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धर्म संसार / शौर्यपथ /शारदीय नवरात्रि का पर्व प्रारंभ हो रहा है। इस दिन मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा अर्चना की जाती है। आओ जानते हैं 9 देवी, उनके मंत्र और पौराणिक तथ्य।
नौ देवी : 1.शैलपुत्री 2.ब्रह्मचारिणी 3.चंद्रघंटा 4.कुष्मांडा 5.स्कंदमाता 6.कात्यायनी 7.कालरात्रि 8.महागौरी 9.सिद्धिदात्री।
9 मंत्र :
1. शैलपुत्री : ह्रीं शिवायै नम:।
2. ब्रह्मचारिणी :
ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।
3. चन्द्रघण्टा :
ऐं श्रीं शक्तयै नम:।
4. कूष्मांडा : ऐं ह्री देव्यै नम:।
5. स्कंदमाता : ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।
6. कात्यायनी : क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।
7. कालरात्रि
: क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।
8. महागौरी : श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
9. सिद्धिदात्री :
ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।
9 पौराणिक तथ्य :
1. पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है।
2. ब्रह्मचारिणी अर्थात जब उन्होंने तपश्चर्या द्वारा शिव को पाया था।
3. चन्द्रघंटा अर्थात जिनके मस्तक पर चन्द्र के आकार का तिलक है।
4. उदर से अंड तक वे अपने भीतर ब्रह्मांड को समेटे हुए हैं इसीलिए कूष्मांडा कहलाती हैं।
5. उनके पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है इसीलिए वे स्कंद की माता कहलाती हैं।
6. यज्ञ की अग्नि में भस्म होने के बाद महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लिया था इसीलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। कहते हैं कि कात्यायनी ने ही महिषासुर का वध किया था इसलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहते हैं। इनका एक नाम तुलजा भवानी भी है।
7. मां पार्वती देवी काल अर्थात हर तरह के संकट का नाश करने वाली हैं इसीलिए कालरात्रि कहलाती हैं।
8. माता का वर्ण पूर्णत: गौर अर्थात गौरा (श्वेत) है इसीलिए वे महागौरी कहलाती हैं।
9. जो भक्त पूर्णत: उन्हीं के प्रति समर्पित रहता है उसे वे हर प्रकार की सिद्धि दे देती हैं इसीलिए उन्हें सिद्धिदात्री कहा जाता है।
टिप्स ट्रिक्स / शौर्यपथ / लखनऊ, कृषि विज्ञान केंद्र की डॉक्टर प्रिया वशिष्ठ ने पोस्ट कोविड-19 रोगियों के आहार प्रबंधन को लेकर खास बातचीत में बताया कि हमारा देश कोविड-19 महामारी से जूझ रहा है। हालांकि इस बीच इस संक्रमण से अधिक संख्या में लोग ठीक भी हो रहे हैं। कोविड से उबरने के बाद लोगों में थकान एक आम समस्या देखी जा रही है।
ऐसे में कुछ खाद्य पदार्थों को अपने आहार में शामिल कर अपनी ऊर्जा को पुनः प्राप्त कर सकते हैं।पोस्ट कोविड रोगियों को अपने भोजन में हाई प्रोटीन वाले फूड को अवश्य शामिल करना चाहिए जैसे बीन, टोफू, पनीर, अंडे, दही, दाल मूंगफली, नट सीट्स स्प्राउटेड ऐसे पदार्थ आपको तुरंत एनर्जी देंगे। इनमें से अधिकांश मैग्नीशियम में समृद्ध है।जो ऊर्जा के स्तर को बहाल करने में मदद करते हैं।
प्रोटीन युक्त आहार आपकी मांसपेशियों को कम होने से बचाएगा और साथ ही रेस्पिरेट्री मसल्स को मजबूत भी करेगा। डॉक्टर वशिष्ठ ने बताया कि इसके अतिरिक्त इसमें मौजूद जरूरी अमीनो एसिड आपको हानिकारक रोगाणुओं से बचाते हैं।इसके साथ-साथ माइक्रोन्यूट्रिएंट्स भी आपके लिए बहुत जरूरी है यह फल और रंग बिरंगी सब्जियों में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। जैसे सेब, खजूर पपीता, केला, कीवी, लौकी, पत्तेदार साग आदि।इसके साथ ही पांच ऐसे आहार हैं जिससे इम्यूनिटी बढ़ती है तथा साथ ही साथ कोविड-19 की थकान से उबरने में बहुत मदद मिलती है।
भीगे बादाम और किशमिश -
डॉक्टर प्रिया वशिष्ठ ने बताया कि कोविड-19 की थकान से बचने के लिए भीगे बादाम और किशमिश खाकर अपने दिन की शुरुआत करें। बादाम में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन होता है और किशमिश शरीर को अच्छा आयरन प्रदान करती है। इसलिए नियमित भीगे बादाम और किशमिश का सेवन फायदेमंद है।
रागी दोसा और दलिया-
उन्होंने कहा कि थकान को दूर करने के लिए रागी दोसा या एक कटोरी दलिया खाना सबसे बेहतर विकल्प है। यह सुबह के लिए एक अच्छा आहार है। इससे शरीर को एनर्जी मिलती है और थकान महसूस नहीं होती है।
गुड़
और घी -
लंच के दौरान या बाद में गुड़ और घी का सेवन करना फायदेमंद है। पोषक तत्वों से भरपूर इस कॉन्बिनेशन को आप रोटी के साथ भी खा सकते हैं। यह तेजी से रिकवर होने में मदद करते हैं। गुड और घी दोनों ही शरीर को गर्म और मजबूत रखने में मदद करते हैं।
रात में खाएं खिचड़ी-
उन्होंने बताया कि कोरोना से उबरने के
बाद रात का खाना अधिक भारी नहीं लेना चाहिए। डिनर में खिचड़ी खाना एक बेहतर विकल्प है। खिचड़ी में सभी तरह के जरूरी पोषक तत्व होते हैं और यह पेट के लिए हल्की होती है। कई सारे फायदों के अलावा खिचड़ी खाने से अच्छी नींद आती है। इसमें हम स्वाद अनुसार हरी सब्जियां भी मिलाकर बना सकते हैं।
पर्याप्त पानी पिएं -
डॉक्टर वशिष्ठ ने जोर देकर कहा कि शरीर को अच्छी तरह हाइड्रेट करना बहुत जरूरी है। पर्याप्त पानी पीने के अलावा घर पर बने लाइम जूस और बटर मिल्क का नियमित सेवन करें। इससे आप तरोताजा महसूस करेंगे और शरीर में जमा विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाएगा।
टिप्स ट्रिक्स / शौर्यपथ /सुबह उठते ही कुछ ऐसे काम है जिन्हें यदि आपने कर लिया तो आपका दिन अच्छा व्यतित होना सुनिश्चित हो जाता है। आइए,जानते हैं ऐसे ही 5 कामों के बारे में जिन्हें करके आपको अपने दिन की शुरूवात करनी चाहिए -
आइए जानें,ऐसे ही 5 तरीके जिनके साथ करें दिन की शुरुआत...
1. सुबह उठते ही सबसे पहले आधा लीटर ठंडा पानी पिएं। खाली पेट ठंडा पानी पीने से मेटाबॉलिज्म यानी कि पाचन दुरूस्त रहने में मदद मिलती है।
2. खाली पेट छह से दस बादाम और अखरोट खाएं, इससे कुछ इंजाइम्स बनते हैं जो मेटाबॉलिज्म बढ़ाने में सहायक होते हैं।
3. हमेशा थोड़ा भारी ब्रेकफास्ट करें, इससे आपको दोपहर के खाने तक ऊर्जा की कमी महसूस नहीं होगी। आपका ब्रेकफास्ट ऐसा हो जो कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन से भरपूर हो।
4. बादाम और अखरोट ऊर्जा के भंडार हैं। यदि आप रोजाना बादाम आरे अखरोट नहीं खा पाते हैं तो दिन भर थोड़ी-थोड़ी मूंगफली भी खा सकते हैं।
5. सुबह उठ कर चाहे 10 मीनिट ही सही लेकिन मेडिटेशन जरूर करें। इससे आपके विचार संतुलित हो जाएंगे और दिमाग शांत रहेगा।
आस्था / शौर्यपथ / 7 अक्टूबर 2021 गुरुवार से शारदीय नवरात्रि का पर्व प्रारंभ हो रहा है। इस पर में कलश और घटस्थापना के साथ ही एक घट में जवारे अर्था जौ या गेहूं बोये जाते हैं। माता दुर्गा को यह बहुत पसंद हैं। आओ जानते हैं कि क्या है इसका रहस्य।
1. नवरात्रि में कलश के सामने एक मिट्टी के पात्र में मिट्टी में जौ या गेहूं को बोया जाता है और इसका पूजन भी किया जाता है। बाद में नौ दिनों में जब जवारे उग आते हैं तो उसके बाद उनका नदी में विसर्जन किया जाता है।
2. जवारे को जयंती और अन्नपूर्णा देवी माना जाता है। माता के साथ जयंती और अन्नपूर्णा देवी की पूजा भी जरूरी होती है।
3. मान्यता है कि सृष्टि के प्रारंभ में सबसे पहली फसल जौ ही थी। इसे पूर्ण फसल भी कहा जाता है।
4. जौ या गेहूं अंन्न है और हिन्दू शास्त्रों में अन्न को ब्रह्म माना गया है। इसीलिए भी नवरात्रि में इसकी पूजा होती है।
5. जब भी देवी या देवताओं का हवन किया जाता है तो उसमें जौ का बहुत महत्व होता है।
6. जौ बोने से वर्षा, फसल और व्यक्ति के भविष्य का अनुमान भी लगाया जाता है। कहते कि जौ उचित आकार और लंबाई में नहीं उगे तो उस वर्ष कम वर्ष होगी और फसल भी कम होगी। इसे भविष्य पर असर पड़ता है।
7. बोये गए जौ के रंग से भी शुभ-अशुभ संकेत मिलते हैं। मान्यता है कि यदि जौ के ऊपर का आधा हिस्?सा हरा हो और नीचे से आधा हिस्?सा पीला हो तो इसका आशय यह है कि आने वाले साल में आधा समय अच्?छा होगा और आधा समय कठिनाइयों से भरा होगा।
8. यदि जौ का रंग हरा हो या फिर सफेद हो गया हो, तो इसका अर्थ होता है कि आने वाला साल काफी अच्?छा जाएगा। यही नहीं देवी भगवती की कृपा से आपके जीवन में अपार खुशियां और समृद्धि का वास होगा।
9. कहते हैं कि नवरात्र में बोई गई जौ जितनी बढ़ती है उतनी ही माता रानी की कृपा बरसती है। इससे व्यक्ति के घर में सुख-समृद्धि भी बनी रहने के संकेत मिलते हैं।
10. मान्यता है कि यदि जौ के अंकुर 2 से 3 दिन में आ जाते हैं तो यह बेहद शुभ होता है और अदि जौ नवरात्रि समाप्त होने तक जौ न उगे तो यह अच्छा नहीं माना जाता है। हालांकि, कई बार ऐसा भी होता है कि यदि आपने उचित तरीके से जौ नहीं बोया है तो भी जौ नहीं उगता है। ऐसे में ध्यान रखें कि जौ को अच्छे से बोएं।
टिप्स ट्रिक्स / शौर्यपथ /खाना गर्म रहे इसलिए एल्युमिनियम फॉयल का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं यह एल्युमिनियम फॉयल का इस्तेमाल करना सेहत के लिए कितना खतरनाक है। घर से बाहर जाने पर फॉयल का इस्तेमाल करते हैं लेकिन घर में भी कई लोग चपाती रखने के लिए फॉयल ही रखते हैं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि फॉयल में सब्जी या चपाती रखने पर वह गर्म रहेगा। लेकिन फॉयल में मौजूद केमिकल खाने को दूषित भी कर सकते हैं। इसलिए आइए जानते हैं एल्युमिनियम फॉयल में खाना रखना कितना सुरक्षित है। और क्यों उसमें खाना रखने से परहेज करना पड़ता है...
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इनवायरमेंट हेल्थ साइंसेज में टोक्सिलोजिस्ट जीन हैरी के मुताबिक, 'एल्युमिनियम में कई न्यूरोटॉक्सिट तत्व होते हैं। खासकर एसिटिक चीजों को फॉयल पर रखने से बचना होगा।
- बहुत अधिक गर्म होने पर एल्युमिनियम पिघलता है। खाने में मिलने से अल्जाइमर का खतरा बढ़ता है।
- एल्युमिनियम का अधिक इस्तेमाल होने पर शरीर की हड्डियां भी गलने लगती है।
- एल्युमिनियम की अधिक मात्रा बढ़ने होने पर ऑस्टियोपोरोसिस की संभावना बढ़ जाती है।
- किडनी फेल होने का खतरा बढ़ जाता है।
-अल्जाइमर और डिमेंशिया की बीमारी हो सकती है।
कैसे रखें खाने को व्यवस्थित
एयर टाइट कंटेनर में पैक करें। इसका सबसे बड़ा फायदा है इसमें हवा कही से भी नहीं अंदर जा सकेगी। साथ ही इससे भोजन से बैक्टीरिया भी दूर रहेंगे। इसलिए एल्युमिनियम फॉयल की बजाएं एयरटाइट कंटेनर का इस्तेमाल भी किया जा सकता है।
फ्रिज में करें स्टोर
दरअसल, आप फ्रिज में भी खाने को स्टोर कर सकते हैं। इससे भोजन या अन्य चीजों में उत्पन्न होने वाले छोटे
- छोटे जीव फ्रिज में निष्क्रिय हो जाते हैं। और खाने की चीजों को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। इसलिए अक्सर खाने की चीजों को कांच के कंटेनर में फ्रिज में रखा जाता है।
आस्था / शौर्यपथ /हिंदू धर्म में मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है। पितृपक्ष के दौरान पितरों को तर्पण भी इसीलिए ही दिया जाता है। ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले और उनकी गति हो सके। कहते हैं कि एक बार जो व्यक्ति गया जाकर पिंडदान कर देता है। उसे फिर कभी पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध या पिंडदान करने की जरूरत नहीं पड़ती है। अधिकतर लोगों की यह चाहत होती है कि मृत्यु के बाद उनका पिंडदान गया में हो जाए। सनातन धर्म में यह मान्यता है कि गया में श्राद्ध करवाने से व्यक्ति की आत्मा को निश्चित तौर पर शांति मिलती है। इसलिए ही इस तीर्थ को बहुत श्रद्धा और विश्वास के साथ गया जी कहा जाता है।
गया जी तीर्थ की पौराणिक कथा : माना जाता है कि गया भस्मासुर के वंशज गयासुर की देह पर बसा हुआ स्थान है। एक बार की बात है गयासुर दैत्य ने कठोर तप किया। तप से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर उन से वरदान मांगा कि उसकी देह यानी शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए। जो कोई भी व्यक्ति उसे देखे वह पापों से मुक्त हो जाए। ब्रह्मा जी ने गयासुर को तथास्तु कहा। इसके बाद लोगों में पाप से मिलने वाले दंड का भय खत्म हो गया। लोग और अधिक पाप करने लगे। जब उनका अंत समय आता था तो वह गयासुर का दर्शन कर लेते थे। जिससे सभी पापों की मुक्ति हो जाती थी।
इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए देवताओं ने गयासुर को यज्ञ के लिए पवित्र भूमि दान करने के लिए कहा। गयासुर ने विचार किया कि सबसे पवित्र तो वो स्वयं हैं और गयासुर ने देवताओं को यज्ञ के लिए अपना शरीर दान किया। दान करते हुए गयासुर ने देवताओं से यह वरदान मांगा कि यह स्थान भी पापों से मुक्ति और आत्मा की शांति के लिए जाना जाए। गयासुर धरती पर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया। गया तीर्थ भी इसलिए पांच कोस में फैला हुआ है। समय के साथ इस स्थान को गया जी पितृ तीर्थ के रूप में जाना जाने लगा।
गया जी का महत्व :गया जी का महत्व बहुत अधिक है। कहते हैं कि जिस व्यक्ति का पिंडदान यहां हो जाता है। उसकी आत्मा को निश्चित तौर पर शांति मिलती है। विष्णु पुराण में कहा गया है कि गया में श्राद्ध हो जाने से पितरों को इस संसार से मुक्ति मिलती है। गरुण पुराण के मुताबिक गया जी जाने के लिए घर से गया जी की ओर बढ़ते हुए कदम पितरों के लिए स्वर्ग की ओर जाने की सीढ़ी बनाते हैं।
गया में क्यों करते हैं श्राद्ध, जानिए 5 कारण
वैसे तो श्राद्ध कर्म या तर्पण करने के भारत में कई स्थान है, लेकिन पवित्र फल्गु नदी के तट पर बसे प्राचीन गया शहर की देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी पितृपक्ष और पिंडदान को लेकर अलग पहचान है। पुराणों के अनुसार पितरों के लिए खास आश्विन माह के कृष्ण पक्ष या पितृपक्ष में मोक्षधाम गयाजी आकर पिंडदान एवं तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और माता-पिता समेत सात पीढ़ियों का उद्धार होता है।
पितृ की श्रेणी में मृत पूर्वजों, माता, पिता, दादा, दादी, नाना, नानीसहित सभी पूर्वज शामिल होते हैं। व्यापक दृष्टि से मृत गुरू और आचार्य भी पितृ की श्रेणी में आते हैं। कहा जाता है कि गया में पहले विभिन्न नामों के 360 वेदियां थीं जहां पिंडदान किया जाता था। इनमें से अब 48 ही बची है। यहां की वेदियों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी माना जाता है। इसके अतिरिक्त वैतरणी, प्रेतशिला, सीताकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, मंगलागौरी, कागबलि आदि भी पिंडदान के लिए प्रमुख है। यही कारण है कि देश में श्राद्घ के लिए 55 स्थानों को महत्वपूर्ण
माना गया है जिसमें बिहार के गया का स्थान सर्वोपरि है। आओ जानते हैं इसके 5 कारण।
1.गयासुर नामक असुर ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पापमुक्त हो जाएं। इस वरदान के चलते लोग भयमुक्त होकर पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन करके फिर से पापमुक्त हो जाते थे।
इससे बचने के लिए यज्ञ करने के लिए देवताओं ने गयासुर से पवित्र स्थान की मांग की। गयासुर ने अपना शरीर देवताओं को यज्ञ के लिए दे दिया। जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया। यही पांच कोस जगह आगे चलकर गया बना।
2.देह दान देने के बाद गयासुर के मन से लोगों को पाप मुक्त करने की इच्छा नहीं गई और फिर उसने देवताओं से वरदान मांगा कि यह स्थान लोगों को तारने वाला बना रहे। तब से ही यह स्थान मृतकों के लिए श्राद्ध कर्म कर मुक्ति का स्थान बन गया।
3.कहते हैं कि गया वह आता है जिसे अपने पितरों को मुक्त करना होता है। लोग यहां अपने पितरों या मृतकों की आत्मा को हमेशा के लिए छोड़कर चले जाता है। मतलब यह कि प्रथा के अनुसार सबसे पहले किसी भी मृतक तो तीसरे वर्ष श्राद्ध में लिया जाता है और फिर बाद में उसे हमेशा के लिए जब गया छोड़ दिया जाता है तो फिर उसके नाम का श्राद्ध नहीं किया जाता है।कहते हैं कि गया में श्राद्ध करने के उपरांत अंतिम श्राद्ध बदरीका क्षेत्र के 'ब्रह्मकपाली' में किया जाता है।
4.गया क्षेत्र में भगवान विष्णु पितृदेवता के रूप में विराजमान रहते हैं। भगवान विष्णु मुक्ति देने के लिए 'गदाधर' के रूप में गया में स्थित हैं। गयासुर के विशुद्ध देह में ब्रह्मा, जनार्दन, शिव तथा प्रपितामह स्थित हैं। अत: पिंडदान के लिए गया सबसे उत्तम स्थान है।
5.पुराणों अनुसार ब्रह्मज्ञान, गयाश्राद्ध, गोशाला में मृत्यु तथा कुरुक्षेत्र में निवास- ये चारों मुक्ति के साधन हैं- गया में श्राद्ध करने से ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्ण की चोरी, गुरुपत्नीगमन और उक्त संसर्ग-जनित सभी महापातक नष्ट हो जाते हैं।
खाना खजाना / शौर्यपथ / बढ़ता वजन न सिर्फ आपकी पर्सनालिटी खराब करता है बल्कि आपको कई रोगों का शिकार भी बना देता है। जरूरत से ज्यादा वजन या मोटापा होने से व्यक्ति कोई भी काम करते समय जल्दी थकान महसूस करने लगता है। अगर आपके साथ भी कुछ ऐसी ही समस्या है तो अपनी डाइट में शामिल करें ये टेस्टी इम्यूनिटी बूस्टर गार्लिक वेजिटेबल सूप। ये सूप न सिर्फ आपको बदलते मौसम में संक्रमण से दूर रखेगा बल्कि आपकी वेट लॉस जर्नी में भी मदद करेगा। तो आइए जानते हैं कैसे बनाया जाता है यह टेस्टी सूप।
गार्लिक वेजिटेबल सूप बनाने के लिए सामग्री-
-एक कप मिक्स सब्जियां (गाजर, ब्रोकली, चुकंदर, हरी मटर, शिमला मिर्च)
-एक प्याज (बारीक कटा हुआ)
-लहसुन की कली (बारीक कटी हुई)
-दो बड़े चम्मच ओट्स (पाउडर और भुना हुआ)
-काली मिर्च
-नमक स्वादानुसार
-दो लौंग
-दो कप पानी
-मक्खन
गार्लिक वेजिटेबल सूप बनाने की विधि-
गार्लिक वेजिटेबल सूप बनाने के लिए सबसे पहले एक पैन लें और उसमें मीडियम आंच पर थोड़ा मक्खन डालकर गर्म करें। अब इसमें लहसुन डालें और एक मिनट के लिए भूनें। इसके बाद इसमें कटा हुआ प्याज डालें और गोल्डन ब्राउन होने तक पकाएं। अब आप सब्जियां डालें और उन्हें लगभग 4 से 5 मिनट तक भूनें। पानी डालें और उबाल आने दें। पैन को ढक्कन से ढक दें और सब्जियों के नरम होने तक इसे उबलने दें। अब इसमें नमक और काली मिर्च डालकर स्प्रिकंल करें। अब इसमें पाउडर किया हुआ ओट्स डालकर मिक्स करें और लगभग 2 मिनट तक पकाएं। आंच बंद कर दें और सूप को एक तरफ रख दें। अब एक दूसरा पैन लें और उसमें लौंग को सूखा भून लें। अब इसे अच्छी तरह से क्रश्ड कर लें। सूप को बाउल में निकालें और क्रश्ड लौंग से इसे गार्निश करें।
ब्यूटी टिप्स / शौर्यपथ / चेहरे की खूबसूरती को बरकरार रखने के लिए कई मर्तबा अलग-अलग क्रिम का उपयोग करते हैं लेकिन उसका असर कुछ ही वक्त रहता है। चेहरे को पिंपल फ्री, फलालेस, चमकदार
बनाने के लिए महंगे से महंगे ट्रीटमेंट लेते हैं। पर असर बहुत लंबे वक्त तक नहीं रहता है। शायद ही लोगों ने कभी चेहरे की खूबसूरती के लिए खाने की डाइट पर भी ध्यान दिया होगा। जी हां, अपनी डाइट में इन 5 विटामिन्स को जरूर शामिल करें, ताकिृ प्राक़तिक रूप से आपके चेहरे का ग्लो बरकरार रहें।
विटामिन ए - विटामिन ए में मौजूद तत्व चेहरे की कोशिकाओं को रीजनरेट करते हैं। साथ ही ड्राय स्किन और रूखी त्वचा से लिए परेशान है तो विटामिन ए युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। पपीता, आम, तरबूज में भरपूर विटामिन मौजूद होता है।
विटामिन बी कॉम्प्लेक्स - त्वचा को बेहतर बनाने के लिए बी कॉम्प्लेक्स मदद करता है। विटामिन बी कॉम्प्लेक्स का सेवन करने से पिग्मेंटेशन की समस्या भी खत्म हो जाती है।ऑयली स्किन से परेशान है तो इसका सेवन जरूर करें। साबुत अनाज, फल, दही में यह पाया जाता है।
विटामिन सी -विटामिन सी कमी होने से त्वचा पर लाल रेशेज होने लगते हैं, दाने निकल आते हैं। चेहरे पर असमय झुर्रियों के दिखने का एक कारण यह भी है। इसके लिए आप
नींबू, फूलगोभी, संतरा, शंकरकंद का सेवन करें।
विटामिन ई -शरीर में विटामिन ई की कमी होने पर डार्क सर्कल, पिगमेंटेशन, पिंपल्स, सनटैन से बचाने में मदद करती है। इसके लिए बादाम, अखरोट, मूंगफली, पालक और ब्रोकलीका सेवन करें।
विटामिन डी -विटामिन की डी कमी से कई सारी समस्या होने लगती है। त्वचा की बात की जाएं तो मशरूम, दूध, चीज, दही, पनीर में भरपूर तरह से मौजूद होता है।
टिप्स ट्रिक्स / शौर्यपथ / बारिश के मौसम में भीगने के बाद त्वचा और सेहत पर इसका प्रभाव पड़ता है। त्वचा संबधी कई तरह की परेशानियां सामने आती हैं, जैसे शरीर पर दाने होना, शरीर गीला रहने के कारण दाद-खुजली जैसी त्वचा की समस्या सामने आती है। इसलिए आपको बारिश में भीगने के बाद नहाना जरूर चाहिए।
इसी के साथ आप अपने नहाने के पानी में कुछ ऐसी चीजें भी मिला सकते हैं, जो आपको ताजगी भी दे, साथ ही त्वचा के लिए भी फायदेमंद हो। आइए जानते हैं वो खास चीजें-
1. नीम बाथ- अगर आप त्वचा से संबंधित समस्याएं महसूस कर रहे हैं, तो यह बाथ आपके लिए उपयोगी है। यह खासतौर पर उन लोगों के लिए काफी फायदेमंद होता है जिनके शरीर पर फोड़े-फुंसी जैसी समस्याएं होती हैं। इसके लिए नीम व पुदीने की पत्तियों को उबालकर उस पानी को ठंडा करके उस पानी से नहाएं।
2. गुलाब जल और नींबू- गुलाब जल और नींबू की कुछ बूंदें आप अपने नहाने के पानी में मिला लें और इस पानी से नहाएं। ऐसा करने से आप तरोताजा महसूस करेंगे।
3. डियो बाथ- बारिश के मौसम में ज्यादा देर तक गीले रहने या गीले कपड़े पहने रहने से शरीर से दुर्गंध आनी शुरू हो जाती है। इससे बचने के लिए आप 1 बाल्टी पानी में नमक व 1 चम्मच डियो मिलाकर इससे नहाएं। इससे ताजगीभरा अहसास होता है। साथ ही दिनभर बॉडी से एक भीनी-भीनी-सी खुशबू आती है।
4. चमेली के फूल- चमेली के फूलों को बाथ टब में डालकर रखें और इस पानी से नहाएं। यह बाथ न केवल आपको दिनभर तरोताजा बनाएं रखेगा बल्कि मानसिक और शारीरिक तनाव को भी दूर करेगा।
5. बेकिंग सोडा- नहाने के पानी में बेकिंग सोडा मिलाकर नहाएं क्योंकि ये त्वचा को मुलायम बनाता है और आपको संक्रमण से भी दूर रखता है। 1 बाल्टी पानी में 2-3 चम्मच बेकिंग सोडा डालकर नहाने से शरीर में मौजूद टॉक्सिन बाहर निकल जाते हैं।
सेहत /शौर्यपथ /डेंगू का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। बच्चे से लेकर बूढ़े लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं। डेंगू को हड्डी तोड़ बुखार भी कहा जाता है। क्योंकि डेंगू होने पर आपकी पूरी बॉडी दर्द करती है। हालांकि डेंगू होने पर प्लेटलेट्स कम होने लगती है। एक्सपर्ट के मुताबिक बॉडी में डेढ़ लाख प्लेटलेट्स कम से कम होना जरूरी है। अगर प्लेटलेट्स 1लाख से कम हो जाती है तो जान पर भी बात आ सकती है। ऐसे में कुछ फ्रुट्स है जिनका सेवन कर आप अपनी प्लेटलेट्स को बढ़ा सकते हैं। आइए जानते हैं -
1.नारियल पानी - दरअसल, डेंगू आपकी बॉडी में पानी की कमी को बढ़ाता है वहीं नारियल पानी से शरीर में पानी की कमी नहीं होती है। इसलिए नारियल पानी पीने की सलाह दी जाती है। साथ ही जरूरी पोषक तत्व होते हैं जिससे आपको कमजोरी भी महसूस नहीं होगी। इसलिए दिन में एक नारियल पानी का सेवन जरूर करें।
2. बकरी का दूध - बकरी का दूध बहुत ताकतवर होता है। डेंगू के इलाज में इसे मुख्य रूप से पीने की सलाह दी जाती है। हालांकि बकरी का दूध तुरंत ही पी लेना चाहिए। उसे बहुत देर तक नहीं रखा जाता है। बकरी का दूध प्लेटलेट्स बढ़ाने में काफी मदद करता है।
3. अनार - अनार आयरन बढ़ाने का सबसे अच्छा स्त्रोत है। शरीर में खून की कमी होने पर अनार के जूस का सेवन करना चाहिए। इतना ही नहीं अपच की समस्या होने पर भी इसका सेवन कर सकते हैं। डेंगू होने पर अनार का सेवन करें। कोशिश करें जूस बाहर का नहीं पिएं।
4.पपीता - पपीता में मौजूद जरूरी पोषण प्लेटलेट्स को बढ़ाने में मदद करता है। कच्ची पपीता का सेवन करने की सलाह डॉ जरूर देते हैं। साथ ही इसका जूस भी पी सकते हैं लेकिन जूस घर पर ही निकाला गया हो।
आस्था / शौर्यपथ / इन दिनों 16 दिवसीय श्राद्ध पर्व चल रहा है। 20 सितंबर भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर यह पर्व आश्विन मास की अमावस्या तक मनाया जाता है। इन 16 दिन श्राद्ध-तर्पण इत्यादि कार्य किए जाते हैं। माना जाता है कि इन दिनों में किसी भी मंदिर के परिसर में पीपल अथवा बड़ का वृक्ष लगाकर उसमें प्रतिदिन जल चढ़ाया जाए तो जैसे-जैसे वह वृक्ष फलता-फूलता जाएगा, वैसे ही पितृदोष दूर होता जाएगा, क्योंकि इन वृक्षों में सभी देवी-देवता, इतर योनियां व पितर आदि निवास करते हैं।
पौराणिक महत्व- इन दिनों एक खास पर्व 'संजा' भी मनाया जाता है। यह पर्व सांझी, संझया, माई, संझा देवी, सांझी पर्व आदि अन्य नामों से भी जाना जाता है। संजा पर्व प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक अर्थात् पूरे श्राद्ध पक्ष में 16 दिनों तक मनाया जाता है। धार्मिक मान्यतानुसार संजा माता गौरा का रूप होती है, जिनसे अच्छे पति पाने की मनोकामना की जाती है। कई स्थानों पर कन्याएं आश्विन मास की प्रतिपदा से इस व्रत की शुरुआत करती हैं। इस त्योहार को कुंआरी युवतियां बहुत ही उत्साह और हर्ष से मनाती हैं। श्राद्ध पक्ष में 16 दिनों तक इस पर्व की रौनक ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक देखी जा सकती है। इस पर्व की रौनक खास तौर पर मालवा, निमाड़, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा तथा अन्य कई क्षेत्रों में देखी जा सकती हैं।
संजा पर्यावरण को समर्पित एक लोक पर्व है। यह पर्व प्रकृति की देन फल-फूल, गोबर, नदी, तालाब आदि के देखरेख के साथ ही हमें इन चीजों को संजोने की प्रेरणा भी देता है। गौ-रक्षा करके हम जहां प्रकृति से रूबरू होते है, वहीं हम तालाब का निर्माण करके जल संरक्षण में भी अपनी भागीदारी निभाते हैं।
वृक्षारोपण तथा पौधारोपण करके हम हमारी अनमोल धरा को हरा-भरा करके प्रकृति के सहायक बनते हैं और अलग-अलग रंगबिरंगी फूलों से संजा को सजाकर प्रकृति की खूबसूरती में चार चांद लगते हैं और इस तरह हर छोटे-बड़े त्योहारों को अपने जीवन में अपना कर हम प्रकृति और हमारी धार्मिक और लोक परंपराओं का संचालन करते हैं।
क्यों खास
है
यह पर्व-
* इन दिनों चल रहे श्राद्ध पक्ष के पूरे 16 दिनों तक कुंआरी कन्याएं हर्षोल्लासपूर्ण वातावरण में दीवारों पर बहुरंगी आकृति में 'संजा' गढ़ती हैं तथा ज्ञान पाने के लिए सिद्ध स्त्री देवी के रूप में इसका पूजन करती हैं।
* एक लोक मान्यता के अनुसार- 'सांझी' सभी की 'सांझी देवी' मानी जाती है। संध्या के समय कुंआरी कन्याओं द्वारा इसकी पूजा-अर्चना की जाती है। संभवतः इसी कारण इस देवी का नाम 'सांझी' पड़ा है। कई स्थानों पर इसे संजा फूली पर्व भी कहा जाता है।
* कुछ शास्त्रों के अनुसार धरती पुत्रियां सांझी को ब्रह्मा की मानसी कन्या संध्या, दुर्गा, पार्वती तथा वरदायिनी आराध्य देवी के रूप में पूजती हैं।
* सांजी, संजा, संइया और सांझी जैसे भिन्न-भिन्न प्रचलित नाम अपने शुद्ध रूप में संध्या शब्द के द्योतक हैं।
* संजा पर्व के पांच अंतिम दिनों में हाथी-घोड़े, किला-कोट, गाड़ी आदि की आकृतियां बनाई जाती हैं।
* 16 दिन के लोक पर्व के अंत में अमावस्या को सांझी देवी को विदा किया जाता है।
* इन दिनों संजा पर्व के मधुर लोक गीत भी सुनाई पड़ते हैं।
* 16 दिनों कि प्रतिदिन गोबर से अलग-अलग संजा बनाकर फूल व अन्य चीजों से उसका श्रृंगार किया जाता है तथा अंतिम दिन संजा को तालाब व नदी में विसर्जित किया जाता है। इस तरह इस पर्व का समापन हो जाता है।
आजकल बदलते समय के साथ इस पर्व में आधुनिक तरीके अपनाए जाने लगे हैं। शहरों में अब गोबर के स्थान पर बाजारों में कागज पर उकेरे या रचे हुए मांडनों का उपयोग होने लगा है, जिन्हें युवतियां दीवारों पर चिपकाकर पूजन करती हैं। ज्ञात हो कि इस बार पितृ महालय 20 सितंबर से शुरू होकर 6 अक्टूबर 2021 तक जारी रहेगा।
वास्तु/ शौर्यपथ / वास्तु, ज्योतिष और लाल किताब में हाथी को बहुत ही शुभ माना जाता है। शास्त्रों में इस पशु का संबंध विघ्नहर्ता गणपति जी और धन की देवी लक्ष्मीजी से है। आओ जानते हैं चांदी के हाथी की प्रतिमा को घर में रखने के 10 फायदे।
1. ऐश्वर्य का प्रतीक : चांदी से बने हाथी को घर की उत्तर दिशा में रखना वास्तु की दृष्टि से शुभ माना गया है। यह ऐश्वर्य का प्रतीक है। चांदी के हाथी की मूर्ति रखने से गणेशजी और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
2. पंचम और द्वादश के राहु का उपाय : लाल किताब के अनुसर घर में या जेब में ठोस चांदी का हाथी रखना चाहिए। यह पंचम और द्वादश में बैठे राहु का उपाय है। इससे संतान को कष्ट नहीं होता और व्यापार में भी लाभ मिलता है।
3. पॉजिटिव एनर्जी : चांदी के हाथी की मूर्ति घर में रखने से सकारात्मक उर्जा का निर्माण होता है।
4. धन की प्राप्ति : चांदी के हाथी की मूर्ति घर में रखने से धन प्राप्ति के स्रोत बनते हैं।
5. करियर में सफलता : इस हाथी को घर में रखने से करियर में भी सफलता मिलती है।
6. बच्चों का पढ़ाई में लगता है मन : स्टडी रूम में रखने से बच्चों का पढ़ाई में मन लगता है और उनका दिमाग तेज होता है।
7. गुड लक : थी के जोड़े की मूर्ति घर के फ्रंट डोर पर रखने से भाग्य के दरवाजे खुल जाते हैं।
9. दांपत्य जीवन में सुधार : हाथी के जोड़े घर में होने से पति पत्नी के बीच संबंधों में मथुरता आती है।
10. सेहत, सुख और शांति : इसके लिए घर की उत्तर पूर्व दिशा में चांदी का ठोस हाथी रखें।
अन्य खास बातें
1. शयनकक्ष में पीतल का हाथी रखने या हाथी की बड़ी तस्वीर लगाने से पति-पत्नी में मतभेद खत्म होते हैं।
2. पीतल का हाथी बैठक रूम में रखा जाए तो यह शांति और समृद्धि कारक है। इसी के साथ यह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिलाता है।
3. फेंगशुई अनुसार भी हाथी की तस्वीर या मूर्ति घर में रखने से सकारात्मक उर्जा के साथ-साथ धन प्राप्ति के स्रोत बनते हैं। जिस हाथी की तस्वीर या मूर्ति में उसकी सूंड झुकी हो उसे लिविंग एरिया में लगाना चाहिए। इससे घर में सुख शांति बढ़ती है। और यदि हाथी की सूंड ऊपर की ओर उठी हुई है तो इसे तरक्की होती है, धन और संपत्ति बढ़ती है।
दुर्ग / शौर्यपथ / जैसा कि आप सभी को मालूम है कि राज्य शासन में ऑनलाइन क्लास के साथ-साथ अब ऑफलाइन क्लास की भी सुविधा प्रारंभ कर दी है एवं स्कूलों को शासन के गाइडलाइन के पालन के साथ ऑफलाइन क्लास के लिए भी अनुमति दे दी है। ऑफलाइन क्लास शुरू होते ही बच्चों में एक अलग प्रकार का उत्साह देखने को मिल रहा है लगभग डेढ़ साल बाद बच्चे स्कूल जा रहे हैं स्कूल जाते हुए बच्चों का खिल खिलाता चेहरा पालको को एक सुकून तो दे रहा है साथ ही सुरक्षा को लेकर भी पालक चिंतित दिखाई देते हैं ऐसे में अभिभावकों के मन में उठ रहे सवालों का एवं बच्चों के भविष्य के लिए किए जा रहे कार्य योजना के बारे में डीएवी स्कूल हुडको भिलाई के प्राचार्य प्रशांत कुमार ने गत रविवार को अभिभावकों की एक वर्चुअल मीटिंग रखा है जिसमें अभिभावकों को स्कूल की कार्य योजना ऑफलाइन क्लास से होने वाले फायदे ऑफलाइन क्लास के कारण भविष्य में बच्चों की मजबूत आधारशिला शासन के कोविड से सुरक्षा के मापदंड का कैसे पालन करना है एवं शासन और और स्कूल प्रबंधन छात्रों के लिए किस प्रकार किन-किन सुरक्षा के साथ ऑफलाइन क्लास शुरु कर रही है इस बारे में विस्तृत चर्चा की है प्राचार्य प्रशांत कुमार ने बताया कि जब देश और पूरी दुनिया में कोरोना आपदा के कारण स्कूल बंद हुए तब भी स्कूल संचालकों द्वारा बच्चों की शिक्षा के बारे में उनके बेसिक ज्ञान के बारे में प्रबंधन ने लगातार प्रयास किए हैं जब शासन ने ऑनलाइन क्लास की बात कही तब भी एस डीएवी स्कूल प्रबंधन ने ऑनलाइन क्लास के माध्यम से बच्चों को पूरी इमानदारी से शिक्षा देने का भरपूर प्रयास किया है और लगभग सफल भी हुए हैं .शासन की गाइड लाइन के अनुसार अभिभावकों से स्कूल प्रबंधन ने किसी भी प्रकार की फीस की मांग नहीं की अपितु तब भी स्कूल प्रबंधन ने अपने स्कूल के सैकड़ों कार्यरत शिक्षकों और स्टाफ को समय-समय पर वेतन प्रदान किया साथ ही ऑनलाइन शिक्षा के द्वारा बच्चों को शिक्षा से जोड़े रखा है . हालांकि शासन ने सभी को प्रमोटी कर दिया बावजूद इसके स्कूल प्रबंधन ने यह भरकस प्रयास किया कि बच्चों को अगली कक्षा में जाने के पहले पिछली कक्षा के विषयों के बारे में संपूर्ण ज्ञान प्राप्त हो सके ताकि अगली कक्षा के सिलेबस में बच्चों को परेशानी का सामना ना करना पड़े हैं .
अब जबकि शासन द्वारा ऑनलाइन क्लास की अनुमति दे दी गई है तो स्कूल प्रबंधन ने शासन के बताए अनुसार सुरक्षा के सभी उपायों को अपनाते हुए ऑफलाइन क्लास भी शुरू कर दिए हैं स्कूल प्रबंधन सभी अभिभावकों से भी अपेक्षा है कि अपने लाडलो को वह ज्ञान वह शिक्षा दिलाने में स्कूल प्रबंधन का सहयोग करें जिस शिक्षा की उन्हें जरूरत है शासन ने यह तो आदेश दे दिया है कि क्लास 8th तक सभी को पास कर दिया जाएगा किंतु डीएवी संस्था की यही कोशिश है कि हर बच्चा अपने क्लास में अपने विषयों पर मजबूत पकड़ बना सके ताकि क्लास 9th क्लास 10th में पहुंचने पर जो सिलेबस उस समय रहेगा उसे समझने में बच्चों को आसानी होगी अगर नीव मजबूत रहेगी तो भवन भी बुलंद होगा कुछ है ऐसे ही कहावत शिक्षा के क्षेत्र में भी है अगर बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा का आधार है मजबूत रहेगा तो भविष्य कक्षाओं का सिलेबस बच्चों को समझने में आसानी होगी और इसी कोशिश के परिणाम स्वरूप डीएवी संस्था लगातार ऑनलाइन क्लास में भी बच्चों को बेसिक ज्ञान देने की पुरजोर कोशिश करती रही है ताकि भविष्य में बच्चा कमजोर ना हो।
वर्तमान में डीएवी संस्था पूरे भारत में प्रथम स्थान पर संचालित संस्था है शिक्षा के क्षेत्र में डीएवी संस्था अपने सभी मानको को पूरा करते हुए अग्रणी संस्था के रूप में एक पहचान बनाया हुआ है वहीं अगर शुल्क के बारे में बात की जाए तो वर्तमान में भी पूरे जिले में डीएवी संस्था सबसे कम फीस लेने वाली संस्था है डीएवी संस्था ने संस्था को चलाने के लिए जरूरत के हिसाब से शुल्क में वृद्धि की थी किंतु शासन ने जिस मात्रा में शुल्क बढ़ाई गई थी उसे स्वीकार नहीं की एवं एक मापदंड तैयार कर शुल्क वृद्धि की अनुमति दी जिसे भी डीएवी संस्था ने स्वीकार किया और जिन से भी ज्यादा शुल्क लिए थे उन लोगों की बढ़ी हुई राशि अगले आने वाले फीस में समायोजित कर दिया गया है .
डीएवी संस्था कमजोर वर्ग के लोगों को भी अपने स्तर पर निशुल्क शिक्षा देने के लिए तत्पर है और ऐसे कुछ मामलों में कुछ बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान भी की जा रही है डीएवी संस्था अभिभावकों से भी उम्मीद और अपेक्षा करती है कि स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों कार्य करने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों एवं स्कूल संचालन के लिए जरूरी मुद्रा जोकि फीस के रूप में अभिभावकों से लेती है इसे भुगतान करें ताकि स्कूल चलाने में संस्था को किसी प्रकार की वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़े। ऐसा नहीं है कि डीएवी संस्था को रोना आपदा के समय हुई परेशानियों से अवगत नहीं है कई अभिभावकों को वर्तमान स्थिति में भी शुल्क पटाने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है ऐसे अभिभावकों से भी निवेदन करती है कि स्कूल प्रबंधन से संपर्क करें एवं अपनी जायज परेशानियों को प्रबंधन के सामने रखें प्रबंधन सदैव ऐसे अभिभावकों की बातों को गंभीरता पूर्वक सुनेगी एवं अभिभावकों के परेशानियों को समझते हुए कोई ऐसा निर्णय लेगी ताकि शुल्क बढ़ाने में अभिभावकों को भी परेशानी ना हो और प्रबंधन भी परेशानियों से बची रहे।
एक समय ऐसा भी था कि डीएवी स्कूल को शिक्षक ट्रेनिंग सेंटर समझते थे किंतु आज स्कूल प्रबंधन ने शिक्षकों को उस अनुपात पर वेतन देने का कार्य कर रही है कि शिक्षक स्कूल में ही रहें एवं अन्य स्कूलों की ओर प्रस्थान ना करें इसके कारण स्कूल में शिक्षकों की स्थिरतता लगातार बढ़ती जा रही है।
आज स्कूल प्रबंधन ऑफलाइन क्लास में शासन के गाइडलाइन का पूरी तरह पालन करते हुए छात्रों के हितों का पूरी तरह ध्यान रख रही है बावजूद इसके भी अगर किसी अभिभावकों के मन में अगर संदेह है तो प्रबंधन ऐसे अभिभावकों को स्नेह पूर्वक निमंत्रण देती है कि वह स्कूल आए एवं स्वयं देखें कि स्कूल प्रबंधन ने उनके नौनिहालों के लिए कैसी व्यवस्था कर रखी है जितनी चिंता अभिभावकों को अपने बच्चों की है इतनी ही चिंता स्कूल प्रबंधन को अपने छात्रों की भी है .
स्कूल प्रबंधन पूरी ईमानदारी से पूरी तत्परता से इस प्रयास में है कि स्कूल में बच्चों को किसी भी प्रकार की कोई तकलीफ का सामना ना करना पड़े इसके लिए स्कूल प्रबंधन शासन के प्रत्येक गाइडलाइन का पूरी ईमानदारी से 100% पालन कर रही है एवं आगे भी करती रहेगी इस प्रबंधन का उद्देश्य केवल शुल्क ही नहीं है प्रबंधन का उद्देश्य छात्रों को बेसिक ज्ञान देने से है ताकि छात्र भविष्य में मिलने वाले सिलेबस को आसानी से समझ सके और अपनी उच्च शिक्षा के समय किसी के सामने अपने आप को कमजोर महसूस ना करें छात्रों के हित के लिए छात्रों की शिक्षा के लिए डीएवी प्रबंधन सदैव अपना शत-प्रतिशत योगदान देने में तत्पर है।
डीएवी हुडको स्कूल के प्राचार्य प्रशांत कुमार ने गत रविवार को हुए वर्चुअल मीटिंग में जिस प्रकार से स्कूल संचालन के बारे में एवं बच्चों के भविष्य के बारे में तथा फीस एवं शासन की गाइडलाइन के संबंध में खुलकर चर्चा की और जिस प्रकार से ऑनलाइन क्लास की अपेक्षा ऑफलाइन क्लास के लिए जोर दिया ताकि आधार ज्ञान की मजबूती से भविष्य में शिक्षा का स्तर मजबूत होता है जिसके बारे में सभी अभिभावक अच्छे से जानते वह समझते हैं और हर अभिभावक यही चाहता है कि उनके नौनिहाल उच्च शिक्षा को प्राप्त करें इस दुनिया में धन दौलत से ज्यादा कीमती शिक्षा होती है और इसी शिक्षा के महत्व को समझते हुए शासन ने ऑनलाइन क्लास की अपेक्षा ऑफलाइन क्लास को मंजूरी दी छत्तीसगढ़ शासन ने अभी हाल में ही खेलकूद का भी आयोजन करवाया ताकि बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ अन्य गतिविधियों के बारे में भी जानकारी हो और सहभागिता हो स्वस्थ बच्चे ही स्वक्ष समाज का निर्माण करते हैं। मुझे याद है कि आज से तकरीबन माह भर पहले जब मैं अपने बच्ची को डेढ़ साल बाद स्कूल ले कर गया और जब वापस लेकर आया तो उसके चेहरे पर जो खुशी देखी जो प्रसन्नता देखी मानो मैंने उसे लाखों करोड़ों का तोहफा दे दिया हो हम इस दुनिया में जीते हैं सिर्फ अपने बच्चों के लिए बच्चों की खुशी बच्चों का भविष्य हमारे लिए सर्वोपरि है मैंने तो अपनी बच्ची को हफ्ते में सभी दिन स्कूल भेजने का फैसला लिया और लगातार भेज भी रहा हूं मेरी बच्ची बहुत खुश है आप भी कोशिश कीजिए देखिए अच्छा लगेगा ...
सेहत / शौर्यपथ /एक्स्पर्ट्स के मुताबिक आप जितनी तेजी से चाबाएंगे, उतना ही आप अधिक खाएंगे। भोजन को धीरे-धीरे चबाने से समग्र भोजन का सेवन कम करने में मदद मिलती है। भोजन को चबाने से शरीर में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाने में मदद मिलती है। यह भूख को दबाता है और शरीर में पोषक तत्व भी अच्छी तरह पहुंचते हैं।
भोजन न चबाने या जल्दी चबाने के क्या नुकसान हैं?
जब भोजन को ठीक से चबाया नहीं जाता है, तो पाचन तंत्र गतिविधियों को पहचानने में विफल हो जाता है और भ्रम पैदा करता है। यह पर्याप्त एंजाइमों का उत्पादन भी नहीं कर पाता, क्योंकि उसके लिए भोजन को पूरी तरह से तोड़ा जाना चाहिए। इससे पाचन संबंधी समस्याएं भी होती हैं जैसे:
सूजन
दस्त
पेट में जलन
एसिड रिफ्लक्स
कुपोषण
स्वास्थ्य के लिए कैसे फायदेमंद है भोजन को अच्छे से धीरे - धीरे चबाना
अपने मुंह में भोजन चबाने का सरल कार्य भोजन के बड़े कणों को छोटे कणों में तोड़ने में मदद करता है। यह अन्नप्रणाली पर तनाव को कम करने में मदद करता है और इस तरह पेट को आपके भोजन को चयापचय करने में मदद करता है।
जब भोजन को अच्छी तरह से चबाया जाता है, तो आप बहुत अधिक लार भी छोड़ते हैं। जिसमें पाचक एंजाइम होते हैं। जैसे ही आप इन एंजाइमों को गले और पेट में छोड़ते हैं, यह पाचन प्रक्रिया को बेहतर बनाने में मदद करता है।
इतना ही नहीं चबाने पर ध्यान केंद्रित करके, यह धीमी गति से खाने और कम खाना खाने में मदद करता है। यह पाचन में भी मदद करता है और खाने के समग्र अनुभव को बढ़ाता है।
नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार 30 महिलाओं ने अलग-अलग गति से भोजन किया। जो महिलाएं धीरे-धीरे चबाती थीं, वे कम खाना खाती थीं और जल्दी खाने वालों की तुलना में पेट भरा हुआ महसूस करती थीं।
एक अन्य अध्ययन के अनुसार, जब लोग भोजन को आराम से चबाते हैं, तो वे दिन में स्नैक्स कम खाते हैं। इस प्रकार, अनहेल्दी स्नैक्स के सेवन में कटौती होती है। इन सबके परिणामस्वरूप आप कहीं न कहीं अपना वज़न भी कम कर सकते हैं!