May 15, 2024
Hindi Hindi
शौर्यपथ

शौर्यपथ

मनोरंजन / शौर्यपथ / लता मंगेशकर और आशा भोसले के बीच संगीत को लेकर चर्चा नहीं होती है। आशा ने इस बात की जानकारी देते हुए कहा कि आमतौर पर दोनों बहनों में शायद ही कभी संगीत को लेकर चर्चा होती होगी। दोनों दिग्गज गायिकाओं पर किताबें लिखी गई हैं, इसलिए क्या आशा चीजों को अगले स्तर पर ले जाते हुए उनके बारे में किसी को कोई बायोपिक बनाने दे सकती हैं?

आशा ने आईएएनएस से कहा, "लता दीदी और मैं शायद ही कभी संगीत पर चर्चा करते हैं। हम एक परिवार हैं और हम रोजमर्रा की बहुत सामान्य चीजों की बात करते हैं। हमारा जीवन निजी और व्यक्तिगत है, जहां तक मेरा सवाल है मैं नहीं चाहूंगी कि हम एक फिल्म का विषय बनें।" वर्तमान में अलग-अलग अपार्टमेंट में रह रहीं दोनों बहनों में से छोटी बहन आशा ने कहा, "वह (लता दीदी) 90 साल की हैं और अपने जीवन व परिवेश के साथ शांति में हैं।"


कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के मद्देनजर लागू लॉकडाउन के दौरान भी आशा खुद को व्यस्त रखती आई हैं। आशा ने कहा, "मैं अपनी गायकी कर रही हूं. घर पर व्यायाम करना, नए पकवान बनाना, फिल्में देखना और परिवार के साथ समय बिता रही हूं। मैंने अपने नए यूट्यूब चैनल को लॉन्च किया. दूसरे शब्दों में कहूं, तो मैं खुद को बहुत व्यस्त रख रही हूं।"

वह म्यूजिक कंपोज (संगीत की रचना) भी कर रही हैं। उन्होंने कहा, "मैंने कई धुनों की रचना की है, लेकिन मैंने गीत नहीं लिखे हैं। इसके बारे में मैं प्रसून जोशी और जावेद अख्तर से कह सकती हूं, ताकि फिर इसे रिकॉर्ड करके अपने यूट्यूब पर शेयर कर सकूं।" उन्होंने 1960 से लेकर 1990 के दशक तक कई हिट रचनाएं करने वाले अपने दिवंगत पति का जिक्र करते हुए कहा, "मेरे पास दिवंगत श्री राहुल देव बर्मन की अपने पीछे छोड़ी गई कई महान धुनें हैं।"


आशा ने लॉकडाउन के बीच हाल ही में प्रशंसकों के साथ संवाद करने और अपने जीवन के कई दिलचस्प पहलूओं को उजागर करने के लिए अपना यूट्यूब चैनल लॉन्च किया है। 86 वर्षीय संगीतकार ने कहा, "मेरी पीढ़ी से कोई नहीं है, जो अब उस युग का वर्णन कर सके। मेरा पहला गाना ब्रिटिश भारत में साल 1943 में रिकॉर्ड किया गया था। मैंने भारत का विभाजन देखने के साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध, कई महामारियों और संघर्षों वाला काल देखा है। इसलिए यूट्यूब चैनल के माध्यम से बताने के लिए कई किस्से हैं।

 

नजरिया / शौर्यपथ / साल 1997 में एशियाई आर्थिक संकट के मद्देनजर तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने सात देशों के उस समूह के विस्तार की जरूरत पर बल दिया था, जिसे जी-7 कहा जाता है। उनकी कोशिश के चलते साल 1999 में जी-20 समूह की शुरुआत हुई थी और इसमें यूरोपीय संघ और 19 देश शामिल थे।
अब उस घटनाक्रम के चौबीस साल बाद एक और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उसी जी-7 के विस्तार की अपील की है और अपनी अपील को आधार देने के लिए उन्होंने इस समूह को ‘बहुत पुराना’ बताया है। वैसे ट्रंप इस विस्तार से चाहते क्या हैं, यह साफ नहीं है। हालांकि, तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन जो चाहते थे, वह भी पहले स्पष्ट नहीं था। अब ट्रंप अतिरिक्त सदस्यों के रूप में भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और रूस को शामिल करते हुए जी-10 या जी-11 बनाने की सोच रहे हैं। इसका गणित स्पष्ट है; यह जी-11 बन जाना चाहिए, लेकिन जी-10 की चर्चा क्यों? गौरतलब है, रूस को 2014 में इस अहम समूह से बाहर कर दिया गया था। तब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था और इसी के कारण जी-8 तब जी-7 बन गया था। दिलचस्प यह है कि जी-7 में शामिल अन्य देशों के अधिकांश प्रमुख रूस के प्रति ट्रंप के उत्साह को साझा नहीं करते हैं। लेकिन अकेली इसी अनिश्चितता की वजह से ट्रंप की जी-7 विस्तार की योजना पर संदेह नहीं करना चाहिए। इस समूह के विस्तार पर चर्चा करने वालों ने वर्ष 1997-99 में भी शामिल होने योग्य प्रत्याशियों पर विचार किया था, लेकिन उन्होंने तब सदस्य संख्या कम रखने को ही सही माना था। उस समूह में भारत के लिए भी जगह बनी थी।
वाकई 1997 में एशियाई देशों में व्यापक आर्थिक संकट के कारण वैश्विक वित्तीय स्थिरता की राह में खड़ी चुनौतियों से मुकाबले के लिए एक बडे़ मंच की जरूरत थी और जी-20 ने उसकी पूर्ति की। साल 2008 के आर्थिक संकट के बाद भी जी-20 ने प्रभावी भूमिका निभाई थी। अब कहा जा सकता है कि तत्कालीन योजना अपेक्षाकृत ज्यादा सोची-समझी थी।
दूसरी ओर, ट्रंप की विस्तार योजना अच्छी तरह से सोची-समझी नहीं है। दुनिया कोरोना वायरस के कारण पिछले 100 साल के सबसे खराब स्वास्थ्य संकट का सामना कर रही है, पर ट्रंप की नई कोशिश इस महामारी पर केंद्रित नहीं दिखती। यदि वह इस समस्या से निपटने की कोेशिश में बहुपक्षपवाद पर विश्वास करते, तो विश्व स्वास्थ्य संगठन में अपने देश के आर्थिक सहयोग को जारी रखते और इस संस्था को भीतर से बदलने के लिए मजबूर करते। इसके साथ ही, समूह विस्तार की उनकी पहल महामारी के समय पैदा हुए आर्थिक संकट पर भी केंद्रित नहीं दिखती है।
इस समय डोनाल्ड ट्रंप को सबसे ज्यादा चिंता अपने चुनाव की है। वह जीत की संभावनाएं तलाश रहे हैं। यही कारण है, जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल, जो पश्चिमी दुनिया के राजनेताओं में सबसे तेज हैं, चुनावी साल में अमेरिका दौरा करने से परहेज करती हैं, वह शिखर सम्मेलन में नहीं जाएंगी और न जाने की उनके पास अन्य वजहें मौजूद हैं। मर्केल चीन के खिलाफ गुट बनाने के किसी भी प्रयास में शामिल होने को तैयार नहीं हैं। ट्रंप के एक सहयोगी ने संकेत दिया है कि राष्ट्रपति ट्रंप जी-7 की अगली बैठक में चीन के भविष्य पर चर्चा करना चाहेंगे। अमेरिका-चीन संबंधों में जो तेज गिरावट देखी जा रही है, उसकी पृष्ठभूमि में यह चर्चा अस्वाभाविक नहीं है। हालांकि इससे यूरोपीय देश सहमत नहीं लगते। चीन को अलग-थलग करने के लिए जी-7 का विस्तार करने पर यूरोपीय देशों को राजी करना मुश्किल है।
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेहमान के रूप में बैठक में भाग लेने के लिए ट्रंप का निमंत्रण स्वीकार कर लिया है। भारतीय प्रधानमंत्री ने साल 2019 में राष्ट्रपति इमेनुएल मेक्रॉन के निमंत्रण पर जी-7 शिखर सम्मेलन में मेहमान के रूप में भाग लिया था। फ्रांस के राष्ट्रपति मेक्रॉन ने भी विस्तारित जी-7 में भारत को शामिल करने के ट्रंप के प्रस्ताव का स्वागत किया है। यह समूह, दुनिया की विकसित अर्थव्यवस्थाओं का सबसे अभिजात्य क्लब है, लेकिन बेहतर है कि भारत तब तक अपनी हसरतों को काबू में रखे, जब तक कि वह असली नतीजों और घटनाक्रम के साथ पूरी योजना को देख नहीं लेता।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) यशवंत राज, अमेरिका में हिन्दुस्तान टाइम्स संवाददाता

 

सम्पादकीय लेख / शौर्यपथ /कोरोना से लड़ाई में न्यूजीलैंड की कामयाबी जितनी सुखद है, उससे कहीं ज्यादा अनुकरणीय है। लगभग एक महीने से वहां संक्रमण का एक भी नया मामला सामने नहीं आना और एकमात्र सक्रिय मरीज का ठीक हो जाना पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है, तो कोई आश्चर्य नहीं। न्यूजीलैंड और उसकी प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न की तारीफ करते हुए दुनिया के तमाम देशों को देखना चाहिए कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई कैसे सफलतापूर्वक लड़ी जा सकती है। जैसे ही न्यूजीलैंड में कोरोना के मामले 100 तक पहुंचे थे, वहां पूरी कड़ाई से लॉकडाउन लगाया गया था। लोगों ने भी घर से निकलना उचित नहीं समझा, सरकार की अपील और दिशा-निर्देशों की पालना में सबने खुद को समर्पित कर दिया। प्रधानमंत्री जेसिंडा ने शुरू में ही कह दिया था, ‘हमारे पास कुछ करने का मौका है। आइए, वायरस के खिलाफ कुछ ऐसा करें, जो कोई देश नहीं कर पाया है’। जेसिंडा पहले ही अपने लोगों का विश्वास जीत चुकी हैं, तो लोगों ने भी पूरे प्रयास से उस विश्वास को मजबूती दी। जब कोरोना का आखिरी मरीज भी ठीक हो गया, तब प्रधानमंत्री ने अनायास नृत्य किया और देश से भी अपनी खुशी साझा की। यह उस देश के लिए वाकई उत्सव का समय है। यदि अब कोरोना संक्रमण बाहर से नहीं आता है, तो न्यूजीलैंड को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। जाहिर है, वहां लॉकडाउन मजबूरी में नहीं, बल्कि खुशी-खुशी खुला है।
दुनिया के लिए यह अध्ययन का विषय है कि न्यूजीलैंड ने ऐसा कैसे कर दिखाया। अव्वल तो कड़ाई से लागू किया गया लॉकडाउन पहला कारण है, जिसकी हम चर्चा कर चुके हैं। दूसरा सबसे बड़ा कारण है, कोरोना की जांंच में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना। औसतन प्रति एक लाख व्यक्तियों में से करीब 2,200 की कोरोना जांच की गई है। इतनी जांच तो अमेरिका भी नहीं कर रहा है। अमेरिका में जांच दर प्रति लाख पर 1,420 के करीब है। भारत की बात करें, तो प्रति दस लाख पर करीब 2,000 जांच की दर है। मोटे तौर पर न्यूजीलैंड में भारत की तुलना में 11 गुना ज्यादा जांच दर रही है। नतीजा सामने है। न्यूजीलैंड अपने यहां कुल मामलों को 1,504 पर रोक पाया और यदि वहां केवल 22 लोगों की मौत हुई, तो इसका सबसे ज्यादा श्रेय वहां हुई अधिकतम कोरोना जांच को ही दिया जाएगा। फैले संक्रमण की पूरी चौकसी करते हुए जांच की गई, मरीजों को आशंका के आधार पर क्वारंटीन किया गया और वायरस की कड़ी जगह-जगह पूरी कड़ाई से तोड़ दी गई। लोगों ने भी सच्चे नागरिक होने का कर्तव्य निभाया और वहां सात सप्ताह के कडे़ लॉकडाउन में ही कोरोना से मुक्ति मिल गई। वह आज मिसाल है।
क्या बडे़ या बड़ी आबादी वाले देश अपने यहां छोटे-छोटे न्यूजीलैंड बनाकर कोरोना को मात दे सकते हैं? इस पर विचार और व्यवहार की जरूरत है। कोरोना को लेकर कुछ प्रचलित धारणाएं भी टूटी हैं। एक धारणा यह है कि संक्रमण जब एक निश्चित मुकाम पर पहुंचेगा, तभी उसमें गिरावट आएगी, लेकिन न्यूजीलैंड ने इस धारणा को धता बता दिया है। न्यूजीलैंड ने इस भ्रम को भी तोड़ दिया कि किसी लोकतांत्रिक देश में कोरोना से लड़ाई आसान नहीं है। वाम-शासित चीन ही नहीं, अब लोकतांत्रिक न्यूजीलैंड भी है, जो चौतरफा लड़ती दुनिया के लिए तब तक प्रेरणास्रोत रहेगा, जब तक कोरोना है।

 

मेलबॉक्स / शौर्यपथ/ अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड नामक अश्वेत नागरिक की मौत के बाद हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही, लेकिन सच यह भी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का अश्वेतों के प्रति रवैया सहानुभूतिपूर्ण नहीं रहा है। इसी कारण जॉर्ज फ्लॉयड की मौत का आक्रोश समूचे अमेरिका में देखा जा रहा है। आज अमेरिका नस्लवाद और कोरोना के चलते दोहरी मार झेलने को विवश है। न केवल अमेरिका, बल्कि पूरी दुनिया को इस घटना से सबक सीखना चाहिए कि बहुसंख्यकों के साथ-साथ अल्पसंख्यकों का ख्याल रखना भी निहायत जरूरी है। यदि लोकतांत्रिक देश का एक भी नागरिक भय और असंतोषपूर्ण जीवन जी रहा है, तो उसका असंतोष कभी भी फट सकता है। अगर हम भारत के परिप्रेक्ष्य में बात करें, तो पिछले कुछ वर्षों से यहां भी अल्पसंख्यकों के प्रति माहौल ठीक नहीं रहा है। अमेरिका की घटना से हम भी सबक ले सकते हैं।
अली खान, जैसलमेर, राजस्थान

एनसीआर शामिल करें
अब दिल्ली सरकार के अस्पतालों में कोरोना के उन्हीं मरीजों का इलाज होगा, जो दिल्ली से हैं। दिल्ली सरकार ने ऐसा फैसला क्यों लिया, यह तो दिल्ली के मुख्यमंत्री जानें, लेकिन जिस तरह से दिल्ली में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है, उसे देखकर केजरीवाल का यह फैसला कुछ हद तक सही जान पड़ता है, क्योंकि दिल्ली में आबादी के मुताबिक स्वास्थ्य-केंद्रों और डॉक्टरों की कमी हो सकती है। बेशक केंद्र सरकार के अस्पतालों को इस फैसले से बाहर रखा गया है, लेकिन मुख्यमंत्री को चाहिए कि वह दिल्ली से कुछ किलोमीटर सटे क्षेत्र के लोगों को, जो दूसरे राज्य के नागरिक हैं, दिल्ली में कोरोना इलाज की इजाजत दें, ताकि कोई भी उनके इस फैसले पर राजनीति करने को कोशिश न कर सके। क्या मुख्यमंत्री ऐसा करेंगे?
राजेश कुमार चौहान, जालंधर

दुर्भाग्यपूर्ण फैसला
दिल्ली सरकार ने फैसला किया है कि जब तक कोरोना महामारी है, तब तक दिल्ली सरकार के अस्पताल सिर्फ दिल्ली वालों का इलाज करेंगे। दिल्ली सरकार का यह फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। देश इस समय बड़े संकट में है। हमें अभी एक देश होकर सोचना चाहिए, न कि एक राज्य होकर। दिल्ली सरकार के इस फैसले से क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिलेगा, जो हमारे देश की अखंडता के लिए घातक हो सकता है। क्या डॉक्टर सिर्फ इसलिए रोगी का इलाज न करें, क्योंकि वह किसी और राज्य का है? यह उनके भगवान रूपी पेशे को क्या शोभा देता है? यह आदेश हमारे देश के नागरिकों को मिले मौलिक अधिकारों का भी हनन है। यदि सभी राज्य ऐसे ही करने लगे, तो भारत राज्यों का संघ नहीं, सिर्फ राज्य बनकर रह जाएगा। दिल्ली सरकार को अपने इस राजनीतिक फैसले पर फिर से विचार करना चाहिए, क्योंकि दिल्ली सिर्फ राज्य की ही नहीं, देश की राजधानी है।
प्रमेंद्र कुमार, पटना

साजिश या मजाक
पिछले कुछ दिनों में बेजुबान जानवरों को बारूद खिलाने के दो मामलों सामने आए। इन्होंने सभ्य कहे जाने वाले मानव-समाज को शर्मसार किया है। एक घटना केरल की है, तो दूसरी हिमाचल प्रदेश की। इस तरह के कृत्यों से जहां हर शांतिप्रिय लोगों में रोष है, तो दूसरी तरफ किसी साजिश की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा रहा है। बिल्कुल एक ही तरीके से जानवरों को बारूद खिलाकर उनको चोटिल करने के पीछे कोई साजिश या प्रयोग तो नहीं? पूरा विश्व अभी कोरोना महामारी से जूझ रहा है, लेकिन पशुओं के प्रति ऐसे क्रूर रवैये देखने को मिल रहे हैं। ये मानव समाज के लिए नए खतरे की शुरुआत हो सकते हैं। इसकी जांच गंभीरता से करने की जरूरत है। दोषी कोई भी हो, उसे सख्त सजा मिलनी चाहिए।
अभिषेक मिश्र, किदवई नगर, कानपुर

 

ओपिनियन /शौर्यपथ / केरल का एकमात्र मुस्लिम बहुल जिला मलप्पुरम पिछले दिनों गलत वजहों से सुर्खियों में आ गया। 70.2 फीसदी मुस्लिम और 27.6 प्रतिशत हिंदू आबादी वाला यह जिला अक्सर विवाद में घसीट लिया जाता है। हालांकि, स्थानीय बाशिंदे इसे सिरे से नकारते हैं और कहते हैं कि ‘जो लोग इस जिले या राज्य को अच्छी तरह से नहीं समझते, वही ऐसी बातें करते हैं’।
अभी यह जिला इसलिए चर्चा में आया, क्योंकि यहां एक गर्भवती जंगली हथिनी दुखद हालात में मृत पाई गई। उसने पास के पालक्काड जिले में पटाखों से भरा एक अनानास खा लिया था। ये पटाखे किसानों द्वारा उन जंगली सूअरों को मारने के लिए लगाए गए थे, जो उनकी फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसा माना जाता है कि वह हथिनी विस्फोट से घायल होने के बाद साइलेंट वैली के जंगलों से कई किलोमीटर दूर चली गई। मन्नारकाड वन क्षेत्र के अंतर्गत कोट्टप्पडाम पंचायत के अंबलप्पारा में उसे घायल पाया गया। यह इलाका मलप्पुरम नहीं, पालक्काड जिले का हिस्सा है। फिलहाल, वन्य-जीव संरक्षण कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है। जांच और कार्रवाई शुरू कर दी गई है।
इस घटना ने राज्य में सत्तासीन वाम मोर्चा सरकार के विरोधियों को हमलावर होने का मौका दे दिया। सोशल मीडिया पर बड़ा अभियान छेड़ते हुए राज्य सरकार पर हमला बोला गया और मलप्पुरम को निशाना बनाया गया, जबकि इस घटना से उसका कोई रिश्ता नहीं था। वास्तव में, न तो मलप्पुरम देश का सबसे हिंसक जिला है और न ही इस राज्य में हाथियों को निशाना बनाया जाता है। असलियत में हाथी तो देश भर में, विशेषकर दक्षिणी राज्यों में सबसे अधिक प्यारे और पूजनीय जानवरों में शामिल हैं। अनुमान है कि भारत में 28,000 हाथी हैं, जो किसी भी एशियाई देश से ज्यादा हैं।
केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में तो आमतौर पर ये मंदिरों का हिस्सा होते हैं। प्रशिक्षित मंदिर हाथी केरल में आम तौर पर देखे जाते हैं। सभी प्रमुख त्योहारों में यह राजसी जानवर आकर्षण का केंद्र होता है। इस सूबे में एक सालाना कैंप भी लगता है, जहां कुछ पालतू हाथियों को मानव-पशु संघर्ष कम करने के लिए ‘कुमकी’ के रूप में प्रशिक्षित किया जाता है। प्रशिक्षित किए गए ‘कुमकी’ हाथी की मदद से इंसान जंगली हाथियों को वापस जंगलों में भेजता है।
तमिलनाडु में राज्य सरकार हाथियों के लिए सालाना रिट्रीट रखती है, जहां राज्य भर के पालतू हाथियों को ट्रकों में लाया जाता है और उन्हें स्वस्थ माहौल में रखा जाता है। इस कैंप के लिए रजिस्ट्रेशन करवाने के बाद उनका वजन मापा जाता है और पशु चिकित्सक उनकी सेहत की पड़ताल करते हैं। उन्हें अगले चार सप्ताह तक दवाइयां और पौष्टिक आहार दिए जाते हैं। उन्हें सुबह की सैर कराई जाती है और विशेष रूप से तैयार जंबो सॉवर में नहलाया जाता है। कैंप खत्म होने के बाद हाथी बेमन से अपने घर लौटते हैं।
मगर इंसान और जंगल में रहने वाले हाथियों के बीच संघर्ष भी लगातार जारी रहता है। जंगली हाथियों के लिए खास तौर पर जंगल संरक्षित किए गए हैं, फिर भी वे अमूमन खाने और पानी की तलाश में जंगल से बाहर निकल आते हैं। इसी का नतीजा इंसान-हाथी संघर्ष के रूप में सामने आता है। कोई भी किसान कई तरह के उपाय अपनाकर अपनी फसल को बचाने की कोशिश करता है। उसका उद्देश्य हाथियों को मारना कतई नहीं होता। अनुमान है कि हाथियों की वजह से हर वर्ष 600 इंसान मारे जाते हैं, जबकि 100 से अधिक हाथी भी सालाना अकाल मौत पाते हैं। हाथियों पर राष्ट्रीय टास्क फोर्स के प्रमुख महेश रंगराजन कहते हैं कि किसानों और हाथियों, दोनों के लिए माहौल को सुरक्षित बनाना जरूरी है, क्योंकि दोनों पीड़ित हैं। किसान की जरूरत अपनी फसल बचाना है, तो हाथी को उसके माहौल के मुताबिक निवास-स्थान मिलना चाहिए। वह कहते हैं, विभिन्न प्रशासनिक उपायों से दोनों का साथ-साथ अस्तित्व संभव है।
ऐसा अनुमान है कि भारत में हाथियों के लिए 80 गलियारे हैं। ये वे रास्ते हैं, जिनसे जंगली हाथी अपने प्राकृतिक वास के लिए गुजरते हैं, लेकिन विभिन्न निर्माण गतिविधियों को अंजाम देकर इंसान इन स्थानों या गलियारों पर कब्जा कर रहा है। नतीजतन, हाथियों के प्राकृतिक मार्ग खत्म हो रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें, तो हाथी ‘भोजन’ के लिए इंसानों को नहीं मारते। वे तब आक्रामक हो जाते हैं, जब उन्हें अपनी जान पर खतरा महसूस होता है। माना जाता है, जंगली जानवरों की वजह से हर साल पांच लाख से अधिक किसानों को फसलों का नुकसान उठाना पड़ता है। उनका स्वाभाविक प्रयास अपने खेतों की रक्षा करना होता है। इसके लिए कुछ जगहों पर वे बिजली वाले तार लगाते हैं, जिनमें हल्का करंट होता है, तो कुछ स्थानों पर जानवरों को फंसाने के लिए गड्ढा खोद देते हैं। वन्य-जीव संरक्षणवादी जानवर को फंसाने के इन तरीकों की भी मुखालफत करते हैं। हाथियों को किसी भी तरीके से मारना स्वीकार्य नहीं हो सकता। टास्क फोर्स ने किसानों को नुकसान से बचाने के लिए अतिरिक्त फसल बीमा का सुझाव दिया है।
अनुमान यह भी है कि हर साल कम से कम 40 हाथी अपने दांत के लिए शिकारियों के हत्थे चढ़ते हैं। केंद्र और राज्य, दोनों के वन्य-जीव विभागों ने इन घटनाओं को रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं। मगर अब भी इनके निवास-स्थान को सुरक्षित बनाने के लिए बहुत कुछ करने की दरकार है।
पौराणिक कथाओं में खूब उल्लेख के कारण हाथी हिंदुओं द्वारा पूजनीय है। लेकिन आमतौर पर अपने कद और चाल के लिए यह सभी का दुलारा है। बच्चों को तो खासतौर से हाथी पसंद है और वे उसकी तस्वीर भी खूब बनाते हैं। यह बताता है कि हाथी कितना लोकप्रिय है। इसीलिए जब उसकी दुखद मौत की खबर आई, तो यह किसी झटके से कम नहीं था। मगर इससे भी बड़ी त्रासदी थी, उसकी मौत को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश। मलप्पुरम ऐसा अद्भुत जिला है, जहां कई हिंदुओं की बारात मस्जिदों से निकलती है। मेरी नजर में यहां कम से कम एक हिंदू मंदिर ऐसा जरूर है, जिसका पुजारी मुस्लिम है और वह उस वंश का है, जिनके पूर्वज यहां पूजा-पाठ कराते आए हैं। जाहिर है, इंसानों को ही एक-दूसरे के संग और जानवरों के साथ भी सद्भाव से रहना सीखना होगा। हथिनी की मौत की जांच कर रहे रेंज ऑफिसर भी यही संकेत करते हैं, जब वह कहते हैं कि ‘यह मानव-पशु संघर्ष का नतीजा है, सांप्रदायिक संघर्ष का नहीं’।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) एस श्रीनिवासन, वरिष्ठ पत्रकार

 

दुर्ग / शौर्यपथ / पर्यावरण को संजोने आने वाली पीढ़ी को पर्यावरण से जोडऩा बेहद आवश्यक है। इसके लिए एक नवाचारी प्रयोग वन विभाग द्वारा किया जाएगा। लगभग 120 बच्चों का समूह जंगल में टैंट में एक दिन का हाल्ट करेगा। यहां फारेस्ट विभाग के ट्रेनर बच्चों को जंगल के जानवरों के बारे में, पक्षियों के बारे में बताएंगे। वे यह बताएंगे कि किस प्रकार पारिस्थितिकी का संरक्षण करना मानवता के लिए उपयोगी होगा। जंगल में अलग-अलग तरह के पक्षियों की आवाजें, उनके आवास, उनके समूह में रहने का तरीका, खानपान की विधि आदि बताई जाएगी।
कैंप का समय माइग्रेटरी बर्ड का समय होगा, इसलिए उनके डिटेल्स भी बताए जाएंगे। इसमें फारेस्ट विभाग के प्रमुख अधिकारियों के साथ राजू वर्मा जैसे पक्षी विशेषज्ञ भी बच्चों को पक्षियों के बारे में तथ्य साझा करेंगे। आज कलेक्टर डॉक्टर सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे की अध्यक्षता में इस संबंध में बैठक हुई। यहां डीएफओ श्री केआर बढ़ाई ने विस्तार से प्रोजेक्ट की जानकारी दी और बताया कि ये प्रोजेक्ट किस तरह बच्चों की अभिरुचि जगाने में सहायक हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि स्कूली विद्यार्थियों में वन, वन्य प्राणी एवं पर्यावरण संरक्षण के प्रति संवेदनशीलता विकसित करने हेतु वन मितान कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। जिसके तहत कक्षा 6वीं से 12वीं के छात्र-छात्राओं को प्राकृतिक वातावरण का अनुभव प्रदान कर उन्हें इसके संरक्षण के लिए जागरुक किया जाएगा।
कार्यक्रम का उद्देश्य- वन मितान कार्यक्रम का उद्देश्य विद्यालयों के छात्र-छात्राओं को वन वन्य प्राणी एवं पर्यावरण की वन मितान बनाकर उन्हें इसके संरक्षण हेतु प्रेरित करना है। इच्छुक विद्यार्थियों को नेचुरल वॉलेंटियर फोर्स के रूप में विकसित करना है साथ ही विभाग एवं विभागीय अधिकारियों के कार्य उत्तरदायित्वों एवं चुनौतियों से इन विद्यार्थियों को अवगत कराना है।
विद्यालय एवं विद्यार्थियों का चयन- विद्यालय एवं विद्यार्थियों का चयन एवं निर्धारित प्रक्रिया के तहत किया जाएगा। ऐसे विद्यार्थी जो पर्यावरण के प्रति अभिरूचि रखते हो। विद्यार्थी का चयन वन्य प्राणी पक्षी इत्यादि की समान्य जानकारी के आधार पर होगा। चयनित विद्यार्थी का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाएगा। शिविर हेतु कक्षा 6वीं से 12वीं तक के विद्यार्थियों को चनित किया जा सकता हैं किन्तु प्राथमिकता के आधार पर 8वीं एवं 12वीं के विद्यार्थी को सर्वप्रथामिकता दी जाएगी। प्रत्येक परिक्षेत्र में 120 विद्यार्थी का चयन किया जाकर दो चरणों में 60-60 विद्यार्थी हेतु वन मितान कार्यक्रम किया जाएगा।
शिविर स्थल का चयन- प्रशिक्षण सह जागरूकता शिविर का आयोजन वन्य परिक्षेत्र में स्थित प्राकृतिक सौन्दर्य के स्थल पर किया जाएगा। शिविर का चयन इस प्रकार से किया जाएगा कि विद्यालय से 25 से 30 किलोमीटर के परिक्षेत्र में स्थित हो।
गतिविधियॉ- वनमितान शिविर एक दिन का होगा। जिसमें विभिन्न प्रकार की गतिविधियॉ को शामिल किया गया है। शिविर दिवस पर विद्यार्थियों को पक्षी दर्शन, वन्य प्राणी दर्शन, सफारी, नौकायान, वन भ्रमण कराया जाएगा। प्राकृतिक पथ भ्रमण, प्रकृति की पाठशाला, स्थल पर विद्यमान वाणिकी गतिविधियों की जानकारी देने के साथ ही वन एवं वन्य प्राणी एवं पर्यावरण के महत्व से रूबरू कराया जाएगा। जिज्ञासा समाधान व चर्चा, परिचर्चा, वनाचार, प्रश्नोत्तरी का आयोजन किया जाएगा। शिविर के आयोजन को ध्यान में रखते हुए साफ-सफाई, भोजन, सुरक्षा स्वास्थ्य, सुरक्षा उपलब्ध कराई जाएगी।

दुर्ग / शौर्यपथ / प्रदेश सहित देश में कोरोना आपदा की मार से पूरा जनजीवन अस्त व्यस्त है . आम आदमी की आर्थिक स्थिति डांवाडोल है . छत्तीसगढ़ के कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी यह स्पष्ट सन्देश दिया है कि ऐसी कोई मितव्यतिता से बचा जाए . कोरोना आपदा में राज्य सरकार के अधिकारियों और पदेन जनप्रतिनिधियों को मितव्यतिता से बचने के सन्देश दिए है . किन्तु इस सन्देश का असर दुर्ग निगम में पड़ा हो ये नजऱ नहीं आ रहा है . एक तरफ निगम प्रशासन फण्ड की कमी की बात कर रहा है निगम आयुक्त स्वयं अधिकारियों को निर्देशित कर रहे है कि सार्थक प्रयास कर राजस्व की बकाया राशि वसूली जाए .वही महापौर बाकलीवाल द्वारा शहर के ऐसे दुकाने , गुमठिया जो खाली पड़ी है किराये में देने , विक्रय करने के लिए शहर के व्यापारियों से , चिकित्सको से , अधिवाक्ताओ से चर्चा कर रहे है ताकि निगम की करोडो की संपत्ति ( ऐसी दुकाने जो सालो से बनी है और अभी तक विक्रय नहीं हुई है ) का सही तरीके से उपयोग कर राजस्व की बढ़ोतरी की जाये किन्तु वही दुर्ग का एम्आईसी भवन निरंतर नए नए सुविधाओ से लेस हो रहा है जिसकी वर्तमान में जरुरत भी नहीं .
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार सारा कार्य प्रभारी ईई मोहनपुरी गोस्वामी के निरिक्षण में हो रहा है . एक तरफ जब इस बारे में मोहन पूरी गोस्वामी से जानकारी ली गयी तो उनके अनुसार सिर्फ पेंट पुताई की बात कही गयी किन्तु आम जनता को भी आसानी से दिख रहा है कि एमआईसी भवन में पेंट के साथ डिजाइनर वाल , नए नए परदे , एक दरवाज़ा होने के बाद भी दूसरा कांच का दरवाज़ा , खिड़की की सही हालत होने के बाद भी नयी-नयी खिडकिया , कई केबिनो में नए नए चेयर तक की व्यवस्था की जा रही है . विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार सभी मंत्रियो के कमरे में एसी लगाने की तैयारी की जा रही है . यह सारा कार्य एम्आईसी के प्रभारी के निर्देश पर होने की बात बताई जा रही है . आखिर प्रभारी ईई मामले को छुपाने की कोशिश क्यों कर रहे है क्या अपने किसी ख़ास ठेकेदार से ये कार्य करवाने के लिए सारी जहमत उठाई जा रही है या कोई और बात है ? क्या मामले को संज्ञान लेंगे आयुक्त बर्मन ?
ये सही है कि निगम में 15 साल बाद कांग्रेस सत्ता में आयी है और जनप्रतिनिधि होने के नाते ये उनका हक भी है कि अपनी केबिन की साज सज्जा उच्च स्तर की रखे ये अलग बात है कि 15 साल भाजपा सत्ता में रहने के बाद भी सिर्फ ज़रूरी सुविधाओ के साथ मंत्रालय में कार्य किया है जबकि तब स्थिति सामान्य थी कोई वैश्विक महामारी नहीं थी किन्तु वर्तमान में प्रदेश के मुख्यमंत्री के सन्देश को भी दरकिनार करते हुए कार्य समझ से परे है . खैर सत्ता में कांग्रेस है और प्रदेश के मुखिया भी कांग्रेस से है तो कोई रोक टोक नहीं होगी सारी सुविधाए आ भी जाएँगी शायद इसे ही कहते है 15 साल बाद सत्ता में आने के बाद का सुख शायद यही है राजनितिक पद में विराजमान होने का लाभ , शायद यही कारण है कि पार्षद के चुनाव में लाखो खर्च करते है प्रत्याशी .

रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज यहां अपने निवास कार्यालय में आयोजित बैठक में कोरोना संक्रमण से बचाव, नियंत्रण के उपायों और मरीजों के इलाज की व्यवस्थाओं की समीक्षा की साथ ही आगे की रणनीति पर विचार-विमर्श किया। उन्होंने क्वारेंटीन सेंटर्स की व्यवस्था, अस्पतालों में उपलब्ध बिस्तरों की जानकारी ली। मुख्यमंत्री ने कहा कि इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए कि संक्रमित व्यक्ति से अस्पताल आने वाले अन्य मरीजों में संक्रमण नहीं फैले। चिकित्सक और मेडिकल स्टाफ के लोग संक्रमण से बचाव के लिए गाइड लाईन का पालन करें। मुख्यमंत्री बघेल ने वीडियो क्रांफ्रेंसिंग के माध्यम से एम्स रायपुर के निदेशक और बिलासपुर सिम्स के अधिकारियों से भी वहां की व्यवस्थाओं और आगे की रणनीति पर चर्चा की। बैठक में अधिकारियों ने बताया कि जिलों में 141 कोविड केयर सेंटरों और कोविड के मरीजों के लिए 21 हजार 230 बिस्तर उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जा रही है।
स्वास्थ्य सचिव श्रीमती निहारिका बारिक सिंह ने मुख्यमंत्री को विभिन्न अस्पतालों में उपचार की व्यवस्था के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कोविड-19 नियंत्रण के लिए प्रदेश स्तर पर किए जा रहे उपायों की भी जानकारी दी। मुख्यमंत्री बघेल ने बैठक में शामिल अधिकारियों से क्वारेंटाइन सेंटर्स की संख्या, वहां की व्यवस्था और रह रहे लोगों के बारे में जानकारी ली। मुख्यमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंस में प्रदेश में पहुंच चुके प्रवासी मजदूरों के लिए संचालित क्वारेंटाइन सेंटर्स एवं वहां की व्यवस्था के बारे में चर्चा की और अगले कुछ दिनों में पहुंचने वाले मजदूरों को क्वारेंटाइन सेंटर्स में रखने की व्यवस्था के संबंध में आवश्यक निर्देश दिए।
मुख्यमंत्री ने कोविड-19 के इलाज के लिए विभिन्न अस्पतालों में उपलब्ध बिस्तरों एवं वहां भर्ती मरीजों के बारे में जानकारी ली। इस पर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि राज्य में क्षेत्रीय स्तर पर डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल में 1770 बेड हैं, वहीं जिले स्तर पर डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल में 3470 बिस्तर की व्यवस्था है। इन सभी अस्पतालों में आईसीयू की व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त बिना लक्षण वाले और कम लक्षण वाले मरीजों हेतु 141 कोविड केयर सेंटर जिलों में स्थापित किये जा रहे हैं, जहाँ 7234 बिस्तर उपलब्ध होंगे व 6500 बिस्तर के अतिरिक्त कोविड केयर यूनिट की स्थापना प्रक्रियाधीन है।
अधिकारियों ने बताया क्वारेंटीन सेंटर में पूर्व से उपलब्ध 4026 बिस्तरों को भी आवश्यकता पडऩे पर कोविड केयर सेंटर में परिवर्तित किया जायेगा। इस प्रकार प्रदेश में कोविड-19 मरीजों हेतु 21 हजार 230 बिस्तर उपलब्ध होंगे। उन्होंने कोरोना वायरस संक्रमितों के स्वास्थ्य की गंभीरता, लाक्षणिक और गैर-लाक्षणिक मरीजों की जांच व स्वास्थ्य की स्थिति एवं उपचार की व्यवस्था के बारे में जानकारी ली। मुख्यमंत्री बघेल ने आने वाले दिनों में कोविड-19 पर नियंत्रण के प्रभावी उपायों और इसका सामुदायिक प्रसार रोकने के संबंध में एम्स के निदेशक डॉ. नितिन एम. नागरकर से सुझाव मांगे। उन्होंने ज्यादा से ज्यादा लोगों की जांच करने और इलाज के बारे में आगामी कार्ययोजना एवं रणनीति पर भी चर्चा की। मुख्यमंत्री ने सिम्स बिलासपुर के डीन और अधीक्षक से वहां कोरोना वायरस संक्रमित डॉक्टर एवं मेडिकल स्टॉफ के बारे में जानकारी ली।
डीन डॉ. पात्रा ने मुख्यमंत्री को डॉक्टरों के संक्रमण के कारणों की जानकारी दी। उन्होंने इससे बचने के लिए वहां की जा रही सावधानियों के बारे में भी बताया। मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू ने सभी मेडिकल कॉलेजों को जरूरी सावधानी बरतने तथा इलाज के लिए आने वाले गंभीर मरीजों का गंभीरतापूर्वक उपचार करने के निर्देश दिए। उन्होंने इलाज और देखभाल के दौरान व्यक्तिगत सुरक्षा उपायों को अपनाने और सभी को इनका अनिवार्यत: पालन करने के निर्देश दिए।
इस अवसर पर चिकित्सा शिक्षा विभाग की अपर मुख्य सचिव श्रीमती रेणु जी. पिल्ले, मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू, स्वास्थ्य विभाग की सचिव श्रीमती निहारिका बारिक सिंह, खाद्य एवं परिवहन विभाग के सचिव डॉ. कमलप्रीत सिंह, संचालक स्वास्थ्य सेवाएं नीरज बंसोड़, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की संचालक डॉ. प्रियंका शुक्ला, संचालक चिकित्सा शिक्षा डॉ. एस.एल. आदिले और सिम्स बिलासपुर के डीन डॉ. पात्रा शामिल हुए । एम्स रायपुर के निदेशक डॉ. नितिन एम. नागरकर तथा सिम्स बिलासपुर के अधीक्षक डॉ. पुनीत भारद्वाज अपने-अपने कार्यालय से वीडियो कॉन्फ्रेस में जुड़े।

दुर्ग / शौर्यपथ / विद्युत कंपनी ने परिवादी संस्थान के प्लॉट से 33 के.व्ही. विद्युत पोल हटाने के लिए बड़ी राशि जमा कराई और पूरी राशि मिलने बाद भी ना तो पोल हटाया और ना ही परिवादी संस्था को उसकी राशि वापस की। इस आचरण को व्यवसायिक कदाचरण और सेवा में निम्नता ठहराते हुए जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष लवकेश प्रताप सिंह बघेल, सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने छत्तीसगढ़ राज्य पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड एवं छत्तीसगढ़ राज्य पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड के पद्मनाभपुर दुर्ग कार्यालय के कार्यपालन यंत्री एवं सहायक अभियंता पर 6 लाख 5 हजार रुपये हर्जाना लगाया।
परिवादी संस्था की शिकायत
परिवादी संस्था जुग महादेव एजुकेशनल सोसायटी के सचिव सुशील चंद्राकर ने उपभोक्ता फोरम के समक्ष ये परिवाद दायर किया कि पुलगांव चौक पर उनके संस्थान द्वारा निर्माण कराए जा रहे कालेज के प्लॉट से 33 के.वी. पोल लगा हुआ है, जिसके ऊपर से हाईवोल्टेज ट्रांसमिशन लाइन गुजरती है। पत्र व्यवहार करने पर छत्तीसगढ़ स्टेट पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड ने कहा कि 554076 रुपये भुगतान करने पर उक्त पोल को परिवादी के प्लॉट से हटा दिया जाएगा, जिस पर सहमत होते हुए परिवादी ने दिनांक 31 मार्च 2008 को 554076 रुपये भुगतान कर दिया परंतु संपूर्ण राशि प्राप्त होने के बाद भी अनावेदकों द्वारा ना तो 33 के.वी. पोल को हटाया गया और ना ही राशि वापस की गई। इस बाबत लगातार पत्राचार किया गया परंतु अनावेदकगण ने कोई जवाब नहीं दिया।
अनावेदकगण का जवाब
अनावेदकगण ने लिखित जवाब प्रस्तुत करते हुए कहा कि परिवादी के प्लाट में लगे विद्युत पोलों को हटाने हेतु दिनांक 28 अप्रैल 2008 को वर्क आर्डर जारी किया गया था और विद्युत पोल हटा दिया गया है। परिवादी ने समयसीमा के बाद प्रकरण पेश किया है इसीलिए प्रकरण खारिज किया जाए।
फोरम का फैसला
प्रकरण में पेश दस्तावेजों एवं प्रमाणों तथा दोनों पक्षों के तर्को के आधार पर जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष लवकेश प्रताप सिंह बघेल, सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने यह निष्कर्षित किया कि अनावेदकगण ने पोल हटाने संबंधी कोई दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है, पोल शिफ्टिंग का जो कार्य हुआ है वह पूर्व में किए गए शिफ्टिंग के संबंध में है ना कि वर्तमान शिफ्टिंग के संबंध में है। दिनांक 28 अप्रैल 2008 को वर्क आर्डर जारी करने के पश्चात शिफ्टिंग का कोई कार्य किया गया था यह प्रमाणित नहीं होता है। अनावेदकगण ने 554076 रुपये जमा करवाने के बावजूद परिवादी के परिसर से 33 के.वी. विद्युत पोल नहीं हटाया, जो व्यवसायिक कदाचार एवं सेवा में कमी की श्रेणी में आता है।
जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष लवकेश प्रताप सिंह बघेल, सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने छत्तीसगढ़ राज्य पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड एवं छत्तीसगढ़ राज्य पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड के पद्मनाभपुर दुर्ग कार्यालय के कार्यपालन यंत्री एवं सहायक अभियंता पर 6 लाख 5 हजार 76 रुपये हर्जाना अधिरोपित किया, जिसके तहत अनावेदकगण को परिवादी की जमा राशि 554076 रुपये, मानसिक परेशानी की क्षतिपूर्ति स्वरूप 50000 रुपये तथा वाद व्यय 1000 रुपये का भुगतान करना होगा, साथ ही जमा राशि पर 31 मार्च 2008 से 6 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज भी देना होगा।

भिलाईनगर / शौर्यपथ / भिलाई निगम क्षेत्र में पीलिया एवं जलजनित बीमारियों से बचाव हेतु निगम कर्मी घर-घर जाकर क्लोरीन टैबलेट वितरण कर रहे, स्वास्थ्य विभाग का अमला निगम क्षेत्र के वार्डों के गली-मोहल्लों के नाली सफाई कार्य में जुटे हुए हैं, ताकि पीलिया जैसी जल जल जनित बीमारी न हो ! निगम प्रशासन 674030 नग क्लोरीन टैबलेट घर घर में वितरण कर चुकी है। निगम की टीम एवं मितानीनें घरों में जाकर सर्दी, खांसी व बुखार से पीडि़त मरीजों को तत्काल चिकित्सकीय परामर्श लेने की सलाह दे रही है। भिलाई निगम के सभी जोन के स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों द्वारा पीलिया जैसी जलजनित बीमारियों से बचाव के लिए वार्डों में घर घर जाकर पानी की शुद्धता के लिए क्लोरीन टैबलेट बांटने के साथ ही बताया जा रहा है कि उबला हुआ एवं साफ छना हुआ पानी ही पीने हेतु उपयोग करे ताकि किसी प्रकार से जलजनित बीमार न हो।
जोन स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया कि नलकूल, बोरिंग एवं अन्य जल स्रोत से नमूना लेकर लैब में परीक्षण कराया जा रहा है और प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर अग्रिम कार्यवाही की जा रही है! नगर निगम का अमला पीलिया जैसे जलजनित बीमारियों से बचाव के लिए घरों में क्लोरीन टैबलेट का वितरण कर रही है, जोन 01 के 19323 घरों में 186030 नग टैबलेट, जोन 02 के 18500 घरों में 186000 नग क्लोरीन टैबलेट, जोन 03 के 19000 घरों में 110000 नग क्लोरीन टैबलेट तथा जोन 04 के 19137 घरों में 192000 नग क्लोरीन टैबलेट वितरण किया जा चुका है!
अब तक सभी जोन कार्यालयों के स्वास्थ्य विभाग द्वारा 674030 नग क्लोरीन टैबलेट वितरण किया जा चुका है। जलजनित बीमारयों से बचाव के लिए निगम के स्वास्थ्य विभाग के साथ मितानीनें व आंगनबाड़ी सहायिकाएं भी सहयोग कर रहीं हैं! विभिन्न जल स्रोतों से नमूना लेकर परीक्षण किया जा रहा है!

हमारा शौर्य

हमारे बारे मे

whatsapp-image-2020-06-03-at-11.08.16-pm.jpeg
 
CHIEF EDITOR -  SHARAD PANSARI
CONTECT NO.  -  8962936808
EMAIL ID         -  shouryapath12@gmail.com
Address           -  SHOURYA NIWAS, SARSWATI GYAN MANDIR SCHOOL, SUBHASH NAGAR, KASARIDIH - DURG ( CHHATTISGARH )
LEGAL ADVISOR - DEEPAK KHOBRAGADE (ADVOCATE)