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खाना खजाना / शौर्यपथ /1. एप्पल-एग केक
सामग्री :
2 सेब कटे हुए, 1 चम्मच दालचीनी पावडर, 3 अंडे, आधा कप किशमिश, आधा कप शक्कर, आधा चम्मच नमक, 4 मटजो शीट्स, पाव कप वनस्पति तेल।
विधि :
सबसे पहले ओवन को 350 डिग्री फेरनहाइट पर गरम करें और 8 बाय 8 की बेकिंग डिश में तेल लगाकर रख लें। मटजो शीट्स को टुकड़ों में तोड़ लें और पानी में नरम होने तक भिगोकर रखें। बाद में पानी से निकाल लें।
एक बाउल में अंडा, शक्कर, नमक, तेल और दालचीनी को एक साथ फेंट लें। इसमें भिगोया हुआ मटजो डालकर अच्छी तरह मिला लें। अब इसमें सेब और इलायची डालें। अब इस मिश्रण को तैयार बेकिंग डिश में डालें और 45 मिनट तक बेक करें। एप्पल एग केक तैयार है।
2 . एग-लेमन केक
सामग्री :
2 नींबू का रस, 4 अंडे, तीन पाव मैदा, 2 चम्मच बेकिंग पावडर, 1 चम्मच नमक, 1 कप मक्खन, 3 चम्मच आइसिंग शुगर, 1 कप शक्कर।
विधि :
सबसे पहले आइसिंग शुगर को मक्खन में अच्छी तरह मिला लें। अब इसमें मैदा, बेकिंग पावडर, नमक और अंडे को फोड़कर मिलाएं। अब इसे ओवन में 50 मिनट तक 400 डिग्री फेरनहाइट पर बेक करें। शक्कर और नींबू को उबाल लें। केक को ओवन से निकालने के बाद उस पर उबला हुआ नींबू का रस डाल दें और ठंडा करके परोसें।
3. डिलीशियस ओट्स केक
सामग्री :
1 प्याला ओट्स, 1 प्याला मैदा, 1 बड़ा चम्मच क्रीम, पाव प्याला ब्राउन शुगर, 1 गिलास दही की छाछ, आधा प्याला मक्खन पिघला हुआ, 1 छोटा चम्मच बेकिंग पावडर।
विधि :
सर्वप्रथम ओट्स को एक घंटा छाछ में भिगो दें। अब उपरोक्त सारी सामग्री को अच्छी तरह फेंटकर भिगोए हुए ओट्स में मिला दें।
फिर चिकनाई वाली मफिंग ट्रे में सारी सामग्री डाल दें और ओवन को 180 डिग्री सेंटीग्रेड पर गरम करके ट्रे उसमें रख दें। अब 15 मिनट बेक कर ओट्स केक पेश करें।
4. फेस्टिव कोको केक
सामग्री :
मिल्क मेड 1 टिन, मैदा 250 ग्राम, मक्खन 100 ग्राम, कोको पावडर 3 चम्मच, सिरका 1 बड़ा चम्मच, सोड़ा 1 चम्मच, क्रीम 1 कप, चेरी 1 कप, मेवे (कटे हुए) 1 कप।
विधि :
सबसे पहले मिल्क मेड को चम्मच से फेंटकर झागदार कर लें, फिर मक्खन मिलाकर दो मिनट और फेंटें। धीरे-धीरे मैदा डालें और मिलाते हुए सारे मिश्रण को एकसार कर दें। सोड़ा और सिरका डालकर मिला दें।
कोको मिला दें और ओवन में बेक कर लें। अब क्रीम को खूब फेंटकर केक के ऊपर तह जमा दें। चेरी और मेवे से सजाकर सर्व करें।
5. ऑमण्ड पैशन केक
सामग्री :
100 ग्राम (कटे हुए) बादाम, 275 ग्राम मैदा, 275 ग्राम शक्कर, मक्खन (पिघला हुआ) 125 ग्राम, पानी 35 मिली., बैंकिंग पावडर 1 चम्मच, बैकिंग सोडा 1/4 चम्मच, क्रीम 1 बड़ा चम्मच।
विधि :
पहले शक्कर व पानी को एक सॉस पैन में डालें। धीमी आंच पर चढ़ाएं और तीन तार की चाशनी बना लें। चाशनी में मक्खन डालें व अच्छी तरह मिला दें।
मैदा, बैकिंग पावडर व सोड़े को छान कर चाशनी में मिलाकर एकसार कर दें। क्रीम भी फेंट कर मिला दें। अब बादाम डालकर घी चुपड़ें, केक टिन में डाल दें और 180 सेंटीग्रेड पर 30 मिनट बेक कर लें। ठंडा होने पर ऑमण्ड पैशन केक क्रीम से सजा कर सर्व करें।
6. लाजवाब स्पंजी केक
सामग्री :
125 ग्राम मैदा, 75 ग्राम बटर, 200 ग्राम मिल्क मेड (आधा टीन), 100 मिली सोटा वाटर/ कोल्ड ड्रिंक, आधा टी स्पून मीठा सोडा, आधा टी स्पून बेकिंग पावडर, एक टी स्पून एसेंस।
विधि :
सबसे पहले माइक्रो को कन्वेक्शन मोड (180 डिग्री से.) पर 4 मिनट तक गर्म करें। अब मैदा, बेकिंग पावडर व सोडा छान लें। मक्खन और मिल्क मेड 4 से 5 मिनट तक फेटें। धीरे-धीरे सूखी सामग्री मिलाएं और सोडा की सहायता से घोल तैयार करें।
अब एसेंस डालें। मोल्ड (ग्लास या एल्यूमिनियम का बर्तन) के भीतर तेल लगाएं और डस्ट करें। घोल डालें। मोल्ड को लोवर रेक पर रखें और 180 डिग्री पर 25 से 30 मिनट तक बेक करें। ठंडा होने पर बाहर निकालें।
7. कोको केक
सामग्री :
250 ग्राम मैदा, 100 ग्राम ब्राउन शुगर, 120 ग्राम मारगीन, 1 टी स्पून कोको पावडर, 1/2 टी-स्पून मीठा सोडा, 1/2 टी-स्पून सिरका, 1/4 टी-स्पून जायफल पावडर, 2 कप दूध, नींबू का छिलका किसा हुआ, 1 नींबू का रस।
ब्राउन शुगर ऐसे बनाएं :
100 ग्राम शक्कर में 1/2 टेबल-स्पून जली शक्कर का रंग मिला दें।
विधि :
सबसे पहले शक्कर व मारगीन हल्का होने तक फेटें। तत्पश्चात मैदे में बेकिंग पावडर, जायफल पावडर, कोको पावडर मिलाकर छानें। अब इस छने हुए मैदे को मारगीन में हल्के हाथ से मिलाएं। इसमें दूध व मैदा डालकर मिलाते जाएं।
अब इसमें सिरका नींबू का रस, वनीला एसेंस मिलाकर 45 मिनट तक मध्यम से कम आंच पर व 15 मिनट तक एकदम कम आंच पर बेक करें। इलेक्ट्रिक ओवन में भी करीबन 50 से 55 मिनट तक बेक करें। तैयार कोको केक से फेस्टिवल का आनंद लें।
8. फ्रूट आइसक्रीम केक
सामग्री :
1 स्पंज केक (1 पाउंड का), 1/2 पैकेट लाल जैली, 1 फैमिली पैक वेनिला आइसक्रीम, 3/4 कप ताजा गाढ़ा दही, 5 बड़ा चम्मच पिसी चीनी, 1 छोटा डिब्बा अनारस के स्लाइस, 100 ग्राम क्रीम, 1 पैकेट जिलेटिन।
विधि :
केक को बीच से काटकर दो भागों में कर लें। अनारस के महीन टुकड़े कर लें। इसके रस को फेंके नहीं। केक के 1 भाग को रस से गीला कर लें। 3/4 कप रस में जिलेटिन मिलाकर धीमी आंच पर गलने तक पका लें।
1 1/2 कप उबलते पानी में जेली गलाकर उतार लें। ठंडा कर इसे केक के माप के जितने बड़े डिब्बे में जमने के लिए रख दें। आइसक्रीम गला लें। इसमें अनारस के टुकड़े, दही, 2 बड़ा चम्मच चीनी व पिघली जिलेटिन अच्छी तरह मिला लें।
इस घोल के बर्तन को गर्म पानी के बड़े बर्तन में रख गाढ़ा होने तक चम्मच से चलाएं । इस घोल को जेली के ऊपर डाल दें। फिर इसे फ्रिज में जमने रख दें। जब यह जम जाए तब गीला किया हुआ केक का 1 हिस्सा इसके ऊपर रख दें।
परोसने के पहले जेली के बर्तन को गर्म पानी में 2-4 मिनट रख दें। इससे आसानी से निकल आएगी। परोसने की प्लेट पर इसे उलटाकर दें। क्रीम में 3 बड़ा चम्मच चीनी मिला गाढ़ा होने तक फेंटें। इसे केक के चारों ओर लगा दें। इच्छा हो तो चेरी से सजाकर परोसें।
9. स्पेशल रोज केक
सामग्री :
2 कप मैदा, आधा कप मक्खन, एक चम्मच मलाई, एक कप पिसी चीनी, एक कप दही, एक चम्मच बेकिंग पावडर, आधा चम्मच मीठा सोडा, एक चम्मच स्ट्रॉबेरी एसेंस, 500 ग्राम ताजा क्रीम, डेढ़ कप आइसिंग शुगर, हरा, पीला और गुलाबी खाने का मीठा रंग कुछ बूँदे, सजावट के लिए एक चम्मच कटे बादाम- पिस्ता, एक कप बारीक कटे अखरोट, गुलाब जल।
विधि :
सबसे पहले मैदा, सोड़ा और बेकिंग पावडर छान लें। मलाई, मक्खन और चीनी को एक किनारी वाली थाली में इतना फेंटें कि वह एकदम हल्की क्रीम बन जाए। इसमें मैदा, दही और एसेंस मिलाकर मिश्रण को एकसार कर लें।
अब केक टीन में चिकनाई लगाकर थोड़ा-सा सूखा मैदा बुरक दें और फेंटे हुए मिश्रण को पॉट में डाल दें। ओवन को पहले से अच्छा गरम कर लें। केक टीन को रखकर करीब चालीस मिनट तक बेक करें। अब सलाई डालकर देखें यदि उस पर मिश्रण नहीं चिपक रहा है तो केक तैयार है। क्रीम में आइसिंग शुगर मिलाएं। इसे गाढ़ा और मुलायम होने तक फेंटें। रोज एसेंस मिलाएं। केक की ऊपरी सतह को किनारों को छोड़ते हुए बीच से गोलाई में काट कर निकाल दें। तैयार क्रीम के दो हिस्से कर लें। एक हिस्से को केक के बीच के हिस्से में फैला दें। किनारों पर भी अंदर की तरफ अच्छी तरह लगाएं।
दूसरे हिस्से में तीन भाग करके अलग-अलग कलर मिला दें। कोन में भरकर केक पर रंगीन गुलाब और हरी पत्तियां बना दें। हर फूल के बीच में बादाम, पिस्ता, अखरोट को चिपकाते हुए सुंदर डिजाइन बना दें। तैयार स्पेशल रोज केक अपनों को खिलाएं।
10. सोया वेनीला केक
सामग्री :
सोयाबीन (भीगे हुए) 1 कप, मैदा 1 कप, मक्खन या घी 2 कप, कैस्टर शुगर 2 कप, बेकिंग पावडर 1 चुटकी, काजू, बादाम, किशमिश 1 कप, वेनीला एसेंस।
विधि :
सबसे पहले सोयाबीन को चिकना पीसें। अब घी और शक्कर को फेंटें। इसमें सोया पेस्ट मिलाकर फेंटते हुए हल्का करें। वेनीला एसेंस, कटा सूखा मेवा और मैदा डालकर मिलाएं।
अब केक प्लेट में चिकनाई लगाकर हल्का-सा मैदा बुरकें। इसमें फेंटी हुई सामग्री डालें। पहले से गर्म किए ओवन में 180 डिग्री पर बेक करें। काजू से सजाकर मनचाहे आकार में काटें और इस खास पर्व पर पेश करें।
लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / लॉक डाउन के दौरान सोशल मीडिया पर ही पूरा घर-बंद देश उमड़ पड़ा... क्योंकि बाकि बचे हुए तो जीने मरने, अपने देश-गांव की मिटटी में लौटने की, जान की परवाह किए बिना, भूखे-प्यासे
अपने परिवारों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। देश इन्हीं दो वर्गों में बंट गया। साथ ही एक वो हिस्सा जो संक्रमित हो चुका है कोरोना से, उसकी अपनी एक अलग दुनिया है।
आज सर्वशक्तिमान कौन है? जो बनाता है, बिगाड़ता है, जोड़ता है, तोड़ता है, मिलाता है, बिछुड़ाता है, दोस्त और दुश्मन भी बना देता है। आपकी जिंदगी में कई मनमानियां भी ये पूरी करता है। अलादीन का चिराग है। सारे सपने घर बैठे ही पूरे कर सकता है। और तो और सरकारें बना देता है, सरकारें गिरा देता है।ये वो बला है जो न कराए वो थोड़ा है।रातों रात स्टार बना दे, क्षण भर
में मुंह काला करा दे। नाम बना दे-बदनाम कर दे...अब भी याद आया कि नहीं????
अरे भाई वही सरल सा तो जवाब है- सोशल मीडिया।
कोरोना ग्रासितों की दुनिया भी इससे आबाद है, उनका भी यही सोशल मीडिया सहारा बना हुआ है। यदि उनके पास इसकी सुविधा है तो।
अनहोनी को होनी कर दे, होनी को अनहोनी ऐसी शक्ति से संपन्न, दिल की गिरह खोल दो, चुप न बैठो मतलब
पूरी भड़ास निकालने का साधन, ये सोशल मीडिया का जादू है मितवा जिसमें अपने प्यारे हबी, शोना, बाबू, बेबी,
से, जो दिल ना कह सका वो भी इसी पर ढेर सारे किस्सी/पप्पी, दिलों के और भी उपलब्ध इमोजिस के साथ इठलाते
बलखाते फोटो, विडिओ, रोमांटिक गानों के साथ दिली तमन्ना पूरी करने का श्रेष्ठ माध्यम बना हुआ है ये आपकी मुट्ठी में भींचा हुआ यंत्र। तो बस अब खाली, चौबीसों घंटे घर में बैठा इंसान क्या करे ?
अब रोज परिवार कोरोना उत्सव मनाने लगे। पकवान/ व्यंजन बनने लगे। उनकी बाकायदा थाली/प्लेटें सजाई जातीं और पोस्ट की जातीं। महिलाएं सुंदर-सुंदर कपड़े पहनतीं तैयार होतीं, साड़ी चेलेंज निभातीं। त्यौहारों पर, जन्मदिन-शादी की सालगिरह पर घरों में ही कार्यक्रम/पार्टियां होतीं। जो उपलब्ध होता उसी में आनंद लेते और आज भी ले ही रहे हैं।
अब इन सभी गतिविधियों ने आनंद तो दिया पर इसका
फिर एक वर्ग ने घोर विरोध किया।। इनका कहना था कि देश ऐसी आपदा से घिरा हुआ है, लोग भूखे मर रहे, हैं और इन्हें ऐसी भरी हुई व्यंजनों की थाली पोस्ट करते लज्जा नहीं आ रही … और भर्त्सना कर-कर के ऊधम मचा दी। एक गुट तैयार हुआ शुरू हुई टांग खिंचाई।
देश गया...राष्ट्र-भक्ति गई बस उसने पोस्ट डाली का युद्ध बिगुल बज गया। कमेन्ट बॉक्स भर गए, लाइक और इमोजी की बाढ़ आ गई। कोसने-दुलराने का, पक्ष-विपक्ष, कटाक्ष-व्यंग का घमासान हो चला। आह-वाह और कराह हो गई भाई।।।
अब कुछ ने दूर दराज लोगों बसे अपने परिजनों में गीत-गजल, नृत्य-मनोरंजन और भी कुछ खेलों के ताजातरीन तरीके आजमाए। अपनी उपलब्धियां, सृजन-कार्य, सेवा- सहयोग कार्य सभी का विवरण फिर से उसमें पोस्ट किया। पुनः दो वर्गों में सोशलिये बंटे और फिर से कुश्ती शुरू। ज्ञान-गंगा बहना शुरू।
ऐसे समय ये शोभा देता है ? विपत्ति काल है। जरा तो शर्म करें। यहां हम पुरुषों का मुद्दा छोड़ देते हैं।
केवल महिलाओं की बात करते हैं। इन हरकतों ने कईयों के बीच झगडे करवा दिए, दूसरों की वाल पर जा कर रोईं। एक दूसरे की बुराई की, भरपूर कोसा, उसको नीच, खुद को महान बताया। स्क्रीन शॉट ब्रह्मास्त्र की तरह चले। रिश्ते बिगड़े, इज्जत उतरी, पंगे हुए। इन सबमें केवल और केवल आपकी छवि बिगड़ी,
बिना कारण तनाव हुआ, समय बिगड़ा, संबंध खराब हुए सो अलग।
सबसे पहले यह समझिए की ये एक छद्म दुनिया है। इससे कोई पुरस्कार नहीं मिलने वाला। पर आश्चर्य यह है कि यही विरोधी गुट खुद की किसी भी आत्मप्रशंसा का कोई मौका नहीं छोड़ रहा। खुद मियां मिट्ठू बने कोई बात नहीं, पर किसी दूसरे ने यदि कर दिया तो वो देश-द्रोही हो गया।
इस माया नगरी का यही जाल है। जो इसमें उलझता है उसे ये नगरी अपनी मिल्कियत लगने लगती है। यहां की दुनिया ने कई रिश्ते बना दिए, कई उजाड़ दिए। जानिए तो इसकी शुरुवात हुई कैसे ?
कहा जाता है सृष्टि का सारा ज्ञान शिव पार्वती के संवादों की वजह से उत्पन्न व प्रसारित हुआ है। अधिकांश ग्रंथों
में इस बात का उल्लेख भी इस श्लोक में मिलता है कि ‘ कैलाश शिखरे रम्ये गौरी प्रच्छति शंकरम्।’- गौरी प्रश्न पूछती हैं और महादेव उसका जवाब देते हैं। केवल उन दोनों के बीच हुआ संवाद उस समय के मीडिया अर्थात शिव के गणों के माध्यम से या सिद्ध ऋषियों की दिव्य दृष्टियों के माध्यम से संसार में
फैलता है। तत्पश्चात प्राचीन काल में ऋषियों व गुरुकुलों के आचार्यों की स्मृति शक्ति ही सोशल मीडिया के रूप में काम करती थी।
हजारों ग्रन्थ और उनके करोड़ों श्लोक ऋषियों ने गुरुकुलों में बैठ कर अपनी स्मृति से ही बोल बोल कर शिष्यों को याद करवाए। कहा जाता है की सर्व प्रथम रामायण महादेव ने लिखी थी जिसमें सौ करोड़ श्लोक थे। राम रक्षा स्त्रोत में ‘चरितं रघुनाथस्य शत कोटि प्रविस्तरं’ के रूप में इसका उल्लेख मिलता है। स्वाभाविक है इतने बड़े बड़े ग्रन्थ जब स्मृति से अगली पीढ़ी तक पहुंचते होंगे तो उसमें कुछ बातें घट या बढ़ जाया करतीं होंगी। कहा जाता है कि महाभारत का मूल नाम “जय” था और इसमें आठ हजार श्लोक थे। जो अब बढ़ते बढ़ते एक लाख हो गए।
इसी प्रकार वाल्मिकी रामायण के बारे में भी कुछ विद्वान् मानते हैं की वाल्मिकी ने श्री राम के राज तिलक के बाद का वर्णन नहीं किया है। जो वर्णन मिलता है वह किसी अन्य के द्वारा जोड़ा गया है।अर्थात उस समय भी सोशल मीडिया या कथाओं के मध्य से मूल प्रसंग, लेखकों के नाम में परिवर्तन कर दिए जाते थे। मजे की बात यह है कि इस प्रकार की गड़बड़ियों की जानकारी उस समय के विद्वानों को भी थी।
इसीलिए देव पूजन के बाद क्षमा
प्रार्थना में आज भी कहा जाता है कि “ हे प्रभु यदि अज्ञान या विस्मृति या भ्रान्ति के कारण मैंने कुछ कम या अधिक कहा हो या कोई अक्षर मात्रा या स्वर अशुद्ध हो गया हो तो उसे क्षमा करो। अर्थात उस समय सूचना का उद्गम सदैव शुद्ध और प्रामाणिक माना
जाता था। पर बाद में विकृति की संभावनाओं को स्वीकार कर लिया गया था। उस समय संस्कृति में विकृति का भय था। आज विकृति को और विकृत कर के हम संस्कृति सुधारने का प्रयास कर रहे हैं।
सूचना देते समय पासवर्ड या कोडवर्ड पहले भी चलते थे। जब अशोक वाटिका में माता जानकी को पवन पुत्र पर विश्वास नहीं हो रहा था तो उन्होंने ‘राम दूत मैं मात जानकी ,सत्य शपथ करुणा निधान की’ इस वाक्य का प्रयोग किया था।इसमें करुणा निधान शब्द पूरी राम चरित मानस में बहुत सीमित स्थानों पर आया है। और वे स्थान केवल राम और सीता के नितांत व्यक्तिगत संवादों के समय के हैं। अर्थात् उस समय करुणा निधान शब्द पासवर्ड के रूप में प्रयोग किया गया था।
अब यही सब यहां भी है।
सत्यता की परख और गलती की माफ़ी। पर हमारे बीच यही गायब हो चूका है। महिलाओं पर इसका गहरा असर हुआ है। ऐसा ही एक और पसंद किया जाने वाला सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म है वाट्स अप। व्यक्तिगत और समूहों में चलाये जाने वाला। इसमें भी खूब विवाद, कहा सुनी, तानाकशी चलती है। परिवार के ग्रुप तक में सदस्यों के ग्रुप बन जाते हैं।
शुभकामनाएं, बधाई तक के शब्दों का हिसाब-किताब होता है। किसी की प्रसिद्धि नागवार गुजरी तो मौन धर लो, किसी पर आशीर्वादों और तारीफों की बाढ़ ला दो। इनमे भी कुछ खास लोग सक्रिय
होते हैं। खुद तो दूसरों की तारीफ़ करते नहीं खुद के लिए पलकें बिछाए बैठते हैं और इज्जत का प्रश्न बना लेते हैं। यही हाल उनका फेसबुक पर भी होता है। परिचित व परिवार जन बहिष्कार करते हैं, ये उनकी जलन निकालने का सर्वोत्तम मार्ग होता है। इसलिए आप बाकी से भी उम्मीद न रखें।
असल में इस सोशल मीडिया से आप केवल जरुरी जानकारी लेने-देने जितना संबंध रखें। इसका अर्थ ही सामाजिकता से जुड़ाव
है न कि व्यक्तिगत। जैसे हाईटेंशन इलेक्ट्रिक लाईन घर के आगे से जा रही है तो क्या उसको आप पकड़ के देखेंगे कि करंट है या
नहीं ? या बिजली से बचने के लिए एहतियात बरतेंगे ? इसमें एक अर्थिंग लाईन भी बाकी सावधानी
के साथ देनी होती है।
राजनैतिक पोस्ट से बचने में ही भलाई होती है। इसकी कुर्सी के पाये साम, दाम, दण्ड, भेद होते हैं। हम “पबलिक{पब्लिक}” है जो कई बार कुछ नहीं जानती।
तो मित्रों इन
सब मूर्खताओं से पीछा छुडाओ। सोशल मीडिया की ये टुच्ची हरकतें वास्तविक आनंद और असल मित्रों से आपको दूर करतीं हैं। अव्वल तो जो आपके साथ जीवित, साक्षात, परिजन हैं उनके साथ सुख भोगें। किसने आपको इन पर विश किया, लाईक किया, कमेन्ट किया छोड़ें। इनके चक्कर में आप उन्हें भी खो रहे हैं जो आपके अपने हैं, आपके प्यार को, आपको
प्यार करने को तरस रहे हैं और आपकी ऊंगलियां इस निर्जीव मशीन को सहला रही है। इसी मशीन में छोटों ने जान दे रखी है…। और बड़ों की जान ले रखी है।आप समझें ये केवल रिश्तों को बनाने का साधन है साधक नहीं। इसके केवल फायदों के लिए इस्तेमाल में ही समझदारी है। वर्ना घर-समाज की बर्बादी है… केवल बर्बादी....
सेहत / शौर्यपथ आपको सालों से सिर के नीचे तकिया लगाकर सोने की आदत है, और अगर आप सोचते हैं कि बगैर तकिये के सोने से गर्दन में दर्द हो सकता है, तो आप गलत हैं। बल्कि बगैर तकिये किे सोने से आपको कई तरह के शारीरिक और मानसिक लाभ हो सकते हैं। यदि आप अब तक अनजान हैं, तो जानिए बगैर तकिये के सोने से होते हैं कौन से 5 फायदे -
1 यदि आप अक्सर पीठ, कमर या आसपास की मांसपेशियों में दर्द महसूस करते हैं, तो बगैर तकिये के सोना शुरू कीजिए। दरअसल यह समस्या रीढ़ की हड्डी के कारण होती है, जिसका प्रमुख कारण आपका सोने का तरीका है। बगैर तकिये के सोने पर रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी रहेगी और आपकी यह समस्या कम हो जाएगी।
2 सामान्य तौर पर गर्दन और गंधों के अलावा पिछले हिस्से में दर्द आपके तकिये के कारण होता है। बगैर तकिये के सोने पर इन अंगों में रक्त संचार बेहतर होगा और आप दर्द से निजात पा सकेंगे।
3 कई बार गलत तकिये का इस्तेमाल आपको मानसिक समस्या भी दे सकता है। यदि तकिया कड़क है तो यह आपके मस्तिष्क पर बेवजह दबाव बना सकता है जिससे मानसिक विकार की संभावना बढ़ जाती है।
4 विशेषज्ञों का मानना है कि बगैर तकिये के सोना आपको निर्बाध रूप से अच्छी नींद लेने में मदद करता है, और आप बेहतर गुणवत्ता के साथ आरामदायक नींद ले पाते हैं, जिसका असर आपके मूड और स्वास्थ्य पर पड़ता है।
5 यदि आप नींद में अपना चेहरे तकिये की तरफ मोड़कर या तकिये में मुंह डालकर सोते हैं तो यह आदत आपके चेहरे पर झुर्रियां पैदा कर सकती है। इसके अलावा यह तरीका आपके चेहरे पर घंटों तक दबाव बनाए रखता है जिससे रक्त संचार प्रभावित होता है, और चेहरे की समस्याएं उभरती हैं।
धर्म संसार / शौर्यपथ / गंगा दशहरा पर्व सनातन संस्कृति का एक पवित्र त्योहार है। धार्मिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि इस दिन मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था।
गंगा दशहरा के दिन पवित्र नदी गंगा में स्नान करने से मनुष्य अपने पापों से मुक्त हो जाता है। स्नान के साथ-साथ इस दिन दान-पुण्य करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं इस साल कब है गंगा दशहरा पर्व और हिन्दू धर्म में क्या है इस खास पर्व का महत्व।
कब है गंगा दशहरा?
हिन्दू पंचांग के अनुसार, गंगा दशहरा पर्व प्रति वर्ष ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार यह तिथि 1 जून 2020, सोमवार को है। इसलिए गंगा दशहरा इस साल 1 जून को मनाया जाएगा।
गंगा दशहरा मुहूर्त
दशमी तिथि आरंभ: 31 मई 2020 को शाम 05:36 बजे से
दशमी तिथि समापन: 1 जून 2020 को दोपहर 02:57 बजे तक
मां गंगा का शुभ मंत्र
नमो भगवते दशपापहराये गंगाये नारायण्ये रेवत्ये शिवाये दक्षाये अमृताये विश्वरुपिण्ये नंदिन्ये ते नमो नम:
अर्थ - हे भगवती, दसपाप हरने वाली गंगा, नारायणी, रेवती, शिव, दक्षा, अमृता, विश्वरूपिणी, नंदनी को को मेरा नमन।
गंगा दशहरा का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, गंगा मां की आराधना करने से व्यक्ति को दस प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। गंगा ध्यान एवं स्नान से प्राणी काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, ईर्ष्या, ब्रह्महत्या, छल, कपट, परनिंदा जैसे पापों से मुक्त हो जाता है। गंगा दशहरा के दिन भक्तों को मां गंगा की पूजा-अर्चना के साथ दान-पुण्य भी करना चाहिए। गंगा दशहरा के दिन सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दोगुना फल की प्राप्ति होती है।
मां गंगा की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, मां गंगा को स्वर्गलोक से धरती पर राजा भागीरथ लेकर आए थे। इसके लिए उन्होंने कठोर तप किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा ने भागीरथ की प्रार्थना स्वीकार की थी। लेकिन गंगा मैया ने भागीरथ से कहा था कि पृथ्वी पर अवतरण के समय उनके वेग को रोकने वाला कोई चाहिए अन्यथा वे धरती को चीरकर रसातल में चली जाएंगी और ऐसे में पृथ्वीवासी अपने पाप से मुक्त नहीं हो पाएंगे। तब भागीरथ ने मां गंगा की बात सुनकर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की। भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर प्रभु शिव ने गंगा मां को अपनी जटाओं में धारण किया।
धर्म संसार / शौर्यपथ / श्रीकृष्ण कहते हैं कि हम कलियुग में एक ऐसा अवतार लेंगे जिसमें शरीर तो कृष्ण का ही होगा परंतु हृदय राधा का होगा। यह सुनकर राधा कहती हैं कि अहा कितना आनंद आएगा जब राधा की भांति दरदर होकर केवल कृष्ण-कृष्ण पुकारते फिरोगे। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं हां, वही करूंगा। वही करूंगा। चैतन्य के रूप में नवद्वीप से लेकर वृंदावन तक कृष्ण कृष्ण पुकारता जाऊंगा।
इसके बाद चैतन्य महाप्रभु को अपने दो साथियों के साथ हरि कीर्तन करते हुए बताया जाता है। फिर से श्रीकृष्ण राधा से कहते हैं कृष्ण कृष्ण पुकारता जाऊंगा। ताकि तुम्हारी तरह कृष्ण प्रेम में तड़प कर देख सकूं। यह सुनकर राधा कहती हैं कि यदि उस तड़प का पूरा आनंद लेना है तो एक काम करिए। तब कृष्ण पूछते हैं, क्या? फिर राधा कहती हैं मुझे मुरली बजाना सिखा दीजिए। इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं क्या करोगी? तब राधा कहती हैं कि जब आप विरह व्यथा से पीड़ीत होंगे तो आपकी तरह वृंदावन में चैन से बैठकर मुरली बजाऊंगी। जिसकी ध्वनि सुनकर आप भी मेरी तरह बैचेन हो जाएंगे।
फिर उधर, गोकुल के यमुना किनारे श्रीकृष्ण और राधा को पुन: बताया जाता है। राधा कहती हैं मुझे भी मुरली बजाना सिखाओ। तब कृष्ण कहते हैं कि मुरली नहीं है। यह सुनकर श्रीकृष्ण के हाथ से मुरली लेकर राधा कहती हैं फिर ये क्या है? इस पर कृष्ण कहते हैं ये तुम्हारे काम की नहीं, तुम्हे तो ऐसी मुरली चाहिए जो केवल कृष्ण को जगाए। कृष्ण की मुरली बजेगी तो सारे ब्रह्मांड को जगा देगी। फिर एक तुम ही नहीं और न जाने प्रेम की कितनी ही आत्माएं इस मुरली के स्वरों में बंधकर खिंची चली आएंगी। अगर ऐसा हुआ तो तुम क्या करोगी? फिर उन सबको संभालना तुम्हारे बस में नहीं होगा।
यह सुनकर राधा उठकर खड़ी हो जाती है और कहती हैं ये तुम्हारा अहंकार है कान्हा। राधा जैसा प्रेम तुमसे और कौन करेगा? जो इस प्रकार मतवाली होकर लोकलाज, रिश्ते-नाते सब छोड़-छाड़कर तुम्हारे पीछे फिरेंगी। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि अब अहंकार तुम कर रही हो राधे। याद रखो अहंकार प्रेम का शत्रु होता है।
तब राधा कहती हैं कि जिसे तुम अहंकार कह रहे हो वह प्रेम का अधिकार है और जो सबसे अधिक प्रेम करेगी वह अवश्य अपना अधिकार मांग सकती हैं। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि प्रेम में मांगना नहीं देना होता है राधे। तब राधा कहती हैं कि ये सब दार्शनिक बातें रहने दो। तुम्हें अभिमान हैं ना अपनी दूसरी प्रियतमाओं पर तो बजाओ अपनी मुरली और बुला लो उन सबको। आज हो जाए सबके प्रेम की परीक्षा।
ऐसा कहकर राधा श्रीकृष्ण के आसपास एक गोला बना देती हैं और कहती हैं कि इस वृत्त के अंदर वही पैर धर सकेंगी जो तुमसे मेरी तरह प्रेम करती हों अन्यथा यहीं भस्म हो जाएगी। तब श्रीकृष्ण राधा की ओर गौर से देखते हैं तो राधा कहती हैं कि देखते क्या हो बजाओ मुरली और बुला लो उन सबको। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि फिर सोच लो। राधा कहती हैं सोच लिया।
यह सुनकर श्रीकृष्ण अपने अधरों कर मुरली को रखकर आंखें बंद कर ऐसी मुरली बजाते हैं कि राधा कि सभी सखियां बेसुध होकर अपना स्थलू शरीर छोड़ कान्हा के पास यमुना पर पहुंच जाती हैं। यह देखकर राधा आश्चर्य से देखती हैं कि ये सखियां तो यहां आ रही हैं। वे सभी आकर उस वृत्त (गोले) के आसपास एकत्रित होकर कान्हा की मुरली सुनती रहती हैं।
राधा यह देखकर गोले के आसपास अपनी शक्ति से आग उत्पन्न कर देती हैं, लेकिन वह सभी सखियां आग को पार करके कान्हा के और नजदीक पहुंच जाती हैं। यह देखकर राधा की आंखों से आंसू झरने लगते हैं। कुछ क्षण में आग लुप्त हो जाती है। राधा कृष्ण के चरणों में हाथ जोड़कर बैठ जाती हैं और कहती हैं मुझे क्षमा कर दो कान्हा। मैंने भूल से तुम पर केवल अपना ही अधिकार समझा था। आज मेरे अहंकार टूट गया। राधा हार गई।
यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि इन्हें ध्यान से देखो। ये ललीता, विशाखा, उत्तरा सभी मानती हैं कि ये तुमसे अधिक प्रेम करती हैं। ये सब मुझे अपना पति मानती हैं, लेकिन ये सभी वास्तव में तुम ही हो राधा। प्रभु अपनी माया से राधा को दिखाते हैं कि ये सभी सखियां तुम ही हो। प्रभु कहते हैं कि राधा और श्रीकृष्ण के सिवाय इस संसार में कुछ नहीं। तब राधा कहती हैं कि एक चीज है और वो है प्रेम। राधा और कृष्ण का प्रेम। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं आज हम तुमसे फिर हार गए राधा।
इसके बाद दोनों एक अंधे व्यक्ति के भजन सुने में डूब जाते हैं।
दूसरी ओर अक्रूरजी से गर्ग ऋषि हंसते हुए कहते हैं कि अच्छा देवी देवकी ने ऐसा कहा कि उसका छोटा अनपढ़ ही अच्छा। वो गय्या चराएगा और मुरली ही बजाएगा। यह सुनकर अक्रूरजी कहते हैं जी गुरुदेव ऐसा ही कहा उन्होंने। तब गर्ग मुनि कहते हैं कि वाह वाह वाह, कैसी गूढ़ बात कहती उन्होंने। आप इसका अर्थ समझे?
यह सुनकर अक्रूरजी कहते हैं कि दोनों राजकुमारों को अपने वंश और अपने देश को ध्यान में रखकर वही काम करने चाहिए जिससे राजकुमारों का उत्तरदायित्व पूरा हो। यह सुनकर गर्ग मुनि कहते हैं कि श्रीकृष्ण केवल राजकुमार ही नहीं। कुछ और भी हैं। आप उनके उत्तरदायित्व को समझ सकते हैं? अक्रूरजी जो विद्या और जो ज्ञान आप उन्हें सिखाना चाहते हैं वह सब उनकी मुरली की धुन में छुपा हुआ है।
लेकिन अक्रूरजी यह बात नहीं मानते और कहते हैं कि उनका धर्म ये आज्ञा नहीं देता है कि वो एक काल्पनिक विश्वास का सहारा लेकर इस प्रकार अकर्मण्य होकर केवल हाथ पर हाथ धरे अच्छा समय आने की प्रतीक्षा करते रहें। तब गर्ग मुनि कहते हैं कि आपकी बात भी सही है। आप जैसा कर्मयोगी केवल मनुष्य की शक्ति पर ही विश्वास रखकर अपना कर्म निर्धारित करता है। परंतु हम जैसे भक्त केवल उसकी शक्ति पर भरोसा रखकर ही कर्म करते हैं जो मनुष्य को भी शक्ति देता है।
फिर अक्रूरजी कहते हैं कि गुरुदेव मैं समझता हूं कि दोनों राजकुमार अब किशोरावस्था में हैं। अब उन्हें कंस से टक्कर लेने के लिए अपनी पूरी तैयारी शुरु कर देना चाहिए। इसलिए मैं आपकी सेवा में आया हूं कि आप ही वसुदेवजी को आदेश दे सकते हैं कि अब राजकुमारों का समय यूं गय्या चराने में बर्बाद न किया जाए। यह सुनकर गर्ग मुनि कहते हैं कि उनका समय बर्बाद नहीं हो रहा अक्रूरजी। ये समय तो उनकी प्रेम लीला का है। मानव को ये सिखना है कि प्रेम के बिना मानव का जीवन अधूरा है। गर्ग मुनि कहते हैं कि श्रीकृष्ण पूर्णावतार हैं वे समय आने पर राजनीति भी सिखाएंगे और युद्ध भी करेंगे। निर्माण और संहार करना भी सिखाएंगे।
अक्रूरजी को गर्ग मुनि की बात समझ में नहीं आती है। वे कहते हैं कि जरासंध, बाणासुर और कंस जैसे लोग मिलकर इस धरती को नरक बना दें उससे पहले उनकी शक्तियों का अंत कर देना चाहिए। तब गर्ग मुनि कहते हैं कि उसका समय तो आने दीजिए? यह सुनकर अक्रूरजी कहते हैं कि वह समय कब आएगा? गर्ग मुनि कहते हैं कि बस आने ही वाला है लेकिन अभी तो प्रभु की प्रेम लीला जारी है। विनाश की लीला आरंभ करने से पहले वे मनुष्य को यह संदेश देना चाहते हैं कि अंतत: प्रेम ही सृष्टि का आधार है और वहीं जगत का सार है।
फिर से उस अंधे को कीर्तन करते हुए बताया जाता है। कीर्तन सुनकर गर्ग मुनि कहते हैं कि आह कवि की परिकल्पना में उस परम सत्य की कैसी व्याख्या है। अक्रूजी जी वास्तव में कवि की दूरदृष्टि ही समय की सीमाओं को लांघकर उस परम सत्य को देख सकती हैं।...जय श्रीकृष्णा।
नजरिया /शौर्यपथ / पूरा विश्व इस वक्त कोविड-19 से जूझ रहा है। ज्यादातर आर्थिक गतिविधियां रुकी हुई हैं। विभिन्न प्रकार की समस्याओं से लगभग सभी देश जूझ रहे हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। यहां पर प्रवासी मजदूरों की समस्या जबरदस्त रूप में उभरकर सामने आई है। ये मजदूर अलग-अलग प्रांतों से मुख्यत: तीन राज्यों- उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में आ रहे हैं। इनमें सबसे बड़ी संख्या अभी तक उत्तर प्रदेश में 26 लाख लोगों के आने की है। सबका ध्यान सरकार पर है कि वह इनके लिए क्या कर रही है। आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो चुके हैं।
आर्थिक सर्वेक्षण 2017 बताता है कि देश में लगभग 14 करोड़़ मजदूर मौसमी या चक्रीय स्वरूप के हैं। यही मजदूर कोविड-19 के बाद आर्थिक पुनर्गलन में अहम भूमिका निभाएंगे, जैसाविश्व आर्थिक मंच कहता है। ये मजदूर अर्थव्यस्था के तीनों सेक्टर- कृषि, उद्योग और सेवा में अपना योगदान देते हैं। सेवा क्षेत्र में ये कूड़ा उठाने से लेकर सड़क-भवन निर्माण, मलबा ढोने तक के काम में शामिल हैं। औद्योगिक क्षेत्र में माल ढोने से लेकर उत्पादित वस्तुओं को लादने तक में ये अपना योगदान देते हैं, तो वहीं कृषि क्षेत्र मे बुआई, कटाई और उत्पादित फसलों की ढुलाई इत्यादि का काम करते हैं। इनके शारीरिक योगदान से ही अर्थव्यवस्था में रोजगार और उत्पादन संभव है। ये अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इनके बिना तो अर्थव्यवस्था की रीढ़ ही टूट जाएगी।
सवाल यह है कि मजदूर आखिर क्यों सड़क पर आए? पहला कारण तो यही है कि राज्य सरकारों ने उनकी क्रय-शक्ति पर ध्यान ही नहीं दिया। कोविड से पहले वे जहां थे, वहीं उनके रहने, खाने व उनकी क्रय-शक्ति बनाए रखने की व्यवस्था होनी चाहिए थी। परंतु ऐसा नहीं हुआ। और जो कुछ किया भी गया, वह उन्हें रोकने के लिए पर्याप्त नहीं था।
दूसरा कारण राजनीतिक है। कुछ सत्तासीन पार्टियों को लगता है कि प्रवासी मजदूर उनको वोट तो देते नहीं, इसीलिए इनका पलायन होने दो। उन्हें शायद यह भी लगता है कि इनके चले जाने से स्थानीय वोट बैंक को संतुष्टि भी मिलेगी और रोजगार के अवसर भी होंगे। लेकिन इससे नुकसान स्थानीय राज्यों का भी है, क्योंकि सामान ढोने वालों, सड़कें बनाने वालों की कमी पड़ जाएगी। इसके सामाजिक पहलू की भी पड़ताल की जानी चाहिए। प्रवासी मजदूर जहां वर्षों से रह रहे थे, वहां उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती चली गई। इनका हिस्सा उस राज्य के रोजगार, आय, जमीन, मकान आदि में बढ़ता चला गया। इस वजह से वह स्थानीय जनता नाराज होने लगी, जो इन्हें सिर्फ मजदूर के रूप में देखना चाहती थी। इस तबके की नाराजगी भी प्रवासियों को झेलनी पड़ी है।
ऐसी स्थिति में सरकारों को मजदूरों तक सामाजिक व वित्तीय सुरक्षा के साथ-साथ तत्काल नकदी पहुंचाने की व्यवस्था करनी चाहिए। केंद्र सरकार ने इस दिशा में पीएम किसान योजना, मनरेगा व अन्य योजनाओं के जरिए महत्वपूर्ण कदम उठाए भी हैं। ऐसी आपदा के समय त्वरित निर्णय और तीव्र कार्यशैली का काफी महत्व होता है। इस लिहाज से उत्तर प्रदेश सरकार अपनी समकक्ष सरकारों से काफी आगे दिख रही है। प्रदेश सरकार ने 353 करोड़ रुपये का एक त्वरित राहत पैकेज जारी किया है, जिससे 30 लाख से भी अधिक श्रमिक लाभान्वित होंगे। यूपी लौट रहे प्रवासी मजदूरों को मुख्यमंत्री लगातार यह भरोसा दे रहे हैं कि प्रदेश में आने वाले निवेश के जरिए वह उनके रोजगार व सामाजिक सुरक्षा की समुचित व्यवस्था करेंगे। यदि उत्तर प्रदेश ऐसे श्रमिकों को लेकर अपनी योजना में कामयाब रहा, तो उसके पास दूसरे राज्यों में काम कर रहे अपने श्रमिकों का भी पूरा ब्योरा होगा और जब कभी भी कोई आपदा आएगी, तो वह उसके हिसाब से प्लान कर सकेगी। मानव संपदा के सकारात्मक इस्तेमाल से प्रदेश की तस्वीर बदली जा सकती है।
अन्य राज्य सरकारें भी केंद्र के साथ मिलकर मजदूरों के लिए योजनाएं बना रही हैं। कोरोना के कारण राजस्व को पहुंचे भारी नुकसान की भरपाई के लिए भी वे तरकीबें निकालने में जुटी हैं। जाहिर है, इस विकट संकट से निपटने के लिए त्वरित निर्णय और दीर्घकालिक रणनीति बनाने की जरूरत है। अब सोचना उन राज्यों को भी होगा, जहां से श्रमिकों का पलायन हुआ है, वे अपनी अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहे कामगारों का भरोसा कैसे जीतेंगे?
(ये लेखक के अपने विचार हैं) शक्ति कुमार, चेयरपर्सन, सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज ऐंड प्लानिंग, जेएनयू
सम्पादकीय लेख /शौर्यपथ / देश में पांचवें लॉकडाउन का लागू होना उतना ही जरूरी हो गया था, जितना लॉकडाउन में ढील देना। कड़ाई और ढील की मिली-जुली व्यवस्था ही समय की मांग है। प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम में भी इसी मजबूरी की ओर संकेत करते हुए चेताया है कि देश खुल गया है, अब ज्यादा सतर्क रहने की आवश्यकता है। वाकई सतर्कता आज प्राथमिकता है, तभी हम न केवल अपने कार्य-व्यापार को आगे बढ़ा पाएंगे, स्वयं को सुरक्षित रखने में भी कामयाब होंगे। जाहिर है, लॉकडाउन पांच पिछले लॉकडाउन की तरह नहीं है। अब केवल कंटेनमेंट जोन में ही लॉकडाउन रखना अनिवार्य होगा। साथ ही, इस बार राज्यों की भूमिका वाकई बहुत बढ़ गई है। उन्हें अपने स्तर पर बड़े फैसले करने हैं। मध्य प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, बिहार इत्यादि राज्यों ने तो लॉकडाउन को 30 जून तक बढ़ाने का फैसला कर लिया है। कुछ राज्य 15 जून तक ही लॉकडाउन के पक्ष में हैं। आज कुछ राज्य ज्यादा चिंतित हैं, तो समझा जा सकता है। पिछले लॉकडाउन की अगर हम चर्चा करें, तो 14 दिनों में ही संक्रमण के लगभग 86 हजार मामले सामने आए हैं। आंकड़ों को अलग से देखें, तो चिंता होती है, लेकिन दूसरे देशों से तुलना करें, तो अपेक्षाकृत संतोष होता है। हमारा यह संतोष कायम रहना चाहिए।
यह चर्चा जारी रहेगी कि जब देश में 500 मामले भी नहीं थे, तब बहुत कड़ाई से लॉकडाउन लगाया गया था, लेकिन जब मामले दो लाख के करीब पहुंचने लगे हैं, तब लॉकडाउन में ढील दी जा रही है। जब केंद्र और राज्य सरकारें ढील पर विचार कर रही थीं, तब 30 मई को संक्रमण के मामलों में रिकॉर्ड इजाफा दर्ज हुआ है। अब एक दिन में 8,000 से ज्यादा मामले आने लगे हैं, तो आने वाले दिनों में क्या होगा? मरने वालों की संख्या भी 5,000 के पार जा चुकी है। ऐसे में, जब धर्मस्थल, रेस्तरां, होटल, शॉपिंग मॉल, स्कूल-कॉलेज खुल जाएंगे, तब क्या होगा? जब सड़कों पर सार्वजनिक वाहन दौड़ने लगेंगे, फिर क्या होगा? धर्म और शिक्षा के मंदिर देश में हमेशा से भीड़ भरे रहे हैं। ये हमारे समाज के सबसे कमजोर मोर्चे हैं, जहां संचालकों-प्रबंधकों को विशेष रूप से चौकस रहना होगा। धर्मस्थल के संचालकों की ओर से आ रहे दबाव को समझा जा सकता है, पर वहां फिजिकल डिस्टेंसिंग को सुनिश्चित रखना अच्छे संस्कार, सभ्यता की नई निशानी होगी। धर्म प्रेरित मानवता भी हमें एक-दूसरे की चिंता के लिए प्रेरित करती है। हम सभी न चाहते हुए भी एक-दूसरे को प्रभावित करते रहते हैं।
कोरोना के संदर्भ में अनेक लोगों को अब यह नहीं पता चल रहा है कि उन्हें कोरोना किससे लगा? घर से निकलने वाला एक आदमी अगर अनेक लोगों के संपर्क में आएगा, तो यह पता लगाना उत्तरोतर कठिन होता जाएगा कि कोरोना की कौन-सी शृंखला आगे बढ़ रही है। लॉकडाउन पांच के समय देश ऐसी अनेक तरह की नई चुनौतियों की ओर बढ़ रहा है। संदिग्ध लोगों की निगरानी का काम हाथ-पैर फुला देगा। बेशक, अर्थव्यवस्था में कुछ सुधार हम देखेंगे और देश के लोगों को राहत देने के लिए यह अपरिहार्य है। ध्यान रहे, हर जगह पुलिस या सरकार खड़ी नहीं हो सकती, हमें स्वयं अनुशासित नागरिक बनकर अपनी और अपने पास के लोगों की पहरेदारी करनी है। यह अपनी ऐसी फिक्र करने का समय है, जिसमें सबकी फिक्र शामिल हो।
मेलबॉक्स / शौर्यपथ / हर महामारी ने समय-समय पर मनुष्य के लिए संकट पैदा किया है, लेकिन उसके साथ वह इंसान को कई सीख और संदेश भी देकर गई है। वर्तमान में अपने चरम पर चल रही कोरोना महामारी के साथ भी ऐसा ही है। कोरोना से हमारी जंग जारी है। बतौर सबक उत्तर प्रदेश जैसे राज्य श्रमिक आयोग के गठन की घोषणा कर रहे हैं, तो केंद्र सरकार भी ‘माइग्रेंट वर्कर्स’ को परिभाषित करने जा रही है, जो आने वाले वर्षों में काफी राहतपूर्ण कदम साबित हो सकते हैं। एक सबक यह भी है कि प्रकृति से खिलवाड़ जानलेवा हो सकता है, और अगर हम यूं ही उसके साथ छेड़छाड़ करते रहे, तो वह अपने घाव खुद भर सकती है। तो क्या आगे भी हम पर्यावरण को स्वच्छ रखेंगे? लॉकडाउन अवधि में अपराधों में आई कमी कायम रखेंगे? पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण बंद करेंगे? इन सवालों का सटीक जवाब अभी नहीं दिया जा सकता, लेकिन गांधी जी के स्थानीय स्वशासन के मंत्र को यदि हम अपना लें, तो देश भर में होने वाला भीतरी पलायन भी रुक सकता है। राज्य सरकारों को इसकी तरफ सोचना चाहिए।
उज्ज्वल अवस्थी
मदद वाले हाथ
बॉलीवुड पर संवेदनशील मामलों पर चुप्पी बरतने के आरोप अक्सर लगते रहे हैं, लेकिन कोरोना महामारी के दौरान अभिनेता सोनू सूद द्वारा गरीब लोगों को घरों तक पहुंचाने के लिए किए गए प्रयास सराहनीय हैं। सोनू सूद जैसे अभिनेताओं से सरकार के जिम्मेदार लोग बहुत कुछ सीख सकते हैं कि जनता के पैसे को जनता पर खर्च कर कैसे जनसेवा की जा सकती है। कोरोना वायरस बेशक आर्थिक रूप से सरकारों की कमर तोड़ रहा है, लेकिन अभिनेता सोनू सूद जैसे मदद करने वाले लोगों के सामने आने वाली प्रशासनिक मुश्किलों का तुरंत निपटारा तो सरकार कर ही सकती है। ऐसा करने से मदद करने वाले हाथ और ज्यादा मजबूत होंगे।
महेश कुमार सिद्धमुख, राजस्थान
इंटरनेट का बढ़ता दायरा
डिजिटल दुनिया का साम्राज्य बढ़ता ही जा रहा है। आलम यह है कि सूक्ष्म से लेकर विशाल तक, सभी चीजों के लिए डिजिटल माध्यम को अपनाने की मांग हो रही है। एक तरफ, डिजिटल के फायदे हैं, तो दूसरी तरफ इसके कुछ नुकसान भी हैं। सभी के लिए, खासतौर से ग्रामीण इलाकों में, जहां इंटरनेट की सुविधा नहीं है, वहां डिजिटल नहीं, नॉर्मल दुनिया की जरूरत है। सरकारी स्तर पर भी अब हर जगह डिजिटल की मांग है, पर उसमें भी यह सबके लिए संभव नहीं। सरकारी क्षेत्र हो या निजी, किसी भी जगह डिजिटल के साथ-साथ सामान्य सुविधा भी आवश्यक है। डिजिटल के साथ ऐसी व्यवस्था भी जरूरी है, जो सबके लिए उपयुक्त हो और सब उसका आसानी से इस्तेमाल कर सकें।
माधुरी शुक्ला, सारनाथ, वाराणसी
चौधराहट मंजूर नहीं
भारत-चीन सीमा पर उत्पन्न तनाव को कम करने के लिए पिछले कुछ दिनों से कूटनीतिक और राजनीतिक प्रयास किए जा रहे हैं। इन कोशिशों का सकारात्मक परिणाम भी सामने आया है। अब चीन के रुख में नरमी दिखने लगी है। मगर, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस बीच मध्यस्थता की पेशकश कर दी। जाहिर है, वह भारत-चीन सीमा विवाद को नया रूप देने की कोशिश में हैं। इससे पहले जम्मू-कश्मीर पर भी ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की बात कही थी, जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया था। मौजूदा हालात में, जब अमेरिका-चीन के बीच व्यापार युद्ध चल रहा है और कोविड-19 पर उन दोनों में तकरार जारी है, तब अमेरिका द्वारा मध्यस्थता की बात कहना कहां तक प्रासंगिक है? सच्चाई तो यह है कि अमेरिका अपनी चौधराहट दिखाना चाहता है, जिसे हमें कतई नहीं मानना चाहिए।
अली खान, जैसलमेर, राजस्थान
ओपिनियन / शौर्यपथ /इस अंजुमन में आपको आना है बार-बार, दीवारो-दर को गौर से पहचान लीजिए... उमराव जान फिल्म के एक गीत की यह पंक्ति आज काफी मौजूं है। घर, दफ्तर और बाहर, अगर दीवारों-दर ही बदल चुके हों, तो? और अगर आप भी बदल गए हों, तो? बदलाव तय है। मशहूर चिंतक, लेखक थॉमस फ्रीडमैन ने कहा है कि हम इतिहास की एक नई विभाजन रेखा पर खड़े हैं। दुनिया का इतिहास अब ईसा से पहले और ईसा के बाद के पैमाने पर नहीं, बल्कि कोरोना से पहले और कोरोना से बाद के कालखंडों में विभाजित होगा। ‘उत्तर कोरोना काल’ में जो चीजें सबसे ज्यादा बदली हुई होंगी, उनमें से एक है- हमारा सामाजिक व्यवहार और दूसरा है- काम करने का हमारा तरीका।
पहले भी लोग घर से या दफ्तर के बाहर से काम करते थे, लेकिन वे अपवाद थे। अब कोरोना के समय दफ्तर जाने वाले अपवाद हैं। इसीलिए सबके मन में सवाल है कि ऐसे ही क्यों नहीं चल सकता? दफ्तर की क्या जरूरत है? कई छोटे दफ्तर चलाने वाले तो फैसला कर चुके हैं कि अब दफ्तर बंद करके किराया बचाया जाए। दुनिया की चर्चित आर्थिक पत्रिका इकोनॉमिस्ट ने एक लेख में ऑफिस का मर्सिया लिख दिया है। डेथ ऑफ द ऑफिस शीर्षक वाले लेख में बताया गया है कि इस बीमारी के आने से पहले ही दफ्तर खतरे में थे, अब यह खतरा और भी बढ़ गया है। हालांकि लेखक रियायत देते हैं कि फिलहाल ऑफिस की जान नहीं जाने वाली।
इधर रियल एस्टेट कंसल्टेंसी नाइट फ्रैंक ने भारत में कमर्शियल रियल एस्टेट के जिम्मेदार लोगों के बीच एक सर्वे किया है। इसके मुताबिक, 72 प्रतिशत लोग सोच रहे हैं कि छह महीने बाद भी दफ्तर के आधे लोगों से घर से ही काम लेना जारी रखा जाए। जल्दी ही उन दफ्तरों के बारे में फैसला होना है, जहां लॉकडाउन लगने के बावजूद लोगों ने घर से काम करके कामकाज पर असर नहीं आने दिया है। ऐसी कंपनियों का सोचना है कि क्या सबको काम पर वापस बुलाना है या कम लोगों को दफ्तर बुलाकर बाकी के घर को ही दफ्तर मान लिया जाए? मैकिंजी के सर्वेक्षण में शामिल एक कंपनी के सीईओ ने इस पर बहुत दिलचस्प टिप्पणी की है। उन्होंने कहा है कि इसे ‘वर्क फ्रॉम होम’ कहने की बजाय ‘स्लीपिंग इन ऑफिस’ कहना बेहतर होगा। घर से काम कर रहे लोगों और उनके घरवालों से बात कीजिए, तो यह बात सटीक लगेगी। ज्यादातर का कहना है कि अब वे पहले से ज्यादा व्यस्त हैं। ज्यादा समय काम कर रहे हैं और इस चक्कर में घर का संतुलन भी बिगड़ रहा है, क्योंकि सब अपने-अपने कंप्यूटर या मोबाइल के जरिए किसी न किसी मीटिंग या क्लास में व्यस्त रहते हैं।
वैसे ऑफिस कम रेजिडेंस यानी घर और दफ्तर एक साथ की अवधारणा नई नहीं है। आम तौर पर इसका अर्थ एक बड़ा बंगलेनुमा घर होता है, जिसमें रहने का हिस्सा अलग और दफ्तर का हिस्सा अलग होता है। बडे़ अधिकारियों की जिंदगी आज भी ऐसे घरों में गुजरती है। दफ्तर बंद होने के बाद उसके कमरे बंद और घर की जिंदगी शुरू।
मगर कोरोना आने के साथ असंख्य लोगों के घर उनके दफ्तर बन गए। दिक्कत यह है कि सारे घर ऐसे नहीं हैं, जिनमें अलग से दफ्तर बन जाएं, तो अपने बेडरूम, ड्रॉइंग रूम या डाइनिंग टेबल को ही दफ्तर बनाना पड़ता है। बीच में कूकर की सीटी भी बजेगी और दरवाजे की घंटी भी। एक से ज्यादा लोग काम कर रहे हों, तो जगह की तंगी भी है। एक दिग्गज का कहना है कि भारत के ज्यादातर घर वर्क फ्रॉम होम के हिसाब से तैयार नहीं हैं। यानी इस रास्ते पर आगे बढ़ना है, तो घरों में बदलाव करने होंगे। इस बदलाव का खर्च भी क्या कंपनियां उठाएंगी?
जाहिर है, सारी बड़ी कंपनियां यह हिसाब जोड़ रही हैं कि जो कर्मचारी घर पर रहकर दफ्तर चलाएंगे, उन्हें इसके लिए कितना खर्च करना पडे़गा और कंपनी को कितना देना पड़ेगा। घर में काम से कंपनी को बचत हो रही है या नुकसान? अभी फिजिकल डिस्टेंसिंग भी देखनी है यानी एक कर्मचारी को बैठाने के लिए चार की जगह चाहिए। एक जगह ज्यादा कर्मचारियों को बैठाने से हमेशा खतरा बना रहेगा। दक्षिण कोरिया के एक कॉल सेंटर में एक ही हॉल में काम करने वाले 43 प्रतिशत लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए।
अब ओपन ऑफिस और कंपनी के सारे कामकाज एक जगह लाकर बड़ा सेंट्रल कॉम्प्लेक्स बनाने की दिशा में काम खतरनाक है। अगर कोई बीमारी फैल गई, तो पूरा काम ठप हो जाएगा। इसीलिए काम को एक से ज्यादा जगह बांटकर रखना समझदारी मानी जाएगी। शिकागो यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च से पता चलता है कि अमेरिका में 37 प्रतिशत काम ऐसे हैं, जो हमेशा के लिए घर से किए जा सकते हैं।
एक दूसरी बड़ी बहस यह भी छिड़ी हुई है कि क्या दफ्तर सिर्फ काम के लिए होते हैं? टीम भावना, कंपनी से जुड़ाव और नौकरी न बदलने की इच्छा, इन सबके पीछे दफ्तर की भी भूमिका होती है। काम के बीच चाय-कॉफी पर चर्चा, विमर्श, दोस्तियां, रोमांस इत्यादि से भी इंसान अपने दफ्तर से जुड़ता है।
बहरहाल, मैकिंजी की रिपोर्ट में ऐसा एक सूत्र है, जो सबके काम का है और वह है, ‘सीखने की कला सीखो। महामारी के बाद के दौर में काम की पूरी दुनिया बदली हुई होगी, कंपनियां बदल जाएंगी और आपके अपने बहुत से लोग बदल चुके होंगे। ऐसे में, वही कारोबार आगे बढ़ पाएंगे, जो अपने लोगों को तेजी से इस बदलती दुनिया के साथ बदलने का रास्ता सीखने लायक बनाएंगे या सीखने के लिए जरूरी कौशल दे पाएंगे और अभी यह काम बहुत कम लोगों को आता है।’
फेसबुक और ट्विटर, दोनों ने कहा है कि वे अपने बहुत से कर्मचारियों को हमेशा के लिए घर से काम करने की छूट दे रहे हैं। उधर, एक रियल एस्टेट कंपनी ने एक नए ऑफिस का डिजाइन बना दिया है, जिसमें काम करने वालों के बीच छह फुट की दूरी का इंतजाम होगा। यह तय है कि हर आदमी घर से काम नहीं कर सकता और काम के जितने भी तरीके निकाले जाएंगे, उन पर सवाल उठेंगे। बहरहाल, दुनिया किसी भी शक्ल में खुले, हमें आगे तो बढ़ना ही होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) आलोक जोशी, वरिष्ठ पत्रकार
भिलाई / शौर्यपथ / इन दिनों भीषण गर्मी में वार्ड 24 केम्प 2 गांधी चौक में पेयजल संकट उत्पन्न हो गया है। वार्ड के हैंडपंपों जलस्तर नीचे चला गया है। इससे वार्डवासियों में पेयजल व निस्तारी की समस्या भीषण होती जा रही है।
मालूम हो कि वार्ड के प्रकाश आटा चक्की के पीछे बिहारी मोहल्ला में सांस्कृतिक भवन के सामने लगे बोरवेल का जलस्तर काफी नीचे गिर गया है। इस बोरवेल से बूंद-बूंद पानी ही टपक रहा है। पानी नहीं आने से मोहल्लेवासियों में पानी को लेकर मारपीट की स्थिति निर्मित हो रही है। साथ ही इस अंदरूनी मोहल्ले में न ही कोई नल है और न ही यहां तक टैंकर की पहुंच भी नहीं है। आसपास के लोगों के लिए यह बोरवेल ही एकमात्र सहारा है। मोहल्लेवासियों ने निगम से मांग की है बोरवेल में पाइप बढ़ाई जाय या कोई दूसरी वैकल्पिक व्यवस्था की जाए।
लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / कई बार शरीर की थकान अंदर से नहीं मिटती और यह आंखों और चेहरे पर झलक ही जाती है। ऐसे में चाहे आप कितना ही अच्छा मेकअप भी क्यों न कर ले, लेकिन चेहरे पर वो आकर्षण नहीं दिख पाता जो कि एक फ्रेश और बिना थके हुए चेहरे में होता है। चेहरा फ्रेश दिखे इसके लिए जरूरी हैं कि आप उसे थोड़ा प्यार दे और इसके लिए चेहरे की मसाज से अच्छा तरीका भला और क्या हो सकता है?
तो, आइए आपको घर पर ही चेहरे की मसाज करने के 5 आसान से स्टेप्स बताते हैं -
1. चेहरे पर दिखने वाली थकान को उतारने के लिए अपने हाथ अंगुलियों के पोरों से चेहरे की हल्की मालिश करें। इससे ब्लड सर्क्युलेशन बढ़ेगा, और आप तरोताजा महसूस करेंगे।
2. नाक के दोनों ओर हल्की मालिश करते हुए, धीरे-धीरे आंखों के बीच वाले भाग से लेकर आंखों के नीचे वाले हिस्से में भी हल्की मालिश करें।
3. भौंहों पर हल्का दबाव बनाते हुए अंदर से बाहर की ओर मालिश करें, फिर आंखों के बाहरी किनारों पर मालिश करते हुए माथे तक पहुंचें।
4. अब आंखों के बिल्कुल नीचे की ओर हाथों को लाएं, फिर गालों के बीच में हल्की मालिश करते हुए, मसूड़ों के उपर की त्वचा पर भी मालिश करें और जबड़ों को अंगुलियों से पकड़कर हल्का दबाव बनाएं।
5. मालिश के लिए नारियल या बादाम के तेल का प्रयोग कर सकते हैं। इसके अलावा वनस्पति तेल में सुगंधित तेल की कुछ बूंदे डालकर प्रयोग करना बेहद फायदेमंद होता है। सुगंध से थकान आसानी से मिट जाती है।
खाना खजाना / शौर्यपथ /
1. पुदीने की स्वादिष्ट चटनी
सामग्री :
1 कप पुदीने की पत्तियां, हरी मिर्च स्वादनुसार, दही 3-4 बड़े चम्मच, जीरा आधा चम्मच, काला नमक एवं नमक स्वादानुसार।
विधि :
सबसे पहले पुदीने की पत्तियों को साफ करके धो लें। इसके बाद सभी सामग्री और पुदीने की पत्तियों को मिलाकर मिक्सर में बारीक पीस लें। आप चाहें तो इस चटनी में दही के स्थान पर कच्चे आम या कैरी का प्रयोग भी कर सकते हैं। इस चटनी को आप अपनी सुविधा के हिसाब से तरह या गाड़ी बना सकते हैं।
फायदे :
पुदीने की चटनी आपके खाने का भी स्वाद बढ़ाएगी और साथ ही गर्मी का बढ़ना, पेट, त्वचा संबंधी समस्या के लिए भी पुदीने की चटनी फायदेमंद होगी। आपको अगर आंतों की समस्या, प्रसव के समय, बुखार और दस्त में भी यह फायदेमंद है, इसके साथ ही सेहत से जुड़े कई अन्य फायदे भी देगी।
2. अमचूर की चटनी
सामग्री :
2 बड़े चम्मच अमचूर, गुड़ 1 बड़ा चम्मच, लाल मिर्च आधा छोटा चम्मच, भुना हुआ जीरा आधा चम्मच, काला नमक स्वादनुसार, हींग आधा चुटकी, थोड़ा-सा तेल, नमक स्वादनुसार और पानी।
विधि :
सबसे पहले गुड़ को पानी में घोल लीजिए और इसमें अमचूर डालकर फेंट लें। अब नॉनस्टिक पेन में हल्का-सा तेल गर्म करके उसमें जीरा, हींग, लाल मिर्च डालकर अमचूर का पेस्ट डाल दें और अंत में नमक डालकर गर्म करें। जब यह पेस्ट गाढ़ हो जाए तो इसे आंच से उतार लें। लीजिए तैयार है अमचूर की टेस्टी चटनी। टेस्ट के अनुसार आप इसमें नमक या गुड़ बढ़ा सकते हैं।
फायदे :
गर्मी के दिनों में यह ठंडी होगी तो स्वादिष्ट भी लगेगी। अमचूर की चटनी का सबसे बड़ा लाभ है कि यह नुकसान नहीं करती। इसे खाने के बाद आपको सर्दी या गला खराब होने की समस्या नहीं होती। गुणकारी होने के कारण यह पाचन के लिए फायदेमंद है और पेट की समस्याओं के लिए भी लाभप्रद है।
3. नींबू की खट्टी-मिठी चटनी
सामग्री :
4 नींबू, आधा चम्मच लाल मिर्च पावडर, पाव चम्मच जीरा, आधा चुटकी हींग, दो चुटकी काला नमक, सादा नमक व शक्कर स्वादनुसार।
विधि :
सबसे पहले नींबू के बीज निकालकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लीजिए, अब इन टुकड़ों को मिक्सर के जार में डालें और इसमें सारी सामग्री डालकर पीस लें। लीजिए नींबू की खट्टी-मिठी चटनी तैयार है। इस चटनी को आप रोटी-सब्जी के साथ-साथ चटपटे व्यंजनों के साथ भी खा सकते है।
फायदे :
आप चाहें तो नींबू की चटनी का नियमित सेवन कर सकते हैं। यह आपको ताजगी का एहसास भी कराएगी। नींबू की ताजी चटनी खाने से पेट व त्वचा की समस्याओं में यह फायदेमंद होगी साथ ही आपको सीधे विटामिन-सी का लाभ मिलेगा।
4. कच्चे आम की खट्टी-मीठी चटनी
सामग्री :
3 कैरी, प्याज 1, 50 ग्राम पुदीना, आधा छोटा चम्मच जीरा, गुड़ 1 डली या अपने स्वाद के अनुसार, लाल मिर्च आधा छोटा चम्मच, नमक स्वादानुसार।
विधि :
कैरी और प्याज को मध्यम आकार या छोटे टुकड़ों में काट लें। अब इन्हें मिक्सर के जार में डालें और सभी मसाले ऊपर से डालकर पीस अपने स्वाद के अनुसार नमक, मिर्च या गुड़ की मात्रा बढ़ाई जा सकती है। कैरी की चटनी तैयार है।
फायदे :
कच्चे आम यानी कैरी की चटनी का नियमित सेवन खाने का स्वाद तो बढ़ाएगा ही, विटामिन-सी, ए और बी की भी पूर्ति करेगी। इसके सेवन से गर्मी के दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। पेट और पाचन संबंधी समस्याओं में यह फायदेमंद है। इसके अलावा यह प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और नई कोशिकाओं के निर्माण में सहायक है।
5. इमली की चटनी
सामग्री :
इमली 1 कटोरी, पानी- आवश्यकतानुसार, हींग 1 चुटकी, जीरा आधा चम्मच, काला नमक स्वादनुसार, नमक स्वादनुसार, लाल मिर्च दो चुटकी या स्वादनुसार।
विधि :
इमली को कुछ समय तक गुनगुने पानी में गलाकर रखें। अब इसके बीज निकाल लें और गुड़ एवं सभी मसाले डालकर इसे मिक्सर में पीस लें। अब इस मिश्रण को उबाल लें और बने हुए पेस्ट को जीरे का छौंक लगाएं। इमली की चटनी तैयार है। आप चाहें तो इसे पतला कर पना भी बना सकते हैं।
फायदे :
गर्मी के दिनों में इमली की चटनी या पना तासीर को ठंडा करता है और गर्मी के दुष्प्रभाव से बचाता है। इसके अलावा यह पाचन के लिए फायदेमंद है और ऊल्टी, जी मचलाना या दस्त जैसी समस्याओं में भी लाभप्रद है।
धर्म संसार / शौर्यपथ /विश्व की अमूल्य धरोहर श्रीमद् भगवद्गीता महाभारत के भीष्म पर्व का एक भाग है। महाभारत की रचना महर्षि वेदव्यास ने और लेखन भगवान श्री गणेश ने किया।
युद्ध के समय जब सेनाएं आमने-सामने खड़ी हो गईं ....तो अर्जुन के विषाद को दूर करने के लिए योगेश्वर श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया जो आज भी व्यवहारिक जीवन की समस्याओं के लिए समाधानकारक है।
१. साहसी होना
क्लैब्यं मा स्म गम: पार्थ नैतत्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।
(अध्याय 2, श्लोक 3)
कायरता, कायरता है। चाहे वह करुणाजनित हो, या भय जनित। अत: अपने स्वत्व और अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। अन्याय का सदैव प्रतिकार करना चाहिए और पलायन नहीं पुरुषार्थ का चयन करना चाहिए।
२. कर्मठ होना
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
माकर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संड्गोत्स्वकर्माणि।।
(अध्याय 2, श्लोक 47)
केवल मनुष्य को ही यह सौभाग्य प्राप्त है कि वह नए कर्म करने के लिए स्वतंत्र है। जिससे उन्नति के शिखर पर आरूढ़ होकर उपलब्धियों के कीर्तिमान रचकर इतिहास में अद्वितीय स्थान प्राप्त कर सकता है। अत: अकर्मण्य नहीं, कर्मठता से कार्य करते रहना चाहिए।
३. स्वविवेक से निर्णय लेना
इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया।
विमृश्यैमदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु।।
(अध्याय 18, श्लोक 6३)
सलाह और विचार-विमर्श तथा मार्गदर्शन भले ही सबसे लेते रहें, लेकिन निर्णय स्वयं की
बुद्धि से लेना चाहिए। श्री कृष्ण ने अर्जुन को पूरा ज्ञान देने के बावजूद यह स्वतंत्रता दी थी कि वह स्वविवेक से निर्णय ले और कार्य करे। पराश्रित नहीं, स्वआश्रित होने का आह्वान कर व्यक्ति को स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर बनने का संदेश दिया है।
४. मधुर और हितकर वाणी
अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्।
स्वाध्यायाभ्भ्यसनं चैव वांगमयं तप उच्यते।।
(अध्याय 17, श्लोक 15)
तप तीन प्रकार के बताए गए है- शरीर, वाणी और मन। तीनों का उपयोग लोकहित में करना चाहिए। वाणी मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र है। इससे व्यक्ति सारे संसार को अपना मित्र बना सकता है या शत्रु बना सकता है। अत: बोली की महत्ता, शब्दों का प्रभाव और वाणी को नियंत्रित और मर्यादित रखें।
५. दुर्गुणों का त्याग करना
दंभो दर्पोभिमानश्च क्रोध: पारुष्यमेव च।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ संपदामासुरीम्।।
(अध्याय 16, श्लोक 4)
पाखंड, घमंड, अभिमान, क्रोध, कठोर वाणी और अज्ञान- इनसे मनुष्य को दूर रहना चाहिए। सदगुणों को अपने जीवन में उतारना चाहिए जिससे जीवन में परम शांति का अनुभव होता है।
६. ज्ञान पिपासु और जिज्ञासु होना
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्वदर्शिन: ।।
(अध्याय 4, श्लोक 34)
सच्चा ज्ञान आसानी से नहीं मिलता क्योंकि केवल सूचनाओं को पढ़ कर ज्ञानी नहीं बना जा सकता। इसके लिए विशेषज्ञों के पास तथा विधा पारंगतों के पास विनम्रता और श्रद्धापूर्वक हमें जाना चाहिए। तभी सही लक्ष्य एवं वास्तविक शिखर स्पष्ट दिखाई देने लगेगा।
नहि ज्ञानेने सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
(अध्याय 4, श्लोक 38)
इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला दूसरा कोई साधन नहीं है।
श्रद्धावॉंल्लभते ज्ञानं... (अध्याय 4, श्लोक 39)
ज्ञान के प्रति जिज्ञासा होगी तभी ज्ञान प्राप्त होगा।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति। (अध्याय 4, श्लोक 39)
क्योंकि शांति साधनों से नहीं ज्ञान से प्राप्त होती है।
७. व्यवहारिक ज्ञान में कुशल
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्म्यहम्।।
(अध्याय 4, श्लोक 11)
मनुष्य को व्यवहार करते समय बहुत सावधान रहना चाहिए क्योंकि जैसा व्यवहार करोगे, वैसा ही तुम्हारे साथ भी होगा।
८. निर्भय होना
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृत निश्चय:।।
(अध्याय 2, श्लोक 37)
निर्भीक होकर कर्म करने से असफलता भी कीर्ति
यश और मान दिलाती है। भयग्रस्त मन-मस्तिष्क से किए कए काम में सफलता मिल भी जाए तो वह सम्मानीय, वंदनीय नहीं हो सकती।
९. व्यक्तित्व का विकास
दु:खेष्वनुद्विग्नमना: सुखेषु विगतस्पृह:।
वीतरागभयक्रोध: स्थितधीर्मुनिरुच्यते।।
(अध्याय 2, श्लोक 56)
आदर्श व्यक्तित्व वाला व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में विचलित नहीं होता। राग, भय, क्रोध- जब समाप्त हो जाते हैं तो व्यक्ति स्थिर बुद्धि वाला हो जाता है। तथा वह संकट और संतापों से प्रतिकूलता और अनुकूलता में संतुलन बनाए रखेगा।
१०. स्वयं के प्रति उत्तरदायी
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन:।।
(अध्याय 6, श्लोक 5)
अपने उत्कर्ष एवं अपकर्ष के लिए मनुष्य स्वयं उत्तरदायी होता है। दूसरे का अहित किए बिना स्वयं का उद्धार अपने प्रयत्न और बुद्धि बल से करना चाहिए। क्योंकि मनुष्य आप ही अपना मित्र और आप ही अपना शत्रु है।
११. वफादारी से कार्य करना
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।
(अध्याय 9, श्लोक 22)
यह एक व्यवहारिक सत्य है। जो व्यक्ति अपने स्वामि की कृपा का चिंतन करते हुए पूरी ईमानदारी और निष्ठा से काम करता है उसे स्वामि का पूर्ण संरक्षण मिलता है और स्वामि सदैव उसकी सुख-सुविधा का ध्यान रखता है।
१२. एकाग्रचित्त कार्य करना
असंशयं महाबाहो मनोदुर्निग्रहं चलम्।
अभ्याभ्सेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।।
(अध्याय 6, श्लोक 35)
किसी भी संकल्प को पूरा करने के लिए मन का स्थिर और अचल होना आवश्यक है। उद्देश्य प्राप्ति के लिए हमें निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए। मन को बार बार अन्य बिंदुओं से हटाकर अपने लक्ष्य पर केंद्रित करने की प्रक्रिया को दोहराते रहना चाहिए। इस प्रक्रिया का चमत्कारिक प्रभाव देखने को मिलता है। और कार्य तल्लीनता से संपन्न होता है। इसलिए लक्ष्य के प्रति रुचि जागरुक करना चाहिए।
१३. तनाव रहित रहें
अश्योच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिता:।।
(अध्याय 2, श्लोक 11)
आगत-विगत कि चिंता से मुक्त होकर कर्मपथ पर आगे बढ़ते जाना चाहिए। घटनाएं प्रकृति के घटनाक्रम की कड़ी हैं और वे समयानुसार घटती रहती हैं। अनावश्यक चिंताओं में उलझना जीवन के अमूल्य समय को नष्ट करना है। इसलिए तनाव रहित होकर अपना कर्म करते जाना चाहिए।
१४. प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा
देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु व:।
परस्परं भावयन्त: श्रेय: परमवाप्स्यथ।।
(अध्याय 3, श्लोक 11)
पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, अग्रि, वनस्पति आदि जीवन के आधार स्तंभ हैं। इनके बिना जीवन संभव नहीं। और हमारी संस्कृति में इन्हें देवता माना गया है। सृष्टि में साम्य बनाए रखने के लिए जीवन, जगत एवं प्रकृति में साम्य जरूरी है। इसलिए प्रकृति का सम्मान करो और पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त करो।
१५. स्वकर्म को प्राथमिकता
स्वे स्वे कर्मण्यभिरत: संसिद्धिं लभते नर:।
(अध्याय 18, श्लोक 45)
दूसरे का कर्म यदि अपने कर्म से श्रेष्ठ भी प्रतीत हो तो भी अपना कर्म त्याग कर उसे अपनाने के लिए आतुर नहीं होना चाहिए। अपने कर्म में प्रवीणता हासिल कर के उसी में अपनी पहचान बनानी चाहिए। स्वकर्म को करते हुए ही सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।
१६. संचयवृत्ति का त्याग
यज्ञशिष्टाशिन: सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषै:।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।।
(अध्याय 3, श्लोक 13)
जीवन में परोपकार और समाज कल्याण का व्रत भी लेना चाहिए क्योंकि मनुष्य जो भी अर्जित करता है उसमें समाज का योगदान होता है। इसलिए समाज का भी उसपर अधिकार है। इसलिए उसका कुछ अंश समाजसेवा में भी लगाया जाना चाहिए। यह एक आदर्श समाजवाद का उदाहरण प्रस्तुत करता है।
१७. राग-द्वेष रहित जीवन
अद्वेष्टा सर्वभूतानां (अध्याय 12, श्लोक 13)
किसी भी प्राणी से राग-द्वेष न रखें
निर्वैर: सर्वभूतेषु (अध्याय 11, श्लोक 55)
बैर-भाव रहित होकर रहो
सर्वभूतहितेरता: (अध्याय 5, श्लोक 25)
सभी प्राणियों का कल्याण करो
ये तीनों सूत्र तीन महा मंत्र हैं। जिनके आचरण करने से व्यक्ति और समाज शांत और सुखी रहेगा। क्योंकि बैर-भाव, राग-द्वेष सारे झगड़े-फसाद की जड़ है।
१८. कठोर प्रभावी नीति से प्रतिद्वंद्वता का सामना
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युभ्त्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्म्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।
(अध्याय 4, श्लोक 7,8)
दो प्रकार के व्यक्ति होते हैं- सज्जन और दुर्जन। जब तक सज्जन जागरुक और सक्रीय होते हैं तब दुष्ट अपनी दुष्ट प्रवृतियों से समाज को त्रस्त नहीं कर पाते। लेकिन सज्जनों की थोड़ी सी निष्क्रीयता और उदासीनता दुष्टों का प्रभाव बढ़ाने लगती है। फिर सज्जन बचाव का मार्ग अपनाने लगते हैं और हताश और निराश होकर सदकार्यों को छोड़ समाज को दुष्टों के भरोसे छोड़ देते हैं। दुष्टों पर नियंत्रण रखने और अपना कार्य जारी रखने के लिए कठोर और प्रभावी नीति अपनानी चाहिए।
१९. स्वस्थ तन, स्वस्थ मन
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्त स्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा।।
(अध्याय 6, श्लोक 17)
जीवन में प्रगति के लिए मन-मस्तिष्क के साथ साथ तन का स्वस्थ रहना भी जरूरी है। कोई भी कार्य शरीर के द्वारा किया जाता है। यदि शरीर अस्वस्थ है तो वह कभी भी कोई कार्य नहीं कर पाएगा। अत: शरीर साधना बेहद जरूरी है।
२०. कर्म और लोक कल्याण में समन्वय
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मनुस्मर युद्ध च।
(अध्याय 8, श्लोक 7)
जीवन में यदि सफलता चाहते हैं तो कर्म और लोक कल्याण में समन्वय जरूरी है। तभी जीवन का समग्र विकास हो पाएगा। दोनों में से यदि कोई एक ही कार्य करते रहें या तो लोक कल्याण या कर्म , तो दोनों ही स्थितियां कभी भी आदर्श नहीं मानी जाती । इसलिए इनमें सामन्जस्य होना जरूरी है।
२१. चारित्रिक बल से आदर्श नेतृत्व
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।
(अध्याय 3, श्लोक 21)
कोई भी राष्ट्र केवल आर्थिक, वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रकृति से उन्नत नहीं हो जाता। जब तक कि वह आध्यात्मिक एवं नैतिक रूप से सबल नहीं हो उसकी प्रगति अधूरी है। वर्तमान में भारत के पास सब कुछ है परंतु धीरे-धीरे नैतिक और चारित्रिक बल की कमी हमें महसूस होने लगी है। अत: चरित्रवान बनकर आदर्श नेतृत्व प्रदान करना होगा, क्योंकि जो श्रेष्ठ पुरुष आचरण करते हैं लोग भी उनका अनुसरण करते हैं। अपने आचरण से ऐसे मूल्य स्थापित करने चाहिए जिनसे अन्य लोग प्रेरणा ले सकें।
आपका जीवन मंगलमय हो।
मेरी कहानी / शौर्यपथ / तब मनोरंजन के चंद मौके मिलते थे। या तो कोई संगीत-नाट्य की छोटी-बड़ी मंडली इलाके से गुजरती थी या फिर स्थानीय मेले में डेरा डाल धूम मचाती थी। मेले का कोलाहल सबको खींच लाता और वह लड़का भी चला आता था। उसके दिलो-दिमाग पर संगीत का जुनून सवार था। सब मेले से लौटते, तो सामान, पकवान की चर्चा करते, पर यह लड़का संगीत में डूबा लौटता। मेला धीरे-धीरे पीछे छूटता जाता, कान उसकी आवाजों से दूर निकल आते, लेकिन दिल में संगीत बजता रहता और रूह तबले की थाप-ताल पर सिमट आती थी। ज्यादातर मंडलियां कहरवे में रहती थीं। लगभग आधे गाने तबले की इस ताल पर सजते थे- धा गे न ति न क धि ना, धा गे न...। और कुछ गीत दादरे में खिलते थे- धा धि ना धा ति ना, धा धि ना...। कभी आधे गले से, तो कभी पूरे गले से गीत गूंजते, लेकिन उस लड़के के मन में सिर्फ तबला रह जाता था। ताल से ताल तक का सिलसिला ऐसे बना रहता, मानो सांसों का सिलसिला।
जम्मू-कश्मीर के सांबा जिले के घगवाल गांव में संगीत सुनने का शौक तो बहुतों को था, पर कोई भी उस लड़के जैसा जुनूनी चहेता नहीं हुआ था। गरीब परिवार में खूब सदस्य थे। हर मां-बाप के कुछ सपने होते हैं, तो उस लड़के के भी मां-बाप का सपना था, बेटा कुछ बड़ा होकर सेना में बहाल हो जाए। एक तरफ मां-बाप का सपना और दूसरी ओर तबला। सपना हावी होता, तो तबला गोल होता नजर आता। तबला हावी होता, तो सपना देखने वाले नाराज हो जाते। महज 12-13 की उम्र थी, पर समझ में आ गई थी कि तबला ताल में मुकम्मल बज गया, तो सपना देखने वाले भी नरम पड़ जाएंगे। यह भी तय था कि तबला छोड़ो, तो अपना दिल तोड़ो। छोटी उम्र में ही उसके दिमाग में जिरह-दलील के दौर चलते। गांव में ही किसी तरह तबले से संगत शुरू हुई, पर पूरा सीखना था।
लड़के ने सुन रखा था कि पंजाबी घराने के कोई नामी उस्ताद हैं लाहौर में, मियां कादिर बक्श। क्यों न उन्हीं से सीखा जाए? उस लड़के को सपने में एक संतनुमा शख्स बार-बार दिखते थे। एक बार उस्ताद कादिर बक्श की छपी हुई तस्वीर पर नजर गई, तो अचंभा हुआ कि यह तो वही शख्स हैं, जो सपने में दिखते हैं। दिल ने तय कर लिया, उस्ताद हो, तो ऐसा हो और दिमाग ने तैयारी शुरू कर दी। फिर वह दिन भी आ गया, जब ताल दिलो-दिमाग में बहुत गूंजने लगे - धा गे न ति न क धि ना, धा गे ना... और वह लड़का घर से भाग निकला। खाली हाथ, दिलो-दिमाग में सिर्फ तबले और ताल के साथ। गांव घगवाल से भागकर 100 किलोमीटर दूर गुरुदासपुर पहुंचा, वहां एक रिश्तेदार के यहां ठहरना हुआ। दिल के अरमान ने फरमान सुना दिया कि गांव नहीं लौटना, यहीं तबला सीखना है। वहां के स्थानीय उस्तादों से सीखना शुरू हुआ। गुरुदासपुर से लाहौर 110 किलोमीटर के आसपास था, लेकिन दिल में शक था कि मियां कादिर बक्श बहुत बडे़ उस्ताद हैं, जल्दी किसी को शागिर्द नहीं बनाते हैं। अत: पहले जरूरी है कि कुछ सीख लिया जाए और तब उस्ताद के दर पर दस्तक दी जाए। सीखते-सीखते दो साल बीत गए, कुछ लड़कों को कुछ-कुछ सिखाना भी शुरू कर दिया, लेकिन असली मंजिल तो लाहौर में बसे उस्ताद थे। एक दिन वह भी आया, जब एक मेले में बजाने का मौका मिला। वहां उस 15 साल के लड़के ने सतरह मात्राओं के कठिन ताल को तीन खंडों में बजा दिया। खुशनसीबी यह कि सुनने वालों में मियां कादिर बक्श भी तशरीफ लाए थे। उन्हें अच्छा लगा, तो उन्होंने पूछा, ‘तुम किसके शागिर्द हो?’ जवाब मिला, ‘आपका’।
‘लेकिन मैंने तो तुम्हें कभी नहीं देखा?’
बहुत नरमी से उस लड़के ने कहा, ‘मैंने आपको देखा है, आपने ही मेरे हाथ तबले पर रखे हैं’। उस्ताद मुस्कराए, ‘सीखो, लेकिन ढंग से।’ जवाब में वह लड़का बिल्कुल बिछ गया, ‘नाचीज आपके कदमों में है।’
हजारों शागिर्दों वाले उस्ताद सख्ती से सिखाते थे, आठ घंटे से बारह घंटे तक रियाज कराते। बनियान, लूंगी का पसीने से तर होना रोज की बात थी। गुजारे और उस्ताद को पैसे देने के लिए एक ढाबे में तपना-खटना पड़ता था। तपस्या का यह दौर पांच साल चला और संगीत की दुनिया में एक ऐसे बेमिसाल उस्ताद तैयार हुए, जिन्हें दुनिया अल्ला रक्खा खां के नाम से बहुत याद करती है। वह घर से भागे तो, पर संगीत, हुनर, प्यार, इल्म व इंसानियत के दूत बन गए। ऑल इंडिया रेडियो से लेकर फिल्मों में संगीत देने तक और पंडित रविशंकर के साथ दुनिया को भारतीय संगीत का रसास्वादन कराने तक, उनके थाप और ठेके हमेशा राह दिखाएंगे। तीन ताल, चार ताल या झप ताल- धी ना धी धी ना ती ना धी धी ना...।
प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय
अल्ला रक्खा खां मशहूर तबलावादक