December 07, 2025
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मुख्यमंत्री ( सफलता की कहानी )

मुख्यमंत्री ( सफलता की कहानी ) (256)

स्वास्थ्य साथी का हौसला लाया रंग

   नारायणपुर / शौर्यपथ / जुड़वा बच्चे पैदा हुए थे। मैं खुश थी और परेशान भी, क्योंकि बच्चों के हिसाब से मुझे अपनी दिनचर्या को सेट करना पड़ा। सुबह 9 बजे पहले नंबर के बच्चे को दूध पिलाने का सही समय था और उसके बाद दूसरे नंबर के बच्चे को। इसी प्रकार एक बजे पहले नंबर के बच्चे को दूध पिलाने का समय था और उसके बाद दूसरे नंबर के बच्चे का। उसकी मदद के लिए सास थी, जिसको अपनी नींद पूरी करने के लिए दस घंटे की जरूरत होती थी। इसलिए वह बरामदे में सोती थी।

हां, जब बच्चे सो रहे होते, तो वे कम परेशान करते थे। बीच-बीच में दूध पिलाने के लिए उन्हें तकलीफ देकर जगाना पड़ता था। कुदरत के इन तोहफों को पाकर मैं वाकई बहुत खुश थी। पर गरीबी और अनपढ़ता की मार कहें या समुचित पोषण आहार की कमी, जिससे बच्चे का वजन नही बढ़ रहा था। वह हैरान-परेशान थी। यह बात सोनाय पति सन्नूराम की है, जिसने माह फरवरी के बीच में घर पर जुड़वा बच्चों आरोही-आदित्त को जन्म दिया। माँ-बाप ने यही मार्डन नाम दिया।

  यह हकीकत भरी कहानी छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिला नारायणपुर के ओरछा ब्लॉक के धुर नक्सल हिंसाग्रस्त गाँव मूसेर की है। जहाँ जाने के लिए बड़ा हौसला और जिगर चाहिए होता है। मुसेर गाँव की आबादी बमुश्किल 70 होगी। यहाँ सबसे नजदीक पंचायत कच्चापाल है। यहाँ तक बारिश से पहले तक अनुभवी वाहन चालक के जरिए जैसे-तैसे छोटी गाड़ी से पहुँचा जा सकता है। असली कहानी यही से शुरू होती है। कच्चापाल से मुसेर लगभग 35-40 कि.मी.दूर है। ग्राम कच्चापाल के स्वास्थ्य साथी कमलेश नाग और सुकदेव को खबर लगी कि मुसेर गांव में जुड़वा अतिकुपोषित बच्चे है। माँ परेशान है और बच्चों को लेकर व्याकुल भी। पोषण पुनर्वास केंद्र का सहारा नहीं मिला तो जीवित नही रहेंगे। दोनों स्वास्थ्य साथी ने बच्चों की जान बचाने की चिंता सताने लगी।

    मगर मुसेर जाना जोखिम, दर्द भरा और डरावना था। सूरज की तेज तपन का एहसास और परिवार की काउंसलिंग करना जैसे ‘टेढ़ी खीर’ समान नजर आ रहा था। आना-जाना लगभग 70 किलोमीटर वह भी जंगल-पहाड़ी रास्ता, पर बच्चों की जान बचना, उनके निष्ठा और कर्तव्य में शामिल था। उन्होंने पोषण पुनर्वास केंद्र की महिला स्वास्थ्यकर्ता श्रीमती निरमणि ठाकुर को राजी किया। स्वास्थ्य साथियों का हौसला रंग लाया और उन्होंने तीन दिनों का सफर पूरा कर बच्चों और माँ को कुंदला पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया। जहाँ अभी बच्ची की हालत स्थिर है।

नारायणपुर जिले खासकर ओरछा ब्लाक (अबूझमाड़) का स्वास्थ्य विभाग का मैदानी अमला कोरोना के अलावा कुपोषण और मलेरिया जैसी जानलेवा बीमारी से लोगों को बचाने का काम कर रहा है। जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दुर्गम चारों ओर से घने जंगल-पहाड़ों घिरे गाँव मुसेर में 70 दिन के गंभीर कुपोषित जुड़वा बच्चों को तीन दिन 70 घण्टे पैदल चलकर माँ-बच्चों को कुंदला लाकर पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में रखा गया। जहां बच्चों की बेहतर देखभाल हो रही है। जुड़वा बच्चों में एक लड़का और एक लड़की है। लड़की का वजन काफी कम है। वह काफी गम्भीर कुपोषण की शिकार है। केंद्र नहीं लाते, तो उसका बचना मुश्किल था। अब माँ और बच्चों की हालत ठीक हो जाएगी ।

राज्य सरकार बच्चों को कुपोषण से मुक्त करने पोषण आहार से लेकर उपचार तक की सेवाएं मुहैय्या करा रही है। जिले में संचालित एनआरसी (पोषण पुनर्वास केन्द्र) कुपोषित बच्चों के चिकित्सकीय देखभाल के साथ समुचित पोषण आहार प्रदान कर सुपोषित कर तंदुरुस्त कर रहा है। पिछले एक वर्ष में जिले के 400 कुपोषित बच्चे पोषण पुर्नवास केंद्र में भर्ती के बाद सुपोषित हुए हैं। कलेक्टर श्री पी.एस.एल्मा ने जिले के मैदानी स्वास्थ्य अमलों की प्रति सप्ताह बैठक लेकर उन्हें मार्गदर्शन और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं और गांव की बुनियादी जरूरतों के बारे में भी जानकारी लेते रहे हैें। कलेक्टर श्री एल्मा लॉकडाउन से पहले कलस्टरवॉर प्रति सप्ताह स्वास्थ्य एवं महिला एवं बाल विकास विभाग के आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मितानिन और मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की बैठक लेते थे, जिसमें वे उनके कार्य के दौरान आने वाली दिक्कतों की भी जानकारी लेते थे। इसके साथ ही कलेक्टर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मितानिन और मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित भी करते थे।

  रायपुर / शौर्यपथ /  कोरोना महामारी के चलते देशव्यापी लॉक-डाउन के कारण जहाँ एक तरफ आर्थिक गतिविधियाँ ठप्प हैं, वहीं बीजापुर के गाँवों में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) से बनी हितग्राहीमूलक परिसम्पत्तियाँ कुएँ, डबरी, निजी तालाब, पशु शेड और कम्पोस्ट पिट ग्रामीणों की आजीविका उपार्जन का महत्वपूर्ण जरिया बने हुए हैं। लॉक-डाउन के इस कठिन दौर में भी उनकी कमाई अप्रभावित है और वे निर्बाध रूप से जीविकोपार्जन कर रहे हैं।

  बीजापुर जिले में मनरेगा के अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2019-20 में कुल 1067 हितग्राहीमूलक कार्य स्वीकृत किये गये थे। इनमें से 588 कार्य पूर्ण किये जा चुके हैं और 479 प्रगतिरत हैं। पूर्ण हुए हितग्राहीमूलक कार्यों में सबसे अधिक कार्य डबरी (खेत तालाब) निर्माण के हैं, जिनकी संख्या 551 हैं। इनके अलावा कुएँ के नौ, फलदार पौधरोपण के तीन, अजोला टैंक, गाय शेड और बकरी शेड के दो-दो तथा मुर्गी शेड के 19 कार्य पूर्ण हुए हैं। इन कार्यों के पूर्ण होने से निर्मित परिसम्पत्तियों से हितग्राहियों को मिल रही राहत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लॉक-डाउन में जहाँ एक ओर सभी कार्य ठप्प हैं, वहीं दूसरी ओर मनरेगा हितग्राही इनसे नियमित आय प्राप्त कर रहे हैं। वे निर्बाध रूप से अपनी आजीविका संचालित कर रहे हैं। मनरेगा के अंतर्गत बनी हितग्राहीमूलक परिसम्पत्तियाँ आर्थिक तालाबंदी की चाबी बन गई हैं।

   बीजापुर जिले के भोपालपट्टनम विकासखण्ड के मिनकापल्ली पंचायत के श्री गडडेम बोरैया के खेत में मनरेगा से निर्मित कुएं से अब साल भर सिंचाई हो रही है। वे अभी अपने खेतों में सब्जियां उगा रहे हैं। खेत में लगे भिंडी, बैगन, लौकी, टमाटर और मिर्ची वे आसपास के गांवों में बेचते हैं और रोज 300-400 रूपए कमा रहे हैं। बीजापुर विकासखंड के ग्राम बोरजे के श्री नारायण रमेश भी मनेरगा के तहत निर्मित कुएं की बदौलत गर्मियों में सब्जियों की खेती कर रहे हैं। सब्जी बेचकर लाक-डाउन के मौजूदा दौर में भी वे हर दिन 200 रूपए कमा रहे हैं।
       मनरेगा के अंतर्गत पिछले साल हुए आजीविका संवर्धन के कार्यों के साथ ही वर्तमान में संचालित मनरेगा कार्य भी लोगों को राहत पहुंचा रहे हैं। उसूर विकासखण्ड के हीरापुर ग्राम पंचायत के आश्रित गाँव पुसकोंटा के श्री मडकम गनपत अभी गांव में खोदे जा रहे नवीन तालाब में काम करने जाते हैं। वहां उन्हें अभी तक 11 दिनों का रोजगार मिल चुका है। वे कहते हैं कि यह काम हमें बहुत जरूरत के वक्त मिला है। लॉक-डाउन के कारण अभी दूसरी जगह काम पर जाना मुश्किल है। मनरेगा के तहत भैरमगढ़ विकासखंड के ग्राम हितुलवाडा की श्रीमती कुसुमलता वट्टी की निजी भूमि पर डबरी की खुदाई चल रही है। वे बताती हैं कि इस कार्य में उन्हें 30 दिनों का रोजगार मिल चुका है। उन्हें अभी हाल ही में पुराने काम की मजदूरी के रूप में 5280 रुपये भी मिले हैं। डबरी का काम पूरा हो जाने के बाद वह इसमें मछली पालन करना चाहती है।

 दंतेवाड़ा / शौर्यपथ 

       जिले के चितालंका और फरसपाल गाँव के किसान रेशम कीट केंद्र में रेशम कीट पालन का काम कर रहे हैं जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा तो हो जाता है। पर कीट से उत्पाद प्राप्त हो तब तक  उनके पास दूसरा काम नहीं होता था । तब रेशम  विभाग ने उन्हें रेशम कीट पालन के साथ खाद्य पौधों के बीच रिक्त पड़े क्षेत्र में अंतर फसल में साग सब्जी आदि लगाने को कहा । रेशम केंद्र चितालंका के एक एकड़ एवं फरस पाल के 2 एकड़ में हितग्राहियों ने 2019- 20 में बरबट्टी, भाटा, मूली, सेमी ,गवारफली भिंडी, भाजी आदि की सब्जियां लगाई ,जिससे उन्हें अभी तक कुल  20 हजार 800 रूपये की राशि प्राप्त हो चुकी है और अभी भी निरन्तर सब्जियों का उत्पादन जारी है ,हितग्राहियों में से चम्पी यादव का कहना है कि लॉकडाउन के समय में हम अतिरिक्त आय प्राप्त कर रहे हैं जो सराहनीय है, अभी उन्हें अच्छी आमदनी की उम्मीद है, सहायक संचालक रेशम श्री श्याम कुमार का कहना है अभी इसे प्रयोगिक तौर पर शुरू किया गया था भविष्य में इसे व्यापक स्तर पर किया जाएगा ताकि किसान रेशम कीट के अतिरिक्त आय प्राप्त कर सके ।

  रायपुर / शौर्यपथ / कोरोना वायरस के संक्रमण काल के कठिन दौर में महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा कोरोना वायरस से बचाव हेतु बड़ी संख्या में तेन्दूपत्ता संग्रहकों और वनोपज संग्रहकों के लिए मास्क तैयार कर रही है। मास्क बनाकर ये ग्रामीण महिलाएं अपने परिवार के लिए अतिरिक्त आय प्राप्त कर रही है, वही लॉकडाउन समय में समाज को कोरोना संक्रमण से बचाने और रोकथाम में सहयोग कर रही है। इस कार्य से उत्तर बस्तर कांकेर जिले की लगभग 500 महिलाएं कोरोना वारियर्स के रूप में कार्य करते हुए रोजगार से जुड़ी हुई है और कपड़े का मास्क तैयार कर बाजार दर से भी कम मूल्य पर उपलब्ध करा रही है।

     राष्ट्रीय ग्रामीण अजीविका मिशन एवं महिला एवं बाल विकास विभाग की महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा मास्क तैयार कर जिला प्रशासन एवं वन विभाग को उपलब्ध करवाएं जा रहे हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग की ग्रामीण महिला स्व-सहायता समूह की महिलाएं 75 हजार और राष्ट्रीय अजीविका मिशन की महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा 50 हजार मास्क तैयार किया जा रहा है। अभी तक उक्त समूहों में 55 हजार मास्क तैयार कर वन विभाग को प्रदाय कर दिया गया है। जिला प्रशासन मास्क बनाने के लिए सस्ते दर पर कपड़े समूहों को उपलब्ध कराये जा रहे है। इसके अलावा समूहों द्वारा उत्पादित मास्क की बिक्री में भी सहयोग दिया जा रहा है। 

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