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बिलासपुर / शौर्यपथ / मरवाही विधानसभा क्षेत्र में कुल 237 मतदान केन्द्र है, और मतदाताओं की संख्या एक लाख 90 हजार 254 के लगभग है। जिसमें से महिलाओं मतदाताओं की संख्या 96 हजार और पुरूष मतदाता 93 हजार के लगभग है। इन मतदाताओं को संभालने के लिए कांग्रेस ने अपने 48 विधायकों को सैक्टरवाईज़ जिम्मेदारी दी है। चार मंत्रियों को ही उतार दिया है। छत्तीसगढ़ एक ऐास प्रदेश है जिसने दो बरा उपचुनाव में मुख्यमंत्री को चुनाव लड़ते देखा। पहली बार विभाजित मध्यप्रदेश के वक्त अर्जुन सिंह ने खरसियां जिला रायगढ़ से चुनाव लड़ा और दुसरी बार छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 2001 में अजीत जोगी ने मरवाही विधानसभा से उपचुनाव लड़ा।
दोनो चुनाव के बीच लंबा अंतराल था, और दो बड़े अंतर थे अर्जुन सिंह के चुनाव में कांग्रेस के विधायक लक्ष्मी पटेल ने इस्तिफा देकर सीट खाली की थी जबकि मरवाही में भाजपा के रामदयाल उईके ने अपनी सीट छोड़ दी थी। खरसियां का उपचुनाव राजनैतिक इतिहास में हमेशा याद किया जाता है। क्योंकि यहां पर अर्जन सिंह जैसे दिग्गज राजनेता को जीत के लिए एड़ीचोटी का जोड़ लगाना पड़ा। वे मात्र 8 हजार वोट से जीत पाए थे और हारने के बावजूद पराजीत प्रत्याशी दिलीप सिंह जुदैव का जुलूस आज भी खरसियां की जनता को याद है। इससे उल्ट कहानी मरवाही की थी। 2001 में मरवाही ने अजीत जोगी ने जीत की जो इमारत खड़ी की वह 2018 तक बढ़ती ही चली गई। फिर चाहे चुनाव अजीत जोगी लड़ रहे हो या अमित जोगी। कभी भी कैसी भी परिस्थिति में जीत का आकड़ा 40 हजार से नीचे नहीं गया। वर्ष 2018 के चुनाव में अजीत जोगी को मात्र एक मतदान के लिए कटरा में हार मिली और वहां भी वे प्रत्याशी से नही नोटा से हारे।
2018 के चुनाव में मरवाही में नोटा को 4 हजार 501 वोट मिला। कटरा में नोटा 89, जोगी 78, कांग्रेस गुलाब सिंह राज 64 और भाजपा अर्चना पोर्ते 58 मत पाएं थे। मरवाही जैसे आदिवासी बहुल्य क्षेत्र में नोटा को प्राप्त होने वाला वोट राजनैतिक पंडितों को आश्र्चय में डालता है। 4 सेक्टरों में कांग्रेस ने जिन लोगों को जिम्मेदारी दी है। उसमें सासंद, संसदीय सचिव और विधायक शामिल है। उत्तर क्षेत्र में के प्रभारी उत्तम वासुदेव और मंत्री गुरू रूद्र कुमार है। दक्षिण क्षेत्र में विधायक शैलेष पांडेय और मंत्री डाॅक्टर प्रेम साय सिंह।
गौरेला क्षेत्र अर्जुन तिवारी और मोहम्मद अकबर, पेंड्रा क्षेत्र में मोहित केरकेटा और मंत्री कवासी लखमा को जिम्मेदारी मिलीं 4 मंत्री 48 विधायक आकड़ा थोड़ा छोटा है। असल में प्रदेश के मुखिया ने मरवाही में अपने मंत्री मंडल को उतार दिया है। प्रत्याशी भले ही केके धु्रव किन्तु चुनाव में सीधे मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा जुड़ी है। इस कथा का पुरा सार नामाकंन जांच के बाद पढ़ने मिलेगा।
बिलासपुर / शौर्यपथ / मरवाही विधानसभा क्षेत्र में कुल 237 मतदान केन्द्र है, और मतदाताओं की संख्या एक लाख 90 हजार 254 के लगभग है। जिसमें से महिलाओं मतदाताओं की संख्या 96 हजार और पुरूष मतदाता 93 हजार के लगभग है। इन मतदाताओं को संभालने के लिए कांग्रेस ने अपने 48 विधायकों को सैक्टरवाईज़ जिम्मेदारी दी है। चार मंत्रियों को ही उतार दिया है। छत्तीसगढ़ एक ऐास प्रदेश है जिसने दो बरा उपचुनाव में मुख्यमंत्री को चुनाव लड़ते देखा। पहली बार विभाजित मध्यप्रदेश के वक्त अर्जुन सिंह ने खरसियां जिला रायगढ़ से चुनाव लड़ा और दुसरी बार छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 2001 में अजीत जोगी ने मरवाही विधानसभा से उपचुनाव लड़ा। दोनो चुनाव के बीच लंबा अंतराल था, और दो बड़े अंतर थे अर्जुन सिंह के चुनाव में कांग्रेस के विधायक लक्ष्मी पटेल ने इस्तिफा देकर सीट खाली की थी जबकि मरवाही में भाजपा के रामदयाल उईके ने अपनी सीट छोड़ दी थी।
खरसियां का उपचुनाव राजनैतिक इतिहास में हमेशा याद किया जाता है। क्योंकि यहां पर अर्जन सिंह जैसे दिग्गज राजनेता को जीत के लिए एड़ीचोटी का जोड़ लगाना पड़ा। वे मात्र 8 हजार वोट से जीत पाए थे और हारने के बावजूद पराजीत प्रत्याशी दिलीप सिंह जुदैव का जुलूस आज भी खरसियां की जनता को याद है। इससे उल्ट कहानी मरवाही की थी। 2001 में मरवाही ने अजीत जोगी ने जीत की जो इमारत खड़ी की वह 2018 तक बढ़ती ही चली गई। फिर चाहे चुनाव अजीत जोगी लड़ रहे हो या अमित जोगी। कभी भी कैसी भी परिस्थिति में जीत का आकड़ा 40 हजार से नीचे नहीं गया। वर्ष 2018 के चुनाव में अजीत जोगी को मात्र एक मतदान के लिए कटरा में हार मिली और वहां भी वे प्रत्याशी से नही नोटा से हारे। 2018 के चुनाव में मरवाही में नोटा को 4 हजार 501 वोट मिला। कटरा में नोटा 89, जोगी 78, कांग्रेस गुलाब सिंह राज 64 और भाजपा अर्चना पोर्ते 58 मत पाएं थे।
मरवाही जैसे आदिवासी बहुल्य क्षेत्र में नोटा को प्राप्त होने वाला वोट राजनैतिक पंडितों को आश्र्चय में डालता है। 4 सेक्टरों में कांग्रेस ने जिन लोगों को जिम्मेदारी दी है। उसमें सासंद, संसदीय सचिव और विधायक शामिल है। उत्तर क्षेत्र में के प्रभारी उत्तम वासुदेव और मंत्री गुरू रूद्र कुमार है। दक्षिण क्षेत्र में विधायक शैलेष पांडेय और मंत्री डाॅक्टर प्रेम साय सिंह। गौरेला क्षेत्र अर्जुन तिवारी और मोहम्मद अकबर, पेंड्रा क्षेत्र में मोहित केरकेटा और मंत्री कवासी लखमा को जिम्मेदारी मिलीं 4 मंत्री 48 विधायक आकड़ा थोड़ा छोटा है। असल में प्रदेश के मुखिया ने मरवाही में अपने मंत्री मंडल को उतार दिया है। प्रत्याशी भले ही केके धु्रव किन्तु चुनाव में सीधे मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा जुड़ी है। इस कथा का पुरा सार नामाकंन जांच के बाद पढ़ने मिलेगा।
बिलासपुर / शौर्यपथ / देर से ही सही नगरपालिक निगम बिलासपुर में 11 एल्डरमैन की नियुक्ति हो गई। नियुक्ति के उपरांत कांग्रेस का एक गुट आदतन नाराज हो गया। जो स्वयं को निष्ठावान होने का प्रमाणपत्र देते है उन्होंने अपने पदों से इस्तिफा दे दिया। शहर विधायक शैलेष पांडेय व प्रदेश उपाध्यक्ष अटल श्रीवास्तव को दिया गया। इस्तिफा देने वालों को यह अच्छे से पता है कि जिन पदों से वे इस्तिफा दे रहे है उन पदों पर वे नही रहना चाहते तो उन्हें अपना इस्तिफा कहा भेजना चाहिए। किन्तु यही तो राजनीति है। बिलासपुर में विधानसभा के चुनाव पहले हुए और निगम के बाद में इस दौरान लोकसभा के चुनाव भी हो गए। किसका प्रदर्शन कैसा रहा कौन पार्टी के लिए कब से कितना निष्ठावान है और कौन कितना अनुशासति है यह सब जानते है। ऐसा कहा जाता है कि 11 एल्डरमैन से 7 विधायक की पसंद है, और शेष चार पर अन्य को प्राथमिकता है, है तो सभी कांग्रेस के जब जोगी कांग्रेस से आए हुए ज्ञानेंद्र उपाध्याय को मरवाही में मुख्य भुमिका मिल सकती है तब बिलासपुर में कांग्रसियों को ही यदि पद मिल गया तो इतनी नाराजगी किस बात की।
विश्लेषण तो यह भी है कि नगर निगम बिलासपुर का 80 प्रतिशत भाग बिलासपुर विधानसभा है और शैलेष पांडेय बिलासपुर के निर्वाचित विधायक है। ऐसे में 11 एल्डरमैन में से 7 पर उनकी पंसद को प्राथमिकता मिली तो बुराई क्या है। यदि हाईकमान ने बिलासपुर की गुटिय राजनीति को समझा और आने वाले तीन वर्षों के लिए क्या उचित होगा पर एक नया कदम उठाया है तो इसके लिए उन्हें धन्यवाद दिया जाना चाहिए। एक तरफ पार्टी की लड़ाई खबरों में नही आनी चाहिए का फरमान पार्टी पदाधिकारी देते है। निर्वाचित विधायक को अखबार में बोलने पर शहर अध्यक्ष ने चि_ी लिख कर पाठ तक पढ़ाया। किन्तु अब वही नैतिक्ता और पाठ कुछ पदाधिकारी भूल गए। किसने पार्टी के लिए कितना संर्घष किया सब जानते है। ऐसे में निगम में पार्टी कमजोर होगी वैसे भी इन दिनो शहर के कामकाज ठप है। भाजपा के वरिष्ठ नेता शहर सरकार को कोसना शुरू कर चुके है। कांग्रेस के भीतर के धमासान से उन्हें लाभ ही होगा।
00 पीएल पुनिया को बिलासपुर में नही मिल रही बधाई 00
कांग्रेस के हाईकमान ने छत्तीसगढ़ के लिए एक बार फिर से पीएल पुनिया को ही योग्य पाया है। ऐसा मान जाता है कि उनकी राजनीतिक सूझबूझ से ही प्रदेश में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिला। रणनीति इतनी सटीक रही की एक बार जब जीत के आकड़े निकलना शुरू हुए तो किन्तु परन्तु की स्थिति ही नही बनी और इसी का परिणाम की प्रदेश में किसी असंतोष की चिंता सत्ता को नही करना पड़ती। राजनीति के जानकार बताते है कि श्री पुनिया को बिलासपुर के राजनीतिक समीकरणों की भी अच्छी जानकारी है। कौन पार्टी हित में कितनी इमानदारी से रहता है और कौन जनता के बीच पकड़ रखता है। ये वे अच्छे से जानते है। शहर के कांग्रेसी नेता जो छोटे-छोटे अवसरों पर भी विज्ञापन, होर्डिग्ंस से शहर को पाट देते है। उन्होंने प्रभारी के रूप में दुबारा पुनिया की नियुक्ति पर कोई बधाई नही दी ना ही हर्ष व्यक्त किया। इससे यह पता चलता है कि शहर के कांग्रेसी पदाधिकारी अपने वरिष्ठ नेताओं का कितना सम्मान करते है। पुरे शहर में केवल दो कांग्रेसी कार्यकर्ता ने पुनिया की नियुक्ति पर अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार अपनी होर्डिग्ंस लगवाई। यह भी कांग्रेस की गुटबाजी को इंगीत करता है।
बिलासपुर / शौर्यपथ / तैश में आपराधिक कृत्य हो जाना और ठंडे दिमाग से षडय़ंत्र पूवर्क आपराधिक मामले को अंजाम देने के बीच बहुत अंतर है। एक षडय़ंत्र कैसे किसी मध्यमवर्गीय परिवार की जिंदगी भुचाल ले आता है और पुरा परिवार गहरे संकट में फस जाता है। इसका उदाहरण 19 अक्टुबर 2019 के दिन निराला नगर निवासी भुपेन्द्र शर्मा द्वारा की गई आत्महत्या है। मृतक जो की विद्युत मंडल का सेवा निवृत्त कर्मचारी था। असामाजिक तत्वों के चक्कर में पड़ कर अपनी बड़ी धन राशि 30 लाख रुपये से अधिक गवा बैठा था और उस पर इस बात के लिए दबाव था कि वह निराला नगर के जिस मकान में रहता है उसका भी मुख्तियार नामा उन्हीं लोगो के पक्ष में लिख दे जिन्होंने उससे छल पूवर्क 30 लाख रुपये ले लिया है। मृतक ने जिन लोगो का नाम अपने सोसाईट नोट में लिखा उन्में शैलेन्द्र सिंह, नवीन तिवारी, जयपाल पंजवानी, प्रमोद यादव और अवधेश शामिल है। असल में भुपेन्द्र शर्मा ने अपनी जान देने के पूर्व दो सोसाईट नोट लिखे थे।
मृतक का बेटा सौम्यदीप युके्रन में डॉक्टरी की पढ़ाई करता था। किन्तु पढ़ाई अधुरी छोड़ कर वापस आ गया था और गलत संगत में फस गया था। उसी के साथ अवधेश नाम का एक और व्यक्ति था सोम्यदीप की बरबादी में अवधेश का बड़ा हाथ था। एक तरफ बेटा जेल जा रहा था और दुसरी तरफ ब्याज के रुपये देनदारी के मसले में शहर के आदतन गुंडे भुपेन्द्र को अपने षडय़ंत्र में फसा चुके थे। सोम्यदीप दिपावली के वक्त घर आया और सरकंडा थाने की पुलिस ने उसे पकड़ लिया। अवधेश साहू ने सरकंडा थाने में शिकायत दर्ज कराया था कि सोम्यदीप ने उसकी मां के नाम की संपत्ती फर्जी पॉवर ऑफ अर्टनी से बेच दी। ऐसी शिकायते शहर में कई होती है। किन्तु कुछ मामलों में भ्रष्ट पुलिस जांच किए बिना ही किसी को हिरासत में लेकर जेल भेज देते है। 10 दिन की जेल उसी दौरान पिता द्वारा आत्महत्या बहनों का गृहस्थ जीवन लगभग बरबाद। किन्तु व्यवस्था के सामने समाज के कथित नेता चुप रहे। सौम्यदीप ने जेल से बाहर निकलने के बाद प्रदेश के डीजीपी को शिकायत की थी। डीजीपी ने शिकायत पर जांच की जिम्मेदारी कोतवाली सीएसपी निमेश बरैया को दी। सरकंडा थाना भी उन्ही के अंतर्गत आता है। जांच में उन्होंने पाया की सौम्यदीप को जो पावर ऑफ अर्टनी मिली है उसमें हेमो देवी और सकलदेव साहू को कोई आपत्ती नही है। रजीस्ट्री के समय भी पंजीयक के कार्यालय में दोनो उपस्थित थे रजीस्ट्री 7 अगस्त 2015 को हुई थी। सकलदेव ने गवाही में हस्ताक्षर भी किया। जांच में ऐसा पाया गया की जांच अधिकारी सब इंसपेक्टर राम आश्रय यादव ने एक लंबी रकम 90 हजार लेकर बिना दस्तावेजों के जांचे सौम्यदीप को अंदर करवा दिया। इस प्रकरण में कबूतर बाजी भी जुड़ी है, और उसमें बिलासपुर के एक निजी अस्पताल के डॉक्टर का नाम भी सामने आता है किन्तु उस ओर जांच नही हुई। प्रभाव शाली लोग इसी तरह बचते है। युके्रन में डॉक्टरी पढ़ाने के लिए भुपेंद्र शर्मा ने कुछ पैसा बिजली ठेकेदारों से लिया था।
बिजली विभाग में कर्मचारियों और ठेकेदारों के पास आसान रुपयों की भरमार है। यही कारण है कि ब्याज का काम बिजली विभाग से जड़ चुका है। कुल मिलाकर बढ़ते दबाव ने भुपेन्द्र शर्मा को आत्महत्या के बाध्य किया और उस मामले में भी बहुत गहनता से जांच नही हुई। बिलासपुर में जांच एजेंसिया गैर व्यवसायिक तरीके से काम करने की आदि है। इसलिए भुपेन्द्र शर्मा जैसे प्रकरण होते रहते है, और इन पर कोई नोटिस भी नही लेता। शैलेन्द्र सिंह, नवीन तिवारी, पंजवानी, प्रमोद यादव जैसे चहरे जेल जाना अपने ट्रेक रिर्काड में अर्वाड पाना मानते है। जब तक समाज ऐसे लोगो को हेय दृष्टि से नही देखेगा भुपेन्द्र शर्मा जैसे संस्काराी लोग आत्महत्या करते रहेंगे।
बिलासपुर / शौर्यपथ / बिलासपुर जिले के 17 राजस्व न्यायालयों में काम ढप्प और जनरल पेशी से डेट आगे बढा दी जाती है। किन्तु यह आधा सच है ऐसा देखा जा रहा है कि ऐसे प्रकरण जो व्हीआईपी दर्जा रखते हैं न केवल सूने जा रहे हैं बल्कि सामान्य गति के मुकाबले उन्हें तेजी से निपटाया जा रहा है. और इस तरीके से असल में जिसके पक्ष में व्हीआईपी का फोन नहीं आया है उसे निपटाने की तैयारी चल रही है .
कुछ प्रकरणों पर तहसीलदार घर बैठे आदेश कर देते हैं एक तरफ बिलासपुर एसडीएम कुछ मामलों पर रोज सुनवाई पर आतुर हैं तो दूसरी ओर अपीलीय न्यायालय में ताला लटक रहा है ऐसे में जिस पक्ष के विरुद्ध आदेश होगा वह अपील करने कहां जाएगा और यही व्हीआईपी संस्कृति है सब जानते हैं कि आमतौर पर शासन अपने आदेश निर्देश जानबूझकर शुक्रवार को देते हैं जिससे शनिवार इतवार को अपीलीय न्यायालय से राहत ना मिले और व्हीआईपी संस्कृति का काम पूरा हो जाए कुछ इसी तरह का काम बिलासपुर एसडीएम कार्यालय में चल रहा है यह रोचक होगा कि वीआईपी प्रकरणों की लिस्ट पर नजर रखी जाए तब पता चलेगा कि इस प्रकरण का किस जनप्रतिनिधि ने दबाव बनाया.....( अजित कुमार की कलम से )
बिलासपुर / शौर्यपथ / एक तरफ राज्य शासन ने जिले के निजी अस्पताल कोविड-19 का इलाज किस दर पर करेंगे कि घोषणा की है। इस गाइड लाइन के जारी होने के बाद निजी चिकित्सकों ने दावा किया कि हम तो इससे कम दर पर इलाज कर रहे है, दूसरी तरफ निजी अस्पतालों से जो खबर छन के आ रही है वह यह कहती है कि अस्पताल में कोविड-19 का इलाज नही मरीज से लूट हो रही है। राज्य सरकार की सूची के अनुसार सुपर स्पेसिलटी सुविधा के आधार पर जिले के अस्पतालों को तीन श्रेणी में रखा गया है, और उसी के आधार पर प्रति मरीज प्रति दिन की दर तय की गई है। इलाज की यह व्यवस्था 6200 से लेकर 17 हजार प्रति दिन तक है। राज्य सरकार ने अस्पतालों को एनएबीएच (राष्ट्रीय प्रत्यायन अस्पतालों का बोर्ड) से मान्यता प्राप्त और गैर मान्यता प्राप्त के बीच में बांटा है, किन्तु जिले के भीतर ग्रामीण क्षेत्रों को तो छोड़ दे शहर के भीतर भी कोई भी निजी अस्पताल अपने सूचना पटल पर अपने बारे में सूचनाएं नही देता।
अस्पतालों की नजर से देखे तो जिला स्वास्थ्य विभाग से अस्पताल चलाने की अनुमति भी नही वह भी स्वयं को सुपर स्पेसिलटी बोलता है, गली-गली मल्टी स्पेसिलटी अस्पताल खुल गए है। शहर के भीतर एक अस्पताल में तो चौपाटी खुल गई है, और अस्पताल बन्द हो चुका है किंतु प्रोटेक्शन एक्ट के लाभ पाने के लिए अस्पताल को चलता दिखाया जाता है।
कोविड-19 ने सिटी स्कैन कर दिया मजा। कोई मरीज कोरोना पॉजिटिव है या नही यह जानने के लिए तीन टेस्ट ही पर्याप्त है किंतु चिकित्सको ने सिटी स्कैन का रास्ता भी खोल दिया। जिसकी प्रचलित दर 6-7 हजार के बीच है। सिम्स में विधायक शैलेश पांडेय ने 10 लाख रुपये दिया। एसईसीएल से भी लंबी फंडिंग हुई, किन्तु मेडिकल कॉलेज में आज तारीख तक सिटी स्कैन शुरू नही हुआ,और अब लंग्स में कोरोना का प्रभाव देखने सिटी स्कैन की पर्ची काटने का नया खेल शुरू हो गया है। कुल मिलाकर आम जनता या तो कोविड से मरे या बच जाए तो आर्थिक बर्बादी से ।
बिलासपुर / शौर्यपथ / सेवा सहकारी समितियों के बड़े घोटालों में एक नाम सेवा सहकारी समिति मल्हार का भी है। वर्ष 2013 में इस समिति में 4 करोड़ 76 लाख रुपये का घपला पाया गया था। मात्र एक आरोपी जेल गया और शेष 13 आरोपी फरार हो गए किन्तु पंजीयक सहकारी समिति की जांच हुई, जांच में पांच आरोपियों के खिलाफ प्रकरण चल रहा है जिसमे से मुख्य आरोपी जो जेल यात्रा कर चुका है लगातार अनुपस्तिथि है। साथ ही समिति का कम्प्यूटर ऑपरेटर भी उपस्थित नही होता है। शेष तीन आरोपी जांच कार्य मे अपना जवाब प्रस्तुत करते है, पूरा मामला मल्हार क्षेत्र के एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि की शह पर हुआ था, जिसे इस चुनाव में जनता ने नकार दिया। सहकारी समितियों की जांच तथा पंजीयक की जांच के तरीके अलग-अलग है और दोनों जांच को एक दूसरे से कोई लेना देना नही है, इस बात का लाभ आरोपियों को मिल जाता है। (फोटो धान की बोरी)
बिलासपुर / शौर्यपथ / एक तरफ जिला प्रशासन सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बीपीएल को दो माह का राशन एक साथ दे रहा है और दूसरी ओर सरकार की योजना को बिलासपुर खाद्य नियंत्रक कार्यालय स्वयं ही पलीता लगा रहा है। विभागीय लोगों पर ग्रामीणों का भरोसा उठ गया है इसी का परिणाम है कि खाड़ा में चोरी का माल महिला स्व सहायता समूह ने पकड़ा और पुलिस के हवाले किया। पूरे मामले खाद्य नियंत्रक कार्यालय कही नजर नहीं आया। चावल तस्करी का पूरा मामला इन दिनों जिले में सुनियोजित तस्करी की तर्ज पर चल रहा है। यहां भी जिस चावल का घपला होना था वह 3 सितंबर को लाया जा चुका था। ग्रामीणों की माने तो चावल तस्करी में जिस ट्रेक्टर का उपयोग हो रहा है वह कांग्रेसी नेता रोशन जायसवाल का है। किंतु ट्रेक्टर पर जो नम्बर दर्ज है उसका मालिक एक आदिवासी है। कुल मिलाकर पीडीएस के क्षेत्र में तस्करों का बड़ा गिरोह काम कर रहा है जिसकी जड़े राइस मिल से होते हुए रेडी टू इट तक पहुचती है। इस प्रकरण में भी खाद्य निरीक्षक पति पत्नी दीवान एक विधानसभा में नियुक्त है और रात में तहसीलदार के बुलाने पर भी नही आये। पुलिस ने कुछ लोंगो को हिरासत में लेकर कोर्ट प्रस्तुत किया। खाद्य नियंत्रक ने बताया कि मामला अभी मेरे तक नही आया है।
बिलासपुर / शौर्यपथ / छत्तीसगढ़ राज्य की कुल वर्ग किमी क्षेत्र पर में से बड़े क्षेत्र में कोयले को भंडार है, पानी है और जंगल है, इसलिए छत्तीसगढ़ में पिछले चार दशकों से कोयला खनन की गतिविधियां सतत जारी है। साथ ही विधुत उत्पादन कंपनियों ने भी अपनी इकाइयां स्थापित की। इनमें अब तक केंद्र एवं राज्य सरकार की मुख्य थी। किन्तु अब बदले हुए नियम के कारण कोल सेक्टर का पूर्णतः निजीकरण हो जाएगा। एसे में छत्तीसगढ़ के जंगल और किसान दोनों सीधे प्रभावित होंगे। किन्तु उदासीन जनप्रतिनिधित्व और जागरूकता की कमी के कारण छत्तीसगढ़ में प्रकृतिक संसाधनों की लूट खसोट को रोकना कठिन होगा और बड़ी शक्तिशाली निजी कंपनियों के सामने जनता लूटने के लिए मजबूर होगी। इस सब के बावजूद राज्य के भीतर राजनैतिक दल अथवा श्रमिक संगठन में से कोई भी आज आवाज उठाने तैयार नही है। भारत मे कुल सेक्टर ने निजीकरण भी देखा राष्ट्रीकरण भी देखा और फिर से निजीकरण को भी देखेगा। 2013 में यूपीए जिसका नेतृत्व कांग्रेस के पास था ने पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 पारित हुआ । यह एक ऐसा कानून है जो किसान के पक्ष में है और पंचायत को मजबूत करता है। इसके अतिरिक्त देश में भूमि अधिग्रहण के 13 और कानून है जो सड़क, नहर, रेल, टावर, टावर लाइन लगाने के लिए उपयोग में लाये जाते है। इन सबके के साथ 1957 के कानून कोल बियरिंग एरिया अधिग्रहण एयर विकास अधिनियम पर चर्चा जरूरी है जो कि छत्तीसगढ़ में कोई नही करता। विकास अधोसंरचना निर्माण जरूरी है, पर सहभागिता और पारदर्शिता के साथ। साथ मे मानवतावाद जिसमे मानववाद के साथ जिसमे पशुपक्षी जल चर भी जुड़े। तभी सच्चे अर्थों में जल, जंगल और जमीन का सही उपयोग होगा। 2013 का कानून 1957 के कानून को समाप्त नही करता अब सवाल यह है कि 1957 का कानून केंद्र सरकार की कंपनी के हित में भूमि अधिग्रहण के लिए था अब इसी कानून से निजी कंपनियों के लिए जमीन का अधिग्रहण होगा। जानकारी यह कहती है कि छत्तीसगढ़ में 40 कोल ब्लॉक के लिए 60000 हेक्टर अथवा एक लाख 50 हजार एकड़ जमीन का अधिग्रहण होगा, और छत्तीसगढ़ के 150 आदिवासी बाहुल्य गांव सीधे प्रभावित होंगे। इतनी बड़ी विप्पलवपारी योजना के लागू होने के बाद छत्तीसगढ़ का गठन का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।