November 21, 2024
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       लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन में लोग घर में ही हैं। ऐसे में घर पर रहते हुए जितनी हेल्दी चीजें कर ले उतना अच्छा है। घर में हैं तो अपने पुराने तांबे के बर्तन बाहर निकाल लें और उसका इस्तेमाल करें। पहले के समय में खाना पकाने से लेकर खाने तक के लिए तांबे के बर्तन ही देखने को मिलते थे और उसकी वजह से लोगों को बीमारियां भी कम होती थीं। इन बर्तनों में खाना पकाना भी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है।  कि आयुर्वेद में कहा गया है कि कॉपर यानी तांबे के बर्तन का पानी पीना सेहत के लिए फायदेमंद है। इसके पानी के सेवन से शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं और कई बीमारियां आसानी से खत्म हो जाती हैं। तांबा जल्दी से तापमान में बदलाव पर प्रतिक्रिया देता है और खाना पकाने के लिए एक शानदार विकल्प हो सकता है। कोरोना वायरस के कारण क्वॉरेंटीन में हैं तो किचन में तांबे के बर्तनों का इस्तेमाल करना बेहद फायदेमंद हो सकता है। तांबा इम्यून सिस्टम को मजबूत करने और नई कोशिकाओं के उत्पादन में मदद करने के लिए जाना जाता है।

किचन में तांबे के बर्तनों का इस्तेमाल इसके कई गुणों के कारण फायदेमंद है। यह अपने एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-वायरल गुणों के लिए जाना जाता है। तांबा घावों को जल्दी से भरने के लिए एक शानदार जरिया है। तांबे के बर्तनों में पका खाना खाने से शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं जिससे किडनी और लिवर स्वस्थ रहते हैं।
जर्नल ऑफ हेल्थ, पॉपुलेशन एंड न्यूट्रीशन में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया है कि तांबा भोजन में वायरस और बैक्टीरिया के साथ प्रतिक्रिया कर सकता है और उन्हें मार सकता है। यानी किचन में कुछ तांबे के बर्तन एक जबर्दस्त रोगाणुरोधी के रूप में कार्य कर सकते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि तांबे के बर्तन कितने पुराने या ऑक्सीकृत हैं, इन बर्तनों में भोजन रखने और खाना पकाने से भोजन रोगाणु मुक्त हो सकता है।

तांबे के बर्तनों में खाना पकाने से इनमें उपस्थित तांबा भी खाने के साथ मिलकर शरीर में जाता है और कई तरह से फायदा पहुंचाता है। कि तांबा मनुष्यों के लिए आवश्यक खनिजों में से एक है। तांबा शरीर में प्रोटीन के एक प्रकार कोलेजन बनाने में मदद करता है और आयरन को अवशोषित करता है, जिससे ऊर्जा उत्पादन का काम आसानी से हो पाता है। तांबे के बर्तन में पका खाना खाने से जोड़ों का दर्द और सूजन की दिक्कत कम हो जाती है।

जब भी तांबे के बर्तन में खाना पका रहे हों, तो गैस जलाने से पहले बर्तन में हमेशा भोजन अवश्य रखें। पैन के तल को ढकने के लिए पर्याप्त भोजन और तरल होना चाहिए। जलने से बचाने के लिए हमेशा अपने भोजन को कम से मध्यम आंच में पकाएं। अपने हाथ से बर्तन धोने के लिए एक सौम्य साबुन का प्रयोग करें। तांबे के बर्तन में स्पंज या तौलिए का प्रयोग न करें। वैकल्पिक रूप से, तांबे के बर्तन को साफ करने के लिए बेकिंग सोडा और पानी का इस्तेमाल करके भी देख सकते हैं।

 

     शौर्यपथ / हालात को स्वीकारना और विपरीत परिस्थिति में भी दृढ़ता के साथ आगे बढ़ना हिम्मत की बात होती है। ऐसे ही लोग अपनी मंजिल पाने का हुनर रखते हैं। मुश्किल हालात में मजबूत फैसले लेने में ये टिप्स आपकी मदद कर सकते हैं-

खुद से सवाल करें कि क्या चाहते हैं आप
हर किसी का काम करने, सोचने-समझने का तरीका अलग होता है। कुछ तुरंत कदम उठा लेते हैं, तो कुछ हर तरह से सोच-समझकर आगे बढ़ते हैं। किस हालात में हम कैसी प्रतिक्रिया देंगे, क्या कदम उठाएंगे, यह इस पर भी निर्भर है कि हम खुद से क्या चाहते हैं?

 

जल्दबाजी में न करें फैसला
धैर्य रखना आसान नहीं होता। जो रखते हैं, वे जानते हैं कि उसका उन्हें फायदा ही हुआ है। सब्र की वजह से कई मुश्किल सवाल खुद हल हो जाते हैं और कई बड़े काम बिगड़ने से बच जाते हैं। धैर्य, शांति से यह स्वीकारना है कि हमारे काम उन तरीकों से भी पूरे हो सकते हैं, जो सोचे नहीं थे।’

 

घबराहट में वो न बनें, जो आप नहीं हैं
कठिन हालात में भी अच्छे व्यवहार का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। बेचैन होकर बिफरना, छोटी सी बात पर रिश्तों से मुंह मोड़ लेना या अपने जरा से फायदे के लिए दूसरों का बड़ा नुकसान कर देना बड़ा ही आसान होता है। मुश्किल है, तो उसे बचाए रखना, जो दरअसल आप हैं। कहा जाता है कि अच्छे स्वभाव वाला व्यक्ति वो सब पा लेता है, जो पाने की वह इच्छा रखता है।

 

         धर्म संसार / शौर्यपथ / शनिदेव का नाम आते ही अक्सर लोग सहम जाते हैं या फिर असहज हो जाते हैं। उनके प्रकोप से खौफ खाने लगते हैं। शनि को क्रूर ग्रह माना जाता है लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि न्यायधीश या कहें दंडाधिकारी की भूमिका का निर्वहन करते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि देव सेवा और कर्म के कारक हैं।

शनि देव न्याय के देवता हैं, उन्हें दण्डाधिकारी और कलियुग का न्यायाधीश कहा गया है। शनि शत्रु नहीं बल्कि संसार के सभी जीवों को उनके कर्मों का फल प्रदान करते हैं। वह अच्छे का अच्छा और बुरे का बुरा परिणाम देने वाले ग्रह हैं शनिदेव।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि देव का जन्म हुआ था। इसलिए ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन शनिदेव की पूजा-अर्चना कर उनको प्रसन्न किया जाता है। अगर कोई शनिदेव के कोप का शिकार है तो रूठे हुए शनिदेव को मनाया भी जा सकता है। शनि जयंती का दिन तो इस काम के लिये सबसे उचित माना गया है।

कब है शनि जयंती
इस बार शनि जयंती 22 मई 2020 शुक्रवार के दिन है। ज्येष्ठ मास में अमावस्या को धर्म कर्म, स्नान-दान आदि के लिहाज से यह बहुत ही शुभ व सौभाग्यशाली माना जाता है। इस दिन को ही शनि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। शनि जयंती पर विशेष पूजा करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

क्यों खास है ज्येष्ठ अमावस्या
ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या को न्यायप्रिय ग्रह शनि देव का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिवस को शनि जयंती के रूप में मनाया जाता है। शनि दोष से बचने के लिये इस दिन शनिदोष निवारण के उपाय विद्वान ज्योतिषाचार्यों के करवा सकते हैं। इस कारण ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। इतना ही नहीं शनि जयंती के साथ-साथ महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिये इस दिन वट सावित्री व्रत भी रखती हैं। इसलिये उत्तर भारत में तो ज्येष्ठ अमावस्या विशेष रूप से सौभाग्यशाली एवं पुण्य फलदायी मानी जाती है।

क्यों नाराज रहते हैं शनि देव
शनिदेव के जन्म के बारे में स्कंदपुराण के काशीखंड में विस्तार से दिया गया है। उसके अनुसार सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र शनिदेव हैं। सूर्य देव का विवाह संज्ञा से हुआ था और उन्हें मनु, यम और यमुना के रूप में तीन संतानों की प्राप्ति हुई। विवाह के बाद कुछ वर्षों तक संज्ञा सूर्य देव के साथ रहीं लेकिन अधिक समय तक सूर्य देव के तेज को सहन नहीं कर पाईं।

इसलिए उन्होंने अपनी छाया (संवर्णा) को सूर्य देव की सेवा में छोड़ दिया और कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ। हालांकि सूर्य देव को जब यह पता चला कि छाया असल में संज्ञा नहीं है तो वे क्रोधित हो उठे और उन्होंने शनि देव को अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद से ही शनि और सूर्य पिता-पुत्र होने के बावजूद एक-दूसरे के प्रति बैर भाव रखने लगे।

 

          धर्म संसार / शौर्यपथ /कल वट सावित्री का व्रत है। इसको लेकर राजधानी पटना के बाजारों में गुरुवार को महिलाएं पूजन सामग्री खरीदतीं नजर आईं। हिंदू धर्म में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए वट सावित्रि व्रत रखती हैं। जो स्त्री इस व्रत को सच्ची निष्ठा से रखती है उसे न सिर्फ पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि उसके पति पर आई सभी परेशानियां भी दूर हो जाती हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सावित्री अपने पति के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर ले आई थीं। अत: इस व्रत का महिलाओं के बीच विशेष महत्व बताया जाता है। इस दिन वट (बड़, बरगद) का पूजन होता है। इस व्रत को महिलाएं अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं। इस दिन सुबह घर की सफाई कर स्नान करें। इसके बाद पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें। बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें। ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।

इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें। इसके बाद ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें। अब सावित्री और सत्यवान की पूजा करते हुए बड़ की जड़ में पानी दें। पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें। जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करें। बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें। भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर अपनी सास के पैर छूकर उनका आशीष प्राप्त करें।

 


        जीना इस्सी का नाम /शौर्यपथ / अमेरिका के न्यू जर्सी प्रांत में एक छोटा-सा नगर है मेंदम बोरो। छोटा, मगर बहुत प्यारा। एक दशक पहले तक वहां महज पांच हजार लोग बसा करते थे। सुविधा, शांति और सुकून का आलम यह कि अमेरिकियों को यहां बसने वाले लोगों से रश्क होता है। इसी नगर में स्टीव और नैंसी डॉयने के घर नवंबर 1986 में एक बेटी पैदा हुई। नाम रखा गया मैगी। पिता स्टीव को तो जैसे उनके ईश्वर ने हजार नेमतों से नवाज दिया था। फूड स्टोर में मैनेजर की अपनी नौकरी उन्होंने इसलिए छोड़ दी, ताकि उनकी गुड़िया की परवरिश में कोई कमी न रहे, अलबत्ता मां रियल एस्टेट क्षेत्र में नौकरी करती रहीं।

घर का कोना-कोना स्नेह और अपनत्व से आबाद था। मैगी अपनी दोनों बहनों के साथ उम्र की सीढ़ियां चढ़ती गईं। साल 2005 का वाकया है। हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी, और आगे ग्रेजुएशन की शुरू होने वाली थी। अमेरिकी शिक्षा-व्यवस्था अपने बच्चों को इन दोनों के बीच ‘गैप-ईयर’ का एक अवसर देती है, ताकि वे इस अंतराल में देश-दुनिया को देखें-समझें या कोई और अनुभव बटोर सकें।

मैगी उस समय 19 साल की थीं। उन्होंने ‘लीपनाऊ’ संगठन के साथ यात्रा करने का फैसला किया। वह पहले ऑस्ट्रेलिया गईं, फिर फिजी होते हुए भारत पहुंचीं। उन्होंने अपनी योजना में एक सेमेस्टर को भारतीय अनाथालय के अनुभव से भी जोड़ रखा था। यहीं पर उनकी मुलाकात नेपाली बच्चों से हुई। वर्षों के गृह युद्ध के शिकार ये यतीम-गरीब बच्चे किसी के साथ भारत चले आए थे। इन बच्चों के दिल से मैगी के दिल का तार जुड़ गया। बच्चे इसरार करते- दीदी, हमारे देश चलो, हमारे गांव भी देखो न।

नेपाल में हालात कुछ सुधरा, तो एक युवती के साथ मैगी नेपाल निकल पड़ीं। वह हिमालय की गोद में बसा बहुत खूबसूरत गांव था। उसके पास से ही एक नदी बहती थी। कुदरत ने इस भूभाग पर अपना भरपूर प्यार लुटाया था, मगर उसे इंसानी फितरतों की नजर लग गई थी। शाही सेना और बागियों की भिड़ंत के जख्म गांव में जगह-जगह से रिस रहे थे। झुलसे हुए पूजा स्थल और मकानों पर जबरन कब्जा इसके उदाहरण थे। जिस लड़की के साथ मैगी उस गांव तक पहुंचीं, उसके घर को भी बागियों के शिविर में तब्दील कर दिया गया था।

मैगी ने पढ़ा था कि जब भी कहीं जंग छिड़ती है या अराजकता फैलती है, तो उसका कहर सबसे ज्यादा औरतों व बच्चों पर टूटता है। यह सब एक नंगे सच के रूप में उनके सामने था। गांव के ज्यादातर बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। कैसे जाते? गुरबत ने उनके मां-बाप को यह सोचने की मोहलत ही कहां दी थी? मैगी ने देखा था कि बच्चे शहर में हथौड़ा पकडे़ पत्थर तोड़ रहे थे।

यह सब देख उनका युवा मन आहत था। तभी एक रोज उनकी मुलाकात हेमा से हुई। महज सात साल की मासूम बच्ची का बचपन पत्थर तोड़ने और कचरा बटोरने में बीता जा रहा था। वह बहुत प्यारी बच्ची थी। मैगी जब भी उसको देखतीं, वह पूरी गर्मजोशी से नेपाली में बोलती- नमस्ते दीदी! मैगी कहती हैं- ‘मैं उसमें खो जाती थी। मेरी अंतरात्मा मुझसे कुछ कह रही थी। मैं जानती थी कि दुनिया में करोड़ों हेमाएं हैं। सोचती, मैं सबके लिए भले कुछ न कर सकूं, पर क्या इस एक की जिंदगी भी नहीं बदल सकती?’

मैगी हेमा को लेकर स्कूल गईं और उसकी फीस के तौर पर सात डॉलर जमा किए, उन्होंने हेमा के लिए स्कूल ड्रेस, किताबें और दूसरे जरूरी सामान भी खरीदे, ताकि वह बगैर किसी एहसास-ए-कमतरी के स्कूल में पढ़ सके। इस काम से मैगी को एक अजीब-सी खुशी मिली। फिर तो जैसे उन पर परोपकार का नशा सवार हो गया। सोचा, ‘अगर मैं एक बच्ची की मदद कर सकती हूं, तो पांच की क्यों नहीं?’ फिर तो यह आंकड़ा बढ़ता चला गया।

वह बेचैन हो उठीं। उन्हें अनाथ बच्चों की खातिर एक पनाहगाह, उनके भोजन, किताब-कॉपी, पोशाक आदि के लिए पैसे की दरकार थी। मैगी ने हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान पार्टटाइम काम से बच्चों की देखभाल करके पांच हजार डॉलर जमा किए थे। उन्होंने अपने घर फोन करके माता-पिता से वह राशि मंगवाई। हजारों किलोमीटर दूर बैठे मां-बाप कुछ चिंतित तो हुए, मगर बेटी के जुनून को देखते हुए उन्हें मैगी का साथ देना ही मुनासिब लगा। इसके बाद तो मैगी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

उनकी जिंदगी को दिशा मिल चुकी थी। अपनी कोशिशों से मैगी ने हजारों डॉलर जुटाए और सुर्खेत घाटी में जमीन खरीदा। साल 2010 में उन्होंने कोपिला वैली स्कूल की नींव रखी। आज इस स्कूल में सैकड़ों बच्चे पढ़ते हैं। इनमें से कई तो अपने परिवार की पहली संतान हैं, जिनकी जिंदगी में शिक्षा का प्रकाश फूटा है। स्कूल के अलावा भी इससे जुड़ी कई अन्य संस्थाएं स्थानीय लोगों का भला कर रही हैं। मैगी की एक जैविक संतान है, मगर वह कई अनाथ बच्चों की कानूनी मां हैं। सीएनएन ने उन्हें साल 2015 में हीरो ऑफ द ईयर से नवाजा।
(प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह)

 

     शौर्यपथ / कोरोना महामारी और देशव्यापी लॉकडाउन से किसानों को हुई क्षति की भरपाई के लिए सरकार काफी सक्रिय है। किसानों को उपज का बेहतर मूल्य मिले और वे अपनी उपज कहीं भी बेच सकें, इसके लिए कृषि उत्पाद विपणन समिति अधिनियम में संशोधन की घोषणा की जा चुकी है। अब तक किसान राज्यों द्वारा अधिसूचित मंडियों में ही उपज बेच सकते हैं, नए कानून के बाद वे इस बंधन से मुक्त हो जाएंगे। सरकार ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम’ में संशोधन करके उपज की स्टॉक सीमा भी खत्म करने जा रही है। इन दोनों कानूनों का मकसद है- संकट की इस घड़ी में किसानों के हितों की रक्षा करना। 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज में कृषि और किसानों के लिए कई तात्कालिक व दीर्घकालिक योजनाएं शामिल हैं, जो यकीनन देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देंगी।
लेकिन राहत पहुंचाने के इन प्रयासों के बीच कृषि विशेषज्ञ कई बिंदुओं को लेकर आशंकित भी हैं। उनकी चिंता है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन के बाद किसान कहीं और ज्यादा शोषण के शिकार न हो जाएं। प्रस्तावित अनाजों व तिलहन समेत अन्य कई उपज को मौजूदा कानूनी दायरे से बाहर किए जाने के बाद किसानों के पास फसलों को सिर्फ सरकारी खरीद केंद्रों पर बेचने का विकल्प नहीं होगा। स्पष्ट है, सरकार मानकर चल रही है कि किसान निजी व्यापारियों को अपनी उपज बेचकर शायद ज्यादा लाभ कमा सकेंगे। यह भी स्पष्ट किया गया है कि अब अनाज जमा करने को लेकर कोई रोक-टोक नहीं रहेगी और अकाल जैसी स्थितियों को छोड़ यह अधिनियम प्रभावी नहीं रहेगा। इस निर्देश के पीछे की मंशा किसानों के लिए कल्याणकारी है, पर इसके दूरगामी परिणाम कुछ और निकल सकते हैं। अबाध भंडारण के दीर्घकालिक रूप से प्रभावी होने पर दो बड़ी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। पहली, किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम कीमत मिलने की आशंका अधिक है। और दूसरी, निजी खरीदारों द्वारा भारी मात्रा में जमाखोरी से सरकारी खाद्य भंडारण व खाद्य सुरक्षा की मौजूदा व्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
भारत जैसे आर्थिक संरचना वाले देश में अनाज भंडारण पर सरकारी नियंत्रण बेहद आवश्यक है। कल्पना कीजिए, यदि आज की स्थिति में अनाज भंडारण निजी क्षेत्र व व्यक्ति विशेष के हाथों में होता, तो भूख से मरने वालों की तादाद कितनी होती? आज भारतीय खाद्य निगम के पास 524 लाख टन का खाद्यान्न भंडार है। यह मात्रा अकाल और भुखमरी से बचाने के लिए पर्याप्त से अधिक है। पर यदि निजी हाथों में खाद्यान्न भंडारण देने का कानून बना, तो भविष्य में आपात स्थितियों में अनाज की आपूर्ति की स्थिति विषम हो सकती है। निस्संदेह, अनाज की उपलब्धता तो होगी, मगर शर्तें तब निजी घरानों की ही लागू होंगी। कई कृषि विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर की है कि निजी नियंत्रण के बाद मुनाफे के चक्कर में अधिकांश अनाज निर्यात भी किया जा सकता है। इससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली प्रभावित हो सकती है।
आवश्यक वस्तु अधिनियम को 1955 में संसद ने इस मकसद से पारित किया था कि ‘आवश्यक वस्तुओं’ का उत्पादन, आपूर्ति व वितरण को नियंत्रित किया जा सके, ताकि ये चीजें उपभोक्ताओं को मुनासिब दाम पर उपलब्ध हों। आवश्यक वस्तु की श्रेणी में घोषित वस्तुओं का अधिकतम खुदरा मूल्य तय करने का अधिकार सरकार के पास होता है। तय मूल्य से अधिक कीमत लेने पर विक्रेता के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है। मार्च में बढ़ते वायरस-संक्रमण के बीच मास्क व सैनिटाइजर की कालाबाजारी रोकने के उद्देश्य से सरकार को इन दोनों वस्तुओं को आवश्यक वस्तु की श्रेणी में डालना पड़ा था।
खरीफ व रबी फसलों के लिए प्रत्येक मौसम में एमएसपी की घोषणा की जाती है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि प्रत्येक राज्य से ऐसी शिकायतें आती रहती हैं कि किसानों को उनके उत्पाद का एमएसपी नहीं मिल रहा है। कृषि मंत्रालय और नीति आयोग, दोनों स्वीकार कर चुके हैं कि किसान घोषित एमएसपी से वंचित रह जाते हैं। ऐसे में, नए कानून से जुड़ी अब तक की घोषणाओं से यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि निजी खरीदारों के लिए फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को मानना जरूरी होगा या नहीं? किसानों को लाभ तभी मिल पाएगा, जब निजी खरीदारों द्वारा दिए जाने वाले मूल्य की गारंटी सुनिश्चित होगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं

 

             सम्पादकीय / शौर्यपथ /एक दुख हो या एक सुख, दोनों में से कोई अकेले नहीं आता। एक दुख के साथ कुछ अन्य दुख और एक सुख के साथ कुछ अन्य सुख अनायास आते हैं। बंगाल की खाड़ी से उठा तूफान अम्फान भी एक ऐसा दुख है, जो कोरोना के सतत होते दुख में शामिल होने आ गया है। इस तूफान पर सबकी नजर है। अम्फान को लेकर सकारात्मक बात यह है कि दुनिया भर के मौसम विज्ञानियों ने 14 मई के आसपास ही इससे बढ़ते खतरे का अंदाजा लगा लिया था। पश्चिम बंगाल और ओडिशा के तटीय इलाकों से जो खबरें आई हैं, उनसे पता चलता है, छह लाख से ज्यादा लोगों को प्रभावित होने वाले इलाकों से पहले ही निकाल लिया गया। लोगों को सचेत रहने के लिए कहा गया। ऐसा समुद्री तूफान 1999 के बाद से भारत में नहीं उठा था और यह भारत के साथ-साथ बांग्लादेश में भी तबाही की वजह बन सकता है। तूफान की गति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रेलगाड़ियों के डिब्बों को लोहे की चेन से बांधना पड़ा। तूफान की रफ्तार 200 किलोमीटर प्रति घंटा तक जाने की आशंका है। बहरहाल, पूर्व सूचना और सचेत होने का फायदा यह होगा कि जान का नुकसान कम से कम होगा, लेकिन माली नुकसान का आकलन आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।
आखिर क्यों उठते हैं ऐसे खतरनाक तूफान? वैज्ञानिक अध्ययनों ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि जैसे-जैसे समुद्री जल गरम होता जाएगा, समुद्र से उठने वाले तूफानों की भयावहता बढ़ती जाएगी। 1979 से लेकर 2017 के बीच उठे तूफानों के सैटेलाइट आंकड़ों से पता चलता है, 185 किलोमीटर प्रति घंटा से ज्यादा की रफ्तार वाले घातक तूफानों की संख्या बढ़ती जा रही है। भौतिक विज्ञान पहले ही इस तथ्य को उजागर कर चुका है कि समुद्र अगर एक डिग्री सेल्सियस गरम होता है, तो उस पर चलने वाली हवाओं की रफ्तार में पांच से दस प्रतिशत की वृद्धि होती है। अब सवाल है, समुद्र का तापमान क्यों बढ़ रहा है, तो इसके जवाब पर भी फिर गौर कर लेना चाहिए, पर्यावरण में ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन के कारण पृथ्वी गरम हो रही है। कोरोना के दिनों में लॉकडाउन की वजह से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम हुआ है, जिसके कुछ फायदे साफ दिख रहे हैं। हमें ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को स्थाई रूप से कम करते जाने की पुख्ता व्यवस्था करनी पडे़गी, यह काम हम इंसानों के वश में है।
आज तूफान और कोरोना के बीच जो लोग संबंध देख रहे हैं, तो वे गलत नहीं हैं। देश के अन्य हिस्सों की तरह पश्चिम बंगाल व ओडिशा में कोरोना की वजह से लोग पहले ही परेशान हैं और अब तूफान की आपदा से बचने की कोशिश में फिजिकल डिस्र्टेंंसग का कितना पालन हो सकेगा, कहना मुश्किल है। इन दोनों राज्यों की सरकारों और देश के लिए दोहरी चुनौती पैदा हो गई है। लोगों को आपदा से भी बचाना है और कोरोना से भी। यदि छह लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं, तो यकीन मानिए, सबको संभालने के लिए राहत शिविरों में सावधानी और इंतजाम के पहले के तमाम कीर्तिमान तोड़ने पड़ेंगे। यह समय कदम-कदम पर चुनौती खड़ी कर रहा है और हमें प्रेरित कर रहा है कि हम अपनी और पृथ्वी की सुरक्षा के लिए सोलह आना ईमानदारी से काम करें। आपदाएं आएंगी-जाएंगी, इंसान जीतता रहा है, जीतता रहेगा।

 

बाजार में लौटेगी रौनक
शौर्यपथ / केंद्र सरकार ने लॉकडाउन 4.0 का एलान करते हुए आम जनता को थोड़ी-बहुत राहत दी है। दरअसल, घर में कैद लोग तनावग्रस्त हो रहे थे, जबकि कई सेवाओं के बंद रहने से मांग और आपूर्ति की शृंखला डगमगा रही था। अब तमाम तरह की छूट दी गई है, जिससे बाजार में निश्चय ही कुछ चहल-पहल दिखेगी और देश की आर्थिक गाड़ी पटरी पर लौटेगी। हालांकि, इस सबके बीच हर किसी को काफी सजग भी रहना होगा। अब हमारी धैर्यता की अग्नि-परीक्षा होगी कि हम भीड़भाड़ वाले इलाके में स्वयं को कितना सुरक्षित रखते हैं। ज्यादा भयभीत करने वाली बात यह है कि अब देश में औसतन पांच हजार मामले रोजाना सामने आ रहे हैं। यह बड़े संक्रमण का नतीजा है। लिहाजा बाजार जाएं, मगर सजग रहें। सावधानी और सतर्कता ही कोरोना का बचाव है।
शिक्षक भी कोरोना योद्धा
आज पूरा देश एकजुट होकर कोरोना से लड़ रहा है और हर उस व्यक्ति का सम्मान कर रहा है, जो कोरोना योद्धा हैं। डॉक्टर, नर्स, स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी आदि को असली योद्धा के रूप में खूब प्रचारित भी किया जा रहा है। मगर, एक ऐसा तबका है, जो कोरोना से रोज लड़ रहा है, लेकिन उसे हमने कोरोना योद्धा के रूप में कभी गिना ही नहीं। यह तबका है शिक्षकों का, जो ग्राम पंचायत से लेकर महानगर तक स्थानीय प्रशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहा है। हमें उनके जज्बे को भी सलाम करना चाहिए और उन्हें भी पर्याप्त सम्मान देना चाहिए।
जितेंद्र माथुर
फीस माफ हो
वैश्विक महामारी कोविड-19 के परिप्रेक्ष्य में सभी निजी स्कूलों को शैक्षणिक सत्र 2020-21 की प्रथम तिमाही (अप्रैल-जून) की फीस पूरी तरह माफ कर देनी चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि वर्तमान सत्र में अप्रैल-मई माह में किसी प्रकार की कोई औपचारिक कक्षा नहीं हो पाई और जून में ग्रीष्म अवकाश होगा। इस प्रकार, पहली तिमाही में स्कूल पूरी तरह से बंद रहेंगे। दूसरी ओर, देशव्यापी लॉकडाउन के चलते समाज का हर वर्ग आर्थिक तौर पर बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। विशेष रूप से निजी क्षेत्र के नौकरी-पेशा अभिभावकों के लिए, जिनको इस अवधि में 40-50 प्रतिशत वेतन ही मिला है, फीस दे पाना संभव नहीं है। केंद्र व राज्य सरकारों ने जिस प्रकार तमाम आर्थिक रियायतों और सहयोग की घोषणा की है, निजी स्कूलों से भी अपेक्षा है कि वे इस अवधि के लिए अपने स्टाफ का वेतन अपने निजी संसाधनों से देने पर विचार करेंगे और अभिभावकों पर इसके लिए किसी प्रकार का दवाब नहीं बनाएंगे। निजी स्कूलों के पास इस बाबत कई तरह के फंड पहले से मौजूद हैं भी।
राज्यों की चुनौती
औपचारिक तौर पर लॉकडाउन 4.0 के शुरू होने के साथ ही राज्यों की जिम्मेदारियां और चुनौतियां कहीं ज्यादा बढ़ गई हैं। एक लंबे सिलसिले के बाद लॉकडाउन 4.0 में कई सारी रियायतें दी गई हैं। मौजूदा समय में राज्य सरकारों को आर्थिक गतिविधियों को पटरी पर लाने के साथ-साथ प्रवासी श्रमिकों की जांच का दायरा भी बढ़ाना होगा, ताकि बड़ी संख्या में लौट रहे प्रवासी मजदूरों के कारण संक्रमण न फैले। जाहिर है, अब कोरोना महामारी की लड़ाई धीरे-धीरे राज्यों पर निर्भर होती जा रही है। अब राज्य सरकारों को बेहतर फैसले लेने होंगे, ताकि कोरोना के बढ़ते संक्रमण को थामने में मदद मिल सके। साथ ही, एक राज्य को दूसरे राज्य के साथ बेहतर समन्वय बनाना होगा, जिससे राज्यों की सीमाओं पर ठहरे मजदूरों को अपने-अपने घर जाने की अनुमति मिल सके और अनावश्यक जमावड़े से बचा जा सके।
रितिक सविता, डीयू

 

     ओपिनियन / शौर्यपथ / कोविड-19 ने दुनिया को खासा प्रभावित किया है। इससे लोगों की मौत हो रही है, उनके रोजगार खत्म हो रहे हैं, और रोजमर्रा के जीवन में उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इन तमाम परेशानियों के बावजूद, कोविड-19 के घने अंधियारे में उम्मीद की किरण मौजूद है। यह संकट दरअसल विभिन्न क्षेत्रों में इनोवेशन यानी नवाचार को बढ़ावा दे सकता है, और बिल्कुल नए तरीके से सोचने वाला समाज गढ़ सकता है।
अतीत में भी महामारी ने नवाचार को गति देने का काम किया है और नए विचारों के साथ बदलाव को मुमकिन बनाया है। जैसे, 2002 में चीन और अन्य पूर्वी एशियाई देशों में फैले सार्स ने दुनिया को बदल दिया था। माना जाता है कि सार्स से वैश्विक अर्थव्यवस्था को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ था, क्योंकि आज की तरह ही उन दिनों लोगों ने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था। हालांकि, उस संकट ने उन तमाम राष्ट्रों में इंटरनेट की पहुंच बढ़ा दी, जहां इसका नेटवर्क काफी कम था। ई-कॉमर्स यानी ऑनलाइन खरीदारी को लोकप्रियता मिली, जबकि पहले इसका अस्तित्व ही नहीं था। चीनी ई-कॉमर्स कंपनियां अलीबाबा और जेडी डॉट कॉम ने इसका खूब फायदा उठाया और वे दुनिया की प्रभावशाली कंपनियां बन गईं। इसीलिए, मौजूदा कोविड-19 संकट के दौरान अलीबाबा या जेडी डॉट कॉम से बड़ी किसी भारतीय कंपनी के सृजन का सपना देखना लाजिमी है।
भारत में पिछले एक दशक में इटरनेट और स्मार्टफोन ने गहरी पैठ बनाई है। इससे डिजिटल समाधान और नवाचार बढ़ाए जा सकते हैं। ‘लो टच ऑर कॉन्टैक्टलेस’ यानी ‘कम-स्पर्श या संपर्क-विहीन’ सेवा पहुंचाना अब अर्थव्यवस्था का नया मानक बनता जा रहा है। इसका मतलब है कि अब हर लेन-देन में उन स्थितियों से बचा जाएगा, जहां स्पर्श की गुंजाइश होती है। मसलन, किसी किराना स्टोर में जाने की बजाय लोग ऑनलाइन खरीदारी करना पसंद करेंगे। डॉक्टर भी मरीज को क्लिनिक में बुलाने से बेहतर ऑनलाइन देखना चाहेंगे। आने-जाने से तौबा करके लोग ऑनलाइन ही भेंट-मुलाकात करेंगे। इसीलिए, ‘लो टच’ को केंद्र में रखकर कई तरह के नए इनोवेशन हो सकते हैं। ये लंबे समय तक सामाजिक बदलाव के कारक भी बनेंगे। जैसे, ‘पोस्टमैट्स’ और ‘इंस्टाकार्ट’ जैसे स्टार्टअप कूरियर ब्यॉय और ग्राहक के बीच संपर्क कम करने के लिए ‘कॉन्टैक्टलेस’ डिलीवरी कर रहे हैं।
कोविड-19 महामारी ने सामाजिक और व्यावसायिक नियम बदल दिए हैं। ‘वर्किंग फ्रॉम होम’ यानी घर से काम अब सामान्य बात हो गई है, क्योंकि यह व्यवस्था आर्थिक रूप से किफायती है व कामकाज के लिहाज से लचीली भी। चूंकि अचल संपत्ति की कीमतें आसमान छू रही हैं, इसलिए आजकल बडे़ शहरों में ऑफिस रखना महंगा सौदा साबित हो रहा है। इसके अलावा, फर्नीचर, पार्किंग, साज-सज्जा, परिवहन आदि पर भी कंपनियों को बहुत खर्च करना पड़ता है। लिहाजा, अपने कर्मियों को घर से काम करने की अनुमति देकर कंपनियां इस तरह के खर्च कम कर सकती हैं। महानगरों या बड़े शहरों में एक ही स्थान पर आपसी तालमेल करके दो-तीन कंपनियों को चलाने का चलन लोकप्रिय होने ही लगा है। चूंकि इस व्यवस्था में कम संख्या में लोग आना-जाना करेंगे, इसलिए प्रदूषण भी कम होगा, सार्वजनिक परिवहन पर भार घटेगा और ईंधन जैसे बहुमूल्य राष्ट्रीय संसाधन की बचत होगी।
मौजूदा उथल-पुथल में उद्योग जगत ‘इंडस्ट्री 4.0’ या चौथी औद्योगिक क्रांति की ओर बढ़ने का प्रयास करेंगे। इससे कारोबारी दुनिया में महत्वपूर्ण बदलाव आएंगे। फैक्टरियां ऑटोमेशन अपनाएंगी और रोबोटिक्स का इस्तेमाल ज्यादा होगा। ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स’ बहुत सारे लोगों के रहन-सहन और कामकाज को बदल देगा, क्योंकि घरों और ऑफिस में बौद्धिक उपकरणों पर हमारी निर्भरता बढ़ जाएगी। एक ड्रोन से कई तरह के सामान मुहैया कराए जा सकते हैं।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमता और इंटरनेट ऑफ थिंग्स के इस्तेमाल की काफी ज्यादा संभावनाएं भारत के स्वास्थ्य ढांचे में हैं। सर्जरी में मददगार रोबोटिक्स का इस्तेमाल देश में बढ़ भी रहा है। इंटरनेट ऑफ थिंग्स का उपयोग मरीजों की सेहत का रिकॉर्ड रखने में हो सकता है। यह बीमारी के लक्षण की सटीक सूचना सही वक्त पर दे सकता है। आरोग्य सेतु एप इसका एक उदाहरण है। यह एप फोन के जीपीएस और ब्लूटुथ का इस्तेमाल करके बता सकता है कि आप किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में तो नहीं आए हैं। एक और डिजिटल इनोवेशन सार्वजनिक वितरण प्रणाली में संभव है। बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और एप का इस्तेमाल करते हुए ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ की संकल्पना साकार की जा सकती है।
हमारी शिक्षा प्रणाली में भी प्रौद्योगिकी-आधारित नवाचार की काफी संभावनाएं हैं। विश्वविद्यालयों को सूचना प्रौद्योगिकी के लिहाज से तैयार करने को लेकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने कई तरह के कदम उठाए हैं। केंद्र सरकार ने भी देश में ऑनलाइन शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए ‘ई-विद्या’ कार्यक्रम की घोषणा की है। इसमें अब सबसे बड़ी चुनौती स्कूलों और कॉलेजों में परीक्षा आयोजित करने की है, क्योंकि हमारे यहां परीक्षा में शामिल होने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या काफी ज्यादा है। उत्तर प्रदेश बोर्ड परीक्षा में ही हर साल लाखों परीक्षार्थी बैठते हैं। लिहाजा सार्वजनिक-निजी भागीदारी के रूप में ‘एग्जाम-सेवा’ की शुरुआत की जा सकती है, जिसका मकसद परीक्षाओं का बोझ कम करने के लिए ऑनलाइन मूल्यांकन को हकीकत बनाना हो। टीसीएस द्वारा संचालित ‘पासपोर्ट सेवा’ देश में एक सफल डिजिटल पहल है ही। कोरोना-काल के बाद भी यह प्रयास उपयोगी साबित हो सकता है।
कोरोना वायरस के कहर ने आपूर्ति शृंखला को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया है। अभी प्रौद्योगिकी आधारित एक वैकल्पिक आपूर्ति शृंखला की दरकार है, जो प्रवासी मजदूरों या किसानों की समस्याओं का हल करे। प्रमुख कॉरपोरेट घराने और आईआईएम या आईआईटी का ऐसा कोई संयुक्त संगठन बनाया जा सकता है, जो सरकार के अधीन हो। पुराने जिला उद्योग केंद्र (डीआईसी) को इसकी जिला नोडल एजेंसी का रूप दिया जा सकता है। आधुनिक डीआईसी यह सुनिश्चित करने का काम करेगा कि आपूर्ति शृंखला प्रक्रिया में किसानों की सीधी सहभागिता हो। उम्मीद की जा सकती है कि अलीबाबा, अमेजन या जेडी डॉट कॉम जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का भारतीय संस्करण बनाने में भी यह संगठन कामयाब होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) साभार लेख का नाम दीपक कुमार श्रीवास्तव, प्रोफेसर, आईआईएम, तिरूचिरापल्ली

 

प्रदेश के किसानों को मिलेगी बड़ी राहतरू 5700 करोड़ रूपए की राशि डीबीटी के माध्यम से चार किश्तों में जाएगी किसानों के खातों में
प्रदेश में धान, मक्का और गन्ना (रबी) के 19 लाख किसानों को मिलेगा फायदा
प्रथम किश्त के रूप में 1500 करोड़ रूपए कृषकों के खातों में होगा ऑनलाईन अंतरण
किसानों को खेती किसानी से जोडऩे देश में अपने किस्म की पहली योजना
मुख्यमंत्री बघेल ने योजना के शुभारंभ कार्यक्रम की तैयारियों की समीक्षा की

रायपुर / शौर्यपथ / पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय राजीव गांधी के शहादत दिवस 21 मई के दिन छत्तीसगढ़ सरकार किसानों के लिए न्याय योजना शुरू कर रही है। दिल्ली से श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल गांधी वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए इस योजना के शुभारंभ कार्यक्रम में शामिल होंगे। मुख्यमंत्री बघेल और मंत्रीमण्डल के सदस्यगण मुख्यमंत्री निवास कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम में दोपहर 12 बजे स्वर्गीय राजीव गांधी के तैल चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करेंगे। इसके पश्चात् किसानों को दी जाने वाली 5700 करोड़ रूपए की राशि में से प्रथम किश्त के रूप में 1500 करोड़ रूपए की राशि के कृषकों के खातों में ऑनलाईन अंतरण की जाएगी। कार्यक्रम में जिलों से सांसद, विधायक, अन्य जनप्रतिनिधि, किसान और विभिन्न योजनाओं के हितग्राही भी वीडियो कांफ्रेसिंग से जुड़ेंगे।
मुख्यमंत्री बघेल आज यहां अपने निवास कार्यालय में योजना के शुभारंभ के लिए की जा रही तैयारियों की वरिष्ठ अधिकारियों के साथ समीक्षा भी की। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ देश में पहला ऐसा राज्य है जो किसानों को सीधे तौर पर बैंक खातों में राशि ट्रांसफर कर 5700 करोड़ रूपए की राहत प्रदान कर रहा है। कोरोना संकट के काल में किसानों को छत्तीसगढ़ सरकार राजीव गांधी किसान न्याय योजना के माध्यम से बड़ी राहत प्रदान करने जा रही है। इस योजना का उद्देश्य फसल उत्पादन को प्रोत्साहित करना और किसानों को उनकी उपज का सही दाम दिलाना है।
मुख्यमंत्री बघेल कार्यक्रम के आरंभ में राजीव गांधी किसान न्याय योजना के संबंध में संक्षिप्त उद्बोधन देगें । कार्यक्रम में किसानों को दी जाने वाली 5700 करोड़ रूपए की राशि में से प्रथम किश्त के रूप में 1500 करोड़ रूपए की राशि के कृषकों के खातों में अंतरित की जाएगी। इस अवसर पर जिला मुख्यालयों में उपस्थित योजना के हितग्राहियों के साथ ही महिला स्व-सहायता समूहों के सदस्यों, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और लघु वनोपज के हितग्राही तथा गन्ना और मक्का उत्पादक किसानों से वीडियो कांफ्रेसिंग से जरिए चर्चा भी की जाएगी।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देने तथा कृषि के क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर सृजित करने लिए यह महत्वाकांक्षी योजना लागू की जा रही है। इस योजना से न केवल प्रदेश में फसल उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा बल्कि किसानों को उनकी उपज का सही दाम भी मिलेगा। इस योजना के तहत प्रदेश के 19 लाख किसानों को 5700 करोड़ रूपए की राशि चार किश्तों में सीधे उनके खातों में अंतरित की जाएगी। यह योजना किसानों को खेती-किसानी के लिए प्रोत्साहित करने की देश में अपने तरह की एक बडी योजना है।
     राज्य सरकार इस योजना के जरिए किसानों को खेती किसानी के लिए प्रोत्साहित करने के लिए खरीफ 2019 से धान तथा मक्का लगाने वाले किसानों को सहकारी समिति के माध्यम से उपार्जित मात्रा के आधार पर अधिकतम 10 हजार रूपए प्रति एकड़ की दर से अनुपातिक रूप से आदान सहायता राशि दी जाएगी। इस योजना में धान फसल के लिए 18 लाख 34 हजार 834 किसानो को प्रथम किश्त के रूप में 1500 करोड़ रूपए की राशि प्रदान की जाएगी। योजना से प्रदेश के 9 लाख 53 हजार 706 सीमांत कृषक, 5 लाख 60 हजार 284 लघु कृषक और 3 लाख 20 हजार 844 बड़े किसान लाभान्वित होंगें।
इसी तरह गन्ना फसल के लिए पेराई वर्ष 2019-20 में सहकारी कारखाना द्वारा क्रय किए गए गन्ना की मात्रा के आधार पर एफआरपी राशि 261 रूपए प्रति क्विंटल और प्रोत्साहन एवं आदान सहायता राशि 93.75 रूपए प्रति क्विंटल अर्थात अधिकतम 355 रूपए प्रति क्विंटल की दर से भुगतान किया जाएगा। इसके तहत प्रदेश के 34 हजार 637 किसानों को 73 करोड़ 55 लाख रूपए चार किश्तों में मिलेगा। जिसमें प्रथम किश्त 18.43 करोड़ रूपए की राशि 21 मई को अंतरित की जाएगी।
     छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा इसके साथ ही वर्ष 2018-19 में सहकारी शक्कर कारखानों के माध्यम से खरीदे गए गन्ना की मात्रा के आधार पर 50 रूपए प्रति क्विंटल की दर से प्रोत्साहन राशि (बकाया बोनस) भी प्रदान करने जा रही है। इसके तहत प्रदेश के 24 हजार 414 किसानों को 10 करोड़ 27 लाख रूपए राशि दी जाएगी। राज्य सरकार ने इस योजना के तहत खरीफ 2019 में सहकारी समिति, लैम्पस के माध्यम से उपार्जित मक्का फसल के किसानों को भी लाभ देने का निर्णय लिया है। मक्का फसल के आकड़े लिए जा रहे हैं, जिसके आधार पर आगामी किश्त में उनको भुगतान किया जाएगा।
         इस योजना में राज्य सरकार ने खरीफ 2020 से इसमें धान, मक्का, सोयाबीन, मूंगफली, तिल, अरहर, मूंग, उड़द, कुल्थी, रामतिल, कोदो, कोटकी तथा रबी में गन्ना फसल को शामिल किया है। सरकार ने यह भी कहा है कि अनुदान लेने वाला किसान यदि गत वर्ष धान की फसल लेता है और इस साल धान के स्थान पर योजना में शामिल अन्य फसल लेता हैं तो ऐसी स्थिति में उन्हें प्रति एकड़ अतिरिक्त सहायता दी जायेगी।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा प्रदेश की अर्थव्यवस्था को गतिशील और मजबूत बनाने के लिए लॉकडाउन जैसे संकट के समय में किसानों को फसल बीमा और प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के तहत 900 करोड़ की राशि उनके खातों में अंतरित की गई है। मुख्यमंत्री बघेल के नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा इसके पहले लगभग 18 लाख किसानों का 8800 करोड़ रूपए का कर्ज माफ किया गया है साथ ही कृषि भूमि अर्जन पर चार गुना मुआवजा, सिंचाई कर माफी जैसे कदम उठाकर किसानों को राहत पहुंचाई गई है।

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