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रायपुर / शौर्यपथ / छत्तीसगढ़ की सीमा में प्रवेश के बाद आज दो प्रवासी गर्भवती श्रमिक माताओं ने सुरक्षित प्रसव के जरिये स्वस्थ कन्याओं को जन्म दिया। दोनों ही माताएं अलग-अलग समय में अपने परिजनों के साथ राजनांदगांव जिले के बागनदी बार्डर पहुंची थीं, जहां उन्हें प्रवस पीड़ा शुरू हो गई। प्रशासन ने उन्हें तुरत स्वास्थ्य केंद्रों में पहुंचाकर सुरक्षित प्रसव का इंतजाम किया।
मूलतः कटई बेमेतरा निवासी श्रीमती त्रिवेणी साहू ने बागनदी बार्डर के उपस्वास्थ्य केंद्र में बच्ची को जन्म दिया। वहीं महाराष्ट्र के पुणे से आईं 28 वर्षीय सुरेखा पति कुमार सिंह निषाद ने छुरिया स्थित स्वास्थ्य केंद्र में बच्ची को जन्म दिया। छत्तीसगढ़ की सीमा में सुरेखा को प्रसव पीड़ा शुरु होने पर उन्हें पहले निकट के अस्तपाल पहुंचाया गया, जहां से छुरिया रेफर कर दिया गया। सुरेखा मूलतः दुर्ग जिले के सुखरीकला गांव की निवासी है।
दोनों ही मामलों में सुरक्षित प्रसव कराने में राजनांदगांव जिले के स्वास्थ्य विभाग के अमले ने तत्परता से कार्य किया। जिला कलेक्टर मौर्य ने स्वयं स्वस्थ्य केंद्र पहुंचकर जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य की जानकारी ली।
छत्तीसगढ़ की विभिन्न सीमाओं से हर रोज प्रवेश कर रहे हजारों मजदूरों को गंतव्य तक पहुंचाने के लिए शासन ने बसों के इंतजाम किए हैं। बसों की रवानगी से पहले मजदूरों के भोजन-पानी, चरणपादुका के प्रबंध के साथ-साथ उनका स्वास्थ्य परीक्षण भी किया जाता है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने सभी कलेक्टरों को निर्देश जारी किए हैं कि प्रवासी श्रमिक परिवारों में शामिल महिलाओं तथा बच्चों के स्वास्थ्य की विशेष देखभाल की जाए। क्वारेंटीन सेंटर में भी उनका विशेष ध्यान रखा जाए।
अब तक 15 ट्रेनों से 22 हजार श्रमिकों को की हुई सकुशल वापसी
वाहन एवं अन्य माध्यमों से 83 हजार 172 श्रमिक लौटे छत्तीसगढ़
रायपुर / शौर्यपथ / नोवेल कोरोना वायरस (कोविड-19) के संक्रमण की रोकथाम के लिए लागू लॉकडाउन से उत्पन्न परिस्थितियों के कारण छत्तीसगढ़ के बाहर अन्य राज्यों में फंसे प्रदेश के श्रमिकों तथा अन्य लोगों को लगतार वापसी जारी हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल एवं निर्देशन पर राज्य एवं राज्य के बाहर फंसे लगभग 3 लाख लोगों को त्वरित राहत पहुंचाई गई है। साथ ही प्रदेश के श्रमिकों को वापस लाने के लिए राज्य सरकारों से समन्वय कर 45 ट्रेनों की सहमति प्रदान की गई हैं।
श्रम मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया ने बताया कि भवन एवं अन्य सन्ननिर्माण कर्मकार कल्याण मण्डल द्वारा प्रवासी श्रमिकों को वापस छत्तीसगढ़ लाने के लिए स्पेशल ट्रेन के लिए विभिन्न रेल मण्डलों को श्रमिकों के यात्रा व्यय के लिए आवश्यक राशि का भुगतान किया जा रहा है। वर्तमान में 34 हजार 284 यात्रियों को 23 ट्रेनों से वापस लाने के लिए एक करोड़ 99 लाख 58 हजार 360 रूपए का भुगतान किया गया है।
राज्य सरकार इसके अलावा लॉकडाउन के कारण श्रमिकों एवं अन्य लोगों को जो छत्तीसगढ़ राज्य के सीमाओं पर पहुंच रहे है एवं राज्य की ओर से गुजरने वाले सभी श्रमिकों के लिए नाश्ता, भोजन, स्वास्थ्य परीक्षण एवं परिवहन की निःशुल्क व्यवस्था ने श्रमिकों कोे काफी राहत पहुंचा रही है। मुख्यमंत्री श्री बघेल के निर्देश पर छत्तीसगढ़ के सभी सीमाओं पर पहुंचने वाले प्रवासी श्रमिकों को, चाहें वो किसी भी राज्य के हो, उन्हें छत्तीसगढ़ का मेहमान मान कर शासन-प्रशासन के लोग उनके हरसंभव मदद कर रहे है।
मंत्री डॉ. डहरिया ने बताया कि लॉकडाउन से उत्पन्न परिस्थितियों के कारण देश के अन्य राज्यों में फंसे छत्तीसगढ़ के 2 लाख 51 हजार 867 श्रमिक तथा 22 हजार 168 अन्य लोगों इस तरह कुल 2 लाख 73 हजार 935 लोगों ने अब तक वापस अपने गृहग्राम आने के लिए राज्य शासन द्वारा जारी लिंक के माध्यम से ऑनलाईन पंजीयन करवाया है। उन्होंने बताया कि शासन द्वारा अन्य प्रदेशों में छत्तीसगढ़ के संकटापन्न प्रवासी श्रमिकों को वापस लाने के लिए लगभग 45 ट्रेनों की सहमति राज्य सरकार द्वारा प्रदान की गई है। भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मंडल द्वारा 34 हजार 284 श्रमिकों को छत्तीसगढ़ वापस लाने 23 ट्रेनों के लिए विभिन्न रेल मण्डलों को लगभग 2 करोड़ का भुगतान किया गया है। अब तक 15 ट्रेनों के माध्यम से लगभग 22 हजार प्रवासी श्रमिकों को वापस लाया जा चुका है। वाहन एवं अन्य माध्यमों से अन्य राज्यों में फंसे लगभग 83 हजार 172 श्रमिक सकुशल अपने गृहग्राम लौट चुके है। छत्तीसगढ़ में अन्य राज्यों के फंसे हुए लगभग 30 हजार से अधिक श्रमिकों को उनके गृह राज्य भेजा गया है। इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ के भीतर ही 11 हजार से अधिक श्रमिकों को एक जिले से अपने गृह जिला तक पहुंचाया गया है।
छत्तीसगढ़ के 2 लाख 51 हजार 867 प्रवासी श्रमिक सहित तीन लाख से अधिक लोगों को जो देश के अन्य राज्यों में होने की सूचना मिलने पर उनके द्वारा बतायी गई समस्याओं का त्वरित निदान करते हुए उनके लिए भोजन, राशन, नगद, नियोजकों से वेतन तथा रहने एवं चिकित्सा आदि की व्यवस्था उपलब्ध कराई गई है। इसके साथ ही श्रम विभाग के अधिकारियों का दल गठित कर विभिन्न औद्योगिक संस्थाओं, नियोजकों एवं प्रबंधकों से समन्वय कर (राशन एवं नगद) आदि की व्यवस्था भी की जा रही है। प्रदेश के 26 हजार 102 श्रमिकों को 36 करोड़ रूपए बकाया वेतन का भुगतान कराया गया है। लॉकडाउन के द्वितीय चरण में 21 अप्रैल से शासन द्वारा छूट प्रदत्त गतिविधियों एवं औद्योगिक क्षेत्रों में लगभग 98 हजार श्रमिकों को पुनः रोजगार उपलब्ध कराया गया है। वहीं छोटे-बड़े 1246 कारखानों में पुनः कार्य प्रारंभ हो गया है।
शौर्यपथ धर्म / कर्म का सिद्धांत क्या है ? कर्मफल क्या है? इसे जानने के पहले हमें कर्म को जानना होगा, कि कर्म क्या है? कर्म किसे कहेंगे? कर्म अच्छे हैं या बुरे? कर्म का फल स्वयम के कर्म के अनुसार मिलता है कि हिस्सेदारी सबकी होती है? इन सब प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए आइए धरमचंद और करमचंद की कहानी पढ़ लें।
करमचंद और धरमचंद दोनो बचपन के साथी थे जन्म भी एक ही दिन हुआ था, कद काठी और देखने में लगभग एक जैसे ही लगते थे, कोई अजनबी यदि अलग अलग समय में करमचंद और धरमचंद से मिलेगा तो धोखे में रहेगा कि दोनों व्यक्ति जिससे वह मिला है एक ही है कि अलग अलग दो व्यक्ति हैं। कम उम्र में ही जब दोनों प्राथमिक विद्यालय में पढ़ते थे तभी उनके गुरुजी ने करमचंद और धरमचंद को मितान बनवा दिया था। तब से इनकी अधिक गाढ़ी दोस्ती हो गई थी, दोनो एक दूसरे के अनन्य मित्र हो चुके थे। इनकी मित्रता कुछ कुछ सुदामा के मित्रता से मिलता था, केवल असमानता इस बात की थी कि सुदामा और गोपाल सोमरस का पान नहीं करते थे जबकि करमचंद और धरमचंद सोमरस के आदी थे। इनकी मित्रता, मित्र के लिए समर्पण और सम्मान कर्ण से अधिक था भिन्नता था तो केवल इस बात की कि कर्ण ने दुर्योधन के इच्छा को अपना धर्म मान लिया था जबकि करमचंद ने धरमचंद को ही अपना मित्र बना लिया था। वैसे दूसरा भिन्नता इस बात की थी कि कर्ण कभी सोमरस को हाथ नहीं लगाया जबकि करमचंद और सोमरस का अटूट रिस्ता था सोमरस हमेशा उनके हाथ में या लुंगी के गांठ में स्वयं को सुरक्षित मानता था।
करमचंद अपने मित्र धरमचंद के विवाह समारोह में नृत्य कर रहा था, अचानक बैंड वाले ने नागिन डांस वाला म्यूजिक बजा दिया। फिर क्या था करमचंद नागिन डान्स करने लगा, बिधुन होकर नाचते नाचते बेहोश हो गया। पता चला करमचंद के बम में पथरीले रास्ते के नुकीले पत्थर चुभ गया था, उसके बावजूद वह नाच रहा था, नीचे लुंगी खून से लथपथ हो चुका था, उसके खून से कुछ और लोग भी सना चुके थे। चस्माराम भी खून से भीग चुका था, देशी दारू की दुकान के पास किसी ने चस्माराम को बताया कि उसका कपड़ा खून से भींग चुका है। चस्माराम अपने वस्त्र के भीतर शरीर को चेक किया तब उन्हें पता चला कि उन्हें कोई चोट नही है वापस आकर चस्माराम ने बेंड रूकवाकर लोगों को बताया तब पता चला कि करमचंद को चोट लगी है, करमचंद अपने लुंगी और शरीर के खून को देखकर मूर्छित हो गया था।
अब बताओ करमचंद को क्यों चोट लगी? क्या पिछले जन्म में उसने कोई पाप किया था? क्या उसने किसी के लिए गड्ढे खोदे थे, जिसमे वह गिरा? क्या करमचंद पापी था? क्या करमचंद का नृत्य करना पाप था? क्या करमचंद और धरमचंद में पिछले किसी जन्म में कोई दुश्मनी थी? या कभी करमचंद और धरमचंद की होने वाली पत्नी के बीच कोई पिछले जन्म की दुश्मनी थी? क्या रास्ते को बनाने वाले ठेकेदार की गलती थी? क्या सरकार की गलती थी? क्या बैंड वाले की गलती थी जो उसने नागिन डांस के लिए म्यूजिक दिया? क्या धरमचंद की गलती थी कि उसने अपने विवाह में बैंड लगवाया? क्या धरमचंद के बाप का गलती था जिसने धरमचंद का विवाह तय कर दिया? क्या महुआ दारू का गलती था जिसे करमचंद ने पी रखी थी? क्या महुआ बनाने वाले भोंदुलाल का गलती था? क्या धरमचंद के छोटे भाई मतवारीलाल का गलती था जिसने महुआ दारू खरीद लाया और करमचंद को पीने दे दिया था?
फल का जिम्मेदारी कौन लेगा? किस या किसके कर्म पर आरोप लगाया जाए कि उसके कारण करमचंद अभी मूर्छित है? उत्तर बिल्कुल समझ और बुद्धि के पकड़ से दूर ही मिलता है हर अनुमान पहले सटीक जान पड़ता है फिर कुछ ही समय में उत्तर से दशकों प्रकाशवर्ष दूर चले जाते हैं यही प्रक्रिया अर्थात दूर और निकट का खेल बारम्बार नियमित रूप से पुनरावृत्ति होती है।
करमचंद और धरमचंद की कहानी पढ़ने के बाद कर्मफल का जो सटीक उत्तर मिला है उसके अनुसार प्रतीत होता है कि यहां पूरा पूरा साझेदारी का गेम है, कोई अकेला व्यक्ति अथवा उसके पूर्वजन्म के कर्म ही उनके मूर्च्छा का कारण नहीं है बल्कि प्रश्न के दायरे में आने वाले सभी व्यक्ति और उनके कर्म करमचंद के कष्ट का कारण है। संभव है किसी भी कर्म और कर्मफल का अकेला कोई व्यक्ति अथवा संबंधित व्यक्ति और उनके कर्म जिम्मेदार न हों, इसलिए करमचंद के मूर्छा के लिए सभी कुछ कुछ मात्रा में जिम्मेदार हैं।
क्या कर्म का खाता होता है? क्या कर्म का एक ही एकाउंट होता है एक जीव के लिए? क्या एक जीव के कर्म का एकाउंट सैकड़ो लाखों हो सकता है? क्या पति पत्नी का साझे का एकाउंट होता है? क्या आपके कर्म के एकाउंट से आपके निकट या दूर पीढ़ी को कुछ हिस्से मिलेंगे? क्या कर्म का एकाउंट आपके जन्म जन्मांतर तक चलता रहेगा? कर्म के एकाउंट अर्थात लेखा जोखा या खाता से संबंधित सैकड़ों प्रश्न उठते हैं; परंतु क्या इन सैकड़ों प्रश्नों का कोई अत्यंत सटीक उत्तर दे सकता है? उत्तर आता है नहीं। नहीं क्यों? क्योंकि यह अनुमान है आपका मानना है सत्य नहीं। यदि सत्यता है आपके जवाब में तो साक्ष्य भी मिलना चाहिए ठीक वैसे ही जैसे आपके याहू, हॉटमेल और जीमेल एकाउंट का साक्ष्य है, आपके सोशल मीडिया एकाउंट जैसे फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग, वर्डप्रेस और टिकटोक के साक्ष्य मिलते हैं। ठीक वैसे ही जैसे बैंकों के बचत खाते, जमा खाता, ऋण खाता, फिक्स डिपॉजिट, रिकरिंग डिपॉजिट, जीवन बीमा, टर्म प्लान इत्यादि का एकाउंट होता है।
कर्म का खाता तो दिखाई ही नही देता इसके साक्ष्य भी नहीं मिलते, तो क्या यह मान लिया जाए कि कर्म का एकाउंट नही होता। क्या मान लें कि कर्म का एकाउंट जैसी बात कोरी कल्पना है? इसमें थोड़ा संदेह नजर आता है क्योंकि हम हजारों वर्षों से यह मानते आ रहे हैं कि कर्म का लेखा जोखा होता है। फिर एक झटके में इन चंद प्रश्नों के झांसे में आकर अपनी बनी बनाई SOP को खारिज करके अपनी अनुशासन क्यों बदल डालें? क्यों मानने लगें कि कर्म का एकाउंट नही होता, खाता नही होता? इसे मानने के पहले भी द्वंद पैदा हो जाता है कैसा द्वंद इसे समझने के पहले हम लगभग 1,50,000 साल ईसापूर्व चलते हैं। नजूल नाथ और फजूल नाथ दो सगे भाई हैं जो रतिहारिन की संतानें हैं रतिहारिन रोमसिंग कबीला के कबीला प्रमुख की पहली पत्नी है। जब कबीला प्रमुख रोमसिंग दूसरे कबीलों को अपने कब्जे में लेने के अभियान में चल पड़े थे और लंबे बसंत तक वापस नहीं आए तो रतिहारिन को उनकी चिंता होने लगी, वे अपने रोमसिंग के तलास में निकल पड़ी। कुछ कबीला तक उनके यात्रा के दौरान उनका खूब सम्मान हुआ, आगे चलते हुए, रोमसिंग को खोजते हुए लगभग दो बसंत बीतने को आया तब वह अपने रक्षकों और अश्व के बिना नदी किनारे स्वयं को पाई, तब वह गर्भवती हो चुकी थी, उन्हें पता नहीं कि कब कैसे किसके सहयोग से वह गर्भवती हुई है। वह आसपास के काबिले में गई तो किसी ने उसे बताया कि वह कबीला प्रमुख रोमसिंग की पत्नी है, रोमसिंग को भी सूचना मिल गई वे फौरन आकर अपनी पत्नी को लेकर चल दिये। अब शोध शुरू हुई कि रतिहारिन कैसे गर्भवती हुई सबके सब जानने में असफल रहे तब एक दरबारी मंत्री ने कहा इसे प्रकृति का संतान मान लेना चाहिए अथवा शक्तिमान का आशीर्वाद मान लेना चाहिए; ठीक ऐसे ही हुआ क्योंकि दिमाक खपाने और परिणाम नहीं मिलने की संभावना को देखते हुए दरबारी मंत्री का बात मान लेना ही बेहतर विकल्प था। रतिहारिन ने दो जुड़वा संतान को जन्म दिया उनका नाम रखा गया नजूल नाथ और फजूल नाथ दोनो अत्यंत शक्तिशाली और अपने समय में विख्यात कबीला प्रमुख हुए। नजूल नाथ और फजूल नाथ के जन्म का रहस्य किसी को पता नहीं, स्वयं रतिहारिन को भी नहीं क्योंकि दीर्घकाल तक वह बेहोश रही, स्मरण शक्ति को खो चुकी थी। मगर कोई तो शक्ति है कोई क्रिया तो हुई थी जिसके कारण नजूल नाथ और फजूल नाथ का जन्म हुआ, कोई तो एकाउंट खोला होगा। प्राकृतिक अप्राकृतिक संयोग के बिना रतिहारिन का गर्भवती होना समझ से परे नहीं बल्कि स्पस्ट है। चूंकि रोमसिंग और नजूल नाथ और फजूल नाथ ही नहीं बल्कि उनके आगे के संतान भी अत्यंत शक्तिशाली हुए इसलिए किसी के पास कोई विकल्प नही था कि कोई यह कहे कि नजूल नाथ और फजूल नाथ का जन्म ठीक उनके जैसे ही सामान्य संयोग से हुआ है।
कर्म, कर्म के सिद्धांतों और उससे जुड़े इन प्रश्नों का सटीक जवाब अभी तक किसी के पास नहीं है, है भी तो वह सर्वमान्य नही। अतः जब तक आप साहस और बुद्धि से काम नही लेंगे नजूल नाथ और फजूल नाथ प्रकृति की संतान है अथवा शक्तिमान के आशीर्वाद से ही रतिहारिन गर्भवती हुई है। अंत में यह साफ कर देना चाहता हूं कि यह काल्पनिक कहानी कर्म, कर्म के सिद्धांत, कर्म का खाता जैसे महत्वपूर्ण प्रश्नों के सटीक उत्तर देने असफल रहा है। इस लेख को पढ़ने में आपके समय की हुई बर्बादी को रोक सकते हैं थोड़ा सोचने से, थोड़ा अधिक सोचने से अन्यथा यह लेख आपको सुलझाने के बजाय उलझा चुका है।
आप स्वयं को अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने का प्रयास करेंगे तो संभव है समुद्र तट के नन्हे कछुआ की भांति चंद्रमा की रोशनी के बजाय आप रेस्टोरेंट के एलईडी के झांसे में आ जाएं इसलिए बुद्ध की बात मानें। बुद्ध ने कहा था "अपना दीपक खुद बनो।"
उल्लेखनीय है कि यह लेख श्री हुलेश्वर जोशी के ग्रंथ "अंगूठाछाप लेखक" - (अभिज्ञान लेखक के बईसुरहा दर्शन) का अंश है।
राजनांदगांव / शौर्यपथ / धूप और गम के बादल अब छंटने लगे हंै। कोविड-19 संक्रमण के कारण लॉकडाऊन में फंसे प्रदेश एवं अन्य प्रवासी श्रमिकों की पीड़ा को महसूस कर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बागनदी बार्डर से उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए बस की व्यवस्था करने के निर्देश दिए है। महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान से बड़ी संख्या में श्रमिक बागनदी बार्डर आ रहे है। जिला प्रशासन ने तत्परता एवं सक्रियता से श्रमिकों के आवागमन के लिए बागनदी चेक पोस्ट में व्यवस्था की है। कलेक्टर जयप्रकाश मौर्य निरंतर बागनदी चेक पोस्ट का निरीक्षण कर रहे है और व्यवस्था की निगरानी कर रहे हंै। श्रमिकों की सहायता के लिए काऊंटर बनाए गए है। विभिन्न राज्यों से आने वाले श्रमिक सहायता केन्द्र में अपने गांव की ओर जाने वाले बसों का पता पूछकर जाने की तैयारी में खुश दिखाई दिए। बागनदी बार्डर में श्रमिकों के लिए सूखे नाश्ते एवं पेयजल की व्यवस्था की गई है। उन्हें ओआरएस घोल एवं शर्बत दिया जा रहा है। चेक पोस्ट में उनके स्वास्थ्य परीक्षण के लिए काऊंटर बनाया गया है। समीप ही पुलिस सहायता केन्द्र में श्रमिकों को जानकारी देने के साथ ही मदद की जा रही है। श्रमिकों के पंजीयन के लिए दो काउंटर बनाए गए है। प्रवासी श्रमिकों को उनके राज्य तक एवं छत्तीसगढ़ के श्रमिकों को उनके जिलों तक पहुंचाने के लिए लगभग 100 बसें लगी हुई है।
राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 53 में स्थित बागनदी बार्डर में प्रतिदिन लगभग 10 से 15 हजार श्रमिक सीमा में प्रवेश कर रहे है। महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, गुजरात, मध्यप्रदेश से आने वाले यात्री लगातार आ रहे हंै। महाराष्ट्र एवं गुजरात परिवहन विभाग की बसों एवं उन राज्यों से आने वाले ट्रकों के माध्यम से बढ़ी संख्या में यात्रियों को बागनदी चेक पोस्ट के समीप उतार दिया जाता है। जिससे बागनदी चेक पोस्ट पर हजारों लोगों की भीड़ एकत्र हो रही है। सीमा पर आने वाले यात्री छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, ओडि़सा, पश्चिम बंगाल के निवासी
जिले में लाकडाउन की समयावधि में प्रथम चरण (24 मार्च से 13 अप्रैल 2020), द्वितीय चरण (14 अप्रैल से 3 मई 2020) एवं तृतीय चरण (4 मई से 17 मई 2020) को मिलाकर अब तक राजनांदगांव के अंतर्राज्यीय सीमाओं से लगभग 2 लाख 10 हजार लोग प्रवेश कर चुके है। प्रवासी मजदूरों की जाने की व्यवस्था अंतर्गत पका हुआ भोजन एवं सूखा राशन लगभग 60 हजार से अधिक लोगों को प्रदान किया गया। क्वारेन्टाईन सेंटर जहां दूसरे राज्य के प्रवासी मजदूरों को 14 दिनों तक क्वांरेन्टाईन किया गया, सड़क चिरचारी में 800, रैन बसेरा राजनांदगांव में 300 लोगों को तथा दूसरे राज्यों से आए प्रवासी मजदूरों के रहने, खाने, कपड़े और अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुओं में लगभग 28 लाख रूपए व्यय किए गए है। जिले में क्वांरेन्टाईन सेंटरों की संख्या 1443 है, जिस पर अब तक 4 करोड़ 32 लाख 90 हजार रूपए व्यय किया जा चुका है। बागनदी से अन्य जिलों एवं अन्तर्राज्यीय सीमाओं तक प्रवासी मजदूरों को भेजने के लिए 100 बसों की व्यवस्था की गई है। राजनांदगांव के रैन बसेरा से 24 अप्रैल 2020 से बसों के माध्यम से जिला कवर्धा, मुंगेली, बेमेतरा एवं बलोद के 12 हजार मजदूरों को अब तक पहुंचाया गया है। दूसरे राज्य से आए प्रवासी मजदूर का व्यय अस्थायी क्वांरेन्टाईन सेंटर (सड़क चिरचारी एवं अन्य चेक पोस्ट) में 28 लाख रूपए का व्यय हुआ। वही बस एवं डीजल व्यवस्था के लिए प्रतिदिन 15 से 20 लाख रूपए का व्यय हो रहा है। अब तक 30 लाख रूपए का व्यय किया जा चुका है।
बागनदी बार्डर पर पश्चिम बंगाल के केस्टो एवं रमेश विश्वास ने बताया कि रोजी-मजदूरी के लिए पुणा गए थे और ऐसी कठिन परिस्थिति में फंस गए थे कि अपने घर नहीं जा पा रहे थे। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ शासन की मदद से हम अपने घर तक पहुंच पाएंगे। छत्तर साहू ने बताया कि पुणा से वापस आया हूं। अब आज बेमेतरा अपने गांव साजा-बेलगांव चला जाऊंगा। रघुराम साय ने बताया कि झारखंड से हम 20 श्रमिक रोजी-मजदूरी करने के लिए महाराष्ट्र के नासिक शहर चले गए थे और वहां लॉकडाऊन में फंस गए थे। आज हम बस सेवा से अपने गांव गढ़वा चले जाएंगे। इसके लिए उन्होंने छत्तीसगढ़ शासन को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया।
जंगल में अब ऐसे पेड़ लगाए जाएंगे जो पर्यावरण के अनुकूल और आदिवासियों के पोषण व जीविकोपार्जन में होंगे सहायक
मुख्यमंत्री ने की वन विभाग के काम-काज की समीक्षा
वृक्षारोपण अभियान: प्रदेश में पांच करोड़ पौधे लगाए जाएंगे: पौधों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देने के निर्देश
गौठानों में लघु वनोपजों के 50 लाख पौधों का होगा रोपण
स्व-सहायता समूह तैयार करेंगे बांस के 4 लाख ट्री गार्ड: लगभग 16 करोड़ रूपए की होगी आमदनी
वन प्रबंधन समितियों की महिलाओं ने 4 करोड़ की लागत से तैयार किए 50 लाख मास्क
वन अधिकार पट्टा प्राप्त हितग्राहियों को वृक्षारोपण से जोड़ने के निर्देश
रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि आदिवासियों की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रदेश के जंगलों का विकास किया जाएगा। जंगलों में ऐसे पेड़ लगाए जाएंगे जो पर्यावरण के अनुकूल होंगे, आदिवासियों के पोषण और जीविकोपार्जन में सहायक होंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि पौध रोपण के दौरान इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखा जाए। वन क्षेत्रों के विकास में इस कार्य को प्राथमिकता से शामिल किया जाए जिससे वनवासियों के जीवन में सुधार और उनके जीवकोपार्जन में मदद मिले। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यह बातें आज अपने निवास कार्यालय में आयोजित वन विभाग के कामकाज की समीक्षा बैठक में कही। मुख्यमंत्री ने वनों के संरक्षण और संवर्धन के लिए वृक्षारोपण कार्यक्रम के तहत रोपित पौधों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देने के निर्देश दिए। प्रदेश में वन विभाग द्वारा इस वर्ष विभिन्न मदों के अंतर्गत पांच करोड़ एक लाख पौधे के रोपण का लक्ष्य रखा गया है।
बैठक में वनमंत्री मोहम्मद अकबर, मुख्य सचिव आर.पी. मण्डल, मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू, वन विभाग के प्रमुख सचिव मनोज कुमार पिंगुआ, प्रधान मुख्य वन संरक्षक राकेश चतुर्वेदी, वन विभाग के सचिव जयसिंह म्हस्के तथा मुख्यमंत्री सचिवालय में उप सचिव सुश्री सौम्या चौरसिया और वरिष्ठ विभागीय अधिकारी उपस्थित थे।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बैठक में कहा कि जिन हितग्राहियों को वन अधिकार पट्टे दिए जा रहे हैं उन्हें वृक्षारोपण के साथ जोड़ा जाना चाहिए और इन हितग्राहियों की जमीन पर मनरेगा और वन विभाग की योजनाओं के तहत अभियान चलाकर महुआ, हर्रा, बहेरा, आंवला, आम, इमली, चिरौंजी जैसे अलग-अलग प्रजातियों के फलदार वृक्ष लगाए जाएं, इससे भी जंगल बचेगा और हितग्राही को आमदनी भी होगी। श्री बघेल ने कहा कि इन हितग्राहियों को तत्काल आय का साधन उपलब्ध कराने के लिए उनकी जमीन पर तीखुर, हल्दी और जिमीकांदा भी लगाया जाना चाहिए, जिससे उन्हें इन उत्पादों के जरिए जल्द आय का साधन मिल सके। मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि आज आदिवासी जंगलों से विमुख हो रहे हैं क्योंकि जंगल उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। हमें जंगलों को वनवासियों के लिए रोजगार और आय का जरिया बनाना होगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि फलदार वृक्ष लगाने के साथ-साथ लघु वनोपजों के संग्रहण और उनकी मार्केटिंग तथा वैल्यू एडिशन का भी एक सिस्टम तैयार किया जाना चाहिए, जिससे अधिक से अधिक लोगों को रोजगार से जोड़ा जा सके। जंगलों, सड़कों के किनारे और राम वन गमन पथ के किनारे आम, बरगद, पीपल, नीम जैसी प्रजातियों के पौधे भी लगाए जाएं।
मुख्यमंत्री बघेल ने बैठक में निर्देश दिए कि वृक्षारोपण कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन के लिए स्थानीय लोगों और वनवासियों को अधिकाधिक जोड़ा जाए। राज्य में चालू वर्ष में रायपुर से जगदलपुर तक 300 किलो मीटर के राष्ट्रीय राजमार्ग में दोनों ओर वृक्षारोपण किया जाएगा। साथ ही प्रदेश में 1300 किलो मीटर लम्बाई के राम वन गमन पथ के 75 विभिन्न स्थलों में आम, बरगद, पीपल, नीम तथा आंवला आदि फलदार प्रजाति के पौधों का रोपण किया जाएगा। मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि प्रदेश में बनाए जा रहे गौठानों में अभियान चलाकर जुलाई माह में लघु वनोपजों के 50 लाख पौधों का रोपण किया जाए। उन्होंने बैठक में वृक्षारोपण के तहत रोपित पौधों की सुरक्षा के लिए प्रदेश में स्व-सहायता समूहों द्वारा बांस ट्री गार्ड के निर्माण की प्रशंसा की और इसे बढ़ावा देने के लिए आवश्यक निर्देश दिए। वर्तमान में समूहों द्वारा एक लाख बांस ट्री गार्ड का निर्माण हो चुका हैै तथा तीन लाख और बांस ट्री गार्ड का निर्माण जारी है। इससे समूहों को 16 करोड़ रूपए की आमदनी होगी।
मुख्यमंत्री बघेल ने आवर्ती चराई योजना के तहत वन क्षेत्रों में पशुओं के लिए चारागाह घेरने, शेड निर्माण और वहां वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन के साथ-साथ देशी मुर्गी पालन तथा बतख और सूकर पालन जैसे गतिविधियों को बढ़ावा देने के निर्देश दिए। इसके तहत वर्तमान में स्वीकृत 590 कार्याें में से 324 कार्य प्रगति पर है। नरवा विकास कार्यक्रम के तहत वन विभाग द्वारा चालू वर्ष में 210 करोड़ रूपए की राशि के 302 नालों में जल संवर्धन संबंधित कार्य कराए जा रहे हैं। इसके अलावा वनांचल में 137 बड़े-बड़े तालाबों के निर्माण के लिए प्रस्ताव स्वीकृति की कार्यवाही प्रगति पर है। बैठक में बताया गया कि कोरोना संक्रमण के बचाव के लिए वन प्रबंधन समितियों और महिला स्व सहायता समूहों की लगभग एक हजार महिलाओं द्वारा 50 लाख मास्क का निर्माण किया जा चुका है। इससे इन महिलाओं को डेढ करोड़ रूपए की आमदनी होगी।
वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने बैठक में बताया कि इस वर्ष तेंदूपत्ता तोड़ाई के पारिश्रमिक का भुगतान सीधे हितग्राहियों के खाते में करने का निर्णय लिया गया है। प्रदेश में चालू वर्ष के दौरान तेंदूपत्ता संग्रहण से 12 लाख 53 हजार परिवारों को लगभग 649 करोड़ रूपए का पारिश्रमिक मिलेगा। उन्होंने बताया कि प्रदेश के सभी जिलों में होने वाली वनोपजों की जानकारी से संबंधित डाटा एकत्र करने के लिए सर्वे कराया जा रहा है अगले तीन से 4 वर्षों में लघु वनोपजों की ऑनलाइन खरीदी की व्यवस्था तैयार करने का प्रयास किया जा रहा है।
बैठक में बताया गया कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान वन विभाग द्वारा अब तक 80 करोड़ रूपए के विकास कार्याें के माध्यम से जरूरतमंदों को तत्परता पूर्वक रोजगार उपलब्ध कराया गया है। इसी तरह देश में सर्वाधिक 26 करोड़ रूपए की राशि के लघु वनोपजों का संग्रहण कर बड़ी तादाद में लाभ दिलाया गया है। राज्य में अब तक लगभग 165 करोड़ रूपए की राशि के 4 लाख 11 हजार 222 मानक बोरा तेन्दूपत्ता का संग्र्रहण हो चुका है। इसके माध्यम से लोगों को रोजगार के साथ-साथ आय का लाभ मिल रहा है। इसी तरह वनों में अग्नि दुर्घटनाओं को रोकने के लिए वन विभाग अंतर्गत कुल 3 हजार 506 बीटों में अग्नि रक्षक लगाकर रोजगार उपलब्ध कराया गया। इसके अलावा 241 नर्सरियों में पौधा तैयार करने तथा संयुक्त वन प्रबंधक के अंतर्गत वर्मी कम्पोस्ट, मशरूम उत्पादन, मछली पालन, तालाब गहरीकरण, बांस ट्री गार्ड निर्माण, लाख चूड़ी उत्पादन और भू-जल संरक्षण कार्य तथा नरवा विकास कार्याें के माध्यम से काफी तादाद में लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है। बैठक में बताया गया कि बस्तर में इमली की प्रोसेसिंग के माध्यम से लगभग 12 हजार महिलाएं जुड़ी हैं इन्हें हर माह ढाई हजार से 3 हजार रूपए की आय हो रही है। चिरौंजी, रंगीली लाख, कुसमी लाख, शहद, महुआ बीज संग्रहण और प्रोसेसिंग के माध्यम से 8580 महिलाओं को काम मिला है। जशपुर में महुआ से सेनेटाइजर बनाया जा रहा है।
रायपुर / shouryapath / मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को आज यहां उनके निवास कार्यालय में वन विभाग की समीक्षा बैठक के दौरान छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम द्वारा वर्ष 2018-19 के लाभांश की राशि 2 करोड़ 25 लाख रूपए का चेक सौंपा गया। इस अवसर पर वन मंत्री मोहम्मद अकबर, मुख्य सचिव आर.पी. मण्डल, मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू, वन विभाग के प्रमुख सचिव मनोज कुमार पिंगुआ, प्रधान मुख्य वन संरक्षक राकेश चतुर्वेदी, प्रधान मुख्य वन संरक्षक राज्य वन विकास निगम आर. गोवर्धन, वन विभाग के सचिव जयसिंह म्हस्के तथा मुख्यमंत्री सचिवालय में उप सचिव सुश्री सौम्या चौरसिया और वरिष्ठ विभागीय अधिकारी उपस्थित थे।
छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम को भारत सरकार द्वारा स्वीकृत कार्य आयोजना के अंतर्गत रोपित किए गए सागौन वृक्षारोपण के विरलन से प्राप्त वनोपज के विक्रय तथा अन्य आय से वित्तीय वर्ष 2018-19 में 56 करोड़ 41 लाख रूपए की आय प्राप्त हुई। निगम द्वारा इस दौरान विभिन्न कार्यों पर 30 करोड़ 49 लाख रूपए की राशि व्यय हुई। इस तरह वर्ष 2018-19 के दौरान निगम को 25 करोड़ 92 लाख रूपए की राशि का लाभ प्राप्त हुआ। निगम द्वारा वर्ष 2018-19 में राज्य के 3 हजार 594 हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग 60 लाख पौधे का रोपण किया गया। इसके अलावा पर्यावरण सुधार के लिए खदानी तथा औद्योगिक क्षेत्रों में मिश्रित प्रजाति के 8 लाख 10 हजार पौधों का वृक्षारोपण किया गया। निगम द्वारा वानिकी वर्ष 2018-19 में 23 हजार 367 घनमीटर ईमारती काष्ठ, 14 हजार 16 नग जलाऊ चट्टा और एक हजार 521 नोशनल टन बांस का उत्पादन किया गया है।
शौर्यपथ / कोरोना संकट में कुछ ऐसी सच्चाई सामने आयी तो सच है जिसे इंसान आज तो स्वीकार कर रहा है किन्तु कुछ महीने पहले इस बात पर हंसी उडाता था आज ऐसी कई कार्य है जो कुछ महीने पहले गैर ज़रूरी लगती थी आज जीवन का यतार्थ नज़र आ रहा है ऐसी जी जीवन की कुछ कड़वी बाते है जो कडवी तो लगेगी पर सच से नाकारा नहीं जा सकता . यह छोटा सा लेख फेसबुक वाल ( नीलिमा गुप्ता ) से लिया गया है .
# 10 - 20 रुपये किलो टमाटर लेकर सब्जी और चटनी बनाकर खाना महंगा लगता है , 150 - 200 रुपये किलो सॉस महंगी नही लगती हमें ।
# 40 - 50 रुपये लीटर दूध हम पी नही सकते , लेकिन 70 - 80 रुपये लीटर 2 माह पुराना कोल्ड्रिंक हम मजे से पीते है ।
# पहले 1 - 2 दिन पुराना घड़े का पानी हमे बासी लगता था , आज 1 - 2 महीने पुरानी बिसलेरी की बोतल का पानी हमे ताजा लगता है ।
# 150 - 200 रुपये पाव मिलने वाला ड्राई फ्रूट हमे महंगा लगता है , 200 - 400 रुपये पीस मिलने वाला पिज़्ज़ा हम मजे ले ले कर खा सकते है ।
# घर की रसोई का बना नाश्ता या खाना हम शाम को खाना पसंद नही करते , जबकि बाजार में मिलने वाले 6 - 7 महीने पुराने पैकेट और डिब्बा बंद समान हम लाते है और उसका उपयोग खाने में करते है , जबकि हम जानते है कि वो हमारे शरीर के लिए हानिकारक होते है ।
# बड़े बड़े शॉपिंग मॉल से शॉपिंग और अंधाधुन पैसे खर्च न करके भी हम जी सकते है ।
* 2 महीने के लॉक डाउन से सभी को समझ तो आ गया होगा कि बिना बाहर खाना खाएं *
घर मे भी अच्छे अच्छे पकवान बना कर खाया जा सकता है , तो घर मे रहे सुरक्छित रहे और आत्मनिर्भर रह कर बढ़िया बढ़िया भोजन बनाये और अपने आप को और अपने परिवार को खुश रखे और कोरोना से मुक्त रखे ।
शौर्यपथ धर्म / पृथ्वी में कई परजतायो के जीव जंतु का वास है . हमारी धरती में कई जिव जंतु ऐसे ही है जो लुप्त की कगार पर है . जिव जन्तुओ की कई प्रजातियों का वास ये धरती अनेक रोचक तथ्यों को अपने गर्भ में छुपाये हुए है . कई जीव तो ऐसे हैं जो करोड़ों सालों से इस धरती पर अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं. उनमें से ही एक है कछुआ. कहा जाता है कि बहुत ही शांत और शर्मीला जीव होता है. यह धरती पर करोड़ों सालों से अपना अस्तित्व बनाए हुए है. कछुआ जहरीला नहीं होता . आज हम आपको कछुआ के बारे में ही कुछ रोचक बातें बताएंगे.
कछुआ के बारे में 15 रोचक तथ्य
कछुए पिछले 20 करोड़ सालों से धरती पर कायम हैं. वैज्ञानिकों ने इसका अंतिम जीवाश्म खोज निकाला है जो कि 12 करोड़ साल पुराना है. आपको बता दें कि ये सांप, छिपकली, मगरमच्छ और पक्षियों से पहले धरती पर आए थे.
विश्व में हर साल 23 मई को अंतर्राष्ट्रीय कछुआ दिवस के रूप में मनाया जाता है. सभी रेंगने वाले और कवच वाले जीव, जो Cheloni परिवार के हैं उन्हें Turtle कहा जाता है और स्थानीय कछुओं को Tortoise कहते है.
आपको बता दें कि Turtle की 318 से भी ज्यादा प्रजातियां पृथ्वी पर पाई जाती हैं. इनमें से कुछ जमीन पर रहती है और कुछ पानी में रहती है. लेकिन ये दुख की बात है कि Turtle की कुछ प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर है.
Turtle जहरीले नहीं होते हैं और ना ही इनके काटने पर जहर निकलता है. Turtle के लिंग का पता लगाना आसान नही होता है. इसलिए इनका लिंग पता करने का सबसे आसान तरीका इनका कवच है. Male Turtle Female से थोड़े लंबे होते हैं और इनकी पूंछ भी Female से लंबी ही होती है.
कछुए जितने गर्म मौसम में रहते हैं उनका कवच उतने ही हल्के रंग का होता है और जो Turtle ठंडे इलाकों में रहते हैं उनका कवच गहरे रंग का होता है.
प्राचीन रोमन मिलिट्री, कछुओं से बहुत प्रभावित हुई थी. सेना के जवानों ने कछुए से ही लाइनें बनाना और अपनी ढाल को सिर के ऊपर रखना सीखा था ताकि लड़ाई के दौरान दुश्मन के वार से बचा जा सके.
ये तो आपको पता ही होगा कि कछुए अंडे देते हैं. Female Turtle पहले मिट्टी खोदती है फिर एक बार में 1 से 30 अंडे देती है. इन अंडो से बच्चे निकलने में करीब 90 से 120 दिन का समय लगता है.
कछुए को Sex करने के लिए इनकी छाती का कवच बहुत अहम भूमिका निभाता है. Female का कवच बिल्कुल सीधा और Male का कवच थोड़ा घुमावदार होता है.
क्या आपको पता है कि कछुओं के मुंह में दांत नहीं होते, बल्कि एक तीखी प्लेट की तरह हड्डी का पट्ट होता है जो भोजन चबाने में इनकी सहायता करता हैं.
कछुआ जब अपने कवच में छुपता है तो उसे अपने फेफड़ों की हवा निकालनी पड़ती है. ऐसा करते हुए आप उसे सांस छोड़ते हुए सुन भी सकते है.
साल 1968 में सेवियत संघ का पहला यान चांद का चक्कर लगाकर वापिस धरती पर लौटा था. इस यान में कछुओं को बैठा कर भेजा गया था. वापिस आने पर जब कछुओं का निरिक्षण किया गया तो पता चला कि कछुओं के वजन में 10% की कमी आई है.
आपको बता दें कि कछुए Cold Blood के जीव होते है. ठंड में इनका शरीर जम जाता है और ये शीतनिंद्रा में चले जाते है.
कुछ खास तरह के कछुए अपने Butts से भी सांस ले सकते हैं.
समुंद्री कछुओं का कवच बहुत Sensitive होता है. वो अपने कवच पर लगने वाली हर रगड़ और खरोंच को महसूस कर सकते है.
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रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर लाॅकडाउन में अन्य राज्यों में फंसे छत्तीसगढ़ के मजदूरों का आने का सिलसिला लगातार जारी है। मुख्यमंत्री की विशेष पहल पर अब तक कुल 29 स्पेशल ट्रेनों की व्यवस्था की जा चुकी है।
इन स्पेशल ट्रेनों में अन्य राज्यों में फंसे छत्तीसगढ़ के श्रमिकों, छात्रों, संकटापन्न और चिकित्सा की आवश्यकता वाले व्यक्तियों की छत्तीसगढ़ वापसी वापसी का सिलसिला बीते 11 मई से शुरू भी हो गया है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने कहा है कि छत्तीसगढ़ पहुंचने वाले श्रमिकों किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होनी चाहिए। स्पेशल ट्रेन पहुचनें पर राज्य के निर्धारित स्टेशनों में थर्मल स्क्रीनिंग, भोजन पानी तथा उन्हें अपने गंतव्य स्थान पहुंचाने के लिए बसों की व्यवस्था भी संबंधित जिला प्रशासन द्वारा की जा रही है। ग्राम पंचायतों में इन श्रमिकों के लिए क्वारेंटाइन सेंटरों बनाए गए हैं। गांव पहुंचने पर इन सेन्टरों में श्रमिकों के रहने और भोजन का इंतजाम किया जा रहा है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देशन पर श्रम विभाग के अधीन गठित छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मण्डल द्वारा अभी तक नोडल अधिकारियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार 9 ट्रेनों में आने वाले 11 हजार 946 श्रमिकों के लिए छह रेल्वे मण्डलों को कुल 71 लाख 93 हजार 230 रूपए का भुगतान भी किया जा चुका है।
इन 29 स्पेशल ट्रेनों में अहमदाबाद गुजरात से बिलासपुर के लिए दो ट्रेन, अमृतसर पंजाब से बिलासपुर-चांपा, लखनऊ उत्तरप्रदेश से बिलासपुर, भाटापारा, रायपुर, नम्बूर विजयावाड़ा आन्ध्रप्रदेश से बिलासपुर, लिगंमपल्ली हैदराबाद तेलंगाना से बिलासपुर, दुर्ग, राजनांदगांव और विरामगम अहमदाबाद से बिलासपुर-चांपा ट्रेनों में श्रमिकों की वापसी सकुशल अपने घर वापसी हो चुकी हैं। अधिकारियों ने बताया कि आगामी दिनों में जो स्पेशल ट्रेन प्रस्तावित हैं उनमें 15 मई को लखनऊ उत्तरप्रदेश से बिलासपुर, भाटापारा, रायपुर, खेड़ा नाडियाड गुजरात से बिलासपुर-चांपा और दिल्ली से बिलासपुर ट्रेनों का छत्तीसगढ़ आगमन प्रस्तावित है। इसी तरह 16 मई को साबरमती अहमदाबाद गुजरात से बिलासपुर-चांपा, कानपुर उत्तरप्रदेश से बिलासपुर, भाटापारा, रायपुर, दुर्ग और भोपाल से रायपुर, बिलासपुर ट्रेन आएगी। 17 मई को लखनऊ उत्तरप्रदेश से बिलासपुर, भाटापारा, रायपुर, इलाहाबाद उ.प्र. से बिलासपुर, भाटापारा, रायपुर, दुर्ग, वाइजैग आन्ध्रप्रदेश से रायपुर, भाटापारा, बिलासपुर, चांपा तथा खेड़ा नाडियाड गुजरात से रायपुर, भाटापारा, बिलासपुर और चांपा स्टेशन ट्रेन पहंुचेगी। 18 मई को मुज्जफरपुर बिहार से बिलासपुर, भाटापारा, रायपुर, हैदराबाद तेलंगाना से दुर्ग, रायपुर, बिलासपुर, इलाहाबाद उ.प्र. से बिलासपुर, भाटापारा, रायपुर, दुर्ग और विरामगम अहमदाबाद गुुजरात से भाटापारा बिलासपुर, चांपा स्टेशन स्पेशल ट्रेन का आगमन होगा। श्रमिक स्पेशल ट्रेन में 19 मई को मेहसाणा गुजरात से बिलासपुर-चांपा, दिल्ली से बिलासपुर, रायपुर, पूणे महाराष्ट्र से दुर्ग, रायपुर, भाटापारा, बिलासपुर ट्रेन पहुचेंगी। 20 मई को लखनऊ उ.प्र. से बिलासपुर, भाटापारा, रायपुर, पूणे महाराष्ट्र से दुर्ग, भाटापारा, बिलासपुर, चांपा, 21 मई को मुम्बई महाराष्ट्र से दुर्ग, रायपुर, भाटापारा, बिलासपुर, पूणे महाराष्ट्र से दुर्ग, भाटापारा, बिलासपुर, चांपा और 22 मई को बैंगलौर कर्नाटक से दुर्ग, रायपुर, भाटापारा, बिलासपुर स्टेशन ट्रेन पहुंचेगी।
राज्य सरकार ने इन ट्रेनों में सफर के लिए ऑनलाइन लिंक भी जारी किया है
http:cglabour.nic.in/covid19MigrantRegistrationService.aspx
इस लिंक में एप्लाई कर लोग इन ट्रेनों के माध्यम से छत्तीसगढ़ वापस आ सकेंगे। इसके अलावा 24 घंटे संचालित हेल्पलाइन नम्बर 0771-2443809, 91098-49992, 75878-21800, 75878-22800, 96858-50444, 91092-83986 तथा 88277-73986 पर संपर्क किया जा सकता है।
दुर्ग / शौर्यपथ / वर्तमान में लॉक डाउन ३ का समय चल रहा है लॉक डाउन ३ में केंद्र ने राज्यों के प्रवासी मजदूरो के गृह नगर लौटने की अनुमति दे दी अनुमति मिलते ही लाखो की संख्या में मजदुर अपने गृह ग्राम लौट रहे है . ये मजदुर निजी साधनों ट्रको / बसों / टैक्सी आदि साधनों के द्वारा सड़क मार्ग से अपने गृह ग्राम जा रहे है . लॉक डाउन के तीसरे चरण में सरकार द्वारा नरमी बरती जा रही है ऐसे में इन श्रमिको के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के मंशा अनुरूप कोई भूखा ना रहे के सोंच को सार्थक करते हुए दुर्ग जिले में राष्ट्रिय राजमार्ग में कुम्हारी टोल प्लाजा एवं बाफना टोल प्लाजा में निशुल्क भोजन की व्यवस्था की गयी है जो सुबह ९ बजे से रात १० बजे तक अनवरत ज़ारी है . भोजन देते समय सोशल डिस्टेंस का ख़ास ध्यान रख कर राहगीरों को भोजन एवं पौष्टिक पेय दिया जा रहा है .
लॉकडाउन में फंसे हजारों की संख्या में मजदूर वापस अपने मूल निवास स्थान लौट रहे है। इन मजदूरों को नेशनल हाइवे में बाफना टोल प्लाजा के पास जिला के कांग्रेस जनों के द्वारा निशुल्क भोजन और पेयजल की व्यवस्था की गई है। इंदर ढाबा के पास पंडाल लगाया गया है जहाँ से आज लगभग 1500 यात्रियों को निशुल्क भोजन के पैकेट प्रदान की गई। ट्रक, बस, ऑटो, मोटर सायकिल में मुंबई से अधिकतर मजदूर छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बिहार, बंगाल लौट रहे है। उन्हें भोजन का पैकेट और पानी पाउच दिया जा रहा है। आज देवकर, परपोड़ी, बेरला, खैरागढ़ जाने वाले पैदल यात्रियों के लिए गाड़ी की व्यवस्था कर उन्हें गन्तव्य स्थान की ओर भेजा गया। यात्रियों को मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंश का पालन करने की नसीहत भी दी गई। आज के व्यवस्था में सहयोग प्रदान करने वालो में प्रदीप चौबे, प्रतिमा चंद्रकार, लक्ष्मण चंद्रकार, राजेश यादव, आर एन वर्मा, निर्मल कोसरे, नीलेश चौबे, मुकेश चंद्रकार, अजय गोलू गुप्ता, अजय शर्मा, क्षितिज चंद्रकार, संदीप श्रीवास्तव, दीपक चावड़ा, अनिल जैन, निखिल खिचरिया, अशोक बघेला, विनय गुप्ता, विमल यादव, राजा विक्रम बघेल, सन्नी साहू, मालिक, गोपाल देवांगन, राजकुमार, दीपक जैन, चंद्र मोहन गभने, सिद्धार्थ कोटवानी, संजय यादव, गुरदीप सिंह भाटिया आदि उपस्थिति प्रदान कर यात्रियों सेवा कर रहे है।
दुर्ग / शौर्यपथ / जब चारों ओर केवल कोरोना संक्रमण से बचाव व प्रभाव की ही चर्चा हो रही है ऐसे समय दुर्ग केलाबाड़ी निवासी बीएसपी के क्रेन ऑपरेटर बी बी उपाध्याय की बहन सिंचाई विभाग से रिटायर्ड क्लर्क श्रीमती चन्द्रकला शर्मा (63 वर्ष) ने समाज के प्रति सकात्मक सोच रखते हुए आज अपने देहदान की वसीयत नवदृष्टि फाउंडेशन के कुलवंत भाटिया,राज आढतिया ,हरमन दुलाई,प्रभुदयाल उजाला को सौंपी,चन्द्रकला की भाभी रानी उपाध्याय व भतीजी श्रुति उपाध्याय वसीयत के साक्षी बने श्रुति ने कहा उन्हें अपनी बुआ के निर्णय पर गर्व हो रहा है व इसे वह अपने साथियों के साथ शेयर कर उन्हें भी जागरूक करने का प्रयास करेंगी, कुलवंत भाटिया ने परिवार को देहदान व नेत्रदान की प्रक्रिया विस्तार से समझाई व जानकारी दी कि अभी देहदान व नेत्रदान की प्रक्रिया को कोरोना की वजह से स्थगित रखा गया है लेकिन जल्द ही इसे प्रारम्भ किया जायेगा, राज आढतिया ने उपध्याय परिवार के देहदान सम्बन्धी प्रश्नों के उत्तर दिए हरमन दुलाई व प्रभुदयाल उजाला ने चन्द्रकला शर्मा को प्रशस्ति पात्र दे उनके निर्णय के स्वागत किया।
् नव दृष्टि फाउंडेशन के अनिल बल्लेवार, कुलवंत भाटिया, राज आढ़तिया,मुकेश आढतिया,प्रवीण तिवारी,चेतन जैन,हरमन दुलई,प्रभु दयाल उजाला,प्रमोद बाघ,रितेश जैन,जितेंद्र हासवानी,गोपी रंजन दास,धर्मेंद्र शाह,पियूष मालवीय,मुकेश राठी,संतोष राजपुरोहि,दीपक बंसल ने चन्द्रकला शर्मा के निर्णय की सराहना की
शौर्यपथ / सत्य वह नहीं है जो असत्य है। सत्य स्वयं में एक अनुभव है जो मन की कंदराओं से निकल कर आपको वास्तविकता से जोड़ता है। सत्य की संपूर्ण विलक्षण अनुभूति जिसे हुई है वह भी अभिव्यक्ति के स्तर पर स्वयं को अकिंचन ही समझता है कि किन शब्दों में उसे बताया या समझाया जाए। > संवेदना के धरातल पर सत्य निर्मल है, निर्विकार है। सत्य से साक्षात्कार करने के लिए स्वयं का शब्द, वाक्य, अलंकार और अभिव्यंजना से सराबोर होना जरूरी नहीं है बल्कि जरूरी है सहजता से उसे मन के भीतर ही कहीं पा लेना। युवा पत्रकार प्रवीण तिवारी ने अपनी नवीनतम पुस्तक 'सत्य की खोज' में अत्यंत सरल, स्पष्ट, सटीक और संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली रूप में इस विषय की कुशल पड़ताल की है।
प्रवीण तिवारी पेशे से पत्रकार हैं लेकिन पिछले कुछ दिनों में उन्होंने अपनी एक नई पहचान स्थापित की है और वह है आध्यात्मिकता के स्तर पर पहुंचा पैनी पैठ का एक युवा चिंतक। इस छवि के अनुरूप ही उनकी इस पुस्तक ने साहित्य संसार में वैचारिक दस्तक दी है। प्रवीण ने -सत्य क्या है, सत्य की खोज की आवश्यकता, अभ्यास, बाधाएं, अस्त्र, खोज और गीता, सत्य की कुंजी, सत्य के साथ अनुभव और अंत में सत्य की प्राप्ति जैसे सरलतम बिंदुओं के माध्यम से पड़ाव दर पड़ाव अपनी अभिव्यक्ति को विस्तार दिया है। लेखक ने सत्य की खोज के बहाने समाज में एक सरल व्यक्तित्व के निर्माण, रक्षण और निरंतर उसके विकास और उससे भी आगे निखार पर जोर दिया है। मन की मलीनता से लेकर व्यवहार के स्तर पर व्यक्त होने वाली जटिलताओं को लेखक ने सूक्ष्मता से परखा और महसूस किया है। व्यवहारगत कमियों और खामियों को भी इस खूबी से वर्णित किया है कि वह हम अपने आप में पाते हैं पर उसके प्रति नकारात्मक भाव नहीं लाते हुए उससे मुक्ति पाने का मार्ग तलाशते हैं। लेखक ने क्लैप-बाय-क्लैप अपने पन्नों को पलटने के लिए बाध्य किया है। हर पूर्व चैप्टर में वह अगले के लिए जिज्ञासा उत्पन्न करते हैं और सबसे महत्वपूर्ण की उन जिज्ञासाओं की संतुष्टि भी पाठक को अगले पन्ने पर मिलती है। अगर लेखक प्रश्न उठाता है तो हर संभावित उत्तरों की सूची भी उसकी मंजूषा में है।
लेखक की सोच जितनी स्पष्ट है लेखन भी उतना ही सरल है। 'सत्य की खोज' जैसे विषय पर लिखी यह पुस्तक किसी साधारण से पाठक को असाधारण रूप से चैतन्य करने की क्षमता रखती है। जीवन के प्रति नितांत नया और तेजस्वी दृष्टिकोण देती यह पुस्तक हर उस पाठक को पढ़नी चाहिए जो व्यर्थ के आडंबरों में उलझा है। वैचारिक मंथन के स्थान पर जो वैचारिक प्रलाप को प्राथमिकता देता है।
पुस्तक की सबसे खास बात यह है कि इसमें उपदेश नहीं है, उदाहरण है। कथनी नहीं है, करनी है। प्रपंच नहीं है, प्रयास है। भव्य अलंकरण नहीं है, सरल आचरण है। एक जगह लेखक लिखता है - सत्य की खोज में निकलने वालों की सबसे बड़ी बाधा असत्य से प्रियता है। इस प्रियता से मुक्ति ही संपूर्ण पुस्तक का मूल है। भावों की मधुरता और भाषा की प्रवाहमयता से पूरी पुस्तक एक सांस में पढ़ जाने की ताकत रखती है। यकीनन सरलता से गंभीर चिंतन करती यह पुस्तक आकर्षित करती है। लेखक : प्रवीण तिवारी
शौर्यपथ लेख
१. जीवन का सत्य- हम जन्म क्यों लेते हैं ? – प्रस्तावना
प्रायः हमसे यह प्रश्न पूछा जाता है, ‘जीवन का सत्य क्या है ?’ अथवा ‘जीवन का उद्देश्य क्या है ?’ अथवा ‘हम जन्म क्यों लेते हैं ?’ जीवन के उद्देश्य के संदर्भ में अधिकतर हमारी अपनी योजना होती है; किंतु आध्यात्मिक दृष्टि से सामान्यतः जन्म के दो कारण हैं । ये दो कारण हमारे जीवन के उद्देश्य को मूलरूप से परिभाषित करते हैं । ये दो कारण हैं :
विभिन्न लोगों के साथ अपना लेन-देन पूरा करने के (चुकाने के) लिए ।
आध्यात्मिक प्रगति कर ईश्वर से एकरूप होने का अंतिम ध्येय साध्य करने के लिए, जिससे कि जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिले ।
२. जीवन का सत्य – अपना लेन-देन चुकाना (पूर्ण करना)
अनेक जन्मों में हुए हमारे कर्म एवं क्रियाआें के परिणामस्वरूप हमारे खाते में भारी मात्रा में लेन-देन इकट्ठा होता है । ये लेन-देन हमारे कर्मों के स्वरूप के अनुसार अच्छे अथवा बुरे होते हैं । सर्वसाधारण नियमानुसार वर्तमान युग में हमारा ६५% जीवन प्रारब्धानुसार (जो कि हमारे नियंत्रण में नहीं है) और ३५% जीवन हमारे क्रियमाण कर्म अनुसार (इच्छानुसार नियंत्रित) होता है । हमारे जीवन की सर्व महत्वपूर्ण घटनाएं अधिकतर प्राब्धानुसार ही होती हैं, यही जीवन का सत्य है । इन घटनाआें में जन्म, परिवार (कुल), विवाह, संतान, गंभीर व्याधियां तथा मृत्यु का समय आदि अंतर्भूत हैं । जो सुख और दुःख हम अपने परिजनों को तथा परिचितों को देते हैं अथवा उनसे पाते हैं; वे हमारे पिछले लेन-देन के कारण होता है । ये लेन-देन निर्धारित करते हैं कि जीवन में हमारे सम्बंधों का स्वरूप, तथा उनका आरंभ और अंत कैसे होगा ।
वर्तमान जन्म में हमारा जो प्रारब्ध है, वह वास्तव में हमारे संचित का मात्र एक अंश है; जो अनेक जन्मों से हमारे खाते में जमा हुआ है ।
हमारे जीवन में यद्यपि पूर्व निर्धारित इस लेन-देन और प्रारब्ध को हम पूरा करते भी हैं; तथापि जीवन के अंत में अपने क्रियमाण (ऐच्छिक) कर्मों द्वारा उसे बढाते भी हैं । जीवन के अंत में यह हमारे समस्त लेन-देन में संचित के रूप में जोडा जाता है । परिणामस्वरूप इस नए लेन-देन को चुकाने के लिए हमें पुनः जन्म लेना पडता है और हम जन्म-मृत्यु के चक्र में फंस जाते हैं ।
संदर्भ : जन्म-मृत्यु के चक्र में हम कैसे फंस जाते हैं, इसका विवरण ‘जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति (मोक्ष)’ इस लेखमें प्रस्तुत है ।
३. जीवन का सत्य- आध्यात्मिक प्रगति
किसी भी साधना पथ पर आध्यात्मिक विकास का चरम है परमेश्वर में विलीन होना । इसका अर्थ है, हममें तथा हमारे सर्व ओर विद्यमान ईश्वर को अनुभव करना, जो हमारी पंचज्ञानेंद्रियों, मन तथा बुद्धि के परे है । यह १००% आध्यात्मिक स्तर पर संभव होता है । वर्तमान युग में अधिकतर लोगों का आध्यात्मिक स्तर २०-२५% है और उन्हें आध्यात्मिक विकास हेतु साधना करने में कोई रूचि नहीं रहती । उनका अधिकाधिक तादात्म्य अपनी पंच ज्ञानेंद्रियों, मन और बुद्धि से रहता है । इसका प्रभाव हमारे जीवन में व्यक्त होता है, उदाहरणार्थ, जब हम अपने सौंदर्य पर अधिक ध्यान देते हैं अथवा हमें अपनी बुद्धि अथवा सफलता का अहंकार होता है ।
साधना द्वारा हमारा जब समष्टि आध्यात्मिक स्तर ६०% अथवा व्यष्टि आध्यात्मिक स्तर ७०% हो जाता है, तब हम जन्म-मृत्यु के चक्रसे मुक्त हो जाते हैं । इसके उपरांत हम अपने शेष लेन-देन को महर्लोक और आगे के उच्च सूक्ष्म लोकों में चुका सकते हैं (पूर्ण कर सकते हैं) । ६०% (समष्टि) अथवा ७०% (व्यष्टि) आध्यात्मिक स्तर के आगे पहुंचे कुछ जीव मानवता का आध्यात्मिक मार्गदर्शन करने के लिए पृथ्वी पर जन्म लेने में रूचि रखते हैं ।
अध्यात्म के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार साधना करने पर ही आध्यात्मिक विकास संभव है । जो आध्यात्मिक मार्ग इन छः मूलभूत सिद्धांतों का अवलंब नहीं करते, उनके अनुसार साधना करने वालों का विकास बाधित हो जाता है ।
४. हमारे जीवन के लक्ष्यों के संदर्भ में जीवन का सत्य क्या है ?
हममें से अधिकतर लोगों के जीवन के कुछ लक्ष्य होते हैं, उदाहरणार्थ डॉक्टर बनना, धनवान बनना और प्रतिष्ठा कमाना अथवा किसी विशिष्ट क्षेत्र में अपने राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करना । लक्ष्य जो भी हो, अधिकांश लोगों के लिए वह प्राय: एवं प्रमुखत: सांसारिक ही होता है । हमारी संपूर्ण शिक्षा प्रणाली इस प्रकार से विकसित की गई है कि हम इन सांसारिक लक्ष्यों का अनुसरण कर सकें । अभिभावक होने के नाते हम भी अपने बच्चों के सामने ये सांसारिक लक्ष्य रखकर उन्हें शिक्षित करते हैं, तथा ऐसे व्यवसायों के लिए प्रोत्साहित करते हैं जिनसे उन्हें हमसे अधिक आर्थिक लाभ मिले ।
किसी के मन में यह प्रश्न उभर सकता है कि इन सांसारिक लक्ष्यों का, जीवन के आध्यात्मिक ध्येय एवं पृथ्वी पर जन्म लेने के कारणों के साथ सामंजस्य कैसे हो सकता है ? उत्तर बहुत ही सरल है । हम सांसारिक लक्ष्यों के पीछे इसलिए भागते रहते हैं कि हमें संतोष एवं आनंद (सुख) प्राप्त हो । सामन्यतः अप्राप्य ऐसे सर्वोच्च और चिरंतन सुख की अभिलाषा ही हमारे प्रत्येक कृत्य की अंगभूत प्रेरणा होती है । किंतु वास्तव में सांसारिक लक्ष्यों की पूर्ति होने पर भी प्राप्त सुख और संतोष अल्पकाल के लिए ही टिकता है । हम कोई अन्य सुख पाने का स्वप्न देखने लगते हैं ।
‘परम और चिरस्थायी सुख’ की प्राप्ति केवल साधना द्वारा ही संभव है, जो छः मूल सिद्धांतों पर आधारित है । सर्वोच्च श्रेणी के सुखको आनंद कहते हैं, जो ईश्वर का गुणधर्म है । जब हम ईश्वर से एकरूप हो जाते हैं तब हमें भी उस चिरस्थायी आनंद की अनुभूति होती है । इसका अर्थ यह नहीं है कि हम अपने दैनिक जीवन में जो कुछ कर रहे हैं, वह छोडकर केवल साधना पर ही ध्यान केंद्रित करें । अपितु इसका आशय यह है कि सांसारिक जीवन के साथ साधना के संयोजन से परम और चिरस्थायी सुख की प्राप्ति संभव है। यही जीवन का सत्य है। साधना के लाभ का विस्तृत विवेचन ‘चिरस्थायी सुख के लिए आध्यात्मिक शोध‘ के स्तंभ में दिया है ।
संक्षेप में हमारे जीवन के लक्ष्य, आध्यात्मिक प्रगति के आशय से जितने अनुरूप होंगे, उतना ही हमारा जीवन अधिक समृद्ध होगा और उतना ही हमें कष्ट अल्प होगा। यही जीवन का सत्य है। निम्नलिखित उदाहरण से यह स्पष्ट होगा कि आध्यात्मिक विकास एवं परिपक्वता के फलस्वरूप, जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण कैसे परिवर्तित होता है ।
५. सांसारिक जीवन और आध्यात्मिक उद्देश्य के बीच सामंजस्य के उदाहरण
एस.एस.आर.एफ. में हमारे साथ ऐसे कई स्वयंसेवक हैं, जो यथाक्षमता अपना समय तथा कुशलता ईश्वर की सेवा में अर्पित कर रहे हैं । उदाहरणार्थ,
हमारे एक सदस्य सूचना प्रौद्योगिकी (आइ.टी) के परामर्शदाता हैं और वे अपने अवकाश में हमारे जालस्थल के तकनीकी कार्य संभालते हैं ।
संपादकीय विभाग की एक सदस्या मनोरोग-चिकित्सक हैं और वे अपलोड की जानेवाली जानकारी चिकित्सकीय तथा आध्यात्मिक दृष्टि से जांचने में सहायता करती हैं ।
एस.एस.आर.एफ. की एक अन्य सदस्या अपने व्यवसाय के लिए विविध देशों में यात्रा करती हैं । वे अपने अवकाश में उस देश के समविचारी संगठनों को एस.एस.आर.एफ. के जालस्थल की जानकारी देती हैं ।
एक गृहिणी आध्यात्मिक कार्यक्रमों में आनेवालों के लिए खाद्यपदार्थ बनाने में सहायता करती हैं ।
अपनी दिनचर्या का अध्यात्मीकरण करने से एस.एस.आर.एफ. के सदस्यों के जीवन में भारी सकारात्मक परिवर्तन हुए हैं । आनंद में वृद्धि होना और दुःख की मात्रा अल्प होना, ये महत्वपूर्ण परिवर्तन हैं । जीवन के किसी दुःखभरे प्रसंग में अथवा दर्दनाक स्थिति में वे अनुभव करते हैं, मानो किसी ने उनके आस-पास सुरक्षा कवच बना दिया है ।
६. जीवन का सत्य – बार-बार जन्म लेने में अनुचित क्या है ?
कभी-कभी लोग सोचते हैं कि बार-बार जन्म लेने में अनुचित क्या है ? जैसे ही हम वर्तमान कलियुग में (संघर्ष के युग में) आगे बढेंगे, वैसे जीवन समस्याआें तथा दुःखों से घिर जाएगा । आध्यात्मिक शोध द्वारा यह पता चला है कि विश्वभर में औसतन ३०% समय मनुष्य खुश रहता है तथा ४०% समय वह दुखी ही रहता है । शेष ३०% समय मनुष्य उदासीन रहता है । इस दशा में उसे सुख-दुख का अनुभव नहीं होता । उदा. जब कोई व्यक्ति रास्ते पर चल रहा होता है अथवा कोई व्यावहारिक कार्य कर रहा होता है तब उसके मन में सुखदायक अथवा दुखदायक विचार नहीं होते, वह केवल कार्य करता है ।
इसका प्राथमिक कारण है कि अधिकतर व्यक्तियों का आध्यात्मिक स्तर अल्प होता है । इसीलिए अनेकों बार हमारे निर्णय एवं आचरण से अन्यों को कष्ट होता है । साथ ही, वातावरण में रज-तम फैलाता है । फलस्वरूप नकारात्मक कर्म और लेन-देन का हिसाब बढता है । इसीलिए अधिकतर मनुष्यों के लिए वर्तमान जन्म की अपेक्षा आगे के जन्म दुखदायी होते हैं ।
यद्यपि विश्व ने आर्थिक, वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति की है, तथापि सुख (जो हमारे जीवन का मुख्य ध्येय है) के संदर्भ में, हम पिछली पीढियों की अपेक्षा निर्धन हैं ।यही जीवन का सत्य है ।
हम सब सुख चाहते हैं; परंतु प्रत्येक का अनुभव है कि जीवन में दुख आते ही हैं । ऐसे में अगले जन्म में और भविष्य के जीवन में सर्वोच्च तथा चिरंतन सुख प्राप्त होने की निश्चिति नहीं है । जीवन का सत्य है, केवल आध्यात्मिक उन्नति और ईश्वर से एकरूपता ही हमें निरंतर और स्थायी सुख दे सकते हैं।