May 09, 2025
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शौर्यपथ

शौर्यपथ

     भिलाई  / शौर्यपथ / नगर के हथखोज इंडस्ट्रियल एरिया में स्थित खालसा नामक फैक्ट्री में रखे केमिकल टैंकों में आज दोपहर भीषण आग लग गई। आग इतनी भयंकर थी कि आसपास के पूरे आसमान में आग के धुंए के काले काले गुबार ही नजर आ रहे थे। आग लगने की जानकारी मिलते ही यहां गंभीर स्थिति को देखते हुए आसपास की फैक्ट्रियों को तुरंत बंद कर दिया गया। यह आग कुछ ही देर में फैक्ट्री में रखे हुए केमिकल के पुराने ड्रमों तक आग पहुंच गई है। तीन तीन फायर बिग्रेड और टीम इस भीषण आग को काबू पाने घंटों मशक्कत करना पड़ा। इस आगजनी के कारण फैक्ट्री मालिक को लाखों का नुकसान हो गया है।
मिली जानकारी के अनुसार गुरूवार दोपहर को नगर के इण्डस्ट्रियल ऐरिया में केमिकल बनाने वाली एक फैक्ट्री खालसा नामकी में भीषण आग लग गई। आग लगने की जानकारी तुरंत फैक्ट्री के मालिक हर्ष मंत्री ने पुलिस कंट्रोल रूम सेक्टर 6 को बताया। आग लगने की जानकारी मिलते ही पुलिस कंट्रोल रूम से तुरंत तीन तीन दमकल गाडिय़ों को घटना स्थल के लिए रवाना किया गया। जहां पहुंचते ही दमकल की तीनों टीमे तुरंत आग बुझाने में जुट गई और घंटो मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका।

दुर्ग। शौर्यपथ । जिले के नवनियुक्त कलेक्टर डा. सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे ने आज पदभार ग्रहण किया। उन्होंने निवर्तमान कलेक्टर श्री अंकित आनंद से पदभार गृहण किया। डा. भूरे इससे पूर्व मुंगेली जिले में कलेक्टर के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे थे। डा. भूरे वर्ष 2011 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। डा. भूरे मूल रूप से महाराष्ट्र से हैं। उन्होंने अपनी एमबीबीएस की डिग्री महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी आफ हेल्थ साइंस नाशिक से ली है।

             नजरिया / शौर्यपथ /भारत आज एक बडे़ मानवीय और आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। बड़ी संख्या में उन मजदूरों का पलायन हुआ है, जो हमारी अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र की रीढ़ रहे हैं और ये मजदूर आज खुद को सबसे अधिक घिरा हुआ पा रहे हैं। अर्थव्यवस्था मुश्किल में है और एक आर्थिक पैकेज की घोषणा हुई है। ज्यादातर विश्लेषकों, रेटिंग एजेंसियों और बैंकों ने इस पैकेज का आकार जीडीपी के 0.7 से 1.3 फीसदी के बीच आंका है, जबकि सरकार के अनुसार, यह 10 प्रतिशत है। सरकार ने खुद यह माना है कि 20 लाख करोड़ रुपये के इस पैकेज में रिजर्व बैंक द्वारा नकदी बढ़ाने के लिए दिए गए 8.02 लाख करोड़ शामिल हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक के परिणामों पर कोई आश्चर्य नहीं, जिसमें रेपो और रिवर्स रेपो दर घटाने का फैसला हुआ। रिजर्व बैंक द्वारा इन दरों में लगातार कटौती का मकसद बाजार में नकदी उपलब्धता बढ़ाना है। हालांकि उद्योगों और ऋण के खुदरा ग्राहकों को इस रेपो या रिवर्स रेपो रेट कटौती से कोई लाभ नहीं होने वाला, क्योंकि ऋण उपलब्ध नहीं हैं। बैंकिंग नेटवर्क में पहले से ही अच्छी मात्रा में तरलता है, लेकिन बैंकों के बीच जोखिम का विस्तार ऋण प्रवाह बढ़ाने और उद्योगों व आम लोगों तक रेट कटौती का लाभ पहुंचने में बाधा पैदा कर रहा है। आशंका है, इन दरों में कटौती मध्यम एवं निम्न आय वर्ग को प्रभावित करेगी, क्योंकि आने वाले दिनों में इन वर्गों की सावधि जमा पर ब्याज दरों में लगभग 0.5 प्रतिशत की कमी होगी।
ऋण देने में अत्यधिक सावधानी बरतने के लिए अकेले बैंकों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। देश की अर्थव्यवस्था अभूतपूर्व कठिन समय से गुजर रही है और बैंक एनपीए रोकने के लिए अतिरिक्त सतर्कता से काम कर रहे हैं। प्राथमिक मुद्दा तरलता का अभाव नहीं है। असल में, हमारी अर्थव्यवस्था में तरलता की मांग गायब हो गई है। मांग बढ़ाने के लिए कैपिसिटी यूटिलाइजेशन के 68.6 प्रतिशत (अक्तूबर-दिसंबर 2019) को बढ़ाना है। यहीं पर प्रत्येक जन-धन खातों, पीएम किसान खातों, पेंशनर खातों में तत्काल 7,500 रुपये प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण की जरूरत है। इस नकदी हस्तांतरण से ग्रामीण व अद्र्ध-शहरी क्षेत्रों में मांग पैदा होगी, जो भारतीय उद्योग को अपनी शेष 31.4 प्रतिशत क्षमता का उपयोग करने में सक्षम बनाएगी। इसके लिए बैंकों को नकदी समर्थन और बढ़ाना होगा। रिजर्व बैंक ने जो नकदी प्रवाह अभी बढ़ाया है, उससे ऋण लेने में तेजी नहीं आने वाली।
रिजर्व बैंक ने ऋण चुकाने में और तीन महीने की राहत दी है। उसके द्वारा दी गई रियायतों से ऋण लेने वालों को राहत मिल सकती है, लेकिन बैंकों को नहीं, क्योंकि इससे उनके अपने खातों पर दबाव बढ़ जाएगा। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आत्मनिर्भर होने की दिशा में बैंकों और वित्त संस्थाओं को भगवान भरोसे न रहना पडे़। पिछले कुछ वर्षों में हम पीएमसी और येस बैंक जैसे उदाहरण देख चुके हैं।
देश के लिए एक और चुनौती खाद्य मुद्र्रास्फीति दर में लगातार वृद्धि है। लॉकडाउन की खामियों की वजह से आपूर्ति शृंखला में रुकावट आई है, जिससे अप्रैल 2020 में खाद्य मुद्र्रास्फीति दर बढ़कर 8.6 प्रतिशत हो गई। यदि अर्थव्यवस्था को फिर से खोलने से पूर्व आपूर्ति शृंखलाओं के बारे में उचित योजना नहीं बनाई गई, तो यह और बढे़गी। यदि खाद्य मुद्र्रास्फीति की दर एक आरामदेह सीमा में वापस नहीं लौटती है, तो हमें उच्च मुद्र्रास्फीति दर व नकारात्मक जीडीपी विकास का सामना करने वाली अर्थव्यवस्था से निपटना पड़ेगा। हालांकि रिजर्व बैंक ने अनुमानित जीडीपी विकास का कोई पुख्ता आंकड़ा नहीं दिया है, पर उसने यह तो बता ही दिया है कि वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी नकारात्मक रहेगी। कुछ राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने वित्त वर्ष 2021 के लिए माइनस पांच प्रतिशत की भविष्यवाणी की है।
इसलिए इस कठिन दौर से बाहर निकलने का एकमात्र तरीका बैंकों को तरलता प्रदान करना नहीं है, बल्कि नई मांग पैदा करने के लिए कम से कम अगले छह महीनों तक बड़े पैमाने पर प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण करना होगा। यह नए रोजगार पैदा करेगा और खपत या उपभोग भी बढ़ाएगा। इसके बाद ही हमारी जनसांख्यिकीय ताकत हमारे देश के आर्थिक पहिए को गति देगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)गौरव वल्लभ, कांग्रेस प्रवक्ता

सम्पादकीय लेख / शौर्यपथ / यह एक ऐसी गिनती है, जिसको गिनने की बदकिस्मती से हम बच नहीं सकते और इसके आंकडे़ रोज हमारी चिंताओं में इजाफा कर जाते हैं। कल देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या डेढ़ लाख का आंकड़ा पार कर गई और पिछले छह दिनों से लगातार छह हजार से ज्यादा नए मामले रोज सामने आ रहे हैं। हम इस महामारी के शिकार शीर्ष दस देशों में आ गए हैं। हालांकि, आईसीएमआर अब भी वायरस के सामुदायिक प्रसार की आशंका को नकार रहा है, तो यकीनन यह कुछ सुकून की बात है। पर जिस तरह से महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात और दिल्ली में कोरोना संक्रमण के मामले सामने आए और अब बिहार में इसकी तीव्रता दिख रही है, उससे तो यही लगता है कि लॉकडाउन का पूरा फायदा उठाने में ये प्रदेश चूक गए। ऐसा मानने का आधार है। विदेश को छोड़िए, देश में ही केरल ने यह बताया है कि किसी महामारी से निपटने के लिए कैसी सूझबूझ, तैयारी और प्रशासनिक कौशल की जरूरत पड़ती है।
हमारे यहां कोरोना का पहला मामला केरल में ही 30 जनवरी को सामने आया था और आज वह संतोष जता सकता है कि पिछले चार महीने में उसके यहां संक्रमितों की संख्या हजार से भी नीचे रही, बल्कि इनमें भी आधे से अधिक मरीज स्वस्थ होकर अपने घर लौट चुके हैं। उसकी यह उपलब्धि तब है, जब उसके यहां जनसंख्या घनत्व कई राज्यों के मुकाबले अधिक है और विदेश में रहने वाले नागरिक भी बड़ी संख्या में वहां लौटकर आए हैं। केरल की ही तरह, हरियाणा, पंजाब, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने भी लॉकडाउन की अवधि का अपेक्षाकृत बेहतर उपयोग किया है। बल्कि आज हम जिस मुकाम पर हैं, उसमें अकेले महाराष्ट्र का एक तिहाई योगदान है। शुरुआत में राज्य सरकार वहां हालात को नियंत्रित करती हुई दिखी भी थी, मगर उसके बाद कुछ जैसे उससे छूटता-सा गया। कभी अस्पतालों से बदइंतजामी झांकती मिली, तो कभी फिजिकल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाती भीड़ स्टेशनों पर उमड़ती दिखी। कुछ ऐसी ही तस्वीरें गुजरात से आईं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री तो एक वक्त इतने आश्वस्त थे कि चंद रोज के भीतर वह अपने यहां कोरोना पर पूर्ण नियंत्रण का एलान करने जा रहे थे। आज उनका प्रांत संक्रमण के मामले में नंबर दो पायदान पर है। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि अब राज्य लॉकडाउन में रियायत देने को बाध्य हैं, क्योंकि उन्हें राजस्व भी चाहिए, और उन पर कारोबार जगत का भी दबाव है।
कोविड-19 से जंग की एक विश्व-व्यापी सच्चाई यही है कि जिन भी देशों-प्रदेशों ने एक स्पष्ट नीति बनाई, और उस पर सख्ती से अमल किया, वे आज बेहतर स्थिति में हैं। इसके उलट, जहां कहीं भी उपायों के स्तर पर ऊहापोह की स्थिति रही, वहां के नागरिक समाज को इसकी कीमत चुकानी पड़ी। हमने बहुत पहले देश में पूर्ण लॉकडाउन लागू करके एक अच्छी रणनीति अपनाई थी और इसका फायदा भी हुआ है, मगर हम इससे अपेक्षित लाभ नहीं उठा सके। चंद घटनाओं को छोड़ दें, तो सवा अरब से भी अधिक लोगों ने सरकार के निर्देश पर पहले 21 दिनों में जिस अनुशासन का पालन किया, उसका सारा हासिल इस महामारी को सांप्रदायिक रंग देने की राजनीति और प्रवासियों के मामले में दिशाहीन कार्य-प्रणाली के कारण तिरोहित हो गया। वरना आज हम डेढ़ लाख से अधिक संक्रमण के बाद की आशंकाओं से न घिरे होते।

 

          मेलबॉक्स / शौर्यपथ /चीन बदमाशी कर रहा है। पूरी दुनिया को कोरोना संकट में डालने के बाद भी वह आंखें तरेर रहा है। अपने ऊपर लगे आरोपों से वह नाखुश है। चीन के विदेश मंत्री का तो यह भी कहना है कि मुआवजे की मांग करने वाले देश दिवास्वप्न देख रहे हैं, अर्थात चीन का दुस्साहस इस कदर बढ़ गया है कि वह माफी मांगने की बजाय दूसरे देशों को धमका रहा है। सच यही है कि चीन ने कोरोना वायरस के बारे में दुनिया को बताना उचित नहीं समझा, जिसके कारण इसका फैलाव तेजी से हुआ। इसका प्रकोप सबसे ज्यादा अमेरिका में हुआ है, जहां एक लाख से अधिक लोग इसका शिकार बन चुके हैं। फिर भी, चीन की ऐठन कम नहीं हुई है। दुखद यह भी है कि डब्ल्यूएचओ परोक्ष रूप से उसी का बचाव कर रहा है।
नीरज कुमार पाठक, नोएडा

बनाना होगा दबाव
पूरे विश्व में चीन अपनी गुप्त रणनीति, गहरी साजिश और योजनाओं के लिए जाना जाता है। कभी वह कोरोना वायरस को एक जैविक हथियार के रूप में प्रयोग करता है, तो कभी सीमा-विवाद को बढ़ाकर पड़ोसी देशों पर दबाव बनाता है। कोरोना आपातकाल के इस दौर में भी वह लद्दाख, नेपाल, ताईवान, हांगकांग या भारत की सीमा में घुसपैठ करके अपना वर्चस्व बनाना चाहता है। वह यह जताना चाहता है कि उसकी सीमाओं का कोई अंत नहीं है। अपनी आर्थिक ताकत बढ़ाने के लिए ही उसने कोरोना वायरस को जन्म दिया, ताकि दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं चौपट हो जाएं और उसका साम्राज्य बन जाए। निश्चित रूप से चीन दुनिया के साथ कॉकटेल गेम खेल रहा है, जिसे तभी रोका जा सकता है, जब पूरी दुनिया एकजुट होकर उस पर दबाव बनाएगी। पूरे विश्व को चीन से सजग रहना होगा।
संजय कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड

अव्यवस्था भरी यात्रा
रेल व हवाई यात्राओं के दौरान सामने आ रही अव्यवस्थाओं को देखते हुए भी संबंधित मंत्रियों का ध्यान समस्या के समाधान की तरफ कम है और विरोधियों को नीचा दिखाने में ज्यादा है। जब एक श्रमिक ट्रेन दो दिन की बजाय नौ दिनों में अपने गंतव्य पर पहुंचती है और ऐसी यात्राओं में कई श्रमिक अपनी जान गंवा देते हैं, तो इसको यात्रा नहीं, यातना ही कहा जाएगा। फिर भी मंत्रीगण ऐसा भाव बनाते हैं, मानो उनकी सरकार के कारण ही रेल चल रही है, वरना नहीं चलती। लॉकडाउन से पहले जहां हजारों ट्रेनें चलने के बाद भी किसी ट्रेन के अपने गंतव्य से भटकने का समाचार नहीं आया, वहीं अब कई ट्रेनें गलत जगहों पर पहुंच रही हैं। इससे भयानक अराजकता भला और क्या होगी?
जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर

स्वास्थ्य मद में बजट बढ़े
वर्तमान महामारी ने हमारी स्वास्थ्य नीति की अक्षमता को उजागर किया है। जहां सरकारी संस्थाएं अपनी पूरी क्षमता से महामारी के खिलाफ लड़ रही हैं, वहीं निजी क्षेत्र भारी-भरकम खर्चों के कारण आम आदमी की पहुंच से लगभग बाहर हो गए हैं। ऐसे में, स्वास्थ्य क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण की मांग स्वाभाविक है। अध्ययन यह भी बताते हैं कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के भारी-भरकम खर्च उठाने के कारण ही प्रतिवर्ष करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। ऐसे में, सरकार द्वारा सभी तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाए बिना गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों की सफलता संभव नहीं है। दिक्कत यह है कि हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं पर जीडीपी का महज 1.2 फीसदी खर्च किया जाता है। बेशक, विशाल जनसंख्या और सरकार के सीमित संसाधनों को देखते हुए स्वास्थ्य सेवाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी आवश्यक है, लेकिन सार्वजनिक खर्च में वृद्धि करना सबसे जरूरी है, ताकि सभी लोगों को स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मिल सकें।
वीरेंद्र बहादुर पाण्डेय, गोंडा

रायपुर / शौर्यपथ / वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजेश बिस्सा ने कहा कि जब भाजपा ने प्रश्न पूछने का सिलसिला शुरू किया ही है तो उन्हें केंद्र सरकार से भी प्रश्न पूछना चाहिए कि इस देश की आत्मा श्रमिकों की स्थिति जायजा केंद्र सरकार ने क्यों नहीं लिया?
बिस्सा ने कहा कि कचरे की तरह ट्रेनों की बोगियों में जिन गरीबों को भरकर लाया जा रहा है क्या वह उन्हें इंसान नहीं मानती? बिना वजह श्रमिक स्पेशल ट्रेने तीन दिन देर से गंतव्य स्थान पर पहुंच रही है, क्यों नहीं रेलवे मंत्री अपनी जवाबदारी लेते हुए इस्तीफा देते?
ट्रेनों में सफर कर रहे श्रमिक पानी और भूख की कमी के कारण दम तोड़ रहे हैं केंद्र सरकार क्यों उस पर मौन है? हाहाकारी तरीके से नोटबंदी की तरह आकर एक झटके में देश को बंद कर दिया यह फिक्र क्यों नहीं की कि गरीब का क्या होगा?
बिस्सा ने कहा कि झूठ की बुनियाद पर कल्पना की इमारत खड़ी की जा सकती है लेकिन जो गरीब आज असहाय हालत में है उसके दुख दर्द को दूर किये बिना केंद्र सरकार द्वारा राज्यों पर जिम्मेदारी डालना गलत है।

      दुर्ग / शौर्यपथ / कोरोना आपदा के कारण शहर सहित देश दो महीनो के लॉक डाउन में जिन्दगी गुजार दी . कोरोना का संक्रमण से दुर्ग शहर अभी अछुता ही है और जन जीवन लॉक डाउन में मिली ढील के साथ सुचारू रूप से चल रहा है . इस कोरोना आपदा के दरमियान सुखा राशन वितरण की पहल दुर्ग विधायक और निगम महापौर द्वारा की गयी जिसके उपरान्त दुर्ग निगम के सभी पार्षदों की पार्षद निधि पहले २ लाख फिर बाद में २ लाख की स्वीकृति की गयी साथ ही विधायक व महापौर के द्वारा भी निधि दी गयी लगभग २ करोड़ ६० लाख रूपये की कीमत का सुखा राशन का वितरण दुर्ग निगम क्षेत्र में किया गया साथ ही कई संस्थाओ द्वारा भी सुखा राशन का दान निगम को किया गया .. राशन वितरण और खरीददारी का सारा जिम्मा निगम के एक ही अधिकारी प्रभारी ईई गोस्वामी के हांथो में निगम प्रशासन ने सौपा .
कई सामानों में हुआ प्रति नग एक से दो रूपये का खेल ..
राशन वितरण में शक्कर , आंटा , साबुन , चाय पत्ती , मसाला , तेल ,चावल , दाल , आलू , प्याज आदि जरुरत की वस्तुए वार्ड के ज़रूरतमंदों लोगो को दी गयी . कोरोना आपदा में शासन के पैसे का इससे अच्छा उपयोग नहीं हो सकता था किन्तु इन वस्तुओ के खरीददारी में किन मानको का उपयोग किया गया वही सबसे बड़ा भ्रष्टाचार का खेल है आइये हर सामान के कीमतों का आंकलन करते है जिसके बारे में आम जनता को भलीभांति ज्ञात होगा ही कि कैसे एक अधिकारी द्वारा सोयाबीन की बड़ी के एक रूपये से दाल के १० रूपये तक का घोटाला किया गया ....

साबुन में एक से ढेढ़ रूपये प्रति नग में गड़बड़ी
निगम प्रशासन द्वारा एक लोकल साबुन की खरीदी की गई जिसकी प्रिंट कीमत ही 5 रुपये थी जबकि बड़ी बड़ी कम्पनी जो जीएसटी व सभी शासकीय टेक्स भुगतान के बाद भी 4 रुपये थोक भाव मे मिल जाती है किंतु निगम के ज़िम्मेदार अधिकारी द्वारा उसकी तय खरीदी मूल्य 5 रुपये ही दर्शायी गई खरीदी की संख्या हज़ारों नग थी वैसे ही नहाने के साबून और डिटर्जेंट पाऊडर में भी यही खेल चला । शौर्यपथ समाचार द्वारा जब इस बात को उजागर किया गया तब कपड़ा धोने के साबुन घड़ी साबुन और डिटर्जेंट को राशन के थैले में जगह मिली किन्तु तब तक साबुन के खेल में हज़ारों के बारे न्यारे हो गए ।
आलू प्याज में भी खूब चला खेल
सूखा राशन में आलू प्याज भी पेकिंग कर दिया गया । विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार आलू प्याज की तय मात्रा की खरीदी पहले ही हो गई किन्तु प्रतिदिन के पेकिंग में अलग अलग कीमत अंकित कर आलू प्याज में भी हजारों का खेल हो गया ।
चावल दाल में चली अंधाधुन कमाई
सूखा राशन के पैकेट में चावल व दाल भी दिया गया कई पार्षदों के पैकेट में उसना चावल पालिस वाला भी वितरित किया गया जिसकी बाजार कीमत 24-25 रुपये है किंतु यहां भी चावल की कीमत प्रति पैकेट में 36 रुपये प्रति किलो अंकित की गई । वही मिक्स दाल जो बाजार में 55-57 रुपये प्रति किलो आसानी से चिल्हर भाव मे मिलता है की कीमत पैकेट में 70 रुपये अंकित की गई यानी एक किलो पर ही 10 से 12 रुपये का खेल हुआ ।
तेल की कीमत में बदलाव
एक ही कम्पनी के तेल की कीमत कभी 86 तो कभी 88 रुपये दर्शाए गए यह भी निगम के जिम्मेदार अधिकारी द्वारा हजारों के वारे न्यारे की संभावना व्यक्त की जा रही है क्योंकि तेल प्रति पैकेट ही दिया गया और सूखा राशन के वितरण की संख्या एक दो नही हजारों में थी ।
निम्न स्तर के चाय पत्ती में भी कमाई
सूखा राशन के पैकेट में निम्न स्तर के लोकल चाय पत्ती के वितरण में भी हज़ारों के वारे न्यारे हुए है और इन सामनो की खरीददारी की जिम्मेदारी भी प्रभारी ईई और निगम के सर्वेसर्वा मोहन पूरी गोस्वामी की थी ये वही मोहन पूरी गोस्वामी है जिन पर दीपावली में अपने खास मीडिया कर्मियों को लिफाफा देने का आरोप एक दैनिक समाचार पत्र में लगा था ।
सोयाबीन बड़ी में भी लगा दिए 4 रुपये प्रति पैकेट का चूना (80 ग्राम प्रति पेकेट )
   निगम के सूखा राशन में सोयाबीन बड़ी और मुर्रा का भी वितरण किया गया । बाज़ार में अच्छी क्वालिटी का सोयाबीन बड़ी 1170 से 1200 रुपये बोरी (20 किलो ) आसानी से मिलता है किंतु निगम प्रशासन द्वारा यहां भी 4 रुपये की हेरा फेरी का अंदेशा है । प्राप्त जानकारी के अनुसार निगम के ईई ने अपने खासमखास व्यक्ति को इसकी जिम्मेदारी दी और यहां भी बड़ी घोटाला हो गया । शहर के नए महापौर बाकलीवाल राशन के भी व्यापारी है इस तरह से हुए राशन घोटाले में शहर की आम जनता का शक सीधे महापौर बाकलीवाल की तरफ जाता है किन्तु निगम की कार्यप्रणाली को करीबी से जानने वाले ही अच्छी तरह समझ सकते है कि निगम आयुक्त बर्मन के आदेश के अनुसार खरीदी का पेकिंग का सारा कार्य ईई मोहनपुरी गोस्वामी के जिम्मे है . प्राप्त जानकारी के अनुसार अब जब सुखा राशन वितरण का कार्य खत्म हो गया तो बिलिंग के कार्य के लिए डमी एजेंसी का सहारा लिया जा रहा है . जो सिर्फ बिलिंग का कार्य करेगी जबकि असली ठेकेदार कोई और है . कोरोना आपदा के पैसे की बंदरबाट होना निगम प्रशासन के कार्य प्रणाली और लचर व्यवस्था को दर्शाता है . क्या निगम आयुक्त बर्मन इन सब बातो से अनजान है या फिर किसी अनदेखी लाभ के कारण मौन है . अगर आयुक्त बर्मन इन सब बातो से अनजान है महापौर बाकलीवाल इन सब बातो से अनजान है तो समाचार के माध्यम से प्रकाशित खबर के आधार पर मामले की निष्पक्ष जाँच कर दोषी अधिकारी और फर्जी ठेकेदारों पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही कर आम जनता को ये सन्देश दे कि प्रशासन निष्पक्ष होकर बिना लालच के कार्य कर रहा है .

दुर्ग / शौर्यपथ / कोरोना काल मे लगातार मरीज बढ़ रहे है कई मरीजो को ब्लड की जरूरत भी पड रही है लेकिन मरीजो को ब्लड न के बराबर मिल रहा है दुर्ग जिले में भी अब तक हजारो की जान बचाने वाले ब्लड बैंक को लेकर अब समस्या शुरू हो गई है जिले में मदर ब्लड बैंक माने जाने वाले दुर्ग जिला ब्लड बैंक इन दिनों रक्त की कमी से जूझ रहा है। अंतराष्ट्रीय मानकों पर तैयार ब्लड बैंक में 700 बैग स्टाक करने की क्षमता है, लेकिन कोरोना महामारी के कारण ऐसी स्थिति पहली बार बनी है की अब यहां केवल अलग-अलग ब्लड ग्रुप के केवल 87 बैग ही स्टाक है।
वी/ओ-1 प्रदेश का मॉडल ब्लड बैंक कहलाने वाला दुर्ग ब्लड बैंक अब ब्लड के मामले में फिसड्डी साबित हो रहा है। कोरोना कोविड 19 के कारण लोग जहा अस्प्ताल जाने से डर रहे है तो वही ब्लड बैंक में अब लोग ब्लड डोनेट करने से भी डर रहे है। इस बेंक में ब्लड के बदले ब्लड देने का भी प्रावधान है। दुर्ग जिले के सरकारी समेत अन्य 23 अस्पतालों की संबद्धता ब्लड बैंक से है। रक्तदाताओं में कमी आने के कारण स्थिति भयावह बनी हुई है। कबीर ट्रस्ट के युवाओं को जैसे ही पता चला कि ब्लड बैंक में ब्लड की कमी है, तो ऐसे में तत्काल युवाओं ने 27 यूनिट ब्लड डोनेट किया और ब्लड बैंक में बैग की संख्या बढ़ाई आने वाले दिनों में फिर से युवाओं की टोली और भी ब्लड डोनेट करेगी। जिससे आने वाले में ब्लड बैंक की समस्या कम हो सकेगी दरअसल जिला ब्लड बैंक में ब्लड एक्सचेंज करने का भी प्रवधान है, लेकिन गरीब व गर्भवती महिलाओं के लिए बैंक बिना एक्सचेंज के ब्लड उपलब्ध कराता है जिले के डिमांड के अनुसार ब्लड बैंक में ब्लड का स्टाक नहीं होने से काफी समस्या हो रही है पूर्व में 150 से 200 बैग में ब्लड रहता था। अभी कोरोना के काल में सिविर लगना बंद हो गया है जिसके कारण भी ब्लड डोनेट करने वाले कि संख्या कम हुई है,वर्तमान हालत ये है कि आज ब्लड बैंक की क्षमता से भी कम ब्लड बचा है.

    भिलाईनगर /शौर्यपथ /  बीएसआर अपोलो हॉस्पिटल, डॉ एमके खंडूजा बीएसआर अपोलो हॉस्पिटल जूनवानी भिलाई पर बकाया राशि की वसूली की कार्यवाही कुर्की के माध्यम से किया जाएगा, इसके लिए भवन/भूमि के स्वामी से संपर्क कर राशि की वसूली हेतु 1 दिन पूर्व अवगत करा दिया जाएगा! यदि फिर भी राशि जमा नहीं की जाती है तो बकाया राशि की वसूली कुर्की के माध्यम से की जाएगी जिसके लिए 29 मई 2020 का दिन कुर्की के लिए नियत किया गया है! गौरतलब है कि बीएसआर अपोलो हॉस्पिटल एमके खंडूजा को वर्ष 2014-15 से 2018-2019 तक की बकाया राशि रुपये 5770252.00 के लिए दिनांक 20 जून 2019 एवं 30 नवंबर 2019 को छत्तीसगढ़ नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 की धारा 173 एवं 174 के अंतर्गत समय सीमा में बकाया राशि जमा करने नोटिस दिया गया था! पूर्ण विवरण के अनुसार नगर पालिक निगम, 1956 की धारा 174 के अंतर्गत दिए गए नोटिस के अनुसार संपत्ति कर वर्ष 2014-15 से 2018-19 की राशि 4371119, शिक्षाकर वर्ष 2014-15 से 2018-19 की राशि 437112, समेकितकर वर्ष 2014-15 से 2018-19 की राशि 3000, अधिभार वर्ष 2014-15 से 2018-19 की राशि 866021, शास्ति अधिरोपित 3000 तथा ठोस अपशिष्ट उपयोगकर्ता शुल्क 90000 कुल योग 5770252 की राशि को जमा करने के लिए बीएसआर अपोलो हॉस्पिटल एमके खंडूजा अपोलो हॉस्पिटल जूनवानी भिलाई को नोटिस दिया गया था! आयुक्त रघुवंशी द्वारा कुर्की दल में जोन आयुक्त अमिताभ शर्मा जोन क्रमांक 1, सहायक अभियंता सुनील दुबे जोन 1, पीसी सार्वा जनसंपर्क अधिकारी, अरविंद शर्मा उप अभियंता, विनोद चंद्राकर सहायक राजस्व अधिकारी, सुनील नेमाडे सर्वेयर, सत्यनारायण कौशिक राजस्व निरीक्षक, ईमान सिंह कन्नौजे, रामेश्वर चंद्राकर एवं संतोष जोशी को सम्मिलित किया गया है! गठित दल के अधिकारी 29 मई दिन शुक्रवार को जोन क्रमांक 1 के कार्यालय मे 10:30 बजे उपस्थित होकर कुर्की/वसूली की कार्यवाही के लिए निकलेंगे! जोन 1 के अधिकारी कुर्की की कार्यवाही के दौरान पर्याप्त मात्रा में सुपुर्दगीनामा पत्रक, कुर्क पत्रक एवं सील मोहर, स्टेशनरी सामग्री साथ में रखेंगे! कुर्की के कार्यवाही के दौरान स्पैरो सॉफ्टेक प्राइवेट लिमिटेड ब्रांच भिलाई के कर्मचारी भी उपस्थित रहेंगे! बता दें कि कुछ राशि ही बीएसआर अपोलो अस्पताल जुनवानी के द्वारा जमा की गई है और शेष राशि के लिए समय मांगा गया था जिसकी मियाद समाप्त होने के बाद निगम के राजस्व विभाग के अधिकारियों द्वारा कई दफा राशि जमा करने के लिए संपर्क किया गया परंतु प्रबंधन द्वारा राशि देने के लिए टालमटोल किया गया ! जिस पर सख्त कदम उठाते हुए कुर्की का दिन नियत करते हुए दल का गठन आयुक्त महोदय द्वारा किया गया है!

भाजपा किसानों की आर्थिक उन्नति से बोखला क्यों जाती है - कांग्रेस
भाजपा सांसद सुनील सोनी मानसिक संक्रमित हो गये है - तिवारी
कांग्रेस ने सत्ता संभालने के 10 दिन के भीतर किसानों की कर्ज़ माफी का वायदा घोषणा पत्र में भी किया था और गंगाजल उठाकर भी किया था
भाजपा कांग्रेस घोषणा पत्र का कैलेंडर बनवा लें, और वायदों को टिक करते चले - कांग्रेस
भूपेश सरकार के जनहितकार फैसलों से, देश मे आर्थिक संकट के बावजूद प्रदेश की आर्थिक व्यवस्था पटरी पर है

रायपुर / शौर्यपथ / भाजपा सांसद सुनील सोनी द्वारा किसानों की कर्ज़ माफी और अंतर की राशि के बयान पर पलटवार करते हुए प्रदेश कांग्रेस कमेटी वरिष्ठ प्रवक्ता घनश्याम राजू तिवारी ने कहा कि 15 वर्षों तक सत्ताशीन, किसानों को वोट बैंक समझने वाली भाजपा, वादाखिलाफी करने वाली भाजपा किसानों की आर्थिक उन्नति से आज बोखला क्यों गई है।
तिवारी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी अपने घोषणा पत्र पर किए गए वादों को समय अनुसार पूरा करते हुए आगे बढ़ रही है प्रदेश के किसान आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं, गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ की परिकल्पना सार्थक दिखाई पड़ रही है, देश आर्थिक संकट से गुजर रहा है मगर छत्तीसगढ़ की आर्थिक व्यवस्थाएं भूपेश सरकार के जनहितकारी फैसलों के चलते पटरी पर है।
प्रदेश के किसानों को जिस भाजपा ने धान के बोनस के नाम पर छलने का कार्य किया वह कांग्रेस पर आरोप लगा रहे हैं। भाजपा सांसद सुनील सोनी को यह पता होना चाहिए घोषणा पत्र 15 माह के लिए नहीं 5 वर्षों के लिए होता है कांग्रेस पार्टी एवं भूपेश सरकार किसानों से किए गए हर वायदों को पूरा करेगी किसानों को इस बात का पूरा भरोसा है, मगर भारतीय जनता पार्टी और उनके सांसदों को चिंता इस बात की है किसानों के विषय पर भाजपा फेल न हो जाये इसलिए खबरों में बने रहने एवं दिखावा मात्र के लिए इस विषय पर बोलते रहते हैं।
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि, भाजपा सांसद सुनील सोनी को किसानों की इतनी ही चिंता है तो देश के सर्वोच्च सदन लोकसभा में किसानों के मुनाफे पर 50 प्रतिशत अधिक राशि देने के वायदों एवं किसानों की आय दुगनी कब होगी यह सवाल देश के प्रधानमंत्री से पूछने का साहस करें तथा स्वामीनाथन कमिटी की रिपोर्ट लागू करने केंद्र सरकार पर दबाव बनाएं, कांग्रेस पार्टी उनके साथ खड़ी होगी।
प्रवक्ता तिवारी ने कहा कि प्रदेश की प्रशासनिक फेरबदल प्रशासकीय व्यवस्था है, प्रजातंत्र के उच्च पद पर निर्वाचित भाजपा सांसद सुनील सोनी को यह ज्ञात होने चाहिए। प्रशासनिक अराजकता पर चिंता करना लाजमी है परंतु वर्तमान में भाजपा की नहीं कांग्रेस की सरकार है इतिहास इस बात का गवाह है कि सरकार चलाना कांग्रेस ने बेहतर रूप से सीखा है।
कोरोना संक्रमण से उपजे हालातों पर देश की जनता ने देश के प्रधानमंत्री के हर आदेशों का पालन किया परंतु जिन कठिनाइयों का सामना देश की जनता ने किया उन कठिनाइयों से निजात मिलती दिखाई नहीं पड़ रही है, निजी स्वार्थ के लिए देर से लिए गए लॉकडाउन के फैसले, गैर जिम्मेदाराना निर्णय ने आज भारत में संक्रमित ओं की संख्या डेढ़ लाख के करीब पहुंच चुकी है।

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