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. संजय को अलमारी चुनाव चिन्ह मिला है.
लखनऊ /शौर्यपथ / यूपी में नाबालिग बच्चियों से रेप की वारदात रुकने का नाम नहीं ले रही हैं. बाराबंकी में एक 15 साल की दलित लड़की की लाश खेत में मिली है, जिसके नीचे के कपड़े उतरे हुए थे. बांदा में एक 8 साल की बच्ची से उसके रिश्तेदार ने ही रेप किया जिसकी हालत गंभीर है. वहीं सहारनपुर में खेत में खाना लेकर जा रही महिला से गैंगरेप की वारदात सामने आई है. बाराबंकी के एक गांव में धान के खेतों में 15 साल की बच्ची की हाथ बंधी हुई लाश मिली. उसकी लैगिंग जिस्म से उतरी हुई थी. वो 4 बजे के करीब खेस में काम करने के लिए गई थी. देऱ तक नहीं आई तो ढूंढने पर लाश मिली. लड़की के चाचा ने बताया, "वो धान काटने के लिए गई थी. उसकी लैगिंग नीचे उतरी हुई थी और हाथ बंधे हुए थे. वो तिरछी पड़ी हुई थी."
अब गांव में पुलिस लगी है, मुजरिम की तलाश हो रही है. पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज की है. प्रभारी पुलिस अधीक्षक आरएस गौतम ने बताया, "डेडबॉडी का पंचनामा कर विधिक कार्रवाई की जा रही है. इशके साथ ही साक्ष्य संकलन हेतु अतिरिक्त टीम का गठन कर दिया गया है. विधिक कार्रवाई की जा रही है."
उधर बांदा में एक सात साल की बच्ची रेप के बाद अस्पताल में भर्ती है. जहां उसकी हालत गंभीर है. बच्ची घर में अकेली थी तभी एक पड़ोसी ने ने घर में घुसकर उसके साथ रेप किया. बच्ची के मां ने बताया, "जब मैं आई बाहर से तो बच्ची रो रही थी, मैंने पूछा तो उसने सारी बात बताई. " बच्ची की हालत के बारे में बताते हुए मां ने कहा, "उसका बल्ड नहीं बंद हो रहा है. बल्ड बहुत जा रहा है."
सहारनपुर में एक महिला ने आरोप लगाया है कि जब वह खेत में अपने बेटों को खाना लेकर जा रही थी, तभी गांव के कुछ दबंगों ने उसके साथ रेप किया और मारा-पीटा.पुलिस ने महिला को अस्पताल में भर्ती करवा दिया है और केस दर्ज कर लिया है. पुलिस का कहना है कि आरोपी के साथ महिला का जमीनी झगड़ा भी है.
सहारनपुर ग्रामीण के एसपी अशोक कुमार मीणा ने बताया, "वादी द्वारा बताया गया है कि इनकी मां के साथ इनके पड़ोसी के द्वारा रेप किया गया. जिसके संबंध में तहरीर दी गई है. तहरीर के आधार पर केस दर्ज कर आगे की विधिक कार्रवाई की जा रही है."
नई दिल्ली / शौर्यपथ / जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को रिहा करने के आदेश जारी कर दिया गया है. जम्मू कश्मीर सरकार के प्रवक्ता रोहित कंसल ने यह जानकारी दी है कि पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को रिहा किया जा रहा है. महबूबा मुफ्ती को पिछले साल 4 अगस्त को उस समय नजरबंद कर दिया गया था, जब केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर राज्य को दो भागों में बांटने के साथ ही उसका विशेष दर्जा छीन लिया था.
बताते चले कि पिछले महीने के अंत में महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती की जन सुरक्षा अधिनियम (PSA) के तहत अपनी मां को बंदी बनाए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से पूछा था कि महबूबा को कब तक हिरासत में रखा जा सकता है? कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से अपने रुख की जानकारी देने के लिए कहा था.
विशेष दर्जे की लड़ाई के लिए दशकों पुरानी दुश्मनी भूल एकजुट हुए जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दल
पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और उनके पिता फारूक अब्दुल्ला, जो पिछले साल अगस्त से नजरबंद थे, पहले ही रिहा हो चुके हैं. मुफ्ती को उनके घर पर हिरासत में लिया गया था, जिसे सरकार द्वारा "सहायक जेल" घोषित किया गया था. पब्लिक सेफ्टी एक्ट या पीएसए के तहत किसी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे के कई बार हिरासत में रखा जा सकता है.
हाथरस / शौर्यपथ / उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुए कथित गैंगरेप की घटनास्थल से कुछ दूर दो युवा खड़े हैं. एक ने कमर पर कीटनाशक छिड़कने वाली मशीन बांध रखी है. वो अपनी फ़सल पर कीटनाशक छिड़कने निकले थे. खेत पर जाने के बजाए वो यहाँ चले आए हैं.
ये दलित युवा बेहद आक्रोशित हैं. वो पीडि़ता को नहीं जानते. पूछने पर कहते हैं, "हमारी बहन के साथ दरिंदगी हुई है. हमारा ख़ून उबल रहा है. जबसे सोशल मीडिया पर उसके बारे में पढ़ा है, हम बेचैन हैं. हम अब ऐसी घटनाओं को बर्दाश्त नहीं करेंगे. चुनाव आने दो, इसका जवाब दिया जाएगा."
हालांकि यूपी के एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार का कहना है कि फ़ोरेंसिक रिपोर्ट में ये साफ़ कहा गया है कि महिला के साथ रेप नहीं हुआ. बल्कि मौत का कारण गर्दन में आई गंभीर चोटें हैं.
वहीं दूसरी ओर दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल की ओर से जारी बयान में कहा गया है, 'Ó20 वर्ष की महिला को 28 सितंबर को सफ़दरजंग अस्पताल में लाया गया और उनकी हालत काफ़ी गंभीर थी. जब उन्हें भर्ती किया गया तो वह सर्वाइकल स्पाइन इंजरी, क्वेड्रिफ़्लेजिया (ट्रॉमा से लकवा मारना) और सेप्टिकेमिया (गंभीर संक्रमण) से पीडि़त थीं. 'Ó
हालांकि यूपी पुलिस ये बार बार कह रही है कि रीढ़ की हड्डी नहीं टूटी बल्कि गर्दन की हड्डियां टूटी थी जो गला दबाने की कोशिश में टूट गईं. और यही मौत का कारण है.
यहाँ बाजरे के खेत हैं. गाँव को मुख्य मार्ग से जोडऩे वाली सड़क से कऱीब 100 मीटर दूर बाजरे के ही खेत में कथित गैंगरेप हुआ था. घटनास्थल पर पत्रकारों का आना-जाना लगा है. यहाँ मिले कुछ स्थानीय पत्रकार कहते हैं, "ये घटना उतनी बड़ी थी नहीं, जितनी बना दी गई है. इसकी सच्चाई कुछ और भी हो सकती है."
जब मैंने उनसे पूछा कि अगर सच्चाई कुछ और है, तो फिर आपने रिपोर्ट क्यों नहीं की, उनका कहना था, "इस घटना को लेकर भावनाएँ उबाल पर हैं. हम अपने लिए कोई ख़तरा मोल क्यों लें?" हालाँकि अपनी बात के समर्थन में उनके पास कोई ठोस सबूत नहीं थे. वो सुनी-सुनाई बातें ही ज़्यादा कह रहे थे. ये 'बातेंÓ आगे चलकर गाँव में भी सुनाई दीं.
स्थानीय पत्रकारों के साथ हुई अनौपचारिक बातचीत से उठे सवाल को हाथरस के एसपी विक्रांत वीर का ये बयान और गहरा करता है कि 'मेडिकल रिपोर्ट तैयार करने वाले डॉक्टरों ने अभी रेप की पुष्टि नहीं की है. फ़ॉरेंसिक जाँच की रिपोर्ट का इंतज़ार किया जा रहा है. उसके बाद ही इस बारे में स्पष्ट राय दी जा सकेगी.Ó
कथित गैंगरेप का शिकार हुई पीडि़ता के परिवार को अभी भी मेडिकल रिपोर्ट नहीं दी गई है. जब पीडि़ता को दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया था, तब भी उनके परिजनों के पास मेडिकल रिपोर्ट नहीं थी.
पीडि़ता के भाई कहते हैं, "पुलिस ने हमें पूरे कागज़़ नहीं दिए हैं. हमारी बहन की मेडिकल रिपोर्ट भी अभी हमें नहीं दी गई है." जब इस बारे में एसपी विक्रांत वीर से सवाल किया गया तो उनका कहना था कि ये जानकारी गोपनीय है. जाँच का हिस्सा है. हम घटना से जुड़े हर सबूत जुटा रहे हैं. फ़ॉरेंसिक सबूत भी इक_े किए गए हैं.
एसपी बार-बार इस बात पर ज़ोर देते हैं कि पीडि़ता के साथ उस तरह की दरिंदगी नहीं हुई, जिस तरह मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है. वो कहते हैं, "उनकी जीभ नहीं काटी गई थी. रीढ़ की हड्डी भी नहीं टूटी थी. गले पर दबाव बढऩे की वजह से उनकी गले की हड्डी टूटी थी जिससे नर्वस सिस्टम प्रभावित हुआ था." घटना के कुछ देर बाद रिकॉर्ड किए गए एक वीडियो में पीडि़ता ने अपने साथ बलात्कार की बात नहीं की है. इसमें उन्होंने मुख्य अभियुक्त का नाम लिया है और हत्या के प्रयास की बात की है.
हालाँकि अस्पताल में रिकॉर्ड किए गए एक दूसरे वीडियो में और पुलिस को दिए गए बयान में पीडि़ता ने अपने साथ गैंगरेप की बात की है. इस वीडियो में पीडि़ता कहती है कि मुख्य अभियुक्त ने उसके साथ पहले भी छेडख़़ानी और रेप करने की कोशिश की थी. घटना के दिन के बारे में वो बताती हैं, "दो लोगों ने रेप किया था, बाक़ी मेरी माँ की आवाज़ सुनकर भाग गए थे."
घटना के दिन को याद करते हुए पीडि़ता की माँ कहती हैं, "मैं घास काट रही थी, मैंने बेटी से कहा कि घास को इक_ा कर ले, वो घास इक_ा कर रही थी. एक ही ढेरी बना पाई थी. मुझे जब वो नहीं दिखी तो मैं उसे ढूँढती फिरी. घंटा भर तक उसे ढूँढती रही. मुझे लगा कहीं घर तो नहीं चली गई है. मैंने खेतों के तीन चक्कर काटे. फिर मेढ़ के पास खेत में पड़ी मिली. गले में चुन्नी खींच रखी थी. वो बेहोश पड़ी थी. सारे कपड़े उतरे पड़े थे."
वो पीछे गर्दन की ओर इशारा करते हुए कहती हैं, "रीढ़ की हड्डी टूटी हुई थी. जीभ कटी हुई थी. ऐसा लग रहा था जैसे फ़ालिज मार गया हो. मेरी लड़की में बिल्कुल जान नहीं थी." पीडि़ता ने अपने सबसे पहले बयान में सिफऱ् एक युवक का ही नाम लिया था. इस सवाल पर उसकी माँ कहती हैं, "जब हम उसे बाजरा में से निकाल के ले गए, वो पूरी तरह बेहोश नहीं हुई थी, तब उसने एक का ही नाम बताया था. फिर एक घंटे बाद बेहोश हो गई. चार दिन बाद सुध आई तो पूरी बात बताई कि चार लड़के थे."
पीडि़ता का परिवार उसे अस्पताल ले जाने से पहले चंदपा थाने लेकर गए थे. ये थाना घटनास्थल से कऱीब पौने दो किलोमीटर दूर है. उसकी माँ कहती हैं, "वो रास्ते भर ख़ून की उल्टियाँ कर रही थी. जीभ नीली पड़ती जा रही थी. मैंने उससे पूछा कि बेटा कुछ बता, उसने बस इतना कहा कि मेरा गला दबा हुआ है, मैं बता नहीं सकती हूँ. फिर वो बेसुध हो गई."
सफ़दरजंग अस्पताल ने पीडि़ता की जो ऑटॉप्सी रिपोर्ट जारी की है, "उसमें मौत का कारण गले के पास रीढ़ की हड्डी में गहरी चोट और उसके बाद हुई दिक़्क़तों को बताया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि उसके गले को दबाए जाने के निशान हैं, लेकिन मौत की वजह ये नहीं है. मेडिकल रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि अभी विसरा रिपोर्ट आनी बाक़ी है और उसके बाद ही मौत की सही वजह बताई जा सकेगी."
पीडि़ता की मौत के बाद सफ़दरजंग अस्पताल की प्रवक्ता ने कहा था, "20 वर्ष की महिला 28 सितंबर को साढ़े तीन बजे नए इमरजेंसी ब्लॉक में न्यूरो सर्जरी के तहत दाख़िल हुई थी. उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज से रेफऱ किया गया था. भर्ती के समय उनकी स्थिति बहुत नाज़ुक थी. उन्हें सर्वाइकल स्पाइन इंजरी, क्वाड्रीप्लीजिया और सेप्टीसीमिया था. भरसक प्रयास और इलाज के बावजूद उनका कल 29 सितंबर को सुबह 6.25 बजे देहांत हो गया."
14 सितंबर को हुए इस कथित गैंगरेप के मामले में पुलिस ने एफ़आईआर की धाराओं को तीन बार बदला है. पहले सिफऱ् हत्या के प्रयास का मुक़दमा दर्ज किया गया था. उसके बाद गैंगरेप की धाराएँ जोड़ीं गईं. दिल्ली के अस्पताल में 29 सितंबर को पीडि़ता की मौत के बाद हत्या की धाराएँ भी जोड़ी गई हैं.
पुलिस ने इस मामले में पहली गिरफ़्तारी पाँच दिन बाद की थी. क्या पुलिस से जाँच में लापरवाहियाँ हुई हैं, इस सवाल पर पुलिस अधीक्षक कहते हैं, "14 सितंबर को सुबह लगभग साढ़े नौ बजे पीडि़ता अपनी माँ और भाई के साथ थाने आईं थीं. पीडि़ता के भाई ने पुलिस को दी शिकायत में कहा था कि मुख्य अभियुक्त ने हत्या की मंशा से उसका गला दबाया है. साढ़े नौ बजे मिली इस सूचना पर हमने साढ़े दस बजे एफ़आईआर कर ली थी."
एसपी विक्रांत वीर कहते हैं, "पीडि़ता को तुरंत जि़ला अस्पताल भेजा गया था. जहाँ से उसे अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज रेफऱ कर दिया गया था. इलाज भी तुरंत शुरू हो गया था. तहरीर के आधार पर पहली एफ़आईआर 307 और एससी-एसटी एक्ट की दर्ज की गई थी. फिर पीडि़ता जब कुछ बोलने लायक़ हुई, तो इंवेस्टिगेटिंग ऑफि़सर, जो सर्किल ऑफि़सर हैं, ने बयान लिए, उसमें पीडि़ता ने एक और लड़के का नाम लिया और कहा कि उसके साथ छेडख़़ानी की गई. ये बयान हमारे पास ऑडियो-वीडियो में है. इस बयान के बाद एक और अभियुक्त का नाम रिपोर्ट में जोड़ा गया."
"इसके बाद 22 तारीख़ को पीडि़ता ने अपने साथ दुष्कर्म और चार लोगों के शामिल होने की बात बताई. जब उससे पूछा गया कि पहले उसने दो लोगों का नाम क्यों लिया था और छेड़छाड़ की बात क्यों बताई थी तो उसने कहा इससे पहले उसे बहुत होश नहीं था. पीडि़ता के इस बयान के बाद हमने 376डी यानी गैंगरेप की धारा जोड़ी और अभियुक्तों की गिरफ़्तारी के लिए टीमें गठित कर दीं. जल्दी ही बाक़ी तीनों अभियुक्तों को भी गिरफ़्तार कर लिया गया और जेल भेज दिया गया."
पीडि़ता ने अस्पताल में दिए अपने बयान में गैंगरेप का जि़क्र किया है. लेकिन क्या मेडिकल रिपोर्ट में गैंगरेप की पुष्टि होती है? इस सवाल पर एसपी कहते हैं, "मेडिकल रिपोर्ट एक अहम सबूत है. अभी जो मेडिकल रिपोर्ट हमें मिली है, उसमें डॉक्टरों ने चोटों का अध्ययन किया है लेकिन सेक्शुअल असॉल्ट (यौन हमले) की पुष्टि नहीं की है. अभी उन्हें फ़ॉरेंसिक रिपोर्ट मिलने का इंतज़ार है. उसके बाद ही वो उस पर राय देंगे. पीडि़ता के प्राइवेट पाट्र्स पर भी किसी चोट का जि़क्र नहीं है. ये मेडिकल रिपोर्ट हमारी केस डायरी का हिस्सा होगी."
रात के अंधेरे में अंतिम संस्कार
पुलिस ने मंगलवार देर रात पीडि़ता का अंतिम संस्कार कर दिया था. परिजनों का आरोप है कि उन्हें घर में बंद करके ज़बरदस्ती अंतिम संस्कार किया गया. हालाँकि पुलिस का कहना है कि परिजनों की मौजूदगी में अंतिम संस्कार हुआ.
इस तरह रात के अंधेरे में ज़बरदस्ती किए गए अंतिम संस्कार के बाद परिजनों और दलित समुदाय का ग़ुस्सा और भड़क गया है. कुछ लोग इसे पीडि़ता का 'दूसरा बलात्कार बता रहे थे.Ó वहीं पुलिस के इस कृत्य को साक्ष्य मिटाने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है. आक्रोशित लोगों का कहना था कि पुलिस ने इस तरह अंतिम संस्कार करके 'दोबारा पोस्टमार्टम की संभावना को ख़त्म कर दिया है.Ó
पीडि़ता के भाई ने बीबीसी से कहा, "हमारे रिश्तेदारों को पीटा गया. ज़बरदस्ती उसे जला दिया. हमें तो पता भी नहीं कि पुलिस ने किसका अंतिम संस्कार किया है. आखऱिी बार चेहरा तक नहीं देखने दिया गया. पुलिस को ऐसी क्या जल्दी थी?"
जब हमने एसपी से यही सवाल किया तो उनका कहना था, "मौत हुए काफ़ी देर हो चुकी थी. पोस्टमार्टम और पंचनामे की कार्रवाई होते-होते 12 बज गए थे. कुछ कारणों से पीडि़ता का शव तुरंत नहीं लाया जा सका था. पीडि़ता के पिता और उनके भाई शव के साथ ही आए थे. परिजनों ने रात में ही अंतिम संस्कार करने का फ़ैसला किया था. पुलिस ने क्रियाकर्म के लिए लकडिय़ाँ और अन्य चीज़ें इक_ा करने में मदद की थी. परिजनों ने ही अंतिम संस्कार किया था."
क्या कहना है अभियुक्तों के परिजनों का?
पीडि़ता के घर से अभियुक्तों का घर बहुत दूर नहीं है. एक बड़े संयुक्त घर में तीन अभियुक्तों के परिवार रहते हैं. जब मैं यहाँ पहुँचा, तो घर में सिफऱ् महिलाएँ हीं थीं. उनका कहना था कि उनके बच्चों को झूठा फँसाया गया है. एक अभियुक्त 32 साल का है और तीन बच्चों का पिता है. दूसरा 28 साल का है और उसके दो बच्चे हैं. बाक़ी दो की उम्र 20 साल के आसपास है और उनकी शादी नहीं हुई है.
जब उनकी माओं से पूछा गया कि अगर उनके बेटे शामिल नहीं हैं, तो फिर उनका नाम क्यों लिया गया है तो उनका कहना था, "बहुत पुरानी रंजिश है. इनका तो काम ही यही है. झूठे आरोप लगा दो. फिर बाद में पैसा ले लो. सरकार से भी मुआवज़ा लेते हैं और लोगों से भी."
परिजनों का कहना था कि पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार नहीं किया था बल्कि उन्हें हाजिऱ किया गया था. एक महिला कहती हैं, "जब नाम आ गया तो हमने अपने बालक पुलिस के हाथ में दे दिए." एक अभियुक्त की माँ कहती हैं कि उनका बेटा दूध की डेयरी पर काम करता है और घटना के दिन वहीं था. उसकी हाजिऱी की जाँच की जा सकती है.
अभियुक्तों के परिजन बार-बार अपने ठाकुर होने और पीडि़ता के परिवार के दलित होने का जि़क्र कर रहे थे. अभियुक्त की माँ कहती हैं, "हम ठाकुर हैं, वो हरिजन, हमसे उनका क्या मतलब. वो रास्ते में दिखते हैं तो हम उनसे वहाँ दूरी बना लेते हैं. उन्हें छुएँगे क्यों, उनके यहाँ जाएँगे क्यों?"
अभियुक्तों के बारे में क्या कहना है गाँव के लोगों का?
अभियुक्तों के बारे में गाँव की लोगों की राय उनके परिवार से अपने रिश्तों के आधार पर बँटी है. पास के ही ठाकुर परिवार की कुछ महिलाएँ कहती हैं कि एक अभियुक्त तो पहले से ही ऐसा था. सड़क चलती लड़कियों को छेड़ता था. अपने खेत पर काम कर रहे कुछ ठाकुर परिवारों से जुड़े युवक भी कहते हैं, "ये परिवार ऐसा ही है. लड़ाई-झगड़े करते रहते हैं. बड़ा परिवार है, तो इनके डर से कोई कुछ बोलता नहीं है. सभी एकजुट हो जाते हैं. इनका दबदबा है. गाँव में इनके ख़िलाफ़ कोई कुछ नहीं बोलेगा."
कुछ दूर एक दूसरे खेत पर काम कर रहा एक और युवक कहता है, "सर इस घटना के बारे में जैसा आप सोच रहे हैं वैसा नहीं है. अब एसआईटी जाँच करेगी. एक हफ़्ते में सब पता चल जाएगा कि क्या हुआ. देखते रहिए. टीम गाँव आ रही है."
पड़ोस के ही दलित परिवार के एक बुज़ुर्ग कहते हैं, "ये पहली बार नहीं है कि हम पर इस तरह का हमला किया गया है. हमारी बहू-बेटी अकेले खेत पर नहीं जा सकती है. और ये बेटी तो माँ-भाई के साथ गई थी तब भी उसके साथ ये हो गया. इन लोगों ने हमारी जि़ंदगी को नर्क बना दिया है. हम ही जानते हैं इस नर्क में हम कैसे रह रहे हैं."
गांव में जातिवाद
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से कऱीब 160 किलोमीटर दूर बसे इस गाँव में अधिकतर ठाकुर और ब्राह्मण परिवार ही रहते हैं. दलितों के कऱीब दर्जनभर घर हैं, जो आसपास ही हैं.
दलितों और गाँव के बाक़ी लोगों के बीच सीधा संबंध नजऱ नहीं आता है. इस घटना के बाद तथाकथित उच्च जाति के लोगों ने पीडि़ता के घर जाकर सांत्वना नहीं दी है. पीडि़ता के रिश्तेदार भी यही कहते हैं कि दूसरी जाति के लोगों से उनका संबंध नहीं है. एक अभियुक्त का नाबालिग़ भाई अपने भाई को निर्दोष बताते हुए बार-बार अपनी जाति का जि़क्र करता है. वो कहता है, "हम गहलोत ठाकुर हैं, हमारी जाति इनसे बहुत ऊपर है. हम इन्हें हाथ लगाएँगे, इनके पास जाएँगे."
दलितों में भड़कता आक्रोश
पुलिस ने गाँव पहुँचने के सभी रास्तों पर बैरिकेडिंग की है. अधिकतर लोगों को बाहर ही रोका जा रहा है. पत्रकारों को भी पैदल ही गाँव जाने दिया जा रहा है. दलित समुदाय से जुड़े लोग पीडि़ता के घर पहुँचकर सांत्वना देना चाहते हैं. लेकिन पुलिस उन्हें बाहर ही रोक रही है.
उत्तराखंड से आए दलितों के एक प्रतिनिधिमंडल को भी पुलिस ने बाहर ही रोक दिया. इसमें शामिल लोग कहते हैं, "सरकार हमारे साथ बहुत अन्याय कर रही है, हम इसे अब और नहीं सहेंगे. हम अपने लोगों के घर जाकर उन्हें ढांढस भी नहीं बंधा सकते." इस समूह में शामिल एक युवा कहता है, "इस सरकार का घमंड अब चुनावों में ही टूटेगा."
मैंने गाँव से मुख्य मार्ग तक जाने के लिए एक बाइक सवार से लिफ़्ट ली. ये यहाँ से कऱीब 30 किलोमीटर दूर स्थित एक गाँव का कोई 18-20 साल की उम्र का युवा था. वो नोएडा में नौकरी करता है और घटना का पता चलने के बाद यहाँ आया है.
वो कहते हैं, "जब से अपनी बहन के बलात्कार के बारे में पता चला है. चैन से नहीं बैठा हूँ. रोज़ सोशल मीडिया पर उसके बारे में पढ़ रहा था. उसकी मौत की ख़बर सुनते ही तुरंत गाँव चला आया. अगर वो दरिंदे मेरे सामने आए तो गोली मार दूँ."
एसआईटी जाँच
सरकार ने अब इस घटना की जाँच के लिए तीन सदस्यों की स्पेशल इंवेस्टिगेटिंग टीम गठित कर दी है, जो बुधवार शाम हाथरस पहुँच गई. अब गाँव की सीमाओं को मीडिया समेत बाक़ी सभी के लिए सील कर दिया गया है. एसआईटी ने जाँच शुरू कर दी है.
एक सप्ताह बाद एसआईटी को अपनी रिपोर्ट सौंपनी हैं. एसआईआटी की जाँच में ही घटना का पूरा सच पता चल सकेगा. घटना का सच जो भी है, इससे शायद अब बहुत ज़्यादा फ़कऱ् नहीं पड़ेगा. दलित समुदाय का ग़ुस्सा इस घटना के बाद भड़क गया है, उसे अब थामना बहुत आसान नहीं होगा.
पुलिस की भूमिका पर उठते सवाल
इस घटना के बाद पुलिस की शुरुआती जाँच और भूमिका पर कई गंभीर सवाल उठे हैं, जिनके जवाब अभी नहीं मिल सके हैं.
1. पुलिस ने घटना स्थल को सील क्यों नहीं किया. घटना के पहले दिनों में वहाँ से साक्ष्य क्यों नहीं जुटाए?
2. रात के अंधेरे में ज़बरदस्ती अंतिम संस्कार क्यों किया?
3. पीडि़ता के परिवार के साथ उसकी मेडिकल रिपोर्ट साझा क्यों नहीं की?
4. तकनीकी साक्ष्य क्यों नहीं जुटाए गए और अभियुक्तों की गिरफ़्तारी में देर क्यों की गई?
हालाँकि इन सवालों पर हाथरस के एसपी विक्रांत वीर का कहना था, "पुलिस ने अपने काम में कोई लापरवाही नहीं की है. सभी सबूत जुटाए गए हैं और जुटाए जा रहे हैं. घटना की विवेचना निष्पक्षता से की जा रही है. कोई गुनाहगार बचेगा नहीं और किसी बेगुनाह को झूठा फँसाया नहीं जाएगा."
वो कहते हैं, "हमारी जाँच अपनी रफ़्तार से चल रही है, हम मामले को फ़ॉस्ट ट्रैक अदालत ले जाकर पीडि़ता को इंसाफ़ दिलाएँगे."
(समाचार संकलन बीबीसी हिंदी से )
बलरामपुर । शौर्यपथ । बलरामपुर जिले में भी हाथरस जैसी गैंगरेप की घटना सामने आई है. यहां एक 22 वर्षीय छात्रा को अगवा कर गैंगरेप की घटना को अंजाम दिया गया है. घटना उस वक्त हुई जब छात्रा एक कॉलेज में एडमिशन के लिए गयी हुई थी. घटना के बाद सड़क पर लावारिस हालात में दरिंदे उसे छोड़कर फरार हो गए. एक रिक्शे वाले ने उसे घर तक पहुंचाया जिसके कुछ घण्टे बाद ही उसकी मौत हो गयी. आरोप है कि जिले की पुलिस ने इस पूरी घटना को भरसक दबाने का प्रयास किया लेकिन परिजनों के सामने आने के बाद मामले का खुलासा हो गया. मंगलवार की सुबह करीब 10 बजे छात्रा अपने घर से एक कॉलेज में एडमिशन के लिए गई थी. पीड़िता की मां के मुताबिक, तभी कुछ लड़कों ने उसका अपहरण कर लिया और उसके साथ गैंगरेप की घटना को अंजाम दिया. शाम तक न लौटने पर परिजनों ने उसे फोन करना शुरू किया तो उसका फोन बंद आ रहा था. लड़की को एक रिक्शा वाला एक नाबालिग बच्चे के साथ बेहोशी की हालत में तकरीबन 7:00 बजे लेकर आता है. लड़की की हालत बेहद खराब थी और वो कुछ भी नहीं बोल पा रही थी. उसके हाथ पर ग्लूकोज चढ़ाने वाला वीगो लगा हुआ था. परिजन उसे लेकर स्थानीय डॉक्टर के पास ले गए लेकिन गम्भीर हालात देखते हुए उसने लखनऊ ले जाने को कहा. परिजनों के मुताबिक जिले के तुलसीपुर हॉस्पिटल पहुंचने से पहले रास्ते में उसकी मौत हो गयी. आरोप है कि इस मामले को कोतवाली गैंसड़ी पुलिस और जिले के आलाधिकारियों ने दबाने का खूब प्रयास किया लेकिन परिजनों के सामने आने का बाद मामले का खुलासा हो गया. फिलहाल अब परिजनों की तहरीर पर 2 अभियुक्तों पर एफआईआर दर्ज कर ली गई है. मृतका की मां का आरोप है कि उसकी लड़की एक डिग्री कॉलेज में एडमिशन कराने गई थी. तभी उसका अपहरण कर उसे इंजेक्शन लगा कर बेहोश किया गया. फिर गैंगरेप की घटना को अंजाम दिया गया है. मृतका की मां का यह भी आरोप है कि जिन लोगों ने उसके साथ गैंगरेप की घटना को अंजाम दिया उन्होंने न केवल उसका कमर तोड़ दिया बल्कि उसकी टांग भी तोड़ दी. इससे लड़की न तो खड़ी हो पा रही थी न ही बोल पा रही थी. उसकी जुबान से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था. उसने बस इतना कहा कि उसके पेट मे तेज जलन हो रही है और वह मर जाएगी.
इंदौर । शौर्यपथ । इंदौर के विजय नगर थाना पुलिस ने अवैध रूप से विदेशी लड़कियों से देहव्यापार कराने वाले गैंग का पर्दाफाश किया है. पुलिस ने इनके कब्जे से 13 लड़कियों, जिसमें कुछ नाबालिग हैं उन्हें मुक्त कराया है. पुलिस ने इस गिरोह के 10 सदस्यों को गिरफ्तार किया है, जिसमें तीन महिलाएं शामिल हैं. पुलिस सभी आरोपियों से पूछताछ कर रही है. 21 सितंबर को मुंबई की दो मॉडल्स ने पुलिस से शिकायत की थी कि उन्हें काम के बहाने मुंबई से इंदौर बुलाया गया था. जहां उन्हें बाणगंगा इलाके के एक फ्लैट में बंधक बनाकर रखा गया फिर कुछ युवकों ने उनके साथ रेप किया था और उनका वीडियो वायरल करने की धमकी देकर उनसे डेढ़ लाख रुपये ले लिए थे. इंदौर पुलिस ने मॉडल्स की शिकायत को गंभीरता से लिया और आरोपियों को पकड़ने के लिए एक टीम बनाई गई. पुलिस ने नवीन ,कुलदीप, राजेन्द्र और एक महिला आरोपी को गिरफ्तार किया है. पूछताछ में पुलिस को पता चला कि ये गैंग बाहर से युवतियों को बुलाकर देह व्यापार कराता है. इसके अलावा पुलिस को पता चला कि गिरोह की महिलाएं अपने एजेंट के माध्यम से बांग्लादेश, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र से गरीब लड़कियों को काम दिलाने का झांसा देकर यहां लाती थीं. फिर उन्हें बंधक बनाकर देह व्यापार में धकेल दिया जाता था. वीजा और पासपोर्ट न होने की वजह से विदेशी लड़कियां अपने कमरे से बाहर नहीं निकल पाती थीं. पुलिस ने 9 बांग्लादेशी युवतियों को मुक्त कराया. इनमें कुछ नाबालिग लड़कियां भी शामिल हैं. पुलिस ने कुल 13 लड़कियों को बदमाशों के चुंगल से मुक्त कराया. इस गैंग से जुड़ी तीन महिला समेत 10 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया और उनके कब्जे से 25 मोबाइल फोन एक लैपटॉप व एक लाख रुपये कैश बरामद किए.
नई दिल्ली । शौर्यपथ । बात गए साल दिसंबर की है जब जामिया इस्लामिया मामले पर प्रधानमंत्री मोदी देश से शांति और अमन की अपील करते हुए एक ट्वीट लिखे जिस पर बॉलीवुड अभिनेत्री ने जो जवाब दिया उससे शायद pm मोदी भी अचंभित रह गए होंगे । बॉलीवुड के कई स्टार सोशल मीडिया पर बेबाक राय रखने के लिए जाने जाते है और खुल कर शब्दो के सही ताल मेल व उपयुक्त समय पर उचित जवाब देने में माहिर होते है ऐसे ही pm मोदी के एक ट्वीट पर अभिनेत्री रेणुका शहाणे ने जवाब दिया जो जम कर वाइरल हो रहा है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने देश के मौजूदा हालात को लेकर ट्वीट करते हुए लिखा था, "यह शांति, एकता और भाईचारा बनाए रखने का समय है. सभी से अपील है कि किसी भी तरह की अफवाह और झूठ से दूर रहें." इस तरह पीएम नरेंद्र मोदी ने देश से अपील की थी. एक्ट्रेस रेणुका शहाणे (Renuka Shahane) ने पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए लिखा, "सर, फिर आप सभी से कहिए की आपके आईटी ट्विटर हैंडल सेल से दूर रहें. वह सबसे ज्यादा अफवाहें और झूठ फैला रहे हैं और पूरी तरह से भाईचारे, शांति और एकता के खिलाफ हैं. असली, 'टुकडे टुकडे' गैंग आपका आईटी सेल है, कृपया उन्हें नफरत फैलाने से रोकें." रेणुका शहाणे (Renuka Shahane Twitter) के इस ट्वीट पर लोग खूब कमेंट कर रहे हैं और अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं.
नई / शौर्यपथ / पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के सात बीते चार महीनों से टकराव जारी है। इस बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास भारत और चीनी सैनिकों के बीच जारी गतिरोध को लेकर आज यानी मंगलवार को संसद में एक बयान दे सकते हैं। संसदीय सूत्रों ने यह जानकारी दी। विपक्ष द्वारा इस मुद्दे पर चर्चा कराये जाने की मांग के बीच यह बयान काफी महत्व रखता है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की हाल में मास्को में चीन के रक्षा मंत्री वेई फेंगहे के साथ मुलाकात हुई थी। कुछ दिन पहले विदेश मंत्री जयशंकर की भी चीन के उनके समकक्ष वांग यी के साथ मुलाकात हुई थी। चीन के साथ सीमा विवाद को सुलझाने के लिए दोनों देशों के बीच हर स्तर पर वार्ता हो रही है, मगर चीनी सेना बार-बार घुसपैठ की कोशिश करती है, जिसे भारतीय सेना नाकाम कर देती है।
इस बीच, कैबिनेट और मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति की मंगलवार अपराह्न वीडियो कांफ्रेंस के जरिये बैठक हो सकती है। सरकार के सूत्रों ने यह जानकारी दी है। सोमवार से शुरू हुए संसद के मानसून सत्र में विपक्ष भारत-चीन मुद्दे, कोविड की स्थिति, आर्थिक शिथिलता और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरने का कोई मौका छोड़ने के पक्ष में नहीं है।
बता दें कि चीन और भारत के सैनिकों के बीच बीते 15 जून को हिंसक झड़प हुई थी जिसमें भारत के एक कर्नल सहित 20 सैनिक शहीद हो गये थे। चीन के भी बड़ी संख्या में सैनिक मारे गये थे हालांकि चीन ने कभी आधिकारिक तौर पर इसका ऐलान नहीं किया। इसके बाद फिर से 29-30 अगस्त की रात चीनी सेना ने घुसपैठ की कोशिश की थी, जिसे भारतीय जवानों ने नाकाम कर दिया।