August 04, 2025
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सेहत /शौर्यपथ /जीरे का इस्‍तेमाल खाने में तड़के लगाने में बहुत अच्‍छे से किया जाता है। वहीं गुड का इस्‍तेमाल सेहत के लिहाज से काफी बढ़ गया है। अब लोग शक्‍कर को गुड़ के साथ रिप्‍लेस कर रहे हैं। वहीं गुड़ और जीरा दोनों पोषक तत्‍वों से भरपूर है। कई लोग सुबह सिर्फ गुड़ या जीरे के पानी का सेवन करते हैं। लेकिन दोनों का साथ में सेवन करने से कई तरह की बीमारियों से छुटकारा मिलता है। तो आइए जानते हैं जीरा और गुड़ का पानी पीने के फायदे और कैसे बनाएं -
जीरा और गुड़ का पानी कैसे बनाएं -
डेढ़ गिलास पानी लें, उसमें एक चम्‍मच जीरा और थोड़ा सा गुड़ डालें। पानी को इतना उबालें कि वह आधा गिलास रह जाएं। और गुनगुना होने पर उसे पिएं।
जीरा और गुड़ का पानी पीने के फायदे -
1.बलगम को करें साफ - फूड केमिस्‍ट्री 2009 में हुए एक अध्‍ययन के मुताबिक, गुड़ में एंटीऑक्‍सीडेंट और खनिज मौजूद होता है। जिससे फेफड़ों में जमा बलगम को साफ करने में मदद मिलती है। साथ ही पाचन प्रक्रिया भी ठीक करता है। जड़ से जमने वाली बीमारियों को भगाने के लिए रोज एक गिलास गुड़ और जीरे के पानी का इस्‍तेमाल करना चाहिए।
2.पाचन को करें ठीक - खाना खाने के बाद अक्‍सर लोग दही या गुड़ खाते हैं जिससे पाचन तंत्र मजबूत होता है। जो लोग कब्‍ज, पाचन समस्‍या से गुजर रहे हैं उन्‍हें जरूर गुड़ और जीरे के पानी का सेवन करना चाहिए।
3.इम्‍यूनिटी करें बूस्‍ट - कई लोग बहुत जल्‍दी थक जाते हैं, कमजोरी लगती है साथ ही बहुत जल्दी बुखार या संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं। ऐसे में गुड़ और जीरे के पानी का सेवन करना चाहिए।

आस्था / शौर्यपथ / हिन्दू धर्म में उपवास का बहुत महत्व है। आपको तय करना चाहिए कि आपको किस तरह के उपवास रखना चाहिए। एकादशी, प्रदोष, चतुर्थी, सावन सोमवार या नवरात्रि आदि। यदि आप चाहते हैं कि में नवरात्रियों के ही उपवास रखूं तो यह वर्ष में 36 होते हैं। यह बहुत ही महत्वपूर्ण दिन होते हैं।
1. वर्ष में होती हैं चार नवरात्रियां : 1.चैत्र, 2.आषाढ़, 3.अश्विन और 4.पौष। चैत्र माह में चैत्र नवरात्रि जिसे बड़ी नवरात्रि या वसंत नवरात्रि भी कहते हैं। आषाढ़ और पौष माह की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं। अश्‍विन माह की नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहते हैं।
2. शरीर के 9 छिद्रों को रखें शुद्ध : हमारे शरीर में 9 छिद्र हैं। दो आंख, दो कान, नाक के दो छिद्र, दो गुप्तांग और एक मुंह। नवरात्रि में शुद्ध जल और मन के द्वारा उक्त अंगों को पवित्र और शुद्ध करेंगे तो मन निर्मल होगा और छठी इंद्री को जाग्रत करेगा। नींद में यह सभी इंद्रियां या छिद्र लुप्त होकर बस मन ही जाग्रत रहता है।
3. नौ दिन रखें संयम : इन दिनों में मद्यमान, मांस-भक्षण और स्‍त्रिसंग शयन नहीं करना चाहिए। उपवास में रहकर इन नौ दिनों में की गई हर तरह की साधनाएं और मनकामनाएं पूर्ण होती है। लेकिन जो व्यक्ति इन नौ दिनों में पवित्र नहीं रहता है उसका बुरा वक्त कभी खत्म नहीं होता है।
4. पवित्र हैं ये रात्रियां : नवरात्र शब्द से 'नव अहोरात्र' अर्थात विशेष रात्रियों का बोध होता है। इन रात्रियों में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। दिन की अपेक्षा यदि रात्रि में आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है। इसीलिए इन रात्रियों में सिद्धि और साधना की जाती है। इन रात्रियों में किए गए शुभ संकल्प सिद्ध होते हैं।
5. अलग अलग देवियां : देवियों में त्रिदेवी, नवदुर्गा, दशमहाविद्या और चौसठ योगिनियों का समूह है। आदि शक्ति अम्बिका सर्वोच्च है और उसी के कई रूप हैं। सती, पार्वती, उमा और काली माता भगवान शंकर की पत्नियां हैं। अम्बिका ने ही दुर्गमासुर का वध किया था इसीलिए उन्हें दुर्गा माता कहा जाता है।
6. नौ देवियां : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री का पूजन विधि विधान से किया जाता है। कहते हैं कि कात्यायनी ने ही महिषासुर का वध किया था इसलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहते हैं। दुर्गा सप्तशती के अनुसार इनके अन्य रूप भी हैं:- ब्राह्मणी, महेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नरसिंही, ऐन्द्री, शिवदूती, भीमादेवी, भ्रामरी, शाकम्भरी, आदिशक्ति और रक्तदन्तिका।
7. देवियों की पहचान : यदि आप किसी देवी की साधना या पूजा कर रहे हैं तो आपको यह जानना जरूरी है कि आप किस देवी की साधना या पूजा कर रहे हैं। इसके लिए देवियों को पहचानना सीखें। जैसे अष्टभुजाधारी देवी दुर्गा और कात्यायनी सिंह पर सवार हैं तो माता पार्वती, चन्द्रघंटा और कुष्मांडा शेर पर विराजमान हैं। शैलपुत्री और महागौरी वृषभ पर, कालरात्रि गधे पर और सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान हैं। इसी तरह सभी देवियों की अलग-अलग सवारी हैं।
8. आदि शक्ति सर्वोच्च है : आदि शक्ति अम्बिका सर्वोच्च है और उसी के कई रूप हैं। सती, पार्वती, उमा और काली माता भगवान शंकर की पत्नियां हैं। अम्बिका ने ही दुर्गमासुर का वध किया था इसीलिए उन्हें दुर्गा माता कहा जाता है। नवदुर्गा में दशमहाविद्याओं की भी पूजा होती है। इनके नाम है-1. काली, 2. तारा, 3. छिन्नमस्ता, 4. षोडशी, 5. भुवनेश्वरी, 6. त्रिपुरभैरवी, 7. धूमावती, 8. बगलामुखी, 9. मातंगी और 10 कमला।
9. देवी के भोग : उपरोक्त सभी की पूजा-साधना पद्धतियां अलग-अलग होती है और सभी को अलग-अलग भोग लगता है। जैसे नौ भोग और औषधि- शैलपुत्री कुट्टू और हरड़, ब्रह्मचारिणी दूध-दही और ब्राह्मी, चन्द्रघंटा चौलाई और चन्दुसूर, कूष्मांडा पेठा, स्कंदमाता श्यामक चावल और अलसी, कात्यायनी हरी तरकारी और मोइया, कालरात्रि कालीमिर्च, तुलसी और नागदौन, महागौरी साबूदाना तुलसी, सिद्धिदात्री आंवला और शतावरी।
10. शक्तिपीठ : माता दुर्गा, सती या पार्वती के खास स्थानों में से एक है शक्तिपीठ। देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में छब्बीस, शिवचरित्र में इक्यावन, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। साधारत: 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। तंत्रचूड़ामणि में लगभग 52 शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है। शक्तिपीठों के अलावा भी कई प्रसिद्ध और चमत्कारिक मंदिर हैं।

आस्था / शौर्यपथ / हिन्दू धर्म में उपवास का बहुत महत्व है। आपको तय करना चाहिए कि आपको किस तरह के उपवास रखना चाहिए। एकादशी, प्रदोष, चतुर्थी, सावन सोमवार या नवरात्रि आदि। यदि आप चाहते हैं कि में नवरात्रियों के ही उपवास रखूं तो यह वर्ष में 36 होते हैं। यह बहुत ही महत्वपूर्ण दिन होते हैं।
1. वर्ष में होती हैं चार नवरात्रियां : 1.चैत्र, 2.आषाढ़, 3.अश्विन और 4.पौष। चैत्र माह में चैत्र नवरात्रि जिसे बड़ी नवरात्रि या वसंत नवरात्रि भी कहते हैं। आषाढ़ और पौष माह की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं। अश्‍विन माह की नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहते हैं।
2. शरीर के 9 छिद्रों को रखें शुद्ध : हमारे शरीर में 9 छिद्र हैं। दो आंख, दो कान, नाक के दो छिद्र, दो गुप्तांग और एक मुंह। नवरात्रि में शुद्ध जल और मन के द्वारा उक्त अंगों को पवित्र और शुद्ध करेंगे तो मन निर्मल होगा और छठी इंद्री को जाग्रत करेगा। नींद में यह सभी इंद्रियां या छिद्र लुप्त होकर बस मन ही जाग्रत रहता है।
3. नौ दिन रखें संयम : इन दिनों में मद्यमान, मांस-भक्षण और स्‍त्रिसंग शयन नहीं करना चाहिए। उपवास में रहकर इन नौ दिनों में की गई हर तरह की साधनाएं और मनकामनाएं पूर्ण होती है। लेकिन जो व्यक्ति इन नौ दिनों में पवित्र नहीं रहता है उसका बुरा वक्त कभी खत्म नहीं होता है।
4. पवित्र हैं ये रात्रियां : नवरात्र शब्द से 'नव अहोरात्र' अर्थात विशेष रात्रियों का बोध होता है। इन रात्रियों में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। दिन की अपेक्षा यदि रात्रि में आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है। इसीलिए इन रात्रियों में सिद्धि और साधना की जाती है। इन रात्रियों में किए गए शुभ संकल्प सिद्ध होते हैं।
5. अलग अलग देवियां : देवियों में त्रिदेवी, नवदुर्गा, दशमहाविद्या और चौसठ योगिनियों का समूह है। आदि शक्ति अम्बिका सर्वोच्च है और उसी के कई रूप हैं। सती, पार्वती, उमा और काली माता भगवान शंकर की पत्नियां हैं। अम्बिका ने ही दुर्गमासुर का वध किया था इसीलिए उन्हें दुर्गा माता कहा जाता है।
6. नौ देवियां : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री का पूजन विधि विधान से किया जाता है। कहते हैं कि कात्यायनी ने ही महिषासुर का वध किया था इसलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहते हैं। दुर्गा सप्तशती के अनुसार इनके अन्य रूप भी हैं:- ब्राह्मणी, महेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नरसिंही, ऐन्द्री, शिवदूती, भीमादेवी, भ्रामरी, शाकम्भरी, आदिशक्ति और रक्तदन्तिका।
7. देवियों की पहचान : यदि आप किसी देवी की साधना या पूजा कर रहे हैं तो आपको यह जानना जरूरी है कि आप किस देवी की साधना या पूजा कर रहे हैं। इसके लिए देवियों को पहचानना सीखें। जैसे अष्टभुजाधारी देवी दुर्गा और कात्यायनी सिंह पर सवार हैं तो माता पार्वती, चन्द्रघंटा और कुष्मांडा शेर पर विराजमान हैं। शैलपुत्री और महागौरी वृषभ पर, कालरात्रि गधे पर और सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान हैं। इसी तरह सभी देवियों की अलग-अलग सवारी हैं।
8. आदि शक्ति सर्वोच्च है : आदि शक्ति अम्बिका सर्वोच्च है और उसी के कई रूप हैं। सती, पार्वती, उमा और काली माता भगवान शंकर की पत्नियां हैं। अम्बिका ने ही दुर्गमासुर का वध किया था इसीलिए उन्हें दुर्गा माता कहा जाता है। नवदुर्गा में दशमहाविद्याओं की भी पूजा होती है। इनके नाम है-1. काली, 2. तारा, 3. छिन्नमस्ता, 4. षोडशी, 5. भुवनेश्वरी, 6. त्रिपुरभैरवी, 7. धूमावती, 8. बगलामुखी, 9. मातंगी और 10 कमला।
9. देवी के भोग : उपरोक्त सभी की पूजा-साधना पद्धतियां अलग-अलग होती है और सभी को अलग-अलग भोग लगता है। जैसे नौ भोग और औषधि- शैलपुत्री कुट्टू और हरड़, ब्रह्मचारिणी दूध-दही और ब्राह्मी, चन्द्रघंटा चौलाई और चन्दुसूर, कूष्मांडा पेठा, स्कंदमाता श्यामक चावल और अलसी, कात्यायनी हरी तरकारी और मोइया, कालरात्रि कालीमिर्च, तुलसी और नागदौन, महागौरी साबूदाना तुलसी, सिद्धिदात्री आंवला और शतावरी।
10. शक्तिपीठ : माता दुर्गा, सती या पार्वती के खास स्थानों में से एक है शक्तिपीठ। देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में छब्बीस, शिवचरित्र में इक्यावन, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। साधारत: 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। तंत्रचूड़ामणि में लगभग 52 शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है। शक्तिपीठों के अलावा भी कई प्रसिद्ध और चमत्कारिक मंदिर हैं।

धर्म संसार / शौर्यपथ / शुक्रवार का दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार इस दिन माता लक्ष्मी, माता कालिका और संतोषी माता की पूजा की जाती है। खासकर इसे मां संतोषी का दिन माना जाता है। माता संतोषी भगवान गणेशजी की पुत्री हैं। आओ जानते हैं कि शुक्रवार का व्रत रखने से क्या लाभ मिलते हैं।
1. शरीर में गाल, ठुड्डी, अंगूठा, गुर्दा, यौनांग, अंतड़ियां, शीघ्रपतन, प्रमेह रोग और नसों से शुक्र का संबंध माना जाता है। यदि इस स्थानों में कोई समस्या है तो शुक्रवार का व्रत रखने से लाभ मिलते हैं।
2. यदि शनि मंदा अर्थात नीच का हो तब भी शुक्र का बुरा असर होता है। तब भी शुक्रवार का व्रत रखने से शनि दोष दूर हो जाते हैं।
3. यदि वैवाहिक जीवन कठिनाइयों भरा है तो भी शुक्रवार का व्रत रखने से लाभ मिलता है।
4. कुंडली में शुक्र के साथ राहु का होना अर्थात स्त्री तथा दौलत का असर खत्म। ऐसी स्थिति में भी शुक्रवार का व्रत जरूर रखना चाहिए।
5. मंगल और शुक्र की युति हो तब भी शुक्र और मंगल के उपाय के साथ ही शुक्रवार का व्रत रखना चाहिए।
6. शुक्र यदि कन्या राशि में, 6वें घर में या 8वें घर या भाव में है तो भी शुक्रवार का व्रत करना चाहिए।
7. कुंडली में शुक्र के साथ शुक्र के शत्रु ग्रह सूर्य व चंद्र है तो भी आपको शुक्रवार का व्रत करना चाहिए। शुक्र ग्रह की दो राशियां हैं वृषभ और तुला। यदि आपकी राशि ये हैं तो आपको शुक्रवार करना चाहिए।
8. शुक्रवार को खट्टा खाने से जहां सेहत को नुकसान होता है वहीं माना जाता है कि आकस्मिक घटना-दुर्घटना हो सकती है। इस दिन पिशाची या निशाचरों के कर्म से दूर रहें।
9. इस दिन साफ सफाई और शरीरिक शुद्धि का ध्‍यान रखने से ओज, तेजस्विता, शौर्य, सौन्दर्यवर्धक और शुक्रवर्धक होता है।
10. इस दिन आप पानी में उचित मात्रा में दही और फिटकरी मिलाकर स्नान करें और शरीर पर सुगंधित इत्र लगाएंगे तो शुक्र बलवान होगा और ऐश्‍वर्य की प्राप्ति होगी।
11. शुक्रवार के दिन जहां लक्ष्मी माता की पूजा करने से दरिद्रता और गरीबी से मुक्ति मिलती है और माता कालिका की पूजा करने से सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिलती है। लक्ष्मी की उपासना करें, खीर पीएं और 5 कन्याओं को पिलाएं।
12. रोज रात को सोते समय अपने दांत फिटकरी से साफ करेंगे तो लाभ होगा। इसके अलावा आप कभी कभार फिटकरी के पानी से स्नान भी करें। इससे शुक्र के दोष दूर होकर धनलाभ होता है।
13. माता संतोषी का ध्यान कर यह व्रत 16 शुक्रवार रखा जाता है तो माता प्रसन्न होती है। 16 शुक्रवार को व्रत के समापन के समय उद्यापन करके कन्याओं को भोजन कराना चाहिए। इस दिन खट्टा नहीं खाना चाहिए और साफ सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

 टिप्स / शौर्यपथ /बदलते वक्त के साथ खान-पान में बदलाव अहम हिस्सा हो गया है। अगर आपको लंबे वक्त तक जवां रहना है तो उसकी चिंता भी अभी से ही करना पड़ेगी। जी हां, भले ही आपकी उम्र 20 बरस की ही क्यों नहीं हो लेकिन 40 में भी 20 जैसा दिखने के लिए अभी से मेहनत करना पड़ेगी। आपका खानपान और इसके बाद आपकी लाइफ स्‍टाइल सबसे अधिक महत्वपूर्ण चीज है। आइए जानते हैं 10 ऐसे फूड आइटम्‍स के बारे में जो आपको समय से पहले मोटा और बूढ़ा कर देगी – > 1.प्रोसेस्‍ड फूड आइटम्‍स – जी हां, अगर आप छोटी उम्र से ही जवां रहना चाहते हैं तो प्रोसेस्‍ड फूड आइटम्‍स खाना छोड़ दें। इस प्रकार के खानपान में सभी न्यूट्रिशन नष्ट हो जाते हैं। क्योंकि लंबे वक्‍त तक उन्हें संरक्षित किया जाता है। इसके लिए उसमें अलग – अलग प्रकार के रंग, फ्लेवर का इस्तेमाल किया जाता है। >
2. जंक फूड – इसे फास्‍ट फूड भी कहा जाता है। यह बच्चों का सबसे पसंदीदा फूड आइटम्‍स में से एक है। लेकिन जंक फूड पिज्जा, बर्गर, नूडल्स, मोमोज यह मैदे से बने होते हैं, और पचाने में काफी वक्त लगता है। धीरे-धीरे वह आपके पेट में जमा होने लगता है। जिससे आपका वजन लगातार बढ़ने लगता है।
3. फ्राइड आइटम्‍स – तेल में भुने हुए आइटम्‍स खाने में बड़े अच्छे लगते हैं। लेकिन तेजी से वजन बढ़ने का कारण भी यहीं होते हैं। जी हां, फ्रेंच फ्राइस, समोसे, कचोरी,ब्रेड बड़ा, बैक समोसा आदि। इन सभी आइटम्‍स में अधिक मात्रा में तेल होता है। लगातार इन चीजों को सेवन करने से कम उम्र में ही बीमारियां घेरने लग जाती है। और युवाओं में कोलेस्ट्रॉल की समस्‍या उत्‍पन्‍न हो जाती है।
4. सफेद ब्रेड – लोग नाश्ते में सफेद ब्रेड का सेवन सबसे अधिक करते हैं। सफेद ब्रेड में मौजूद ग्‍लाइसेमिक इंडेक्‍स रहता है। इसके लगातार सेवन से आप उम्र से पहले ही बूढ़ा नजर आने लगेंगे।
5. चीनी का सेवन – एक तय मात्रा में चीनी का सेवन करना हेल्‍थ के लिए अच्छा होता है। अत्यधिक सेवन आपको समय से पहले बूढ़ा कर देगी। जी हां, अधिक सेवन से ग्लाइसेशन नामक एक प्रक्रिया शुरू हो जाती है, जिससे आपकी त्वचा के कोलेजन को नुकसान पहुंचता है और चेहरे पर असमय झुर्रियां धीरे – धीरे बढ़ने लग जाती है। इसकी जगह आप रिफाइंड शुगर और गुड़ का भी सेवन कर सकते हैं।
6. चाय और कॉफी – कुछ लोग काम के दौरान हर थोड़ी-थोड़ी देर में चाय या कॉफी का सेवन करने लगते हैं। लेकिन क्‍या आप जानते हैं इसका सेवन करने से आपके चेहरे की सुरत भी बदल सकती है। चाय और कॉफी में कैफीन की मात्रा अधिक होती है। इससे आपके चेहरे पर लाइन, आंखों के पास झुर्रियां होना, काले घेरे होना जैसी समस्‍या उत्‍पन्‍न होने लगती है।
7. शराब – शराब का सेवन शरीर के लिए हानिकारक होता ही है। इसमें मौजूद अल्कोहल शरीर में विषाक्त पदार्थों का निर्माण करते हैं, जिससे चेहरे पर झुर्रियां पड़ने लगती है। शराब के सेवन से बॉडी में कोलेजन की कमी, पानी की कमी और विटामिन ए की गुणवत्ता कम हो जाती है। इस वजह से चेहरे पर फुंसी होने लगती है और आपकी त्वचा ढीली होने लगती है।
8.अधिक आंच पर पका खान – अगर आप भी हाई हिट पर पका खाना खाते हैं तो सावधान हो जाएं। इससे आपकी उम्र तेजी से बढ़ने लगती है। साथ ही हाई हिट पर पके खाने के सभी पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं।
9. अधिक से अधिक पानी का सेवन – कई बार लोग एक दिन में सिर्फ 3 या 4 गिलास पानी ही पीते है। लेकिन अधिक पानी पीने से शरीर की गंदगी बाहर निकल जाती है। जिससे त्वचा पर ग्लो भी बना रहता है चमक भी।
10. नमक का सेवन – नमक में सोडियम की तादाद ज्यादा होती है। इसका अत्यधिक सेवन करने से शरीर की कोशिकाएं सिकुड़ने लगती है। जिससे आप डिहाइड्रेशन का शिकार हो जाते हैं।

शौर्यपथ / कोरोना का प्रकोप कम हो रहा है तो दूसरी ओर डेंगू का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। अन्‍य सालों के मुकाबले इस बार बच्‍चों में डेंगू के केस सबसे अधिक सामने आए है। यूपी, दिल्‍ली और मप्र में तेजी से डेंगू का प्रकोप फैला है। विशेषज्ञों के मुताबिक डेंगू बच्‍चों के लिए इसलिए खतरनाक है क्‍योंकि बच्‍चों का इम्‍यूनिटी वयस्‍कों के मुकाबले
कमजोर होता है। सालभर में वह करीब 6 बार श्‍वास संबंधित बीमारी से ग्रसित होते हैं। ऐसे में बच्‍चे डेंगू की चपेट में जल्‍दी आते हैं। वहीं देखा जाए तो लॉकडाउन खुलने के बाद से बच्‍चे बाहर का अधिक खाने लगे हैं। बारिश में बाहर का खाना कभी नहीं खाना चाहिए। दरअसल, डेंगू साफ और गंदे पानी दोनों जगह पनपते हैं, इसलिए बारिश के मौसम में कहीं भी पानी जमा नहीं होने देना चाहिए। यह बीमार एडीज नामक मच्‍छर के काटने से होती है।
डेंगू से बचाव के उपचार
- घर में पानी या नमी जमा नहीं होना चाहिए।
- नीम के तेल का छिड़काव करें।
- बच्‍चों को फुल स्‍लीव ड्रेस पहनाएं।
- बच्‍चों को मच्‍छरदानी के अंदर सुलाए।
- लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्‍टर से संपर्क करें।
- मच्‍छर नहीं काटे इसके लिए बाजार में उपलब्‍ध क्रीम लगा सकते हैं।
डेंगू के लक्षण
- 102 डिग्री से अधिक बुखार आना।
- शरीर में पानी की कमी होना।
- हाथ, पैर दर्द करना।
- पेट में दर्द होना।

सेहत / शौर्यपथ /क्या आप नहीं चाहती कि आपकी कमर भी पतली और छरहरी हो? अगर हां तो हम बता रहे हैं ऐसी 5 चीजों के बारे में जिन्हें रोजाना की डाइट में शामिल करके आपको 26 इंच की कमर पाने में मदद मिलेगी हालांकि इसके साथ ही उचीत व्यायाम भी करना होगा। तो चलिए जानते हैं वे कौन सी 5 चीजें है जो 26 इंच की कमर पाने में मदद कर सकती हैं -
1 तरबूज -
तरबूज में एंटीऑक्सीडेंट और पोटैशियम अच्छी मात्रा में होता है। इसे रोजाना खाने से शरीर में पानी की कमी नहीं होती और यह पेट में सूजन नहीं होने देता। जिससे की आपको पतली कमर पाने में सहयता मिलती है।
2 होलमील ब्रेड -
होलमील ब्रेड कई सारे अनाज के मिश्रण से तैयार कि जाती है। इसलिए इसमें सफेद ब्रेड की तुलना में चार गुणा ज्यादा फाइबर, तीन गुना ज्यादा जिंक और दोगुना ज्यादा आयरन होता है। इसे खाने पर इसमें पाया जाने वाला कार्बोहाइड्रेट धीरे-धीरे टूटता है, इसलिए शरीर में अचानक शुगल का स्तर नहीं बढ़ता और बहुत देर तक पेट भरा-भरा लगता है जिसकी वजह से आप ऑवरइटिंग करने से बचे रहते है और पतली कमर पाने में सहयता मिलती है।
3 मिसो -
मोटापे की बड़ी वजहों में एक है पाचन तंत्र का ठीक से काम न करना। इसके लिए आप एसी चीजें खा सकते हैं जिससे पाचन तंत्र ठीक रहे, उन्हीं में से एक है मिसो, जिसे सोयबीन को फर्मनेट कर के बनाया जाता है। इसमें गुड बैक्टीरिया होते है और ये पेट की सेहत ठीक रखने में मदद करता है।
4 फलियां और दालें -
फलियां व दालों में प्रोटीन होता है जो डायजेस्ट‍िव सिस्टम के लिए भी बेहद जरूरी होता है। रोजाना इन्हें खाकर भी पतली कमर पाई जा सकती है।
5 हाथी चक -
हाथी चक हालांकि बाजार में आसानी से नहीं मिलता। लेकिन ये कमर का साइज घटाने में ये बेहद कारगर होता है। इसमें कोरोजेनिक एसिड पाया जाता है, जो पेट में एसिडिटी नहीं बनने देता। जिसकी वजह से पेट का पाचन ठीक रहता है और आपकी कमर पतली और छरहरी बनी रहती है।

आस्था / शौर्यपथ / श्राद्ध का भोजन अतिरिक्त शुद्धि चाहता है। आइए जानें श्राद्ध के भोजन में बरती जाने वाली सावधानियां...
-खीर पूरी अनिवार्य है।
-जौ, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ है।
-ज़्य़ादा पकवान पितरों की पसंद के होने चाहिए।
-गंगाजल, दूध, शहद, कुश और तिल सबसे ज्यादा ज़रूरी है।
-तिल ज़्यादा होने से उसका फल अक्षय होता है।
-तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं।
श्राद्ध के भोजन में क्या न पकाएं
-चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा
-कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी,
प्याज और लहसन
-बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, खराब अन्न, फल और मेवे
ब्राह्मणों का आसन कैसा हो
-रेशमी, ऊनी, लकड़ी, कुश जैसे आसन पर भी बैठाएं।
-लोहे के आसन पर ब्राह्मणों को कभी न बैठाएं।
पितृपक्ष में भूलकर भी न करें ये 20 काम
1. गृह कलह : श्राद्ध में गृह कलह और स्त्रियों का अपमान नहीं करना चाहिए।
2. तामसिक भोजन : पितृ पक्ष में शराब पीना, चरखा, मांसाहार, पान, बैंगन, प्याज, लहसुन, बासी भोजन, सफेद तील, मूली, लौकी, काला नमक, सत्तू, जीरा, मसूर की दाल, सरसो का साग, चना आदि वर्जित माना गया है। श्राद्ध में कोई यदि इनका उपयोग करना है तो पितर नाराज हो जाते हैं।
3. मांगलिक कार्य : श्राद्ध के दौरान मांगलिक कार्य करना, झूठ बोलना और ब्याज का धंधा करने से भी पितृ नाराज हो जाते हैं।
4. नास्तिकता और साधुओं का अपमान : जो व्यक्ति नास्तिक है और धर्म एवं साधुओं का अपमान करना है, मजाक उड़ाता है उनके पितृ नाराज हो जाते हैं।
5. श्राद्ध का समय : प्रात: काल और रात्रि में श्राद्ध करने से पितृ नाराज हो जाते हैं। कभी भी रात में श्राद्ध न करें, क्योंकि रात्रि राक्षसी का समय है। दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं किया जाता। श्राद्ध के लिए सबसे श्रेष्ठ समय दोहपहर का कुतुप काल और रोहिणी काल होता है। कुतप काल में किए गए दान का अक्षय फल मिलता है।
6. श्राद्ध योग्य : पिता का श्राद्ध पुत्र करता है। पुत्र के न होने पर, पत्नी को श्राद्ध करना चाहिए। पत्नी न होने पर, सगा भाई श्राद्ध कर सकता है। एक से ज्यादा पुत्र होने पर, बड़े पुत्र को श्राद्ध करना चाहिए। उक्त नियम से श्राद्ध नहीं करने पर पितृ नाराज हो जाते हैं। कई घरों में बड़ा पुत्र है फिर भी छोटा पुत्र श्राद्ध करता है। छोटा पुत्र यदि अलग रह रहा है तब भी सभी को एक जगह एकत्रित होकर श्राद्ध करना चाहिए।
7. अतिथि का अपमान नहीं करें : घर की चौखट पर आए गाय, कुत्ते, कौवे, भिखारी या अन्य किसी को भूखा ना लौटाएं। अतिथियों का आदर के साथ सत्कार करें। भूलकर भी किसी का अपमान ना करें।
8. बाल आदि नहीं काटते हैं : पितृ पक्ष में श्राद्ध करने वाले को बाल, नाखून और दाढ़ी नहीं कटवाना चाहिए।
9. इन चीजों का प्रयोन ना करें : श्राद्ध पक्ष के दौरान साबुन, शैम्पू या किसी भी प्रकार का तेल का उपयोग न करें।
10. नए वस्त्र ना खरीदे और ना पहनें : पितृ पक्ष के दौरान नए वस्त्र नहीं खरीदना चाहिए और ना ही पहनना चाहिए, इससे पितृ दोष लगता है।
11. सफेद और लाल तिल : श्राद्ध एवं तर्पण कर्म के दौरान काले तिल का प्रयोग किया जाता है। इस दौरान भूलकर भी लाल एवं सफेद तिल का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
12. लोहे का बर्तन : श्राद्ध पक्ष में लोहे के बर्तन का उपयोग नहीं करते हैं। स्टील भी लोहा भी माना जाएगा। इस दौरान पीतल के बर्तन में भोजन करें और तांबे के बर्तन में पानी पिएं।
13. दूसरे के घर का खाना : श्राद्ध पक्ष में दूसरों के घर का बना खाना नहीं खाना चाहिए। भोजन का अधिकार काग, गाय, श्वान, पीपल, देव और ब्राह्मण को है।
14. कोई नया कार्य न करें : श्राद्ध पक्ष में कोई नया कार्य ना करें। जैसे कुछ खरीदना, दुकान खोलना आदि। क्योंकि यह पितरों को याद करने और शोक मनाने का समय होता है।

15. शुद्ध हो भोजन : पितरों को अर्पित करने के पहले भोजन को न तो चखना चाहिए और न ही खाना चाहिए।
16. इत्र का प्रयोग : इस दौरान इत्र का प्रयोग या किसी भी तरह के सौंदर्य साधन का उपयोग नहीं करना चाहिए।
17. ब्रह्मचर्य : श्राद्ध पक्ष में ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है। भूलकर भी स्त्री संग प्रसंग न करें।
18. पुत्र या पिता को कष्‍ट न दें : श्राद्ध पक्ष के दौरान पिता और संतान को कष्ट देने से पितृ नाराज होकर चले जाते हैं।
19. यात्रा वर्जित : वैसे भी चातुर्मास में यात्रा वर्जित रहती है। श्राद्ध पक्ष में यदि जरूरी नहीं हो तो यात्रा नहीं करना चाहिए।
20. त्रीणि श्राद्धे पवित्राणि दौहित्र: कुतपस्तिला:।
वर्ज्याणि प्राह राजेन्द्र क्रोधोsध्वगमनं त्वरा:।
अर्थात दौहित्री पुत्रा का पुत्र, कुतप मध्य का समय और तिल ये तीन श्राद्ध में अत्यंत पवित्र हैं। जबकि क्रोध, अध्वगमन श्राद्ध करके एक स्थान से अन्यत्र दूसरे स्थान में जाना श्राद्ध करने में शीघ्रता ये तीन वर्जित हैं।
दंतधावनताम्बूले तैलाभ्यडमभोजनम।
रत्यौषधं परान्नं च श्राद्धकृत्सप्त वर्जयेत्।
अर्थात दातून करना, पान खाना, तेल लगाया, भोजन करना, स्त्री प्रसंग, औषध सेवन औ दूसरे का अन्न ये सात श्राद्धकर्ता के लिए वर्जित हैं।

 

आस्था / शौर्यपथ /हमारे पौराणिक शास्त्रों में श्राद्ध पक्ष में आने वाली इंदिरा एकादशी का बहुत अधिक महत्व माना गया है। वर्ष 2021 में यह एकादशी 2 अक्टूबर, शनिवार को मनाई जा रही हैं।
मान्यतानुसार पितरों की आत्मा की शांति एवं उनके उद्धार के लिए यह एकादशी बहुत फलदायी है। और इसी उद्देश्य पूर्ति के लिए आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को इंदिरा एकादशी यह व्रत रखा जाता है। इस दिन शालिग्राम की मूर्ति का पूजन करें, ब्राह्मणों को भोजन कराएं और पितरों का तर्पण करें।
इस दिन के संबंध में ऐसा माना जाता है कि कोई भी मनुष्य यदि इंदिरा एकादशी तिथि के इस एकादशी का व्रत रखता है और पितृ तर्पण तथा ब्राह्मण भोग करवा‍ता हैं तो उसके पितरों को अवश्य स्वर्गलोक प्राप्त होता है। इसके अलावा इंदिरा एकादशी व्रत करने के अनेक पुण्य लाभ भी हैं।
आइए जानें एकादशी व्रत करने की विधि एवं पूजन के शुभ मुहूर्त-
आसान पूजन विधि-
आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल उठकर श्रद्धापूर्वक स्नान करें और फिर अपने पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें।
प्रात:काल होने पर एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत के नियमों को भक्तिपूर्वक ग्रहण करते हुए यह प्रतिज्ञा करें कि मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करूंगा।
एकादशी पूजन के लिए शालिग्राम की मूर्ति को स्थापित करें।
फिर शालिग्राम की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएं ‘हे अच्युत! हे पुंडरीकाक्ष! मैं आपकी शरण में हूं, आप मेरी रक्षा कीजिए, पूजा के दौरान यह प्रार्थना करें।
पूजा के दौरान मिष्ठान्न का भोग लगाएं।
पूजा समाप्त होने पर शालिग्राम की मूर्ति की आरती करें। पूजा के बाद नियमों का खास ध्यान रखते हुए ब्राह्मण भोज तैयार करें और उन्हें भोजन कराएं, तथा दक्षिणा भी दें।
इंदिरा एकादशी की व्रत कथा का पढ़ें वर्ना यह व्रत अधूरा रह जाता है।
इंदिरा एकादशी पूजन के शुभ मुहूर्त-
इस बार 01 अक्टूबर 2021, शुक्रवार को 11.03 पीएम. से एकादशी तिथि प्रारंभ होकर शनिवार, 02 अक्टूबर 2021 को 11.10 पीएम. पर एकादशी तिथि समाप्त होगी।
इंदिरा एकादशी पारण का समय- रविवार, 03 अक्टूबर 2021 को 06:15 एएम. से 08:37 एएम. तक रहेगा।

कंदाड़ी शाला के संचालन में सीएसी, शाला समिति, सरपंच और पालकों का मिल रहा सहयोग

राजनांदगांव। शौर्य पथ । जिले के सुदूर वनांचल क्षेत्र मोहला से 15 किलोमीटर दूर स्थित प्राथमिक शाला कंदाड़ी में शिक्षकों एवं बच्चों ने शाला को मॉडल शाला बनाने का निश्चय किया है। शाला प्रबंधन एवं पालकों का इस कार्य एवं लक्ष्य को भरपूर समर्थन मिल रहा है। प्राथमिक शाला कंदाड़ी के प्रभारी शिक्षक राकेश रावटे नवाचार करते हुए शाला में शिक्षक एवं बच्चों की मदद से शाला को सजाने एवं आकर्षक बनाने का कार्य कर रहे हैं। इनके द्वारा शाला में किचन गार्डन का निर्माण एवं शाला को आकर्षक बनाने रंगरोगन का कार्य किया जा रहा है। इस प्रकार शिक्षक द्वारा शाला गार्डन को शिक्षा उपयोगी एवं कक्षा को प्रिंटरिच वातावरण बनाने के लिए प्रयास किया जा रहा है। इसके अलावा शाला के प्रत्येक कक्ष को प्रिंटरिच बनाने के लिए दीवार पर विषयवार अधिगम सामग्री का निर्माण कर सजाया गया है। शिक्षक एवं सरपंच के सहयोग से शाला का मरम्मत कार्य भी किया गया है। यूथ एवं इको क्लब में प्राप्त राशि का उपयोग करते हुए किचन गार्डन का निर्माण किया गया, जो आकर्षक एवं उपयोगी है। इस शाला में बच्चों का गणवेश भी अलग पहचान रखता है। शिक्षक राकेश रावटे की पहल से शाला के शत प्रतिशत बच्चे शासकीय गणवेश के अतिरिक्त सप्ताह में 2 दिन सफेद गणवेश में आते हैं। जिसके लिए पलकों ने अपने बच्चे को स्वयं के खर्च से सफेद गणवेश उपलब्ध कराया है। प्राथमिक शाला कंदाड़ी के शिक्षक, विद्यार्थी, स्वीपर और रसोईया भी शाला के कार्य के प्रति समर्पित है। शाला में शिक्षकों द्वारा स्मार्ट टीव्ही के माध्यम से अध्यापन कराया जा रहा है। शाला में पढ़े हुए पूर्व विद्यार्थी रामेश्वर घोरारे अतिथि शिक्षक के रूप में सेवा दे रहे है। इस कार्य के साथ-साथ शासन की योजनाओं की जानकारी और क्रियान्वयन के लिए संकुल शैक्षिक समन्वयक केवल साहू का टीएलएम निर्माण, स्मार्ट क्लास संचालन और तकनीकी सहायता में भरपूर योगदान मिल रहा है। साथ ही केवल साहू समन्वयक कंदाड़ी इस कार्य की सतत मॉनिटरिंग करते हुए बेहतर मार्गदर्शन भी प्रदान कर रहे है। एपीसी सतीश ब्यौहरे, विकास खंड शिक्षा अधिकारी मोहला राजेंद्र कुमार देवांगन, बीआरसीसी मोहला खोमलाल वर्मा, संकुल प्राचार्य कंदाड़ी रोहित कुमार अंबादे, संकुल समन्वयक कंदाड़ी केवल साहू, सरपंच झम्मनलाल एवं एसएमसी कंदाड़ी ने इस कार्य की प्रशंसा करते हुए शाला परिवार को बधाई दी।

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