November 21, 2024
Hindi Hindi
शौर्य की बाते ( सम्पादकीय )

शौर्य की बाते ( सम्पादकीय ) (160)

राष्ट्रव्यापी उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है पोषण माह अभियान
पोषण अभियान से महिलाओं और बच्चों के आहार और व्यवहार में आ रहा सकारात्मक बदलाव
राज्य के 52 हजार से अधिक आंगनबाड़ियों में चल रहा है पोषण अभियान

  रायपुर / शौर्यपथ / प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर राष्ट्रीय पोषण अभियान ने एक जन आंदोलन का रूप ले लिया है। चालू माह में पोषण अभियान को राष्ट्रव्यापी उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। राज्य के 52 हजार से अधिक आंगनबाड़ियों में पोषण अभियान संचालित हो रहा हैं। वहीं स्वास्थ्यवर्धक विभिन्न गतिविधियों को आयोजन भी किया जा रहा है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी ने गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं, किशोरियों और छह वर्ष की आयु तक के बच्चों की पोषण स्थिति पर ध्यान केंद्रित करके कुपोषण को दूर करने के लिए वर्ष 2018 में ’राष्ट्रीय पोषण अभियान’ के रूप में शुरू किया था।
  मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि सुपोषण छत्तीसगढ़ बनाने के लिए हमारी सरकार दृढ़ संकल्पित है, उन्होंने राज्य के समस्त जनप्रतिनिधि, पंचायती राज संस्था के प्रतिनिधियों महिला स्व-सहायता समूहों, प्रबुद्ध वर्ग, विद्यार्थी वर्ग, सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों के निकायों के प्रतिनिधि एवं समस्त जनसमुदाय से अपील करते हुए कहा है कि पोषण माह की गतिविधियों में पूरे उत्साह और ऊर्जा के साथ छत्तीसगढ़ को कुपोषण और एनीमिया मुक्त बनाने में सहभागी बने। महिलाओं और बच्चों को पोषण के प्रति जागरूक करने के लिए है जन प्रतिनिधियों, पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधियों, महिला स्वसहायता समूह, प्रबुद्ध नागरिकों, विद्यार्थियों और स्थानीय जन समुदाय को शामिल किया गया है।
  महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती लक्ष्मी राजवाड़े ने कहा कि सितंबर माह के प्रथम दिवस से पोषण माह 2024 मनाया जा रहा है, जो पोषण जागरूकता को बढ़ावा देने और एक स्वस्थ भारत के निर्माण की दिशा में समर्पित एक राष्ट्रव्यापी उत्सव है। इस वर्ष अपने 7वें चरण में, पोषण माह अभियान एनीमिया की रोकथाम, विकास निगरानी, सुशासन और प्रौद्योगिकी के माध्यम से प्रभावी सेवा वितरण, पोषण भी पढ़ाई भी और पूरक पोषण जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय पोषण माह के तहत् छत्तीसगढ़ के लगभग 52 हजार आंगन बाड़ी केन्द्रों में महिलाओं और बच्चों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने और उनके पोषण संबंधित देख-भाल के लिए समझाईश दी जा रही है। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ को एनीमिया और कुपोषण मुक्त बनाने के लिए गांवों में महिला बाल विकास विभाग द्वारा सुुपोषण रथ के माध्यम से जागरूकता लाई जा रही।

    
 राष्ट्रीय पोषण माह के अंतर्गत राज्य के सभी आंगनबाड़ी केंद्रो में प्रतिदिन पोषण व स्वच्छता संबंधी विभिन्न गतिविधियां आयोजित हो रही हैं। साथ ही जिले में 23 सितंबर 2024 तक सभी केंद्रों में वजन त्यौहार मनाया जा रहा है। इस दौरान आंगनबाड़ी केंद्रों में 0 से 06 वर्ष के बच्चों का वजन एवं ऊंचाई मापना, पोषण स्तर की जांच एवं उनके अभिभावकों को पोषण संबंधित जानकारी दी जा रही है। राज्य में राष्ट्रीय पोषण माह अंतर्गत अब तक डैशबोर्ड में 29 लाख 60 हजार 333 गतिविधियों की एंट्री की जा चुकी है। महिला एवं बाल विकास विभाग की संचालक सुश्री तूलिका प्रजापति ने विभाग के सभी अधिकारी-कर्मचारियों को की जा रही शत-प्रतिशत गतिविधियों की ऑनलाइन एंट्री करने के निर्देश दिए हैं।
   सभी आंगनबाड़ी केंद्रों में भी समूह बैठक में वजन त्यौहार के बारे में चर्चा की जा रही है। ग्रामीण महिलाओं से चर्चा के दौरान 0 से 06 साल के बच्चे, किशोरी बालिकाओं को खान-पान और स्वास्थ्य देखभाल के बारे में बताया जा रहा है। महिला बाल विकास की योजनाओं की जानकारी देने के साथ ही गर्भवती महिलाओं से पौष्टिक आहार भोजन में शामिल करने का आग्रह किया जा रहा है।
  राष्ट्रीय पोषण माह के साथ ही 12 से 23 सितम्बर तक प्रदेश की आंगनबाड़ियों में वजन त्यौहार भी मनाया गया। जिसके अंतर्गत बच्चों के वजन में बढ़ोत्तरी को मापने के साथ ही सामुदायिक जागरूकता का कार्य भी किया गया। वजन त्यौहार के दौरान बच्चों के वजन सहित अन्य विवरण महिला और बाल विकास विभाग के मोबाइल ऐप पर दर्ज किया गया। इसी तरह, पोषण माह के दौरान सुपोषण चौपाल, अन्नप्राशन दिवस, परिवार चौपाल, पोषण मेला, व्यंजन प्रदर्शन जैसे आयोजन पंचायत और शहरी क्षेत्रों में किए जा रहे हैं। पोषण के प्रति बच्चों को जागरूक करने के लिए स्कूलों में नारा लेखन, निबंध, चित्रकला और दीवार लेखन, स्पर्धाएं आयोजित की जा रही हैं। साथ ही स्वस्थ बालक-बालिका प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जा रहा है। राष्ट्रीय पोषण माह के तहत ग्राम पंचायत के सहयोग से आंगनबाड़ी केंद्रों और शालाओं में पोषण वाटिका भी विकसित की जा रही है।
  राष्ट्रीय पोषण माह 2024 सिर्फ़ एक अभियान नहीं है - यह एक आंदोलन है। किशोरियों को शामिल करके ’एनीमिया मुक्त भारत’ कार्यक्रम के लिए निरंतर समर्थन देकर और सामुदायिक भागीदारी का लाभ उठाकर, भारत कुपोषण मुक्त भविष्य की ओर अपनी यात्रा को तेज़ कर रहा है।
  पोषण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता सतत विकास के लिए उसकी महत्वाकांक्षा का आधार है। आइए हम सब मिलकर काम करने का संकल्प लें, ताकि भारत में हर बच्चे, माँ और परिवार को पौष्टिक भोजन और स्वस्थ भविष्य मिल सके। इस अभियान में हम सभी शामिल हों। साथ मिलकर हम कुपोषण मुक्त भारत का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं।

साभार -
•डॉ.दानेश्वरी सम्भाकर
सहायक संचालक     

शौर्यपथ / सनातन धर्म में इस तिथि में ऋषि पंचमी मनाया जाता है। इस दिन सप्त ऋषियों की पूजा की जाती है। ऋषि पंचमी का व्रत महिलाओं के लिए विशेष होता है। द्रिक पंचांग के अनुसार, 08 सितंबर को इन्द्र योग का निर्माण हो रहा है।
 8 सितंबर का दिन भारत के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है। इसी दिन 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में बम ब्लास्ट हुआ था। इस हमले में करीब 37 लोगों मारे गए थे। साथ ही 125 से अधिक लोग घायल हुए थे।
8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस के रूप में मनाया जाता है .
8 सितंबर की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ

    1271 - जाॅन XXI का पोप के रूप में चयन।
    1320 - गाजी मलिक दिल्ली का सुल्तान बना।
    1331 - स्टीफन उरोस चतुर्थ ने खुद को सर्बिया का राजा घोषित किया।
    1449 - टुमू किले का युद्ध- मंगोलिया ने चीन के सम्राट को बंधक बनाया।
    1553 - इंग्लैंड में लिचफिल्ड शहर का निर्माण।
    1563 - मैक्सीमिलियन को हंगरी का राजा चुना गया।
    1689 - चीन और रूस ने नेरट्सजिंस्क (निरचुल) की संधि पर हस्ताक्षर किया।
    1900 - टेक्सास के गैलवेस्टोन में चक्रवाती और ज्वारीय तूफान से 6000 लोगों की मौत
    1952 - जेनेवा में काॅपीराइट के लिये पहले विश्व सम्मेलन में भारत समेत 35 देशों ने किये हस्ताक्षर।
    1962 - चीन ने भारत की पूर्वी सीमा में घुसपैठ किया।
    1988 - जाने माने व्यवसायी विजयपत सिंघानिया अपने माइक्रो लाइट सिंगल इंजन एयरक्राफ्ट से लंदन से अहमदाबाद पहुँचे।
    1991 - मैसिडोनिया गणराज्य स्वतंत्र हुआ।
    1997 - अमेरिकी ओपन टेनिस चैम्पियनशिप में पैट्रिक राफ़्टर को प्रथम ग्रैंड स्लैम ख़िताब मिला।
    1998 - 2001 में निर्धारित 13वें गुट निरपेक्ष आंदोलन की मेजबानी बांग्लादेश को सौंपी गयी।
    2000 - भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र शांति शिखर सम्मेलन के दौरान हिन्दी में भाषण देते हुए पाकिस्तान को लताड़ा।
    2002 - नेपाल में माओवादियों ने 119 पुलिस कर्मियों को मार डाला।
    2003 - इस्रायल के प्रधानमंत्री एरियल शैरोन चार दिवसीय भारत यात्रा पर नई दिल्ली पहुँचे।
    2006 - महाराष्ट्र के नासिक ज़िले में मालेगाँव बम धमाके।
    2008 -
        सर्वोच्च न्यायालय ने कैनफिना म्यूचुअल फण्ड घोटाले मामले के मुख्य अभियुक्त और शेयर दलाल केतन पारिख व अन्य आरोपियों को ज़मानत दी।
        प्रसिद्ध अमेरिका पत्रिका फोर्ब्स ने भारतीय अरबपति लक्ष्मी मित्तल को लाइफ टाइम अचीवमेण्ट अवार्ड देने की घोषणा की।
    2009 - भारत ने विमानवाहक पोत एडमिरल गोर्शकोव को नए कलपुर्ज लगाकर तैयार करने के लिए रूस को 10 करोड़ 20 लाख डालर दिये।

रायपुर / शौर्यपथ / छत्तीसगढ़ की संस्कृति अपनी अति विशिष्ट परंपराओं और पर्वों के लिए जानी जाती है और हर पर्व, प्रकृति के पीछे गहरे समर्पण की मिसाल देता है। हरियाली को लेकर ऐसा ही दुर्लभ पर्व हरेली है, जब पूरी धरती हरीतिमा की चादर ओढ़ लेती है। धान के खेतों में रोपा लग जाता है और खेतों में चारों ओर प्रकृति अपने सुंदर नजारे में अपने को व्यक्त करती है। धरती माता का पूरा स्नेह पृथ्वीवासी या हर जीव-जन्तु पर उमड़ता है और इस स्नेह के प्रतिदान के लिए हम हरेली में प्रकृति को पूजते हैं। इस बार हरेली पर्व पर एक और खुशी हमारे प्रदेशवासियों के साथ जुड़ रही है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने एक पेड़ माँ के नाम पर लगाने के अभियान का आगाज किया है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में यह अभियान पूरे उत्साह से चल रहा है। मुख्यमंत्री ने हरेली के अवसर पर लोगों से पेड़ लगाने की अपील की है। यह पेड़ वे अपनी माँ के नाम लगाएंगे साथ ही धरती माँ के नाम लगाएंगे, जो धरती हमें इतना कुछ देती है, उसके श्रृंगार के लिए पौधा लगाएंगे और सहेजेंगे। यह पौधा हमारी हरेली की स्मृतियों को सुरक्षित रखने के लिए भी यादगार होगा। साथ ही प्रदेश भर में जहां भी खुले मैदानों में पौधरोपण के आयोजन होंगे वहां लोग गेड़ी का आनंद भी लेंगे। अपनी प्रकृति और परिवेश से जुड़ने और इसे समृद्ध करने से बढ़कर सुख और क्या होगा।
छत्तीसगढ़ का पहला लोक पर्व हरेली
  छत्तीसगढ़ का सबसे पहला लोक पर्व हरेली है, जो लोगों को छत्तीसगढ़ की संस्कृति और आस्था से परिचय कराता है। हरेली का मतलब हरियाली होता है, जो हर वर्ष सावन महीने के अमावस्या में मनाया जाता है। हरेली मुख्यतः खेती-किसानी से जुड़ा पर्व है। इस त्यौहार के पहले तक किसान अपनी फसलों की बोआई या रोपाई कर लेते हैं और इस दिन कृषि संबंधी सभी यंत्रों नागर, गैंती, कुदाली, फावड़ा समेत कृषि के काम आने वाले सभी तरह के औजारों की साफ-सफाई कर उन्हें एक स्थान पर रखकर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं। घर में महिलाएं तरह-तरह के छत्तीसगढ़ी व्यंजन खासकर गुड़ का चीला बनाती हैं। हरेली में जहाँ किसान कृषि उपकरणों की पूजा कर पकवानों का आनंद लेते हैं, आपस में नारियल फेंक प्रतियोगिता करते हैं, वहीं युवा और बच्चे गेड़ी चढ़ने का मजा लेते हैं।
  हरेली के दिन गांव में पशुपालन कार्य से जुड़े यादव समाज के लोग सुबह से ही सभी घरों में जाकर गाय, बैल और भैंसों को नमक और बगरंडा का पत्ता खिलाते हैं। हरेली के दिन गांव-गांव में लोहारों की पूछपरख बढ़ जाती है। इस दिन गांव के लोहार हर घर के मुख्य द्वार पर नीम की पत्ती लगाकर और चौखट में कील ठोंककर आशीष देते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से उस घर में रहने वालों की अनिष्ट से रक्षा होती है। इसके बदले में किसान उन्हे दान स्वरूप स्वेच्छा से दाल, चावल, सब्जी और नगद राशि देते हैं। ग्रामीणों द्वारा घर के बाहर गोबर से बने चित्र बनाते हैं, जिससे वह उनकी रक्षा करे।
हरेली से तीजा तक गेड़ी दौड़ का आयोजन
   हरेली त्यौहार के दिन गांव के प्रत्येक घरों में गेड़ी का निर्माण किया जाता है, मुख्य रूप से यह पुरुषों का खेल है घर में जितने युवा एवं बच्चे होते हैं उतनी ही गेड़ी बनाई जाती है। गेड़ी दौड़ का प्रारंभ हरेली से होकर भादो में तीजा पोला के समय जिस दिन बासी खाने का कार्यक्रम होता है उस दिन तक होता है। बच्चे तालाब जाते हैं स्नान करते समय गेड़ी को तालाब में छोड़ आते हैं, फिर वर्षभर गेड़ी पर नहीं चढ़ते हरेली की प्रतीक्षा करते हैं। चूंकि वर्षा के कारण गांव के कई जगहों पर कीचड़ भर जाता है, इस समय गेड़ी पर बच्चे चढ़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते जाते हैं उसमें कीचड़ लग जाने का भय नहीं होता। बच्चे गेड़ी के सहारे कहीं से भी आ जा सकते हैं। गेड़ी का संबंध कीचड़ से भी है। कीचड़ में चलने पर किशोरों और युवाओं को गेड़ी का विशेष आनंद आता है। रास्ते में जितना अधिक कीचड़ होगा गेड़ी का उतना ही अधिक आनंद आता है। वर्तमान में गांव में काफी सुधार हुआ है गली और रास्तों पर काम हुआ है। अब ना कीचड़ होती है ना गलियों में दलदल। फिर भी गेड़ी छत्तीसगढ़ में अपना महत्व आज भी रखती है। गेड़ी में बच्चे जब एक साथ चलते हैं तो उनमें एक दूसरे से आगे जाने की इच्छा जागृत होती है और यही स्पर्धा बन जाती है। बच्चों की ऊंचाई के अनुसार दो बांस में बराबर दूरी पर कील लगाते हैं और बांस के टुकड़े को बीच में फाड़कर दो भाग कर लेते हैं, फिर एक सिरे को रस्सी से बांधकर पुनः जोड़ देते हैं इसे पउवा कहा जाता है। पउवा के खुले हुए भाग को बांस में कील के ऊपर फंसाते हैं पउवा के ठीक नीचे बांस से सटाकर 4-5 इंच लंबी लकड़ी को रस्सी से इस प्रकार बांधते है, जिससे वह नीचे ना जा सके लकड़ी को घोड़ी के नाम से भी जाना जाता है। गेड़ी में चलते समय जोरदार ध्वनि निकालने के लिए पैर पर दबाव डालते हैं जिसे मच कर चलना कहा जाता है।
नारियल फेंक प्रतियोगिता
  नारियल फेंक बड़ों का खेल है इसमें बच्चे भाग नहीं लेते। प्रतियोगिता संयोजक नारियल की व्यवस्था करते हैं, एक नारियल खराब हो जाता है तो तत्काल ही दूसरे नारियल को खेल में सम्मिलित किया जाता है। खेल प्रारंभ होने से पूर्व दूरी निश्चित की जाती है, फिर शर्त रखी जाती है कि नारियल को कितने बार फेंक कर उक्त दूरी को पार किया जाएगा। प्रतिभागी शर्त  स्वीकारते हैं, जितनी बार निश्चित किया गया है उतने बार में नारियल दूरी पार कर लेता है तो वह नारियल उसी का हो जाता है। यदि नारियल फेंकने में असफल हो जाता है तो उसे एक नारियल खरीद कर देना पड़ता है। नारियल फेंकना कठिन काम है इसके लिए अभ्यास जरूरी है। पर्व से संबंधित खेल होने के कारण बिना किसी तैयारी के लोग भाग लेते है।
बस्तर क्षेत्र में हरियाली अमावस्या पर मनाया जाता है अमुस त्यौहार
  छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में ग्रामीणों द्वारा हरियाली अमावस्या पर अपने खेतों में औषधीय जड़ी-बूटियों के साथ तेंदू पेड़ की पतली छड़ी गाड़ कर अमुस त्यौहार मनाया जाता है। इस छड़ी के ऊपरी सिरे पर शतावर, रसना जड़ी, केऊ कंद को भेलवां के पत्तों में बांध दिया जाता है। खेतों में इस छड़ी को गाड़ने के पीछे ग्रामीणों की मान्यता यह है कि इससे कीट और अन्य व्याधियों के प्रकोप से फसल की रक्षा होती है। इस मौके पर मवेशियों को जड़ी बूटियां भी खिलाई जाती है। इसके लिए किसानों द्वारा एक दिन पहले से ही तैयारी कर ली जाती है। जंगल से खोदकर लाई गई जड़ी बूटियों में रसना, केऊ कंद, शतावर की पत्तियां और अन्य वनस्पतियां शामिल रहती है, पत्तों में लपेटकर मवेशियों को खिलाया जाता है। ग्रामीणों का मानना है कि इससे कृषि कार्य के दौरान लगे चोट-मोच से निजात मिल जाती है। इसी दिन रोग बोहरानी की रस्म भी होती है, जिसमें ग्रामीण इस्तेमाल के बाद टूटे-फूटे बांस के सूप-टोकरी-झाड़ू व अन्य चीजों को ग्राम की सरहद के बाहर पेड़ पर लटका देते हैं। दक्षिण बस्तर में यह त्यौहार सभी गांवों में सिर्फ हरियाली अमावस्या को ही नहीं, बल्कि इसके बाद गांवों में अगले एक पखवाड़े के भीतर कोई दिन नियत कर मनाया जाता है।
साभार : • डॉ. दानेश्वरी संभाकर,सहायक संचालक

 शौर्यपथ लेख : छत्तीसगढ़ में हरेली त्यौहार का विशेष महत्व है। हरेली छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार है। इस त्यौहार से ही राज्य में खेती-किसानी की शुरूआत होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह त्यौहार परंपरागत् रूप से उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन किसान खेती-किसानी में उपयोग आने वाले कृषि यंत्रों की पूजा करते हैं और घरों में माटी पूजन होता है। गांव में बच्चे और युवा गेड़ी का आनंद लेते हैं। इस त्यौहार से छत्तीसगढ़ की संस्कृति और लोक पर्वों की महत्ता भी बढ़ गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में गेड़ी के बिना हरेली तिहार अधूरा है।
परंपरा के अनुसार वर्षों से छत्तीसगढ़ के गांव में अक्सर हरेली तिहार के पहले बढ़ई के घर में गेड़ी का ऑर्डर रहता था और बच्चों की जिद पर अभिभावक जैसे-तैसे गेड़ी भी बनाया करते थे। हरेली तिहार के दिन सुबह से तालाब के पनघट में किसान परिवार, बड़े बजुर्ग बच्चे सभी अपने गाय, बैल, बछड़े को नहलाते हैं और खेती-किसानी, औजार, हल (नांगर), कुदाली, फावड़ा, गैंती को साफ कर घर के आंगन में मुरूम बिछाकर पूजा के लिए सजाते हैं। माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं। कृषि औजारों को धूप-दीप से पूजा के बाद नारियल, गुड़ के चीला का भोग लगाया जाता है। अपने-अपने घरों में अराध्य देवी-देवताओं के साथ पूजा करते हैं। गांवों के ठाकुरदेव की पूजा की जाती है।

हरेली पर्व के दिन पशुधन के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए औषधियुक्त आटे की लोंदी खिलाई जाती है। गांव में यादव समाज के लोग वनांचल जाकर कंदमूल लाकर हरेली के दिन किसानों को पशुओं के लिए वनौषधि उपलब्ध कराते हैं। गांव के सहाड़ादेव अथवा ठाकुरदेव के पास यादव समाज के लोग जंगल से लाई गई जड़ी-बूटी उबाल कर किसानों को देते हैं। इसके बदले किसानों द्वारा चावल, दाल आदि उपहार में देने की परंपरा रही हैं।
सावन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरेली पर्व मनाया जाता है। हरेली का आशय हरियाली ही है। वर्षा ऋतु में धरती हरा चादर ओड़ लेती है। वातावरण चारों ओर हरा-भरा नजर आने लगता है। हरेली पर्व आते तक खरीफ फसल आदि की खेती-किसानी का कार्य लगभग हो जाता है। माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं। कृषि औजारों को धोकर, धूप-दीप से पूजा के बाद नारियल, गुड़ का चीला भोग लगाया जाता है। गांव के ठाकुर देव की पूजा की जाती है और उनको नारियल अर्पण किया जाता है।
हरेली तिहार के साथ गेड़ी चढ़ने की परंपरा अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग सभी परिवारों द्वारा गेड़ी का निर्माण किया जाता है। परिवार के बच्चे और युवा गेड़ी का जमकर आनंद लेते है। गेड़ी बांस से बनाई जाती है। दो बांस में बराबर दूरी पर कील लगाई जाती है। एक और बांस के टुकड़ों को बीच से फाड़कर उन्हें दो भागों में बांटा जाता है। उसे नारियल रस्सी से बांध़कर दो पउआ बनाया जाता है। यह पउआ असल में पैर दान होता है  जिसे लंबाई में पहले कांटे गए दो बांसों में लगाई गई कील के ऊपर बांध दिया जाता है। गेड़ी पर चलते समय रच-रच की ध्वनि निकलती हैं, जो वातावरण को औैर आनंददायक बना देती है। इसलिए किसान भाई इस दिन पशुधन आदि को नहला-धुला कर पूजा करते हैं। गेहूं आटे को गंूथ कर गोल-गोल बनाकर अरंडी या खम्हार पेड़ के पत्ते में लपेटकर गोधन को औषधि खिलाते हैं। ताकि गोधन को विभिन्न रोगों से बचाया जा सके। गांव में पौनी-पसारी जैसे राऊत व बैगा हर घर के दरवाजे पर नीम की डाली खोंचते हैं। गांव में लोहार अनिष्ट की आशंका को दूर करने के लिए चौखट में कील लगाते हैं। यह परम्परा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान है।
हरेली के दिन बच्चे बांस से बनी गेड़ी का आनंद लेते हैं। पहले के दशक में गांव में बारिश के समय कीचड़ आदि हो जाता था उस समय गेड़ी से गली का भ्रमण करने का अपना अलग ही आनंद होता है। गांव-गांव में गली कांक्रीटीकरण से अब कीचड़ की समस्या काफी हद तक दूर हो गई है। हरेली के दिन गृहणियां अपने चूल्हे-चौके में कई प्रकार के छत्तीसगढ़ी व्यंजन बनाती है। किसान अपने खेती-किसानी के उपयोग में आने वाले औजार नांगर, कोपर, दतारी, टंगिया, बसुला, कुदारी, सब्बल, गैती आदि की पूजा कर छत्तीसगढ़ी व्यंजन गुलगुल भजिया व गुड़हा चीला का भोग लगाते हैं। इसके अलावा गेड़ी की पूजा भी की जाती है। शाम को युवा वर्ग, बच्चे गांव के गली में नारियल फेंक और गांव के मैदान में कबड्डी आदि कई तरह के खेल खेलते हैं। बहु-बेटियां नए वस्त्र धारण कर सावन झूला, बिल्लस, खो-खो, फुगड़ी आदि खेल का आनंद लेती हैं।
साभार : आलेख - छगन लोन्हारे

(आलेख : संजय पराते)
शौर्यपथ आलेख /नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) की निष्पक्ष तरीके से विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं को आयोजित कर पाने की असफलता ने न केवल इसमें घुसे भ्रष्टाचार को उजागर किया है, बल्कि हमारी समूची शिक्षा प्रणाली के ढहने की ओर भी इशारा किया है ; जिसे नई शिक्षा नीति से सबको संस्कारित करने और कानून के जरिए पेपर लीक जैसे मामलों पर लगाम लगाने के ढपोरशंखी दावे की आड़ में दबाने की कोशिश की जा रही है। पूरे मामले को 'नैतिकता' के आवरण में ढंका जा रहा है और इन मामलों में राजनीति न करने की अपील विपक्ष और देश की जनता से की जा रही है, जबकि शिक्षा प्रणाली का मुद्दा राजनीति से जुड़ा सीधा मसला है। असली मुद्दा यह है कि देश की शिक्षा प्रणाली को सार्वभौम और सार्वजनिक बनाया जाएगा या फिर अन्य क्षेत्रों की तरह ही उसका संपूर्ण निजीकरण किया जाएगा और उसे 'माल' बनाकर कुछ व्यक्तियों और समूहों की इजारेदारी कायम की जाएगी। इस मूल सवाल से भाजपा और उसके संगी-साथी बचकर निकल जाना चाहते हैं।
पहले नीट (एनआईआईटी) के बारे में। जिस परीक्षा के नतीजे 14 जून को आने वाले थे, उसके नतीजे 4 जून को घोषित करना और उस समय, जब पूरा देश लोकसभा चुनाव नतीजों के हो-हल्ले में फंसा हो, आश्चर्य की बात थी। इससे आसानी से नतीजा निकाला जा सकता है कि परीक्षा के नतीजों को किसी शोरगुल में दबाने की साफ साजिश थी। परीक्षा के नतीजों में जो गड़बड़ियां सामने आई, वह इस बात को प्रमाणित करने के लिए काफी हैं।
किन गड़बड़ियों से इस परीक्षा के नतीजों पर प्रश्न चिन्ह लगे हैं? (री-नीट के बाद) कम-से-कम 61 ऐसे उम्मीदवार हैं, जिन्हें 720 में से 720 अंक मिले हैं, जबकि पिछले वर्ष आयोजित परीक्षा में ऐसे केवल 2 लोग ही थे। कई ऐसे उम्मीदवार हैं, जिन्हें 718 और 719 अंक मिले थे। गणितीय दृष्टि से, इस प्रकार के अंक मिलना असंभव है, क्योंकि बहु वैकल्पिक प्रश्नों वाली परीक्षा में प्रत्येक सही उत्तर के लिए 4 अंक निर्धारित थे और प्रत्येक गलत उत्तर देने पर कुल सही प्राप्तांकों में से एक अंक कटना था। इस प्रकार, एक गलत उत्तर के साथ पूरा सही पेपर बनाने वाले उम्मीदवार को 715 अंक ही मिल सकते थे। एनटीए का स्पष्टीकरण है कि ऐसा 1563 उम्मीदवारों को ग्रेस मार्क्स मिलने के कारण हुआ है, जिन्हें परीक्षा के लिए निर्धारित समय से कम समय मिला था, या उन्हें गलत उत्तर देने के लिए इसलिए ग्रेस अंक मिले हैं, क्योंकि कक्षा बारहवीं की एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तक में अशुद्धियां थी और गलत जानकारी दी गई थी। लेकिन परीक्षा की मूल योजना में ग्रेस मार्क्स की कोई अवधारणा नहीं थी और इससे काफी पीछे के उम्मीदवार सामने आ गए थे। बाद में एनटीए ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ग्रेस मार्क्स वापस लेकर ऐसे उम्मीदवारों के लिए पुनः परीक्षा आयोजित की है। यह भी अब विवाद के दायरे में है कि ऐसे उम्मीदवारों के लिए परीक्षा आयोजित करना उचित था, क्योंकि उम्मीदवारों को कम समय मिलने की बात संबंधित परीक्षा केंद्रों के प्रभारियों ने नकार दी है। इससे यह सवाल सहज ही उठ खड़ा होता है कि क्या कुछ परीक्षा केंद्रों को कुछ विशेष उम्मीदवारों के लिए बनाया गया था, जहां उन्हें अनुचित लाभ दिलाया जा सके? यह आशंका इसलिए भी सही है कि कुछ परीक्षा केंद्रों के कुछ उम्मीदवारों को लाइन से ऐसे उच्च अंक मिले हैं। इसके साथ ही, सरकार के निर्देशन में एनसीईआरटी द्वारा तैयार हमारे पाठ्य पुस्तकों की सटीकता पर भी प्रश्न चिन्ह लग गया है। इस घपले-घोटाले के उजागर होने के बाद ताबड़तोड़ तरीके से एक के बाद एक दूसरी प्रतियोगी परीक्षाएं भी बिना किसी उजागर कारण के स्थगित की गई है, जिससे यह स्पष्ट अनुमान लगाया जा सकता है कि इन परीक्षाओं के पर्चे भी लीक हो चुके थे और कुछ उम्मीदवारों को नाजायज फायदा दिलाने की सेटिंग हो चुकी थी।
एनटीए जिन प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन करता है, उनमें हर साल लगभग 1.25 करोड़ परीक्षार्थी शामिल होते हैं और नीट के घपले के साथ अन्य स्थगित परीक्षाओं से कम से कम 50 लाख विद्यार्थी प्रभावित हुए हैं और इसलिए देश का छात्र समुदाय नीट को पुनः आयोजित करने तथा एनटीए को खत्म किए जाने की मांग कर रहा है, तो इसमें गलत कुछ नहीं है। पूरे देश के स्तर पर आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं में भ्रष्टाचार, अपारदर्शिता और प्रक्रियागत विफलता से केंद्र सरकार भी बरी नहीं हो सकती, इसलिए सभी प्रभावित छात्रों को केंद्र सरकार द्वारा मुआवजा दिए जाने और शिक्षा मंत्री के इस्तीफे की मांग भी जोर पकड़ती जा रही है। इस मामले में इंडिया समूह से जुड़े राजनैतिक दलों के छात्र संगठन भी एकजुट हो रहे हैं, जिन्होंने 3 जुलाई को जंतर मंतर में एक बड़ा विरोध प्रदर्शन करने के बाद 4 जुलाई को अखिल भारतीय छात्र हड़ताल का आह्वान किया है।


अब एनटीए के बारे में। वर्ष 2018 तक नीट और नेट जैसी परीक्षाएं सीबीएसई द्वारा आयोजित की जाती थी, जो केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित होती है और जिसकी सीधी जवाबदेही जनता के प्रति बनती है। 2018 के बाद इन परीक्षाओं के आयोजन की जिम्मेदारी एनटीए को सौंप दी गई, जो सोसायटी एक्ट के तहत मात्र एक पंजीकृत संस्था है। हालांकि इसके सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार करती है, लेकिन यह यह संस्था सरकार के किसी अधिनियम से शासित नहीं है और इसलिए आम जनता के प्रति इसकी कोई जवाबदेही भी नहीं बनती। अगस्त 2023 में प्रदीप जोशी नाम के व्यक्ति को इस संस्था के चेयरमैन पद पर मोदी सरकार ने बैठा दिया, जिनके पास विशिष्ट योग्यता यह थी कि वे आरएसएस के "खांटी स्वयंसेवक और पूर्व एबीवीपी नेता" थे, (नीट कांड के बाद अब इस महानुभाव को हटा दिया गया है)। इस संस्था के पास 'अपना' कहने वाले कर्मचारियों की संख्या केवल 25 हैं और अन्य निजी संस्थाओं (आऊट सोर्सिंग) के जरिए ही यह पूरे देश में परीक्षाओं का आयोजन करती है। ये संस्थाएं किस स्तर पर किस प्रकार की गड़बड़ियों, हेर-फेर और भ्रष्टाचार में शामिल है, इसका पता तब ही चलता है, जब लाखों परीक्षार्थियों का भविष्य बर्बाद हो चुका होता है और इसकी जिम्मेदारी लेने के लिए कोई सामने नहीं आता, सरकार भी नहीं। साफ है कि मोदी राज में एक सार्वजनिक और पारदर्शी परीक्षा प्रणाली का आऊट सोर्सिंग के जरिए पूरी तरह निजीकरण कर दिया गया है, जिसमें पारदर्शिता और उत्तरदायिता का तत्व पूरी तरह से गायब है।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच सालों में 15 राज्यों में कम-से-कम 48 पेपर लीक के मामले सामने आए हैं और इसने लगभग 1.2 लाख पदों के लिए कम-से-कम 1.4 करोड़ आवेदकों के जीवन को प्रभावित किया है। इन सभी में राज्य स्तरीय परीक्षाओं का संचालन आऊट सोर्सिंग के जरिए किया गया था। साफ है कि निजीकरण की राह पर चलने वाली राज्य सरकारों ने भी स्वच्छ, निष्पक्ष और पारदर्शी परीक्षाओं के आयोजन की अपनी जिम्मेदारी को छोड़ दिया है। हर क्षेत्र का निजीकरण मोदी सरकार का मूल मंत्र है और एनटीए के जरिए परीक्षाओं का आयोजन इसी नीति का हिस्सा है। वैसे भी मोदी सरकार उच्च पदों पर भर्ती का अधिकार सीधे अपने हाथ में लेना चाहती है, तो प्रतियोगी परीक्षाओं की भी कोई प्रासंगिकता नहीं रहने वाली है।


अब एक श्रद्धांजलि ढहती शिक्षा प्रणाली के लिए। हालांकि शिक्षा एक विषय के रूप में संविधान की समवर्ती सूची में है, लेकिन मोदी सरकार द्वारा इस क्षेत्र में भी संघवाद का उल्लंघन करके राज्यों का अधिकार हड़पा जा रहा है। मोदी सरकार द्वारा लागू की जा रही नई शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य शिक्षा का निजीकरण करना और पाठ्यक्रम में आरएसएस के सांप्रदायिक नजरिए को घुसाना, और इस प्रकार सार्वभौमिक और वैज्ञानिक शिक्षा प्रदान करने के लिए आवश्यक धर्मनिरपेक्ष वस्तुपरकता का त्याग करना है। नतीजन, पूरे देश में सरकारी स्कूल बंद हो रहे हैं और निजी स्कूलों की संख्या बढ़ रही है। मोदी सरकार के आंकड़ों के अनुसार ही, देश में वर्ष 2018-19 में स्कूलों की संख्या 15,50,476 थी, जो वर्ष 2021-22 में घटकर 14,89,115 रह गई थी। दो वर्षों में ही 61,361 स्कूलों के कम होने का अर्थ है, 5-6 करोड़ बच्चों का शिक्षा क्षेत्र से बाहर होना। निश्चित ही, ये बच्चे कमजोर सामाजिक-आर्थिक समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और इनमें से अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों से होंगे। साफ है कि हमारे बच्चों को "संस्कारित" करने का दावा करने वाली यह शिक्षा नीति गरीब और पिछड़े समुदायों के बच्चों को अज्ञानता के अंधकार में ही ढकेलने वाली साबित होने जा रही है। यह नीति उच्च शिक्षा के स्तर से आम जनता को वंचित करने की सोची-समझी नीति है।
जिस प्रकार पौराणिक कथाओं और मिथकों को इतिहास के रूप में स्थापित करने की मुहिम चलाई जा रही है, वह देश के जन मानस को आधुनिक और वैज्ञानिक विश्व दृष्टि से दूर करने का ही काम करेगी। इसी संदर्भ में, एनसीईआरटी की पाठ्य पुस्तकों में त्रुटियों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। एक स्वस्थ और वैज्ञानिक शिक्षा हमारे देश की 'विविधता में एकता' को बढ़ावा देगी, लेकिन एक पोंगापंथी और सांप्रदायिक शिक्षा 'विविधता में एकता को छिन्न-भिन्न' करेगी, सौहार्द्र और सद्भाव की जगह नफरत का प्रचार करेगी। मोदी-शाह के नेतृत्व में संघी गिरोह शिक्षा नीति का एक ऐसे हथियार के रूप उपयोग करना चाहता है, जिसके जरिए धर्मनिरपेक्ष भारत को एक "संकीर्णतावादी और फासीवादी हिंदू राष्ट्र" में तब्दील किया जा सके।

शिक्षा नीति को एक सांप्रदायिक हथियार में ढालकर पूरी शिक्षा प्रणाली को बर्बाद करने और परीक्षा प्रणाली का निजीकरण करके चंद धनाढ्यों के लिए 'अवसर' सुनिश्चित करने की मोदी सरकार की साजिशों के खिलाफ आम जनता और इस देश के छात्र समुदाय को लड़ना होगा। 4 जुलाई को आहूत अखिल भारतीय छात्र हड़ताल इसकी अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है। यह संघर्ष मोदी सरकार के कुकर्मों को अनकिया करने तक जारी रहने की घोषणा है।
(लेखक : संजय पराते स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया, मध्यप्रदेश के पूर्व अध्यक्ष और अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष)*

  राजनीती / शौर्यपथ / प्रदेश में एक पद मंत्रालय का खाली है एवं दूसरा पद (मंत्री बृजमोहन अग्रवाल) सांसद चुनाव जितने के बाद खाली होने की राह देख रहा है जिस पर संशय के बादल नजर आ रहे है वैसे अभी 18 जून तक समय है किन्तु राजनीती में चंद मिनटों में ही फैसले का असर दशा और दिशा सब बदल जाती है .
  वर्तमान समय में माना जाए तो एक पद खाली है जिस पर सभी की नजर है ऐसे में दुर्ग शहर विधायक के जन्मदिन का कार्यक्रम पृथ्वी पैलेसपर होना शहर में चर्चा का विषय है . पृथ्वी पैलेस में जन्मदिन मनाने पर अलग अलग चर्चाओं का बाजार गर्म है . दुर्ग जिले में ऐसा पहली बार हो रहा है कि किसी विधायक के द्वारा जन्मदिन का उत्सव घर में ना मना कर होटल में वो भी शहर से दूर और महंगे होटल में शुमार पृथ्वी पैलेस जिसके एक दिन का किराया ही लाखो रूपये का है जहाँ हजार पांच सौ लोगो का खाना ही लाखो में पहुँच जाता है ऐसे में चर्चा के अनुसार चार से पांच हजार लोगो का न्योता और कई व्ही आई पी लोगो के आने की संभावना व्यक्त की जा रही है जिससे राजनितिक हलको में यह चर्चा है कि साय सरकार के मंत्री मंडल विस्तार में गजेन्द्र यादव का नाम लगभग तय माना जा रहा है और यह पार्टी उसी कड़ी का एक हिस्सा के रूप में देखा जा रहा है . वही दूसरी तरफ ऐसी भी चर्चा है कि सक्रियता के मामले में क्षेत्र की जनता विधायक यादव से नाखुश है चंद लोगो से घिरे होने और संगठन तथा निगम के जनप्रतिनिधियों से दुरी मंत्री पद की राह में एक बड़ा स्पीड ब्रेकर नजर आ रहा है संघ से पिता का गहरा सम्बन्ध कुछ सकारात्मक पहल के रूप में भी अब नजर नहीं आ रहा . पिछले कुछ समय से संघ और भाजपा संगठन में कोल्ड वार खुलकर सामने आ गए है . राष्ट्रिय अध्यक्ष जे पी नड्डा का ब्यान अब हमें संघ की जरुरत नहीं वही संघ प्रमुख का भाजपा संगठन के चुनाव लड़ने की प्रणाली पर दिया गया बयान से यह भी उम्मीद नहीं की जा सकती की संघ से मंत्री पद के लिए दबाव बनाया जाएगा . ऐसे में पहली बार विधायक निर्वाचित होने के बाद शहर विधायक का शहर से दूर जन्मदिन मनाये जाने पर सबकी नजर है . शहर भर में जिस तरह से पूर्व विधायक , सांसद एवं अन्य जनप्रतिनिधियों के पोस्टर जन्मदिन के अवसर पर लगे होते थे ऐसा वर्तमान में देखने को नहीं मिला , मीडिया से दुरी गिनती के अखबारों में जन्मदिन कि बधाई सन्देश जिसमे से प्रकाश सांखला और इन्द्रजीत सिंग (छोटू भैया ) हैवी ट्रांसपोर्ट के आलावा किसी स्थानीय या मझोले अखबार , इलेक्ट्रोनिक मिडिया जैसे प्लेट फ़ार्म में सालो बाद दुर्ग में एक नए चेहरे के जन्मदिन की कही झलक नजर नहीं आ रही फिर भी सभी की नजर शाम को होने वाले उत्सव और उसके बाद के नतीजो पर है .....


शौर्यपथ समाचार परिवार की तरफ से दुर्ग शहर विधायक गजेन्द्र यादव को जन्मदिन कि हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाये

 शौर्यपथ । वर्तमान में देश में दो तरह के पत्रकार माने जा रहे हैं एक पत्रकार समुह वह है जो गोदी मिडिया से अलंकृत है वही दूसरा पत्रकार समुह गोदी मिडिया विरोधी और इस तरह दो समूहों के बीच एक समाचार के दो पहलू पेश किए जा रहे है।
 अभी हाल में ही एक ऐसा मामला सामने आया जिसके कारण एक बार फ़िर राजनितिक भूचाल आ गया। जेडीएस के सांसद प्रजव्वल रेवन्ना के ऊपर यौन उत्पीडन का मामला सामने आने के बाद इंडिया गठबंधन फिर से एनडीए के खिलाफ आक्रामक हो गया ।
 बता दे कि जेडीएस और भाजपा का गठबंधन है ऐसे में जेडीएस नेता पर यौन उत्पीडन का मामला सामने आने से कर्नाटक सहित देश में विपक्षियों द्वारा एनडीए सरकार पर जबरदस्त आक्रमण किया जा रहा इसी बीच गोदी मिडिया की चाटुकारिता के लिए जानी जाने वाली रुबिका लियाकत अली के सोशल मीडिया x पर किए पोस्ट में कर्नाटक पुलिस पर आरोप लगाने के बाद फिर ट्रोल हो रही । रुबिका लियाकत अली को इस पोस्ट में जो जवाब मिल रहे उससे यही प्रतीत हो रहा है कि देश की मशहूर पत्रकार का स्तर कितना निम्न हो गया । पोस्ट में देश से बाहर जाने का आरोप प्रदेश पुलिस पर लगा रही जबकि एक साधारण व्यक्ति को भी यह ज्ञात है कि देश से बाहर जाने के लिए प्रदेश सरकार से अनुमति नहीं लेनी पड़ती यह अनुमति केंद्रीय एजेंसी द्वारा प्रदत्त होती है ।
 ना ही केन्द्र सरकार और न ही प्रदेश सरकार या कोई भी राजनैतिक दल बलात्कार, यौन उत्पीडन जैसे आरोपियों के पक्ष में खड़ा होता है किंतु रुबिका लियाकत अली का एक प्रदेश सरकार पर आरोप लगाना चाटुकारिता ही प्रतीत हो रहा । आज ऐसे चाटुकार पत्रकार की बदौलत ही दुनिया में भारत की पत्रकारिता का गिरता स्तर देश को बदनाम कर रहा किंतु चाटुकारिता की सीमा को पार करते ऐसे पत्रकार सिर्फ अपने लाभ की दिशा में सोच इस पेशे को बदनाम कर रहे । जिस तरह रुबिका लियाकत अली ने X पर पोस्ट के साथ प्रजवन्न की साधारण सी फोटो अपलोड की उसके बाद उसके इस पोस्ट के जवाब में कई लोगो द्वारा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ प्रज्जवन की फोटो लोड कर रहे तो कोई कुछ दिनों पहले लोकसभा चुनाव में प्रजवन् के लिए पीएम मोदी की वोट की अपील के वीडियो लोड कर रहे ।
  रुबिका लियाकत अली के द्वारा किसी एक पर आरोप लगाने के बाद इसमें देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी सोशल मीडिया में शामिल कर लिया गया । इस तरह कही ना कही पीएम मोदी को भी इस मामले में शामिल करने का श्रेय रुबिका लियाकत अली जैसे प्रकार को ही जाता है ।
 जबकि इस मामले में भाजपा नेता ने कहा कि
बीजेपी नेता देवराजे गौड़ा ने किए ये दावे
बीजेपी नेता देवराजे गौड़ा 2023 के विधानसभा चुनाव में होलेनरसिपुरा से उम्मीदवार थे. उन्होंने भी दावा किया है कि उन्होंने पिछले साल दिसंबर में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र को चिट्ठी लिखकर प्रज्वल रेवन्ना समे एचडी देवेगौड़ा परिवार के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए थे.
देवराजे गौड़ा ने दावा किया कि उन्हें एक पेन ड्राइव मिली थी. इसमें महिलाओं के 2976 वीडियो थे. इन वीडियो क्लिप के जरिए महिलाओं को ब्लैकमेल किया जा रहा था, ताकि उन्हें सेक्सुअल एक्टिविटी के लिए मजबूर किया जा सके. देवराजे गौड़ा कहते हैं, "अगर हम जेडीएस के साथ गठबंधन करते हैं. अगर हम लोकसभा चुनाव के लिए हासन में जेडीएस उम्मीदवार को नामांकित करते हैं, तो इन वीडियो को हमारे खिलाफ ब्रह्मास्त्र के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. इस तरह हम पर दाग लग जाएगा कि हमने ऐसे परिवार के साथ गठबंधन किया, जिसके सदस्यों पर बलात्कार के आरोप हैं. यह राष्ट्रीय स्तर पर हमारी पार्टी की छवि के लिए एक बड़ा झटका होगा.''
प्रज्वल रेवन्ना ने इस मामले में क्या कहा?
33 साल के प्रज्वल रेवन्ना ने इन वीडियो को सिरे से खारिज किया है. उनका कहना है कि उन्हें बदनाम करने के मकसद से वीडियो के साथ छेड़छाड़ की गई है. वीडियो वायरल होने के बाद उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. शनिवार सुबह वह जर्मनी के लिए रवाना हो गए. प्रज्वल रेवन्ना के पिता एचडी रेवन्ना पर भी उनकी घरेलू सहायिका ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं. एचडी रेवन्ना होलेनरासीपुर निर्वाचन क्षेत्र से JDS विधायक हैं.

   

बस्तर लोकसभा चुनाव विशेष 2014

 संजय पराते की कलम से ...

   शौर्यपथ विशेष / वे डरे हुए हैं, बदहवास है। बावजूद इसके कि आंकड़े उनके पक्ष में है, इस बार जमीनी हकीकत कुछ और बयां कर रही है। इस हकीकत को वे भी पहचान रहे हैं। इसलिए वे और भी डरे हुए हैं, बदहवास हैं। मोदी के जुमलों पर न्याय का हथौड़ा भारी पड़ रहा है।
  बस्तर लोकसभा में विधानसभा की 8 सीटें हैं। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में तीन सीटें -- बस्तर, बीजापुर और कोंटा -- कांग्रेस ने जीती हैं, तो चार सीटों -- कोंडागांव, नारायणपुर, जगदलपुर और चित्रकोट -- पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। इन 8 सीटों पर कांग्रेस को सम्मिलित रूप से 4,01,538 वोट तथा भाजपा को 4,81,151 वोट मिले थे। इस प्रकार भाजपा 79,613 वोट और 7.91% वोटों के अंतर से आगे थी।
  वर्ष 2019 के पिछले लोकसभा चुनाव के परिणाम से विधानसभा चुनाव के ये परिणाम भाजपा के लिए आश्वस्तिदायक हैं। तब भाजपा को लोकसभा चुनाव में 3,63,545 वोट ही मिले थे और कांग्रेस को 4,02,527 वोट। इस प्रकार कांग्रेस के दीपक बैज ने भाजपा के बैदूराम कश्यप को 38,982 वोट और 4.27% के अंतर से हराया था। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने पिछली बार जिन दो सीटों पर विजय पाई थी, उनमें से एक बस्तर थी।
   इस प्रकार बस्तर लोकसभा में पांच साल पहले कांग्रेस से 4.27% वोटों से पीछे रहने वाली भाजपा आज 7.91% वोट से आगे हैं। निश्चित ही ये आंकड़ें प्रभावशाली हैं और भाजपा के पक्ष में हैं। इसके बावजूद भाजपा के चेहरे पर चिंता की लकीरें हैं और वह पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं। क्यों? इसका एक कारण तो मतदाताओं का वह असामान्य व्यवहार ही है, जिसने दिसंबर 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को भारी भरकम जीत दिलाने के चार माह बाद ही अप्रैल 2019 में हुए लोकसभा के चुनावों में उसे पटकनी देने में कोई संकोच नहीं किया था।  इस बार भी मतदाता कहीं ऐसा ही 'खेला' नहीं कर दें! दूसरा कारण, लगातार दस सालों से केंद्र में सत्ता में बने रहने  और 2013-18 के दौरान केंद्र और राज्य दोनों ही स्तर पर सत्ता में बने रहने से पैदा सत्ता-प्रतिकूलता का कारक है, जिसने पिछली बार राज्य की सत्ता से उसे 10% वोटों के अंतर से बाहर कर दिया था। तीसरा कारण, स्वयं भाजपा की वे नीतियां हैं, जिससे राज्य की जनता और खासकर बस्तर की आदिवासी और गरीब जनता भुगत रही है।
  इसी बदहवासी ने भाजपा को मोदी की कथित गारंटी के बावजूद अपना उम्मीदवार बदलने को मजबूर किया है। इस बार उसने एक भूतपूर्व सरपंच महेश कश्यप को टिकट दिया है, जिसकी राजनैतिक पृष्ठभूमि यही है कि वह संघ के आनुषंगिक संगठनों बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद से जुड़ा रहा है और धर्मांतरण विरोधी आंदोलनों की अगुआई करते हुए ईसाई आदिवासियों पर हमले करता रहा है। इस चेहरे को सामने रखकर संघ-भाजपा ने हिन्दुत्व का कार्ड खेलने की कोशिश की है। कांग्रेस ने भी अपना प्रत्याशी बदला है और उसने लगातार 6 बार विधायक निर्वाचित हुए और भूपेश मंत्रिमंडल के आबकारी मंत्री कवासी लखमा को मैदान में उतारा है। कांग्रेस प्रत्याशी का व्यक्तित्व निश्चित ही भाजपा पर भारी पड़ रहा है।
   बस्तर में मोदी की 8 अप्रैल को सभा हो चुकी है। राम मंदिर, धर्मांतरण और असफल हो चुकी केंद्रीय योजनाओं की जुगाली करने के सिवा उनके पास कोई मुद्दा नहीं था। मोदी गारंटी का जुमला भी था, लेकिन बेरोजगारों के लिए रोजगार, किसानों के लिए एमएसपी और कर्जमुक्ति, आदिवासियों के लिए राज्य प्रायोजित उत्पीड़न से मुक्ति और वनाधिकार, पेसा और मनरेगा कानूनों के क्रियान्वयन की गारंटी सिरे से गायब थी। पिछली कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार पर तो वे गरज-तरज रहे थे, लेकिन अपने किए दुनिया के सबसे बड़े चुनावी बांड घोटाले पर चुप थे। उनके भाषण इस बात के संकेत थे कि एक व्यक्ति और एक दल के शासन को लादने की पूरी गारंटी है। वहीं 13 अप्रैल को हुई अपनी सभा में राहुल गांधी का पूरा भाषण मुद्दों पर केंद्रित था। आदिवासियों, बेरोजगार नौजवानों, गरीबी की समस्या उनके भाषण के केंद्र में थी और भाजपा की सांप्रदायिक नीतियों पर उन्होंने अपना निशाना साधा।
  रायपुर के वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सोनी कहते हैं कि बस्तर के आदिवासियों को धारा 370 के हटने या राम मंदिर के निर्माण से कोई मतलब नहीं है। इन मुद्दों को सामने रखकर भाजपा को अपनी जीत का सपना नहीं देखना चाहिए। लेकिन पत्रकार पूर्णचंद्र रथ का कहना है कि बस्तर लोकसभा क्षेत्र के शहरी हिस्से (जो अपेक्षाकृत बहुत छोटा है) में भाजपा का प्रभाव कांग्रेस से ज्यादा है।
  जगदलपुर के एक नौजवान कांग्रेसी कार्यकर्ता भुजित दोशी कहते है कि मोदी की सभा के मुकाबले राहुल की सभा का बड़ी होना बताता है कि बस्तर में हवा किस ओर बह रही है। महिलाओं के उत्थान के लिए हर वर्ष उन्हें 1 लाख रुपए देने के वादे के साथ ही आज राहुल गांधी ने किसानों की कर्जमुक्ति, उन्हें एमएसपी की कानूनी गारंटी देने और नौजवानों से खाली पदों को भरने का जो वादा किया है, वह मोदी की किसी भी गारंटी पर भारी पड़ेगी।
  दरभा के आदिवासी नौजवान संतोष यादव ने कहा कि राज्य में भाजपा सरकार आने के बाद नक्सलियों के दमन के नाम पर आदिवासियों का उत्पीड़न बढ़ गया है और भाजपा सरकार फिर से नए रूप में सलवा जुडूम को लाना चाहती है। लोहंडीगुड़ा के आदिवासी टाटा के लिए बंदूक की नोंक पर उनकी जमीन छीनने की रमन सरकार की करगुजारी को अभी तक नहीं भूले हैं। नगरनार के स्टील प्लांट को मोदी सरकार आज भी निजीकरण की सूची में रखे हुए हैं। इसलिए बस्तर का नौजवान मोदी की किसी भी गारंटी पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं है। हंसते हुए वे कहते हैं -- "हाथी के दांत दिखाने के और होते हैं, खाने के और। मोदी गारंटी का यही हाल है।" उल्लेखनीय है कि रमन राज में संतोष नक्सलियों के साथ संबंध रखने के झूठे आरोप में कई माह जेल काट चुके हैं।
  लेकिन फिर वही सवाल : जीतेगा कौन? क्या कांग्रेस 80,000 वोटों की खाई को पाटने में सफल हो पाएगी?पत्रकार रितेश पांडे एक मशहूर मजाक की याद दिलाते हैं : जनता तो चाहती है कि कांग्रेस जीते, लेकिन यदि कांग्रेसी ही भाजपा को जीताना चाहे तो...? वे कहते हैं कि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार का यह एक बड़ा कारण था। लेकिन अब कांग्रेसी इस हार से सबक लेकर एकजुट होंगे और मोदी के जुमलों पर न्याय का हथौड़ा भारी पड़ेगा।

साभार - संजय पराते मोबाइल न.  94242-31650

शौर्यपथ राजनीति । लोकसभा चुनाव में दुर्ग लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस ने राजेन्द्र साहू को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। देश में 7 चरणों में हो रहे चुनाव में दुर्ग लोकसभा क्षेत्र में तीसरे चरण में मतदान होना है ऐसे में भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों के पास काफी समय है प्रचार के लिए । एक तरफ भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी विजय बघेल जिनकी चुनावी प्रचार की शैली निरंतर तेजी से बढ़ रही है और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता सम्मेलन में दिख रही भीड़ भी यह बता रही है कि भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी विजय बघेल अपने पिछले सर्वाधिक मतों से जीत के रिकॉर्ड को तोड़ सकते हैं वहीं दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र साहू भी चुनावी प्रचार प्रसार में लग चुके हैं परंतु राजन साहू के साथ बड़ी परेशानी है कि पिछले 5 सालों में कांग्रेस सरकार के समय पूर्व मुख्यमंत्री के करीबी रहने के बावजूद भी राजेंद्र साहू ने कोई ऐसी उपलब्धि हासिल नहीं की जिसे जनता के सामने बताया जा सके हालांकि राजेंद्र साहू किसी संवैधानिक पद में नहीं रहे कांग्रेस सरकार के आखिरी सालों में जरूर जिला सहकारी केंद्रीय ग्रामीण बैंक के अध्यक्ष रहे परंतु साल भर के कार्यकाल में किसी बड़ी उपलब्धि की चर्चा नहीं हुई वहीं कुछ तथाकथित कांग्रेसी जो पत्रकारिता का चादर ओढ़े चाटुकारिता का प्रदर्शन करते हुऐ यह जरूर दिखाने की कोशिश किया जा रहा है कि 10 साल पहले राजेंद्र साहू ने बड़े जोश खरोश उसके साथ चुनाव लड़ा और जीत के करीब पहुंचे थे परंतु 10 साल पहले की स्थिति और आज की स्थिति में काफी अंतर है वर्तमान समय में भारतीय जनता पार्टी की संगठात्मक क्षमता काफी मजबूत हुई है वहीं कांग्रेस पार्टी में अभी भी आपसी मतभेद अपनी चरम सीमा पर है हाल ही में भारतीय जनता पार्टी कार्यकर्ता सम्मेलन में जिस तरह से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का भाजपा में प्रवेश हुआ जिसमें युवा वर्गों का एक बड़ा जत्था कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुआ वहीं दूसरी ओर राजेंद्र साहू के पास युवक की वैसे टीम नहीं है जो पूरे तन मन से चुनावी प्रचार में राजेंद्र साहू के साथ रहे कांग्रेस कार्यकाल के समय जिस तरह से कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा चखना सेंटर का संचालन ,ठेकेदारी में संलिप्त मदन जैन भी ऋषभ जैन जैसे कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का खुलेआम विषय विधानसभा में कांग्रेस के विरोध में कार्य करने का आप राजेंद्र साहू और वोरा गुट में पोस्टर वार को लेकर आपसी मतभेद और कांग्रेसी का कार्यालय में भ्रष्टाचार में लिप्त कार्यकर्ताओं का कांग्रेस के पक्ष में समर्थन मांगना यह सब राजेन्द्र साहू के लिए चुनावी परिणाम को विपरीत दिशा में ले जा रहा है । 

  दुर्ग विधानसभा क्षेत्र की ही बात करें तो दुर्ग विधानसभा क्षेत्र में नगर निगम के एम आई सी मेंबर अभी तक खुलकर चुनावी प्रचार में सामने नहीं आ पाए हैं वही दुर्ग कांग्रेस के बड़े नेता अरुण वोरा , आर एन वर्मा , शंकर ताम्रकार, धीरज बाकलीवाल जैसे भी उस तरह से चुनावी प्रचार में नहीं दिख रहे हैं जिसकी कांग्रेस को जरूरत है वहीं दूसरी ओर कांग्रेसी पार्षदों का एवं कांग्रेस के समर्थन में पिछले विधानसभा चुनाव में कार्य करने वाले जनप्रतिनिधियो का भाजपा में जाना भी यह इशारा कर रहा है कि वर्तमान में भी वही स्थिति की निर्मित हो रही है जिस तरह से विधानसभा चुनाव में निर्मित हुई थी आपसी गुटबाजी दुर्ग कांग्रेस की एक बड़ी कमजोरी रही है इससे 5 सालों में राजेंद्र साहू ने पाटन क्षेत्र में ही अपना ध्यान आकर्षित किया दुर्ग की राजनीति से वह दूर रहे संगठन में रहते हुए भी पिछले 5 सालों में राजेंद्र साहू द्वारा अपने जमीन के व्यापार को बढ़ाने और पूर्व मुख्यमंत्री के करीबी रहने की चर्चा भी शहर में जोरों पर है । साथी है अभी चर्चा है कि पूर्व मुख्यमंत्री के करीबी होने के बावजूद भी दुर्ग जिला मुख्यालय में ऐसा कोई बड़ा कार्य नहीं हुआ जिसे उपलब्धि के रूप में आम जनता याद कर सके कांग्रेस के युवाओं की टीम की स्थिति भी सभी को नजर आ रही है वर्तमान स्थिति में भी कांग्रेसी युवा टीम भारतीय जनता पार्टी युवा टीम क्या आगे काफी कमजोर प्रतीत हो रही है कांग्रेस प्रत्याशी राजेन्द्र साहू के पास अभी भी काफी समय है सिर्फ साहू समाज की बहुलता के और साहू समाज के प्रत्याशी होने के लाभ को अगर देखते हुए राजेंद्र साहू चुनावी मैदान में उतरते हैं तो कांग्रेस के प्रत्याशी के लिए दुर्ग लोकसभा का यह चुनाव भी एक ऋनात्मक परिणाम के रूप में सामने आएगा ।

लेख का आधार, क्षेत्र में हो रही राजनैतिक चर्चा 

शौर्यपथ । आज 8 मार्च को पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रुप में मनाया जाता है। भारत वर्ष में महिलाओ को आदिशक्ति के रुप में देखा गया है। महिला दिवस पर श्रुति पाठकों के लिए एक लेख समर्पित 

   अक्सर हम जाने अंजाने बहुत सारे बंधनों में बांधकर स्वयं को संचालित करते रहते हैं और इन बंधनों को सामाजिक बन्धन का नाम दे देते हैं। इन अवांछित को ढोते ढोते स्वयं को मानसिक शारीरिक थकाते रहते हैं , टूटते रहते हैं। वास्तव में हमें अपनी सीमाओं से स्वयं को संचालित तो करना होता है पर वह सीमा असीमित हैं ।हम एक संपूर्ण व्यक्तित्व तभी हो सकते हैं जब हम अपने आप को असीमित बना लें । एक स्त्री होना बहुत मुश्किल है और स्त्री का स्त्री बने रहना और भी मुश्किल। स्त्री में स्त्रीत्व का परिपालन करते-करते स्त्री स्त्री बनी रह भी जाती है पर सामाजिक, घरेलू परिप्रेक्ष में स्त्री का इंसान बने रहना ही मुश्किल हो जाता है । पुरुषों से अपेक्षाकृत अधिक जटिल और बल में अपेक्षा थोड़ा कम बनाया है । यूं तो स्त्री स्वयं प्रकृति है और असीमित शक्ति की मालकिन है पर उसे खुद को संरक्षण देना और खुद को स्थापित करना होता है। वह स्वयं तेज पुंज होकर निस्तेज रहते हुए सीमित मैं भी खुद को असीमित कर लेती है।

 

**एक समंदर आंचल में छुपा रक्खा है।

तूफ़ा खामोश हो गए। 

लहरों को भी दवा रखा है। 

पानी को भी जमीं चाहिए ठहरने के लिए ।

मैंने हवाओं में आशियाना बना रखा है ।

क्या बिगड़ेंगे आंधियां मेरा ।

मैंने बवंडर को आंखों में उठा रखा है**

 

यहां मैंने समुद्र की गहराई को स्त्री के मन और उसमें से निकलने वाले अमूल्य रत्नों को उसके गुण की और बवंडर की उपमा उसकी सहनशक्ति से की है।

साभार : अनुराधा *अनु*  

दुर्ग छत्तीसगढ़

Page 1 of 12

हमारा शौर्य

हमारे बारे मे

whatsapp-image-2020-06-03-at-11.08.16-pm.jpeg
 
CHIEF EDITOR -  SHARAD PANSARI
CONTECT NO.  -  8962936808
EMAIL ID         -  shouryapath12@gmail.com
Address           -  SHOURYA NIWAS, SARSWATI GYAN MANDIR SCHOOL, SUBHASH NAGAR, KASARIDIH - DURG ( CHHATTISGARH )
LEGAL ADVISOR - DEEPAK KHOBRAGADE (ADVOCATE)