August 06, 2025
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खाना खजाना / शौर्यपथ /एमपी में खाने का अलग ही स्वाद होता है, इंदौरा का पोहा और भोपाल का दाल बाफला खाने में बेहद ही स्वादिष्ट लगता है। मध्यप्रदेश के खाने में हल्का तीखापन और मिठास होती है। ऐसे में एमपी में मिलने वाला जीरावन मसाला बड़ा मजेदार होता है। अगर घर में कोई सब्जी न बनी हो तो भी आप इस मसाले को पूड़ी पराठे के साथ खाया जा सकता है। इसे आप स्लाद पर भी छिड़क कर खा सकते हैं। तो चलिए जानते हैं जब घर में कुछ अच्छा ना बना हो तो कैसे जीरावन मसाला बनाया जाए।
जीरावन बनाने की सामग्री
2 चम्मच जीरा
1 चम्मच साबुत धनिया
1 चम्मच सौंफ
5 से 6 लौंग
1 इंच दालचीनी का टुकड़ा
1 जायफल
1 तेजपत्ता
1 बड़ी इलायची
4 से 5 सूखी लाल मिर्च
2 चम्मच अमचूर पाउडर
1 चम्मच काला नमक
1 चम्मच सफेद नमक
1/4 चम्मच हींग
1 चम्मच हल्दी पाउडर
1/2 चम्मच सौंठ पाउडर
जीरावन बनाने का तरीका
जीरावन मसाला बनाने के लिए सबसे पहले धनिया को छोड़कर बाकी सारे मसाले ड्राई रोस्ट करें। जीरा को आधा ही लेना है और आधा कच्चा लेना है। अब साबुत धनिया भी ड्राई रोस्ट करें। इन सभी को एक प्लेट में निकालें। कढ़ाई को गर्म करें और सूखे मसाले भी रखें। अब सभी मसालों को आधा कच्चा जीरा मसाला एक साथ पीसें। जीरावन मसाला तैयार है।
ध्यान दें।
इसे एयर टाइट कंटेनर में स्टोर करें।
इसे पोहा या फिर सलाद में डालें ।
फ्राई आइटम पर भी इसे डाला जा सकता है।

टिप्स ट्रिक्स / शौर्यपथ / तांबे के बर्तन में खाने के फायदे के बारे में हर कोई जानता है। इसे खाने से आपकी सेहत को कई पोष्क तत्व मिलते हैं। यही वजह है कि पुराने लोग तांबे के बर्तनों में खाना खाते थे। ये बर्तन सेहत के लिए भले ही फायदेमंद क्यों ना हों लेकिन लोग इनको इस्तेमाल करने से बचते हैं। क्योंकि ये बहुत ज्यादा जल्दी काले पड़ जाते हैं। अगर इनका रखरखाव सही तरीके से ना किया जाए तो ये सेहत के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं। ऐसे में तांबे के बर्तन को साफ करना बहुत जरूरी है। तो चलिए जानते हैं कैसे करें तांबे के बर्तन को साफ।
1) सारे बर्तनों को आप डिशवॉशर से आसानी से साफ कर सकते हैं, लेकिन तांबे के बर्तनों को कभी भी उसमें न धोएं। इसके अलावा ऐसे डिटर्जेंट में न धोएं जिसमें ब्लीच हो।
2) कई बार आप तांबे के बर्तन को गर्म कर फिर उसमें खाना बनाते हैं। तांबे के बर्तनों के साथ ऐसा ना करें। ऐसे बर्तन जल्दी ही गर्म हो जाते हैं।
3) स्टील के बर्तनों को लोहे के जूने से घिसा जाता है। ऐसे में तांबे के बर्तनों के साथ ऐसा ना करें। ये सॉफ्ट टिन लाइनिंग को बहुत जल्दी खराब कर सकता है।
4) इन बर्तनों में मीट और मछली ना पकाएं। चिकन या चिकन ब्रेस्ट को इसमें पाकाया जा सकता है, लेकिन इसके अलावा कुछ और न पकाएं। उन चीजों को पकाने से बचें जो पकने में ज्यादा समय लगता है।
5) अगर आप तांबे के बर्तन में खाना बना रही हैं तो उसे नॉन स्टिक कुकवेयर की तरह इस्तेमाल करें। स्टील की कल्छी इस्तेमाल करें।

 

सेहत / शौर्यपथ / हर किसी को जीवन में थोड़ी बहुत चिंता लगी रहती है। फिर चाहें वह लाइफ को लेकर हो या फिर किसी अन्य विषय पर। वहीं बात हो महिलाओं की तो उनके जीवन में भी चिंता बनी रहती है। जैसे रात के खाने के लिए क्या तैयार करें, कैसे टाइम स्पैंड करें, या फिर फिट रहने के लिए क्या करें। ऐसी चिंताएं हमारे मानसिक और शारीरिक सेहत पर बहुत प्रभाव डालती हैं। ऐसे में सेहत का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। योग तनाव को दूर करने और अपने शरीर और दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए बहुत प्रभावी तरीका माना जाता है। तो चलिए जानते हैं कुछ योगा आसन के बारे में जिन्हें आप रोजाना घर पर कर सकते हैं।
1) सेतु बंधासन
इसे ब्रिज पोज के रूप में जाना जाता है, सेतु बंधासन के कई लाभ हैं। आप अपने रोजाना के रूटीन में इस आसन को शामिल कर सकते हैं। ये आसन आपके पोश्चर में सुधार करता है, आपकी छाती, फेफड़े, कंधों और पेट को स्ट्रेच करता है। अगर आपको सांस लेने में समस्या या पुरानी पीठ के निचले हिस्से में दर्द है तो यह रोजाना इसकी प्रेक्टिस करें। इसे करने के लिए पीठ के बल लेटकर शुरुआत करें और बाजुओं को अपनी-अपनी तरफ कर लें। जैसे ही आप सांस लेते हैं, अपने शरीर को फर्श से तब तक उठाएं जब तक कि आपकी छाती आपके चिन को न छू ले। कुछ सेकंड के लिए इस स्थिति में बने रहें फिर सांस छोड़ते हुए वापस सामान्य स्थिति में आ जाएं। ये उन महिलाओं के लिए बहुत अच्छी है जिन्हें सांस लेने में समस्या है या पीठ के निचले हिस्से में पुराना दर्द है।
2) नवासना
ये उन महिलाओं के लिए एकदम सही है जो एक ही स्थान पर बैठकर लंबा समय बिताती हैं। यह हमारे हाथ की मांसपेशियों, जांघों और कंधों को मजबूत करता है और हमारे शरीर में ब्लड फ्लो में भी सुधार करता है। इसे करने के लिए अपनी पीठ के बल लेटकर अपने पैरों को आपस में जोड़कर शुरू करें और हाथ को हाथ पर रखें। अपने हाथों को सीधा करें और अपनी उंगलियों को पंजों की ओर फैलाएं। अब धीरे-धीरे अपनी छाती और पैरों को जमीन से ऊपर उठाएं। ध्यान रखें कि आपका शरीर 'वी' जैसा दिखे। अपने पैरों और छाती को नीचे लाने से पहले इस पॉजिशन को कुछ देर होल्ड करें में रहें। इसे करने से पेट और कोर ताकत के निर्माण के अलावा, यह योग आसन डीप हिप फ्लेक्सर्स का भी काम करता है।
3) हलासन
इसे हल पॉजिशन के रूप में भी जाना जाता है, आपके पूरे सामने के शरीर और जांघों को फैलाता है, साथ ही आपकी पीठ, ग्लूट्स, बाहों और पैरों की मांसपेशियों को मजबूत करता है। इसे करने के लिए फर्श पर सीधे लेट जाएं और हाथों को साइड में करें। कोर की मांसपेशियों का उपयोग करके धीरे-धीरे अपने पैरों को जमीन से ऊपर उठाएं। आपके कूल्हे फर्श को नहीं छूना चाहिए और पैर 90 डिग्री के कोण पर होने चाहिए। अपने पैरों को अपने सिर के ऊपर ले जाएं और अपने पैर की उंगलियों से फर्श को छूने की कोशिश करें। इसे करने से थायरॉयड ग्रंथि की गतिविधियों को नियंत्रित करता है जो प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने में मदद करता है।

सेहत / शौर्यपथ /डेंगू से बचने के लिए सावधानियां तो आवश्यक है ही, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना भी बेहद जरूरी है। इसके लिए जरूरी है रक्त कणिकाओं की संख्या में इजाफा होना। एक शोध के अनुसार बकरी का दूध रक्तकणों को बढ़ाने में मदद करता है, जो डेंगू से लड़ने के लिए बेहद आवश्यक है।
इस तरह से बकरी का दूध डेंगू से बचने के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है। हरे पौधों और पत्ति‍यों को आहार के रूप में ग्रहण करने के कारण इसके दूध में भी औषधीय गुण होते हैं, और यह कई तरह की बीमारियों को दूर करने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यही कारण है कि जो व्यक्ति नियमित तौर पर बकरी का दूध पीता है, उसे बुखार जैसी समस्याएं नहीं होती।
बकरी के दूध में विटामिन और मिनरल्स भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो बीमारियों से लड़ने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करते हैं। विटामिन बी6, बी12, विटामिन डी, फोलिक एसिड और प्रोटीन से भरपूर बकरी का दूध शरीर को पुष्ट कर, प्रतिरक्षी तंत्र को मजबूत करता है, जिससे बीमारियों की संभावना नहीं के बराबर हो जाती है।
एक अन्य शोध के अनुसार किसी बच्चे को बकरी का दूध पिलाने पर उसकी रोधप्रतिरोधक क्षमता में इस कदर इजाफा होता है, कि उसके बीमार होने की संभावना नहीं के बराबर होती है। हालांकि 1 साल से छोटे बच्चों को बकरी का दूध नहीं पिलाना चाहिए, क्यों‍कि इससे उन्हें एलर्जी का खतरा होता है।
बकरी के दूध में पाया जाने वाला प्रोटीन, गाय या भैंस के दूध में मौजूद प्रोटीन की तुलना में बेहद हल्का होता है। जहां गाय के दूध का पाचन लगभग 8 घंटे में होता है, वहीं बकरी का दूध पचने में महज 20 मिनट का समय लेता है।
बकरी का दूध अपच की समस्या को दूर कर शरीर में उर्जा का संचार करता है। इसके अलावा इसमें मौजूद क्षारीय भस्म आंत्र तंत्र में अम्ल का निर्माण नहीं करता जिससे थकान, मसल्स में खिंचाव, सिर दर्द आदि की समस्या नहीं होती।
डेंगू के इलाज व डेंगू से बचाव में बकरी का दूध बेहद कारगर उपाय है। इतना ही नहीं बकरी का दूध एड्स जैसी बीमारी के लिए भी बेहद फायदेमंद और कारगर उपचार के तौर पर जाना जाता है।

सेहत / शौर्यपथ /स्लीप एपनिया एक ऐसी अवस्‍था है, जिसमें सोते समय सांस कुछ देर के लिए रुक जाती है। इस दौरान शरीर को पूरी ऑक्सीजन नहीं मिल पाता। सांस टूटने से आंख खुल जाती है, नींद खुल जाती है और उठते ही आप तेजी हांफने लगते हैं।
इस बीमारी का इलाज करना बेहद जरूरी है, अगर समय रहते इसे ठीक नहीं किया गया तो यह आगे चलकर खतरनाक भी हो सकती है। ज्‍यादातर लोग इसे नजरअंदाज करते हैं। ऐसे में जानना जरूरी है कि इसके रिस्‍क फैक्‍टर क्‍या है और कैसे इसका इलाज करना चाहिए।
रिस्क फैक्टर- पुरुष होना, ज्यादा वजनी होना, 40 वर्ष पार का होना, पुरुषों में 17 इंच या ज्यादा और महिलाओं में 16 इंच या ज्यादा गर्दन की आकार का होना, लंबी जुबान, जबड़े की छोटी हड्डी, परिवार में किसी का स्लीप एपनिया की हिस्ट्री या साइनस इसके प्रमुख रिस्क फैक्टर हैं।
अगर आप इसका इलाज करवा रहे हैं और इलाज बीच में ही छोड़ दिया है तो ये स्ट्रोक, हाइपरटेंशन, हार्ट फेल्योर, डायबिटीज, डिप्रेशन, सिर दर्द के जोखिम को बढ़ा सकता है।
स्लीप एपनिया का इलाज ज्‍यादा वजन को देखते हुए किया जाता है। पीड़ित लोगों को डॉक्टर अक्सर लगातार व्यायाम का हेल्दी डाइट का साथ सुझाव देते हैं। जैसे ही वजन कम होता है, स्लीप एपनिया के लक्षण दूर होने लगते हैं या कम होते हैं। मोटापा वायुमार्ग में रुकावट और नाक की तंग नली का जोखिम बढ़ा सकता है।
ये बाधा सोते समय अचानक आपकी सांस को रोक सकती है। हेल्दी वजन को बनाए रखकर आप वायुमार्ग को साफ रख सकते हैं और स्लीप एपनिया के लक्षणों को कम कर सकते हैं।
सोने के तरीके में मामूली बदलाव स्लीप एपनिया के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है और आपकी रात की नींद को सुधारता है। स्लीप एपनिया ज्यादा आम उन लोगों में है जो अपनी पीठ के बल सोते हैं। नींद के दौरान आपके सभी मसल आराम करते हैं।
योग- नियमित योग या व्यायाम आपके एनर्जी लेवल को बढ़ा सकता है, दिल को मजबूत कर सकता है और स्लीप एपनिया को सुधार सकता है। योग के कई अभ्यास सूजन को कम करने में मददगार और वायुमार्ग को खोलते हैं।
प्राणायाम यानि सांस की एक्‍सरसाइज से जुडे योगा मदद कर सकते हैं। स्लीप एपनिया की दिक्कतों को कम करने के लिए स्मोकिंग और अल्कोहल का सेवन भी छोड़ देना चाहिए।

टिप्स ट्रिक्स / शौर्यपथ /मूंगफली का सेवन सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है। बल्कि इसे बादाम का पर्याय माना जाता है। जितने पोषक तत्व बादाम में मौजूद होते हैं वह सभी मूंगफली में आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। लेकिन बादाम महंगा होता है और मूंगफली सस्ती होती है लेकिन आप बादाम की जगह मूंगफली भी खा सकते हैं। एक लीटर दूध के बजाए 100 ग्राम कच्ची मूंगफली में अधिक प्रोटीन होता है। मूंगफली के साथ ही मूंगफली के तेल के कई फायदे होते हैं। यह कीटाणुओं को खत्म करने में मददगार होता है।

तो आइए जानते हैं मूंगफली खाने के अचूक फायदों के बारे में -

1.हड्डियों को करें मजबूत- मूंगफली के सेवन से हड्डियां मजबूत होती है। मूंगफली में मौजूद पोषक तत्वों से शरीर को विटामिन डी और कैल्शियम मिलता है। बादाम के बदले इसका आसानी से सेवन कर सकते हैं।

2.हार्मोन को करें बैलेंस- जब महिला और पुरुषों में हार्मोंस अनबैलेंस्ड हो जाते हैं तब कई प्रकार की शारीरिक समस्या होती है। इसलिए महिला और पुरुष को रोज एक मुट्ठी मूंगफली का सेवन करना चाहिए।
3.कैंसर से बचाएं-

मूंगफली में एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है जिसका नाम है पॉलीफिनॉलिक। इसके सेवन से पेट के कैंसर का खतरा कम हो जाता है। सप्ताह में 1 बार मूंगफली के साथ मक्खन का सेवन करना चाहिए।


4.झुर्रियों को हटाए- मूंगफली खाने से झुर्रियां कम होती है। इसमें मौजूद तत्व चेहरे पर बारीक रेखा और झुर्रियों को बनने से रोकती है।

5.डायबिटीज को करें नियंत्रित- मूंगफली का सेवन करने से डायबिटीज की आशंका कम होती है। रोज अपनी डाइट में इसे जरूर शामिल करना चाहिए। ताकि घातक बीमारियों से बचा जा सकें।

रायपुर / शौर्यपथ / ग्रामीण महिलाओं के जीवन में गौठानों ने आर्थिक संपन्नता का एक नया रंग भर दिया है। ग्रामीण महिलाओं को समूह के माध्यम से एक ही समय में एक से अधिक कार्य करके आर्थिक मजबूती प्राप्त करने का रास्ता गौठानों ने बखूबी दिखाया है। बिलासपुर जिले में 127 गौठानों में 204 स्व सहायता समूह की 1481 महिलाएं आर्थिक रूप से स्वावलम्बी हो गई है एवं अन्य महिलाओं को भी इस दिशा में प्रेरित कर रही है। गौठानों में आजीविका गतिविधियां जिनसे बिलासपुर जिले में 2 करोड़ 72 लाख रूपए से अधिक का कारोबार किया जा चुका है।
गौठानों में वर्मी कम्पोस्ट, सुपर कम्पोस्ट, सामुदायिक बाड़ी, मशरूम उत्पादन, मछली पालन, मुर्गी पालन, बकरी पालन, गोबर दिया, गोबर गमला, अगरबत्ती, साबुन निर्माण सहित अन्य आजीविका गतिविधियां संचालित की जा रही है। जिले में गौठानों के माध्यम से 1 लाख 33 हजार 263 क्विंटल गोबर की खरीदी की जा चुकी है। 18 हजार 670 क्विंटल वर्मी खाद बनाया गया है एवं 16 हजार 301 क्विंटल वर्मी खाद की बिक्री की गई है। इसी प्रकार 14 हजार 172 क्विंटल सुपर कम्पोस्ट बनाया गया है एवं 6 हजार 787 क्विंटल सुपर कम्पोस्ट खाद की बिक्री की जा चुकी है।
जिले की ग्राम शिवतराई की महिलाओं ने कीर्तिमान बनाया है। समूह की महिलाओं ने बीते दो साल में 10 लाख रूपए की खाद एवं साढ़े चार लाख रूपए का केंचुआ बेचकर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर ली है। यहां आशीष महिला स्व सहायता समूह ने मुर्गी पालन से 12 हजार 877 रूपए की आमदनी अर्जित की है। कोटा विकासखण्ड में महामाया महिला स्व सहायता की महिलाओं ने दो वर्षों में 1037 क्विंटल खाद तैयार कर बिक्री की है। सहकारी समितियों में खाद की बिक्री कर इन्हें 10 लाख से अधिक की आमदनी हुई है। बाड़ी विकास के अंतर्गत समूह की महिलाएं 6 एकड़ में सब्जी की खेती कर रही है। हल्दी की बिक्री से उन्हें 25 हजार रूपए का मुनाफा हुआ है। 65 किलोग्राम मशरूम की बिक्री से समूह को 16 हजार 250 रूपए की आमदनी मिली है। बिल्हा विकासखण्ड के सेलर गौठान में शिव शक्ति की महिला समूह ने दोना पत्तल के व्यवसाय से अब तक 74 हजार 200 रूपए की शुद्ध आय अर्जित की है। आसपास के ग्रामीण बाजारों मेें समूह की महिलाओं ने अपनी अच्छी पकड़ मजबूत की है।
बिलासपुर के मस्तूरी विकासखण्ड के कुकदा गौठान में सब्जी उत्पादन कर अन्नपूर्णा स्व सहायता समूह की महिलाओं ने 55 हजार रूपए एवं वर्मी खाद निर्माण से 27 हजार रूपए की आय अर्जित कर ली है। गौठानों को मल्टीएक्टिविटी सेंटर के रूप में विकसित किया जा रहा है ताकि अधिक से अधिक स्व सहायता समूहों का आजीविका के क्षेत्र में बेहतर विकास किया जा सके।

शौर्यपथ /लाल किताब के ज्योतिष में अक्सर किसी जातक की कुंडली या हाथ देखकर उसको नाक छिदवाकर उसमें 43 दिनों तक चांदी का तार डालने की सलाह देते हैं। आखिर नाक क्यों और कब छिदवाते हैं और क्या है इसकी सावधानी आओ जानते हैं।
क्यों छिदवाते हैं नाक : यदि आपकी कुंडली में बुध या चंद्र छठे या आठवें भाव में होकर पीड़ित है या किसी भी अन्य भाव में दूषित हो रहे हैं तो नाक छिदवाते हैं। मूलत: यह उपाय बुध को ठीक करने के लिए किया जाता है। बुध खाना नंबर 9 में हो या बुध खाना नंबर 12 में बैठा हो तो नाक छिदवाते हैं। हालांकि यहां लाल किताब के अनुसार इससे बुध नष्ट होकर चंद्र स्थापित हो जाता है।
लाल किताब अनुसार नाक का अगला सिरा बुध का और पूरी नाक ही बृहस्पति की होती है। नाक से जो वायु का आवागमन हो रहा है वह बृहस्पति की वायु है। इसीलिए नाक का साफ सुथरा होना जरूरी है। आपकी सांसों में रुकावट है तो यह रुकावट गुरु की है। इससे बुध पर भी बुरा असर होता है। सांसों को या गुरु को रोकने वाला राहु होता है। बुध का खराब होना व्यापार और नौकरी में नुकसान और गुरु का खराब होगा भग्य और प्रगति में बाधा मानी जाती है। अत: नौकरी या व्यापार में उन्नति के लिए नाक छिदवाते हैं।
बुध के दूषित होने से अक्ल पर ताले लग जाते हैं और व्यापार एवं नौकरी में हानी होती है और चंद्र के दूषित होने से सभी तरह का सुख और शांति का नाश हो जाता है। गुरु के दूषित होने से भाग्य में रुकावट आती है और बनते कार्य भी बिगड़ जाते हैं। इसीलिए यह नाक छिदवाते हैं।
कब छिदवाते हैं : मुहूर्त और नक्षत्र देखकर बुधवार की शाम को नाक छेदकर उसमें चांदी का तार डालें और फिर बृस्पति के दिन मंगल का दान यानी की पताशे की मीठाई, लड्डू इनका दान करना भी जरूरी है।
सावधानी : यदि आपका कारोबार ही बुध या राहु से संबंधित है और राहु आपका उच्च का है तो आपको किसी लाल किताब के ज्योतिष के पूछकर ही यह उपाय करना चाहिए। नाक छेदन का उपाय कुंडली में राहु और बुध की स्थिति को देखकर ही करना चाहिए अन्यथा नुकसान हो सकता है।

आस्था / शौर्यपथ /इस बार पितृ पक्ष 20 सितंबर 2021, सोमवार से प्रारंभ होकर 6 अक्टूबर 2021, बुधवार को समापन होगा। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्राद्ध पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक कुल 16 दिनों तक चलता है। उक्त 16 दिनों में हर दिन अलग-अलग लोगों के लिए श्राद्ध होता है। आओ जानते हैं कि किस तिथि में करते हैं किसका श्राद्ध।
श्राद्ध की 16 तिथियां- पूर्णिमा, प्रतिपदा, द्वि‍तीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या।
कब करते हैं मृतकों का श्राद्ध : उक्त किसी भी एक तिथि में आपके परिजन की मृत्यु होती है चाहे वह कृष्ण पक्ष की तिथि हो या शुक्ल पक्ष की। श्राद्ध में जब यह तिथि आती है तो जिस तिथि में जातक की मृत्यु हुई है उस तिथि में उसका श्राद्ध करने का विधान है। श्राद्ध दोपहर में ही करते हैं। लेकिन इसके अलावा भी यह ध्यान देना चाहिए कि नियम अनुसार किस दिन किसके लिए और कौन सा श्राद्ध करना चाहिए?
1. पूर्णिमा को मृत्यु प्राप्त जातकों का श्राद्ध केवल भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा अथवा आश्विन कृष्ण अमावस्या को किया जाता है। इसे प्रोष्ठपदी पूर्णिमा भी कहा जाता हैं। यदि निधन पूर्णिमा तिथि को हुई हो तो उनका श्राद्ध अष्टमी, द्वादशी या सर्वपितृ अमावस्या को किया जा सकता है।
2. सौभाग्यवती स्त्री की मृत्यु पर नियम है कि उनका श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए, क्योंकि इस तिथि को श्राद्ध पक्ष में अविधवा नवमी माना गया है।
3. यदि माता की मृत्यु हो गई हो तो उनका श्राद्ध भी नवमी तिथि को कर सकते हैं। जिन महिलाओं की मृत्यु की तिथि मालूम न हो, उनका भी श्राद्ध नवमी को किया जाता है। इस दिन माता एवं परिवार की सभी स्त्रियों का श्राद्ध किया जाता है। इसे मातृ नवमी श्राद्ध भी कहा जाता है।
4. इसी तरह एकादशी तिथि को संन्यास लेने वाले व्य‍‍‍क्तियों का श्राद्ध करने की परंपरा है, जबकि संन्यासियों के श्राद्ध की ति‍थि द्वादशी (बारहवीं) भी मानी जाती है।
5. श्राद्ध महालय के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को बच्चों का श्राद्ध किया जाता है।
6. जिनकी मृत्यु अकाल हुई हो या जल में डूबने, शस्त्रों के आघात या विषपान करने से हुई हो, उनका चतुर्दशी की तिथि में श्राद्ध किया जाना चाहिए।
7. सर्वपितृ अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है। इसे पितृविसर्जनी अमावस्या, महालय समापन आदि नामों से जाना जाता है।
8. इसके अलावा बच गई तिथियों को उनका श्राद्ध करें जिनका उक्त तिथि (कृष्ण या शुक्ल) को निधन हुआ है। जैसे द्वि‍तीया, तृतीया (महाभरणी), चतुर्थी, षष्ठी, सप्तमी और दशमी।

सेहत / शौर्यपथ / कैंसर सहित किसी भी तरह की गंभीर बीमारी के लिये शल्य चिकित्सा कराना बेहद कठिन होता है, लेकिन अगर इससे पहले रोगी की शारीरिक क्षमता को बढ़ाया जाए, तो उसके कई फायदे सामने आते हैं। इनमें रोगी का बीमारी से तेजी से उबरना जैसे लाभ शामिल हैं। इसके अलावा ऐसा करने से सर्जरी के बाद इलाज के लिये रोगी के अस्पताल में रहने की अवधि में भी कमी आ सकती है। रोगी की शारीरिक क्षमता को बढ़ाने की इस प्रक्रिया को 'प्रीहैबिलिटेशन'' कहते हैं। हमने कैंसर सर्जरी से पहले प्रीहैबिलिटेशन को लेकर मौजूदा अध्ययनों की समीक्षा की। इस दौरान कुल 15 अध्ययनों की समीक्षा की गई। हम यह जानना चाहते थे कि कैंसर सर्जरी के तीन अलग-अलग परिणामों में प्रीहैबिलिटेशन कार्यक्रमों का क्या असर पड़ा। हम जानना चाहते थे कि सर्जरी के बाद रोगियों को कितने समय तक अस्पताल में रहना पड़ा। इसके अलावा हम उनकी शारीरिक हरकतों और साथ ही इस बारे में भी जानना चाहते थे कि क्या उन्हें सर्जरी के बाद दिक्कतों का सामना करना पड़ा या फिर उनकी मौत हो गई।
जिन प्रीहैबिलिटेशन कार्यक्रमों का हमने अध्ययन किया उन्हें तीन अलग-अलग समूहों में रखा गया। इसमें यह देखा गया कि क्या उन्हें व्यायाम अथवा पौष्टिक आहार या फिर दोनों की सलाह दी गई। इसके अलावा इस पहलू को भी देखा गया कि क्या उन्हें इन दोनों के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक सहयोग की भी सलाह दी गई।
इन रोगियों ने विभिन्न प्रकार का व्यायाम किया था, जिनमें एरोबिक कसरत (जैसे साइकिल चलाना या दौड़ना), वजन उठाना और अन्य प्रकार के व्यायाम शामिल थे।
कुछ लोगों ने खेल वैज्ञानिकों या फिजियोथैरेपिस्ट की निगरानी में जबकि कुछ ने अपने आप व्यायाम किया। यह कार्यक्रम एक से चार सप्ताह तक चला।
हम पुख्ता तौर पर तो यह नहीं बता सकते कि इन कार्यक्रमों का अन्य लोगों की तुलना में प्रभावित रोगियों पर कितना असर पड़ा, लेकिन हमारा अध्ययन यह बताता है कि आमतौर पर सर्जरी से पहले किसी व्यक्ति की शारीरिक क्षमताओं को बढ़ाने से उसके ठीक होने की रफ्तार तेज हो जाती है। इससे उनके अस्पताल में रहने की अवधि अपने आप कम हो जाती है। शारीरिक क्षमताओं को बढ़ाना एक महत्वपूर्ण कारक है। प्रत्येक रोगी के लिये अलग-अलग कार्यक्रम बनाए जा सकते हैं।
सर्जरी के बाद कोई रोगी कितनी अच्छी तरह बीमारी से उबर रहा है, यह विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है। इनमें रोगी की आयु, कैंसर का प्रकार व गंभीरता और कुशल सर्जन जैसे कारक शामिल हैं।

हमने पाया है कि जिगर और अग्नाशय के कैंसर से ग्रस्त जिन लोगों ने प्रीहैबिलिटिशेन का पालन किया, बीमारी से उबरने को लेकर उनकी ओर से विशेष रूप अच्छी प्रतिक्रिया मिली। इन रोगियों को उन रोगियों की तुलना में औसतन दो दिन कम अस्पताल में रहना पड़ा, जिनके पास नियमित रूप से सर्जरी से पहले की देखभाल (जैसे सामान्य व्यायाम और पोषण सलाह आदि) की जानकारी नहीं थी। अच्छी खबर यह है कि प्रीहैबिलिटेशन का असर उन मरीजों पर देखा जा सकता है जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। इसलिए यदि आप सर्जरी से पहले शारीरिक रूप से क्षमतावान नहीं थे, लेकिन समय रहते आपने वह क्षमता हासिल कर ली तो आपको अपने ठीक होने में लाभ मिलने की अधिक संभावना है।

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