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मेलबॉक्स / शौर्यपथ / कोरोना संकट का यह काल केवल जान की हानि तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे आर्थिक संकट के साथ-साथ कई उद्योग-धंधों और रोजगार का अस्तित्व भी फिलहाल खत्म होता दिख रहा है। नतीजतन, उनमें काम करने वाले मजदूर, कर्मचारी-अधिकारी, सभी एकाएक बेरोजगार हो गए हैं। ऐसे में, उन्हें दूसरी राह तलाशनी पड़ रही है, जिसे खोजना मौजूदा वक्त में काफी मुश्किल भरा काम है। इस बढ़ती बेरोजगारी दर से निपटने के लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा की गई है। अभी इसे हकीकत बनने में कुछ वक्त लगेगा, लिहाजा बीपीएल जैसे कार्डधारकों को कुछ न कुछ सरकारी मदद तो मिल ही जाएगी। जिनको कोई राहत नहीं मिलेगी, वे हैं गैर-कार्डधारक। आज जब कई देश अपने बेरोजगार नौजवानों को भत्ता दे रहे हैं, तब हमारे देश में भी बिना भेदभाव और आरक्षण के यह बांटा जाना चाहिए। नौकरी गंवा चुके लोगों को बचाने का इससे बेहतर शायद ही कोई दूसरा उपाय है।
विकास पंडित, बड़वानी, मध्य प्रदेश
चीन की चाल
चीन की विस्तारवादी नीति हमेशा से विश्व के लिए संकट की वजह रही है। अब जो नया विवाद चीन ने वास्तविक नियंत्रण-रेखा (एलएसी) पर अपने सैनिकों की गतिविधियां बढ़ाकर पैदा किया है, उससे तो ऐसा लगता है कि बीजिंग को अपने अजेय होने का घमंड है। अपनी कुत्सित मानसिकता के कारण चीन हमेशा से ही भारत एवं समस्त विश्व के लिए मुश्किलें पैदा करता रहता है। यदि चीन अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आया, तो उसे मुंहतोड़ जवाब दिया जाना चाहिए। भारत सरकार को भी चीन के साथ ‘जैसे को तैसा’ की नीति अपनानी चाहिए।
ज्योतिरादित्य शर्मा, जयपुर
तंग होते हाथ
आज पूरा देश कोरोना की मार झेल रहा है, लेकिन आम जनता की परेशानी यह है कि पैसों की कमी कैसे दूर की जाए? सरकार द्वारा योजनाएं चलाई गईं, पर उसका लाभ कितने लाभार्थियों को मिल रहा है, यह जगजाहिर है। ऐसे में, आर्थिक तंगी ने सबको हिलाकर रख दिया है। सरकारी नौकरी कर रहे लोगों का भी मानो यही हाल है कि किसी तरह गुजारा हो रहा है। आखिर कब तक यह तकलीफ आम लोगों के जीवन का हिस्सा बनी रहेगी? आलम यह है कि कुछ लोग अपना पेट पालने के लिए सब्जी, फल या दुग्ध विक्रेता बन गए हैं। हालांकि, सड़कों पर रोज काम मांगने वाला तबका यह भी नहीं कर सकता। माना जाता है कि देश में करीब 30 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करती है। लॉकडाउन से उनकी हालत तो और भी खराब हो गई है। कोरोना से उनकी जान जाए या न जाए, भूख से जरूर जा रही है। आखिर आम आदमी अपनी इन तकलीफों को किससे साझा करे? उम्मीद की किरण कहीं से नजर नहीं आ रही।
नीतिशा शेखर, जहानाबाद
हाईटेक किसान
पहले गेहूं, और अब लीची व आम ई-बाजार में बिकने लगे हैं। लॉकडाउन की वजह से परंपरागत बाजार और मंडियों के बंद होने से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि इस वर्ष किसान भयंकर आर्थिक तंगी से गुजरने वाले हैं। मगर, ई-कॉमर्स की ओर रुख करते हुए किसानों ने प्रधानमंत्री के ‘वोकल फॉर लोकल’ के सपने को पूरा करने के लिए अपना पहला कदम बढ़ा दिया है। चाहे उन्नाव हो या भागलपुर, किसानों ने यह साबित किया है कि समय के साथ सही दिशा में बदलाव करने से न सिर्फ मुनाफा बढ़ता है, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा होते हैं। किसानों के इस कदम से उन्हें उपज का सही दाम मिलेगा। सरकार को किसानों के इस फैसले की सराहना करनी चाहिए। साथ ही, उन्हें ई-कॉमर्स के नए प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराने चाहिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान इससे जुड़ सकें।
सोनाली सिंह, रांची
ओपिनियन / शौर्यपथ / अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को दी जाने वाली आर्थिक मदद बंद करने और इस संगठन से बाहर निकलने की धमकी दी। इस खबर को देख-सुनकर मैं करीब 40 साल पहले के दिनों में लौट गया, जब अमेरिका से आए इसी तरह के एक खतरे से मेरा वास्ता पड़ा था। उस वक्त मैं स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में अपनी सेवा दे रहा था।
वह 1982 की मई थी, जब मैं विश्व स्वास्थ्य महासभा के सालाना सत्र में अपने देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए जिनेवा गया था। उस समय संगठन के 160 के अधिक सदस्य देश बैठक में भाग ले रहे थे और दो हफ्ते तक स्वास्थ्य व चिकित्सा से जुडे़ कई अहम मुद्दों पर चर्चा करने वाले थे। बैठक के मुख्य एजेंडे को दो समितियों के अधीन कर दिया गया था, जिनके नाम ‘ए’ और ‘बी’ रखे गए थे।
सन 1982 की उस विश्व स्वास्थ्य महासभा में मुझे सर्वसम्मति से ‘बी’ समिति की अध्यक्षता सौंपी गई। जिनेवा में नियुक्त हमारे तत्कालीन राजदूत एपी वेंकटेश्वरन ने इस घटना को भारत की ‘कूटनीतिक जीत’ बताई, खासतौर से इसलिए, क्योंकि इसके लिए अपने पक्ष में जनमत बनाने की कोई कोशिश नहीं की गई थी। संयुक्त राष्ट्र के किसी भी अन्य संगठन की तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन में भी सदस्य देश स्वास्थ्य संबंधी मसलों पर चर्चा करते हुए ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते, ताकि उन्हें तात्कालिक राजनीतिक विवाद पर अपने विचार रखने का मौका मिल जाए। विश्व स्वास्थ्य महासभा की कार्यवाही शुरू होने से पहले मैंने अपनी समिति को सौंपी गई कार्य-सूची को ध्यान से पढ़ा। न तो मुझे, और न ही मेरे अनुभवी सचिवालय कर्मियों को यह एहसास हुआ कि सूची में ऐसा कोई मसला है, जिससे विवाद होगा और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अस्तित्व पर ही खतरा आ जाएगा।
वह दरअसल, एक ड्राफ्ट रिजॉल्यूशन यानी मसौदा प्रस्ताव था, जो अफ्रीकी-अरब देशों के एक समूह द्वारा पेश किया गया था। उस प्रस्ताव में इजरायल के कब्जे वाले इलाके में फलस्तीनियों की खराब सेहत पर ध्यान देने की मांग की गई थी। प्रस्ताव पर विवाद होने का मुझे कतई अंदेशा नहीं था, क्योंकि इसी तरह के कई अन्य प्रस्ताव भी थे, जिनमें साइप्रस और लेबनान में शरणार्थियों और यमन के बाढ़-प्रभावित इलाकों में लोगों को स्वास्थ्य-संबंधी मदद करने की मांग की गई थी।
जब यह एजेंडा सामने रखा गया, विश्व स्वास्थ्य संगठन के पूर्व महानिदेशक हाफडेन महलर उस समय मंच पर मेरे साथ थे। फलस्तीन के प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख को मैंने इसे पेश करने की अनुमति दी। अन्य बातों के साथ-साथ एजेंडा नोट में इस विषय से जुड़ी एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का संदर्भ दिया गया था, और फलस्तीन मुक्ति संगठन, इजरायल के स्वास्थ्य मंत्रालय और फलस्तीनी शरणार्थियों को राहत देने के लिए बनी एक खास संयुक्त राष्ट्र एजेंसी की रिपोर्टों का जिक्र था। प्रस्ताव में न सिर्फ कब्जे वाले क्षेत्र में विश्व स्वास्थ्य संगठन की निगरानी में स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना की मांग की गई थी, बल्कि इस मामले में संयुक्त राष्ट्र महासभा के पहले के प्रस्ताव का भी संदर्भ दिया गया था। इससे पहले कि मैं इस विषय पर संबोधित करने के लिए अगले प्रतिनिधि को बुलाता, अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख डॉ जॉन ब्रायंट (वह कार्यकारी समिति के सदस्य भी थे) तुरंत अपनी बात रखने की मांग करने लगे, जबकि आमतौर पर प्रस्ताव पेश करने वाले देश के सभी प्रतिनिधियों के संबोधन के बाद ही कोई अन्य सदस्य टिप्पणी करता है।
ब्रायंट को प्रस्ताव के एक हिस्से पर गंभीर आपत्ति थी। उनका मानना था कि यदि इसे स्वीकार कर लिया जाता है, तो इजरायल की सदस्यता से जुड़े अधिकार प्रभावित होंगे। उन्होंने एलान कर दिया कि इस मामले पर यदि और चर्चा की गई, तो उनका देश इसी समय अपनी आर्थिक सहायता रोक देगा और विश्व स्वास्थ्य संगठन से बाहर निकल जाएगा। उस समय विश्व स्वास्थ्य संगठन का आधा बजट अमेरिकी इमदाद पर निर्भर था। जैसे ही ब्रायंट ने अपनी बात पूरी की, इजरायल और कई अन्य देशों के प्रतिनिधि खड़े होकर अमेरिकी रुख का समर्थन करने लगे। जवाब में, फलस्तीन और कई अरब व अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधि भी खड़े होकर फलस्तीन के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद करने लगे। यह एक अप्रत्याशित स्थिति थी।
चूंकि बार-बार अनुरोध के बावजूद शांति नहीं बन पा रही थी, इसलिए मैंने सत्र को थोड़ी देर के लिए रोक दिया। महलर के साथ एक संक्षिप्त चर्चा करने के बाद मैं असेंबली हॉल में गया और अगले डेढ़ घंटे तक उन तमाम प्रतिनिधियों से बात की, जो इस विवाद में शामिल थे। बातचीत में मैंने पाया कि वे सहमति बनाने को तैयार नहीं हैं। मुझे लगा कि यदि स्थिति को यूं ही बेकाबू होने दिया गया, तो मेरी अध्यक्षता में विफलता का दाग लगेगा, साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा। मंच पर वापस आकर, मैंने घोषणा की कि मेल-मिलाप का मेरा प्रयास जारी रहेगा और समिति अगली सुबह तय वक्त पर बैठेगी। अगले 12 घंटे तक मैंने दोनों पक्षों के प्रमुखों के साथ गंभीर विचार-विमर्श किया और महासभा में शामिल कई ख्यात स्वास्थ्य मंत्रियों से भी मिला। देर शाम वहां पहुंचे फलस्तीन के सम्मानित नेता यासर अराफात से भी मैंने मुलाकात की।
अरब, अफ्रीकी, इजरायली, अमेरिकी और अन्य तमाम संबंधित प्रतिनिधिमंडलों के साथ कई दौर की बातचीत के बाद मुझे उनके रुख को नरम करने में सफलता मिली। मूल प्रस्ताव को नए सिरेसे तैयार करने पर मैंने उन्हें राजी कर लिया। अगली सुबह जब मैंने बैठक की शुरुआत की, तब तक हॉल में शांति छा चुकी थी। मैंने पिछले दिन के अपने प्रयासों और मूल प्रस्ताव में किए गए बदलाव के बारे में संक्षिप्त में बताया। उसके बाद संशोधित प्रस्ताव पढ़ा और पूछा कि किसी को आपत्ति तो नहीं? कहीं से कोई विरोध नहीं हुआ। लिहाजा, मैंने प्रस्ताव के पारित होने की घोषणा की और अगले एजेंडा पर बात करने के लिए अपना गैवल (बेंच को पीटने वाला हथौड़ा) मारा। हम सभी ने राहत की सांस ली, और इस तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन को बचा लिया गया।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) एनएन वोहरा, पूर्व राज्यपाल
//कंटेनमेंट जोन को छोड़कर जिले में सभी शासकीय कार्यालय संचालित होंगे
//विवाह समारोह में अधिकतम 50 और अंतिम संस्कार में अधिकतम 20 व्यक्तियों को शामिल होने की मिलेगी अनुमति: एसडीएम और तहसीलदार देंगे अनुमति
//दुकानें और व्यावसायिक संस्थान सप्ताह के छह दिन सवेरे 7 बजे से शाम 7 बजे तक खुले रहेंगे
//स्ट्रीट वेंडरों के लिए स्थानीय निकाय तय करेंगे स्थान और समय
//अंतर्राज्यीय बसों का परिचालन प्रतिबंधित रहेगा
रेड और आरेंज जोन का निर्धारण स्वास्थ्य विभाग द्वारा किया जाएगा
//प्रत्येक क्वारेंटीन सेंटर के लिए प्रभारी अधिकारी और क्वारेंटीन सेंटर के समूहों की निगरानी के लिए जोनल अधिकारी तैनात किए जाएंगे
रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री बघेल की अध्यक्षता में गत दिवस आयोजित उच्च स्तरीय बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार राज्य शासन द्वारा आर्थिक गतिविधियों के संचालन, क्वारेंटीन सेंटर्स की व्यवस्थाओं, रेड, आरेंज जोन निर्धारण के संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए गए है। जारी निर्देशों के अनुसार मई माह के अंतिम शनिवार-रविवार को होने वाले पूर्ण लॉकडाउन को निरस्त कर दिया गया है। इसलिए आगामी शनिवार और रविवार को पूर्ण लॉकडाउन नहीं रहेगा। सभी दुकानें और संस्थान जो भारत सरकार के गृह मंत्रालय अथवा राज्य सरकार द्वारा प्रतिबंधित नहीं हैं वे सप्ताह के छह दिन सुबह सात बजे से शाम सात बजे तक खुली रहेंगी।
दुकानें और व्यावसायिक संस्थान पहले की तरह खुलेंगी लेकिन वर्तमान में जारी समय सीमा और सप्ताहिक अवकाश का पालन करना होगा। बाजार पूर्व में निर्धारित दिनों और व्यवस्था के अनुसार वर्तमान में तय समय के अनुसार खोले जाएंगे। बहुत घने बाजारों में भीड़ को कम करने के लिए स्थानीय स्तर पर व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जाएंगी। सड़क किनारे सामान बेचने वालों (स्ट्रीटवेंर्डस) के लिए स्थानीय निकायों द्वारा स्थान और समय का निर्धारण कर फिजिकल डिस्टेंस का पालन सुनिश्चित किया जाएगा। इन व्यवस्थाओं को सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय व्यापारी संघों के साथ चर्चा के निर्देश दिए गए हैं।
व्यावसायिक आटो और टैक्सियों का परिचालन 28 मई से परिवहन विभाग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार शुरू हो गया है। अंतर्राज्यीय व्यावसायिक बसों और अंतर्राज्यीय व्यावसायिक टैक्सियों का परिचालन आगामी आदेश तक प्रतिबंधित रहेगा। अंतर्राज्यीय आवागमन ई-पास के जरिए हो सकेगा। ई-पास एप को विभिन्न श्रेणियों के लिए स्वचालित रूप से ई-पास जारी करने के लिए अपडेट किया गया है। टेऊन, टैक्सी, ऑटो एवं बस से यात्रियों को चिन्हित मार्ग से उनके गंतव्य तक जाने की अनुमति दी जाएगी। इन वाहनों में यात्रियों की संख्या बैठक क्षमता से अधिक न हो और यात्रियों को अनिवार्य रूप से मॉस्क पहनना होगा और फिजिकल डिस्टेंस बनाए रखना होगा।
रेड और आरेंज जोन का निर्धारण स्वास्थ्य विभाग द्वारा किया जाएगा, लेकिन कंटेनमेंट जोन की सीमा का निर्धारण जिला कलेक्टरों द्वारा किया जाएगा। बैठक में यह निर्णय भी लिया गया कि क्वारेंटीन सेंटर्स में सुरक्षा के सभी उपाय सुनिश्चित किए जाए। भवनों के बाहर आवागमन नियंत्रित किया जाए। क्वारेंटीन सेंटर्स में रूकने वालों को बरामदे में खुले में नही सोने दिया जाए। दरवाजे के नीचे खुले हिस्से को ढक कर रखा जाए। सांप और बिच्छु से बचाव के उपाय सुनिश्चित किए जाए। असुरक्षित क्वारेंटीन सेंटर्स को सुरक्षित भवनों और स्थानों पर शिफ्ट किया जाए। क्वारेंटीन सेंटर्स में कमरों के अंदर आवश्यकतानुसार कुलर और अतिरिक्त पंखों की व्यवस्था सुनिश्चित किया जाए। खाने की गुणवत्ता, स्वच्छ पेयजल, स्वच्छ शौचालय आदि सुविधाओं का ध्यान रखा जाए। क्वारेंटीन सेंटर्स पर योग प्रशिक्षण और आउटडोर एक्टिविटी और खेल गतिविधियां भौतिक दूरी का ध्यान रख आयोजित की जा सकती हैं। इसके लिए कलेक्टर, एनजीओ और वालेंटियर्स की मदद ले सकते हैं। क्वारेंटीन सेंटर्स में रहने वालों के लिए दैनिक गतिविधियां तय की जाए। क्वारेंटीन सेंटरों की निगरानी के लिए जोनल अधिकारी नियुक्त किए जाए। प्रत्येक क्वारेंटीन सेंटर के लिए प्रभारी अधिकारी रखा जाए जो वहां उपलब्ध सुविधाओं के साथ-साथ सेंटर में रहने वाले की स्वास्थ्य जांच और कोरोना टेस्ट की निगरानी रखेंगे। इन निर्देशों के पालन के लिए प्रभारी अधिकारी जिम्मेदार होंगे। इन कार्यो में स्थानीय ग्राम पंचायत सचिव और स्थानीय लोगों की सहायता ली जा सकती है।
क्वारेंटीन सेंटर में रहने वाले जो लोग 14 दिनों की क्वारेंटीन अवधि सफलतापूर्वक पूरी कर लिए हो और जिनमें कोई लक्षण नहीं हैं उन्हें घर जाने की अनुमति दी जाए। यदि किसी में लक्षण मिलते हैं तो उनका टेस्ट निर्धारित एसओपी के अनुसार सुनिश्चित किया जाए। स्थानीय सरपंच और ग्राम पंचायत सचिव यह सुनिश्चित करेंगे कि घर जाने वाले लोग अगले सात से दस दिन तक अपने घरों में ही रहें। कलेक्टर क्वारेंटीन सेंटर्स में रहने वाले लोगों को तनाव मुक्त करने के लिए काउंसलर्स और मनोवैज्ञानिकों की सेवाएं उपलब्ध कराने का प्रयास करेंगे। क्वारेंटीन सेंटर्स में लोगों के मनोरंजन के लिए टेलीविजन उपलब्ध कराए जाने के निर्देश भी दिए गए हैं।
क्वारेंटीन कैम्प में रूके श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से उनकी स्किल मेपिंग की जाएगी। इनमें से बहुत से श्रमिकों के कौशल के बारे में जानकारी रजिस्ट्रेशन के समय दी गई है। इस संबंध में श्रम, कौशल विकास विभाग और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के सचिव द्वारा आवश्यक कार्यवाही की जाएगी। श्रम विभाग द्वारा ऐसे श्रमिकों का रजिस्ट्रेशन किया जाएगा जिनका अब तक रजिस्ट्रेशन नही हुआ है। श्रमिकों का मनरेगा कार्ड, राशन कार्ड, श्रमिक कार्ड बनाए जाएंगे। श्रमिकों का स्किल डेव्हलपमेंट, स्थानीय उद्योगों में रोजगार और सड़क निर्माण जैसे काम दिलाने के लिए रजिस्ट्रेशन किया जाएगा। श्रमिकों के बच्चों के स्कूली शिक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन किया जाएगा। जिला पंचायतों को मनरेगा के अंतर्गत धान उपार्जन केन्द्रों पर पक्के चबूतरे निर्धारित मापदंड के अनुसार स्वीकृत करने के साथ मनरेगा में अधिक से अधिक कार्य प्रारंभ करने के निर्देश दिए गए हैं, जिससे अधिक से अधिक श्रमिकों को बारिश के पहले रोजगार दिया जा सके।
औद्योगिक एवं व्यापारिक गतिविधियों के लिए आने वाले यात्रियों को यदि वे बताते हैं कि वे फैक्ट्री के मेंटेनेेस आदि कार्य के आ रहे हैं, उनके आने जाने के स्थान की जानकारी देने तथा आवेदन करने पर अनिवार्य क्वारेंटीन से छूट दी जा सकती है। कम समय के लिए आने वाले यात्रियों के लिए जिनके पास वापस जाने का कंफर्म टिकट है। उन्हें भी जानेे की अनुमति दी जा सकती है। यह भी प्रस्तावित किया गया है कि स्कूलों को एक जुलाई से प्रारंभ किया जाए इसलिए स्कूल खुलने के पहले स्कूलों को क्वारेंटीन सुविधा हटाकर भवन का सेनेटाईजेशन स्वास्थ्य विभाग से कराना सुनिश्चित किया जाए। विवाह और अंतिम संस्कार के लिए अनुमति देने के अधिकार एसडीएम और तहसीलदारों को देने का निर्णय लिया गया है। विवाह समारोह में अधिकतम 50 लोगों को और अंतिम संस्कार में अधिकतम 20 लोगों को शामिल होने की अनुमति दी जाएगी। प्रदेश के एक जिले से दूसरे जिले में जाने वाले श्रमिकों को क्वारेंटीन में नही रखा जाए। पिछले कुछ दिनों में छत्तीसगढ़ से दूसरे राज्यों में जा चुके श्रमिकों को यह छूट नही मिलेगी। कंटेनमेंट जोन को छोड़कर जिले में सभी शासकीय कार्यालय संचालित होंगे।
मुख्यमंत्री ने रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव, जांजगीर-चांपा और रायगढ़ कलेक्टर को दिए निर्देश
रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि छत्तीसगढ़ से होकर गुजरने वाली श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के राज्य में ठहरने वाले स्टेशनों में प्रवासी श्रमिकों के लिए बिस्किट और पानी पाउच की समुचित व्यवस्था की जाएगी। मुख्यमंत्री ने इसके लिए रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव, जांजगीर-चांपा और रायगढ़ कलेक्टर को निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री ने कहा है कि लॉकडाउन के कारण प्रवासी श्रमिकों के लिए रेल्वे स्टेशनों में भोजन-पानी की कोई व्यवस्था नही है और न ही वो टेऊनों से उतर पा रहे है। ऐसी स्थिति में उन्हें बिस्किट और पानी के पाउच आदि मुहैया कराने से काफी राहत मिलेगी।
मुख्यमंत्री ने जिला कलेक्टरों से कहा है कि अन्य राज्यों में फंसे प्रवासी श्रमिकों की उनके गृह राज्यों में वापसी के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलायी जा रही है। ऐसी श्रमिक स्पेशल ट्रेने जो छत्तीसगढ़ से होकर गुजरेंगी यदि आपके जिले में रूकती है तो कम से कम एक मुख्य स्टेशन में इन प्रवासी श्रमिकों के लिए पर्याप्त संख्या में बिस्किट और पानी पाउच की व्यवस्था की जाए। ट्रेन के स्टेशन पर रूकते ही तत्काल यात्रियों को इसके वितरण की व्यवस्था की जाए।
वितरण के लिए आवश्यक दल गठित कर लिए जाएं, साथ ही इस कार्य में वालिंटियर्य का सहयोग भी लिया जाए। सामग्री के वितरण का सुपरविजन जिला प्रशासन के अधिकारियों द्वारा किया जाएगा। बिस्किट या अन्य खाद्य सामग्रियों को उचित ढंग से संग्रहित किया जाए ताकि वो खराब न हो सके। मुख्यमंत्री ने कहा है कि यह व्यवस्था तत्काल सुनिश्चित की जाए।
नजरिया / शौर्यपथ /भारत आज एक बडे़ मानवीय और आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। बड़ी संख्या में उन मजदूरों का पलायन हुआ है, जो हमारी अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र की रीढ़ रहे हैं और ये मजदूर आज खुद को सबसे अधिक घिरा हुआ पा रहे हैं। अर्थव्यवस्था मुश्किल में है और एक आर्थिक पैकेज की घोषणा हुई है। ज्यादातर विश्लेषकों, रेटिंग एजेंसियों और बैंकों ने इस पैकेज का आकार जीडीपी के 0.7 से 1.3 फीसदी के बीच आंका है, जबकि सरकार के अनुसार, यह 10 प्रतिशत है। सरकार ने खुद यह माना है कि 20 लाख करोड़ रुपये के इस पैकेज में रिजर्व बैंक द्वारा नकदी बढ़ाने के लिए दिए गए 8.02 लाख करोड़ शामिल हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक के परिणामों पर कोई आश्चर्य नहीं, जिसमें रेपो और रिवर्स रेपो दर घटाने का फैसला हुआ। रिजर्व बैंक द्वारा इन दरों में लगातार कटौती का मकसद बाजार में नकदी उपलब्धता बढ़ाना है। हालांकि उद्योगों और ऋण के खुदरा ग्राहकों को इस रेपो या रिवर्स रेपो रेट कटौती से कोई लाभ नहीं होने वाला, क्योंकि ऋण उपलब्ध नहीं हैं। बैंकिंग नेटवर्क में पहले से ही अच्छी मात्रा में तरलता है, लेकिन बैंकों के बीच जोखिम का विस्तार ऋण प्रवाह बढ़ाने और उद्योगों व आम लोगों तक रेट कटौती का लाभ पहुंचने में बाधा पैदा कर रहा है। आशंका है, इन दरों में कटौती मध्यम एवं निम्न आय वर्ग को प्रभावित करेगी, क्योंकि आने वाले दिनों में इन वर्गों की सावधि जमा पर ब्याज दरों में लगभग 0.5 प्रतिशत की कमी होगी।
ऋण देने में अत्यधिक सावधानी बरतने के लिए अकेले बैंकों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। देश की अर्थव्यवस्था अभूतपूर्व कठिन समय से गुजर रही है और बैंक एनपीए रोकने के लिए अतिरिक्त सतर्कता से काम कर रहे हैं। प्राथमिक मुद्दा तरलता का अभाव नहीं है। असल में, हमारी अर्थव्यवस्था में तरलता की मांग गायब हो गई है। मांग बढ़ाने के लिए कैपिसिटी यूटिलाइजेशन के 68.6 प्रतिशत (अक्तूबर-दिसंबर 2019) को बढ़ाना है। यहीं पर प्रत्येक जन-धन खातों, पीएम किसान खातों, पेंशनर खातों में तत्काल 7,500 रुपये प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण की जरूरत है। इस नकदी हस्तांतरण से ग्रामीण व अद्र्ध-शहरी क्षेत्रों में मांग पैदा होगी, जो भारतीय उद्योग को अपनी शेष 31.4 प्रतिशत क्षमता का उपयोग करने में सक्षम बनाएगी। इसके लिए बैंकों को नकदी समर्थन और बढ़ाना होगा। रिजर्व बैंक ने जो नकदी प्रवाह अभी बढ़ाया है, उससे ऋण लेने में तेजी नहीं आने वाली।
रिजर्व बैंक ने ऋण चुकाने में और तीन महीने की राहत दी है। उसके द्वारा दी गई रियायतों से ऋण लेने वालों को राहत मिल सकती है, लेकिन बैंकों को नहीं, क्योंकि इससे उनके अपने खातों पर दबाव बढ़ जाएगा। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आत्मनिर्भर होने की दिशा में बैंकों और वित्त संस्थाओं को भगवान भरोसे न रहना पडे़। पिछले कुछ वर्षों में हम पीएमसी और येस बैंक जैसे उदाहरण देख चुके हैं।
देश के लिए एक और चुनौती खाद्य मुद्र्रास्फीति दर में लगातार वृद्धि है। लॉकडाउन की खामियों की वजह से आपूर्ति शृंखला में रुकावट आई है, जिससे अप्रैल 2020 में खाद्य मुद्र्रास्फीति दर बढ़कर 8.6 प्रतिशत हो गई। यदि अर्थव्यवस्था को फिर से खोलने से पूर्व आपूर्ति शृंखलाओं के बारे में उचित योजना नहीं बनाई गई, तो यह और बढे़गी। यदि खाद्य मुद्र्रास्फीति की दर एक आरामदेह सीमा में वापस नहीं लौटती है, तो हमें उच्च मुद्र्रास्फीति दर व नकारात्मक जीडीपी विकास का सामना करने वाली अर्थव्यवस्था से निपटना पड़ेगा। हालांकि रिजर्व बैंक ने अनुमानित जीडीपी विकास का कोई पुख्ता आंकड़ा नहीं दिया है, पर उसने यह तो बता ही दिया है कि वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी नकारात्मक रहेगी। कुछ राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने वित्त वर्ष 2021 के लिए माइनस पांच प्रतिशत की भविष्यवाणी की है।
इसलिए इस कठिन दौर से बाहर निकलने का एकमात्र तरीका बैंकों को तरलता प्रदान करना नहीं है, बल्कि नई मांग पैदा करने के लिए कम से कम अगले छह महीनों तक बड़े पैमाने पर प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण करना होगा। यह नए रोजगार पैदा करेगा और खपत या उपभोग भी बढ़ाएगा। इसके बाद ही हमारी जनसांख्यिकीय ताकत हमारे देश के आर्थिक पहिए को गति देगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)गौरव वल्लभ, कांग्रेस प्रवक्ता
सम्पादकीय लेख / शौर्यपथ / यह एक ऐसी गिनती है, जिसको गिनने की बदकिस्मती से हम बच नहीं सकते और इसके आंकडे़ रोज हमारी चिंताओं में इजाफा कर जाते हैं। कल देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या डेढ़ लाख का आंकड़ा पार कर गई और पिछले छह दिनों से लगातार छह हजार से ज्यादा नए मामले रोज सामने आ रहे हैं। हम इस महामारी के शिकार शीर्ष दस देशों में आ गए हैं। हालांकि, आईसीएमआर अब भी वायरस के सामुदायिक प्रसार की आशंका को नकार रहा है, तो यकीनन यह कुछ सुकून की बात है। पर जिस तरह से महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात और दिल्ली में कोरोना संक्रमण के मामले सामने आए और अब बिहार में इसकी तीव्रता दिख रही है, उससे तो यही लगता है कि लॉकडाउन का पूरा फायदा उठाने में ये प्रदेश चूक गए। ऐसा मानने का आधार है। विदेश को छोड़िए, देश में ही केरल ने यह बताया है कि किसी महामारी से निपटने के लिए कैसी सूझबूझ, तैयारी और प्रशासनिक कौशल की जरूरत पड़ती है।
हमारे यहां कोरोना का पहला मामला केरल में ही 30 जनवरी को सामने आया था और आज वह संतोष जता सकता है कि पिछले चार महीने में उसके यहां संक्रमितों की संख्या हजार से भी नीचे रही, बल्कि इनमें भी आधे से अधिक मरीज स्वस्थ होकर अपने घर लौट चुके हैं। उसकी यह उपलब्धि तब है, जब उसके यहां जनसंख्या घनत्व कई राज्यों के मुकाबले अधिक है और विदेश में रहने वाले नागरिक भी बड़ी संख्या में वहां लौटकर आए हैं। केरल की ही तरह, हरियाणा, पंजाब, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने भी लॉकडाउन की अवधि का अपेक्षाकृत बेहतर उपयोग किया है। बल्कि आज हम जिस मुकाम पर हैं, उसमें अकेले महाराष्ट्र का एक तिहाई योगदान है। शुरुआत में राज्य सरकार वहां हालात को नियंत्रित करती हुई दिखी भी थी, मगर उसके बाद कुछ जैसे उससे छूटता-सा गया। कभी अस्पतालों से बदइंतजामी झांकती मिली, तो कभी फिजिकल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाती भीड़ स्टेशनों पर उमड़ती दिखी। कुछ ऐसी ही तस्वीरें गुजरात से आईं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री तो एक वक्त इतने आश्वस्त थे कि चंद रोज के भीतर वह अपने यहां कोरोना पर पूर्ण नियंत्रण का एलान करने जा रहे थे। आज उनका प्रांत संक्रमण के मामले में नंबर दो पायदान पर है। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि अब राज्य लॉकडाउन में रियायत देने को बाध्य हैं, क्योंकि उन्हें राजस्व भी चाहिए, और उन पर कारोबार जगत का भी दबाव है।
कोविड-19 से जंग की एक विश्व-व्यापी सच्चाई यही है कि जिन भी देशों-प्रदेशों ने एक स्पष्ट नीति बनाई, और उस पर सख्ती से अमल किया, वे आज बेहतर स्थिति में हैं। इसके उलट, जहां कहीं भी उपायों के स्तर पर ऊहापोह की स्थिति रही, वहां के नागरिक समाज को इसकी कीमत चुकानी पड़ी। हमने बहुत पहले देश में पूर्ण लॉकडाउन लागू करके एक अच्छी रणनीति अपनाई थी और इसका फायदा भी हुआ है, मगर हम इससे अपेक्षित लाभ नहीं उठा सके। चंद घटनाओं को छोड़ दें, तो सवा अरब से भी अधिक लोगों ने सरकार के निर्देश पर पहले 21 दिनों में जिस अनुशासन का पालन किया, उसका सारा हासिल इस महामारी को सांप्रदायिक रंग देने की राजनीति और प्रवासियों के मामले में दिशाहीन कार्य-प्रणाली के कारण तिरोहित हो गया। वरना आज हम डेढ़ लाख से अधिक संक्रमण के बाद की आशंकाओं से न घिरे होते।
मेलबॉक्स / शौर्यपथ /चीन बदमाशी कर रहा है। पूरी दुनिया को कोरोना संकट में डालने के बाद भी वह आंखें तरेर रहा है। अपने ऊपर लगे आरोपों से वह नाखुश है। चीन के विदेश मंत्री का तो यह भी कहना है कि मुआवजे की मांग करने वाले देश दिवास्वप्न देख रहे हैं, अर्थात चीन का दुस्साहस इस कदर बढ़ गया है कि वह माफी मांगने की बजाय दूसरे देशों को धमका रहा है। सच यही है कि चीन ने कोरोना वायरस के बारे में दुनिया को बताना उचित नहीं समझा, जिसके कारण इसका फैलाव तेजी से हुआ। इसका प्रकोप सबसे ज्यादा अमेरिका में हुआ है, जहां एक लाख से अधिक लोग इसका शिकार बन चुके हैं। फिर भी, चीन की ऐठन कम नहीं हुई है। दुखद यह भी है कि डब्ल्यूएचओ परोक्ष रूप से उसी का बचाव कर रहा है।
नीरज कुमार पाठक, नोएडा
बनाना होगा दबाव
पूरे विश्व में चीन अपनी गुप्त रणनीति, गहरी साजिश और योजनाओं के लिए जाना जाता है। कभी वह कोरोना वायरस को एक जैविक हथियार के रूप में प्रयोग करता है, तो कभी सीमा-विवाद को बढ़ाकर पड़ोसी देशों पर दबाव बनाता है। कोरोना आपातकाल के इस दौर में भी वह लद्दाख, नेपाल, ताईवान, हांगकांग या भारत की सीमा में घुसपैठ करके अपना वर्चस्व बनाना चाहता है। वह यह जताना चाहता है कि उसकी सीमाओं का कोई अंत नहीं है। अपनी आर्थिक ताकत बढ़ाने के लिए ही उसने कोरोना वायरस को जन्म दिया, ताकि दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं चौपट हो जाएं और उसका साम्राज्य बन जाए। निश्चित रूप से चीन दुनिया के साथ कॉकटेल गेम खेल रहा है, जिसे तभी रोका जा सकता है, जब पूरी दुनिया एकजुट होकर उस पर दबाव बनाएगी। पूरे विश्व को चीन से सजग रहना होगा।
संजय कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड
अव्यवस्था भरी यात्रा
रेल व हवाई यात्राओं के दौरान सामने आ रही अव्यवस्थाओं को देखते हुए भी संबंधित मंत्रियों का ध्यान समस्या के समाधान की तरफ कम है और विरोधियों को नीचा दिखाने में ज्यादा है। जब एक श्रमिक ट्रेन दो दिन की बजाय नौ दिनों में अपने गंतव्य पर पहुंचती है और ऐसी यात्राओं में कई श्रमिक अपनी जान गंवा देते हैं, तो इसको यात्रा नहीं, यातना ही कहा जाएगा। फिर भी मंत्रीगण ऐसा भाव बनाते हैं, मानो उनकी सरकार के कारण ही रेल चल रही है, वरना नहीं चलती। लॉकडाउन से पहले जहां हजारों ट्रेनें चलने के बाद भी किसी ट्रेन के अपने गंतव्य से भटकने का समाचार नहीं आया, वहीं अब कई ट्रेनें गलत जगहों पर पहुंच रही हैं। इससे भयानक अराजकता भला और क्या होगी?
जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर
स्वास्थ्य मद में बजट बढ़े
वर्तमान महामारी ने हमारी स्वास्थ्य नीति की अक्षमता को उजागर किया है। जहां सरकारी संस्थाएं अपनी पूरी क्षमता से महामारी के खिलाफ लड़ रही हैं, वहीं निजी क्षेत्र भारी-भरकम खर्चों के कारण आम आदमी की पहुंच से लगभग बाहर हो गए हैं। ऐसे में, स्वास्थ्य क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण की मांग स्वाभाविक है। अध्ययन यह भी बताते हैं कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के भारी-भरकम खर्च उठाने के कारण ही प्रतिवर्ष करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। ऐसे में, सरकार द्वारा सभी तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाए बिना गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों की सफलता संभव नहीं है। दिक्कत यह है कि हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं पर जीडीपी का महज 1.2 फीसदी खर्च किया जाता है। बेशक, विशाल जनसंख्या और सरकार के सीमित संसाधनों को देखते हुए स्वास्थ्य सेवाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी आवश्यक है, लेकिन सार्वजनिक खर्च में वृद्धि करना सबसे जरूरी है, ताकि सभी लोगों को स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मिल सकें।
वीरेंद्र बहादुर पाण्डेय, गोंडा
रिक्त पदों पर भर्ती, पदोन्नति, वार्षिक वेतन वृद्धि में होगी मितव्ययता
राज्य सरकार के विभागों, कार्यालयों सहित निगम, मण्डल, आयोग, प्राधिकरण, विश्वविद्यालय और अनुदान प्राप्त स्वशासी संस्थाओं में भी समान रूप से होगा लागू
वित्त विभाग ने जारी किया आदेश: 31 मार्च 2021 तक रहेगा लागू
रायपुर / शौर्यपथ / कोरोना संक्रमण (कोविड-19) से बचाव के लिए लागू देशव्यापी लॉकडाउन के कारण राज्य सरकार के राजस्व प्राप्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इसके साथ ही महामारी की रोकथाम के लिए अतिरिक्त संसाधनों की व्यवस्था भी तत्काल किया जाना है, जिसे देखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने शासकीय व्यय के युक्तियुक्तकरण और उपलब्ध संसाधनों का विकासमूलक कार्यो के लिए अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने के लिए मितव्ययता के अनेक निर्णय लिए हैं।
जिसके तहत नए पदों का निर्माण, स्थानांतरण, महंगे होटलों में बैठकें, विदेश यात्रा और नए वाहनों की खरीदी पर रोक लगा दी गई है वहीं रिक्त पदों पर भर्ती, पदोन्नति, वार्षिक वेतन वृद्धि में मितव्ययता के संबंध में निर्देश जारी किए गए है।
राज्य सरकार के वित्त विभाग द्वारा इस संबंध में जारी निर्देश के तहत लोक सेवा आयोग से भरे जाने वाले सीधी भर्ती के रिक्त पदों एवं अनुकंपा नियुक्ति के पदों को छोड़कर शेष सभी भर्ती के रिक्त पदों को भरने के पहले वित्त विभाग की अनुमति ली जाएगी। जिन पदों के लिए वित्त विभाग से भर्ती की अनुमति प्राप्त हो चुकी है, किन्तु नियुक्ति शेष है उनके लिए भी वित्त विभाग की अनुमति पुनः प्राप्त की जाएगी। ऐसे प्रस्ताव को वित्त विभाग में भेजते समय इन पदों की पूर्ति पर आने वाले वार्षिक वित्तीय भार तथा पदों की पूर्ति की आवश्यकता का औचित्य दर्शाया जाएगा।
वित्त विभाग ने कहा है कि विभागों द्वारा नियमित पदोन्नति में निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया जाए, किन्तु पदोन्नति के परिणाम स्वरूप होने वाले स्थानांतरण को रोकने के लिए याथसंभव उस पद को उसी स्थान पर आगामी आदेश तक अस्थाई तौर पर उन्नयन (अपग्रेड) कर दिया जाए। पदोन्नति-क्रमोन्नति के फलस्वरूप देयक एरियर्स राशि के भुगतान को वित्त विभाग के आगामी आदेश तक विलंबित रखा जाए। विभागों के स्थापना व्यय में वृद्धि को नियंत्रित रखने की दृष्टि से सभी शासकीय विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों, निकायों में नवीन पद सृजन पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई गई है। विशेष परिस्थितियों में वित्त विभाग की सहमति से ही नवीन पद सृजित किए जा सकेंगे।
सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी स्थानांतरण नीति के अनुसार स्थानांतरण पर प्रतिबंध है। स्थानांतरण केवल समन्वय में अनुमोदन के बाद ही किया जाएगा। स्थानांतरण पर अतिरिक्त व्यय भार को ध्यान में रखते हुए विभागों से यह अपेक्षा की गई है कि समन्वय मंे भी न्यूनतम स्थानांतरण किया जाए और अति आवश्यक होने पर स्वयं के व्यय पर स्थानांतरण को प्राथमिकता दिया जाए। लोक हित में वांच्छित अपवाद को छोड़कर राज्य शासन के व्यय पर विदेश यात्राओं पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा। शासकीय अधिकारियों के बिजनेस क्लास से हवाई यात्रा और प्रथम श्रेणी में रेल यात्रा पर प्रतिबंध रहेगा। अनावश्यक एवं बिना सक्षम स्वीकृति के शासकीय भ्रमण प्रतिबंध रहेगा।
विभागों को बैठकों का आयोजन न्यूनतम करने को कहा गया है। कॉन्फ्रेंस, सेमिनार, शासकीय समारोह के आयोजनों में मितव्ययिता बरतने तथा अति आवश्यक बैठक-कार्यक्रम का आयोजन महंगे होटलों की बजाय शासकीय भवनों में करने के निर्देश दिए गए है। यथा संभव बैठकें वीडियो कॉन्फ्रेंस एवं वेबीनार के माध्यम से आयोजित की जाए। आदेश में कहा गया है कि विभागों द्वारा अति आवश्यक नवीन योजनाओं को ही चालू वर्ष में प्रारंभ करने की कार्यवाही-प्रस्ताव प्रेषित किया जाए तथा पूर्व से संचालित योजनाओं की अलग से समीक्षा की जाए। जो योजनाएं वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अनुपयोगी है। उनको समाप्त करने की कार्यवाही की जाए। वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान नवीन वाहनों का क्रय पूर्णतः प्रतिबंधित रहेगा केवल अत्यावश्यक सेवाओं के लिए आवश्यक वाहनों का क्रय वित्त विभाग की अनुमति से किया जा सकेगा।
राज्य के शासकीय सेवकों को एक जुलाई 2020 एवं एक जनवरी 2021 में देय वार्षिक वेतन वृद्धि को आगामी आदेश तक विलंबित रखा गया है। किन्तु एक जनवरी 2021 एवं एक जुलाई 2021 से पूर्व सेवानिवृत्त होने वाले शासकीय सेवकों के मामले में यह लागू नहीं होगा। विभिन्न विभागों द्वारा संचालित व्यक्तिगत जमा खाता (पीडी एकाउंट) जो एक वर्ष की अवधि से प्रचलन में नहीं है को तत्काल बंद करने तथा खाते में जमा राशि चालान के माध्यम से शासकीय कोष में जमा करने के निर्देश दिए गए है। राज्य पोषित योजना के तहत प्रावधानित राशि जो कि संचित निधि से 31 मार्च 2020 तक अग्रिम आहरित कर बैंक खातों में रखी गई है को अर्जित ब्याज सहित 15 जून 2020 तक राज्य शासन के खाते में वापिस जमा की जाएगी।
वित्त विभाग द्वारा जारी निर्देश में कहा गया है कि कतिपय केन्द्रीय योजनाओं में राशि बजट के माध्यम से प्राप्त होती है। ऐसी योजनाओं में बजट में प्रावधानित राशि के विरूद्ध 31 मार्च 2020 तक अग्रिम आहरित कर बैंक खाते में जमा राशि में से कमिटेड एक्सपेंडिचर, जो तत्काल किया जाना संभावित हो, का भुगतान कर शेष समस्त राशि अर्जित ब्याज सहित मुख्य शीर्ष 8443-के-डिपाजिट में 15 जून 2020 तक अनिवार्य रूप से जमा करने को कहा गया है। विभागों द्वारा भविष्य में आवश्यकतानुसार वित्त विभाग की अनुमति से के-डिपाजिट में जमा राशि विमुक्त कराई जा सकेगी।
वित्त विभाग द्वारा जारी यह आदेश राज्य के शासकीय विभागों, कार्यालयों के साथ-साथ सभी निगम, मण्डल, आयोग, प्राधिकरण, विश्वविद्यालय और अनुदान प्राप्त स्वशासी संस्थाओं में भी समान रूप से लागू होंगे। ये निर्देश 31 मार्च 2021 तक लागू रहेंगे। इस संबंध में वित्त विभाग द्वारा आज मंत्रालय से सभी विभागों सहित अध्यक्ष, राजस्व मंडल, संभागीय कमिश्नरों, विभागाध्यक्षों और कलेक्टरों को परिपत्र जारी किया गया है।
लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / लॉकडाउन के दौरान सभी का शेड्यूल बदल गया है और हम में से ऐसे कई लोग हैं, जो अब आराम से अपने काम करना पसंद करते हैं। उन्हें लगता है कि अब जाना ही कहां है तो आराम से सारा काम किया जा सकता है। चलिए यह बात हो गई काम की, लेकिन यदि आप रात में खाना भी आराम से कर रहे हैं मतलब कि देर रात भोजन कर रहे हैं तो यह आपकी सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है।
अगर आप भी यही दिनचर्या अपना रहे है तो
एक बार इससे होने वाले नुकसान पर नजर जरूर डालें ।
1 बढ़ता है वजन -
रात में शरीर का मेटाबौलिज्म दिन की अपेक्षा धीमा व कमजोर रहता है, जिस वजह से देर रात में खाया गया खाना पचने में परेशानी आती है। इस वजह से रात में अधिक मात्रा में कैलोरी बर्न नहीं हो पाती और वजन बढ़ता है।
2 बढ़ता है ब्लड प्रेशर -
कई जानकारों के अनुसार देर रात खाना खाने से ब्लड प्रेशर के साथ ही खून में शुगर का स्तर भी अधिक हो जाता है, जोकि सेहत को नुकसान पहुंचाता है।
3 सोने में होती है परेशानी -
एक रिपोर्ट के अनुसार देर रात स्नैक्स या खाना खाने से से स्लीप साइकल भी डिस्टर्ब होती है, जिससे गहरी नींद आने में समस्या हो सकती है। साथ ही गैस्ट्रिक समस्या भी हो सकती है, सो अलग।
4 चिड़चिड़ापन -
अगर आप पर्याप्त मात्रा में सुकून की नींद नहीं ले पाते, तो इसका असर आपकी मानसिक सेहत पर भी पड़ता है। दिमाग को पर्याप्त आराम नहीं मिल पाता, नतीजतन चिड़चिड़ापन पैदा होता है।
लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / लॉकडाउन के कारण कई लोग वजन बढ़ने जैसी समस्या से परेशान हैं। यदि आपकी भी यही शिकायत है और आप अपने आकार में अपने शेप में वापस आने की कोशिश कर रहे हैं तो यह लेख सिर्फ आपके लिए हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भोजन स्वस्थ जीवनशैली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए हम आपको अपने इस लेख में बता रहे हैं एक ऐसे डिटॉक्स ड्रिंक के बारे में जिसके सेवन से यह आपके लिए स्वस्थ और फिट रहने में कारगर साबित होगा। यह ड्रिंक है जीरा, धनिया और सौंफ से तैयार डिटॉक्स ड्रिंक जिसके सेवन से यह शरीर से विषाक्त पदार्थ को बाहर निकालने में मदद करता है, साथ ही त्वचा को कोमल और स्वस्थ चमकदार बनाने में भी सहायक है, आइए जानते हैं।
वजन घटाने और चमकती त्वचा के लिए
जीरा
यह भारतीय मसाला अपने विभिन्न स्वास्थ्य लाभों के लिए जाना जाता है। जीरा पाचन संबधी समस्या को खत्म करता है और पाचन तंत्र मजबूत करता है। साथ ही वजन कम करने में भी यह बहुत काम आता है। गर्मियों के समय पाचन संबधी समस्या आम हो जाती है, वहीं जीरा उन सभी समस्याओं से निजात दिलाने में मदद कर सकता है। यह पोटेशियम, कैल्शियम व कॉपर जैसे पोषक तत्वों से भी समृद्ध है, जो आपकी त्वचा को कोमल रखने में मदद कर सकता है।
वजन घटाने और चमकदार त्वचा के लिए धनिया
धनिया विभिन्न प्रकार के खनिजों और विटामिनों का एक अच्छा स्रोत है, जो शरीर के अतिरिक्त वजन को कम करने में मदद करता है। धनिये के बीजों में एंटीसेप्टिक गुण पाए जाते हैं, जो त्वचा संबंधी कई समस्याओं के इलाज के लिए प्रभावी हो सकते हैं। इसलिए धनिये का सेवन गर्मियों के दौरान महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि गर्मी और पसीने के कारण त्वचा पर अतिरिक्त तेल त्वचा की विभिन्न समस्याओं को जन्म देता है।
वजन घटाने और चमकती त्वचा के लिए सौंफ
गर्मियों के मौसम में मुंहासे त्वचा से जुड़ी एक आम समस्या है और सौंफ को त्वचा को ठंडा करने के लिए जाना जाता है। इसमें जस्ता, कैल्शियम और सेलेनियम जैसे गुण होते हैं, जो शरीर में हार्मोन और ऑक्सीजन के स्तर को संतुलित करने के लिए अच्छे होते हैं, जो त्वचा पर एक स्वस्थ चमक लाते हैं। साथ ही इससे वजन कम होता है।
कैसे तैयार करें जीरा-धनिया-सौंफ का पानी?
आधा चम्मच जीरा, धनिया और सौंफ को 1 गिलास पानी में रातभर भिगो दें।
अगली सुबह इस पानी को अच्छी तरह उबाल लें और पानी छान लें।
काला नमक, शहद और आधा नींबू का रस इसमें मिला लें।
धर्म संसार / शौर्यपथ /पुराणों अनुसार कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू से उन्हें कई नागों की उत्पत्ति हुई है। जैसे अनंत, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पिंगला, पद्म, महापद्म, शंख, कुलिक, चूड़, धनंजय आदि। अग्निपुराण में 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन है। कहते हैं कि कालिया नाग भी कद्रू का पुत्र और वह पन्नग जाति का नागराज था।
कालिया नाग पहले रमण नामक द्वीप में निवास करता था। कहते हैं कि पक्षीराज गरुड़ से जब उसकी शत्रुता बढ़ गई तो वह अपनी पत्नियों सहित यमुना नदी के कुण्ड में आकर रहने लगा था। कालिया जानता था कि यही स्थान सुरक्षित है और यहां गरुड़ भगवान नहीं आ सकते हैं, क्योंकि यहीं पर गरुड़ ने तपस्वी सौभरि के मना करने पर भी कुंड से मछलियों को बलपूर्वक पकड़कर खा लिया था। इससे क्रोधित होकर महर्षि सौभरि ने गरुड़ को शाप दे दिया था कि अब यदि तुमने यहां आकर फिर कभी मछलियों को खाया तो उसी क्षण मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे। यही कारण था कि कालिया नाग यहीं छुपकर रहता था।
उसके विष के कारण यमुना का जल एक स्थान से जहरिला हो चला था जिसके चलते गोकुलवासी उस पानी का उपयोग नहीं कर सकते थे। कालिया देह या कुंड के स्थान पर जो भी जाता था कालिया नाग उसे खा जाता था। इसीलिए उसे कालिया दाह कहने लगे थे।
कहा जाता है कि एक बार श्रीकृष्ण की गेंद उस यमुना कुंड में गिर गई थी। गेंद लेने के लिए श्रीकृष्ण यमुना के उस स्थान पर कूद जाते हैं और जल के अंदर जाकर वे कालिया नाग से युद्ध कर उसको सपर्मण करने के लिए मजबूर कर देते हैं। तब कालिया नाग दया की भीख मांगता है तो भगवान कहते हैं कि तुम वहीं जाओ जहां तुम पहले रहते थे। कालिया नाग कहता है प्रभु वहां तो आपका सेवक गरुड़ मेरी जान का दुश्मन है। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि तुम्हारे शीश पर मेरे चरणों के निशान देखकर गरुड़ तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ेंगे। तब कालियान नाग अपनी पत्नियों सहित पुन: रमण द्वीप पर चला जाता है।
भारत में निम्न नागवंशी रहे हैं- नल, कवर्धा, फणि-नाग, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि तनक, तुश्त, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अहि, मणिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना, गुलिका, सरकोटा इत्यादी नाम के नाग वंश हैं।
शौर्यपथ / टीवी एक्ट्रेस प्रेक्षा मेहता ने इंदौर स्थित अपने घर में फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली। वे महज 25 वर्ष की थीं।
दो साल पहले वे इंदौर से मुंबई गई थीं। उन्होंने क्राइम पेट्रोल के कुछ एपिसोड में काम भी किया था।
प्रेक्षा 'मेरी दुर्गा' और 'नाल इश्क' जैसे टीवी धारावाहिकों में भी नजर आईं। लॉकडाउन के कारण वे मुंबई से इंदौर अपने घर लौट आईं।
प्रेक्षा के पिता के मुताबिक वे तनाव में थीं और परेशान चल रही थीं। कल रात उन्होंने फांसी लगाकर अपनी जान ले ली। सुबह पिता जब प्रेक्षा को उठाने के लिए गए तो उन्होंने उसे फंदे पर लटका पाया।
वे तुरंत अस्पताल ले गए, लेकिन तब तक प्रेक्षा की मृत्यु हो चुकी थी। फिलहाल सुसाइड नोट नहीं मिला है और पुलिस मामले की जांच कर रही है।
प्रेक्षा उभरती हुई कलाकार थीं। उन्होंने कई नाटकों में अभिनय किया और पुरस्कार भी हासिल किए। उनका वीडियो अलबम भी जारी हुआ। अक्षय कुमार की फिल्म 'पैडमैन' में भी उन्हें अभिनय करने का अवसर मिला। कुछ शॉर्ट्स फिल्में भी की।
नजरिया / शौर्यपथ / कोरोना वैश्विक महामारी ने जिन मुद्दों और समस्याओं की तरफ सरकारों और लोगों का सर्वाधिक ध्यान आकर्षित किया है, उनमें से प्रवासी कामगारों की समस्या सबसे गंभीर है। नेशनल सैंपल सर्वे एवं भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण के अनुसार, प्रवासी मजदूरों की अधिकांश जनसंख्या पिछड़े क्षेत्रों, राज्यों, आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों, विशेष तौर पर एसटी, एससी एवं ओबीसी से संबंधित है। उदाहरण के लिए, जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार अंतर-राज्यीय प्रवास की 50 प्रतिशत जनसंख्या उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से संबंधित है। इसमें उत्तर प्रदेश एवं बिहार का हिस्सा 37 प्रतिशत है। प्रवास निम्न आय वाले परिवारों की आजीविका का मुख्य स्रोत बन गया है, इसीलिए प्रतिवर्ष 4.5 प्रतिशत की दर से अंतर-राज्यीय प्रवास में वृद्धि हो रही है।
कोरोना वायरस संकट ने हमारा ध्यान उन समस्याओं की ओर आकर्षित किया है, जिनका सामना इन प्रवासी श्रमिकों को आए दिन करना पड़ता है। क्या अपने ही देश में संविधान प्रदत्त अधिकारों के बावजूद कामगारों को प्रवासी कहना, उनके साथ परायों जैसा व्यवहार करना उचित है? प्रवासी शब्द मात्र ही उन्हें बेघर, मेजबान राज्य पर निर्भर और आत्म स्वाभिमान से वंचित करता है। अब्राहम लिंकन ने कहा था, ‘श्रम पूंजी से पहले और स्वतंत्र है। पूंजी केवल श्रम का फल है और पूंजी कभी भी अस्तित्व में नहीं आ सकती थी, यदि श्रम का अस्तित्व नहीं होता। अत: श्रम पूंजी से श्रेष्ठ है और यह अधिक महत्व का हकदार है।’ श्रम भारत का एक आकर्षण है, लेकिन तब भी श्रमिक को उचित स्थान और अधिकार प्राप्त नहीं हैं। जहां एक ओर, कामगारों की समस्या को मानवीय दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है। काम और श्रम को उचित महत्व व सम्मान देने की जरूरत है। वहीं दूसरी ओर, मजदूरों की समस्याओं के दूरगामी समाधान के लिए सरकारी प्रयासों को और व्यवस्थित करने की जरूरत है। इस प्रयास में कुछ बिंदुओं पर ध्यान दिया जा सकता है। पहला, आवास और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय द्वारा 2015 में पार्थ मुखोपाध्याय की अध्यक्षता में 18 सदस्यीय कार्यकारी समूह बनाया गया था, जिसने प्रवासी कामगारों की समस्या पर जो सिफारिशें की थीं, उन्हें लागू करने की जरूरत है। दूसरा, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए एक व्यापक नीति बननी चाहिए, ताकि उन्हें काम करने की उचित परिस्थितियां, समय पर मजदूरी, उचित वेतन, अवकाश एवं कार्यस्थल पर सुरक्षा मिले। तीसरा, सभी प्रवासी मजदूरों की कार्यस्थल पर ही खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ‘वन नेशन-वन राशन कार्ड स्कीम’ को प्रभावी बनाया जाए, ताकि कोई मजदूर किसी भी राज्य में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का लाभ उठा सके।
चौथा, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एवं जन वितरण प्रणाली के अंतर्गत मोटा अनाज, दाल, तेल जैसी जरूरी सामग्रियों को शामिल किया जा सकता है। इससे श्रमिकों को पोषण भी सही मिलेगा। पांचवां, श्रमिकों के बच्चों की शिक्षा के लिए कार्यस्थल पर ही श्रमिक स्कूल खोले जा सकते हैं, जो दूसरे कार्यस्थलों पर चल रहे ऐसे ही श्रमिक स्कूलों से जुडे़ हों, ताकि जब मजदूर एक जगह से दूसरी जगह जाएं, तो उनके बच्चों की शिक्षा बाधित या प्रभावित न हो। छठा, मनरेगा के अंतर्गत कार्य दिवसों की संख्या 100 से बढ़ाकर 200 की जा सकती है। सातवीं, अत्यधिक गरीब लोगों की न्यूनतम आय सुनिश्चित करने के लिए यूनिवर्सल बेसिक इनकम जैसी किसी योजना पर विचार किया जा सकता है। सरकारें सुनिश्चित करें कि उनके पास प्रवासी श्रमिकों का पर्याप्त डाटा रहे, ताकि कोई फैसला लेने में आसानी हो। योजनाओं के जरिए मजदूरों को रजिस्ट्रेशन के लिए प्रेरित करना चाहिए।
हमें प्रवासियों की समस्या को संपूर्णता में देखना होगा। तात्कालिक के साथ-साथ दीर्घकालिक रणनीति बनाने की जरूरत है। शहरों के साथ-साथ गांवों में भी लाभदायक रोजगार सृजित करने होंगे। इसके लिए ग्रामीण विकास पर विशेष ध्यान देना होगा। हम अपनी विशाल आबादी का फायदा तभी उठा सकेंगे, जब हम अपने युवाओं को प्रशिक्षित कर रोजगार देंगे। इस दिशा में सामूहिक प्रयासों की जरूरत है, ताकि मेहनतकश समाज को गरिमामय जीवन दिया जा सके।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
सत्यपाल सिंह मीना, राजस्व अधिकारी
सम्पादकीय / शौर्यपथ / यह सचमुच कडे़ इम्तिहान की घड़ी है। प्रकृति जैसे हमारे समूचे धैर्य और संघर्ष-शक्ति को आजमाने पर उतर आई है। एक तरफ, दुनिया कोविड-19 के कहर से हलकान है, तो वहीं दूसरी ओर चक्रवाती तूफान कई देशों के लिए विनाशकारी बनकर आया, और अब लू के थपेड़ों ने धरती के जीवों को झुलसाना शुरू कर दिया है। भारत के कुछ हिस्सों में तो पारा सोमवार को 47 डिग्री के पार चला गया और मौसम विभाग का आकलन है कि इस बार मानसून देरी से केरल पहुंच रहा है यानी सूरज देव का कोपभाजन लंबे समय तक बनना पडे़गा, खासकर उत्तर भारत के लोगों को। चढ़ते पारे के कारण मौसम विभाग ने कल दिल्ली में ‘ऑरेंज अलर्ट’ तक जारी किया था। ऐसी सूचनाएं लोगों को आगाह करती हैं कि वे बेवजह धूप में न निकलें।
जब कोरोना महामारी के कारण देश-दुनिया में पूर्ण लॉकडाउन हुआ, और कारों-कारखानों के पहिए थमे, तब पर्यावरण में कई तरह के सुखद बदलाव दर्ज किए गए थे। शहरों की हवा, नदी-जल के प्रदूषण में कमी के अलावा सुदूर आर्कटिक क्षेत्र में ओजोन छिद्रों के भरने तक की खबरें आईं। लेकिन तब भी मौसम वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने किसी तात्कालिक राहत की उम्मीद नहीं बांधी थी, और अब जिस तरह से तापमान नए रिकॉर्ड दर्ज कराता जा रहा है, उसे देखते हुए शासन-प्रशासन के आगे एक और बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है। इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि पिछले एक दशक में 6,000 से भी अधिक लोग लू के शिकार बन चुके हैं। और यह आंकड़ा सिर्फ उन लोगों का है, जिनके नाम सरकारी दस्तावेजों में इस खाते में दर्ज हुए। ऐसे में, शासन-प्रशासन के ऊपर अब दो-दो मोर्चों पर जूझने की जिम्मेदारी होगी। एक तरफ, उन्हें कोविड-19 के संक्रमितों के क्वारंटीन और इलाज की व्यवस्था करनी है, तो वहीं लू के लिहाज से बेहद संवेदनशील लोगों की मदद के लिए भी तत्पर रहना है। चिंता की बात बस यह है कि पिछले दो महीने से भी अधिक समय से अनिवार्य सेवाओं से जुडे़ लोग अनथक अपने कर्तव्य के निर्वाह में जुटे हुए हैं, तापमान के इस तीखे तेवर से उन पर काम का बोझ और बढ़ जाएगा।
देश के कई महानगर पहले ही भारी जल संकट झेल रहे हैं। खासकर गरमी के तीन-चार महीनों में तो उनकी हालत सबसे दयनीय होती है। पिछले साल मुंबई, बेंगलुरु में पानी की किल्लत का आलम यह रहा कि कई बडे़ आयोजन तक टाल देने पडे़ थे। आज जब मुंबई और चेन्नई जैसे महानगर कोरोना महामारी से सर्वाधिक त्रस्त हैं, तब किसी प्रकार का जल संकट उनके लिए परेशानी का एक नया सबब बन सकता है। लोगों की दैनिक जरूरतों के लिए पानी की कमी होगी, जबकि बेहतर सैनेटाइजेशन के लिए उन्हें अधिक पानी की जरूरत होगी। यह ठीक है कि बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय कामगारों के वहां से पलायन के कारण नगर प्रशासन का दबाव कुछ घटा होगा, लेकिन विडंबना यह है कि हमारे नागरिक जीवन की जितनी जमीनी सेवाएं हैं, उनका दारोमदार काफी कुछ बाहर से आए मजदूरों के कंधों पर ही रहा है। इसके लिए किसी बड़े समाजशास्त्रीय अध्ययन की जरूरत भी नहीं। एक बात और। न तो कोरोना शहर-गांव, अमीर-गरीब में कोई फर्क कर रह रहा है और न ही लू के थपेडे़ करेंगे, इसलिए यहां भी एहतियात ही इलाज है।