October 24, 2025
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शौर्यपथ

शौर्यपथ

सुबह-सुबह बिजली ऑफिस के सामने मैदान पर मिली युवक की लाश, कुछ ही घंटों में कोतवाली पुलिस ने आरोपी नाबालिक को पकड़ा — नशे के कारण बढ़ रहे अपराधों पर अब सामाजिक जागरूकता की दरकार

   दुर्ग। शौर्यपथ।दुर्ग नगर के मोहलई क्षेत्र में शनिवार की सुबह उस समय सनसनी फैल गई जब बिजली ऑफिस के सामने स्थित मैदान में एक युवक का शव संदिग्ध अवस्था में मिला। मृतक की पहचान अनिल यादव के रूप में की गई है। बताया जाता है कि अनिल यादव के सिर पर डंडों और पत्थरों से हमला किया गया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई।

घटना की सूचना मिलते ही कोतवाली थाना प्रभारी तापेश्वर नेताम पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंचे और तत्काल जांच शुरू की। महज कुछ घंटों की जांच के बाद यह सनसनीखेज खुलासा हुआ कि यह हत्या किसी पुरानी रंजिश का नहीं बल्कि नशे की हालत में हुए छोटे से विवाद का नतीजा थी।

पुलिस जांच में सामने आया कि मृतक नशे की हालात मे था । आपसी कहासुनी के दौरान आरोपी ने अनिल यादव के सिर पर डंडे से वार किया और बाद में पत्थर से सिर कुचल दिया। कोतवाली पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए आरोपी को चंद घंटों में गिरफ्तार कर लिया, जिससे क्षेत्र में मची सनसनी के बीच लोगों ने राहत की सांस ली और पुलिस की सराहना की।

थाना प्रभारी तापेश्वर नेताम ने बताया कि वरिष्ठ अधिकारियों के मार्गदर्शन में टीम ने तेजी से जांच पूरी कर आरोपी को हिरासत में लिया। उन्होंने कहा कि इस घटना ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि नशाखोरी आज समाज में अपराध का प्रमुख कारण बनती जा रही है।

समाज के लिए संदेश:

यह घटना केवल एक हत्या की कहानी नहीं, बल्कि समाज के सामने एक गहरा सवाल खड़ा करती है —

आख़िर हम कब नशे के खिलाफ जागेंगे?

आज का युवा नशे की गिरफ्त में अपने भविष्य को नहीं, बल्कि दूसरों की जिंदगी भी बर्बाद कर रहा है। शासन-प्रशासन के प्रयासों के साथ-साथ अब समाज को भी आगे बढ़कर इस बुराई के खिलाफ मोर्चा खोलना होगा।

नशे पर लगाम लगेगी, तो अपराध भी कम होंगे।

अब समय है कि हर नागरिक, हर परिवार, हर समाज अपने स्तर पर इस लड़ाई में शामिल हो — ताकि आने वाली पीढ़ी नशे से मुक्त और सुरक्षित जीवन जी सके।

 

​दुर्ग पुलिस के 6 'अपनों' को सम्मान सहित विदाई, SSP बोले: आप पुलिस परिवार की प्रेरणा हैं

​दुर्ग,। शौर्यपथ।: दिवाली की जगमगाहट हो या होली के रंग, समाज में शांति और सुरक्षा की जो अटूट डोर बंधी रहती है, उसके पीछे 'खाकी के सिपाही' की वर्षों की अथक तपस्या और कुर्बानी होती है। एक पुलिसकर्मी का जीवन सिर्फ ड्यूटी नहीं, बल्कि समाज की ढाल बनकर अपने त्योहारों और खुशियों को कुर्बान कर देने की अमर गाथा है।

​आज दुर्ग पुलिस परिवार में ऐसे ही छह जांबाज़ों के लिए एक बेहद भावुक और सम्मानजनक क्षण आया, जब वे वर्षों की गौरवशाली सेवा के बाद सेवानिवृत्त होकर अपने परिवारों के साथ नई जिंदगी का सफर शुरू करने जा रहे हैं।

​कर्तव्य पथ पर 40 साल की तपस्या

​वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यालय, 30 सितम्बर 2025 को दुर्ग में आयोजित इस विदाई समारोह में 02 सहायक उप निरीक्षक (ASI रामचंद कंवर और ASI बसंत राम भोई), 03 प्रधान आरक्षक (प्रधान आरक्षक 1297 रमन लाल, 1028 हरख राम और 811 सेमसन मसीह) और 01 आरक्षक (आरक्षक 273 प्रमोद कुमार शर्मा) को ससम्मान विदाई दी गई। इन सभी अधिकारियों/कर्मचारियों ने लगभग 35 से 40 वर्षों तक पुलिस विभाग में अपनी अमूल्य सेवाएँ दीं।

​समारोह में जब सेवानिवृत्त हो रहे इन अधिकारियों ने अपनी सेवा के अनुभव साझा किए, तो माहौल भावुक हो गया। यह सिर्फ नौकरी नहीं थी; यह देश, समाज और हर नागरिक की सुरक्षा के लिए समर्पित किया गया जीवन था। इन कहानियों में त्याग, समर्पण, और वर्दी के प्रति निष्ठा की महक थी।

​SSP का नमन: 'आप हमारे परिवार की प्रेरणा हैं'

​वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, दुर्ग श्री विजय अग्रवाल, भापुसे., ने सभी सेवानिवृत्त कर्मियों और उनके परिवार के सदस्यों का पुष्पगुच्छ से स्वागत किया। अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा, "आप सभी ने पुलिस विभाग में पूर्ण क्षमता और निष्ठा से इतने वर्षों तक जो कार्य किया है, उसके लिए मैं हृदय से आपकी प्रशंसा करता हूँ और पुलिस विभाग की ओर से हार्दिक अभिनंदन करता हूँ।"

​उन्होंने जोर देकर कहा कि सेवानिवृत्त हो रहे अधिकारियों द्वारा साझा किए गए अनुभव और उनकी बातें हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उन्होंने कहा, "हम सभी एक परिवार के रूप में हैं, और जब कभी भी पुलिस विभाग से सेवानिवृत्त हो रहे अधिकारी/कर्मचारियों को हमारी आवश्यकता होगी, हम सदैव मदद के लिए तत्पर रहेंगे।"

​श्री विजय अग्रवाल ने सभी सेवानिवृत्त योद्धाओं और उनके परिजनों को शाल एवं श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया और उनके उज्जवल भविष्य की कामना की।

​आम जनता के लिए संदेश

​यह समारोह पुलिस और आम जनता दोनों के लिए एक गहरा संदेश देता है: 'खाकी' का हर जवान हमारे समाज की अदृश्य नींव है, जिस पर हम सुरक्षित और आनंदमय जीवन जीते हैं। जब हम बिना विवाद के त्यौहार मनाते हैं, राजनीतिक और धार्मिक आयोजनों में शांति का अनुभव करते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि एक पुलिसकर्मी ने अपनी खुशियों को दांव पर लगाया है।

​सेवानिवृत्ति एक अधिकारी के जीवन में एक नया अध्याय है, जहां वे अब समाज के लिए किए गए अपने महान कार्य के गौरव के साथ अपने परिवार के सपनों को पूरा करेंगे।

​इस भावुक अवसर पर श्री अभिषेक झा, रापुसे. (अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, ग्रामीण), श्री चन्द्र प्रकाश तिवारी (उप पुलिस अधीक्षक, लाईन), श्री विनोद मिन्ज (उप पुलिस अधीक्षक, मुख्यालय) सहित पुलिस परिवार के सभी सदस्य उपस्थित थे।

​बधाई और शुभकामनाएँ! आपकी सेवाएँ सदैव अविस्मरणीय रहेंगी।

    दुर्ग / शौर्यपथ / दुर्ग नगर निगम के वार्ड नंबर 4 में कभी एक खूबसूरत तालाब पुसई डबरी के नाम से बसा करता था, जो न केवल जल संरक्षण का स्रोत था बल्कि आसपास के लोगों के लिए जीवन रेखा भी था। आज यह जगह टूटी हुई ईंटों, अधूरे मकानों और कचरे के ढेर में बदल गई है। यह केवल एक तालाब की कहानी नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही, राजनीतिक गठजोड़ और भ्रष्टाचार के उस सिस्टम का जीता-जागता उदाहरण है, जो संविधान और कानून को पैसों व सत्ता के नीचे कुचल देता है।
सरकारी योजनाओं के विपरीत जमीनी सच्चाई
   राज्य और केंद्र सरकार तालाबों के संरक्षण के लिए करोड़ों रुपये की योजनाएं चला रही हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका उल्टा हो रहा है। करोड़ों की कीमत वाली शासकीय भूमि खसरा नंबर 838 को भरकर भूखंडों में बांट दिया गया और अब यहाँ अवैध निर्माण धड़ल्ले से जारी है। निगम प्रशासन ने यहां सरकारी बोर्ड लगाकर चेतावनी दी, लेकिन कब्जाधारियों ने उसे उखाड़ फेंका — जैसे इस भूमि पर लिखे कानून को भी मिटा दिया हो।

 

कार्रवाई पर लगाम डालता राजनीतिक दबाव
  निगम कर्मचारी जब भी यहाँ तोड़फोड़ और कब्जा हटाने पहुंचते हैं, कहीं न कहीं से राजनीतिक दबाव आकर उनकी कार्रवाई रोक देता है। ट्रिपल इंजन वाली सरकार के इस इलाके में सत्ता पक्ष पर ही संरक्षण देने का आरोप लग रहा है। सवाल यह है कि जब सरकारी कर्मचारी ही राजनीतिक दबाव के डर से कार्रवाई नहीं कर पा रहे, तब आम नागरिक कैसे न्याय की उम्मीद करे?
जनप्रतिनिधियों की चुप्पी, कब्जाधारियों का हौसला
स्थानीय जनप्रतिनिधि, जो मंचों पर सुशासन और विकास के वादे करते हैं, इस मामले में मौन हैं। उनका यह मौन ही भ्रष्टाचारियों के हौसले को ऊंचा कर रहा है। तालाब की जमीन पर अवैध कॉलोनी खड़ी हो रही है और प्रशासन का रवैया मानो यह संदेश दे रहा है: “पैसा और राजनीतिक ताकत हो तो कानून को झुकाया जा सकता है।”
संविधान की शक्ति बनाम भ्रष्ट ताकतें
यह मामला केवल एक अवैध कब्ज़े का नहीं, बल्कि संविधान और लोकतंत्र की बुनियाद के सामने खड़ी होती भ्रष्ट ताकतों का परीक्षण है। अगर आज इस पुसई डबरी को बचाने और दोषियों को सज़ा दिलाने की पहल नहीं हुई, तो यह उदाहरण आने वाले वर्षों में और दर्जनों सरकारी भूमि हथियाने का रास्ता खोल देगा।
बड़ा सवाल
क्या सरकार, प्रशासन और जनप्रतिनिधि मिलकर इस ऐतिहासिक तालाब को उसके मूल स्वरूप में वापस लाकर यह संदेश देंगे कि “संवैधानिक शक्तियां सबसे ऊपर हैं”, या फिर सत्ता और पैसे का गठजोड़ इस तालाब को हमेशा के लिए निगल जाएगा?
यह केवल गया नगर का सवाल नहीं — यह पूरे प्रदेश के सुशासन की असल परीक्षा है।

दुर्ग। शौर्यपथ । शहर के मोहलई क्षेत्र में बिजली ऑफिस के ठीक सामने आज सुबह एक अज्ञात युवक की लाश मिलने से सनसनी फैल गई। त्योहारी माहौल के बीच इस घटना से पूरे इलाके में दहशत और जिज्ञासा का माहौल बन गया है।

घटना की सूचना मिलते ही कोतवाली थाना प्रभारी तापेश्वर नेताम के मार्गदर्शन में पुलिस टीम मौके पर पहुंची और जांच शुरू कर दी है। शुरुआती जांच में हत्या की आशंका जताई जा रही है, हालांकि पुलिस ने कहा है कि अंतिम निष्कर्ष पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और जांच के बाद ही सामने आएगा।

मृतक की उम्र लगभग 35 से 40 वर्ष बताई जा रही है, जिसकी पहचान अभी तक नहीं हो सकी है। पुलिस आसपास के इलाकों में सीसीटीवी फुटेज खंगाल रही है और स्थानीय लोगों से पूछताछ भी जारी है।

त्योहारों के बीच ऐसी वारदात ने इलाके की शांति भंग कर दी है। फिलहाल कोतवाली पुलिस मौके पर डटी हुई है और हर पहलू को खंगाल रही है — यह हत्या है या किसी अन्य कारण से हुई मौत, जांच के बाद तस्वीर साफ होगी।

कोंडागांव। शौर्यपथ से दीपक वैष्णव की विशेष रिपोर्ट।

  छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में मुख्यमंत्री समग्र ग्रामीण विकास योजना के तहत स्वीकृत मिनी स्टेडियम निर्माण में भारी भ्रष्टाचार और वसूली घोटाला उजागर हुआ है। बड़ेकनेरा और राजागांव ग्राम पंचायतों में कुल 26 लाख 9 हजार 791 रुपये की वसूली का मामला जांच में सामने आया है, जिसने स्थानीय शासन प्रणाली की विश्वसनीयता पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं।

मामले की पड़ताल में यह तथ्य सामने आया कि दोनों पंचायतों ने बिना निर्माण मूल्यांकन और कार्य पूर्णता के पहली किस्त की भारी राशि ठेकेदार को जारी कर दी, वह भी कथित रूप से जिला पंचायत के दो अधिकारियों के दबाव में।


? क्या हुआ था खेल मैदान के नाम पर खेल?

सूत्रों और पंचायत सचिवों के लिखित बयान के अनुसार,
मुख्यमंत्री समग्र विकास योजना के अंतर्गत बड़ेकनेरा और राजागांव ग्राम पंचायतों को 31 लाख 61 हजार रुपये की प्रशासनिक स्वीकृति मिली थी। इसका उद्देश्य था—ग्रामीण युवाओं के लिए खेल सुविधा हेतु मिनी स्टेडियम का निर्माण।

लेकिन योजना का “मैदान” अभी तक धरातल पर नजर नहीं आया, जबकि पैसा उड़ान भर गया।
ग्राम पंचायत बड़ेकनेरा और राजागांव, दोनों ने ही लगभग 15.80 लाख रुपये की राशि कार्य प्रारंभ से पहले ही ठेकेदार को चेक के माध्यम से दे दी।


⚠️ अधिकारियों के दबाव की बात, ठेकेदार ‘नियत’ बताया गया

दोनों पंचायत सचिवों ने जांच में साफ कहा है कि —

“जिला पंचायत कार्यालय में पदस्थ सहायक परियोजना अधिकारी गजेन्द्र कश्यप और डाटा एंट्री ऑपरेटर मनीष पटेल के कहने पर ही राशि ठेकेदार विवेक कुमार गावड़े (ग्राम ठाकुरटोला, जिला राजनांदगांव) को दी गई। उन्होंने कहा था कि यही ठेकेदार कार्य करेगा।”

इस बयान ने जिला पंचायत कार्यालय तक भ्रष्टाचार की परतें खोल दी हैं।


? अब सवालों की फेहरिस्त लंबी और जवाब अधूरा —

  • जब निर्माण कार्य का मूल्यांकन ही नहीं हुआ, तो ठेकेदार को इतनी बड़ी रकम क्यों और किस अधिकार से दी गई?

  • क्या यह पूरा प्रकरण पंचायतों और जिला पंचायत अधिकारियों की मिलीभगत का परिणाम नहीं है?

  • आखिर वसूली की प्रक्रिया कब शुरू होगी, जबकि जांच में तथ्य स्पष्ट हो चुके हैं?

  • क्या इस प्रकार का “कागजी विकास” ही नया प्रशासनिक मॉडल बन गया है?


?️ प्रशासन का जवाब – “जांच जारी, दोषी बचेंगे नहीं”

इस पूरे मामले पर जब शौर्यपथ ने अनुविभागीय अधिकारी अजय उरांव से चर्चा की, तो उन्होंने कहा —

“जांच जारी है, और जो भी दोषी पाया जाएगा, उससे वसूली की जाएगी — चाहे वह प्रशासनिक अधिकारी ही क्यों न हो।”

लेकिन यह कथन भी अब जनता के मन में भरोसा नहीं जगा पा रहा। कारण साफ है — घोटाले का पैसा चला गया, मैदान बना नहीं, और कार्रवाई अब तक अधर में।


? जनता पूछ रही — वसूली कब, जिम्मेदारी किसकी?

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की जनहित नीति और विकास की पारदर्शी छवि को ऐसे मामले कलंकित कर रहे हैं। अगर शासन ने तत्काल सख्त कार्रवाई नहीं की, तो यह घोटाला आने वाले समय में ग्रामीण विकास योजनाओं की विश्वसनीयता पर स्थायी चोट कर सकता है।


? निष्कर्ष / संपादकीय टिप्पणी

कोंडागांव का यह मामला केवल “एक पंचायत” की कहानी नहीं, बल्कि यह बताता है कि विकास योजनाओं की जड़ें जब ईमानदारी से नहीं सींची जातीं, तो भ्रष्टाचार का पौधा स्वयं फल देने लगता है।
अब सवाल सिर्फ 26 लाख की वसूली का नहीं — बल्कि जनधन की रक्षा और प्रशासनिक जवाबदेही की पुनःस्थापना का है।

संघ मुख्यमंत्री से दोषियों पर कठोरतम कार्रवाई की करेगा मांग : बालमुकुन्द तम्बोली
यह हमला एक अधिकारी पर नहीं, पूरे प्रशासनिक तंत्र पर है : जनसंपर्क अधिकारी संघ

 रायपुर / शौर्यपथ /

   छत्तीसगढ़ जनसंपर्क अधिकारी संघ के अध्यक्ष श्री बालमुकुंद तंबोली ने छत्तीसगढ़ संवाद कार्यालय, नवा रायपुर में विभागीय अपर संचालक श्री संजीव तिवारी के साथ हुई अभद्रता, झूमा-झटकी, गाली-गलौज, तोडफ़ोड़ और धमकी की घटना की कटु शब्दों में निंदा की है। उन्होंने कहा कि यह केवल एक जनसंपर्क अधिकारी पर हमला और शासकीय कार्य में बाधा पहुँचाने का ही मामला नहीं हैं, बल्कि पूरे जनसंपर्क विभाग की संस्थागत गरिमा पर सीधा आघात है।
  छत्तीसगढ़ जनसम्पर्क अधिकारी संघ के अध्यक्ष श्री तंबोली ने इस घटना को योजनाबद्ध और सोची-समझी साजिश करार दिया। उन्होंने कहा कि हमलावरों का एक साथ शासकीय कार्यालय में घुसना, वरिष्ठ अधिकारी के साथ अभद्रता करना, सरकारी संपत्ति को क्षतिग्रस्त करना और खुलेआम धमकियां देना इस बात का प्रमाण है कि कुछ असामाजिक तत्व पत्रकारिता की आड़ में गुंडागर्दी कर रहे हैं।
  श्री तंबोली ने कहा कि जनसंपर्क विभाग शासन द्वारा संचालित जनकल्याणकारी योजनाओं का समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक पहुँचाने का कार्य करता है। छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग के अधिकारी पूरी प्रतिबद्धता के साथ न सिर्फ शासन और समाज के लिए कार्य करते हैं बल्कि पत्रकारों के हित में सदैव तत्पर रहते हैं, ऐसी स्थिति में पत्रकारिता के नाम पर कानून को हाथ में लेने वाले असामाजिक तत्वों के विरुद्ध कठोरतम कार्रवाई अत्यंत आवश्यक है।
 छत्तीसगढ़ जनसंपर्क अधिकारी संघ ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार की घटनाएँ केवल किसी अधिकारी की व्यक्तिगत गरिमा पर ही नहीं, बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र पर हमला हैं। संघ ने मांग की है कि इस प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच कर दोषियों को तत्काल गिरफ्तार किया जाए। घटना में शामिल व्यक्तियों पर भारतीय न्याय संहिता की कठोर धाराओं के तहत अपराध दर्ज कर कड़ी कार्रवाई की जाए।
  छत्तीसगढ़ जनसम्पर्क अधिकारी संघ के अध्यक्ष श्री तंबोली ने कहा कि प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय जी जनसंपर्क विभाग के भी भारसाधक मंत्री हैं, उनके नेतृत्व में जनसंपर्क विभाग के प्रत्येक अधिकारी कर्मचारी पूरी निष्ठा से कार्य करते हैं, ऐसे में माननीय मुख्यमत्री जी से आग्रह है कि वह इस विषय में दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई सुनिश्चित करने की कृपा करें, साथ ही विभागीय अधिकारियों एवं कर्मचारियों को सुरक्षा एवं अपना संरक्षण प्रदान करें। संघ ने यह भी निर्णय लिया है कि शीघ्र ही मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय से प्रतिनिधिमंडल भेंट करेगा।
  संघ के अध्यक्ष श्री तंबोली ने कहा कि यदि दोषियों पर शीघ्र और ठोस कार्रवाई नहीं की गई, तो जनसंपर्क विभाग का प्रत्येक अधिकारी और कर्मचारी राज्यव्यापी विरोध आंदोलन करने के लिए बाध्य होगा।

देशभर से जुटेंगे सिख मार्शल आर्ट के योद्धा, सिख परंपरा के शौर्य और अनुशासन का होगा प्रदर्शन

भिलाई।शौर्यपथ । सिख मार्शल आर्ट गतका की ध्वजा एक बार फिर छत्तीसगढ़ की औद्योगिक नगरी भिलाई में फहराने जा रही है। शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025 को 13वीं नेशनल गतका चैम्पियनशिप का भव्य उद्घाटन समारोह गुरुनानक इंग्लिश सीनियर सेकेंडरी स्कूल, सेक्टर-6 में प्रातः 10 बजे से आरंभ होगा।

इस राष्ट्रीय आयोजन के मुख्य अतिथि दुर्ग लोकसभा सांसद  विजय बघेल होंगे, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एवं वरिष्ठ नेता  प्रेम प्रकाश पांडेय करेंगे।

नेशनल गतका एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष श्री हरजीत सिंह ग्रेवाल और छत्तीसगढ़ सिख पंचायत के चेयरमैन श्री जसवीर सिंह चहल विशिष्ट अतिथि के रूप में समारोह में शामिल होंगे।

आयोजन की व्यवस्था न्यू गतका स्पोर्ट्स एसोसिएशन छत्तीसगढ़ द्वारा की जा रही है।
संस्था के अध्यक्ष इंदरजीत सिंह (छोटू), महासचिव जरवण सिंह खालसा, और कोषाध्यक्ष मलकीत सिंह (लल्लू) ने बताया कि इस प्रतियोगिता में देशभर से आने वाले खिलाड़ियों के बीच पारंपरिक शौर्यकला का रोमांचक प्रदर्शन देखने को मिलेगा।

गतका केवल युद्धकला नहीं, बल्कि सिख परंपरा, अनुशासन और आत्मसंयम का प्रतीक है। आयोजकों ने कहा —

“हमारा उद्देश्य गतका के माध्यम से युवाओं में साहस, सम्मान और सेवा की भावना को जागृत करना है।”

कार्यक्रम में शहर और प्रदेश के अनेक गुरुद्वारा समितियाँ, युवा सेवा संस्थान, तथा खेल प्रेमी बड़ी संख्या में शामिल होंगे। आयोजन समिति ने समस्त नागरिकों से अपील की है कि वे अपनी उपस्थिति से इस ऐतिहासिक क्षण की शोभा बढ़ाएं।

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास की गति तेज करने के लिए सरकार सतत प्रयासरत – मुख्यमंत्री साय

रायपुर / शौर्यपथ / बस्तर अंचल को महाराष्ट्र से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 130-डी के निर्माण को नई गति मिली है। छत्तीसगढ़ शासन ने कुतुल से नीलांगुर (महाराष्ट्र सीमा) तक 21.5 किलोमीटर हिस्से के निर्माण के लिए टेंडर प्रक्रिया पूरी कर ली है। इस सड़क के निर्माण के लिए न्यूनतम टेंडर देने वाले ठेकेदार से अनुबंध की प्रक्रिया शर्तों सहित पूरी करने के निर्देश लोक निर्माण विभाग मंत्रालय द्वारा प्रमुख अभियंता, राष्ट्रीय राजमार्ग परिक्षेत्र रायपुर को दिए गए हैं। कुल तीन खंडों में निर्मित होने वाले 21.5 किलोमीटर सड़क के निर्माण हेतु लगभग 152 करोड़ रुपए न्यूनतम टेंडर दर प्राप्त हुई है, जिसे छत्तीसगढ़ शासन ने मंजूरी प्रदान कर दी है।

यह उल्लेखनीय है कि कुतुल, नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ क्षेत्र में स्थित है और कुतुल से महाराष्ट्र सीमा पर स्थित नीलांगुर की दूरी 21.5 किलोमीटर है। यह नेशनल हाईवे 130-डी का हिस्सा है। इस सड़क का निर्माण टू-लेन पेव्ड शोल्डर सहित किया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि एनएच-130डी राष्ट्रीय राजमार्ग है, जिसकी कुल लंबाई लगभग 195 किलोमीटर है। यह एनएच-30 का शाखा मार्ग (स्पर रूट) है। यह कोण्डागांव से शुरू होकर नारायणपुर, कुतुल होते हुए नीलांगुर (महाराष्ट्र सीमा) तक जाता है। आगे महाराष्ट्र में यह बिंगुंडा, लहरे, धोदराज, भमरगढ़, हेमा, लकासा होते हुए आलापल्ली तक पहुँचता है, जहाँ यह एनएच-353डी से जुड़ जाता है। इस मार्ग के विकसित होने से बस्तर क्षेत्र सीधे राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क से जुड़ जाएगा और व्यापार, पर्यटन एवं सुरक्षा को बड़ी मजबूती प्राप्त होगी।

नेशनल हाईवे 130-डी का कोण्डागांव से नारायणपुर तक का लगभग 50 किमी हिस्सा निर्माणाधीन है। नारायणपुर से कुतुल की दूरी 50 किमी है और वहाँ से महाराष्ट्र सीमा स्थित नीलांगुर तक 21.5 किमी की दूरी है। इस राष्ट्रीय राजमार्ग की कुल लंबाई 195 किमी है, जिसमें से लगभग 122 किमी का हिस्सा कोण्डागांव-नारायणपुर से कुतुल होते हुए नीलांगुर तक छत्तीसगढ़ राज्य में आता है। इस सड़क के बन जाने से बस्तर अंचल को महाराष्ट्र से सीधा और मजबूत सड़क संपर्क मिलेगा तथा नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षित एवं सुगम यातायात सुविधा सुलभ हो सकेगी।

 प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के सहयोग से इस नेशनल हाईवे के अबूझमाड़ इलाके में स्थित हिस्से के लिए फॉरेस्ट क्लियरेंस और निर्माण की अनुमति प्राप्त हुई, जिससे इस महत्वाकांक्षी परियोजना के निर्माण का रास्ता खुल गया है। राष्ट्रीय राजमार्ग 130-डी केवल सड़क नहीं बल्कि बस्तर अंचल की प्रगति का मार्ग है। हमारी सरकार ने इस परियोजना को तेजी देने के लिए लगातार प्रयास किए हैं। इस सड़क से बस्तर के लोगों को सीधा लाभ मिलेगा। यह सड़क न केवल छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र को जोड़ेगी, बल्कि बस्तर अंचल के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में भी अहम भूमिका निभाएगी। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास की गति तेज करने के लिए यह परियोजना मील का पत्थर साबित होगी।

 - मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय

बीजापुर के 32 पूर्व माओवादियों ने सीखा कुक्कुटपालन और बकरीपालन का गुर
समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए शासन की अभिनव पुनर्वास नीति से मिल रहा लाभ  

रायपुर / शौर्यपथ / माओवाद का रास्ता छोड़कर समाज की मुख्यधारा में लौटे बीजापुर जिले के 32 आत्मसमर्पित माओवादियों ने अब विकास और स्वरोजगार की ओर एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है। इन सभी ने जगदलपुर स्थित क्षेत्रीय स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान में एक महीने का कुक्कुटपालन और बकरीपालन का विशेष प्रशिक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया है। इस प्रशिक्षण के माध्यम से पूर्व नक्सलियों ने न केवल पशुपालन के वैज्ञानिक तरीके सीखे, बल्कि एक सफल उद्यमी बनने की बारीकियों को भी जाना। एक माह की गहन ट्रेनिंग में आत्मसमर्पित माओवादियों को कुक्कुटपालन और बकरीपालन से संबंधित हर महत्वपूर्ण जानकारी दी गई। यहां उन्होंने उन्नत नस्लों का चयन, चारा प्रबंधन और संतुलित आहार की जानकारी, टीकाकरण, रोगों की पहचान और उपचार के तरीके के साथ सरकारी योजनाओं का लाभ लेने, ऋण प्राप्त करने और अपने उत्पादों को बाजार तक पहुंचाने की रणनीति के संबंध में प्रशिक्षण लिया।


 प्रशिक्षण लेने वाले एक आत्मसमर्पित माओवादी ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि जंगल में जीवन बहुत मुश्किल और खाली था। प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय की पहल पर आत्मसमर्पित माओवादियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए जो पुनर्वास नीति बनाई गई है, वह एक अभिनव प्रयास है। जिससे अब हम अपने हाथों से काम करके परिवार के लिए एक स्थिर और सम्मानजनक जीवन-यापन कर सकते हैं। सरकार के इस कदम से हमें बहुत हिम्मत मिली है।

दुर्ग / शौर्यपथ /
  दुर्ग नगर निगम की हालिया योजना — नगर के 40 सुलभ शौचालयों को दो जोन में बाँटकर सिर्फ दो एजेंसी के माध्यम से संचालित कराने के फैसले — स्थानीय महिला स्व सहायता समूहों / एन जी ओ के लिए भंवर बनती नजर आ रही है। 24 अक्तूबर को होने वाली निविदा खोलने से ठीक पहले संचालन कर रहीं दर्जनों समूहों में भारी असमंजस और भय व्याप्त है कि दीपावली के बाद लगभग 38 समूहों का रोजगार ठप हो सकता है।
प्रमुख तथ्य (Quick facts)
कुल शौचालय: 40 (दुर्ग नगर निगम क्षेत्र)।
निविदा जमा की अंतिम तिथि: 24 अक्तूबर।
निगम ने शौचालयों को दो जोन में बाँटकर टेंडर निकालने का निर्णय लिया है — केवल दो एजेंसी को कॉन्ट्रैक्ट दिया जाएगा।
स्थानीय संचालक: अभी कई शौचालय महिला स्व सहायता समूह चला रहे हैं।

नियम-आधार: टेंडर में 24×7 संचालन, केयरटेकर की वर्दी व नेम प्लेट, रजिस्टर संधारण जैसे लगभग दो दर्जन बिंदु पालन अनिवार्य बताए गए हैं — पर मौजूदा स्थिति में इन नियमों का पालन सीमित रहा है।

क्या है मामला?

  निगम की नई प्रक्रिया के तहत 40 शौचालयों को दो जोन में बांटकर उनकी देखरेख व संचालन केवल दो एजेंसी—ठेकेदारों के हवाले करने का निर्णय पारित किया गया है। इन शौचालयों में अब तक कई महिला स्वयं सहायता समूह दैनिक आधार पर सफाई, रखरखाव और संचालन का काम करते आए हैं। नई व्यवस्था लागू होने पर इन छोटे-छोटे समूहों की जगह बड़ी एजेंसियां ले लेंगी — और परिणामस्वरूप लगभग 38 समूह बेरोजगार हो सकते हैं, यह आशंका स्थानीय स्तर पर गूंज रही है।
 स्थानीय संचालकियों का कहना है कि उन्होंने वर्षों से यही काम किया है, उन्हें स्थानीय जरूरतों और शौचालयों के व्यवहार की जानकारी है — पर अब उनकी योग्यता/अनुभव को दरकिनार कर एक केंद्रीकृत मॉडल को लागू किया जा रहा है। दूसरी तरफ नैतिक और प्रशासनिक दृष्‍टि से यह भी कहा जा रहा है कि यदि चुनी गई एजेंसियां नियमों का कठोर पालन करें तो सिटी में स्वच्छता और सुविधा में सुधार भी दिख सकता है — बशर्ते अनुबंध पारदर्शी और जवाबदेह हों।

प्रमुख चिंताएं

1. रोज़गार पर बड़ा प्रभाव — छोटे महिला समूहों को आय का स्रोत समाप्त हो सकता है।
2. पारदर्शिता का अभाव — निविदा प्रक्रिया पहले से तय शर्तों और पक्षपात के आरोपों से ग्रसित दिखाई दे रही है; चर्चा है कि पहले से तय एजेंसियों को लाभ दिए जा सकते हैं।
3. कमीशन-खोरी का खतरा — बड़े कॉन्ट्रैक्ट में कमीशन की संभावना स्थानीय लोगों में चिंता बढ़ा रही है।
4. निगम का अनुपालन और निरीक्षण — 24×7 नियम, केयरटेकर वर्दी, रजिस्टर संधारण जैसे बिंदुओं का अब तक पूरा पालन नहीं हुआ — लेकिन इनका कठोर पालन भी आवश्यक होगा।

दो सम्भावित परिदृश्य

सकारात्मक परिदृश्य: यदि चुनी गई एजेंसियाँ नियमों के अनुरूप हर शौचालय पर कर्मियों की तैनाती, नियमित सफाई, समय-समय पर निरीक्षण और पारदर्शी रिपोर्टिंग करती हैं, तो सार्वजनिक सुविधाओं की गुणवत्ता में सुधार संभव है।

नकारात्मक परिदृश्य: यदि टेंडर प्रक्रिया अपारदर्शी रही और एजेंसियाँ निजी हित साधने के लिए संसाधनों को केंद्रीकृत कर लें, तो न तो स्थानीय समूहों को न्याय मिलेगा और न ही शौचालयों की गुणवत्ता टिकाऊ रूप से सुधरेगी — उल्टा भ्रष्टाचार व कमीशन-खोरी बढ़ सकती है।

शारीरिक व प्रशासनिक चुनौतियाँ

निगम की पहले से चली आ रही कचरा प्रबंधन और सफाई व्यवस्था में जो कमियाँ रही हैं, वे इस नए मॉडल के सफल क्रियान्वयन के सामने बड़ी चुनौती बनेंगी। केवल टेंडर देना और एजेंसी बदलना पर्याप्त नहीं होगा — अनुबंध की मॉनिटरिंग, स्वास्थ्य विभाग का सख्त निरीक्षण और नियमित रिपोर्टिंग-तंत्र आवश्यक हैं।

स्थानीय प्रतिक्रिया और मांग

महिला स्वयं सहायता समूह और नागरिक संगठन अब निगम से पारदर्शिता, निविदा दस्तावेजों की सार्वजनिक उपलब्धता और पूर्व संचालकों के अनुभव को योग्यता मानने की मांग कर रहे हैं। आरोप है कि कुछ समूहों के आवेदन तकनीकी कारणों से खारिज किए जा सकते हैं ताकि चयन पहले से तय एजेंसी को मिल सके — यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि ऐसी कोई गड़बड़ी न हो।

आगे क्या देखने को मिलेगा

24 अक्तूबर को निविदा खुलने के बाद ही स्पष्ट होगा कि कौनसी एजेंसी(यां) विजयी होती हैं और क्या निविदा दस्तावेजों में पारदर्शिता बनी रहती है।
स्थानीय प्रतिनिधियों, समूहों और नागरिकों को भी इस प्रक्रिया पर नजर रखनी होगी — ताकि रोज़गार-क्षति और संभावित भ्रष्टाचार को रोका जा सके।

निष्कर्ष: निर्णय—जो सैद्धान्तिक रूप से स्वच्छता सुधार का माध्यम बन सकता है—वह यदि निष्पक्ष, पारदर्शी और कड़ाई से लागू न किया गया तो 38 के आसपास महिला स्वयं सहायता समूहों के रोजगार के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है। दुर्ग नगर निगम के लिए चुनौती यह है कि वह निविदा प्रक्रिया और बाद के अनुबंध-पालन में इतने पारदर्शी और जवाबदेह बने कि न सिर्फ सेवाओं की गुणवत्ता सुधरे बल्कि स्थानीय हितधारकों — विशेषकर उन महिलाओं — का जीवन-यापन प्रभावित न हो।

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