CONTECT NO. - 8962936808
EMAIL ID - shouryapath12@gmail.com
Address - SHOURYA NIWAS, SARSWATI GYAN MANDIR SCHOOL, SUBHASH NAGAR, KASARIDIH - DURG ( CHHATTISGARH )
LEGAL ADVISOR - DEEPAK KHOBRAGADE (ADVOCATE)
दुर्ग / शौर्यपथ लेख / कांग्रेस जो एक समय देश की सबसे बड़ी पार्टी हुआ करती थी आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है देश में कांग्रेस की स्थिति क्या है ये किसी से छुपी नहीं है असंतोष और आपसी गुटबाजी की मार झेल रही राष्ट्रिय कांग्रेस अपने अस्तित्व को बचाने का निरंतर प्रयास कर रही है . छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस के रास्ट्रीय नेत्रित्व की जीत के बजाये भूपेश नेत्रित्व की जीत ज्यादा रही प्रदेश में १५ साल की भाजपा सत्ता के खिलाफ मुखर हुए तो भूपेश बघेल ही हुए जिसका नतीजा रहा प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी . प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने में सबसे ज्यादा अहम् भूमिका किसी की रही तो वो तात्कालिक प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल और टी.एस.सिंहदेव की मेहनत और सक्रियता का परिणाम रहा सभी को लेकर आगे बढने की निति रही गुटबाजी खत्म करते हे सबके साथ चलने का परिणाम रहा प्रदेश में कांग्रेस की सरकार का सत्ता में काबिज होना .
किन्तु अगर हम क्षेत्र की बात करे तो आज दुर्ग की ऐसी स्थिति है कि दुर्ग में कांग्रेस के कार्यकर्ताओ को महत्तव नहीं दिया जाता यहाँ महत्तव दिया जाता है वोरा के करीबी लोगो को . दुर्ग में आज भी सत्ता आने के बाद कांग्रेसी कार्यकर्त्ता कही ना कही उपेक्षित से है .दुर्ग कांग्रेस में ऐसे लोगो को ही महत्तव दिया जा रहा है जो कांग्रेस के नहीं वोरा के करीबी है . ऐसा नहीं है कि दुर्ग में कांग्रेस नेताओ की कमी है . लक्ष्मण चंद्राकर , प्रतिमा चंद्राकर , राजेन्द्र साहू ,मदन जैन जैसे नेता भी है जिन्होंने अपनी जिन्दगी कांग्रेस के लिए गुजार दी किन्तु आज सत्ता होने के बाद भी कही ना कही ऐसी स्थिति सामने आ ही जाती है जिससे ये आभास हो जाता है कि दुर्ग में कांग्रेस कार्यकर्ता होने से ज्यादा जरुरी है वोरा का करीबी होना . बस वोरा गुट के करीबी हो जाओ फिर पद,कार्य , महत्तव सब मिल जायेगा इसके लिए कांग्रेस का करीबी होना कोई महत्तव नहीं रखता अगर आप वोरा गुट के करीबी है तो आपकी बल्ले बल्ले अगर नहीं तो फिर सर रैली में भीड़ का हिस्सा ही बने रह सकते है . यह बात इस लिए कह सकते है कि पूर्व में ऐसे कई प्रकरण सामने आये है जिसमे कांग्रेस से बढ़कर वोरा गुट हावी रहा . आइये ऐसे कुछ घटनाक्रम देखते है जो पिछले दिनों दुर्ग में हुए जिससे अनुमान लगाना आसान होगा कि दुर्ग में कांग्रेस की भूपेश सरकार की नहीं वोरा गुट की मनमानी चलती है ..
निगम की सत्ता के कंधे में स्वर वोरा गुट
दुर्ग निगम में महापौर के चयन में वोरा गुट ने सभी अनुभवी लोगो को दरकिनार कर पहली बार सक्रीय राजनीती में आये धीरज बाकलीवाल को महापौर की खुर्सी दिला कर वोरा गुट ने निगम के रस्ते शहर में अपने अस्तत्व को बचा लिया आज दुर्ग निगम में नाली के उद्घाटन से लेकर सडक के उद्घाटन में विधायक का निर्देश अनुशंषा रहती है हर कार्य विधायक के निर्देश पर होता है यहाँ तक की कार्य के बंटवारा में भी वोरा बंगले का पूरा हस्तक्षेप रहता है अगर कांग्रेस का कार्यकर्त्ता वोरा बंगले से दूर है तो वो कोई काम का नहीं जिसका परिणाम आज यह है कि विधायक के बंगले के करीबी रहने वाले आज एल्डरमैन भी है , ठेकेदार भी है और निजी कार्यो में सर्वेसर्वा भी है ये अलग बात है कि उनका सक्रीय राजनीती से कोई लेना देना नहीं . वोरा बंगले के करीबी आज एमआईसी प्रभारी भी है ठेकेदारी भी कर रहे है साथ ही किसे कार्य देना है किसे नहीं ये भी निश्चित कर रहे है . आज निगम में सत्ता का यहाँ तक ईस्तमाल हो रहा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी कई मामलो में दरकिनार करने की असफल कोशिश हो रही है जिसका एक छोटा सा उदाहरण २३ अगस्त को ही देखने को मिला . २३ अगस्त प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का जन्मदिन इस दिन दुर्ग ही नहीं पुरे प्रदेश में मुख्यमंत्री के जन्मदिन के बधाई सन्देश लगे थे बड़े बड़े फ्लेक्स बेनर में जिसमे कार्यकर्ताओ ने लाखो खर्च किये किन्तु २४ अगस्त की सुबह शहर से ऐसे सारे पोस्टर बेनर गायब हो गए जिसमे विधायक वोरा के फोटो नहीं थे . तब ये चर्चा रही कि किसी ने होरी कर लिए होंगे अगर चोरी हुए तो ये गजब का ईतिफाक है कि शहर के ऐसे पोस्टर ही गायब हुए जिसमे विधायक के फोटो नहीं थे तो गजब का ईतिफाक है . क्योकि ऐसे ही ईतिफाक भिलाई विधायक देवेन्द्र यादव के पोस्टर के साथ भी हुए वही विधायक वोरा के जन्मदिन के पोस्टर महीनो लगे रहे पर चोरी नहीं हुए लगता है चोर भी मुख्यमंत्री और दुसरे नेताओं से खफा है और विधायक का ख़ास समर्थक . खैर ये ईत्तिफाक कई बार हो चुके है . कई बार तो ऐसा ईतिफाक भी होता है कि निगम का अतिक्रमण दस्ता शहर की साफ़ सफाई और अवैध पोस्टर बैनर निकालने के नाम पर शहर में कार्यवाही करता है तब भी अतिक्रमण दस्ता को दुसरे सारे नेताओ के पोस्टर नजर आते है जिन्हें उतार लिया जाता है किन्तु अवैधानिक तरीके से लगे विधायक के पोस्टर का तेज ऐसा रहता है जो दिखाई नहीं देता .
अनुभवी जनप्रतिनिधि को दरकिनार - निगम की सत्ता की चाबी कहने को तो धीरज बाकलीवाल के हाँथ में है किन्तु सिर्फ नाम के महापौर बन कर रह गए धीरज बाकलीवाल क्योकि शहर के हर कार्य का निर्देश विधायक वोरा ही देते है . आज दुर्ग भी भिलाई की तरह हो गया है जैसे भिलाई में विधायक एवं महापौर देवेन्द्र यादव लिखा जाता है और हर कार्य की अनुशंषा या सोंच एक ही व्यक्ति की रहती है ठीक उसी तरह दुर्ग निगम का हाल है हर कार्य की अनुशंषा या सोंच विधायक वोरा की ही रहती है महापौर धीरज बाकलीवाल सिर्फ एक नाम है और कुछ भी नहीं ऐसा हम नहीं कहते ऐसा कहने वाले दुर्ग के कई कांग्रेसी है कई जनप्रतिनिधि है जो ये बात कहते आम देखे जा सकते है . धीरज बाकलीवाल जो महापौर बनने से पूर्व एक व्यापारी थे जिनका सक्रीय राजनीती से कम ही वास्ता रहा एक मिलनसार और हंसमुख व्यक्ति की छवि रही जो सालो से कांग्रेस के नहीं वोरा परिवार के करीबी रहे है आज वोरा बंगले के कारण ही प्रतम बार चुनावी रण में विजयी होकर महापौर की खुर्सी पर विराजित है ऐसे में स्वाभाविक है कि वोरा गुट को ज्यादा महत्तव देंगे .
दुर्ग का निष्क्रिय संगठन कार्यकर्ताओ की लगातार उपेक्षा - दुर्ग कांग्रेस में संगठन की बात करे तो संगठन के नाम पर कुछ नाम जरुर है किन्तु ये ऐसे नाम है जो कभी सक्रीय राजनीती में कोई अहम् भूमिका नहीं निभा पाए सिर्फ वोरा बंगले के करीबी होने का फायदा उठाये है अनुभवहीनता आज दुर्ग कांग्रेस संगठन में साफ देखि जा सकती है . संगठन की बात करे तो दुर्ग कांग्रेस में अध्यक्ष की खुर्सी ऐसे हाँथ में है जो सक्रीय राजनीती से दूर ही है बात गया पटेल की है जो आज दुर्ग कांग्रेस के अध्यक्ष है किन्तु सिर्फ नाम के अध्यक्ष संगठन स्तर पर ऐसी कोई छाप नहीं छोड़ पाए है जैसी छाप पूर्व महापौर आर.एन.वर्मा ने छोड़ी थी . उसी कड़ी में आज एक ऐसे युवा कांग्रेस को अध्यक्ष बनाया गया है जिसे दुर्ग के कई कांग्रेसी जानते भी नहीं अगर पहचान है तो इतनी कि विधायक परिवार के करीबी के टूर पर महापौर बाकलीवाल के नजदीकी के टूर पर यहाँ बात हो रही है दुर्ग युवा कांग्रेस अध्यक्ष आयुष शर्मा कि जबकि दुर्ग युवा कांग्रेस की बात करे तो ऐसे कई चेहरे है जो सालो से सक्रीय राजनीती में है किन्तु दुर्ग में कांग्रेस अब बचा ही कहा यहाँ सिर्फ वोरा कांग्रेस की छाप ही है . अगर कांग्रेस का कोई अस्तित्व बचा होता तो दुर्ग के अनुभवी कांग्रेसियों के मन में असंतोष की जो धारा आज बह रही है वो नहीं बह रही होती . आज अनुभवी पार्षद जो सालो से कांग्रेस के साथ है न कि वोरा के सिर्फ पार्षद ही बनकर रह गए उनमे से मदन जैन , राजकुमार नारायणी वो मुख्य नाम है जो सिर्फ इसलिए दरकिनार है क्योकि वो कांग्रेसी है अगर वो वोरा गुट के कांग्रेसी होते तो आज कही और होते . कुछ ऐसी ही हालत सभापति राजेश यादव के साथ भी रही शुरू शुरू में सभापति को भी दरकिनार करने का कई बार असफल प्रयास हुआ किन्तु राजेश यादव के साथ सभापति का पद जुडा होने के कारण दरकिनार करना मुश्किल हो गया .
क्या वोरा कांग्रेस का ये अंतिम कार्यकाल - इन दिनों शहर में ऐसी चर्चा जोरो पर है कि जिस तरह से वोरा गुट शहर में मनमानी कर रहा है चाहे वो कार्य विभाजन की बात हो , चाहे वो चखना सेंटर आबंटन की बात हो , चाहे राशन दुकान वितरण की बात हो , चाहे वो सनागाथान के कार्यो की बात हो , चाहे शहर में विकास कार्यो के नाम पर दिखावा हो ऐसे कई कारण है जिससे शहर के आम जनता ही नहीं कई कांग्रेसी भी आतंरिक रुप से आक्रोशित है और ढाई साल बाद होने वाले चुनाव में मतदान के रूप में अपना फैसला सुनाने का इंतज़ार कर रहे है . वैसे अगर देखा जाए तो जिस तरह से वर्तमान हालत है चुनाव के बाद ऐसे कांग्रेसी कार्यकर्त्ता मिलना मुश्किल ही होगा जो समाज के बीच अपनी पैठ बनाकर वोट मांगने जा सकेगा .जिस तरह से आज कई कांग्रेसी कह रहे है कि इतनी उपेक्षा भाजपा शासन में नहीं हुई जितनी खुद की सरकार होते हुए हो रही कोई बड़ी बात नहीं कि भविष्य में एक बार फिर सालो दुर्ग में भाजपा का शासन रहेगा .
शौर्य की बातें / सम्पादकीय / दुनिया की सबसे उत्तम रचना नारी को माना जाता है कभी बेटी , कभी बहन , कभी दोस्त , कभी अर्धांग्नी , कभी हमदर्द , कभी बहु , कभी माँ , कभी सहकर्मी ऐसे कई रूप है जो एक ही जीवन में नारी का जीवन यापन होता है . अपनी हर जिम्मेदारी प्रत्येक रूप में कुशलता से पूर्ण करने वाली आदि शक्ति की उत्तम रचना नारी ही है खुद की पीड़ा को भूलकर अपनी समस्त जिम्मेदारियों को निभाने की जो कला नारी में होती है वो किसी और में नहीं हो सकती . पुरानो में भी नारी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है . सभी की उम्मीद की किरण नारी के अलग अलग रूप है किन्तु इन सभी रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने वाली इस देवी को क्या कभी खुद के लिए दो पल निकालने का भी समय मिल पाया . नारी के जीवन की आज के युग में कुछ ऐसी व्यथा है जिसे जानते तो सब है किन्तु स्वीकार नहीं कर पाते क्या आज के इस युग में नारी को आराम करने का हक नहीं है क्या हम और आप इस व्यथा पर कोई पहल नहीं कर सकते . आइये देखे कि बालपन से वृद्धावस्था तक नारी की चाह को कैसे पूरी करे कैसे दो पल का सुकून दे सके ...
"माँ मुझे थोडा आराम करना है.."
स्कूल, क्लास, पढ़ाई से थक कर बेटी ने माँ से कहा।
"अरी बिटिया अच्छी पढ़ाई कर, बाद मे आराम ही तो करना है .."
बिटिया उठी , पढ़ने बैठी और फिर आराम करनातो रह ही गया। ..*
"माँ मुझे थोडा समय दो.. दो घडी आराम कर लू" ऑफिस से थक कर आयी बिटिया ने कहा.." मैं थक गई हू"....
अरी शादी कर ले और सेटल हो जा.. फिर आराम ही करना है ..
बिटिया शादी के लिए तैयार हो गई और.. आराम करना तो रह हीगया.*
"अरे इतनी क्या जल्दी है.. एकाध साल रुकते है ना.."
"अरी समय के साथ बच्चे हो जाए तो टेंशन नहीं , फिर आराम ही आराम है ..."
बिटिया माँ बन गई और आराम करना तो रह हीगया..*
"तुम माँ हो.. तुम्हें ही बच्चे के साथ जागना पड़ेगा.. मुझे सुबह ऑफिस जाना है ..बस थोडे दिन.. बच्चे बड़े हो जाए फिर आराम ही आराम है.....
वो बच्चों के लिए कई रातें जागी और आराम करनातो रह ही गया..*
"सुनो जी.. बच्चे अब स्कूल जाने लगे है.. अब तो दो घडी बैठने दो आराम से..
"बच्चों की तरफ ध्यान दो , उनको पढ़ा लो फिर आराम ही आराम है"।
बच्चों का प्रोजेक्ट बनाने बैठी.. और आराम करनातो रह ही गया..*
" बच्चे पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़े हो गए ,अब कुछ आराम कर लू ."
"अब बच्चों की शादी करनी है.. ये जिम्मेवारी पार पडे के फिर आराम ही आराम है ."
उसने हिम्मत जुटाई.. बच्चों की शादी का काम निपटाया.. और फिर आराम करना तो रह हीगया..* .
"बच्चों का अपना संसार चलने लगा ,अब मैं ज़रा आराम कर लू .."
"अरी अब अपनी बिटिया माँ बनने वाली है , पहला बच्चा मायके मे होगा ना.. चलो तैयारी करे ."
हमारी बिटिया की डिलीवरी हो गई और आराम करना रह ही गया..
"चलो, ये जिम्मेदारी भी पूरी हुई , अब आराम "
"माँ जी, मुझे नोकरी पर वापस जाना होगा ..तो आप आरव को सम्भाल लेंगी ना ?"
नाती के पीछे दौड़ते दौड़ते थक गई और आराम करना रह ही गया ..
"चलो नाती भी बड़ा हो गया अब.. सारी जिम्मेदारियाँ खत्म... अब मैं आराम करूंगी.."
"अरी सुनती हो , गुठने दुख रहे है मेरे , मुझसे उठा नही जा रहा ..Bp भी बढ़ गया है शायद , डायबिटीस है सो अलग ..डॉकटर ने परहेज़ करने को कहा है .."
पति की सेवा मे बचा-खुचा जीवन गुज़र गया ..और.. आराम करना तो रह ही गया ..
एक दिन भगवान खुद धरती पर आए और कहा.." आराम करना है ना तुझे ? उसने हाथ जोड़े और भगवान उसे ले गए ..आखिरकार उसे आराम मिल ही गया ,
हमेशा के लिए ..!!!
( शरद पंसारी - सम्पादक शौर्यपथ दैनिक समाचार )
शौर्य की बातें / सेल्फी लेना , फोटो खिंचवाना जैसे गुजरी बात हो गयी जब तक निक्की था सेल्फी लेना फोटो खिंचवाना बहुत अच्छा लगता था छोटे या बड़े किसी भी उत्सव / त्यौहार में फोटो की झड़ी लग जाती थी किन्तु अब सब सूनापन नजर आता है अपनी ही तस्वीर से आंख मिलाने की हिम्मत नहीं होती . १६ जनवरी को मेरे भतीजे के जन्मदिन में जाने के लिए मेरी लाडो निक्की की प्यारी बहना तैयार हुई मै घर से निकल रहा था कि मन किया सिद्धि के साथ फोटो खिंचवाऊ . दो साल हाँ लगभग दो साल हो गए बेटी के साथ फोटो लिए हुए . जब फोटो को गौर से देखा तब मेरे आँखों की उदासी तो चश्मे के कारण नजर नहीं आयी किन्तु सिद्धि का दमकता चेहरा ये अहसास करा गया कि मेरी जिन्दगी चाहे जितनी भी वीरान हो सिद्धि को उसके हिस्से की हर ख़ुशी देनी है गम के आंसू छुपाये उसे मुस्कुराने की वजह देनी है . ये मात्र एक फोटो नही है ये एक पिता की बेटी के प्रति प्यार और अधिकार के साथ ईश्वर द्वारा दी गई जिम्मेदारी के निर्वाहन का स्वरूप है । जब मेरा लाल मुझसे बिछड़ गया तो जीने का कोई मकसद ही नही रह जिंदगी वीरान सी हो गई कि बार दिल ने कहा कि निक्की के पास चले जाएं मेरी रत्ना ने भी साथ देने का वादा किया किन्तु तब एक चेहरा सामने आया वो था सिद्धि का मासूमियत भरा मुखड़ा उसे किसके सहारे छोड़ के जाते हमारे सिवा है ही कौन जो उसे पलको में बिठा के रखे मेरा लाल उसके आने पर खुश था बहुत खुश सिद्धि उसकी जान थी आज भी जो जिंदगी गुजार रहे वो उधार की बस ईश्वर से यही प्रार्थना है कि जल्दी समय का पहिया घूमे सिद्धि काबिल बने अपनी जिम्मेदारी निभाये और हम अपने निक्की के पास जाए । ( शरद पंसारी - सम्पादक , शौर्यपथ दैनिक समाचार )
दुर्ग । शौर्यपथ । दुर्ग निगम की प्रशासनिक व्यवस्था की बात करे तो कभी कभी ऐसा प्रतीत होता है कि इस प्रशासनिक व्यवस्था का खामियाजा दुर्ग की जनता को ही चुकाना पड़ रहा है । दुर्ग निगम कभी भी फायदे में नही रहा किन्तु कुछ काम ऐसे हो रहे है जिससे यह साफ संकेत देता है कि दुर्ग निगम की इस प्रशासनिक व्यवस्था के कारण निगम प्रशासन जानबूझकर ऐसा कार्य करते है जिससे निगम को आर्थिक हानि हो । कहने को बात बहुत छोटी सी है किंतु अगर देखा जाए तो इस छोटी सी बात से ही दुर्ग निगम को लाखों का नुकसान हो रहा है । इस ओर न तो जनप्रतिनिधि ध्यान दे रहे है और न ही अधिकारी । निगम की इस व्यवस्था से उन्हें आर्थिक हानि तो हो ही रही है साथ ही उनके इस व्यवस्था से आम जनता को भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है । मामला है दुर्ग निगम के अंतर्गत आने वाले पार्किंग व्यवस्था की । इन दिनों दुर्ग निगम के अंतर्गत तीन स्थानों में पार्किंग व्यवस्था की सुविधा है जिसमे से एक इंदिरा मार्किट दूसरा नया बस स्टैंड तीसरा समृद्धि बाजार ये तीनो जगहों पर निगम द्वारा पार्किंग की व्यवस्था की गयेई ताकि बाजार सुव्यवस्थित राह सके साथ ही पार्किंग के ठेके से निगम की आमदनी बढ़े किन्तु वर्तमान में समृद्धि बाजार में पार्किंग सुना और सड़कों पर वाहन जिससे आर्थिक हानि तो है ही चरमराती यातायात व्यवस्था के कारण गंभीर दुर्घटना का संशय हमेशा बना रहता है वही इंदिरा मार्केट की बात करे तो कहने को निगम के चार नियमित कर्मचारी यहां पर तैनात है किंतु इनकी तैनाती सिर्फ स्वयं के आय के लिए होती है । निगम के इस पार्किंग में दिनभर में गिरी से गिरी हालत में छोटे बड़े वाहन मिलाकर तकरीबन 400 - 500 वाहन का आना जाना होता है किंतु बड़े ही आश्चर्य की बात है कि 12 - 14 घंटे में निगम के 4 कर्मचारी की तैनाती जिनका मासिक वेतन औसतन 25 से 30 हजार के हिसाब से लाख रुपये से ऊपर होता है और ये कर्मचारी निगम के पार्किंग से औसतन 500 रुपये रोज रसीद काट कर निगम कोष में जमा करते है इस तरह निगम सिर्फ 15 हजार के लगभग आया के लिए लाख रुपये से ऊपर खर्च कर रहा है यही स्थिति बस स्टैंड पार्किंग की भी है । स्वयं ही अंदाजा लगा लिजीये की लाखों खर्च कर निगम हजारों कमा रहे साथ ही यातायात व्यवस्था पर भी ग्रहण लग रहा । किन्तु निगम प्रशासन इस पर मौन , जनप्रतिनिधि मौन क्योकि जो आर्थिक नुकसान हो रहा वो उनकी निजी संपत्ति नही आम जनता के टेक्स का पैसा है ...
दुर्ग / शौर्यपथ लेख / राजनीती की जब भी बात आएगी तो मोतीलाल वोरा का नाम जरुर आएगा . कांग्रेस की राजनीती में एक विनम्र और बेदाग़ छवि के लिए जाना जाने वाला नाम है मोतीलाल वोरा . ५ दशक की लम्बी राजनीती में पार्षद से देश के मुख्य राजनीती दल कांग्रेस में मोतीलाल वोरा का नाम सदैव के लिए अमिट हो गया साथ ही इतिहास के पन्नो में दर्ज़ हो गया २१ दिसंबर का दिन . किन्तु जिस तरह पिछले दिनों शहर के एक तालाब का नाम मोतीलाल वोरा के नाम किये जाने का निगम ने प्रस्ताव पारित किया उससे उनके नाम को जरुर कुछ आघात लगा .शहर का ठगडा बाँध जो ठगडा दाऊ की सम्पाती थी जिसे उनके द्वारा जनहित में दान किया गया और एक बड़े तालाब का निर्माण इन दिनों चल रहा है ठगडा दाऊ के नाम से बने इस तालाब का नाम अंग्रेज शासन में भी नहीं बदला ऐसे में अब बदलना कहा तक सही है . . मोतीलाल वोरा एक ऐसी सोंच के व्यक्ति थे जो अपनी राह स्वयं बनाते थे अपनी मंजिल ऐसे तय करते जिससे किसी को आघात ना हो किसी को शर्मिदा ना होना पड़े . अपने जीवन काल में शायद ही कोई ऐसा होगा जिनका दिल मोतीलाल वोरा ने दुखाया हो , सदा विनम्र रहने वाले काम को ही पूजा समझने वाले व्यक्ति के रूप में पहचान बनाने वाले मोती लाल वोरा किस नाम के मोहताज नहीं थे किसी का नाम का सहारा लेकर आगे बढ़ना मोतीलाल वोरा को कभी गवारा नहीं था ऐसे में आज जब वो इस दुनिया में नहीं है उनके नाम को किसी और के नाम के सहारे अमिट करना स्व. मोतीलाल वोरा जी के नाम का ही अपमान है . ठगडा दाऊ की एक अलग पहचान है स्व. मोतीलाल वोरा की एक अलग पहचान है . चौक चौराहो में स्व. मोतीलाल वोरा की फोटो लगाने से क्या लोग उन्हें याद रखेंगे ऐसा बिलकुल भी नही है . दुर्ग की राजनीती में प्रदेश की राजनीती में देश की राजनीती में उनका नाम किसी फोटो का मोहताज़ नहीं उनको किसी नाम के सहारे अपना नाम अमिट करने की चाह कभी नहीं रही होगी उनके कर्म ही ऐसे है कि दुर्ग की जनता के दिलो में उनकी छवि है ऐसे में दुर्ग में ठगडा बाँध के नाम को मोतीलाल वोरा के नाम से करने से अच्छा यह है कि उनके नाम से शहर में कुछ ऐसा नव निर्माण हो जिससे जनता के मन में उनके लिए आदर और बढे . उनके जीवन काल में उनके नाम से दुर्ग में कभी कोई प्रतिरोध नहीं हुआ किन्तु वर्तमान में ठगडा बाँध के नाम को परिवर्तन कर मोतीलाल वोरा का नाम दिए जाने के प्रस्ताव पारित होने से भाजपा सहित छत्तीसगढ़ मंच व कई अन्य सामाजिक लोगो द्वारा जो विरोध हो रहा है वह जरुर उनकी आत्मा को तकलीफ दे रहा होगा क्योकि जिस व्यक्ति ने अपनी मंजिल पाने के लिए किसी का सहारा नहीं लिया अब उनके नाम के लिए प्रतिरोध क्या सही है ?
ठगडा दाऊ की उनके नाम की अपनी अहमियत है वैसे ही स्व. मोतीलाल वोरा के नाम की भी अपनी अहमियत है . ये विवाद उठते ही दुर्ग विधायक और स्व. मोतीलाल वोरा के पुत्र अरुण वोरा को ही तुरंत सामने आ कर इस विवाद का पटाक्षेप करना चाहिए . भले ही आज सत्ता कांग्रेस की है और निगम में सरकार उनकी है आज ठगडा बाँध का नाम मोतीलाल वोरा के नाम से कर दिया जाएगा लाख विरोध के बाद भी तो क्या इस बात की गांरंटी है कि सत्ता परिवर्तन के बाद भी ये प्रक्रिया को विराम लग जायेगा . ये राजनीती है हो सकता है कल को भाजपा या कोई अन्य मंच निगम की सत्ता में बैठे और एक बार फिर इस बाँध को ठगडा बाँध के नाम से करने का प्रस्ताव पारित कर दे तब ज्यादा तकलीफ होगी स्व. मोतीलाल वोरा के समर्थको को उनके चाहने वालो को .
मेरे विचार से स्व. मोतीलाल वोरा के नाम के लिए सरकार कोई ऐसा नव निर्माण करे जो अविवादित हो ताकि भविष्य तक उस नवनिर्माण सोंच का नाम स्व. मोतीलाल वोरा के नाम पर ही रहे ना कि दुसरे के नाम पर काबिज निर्माण . अज भले ही सरकार ये कह दे कि ठगडा बाँध उनके प्रयासों से निर्मित हो रहा है किन्तु निर्माण की राशी उनकी नहीं है जनता की है जनहित के लिए जनता के पैसो से निर्माण हो रहा है . जब जमीन सरकार (ठगडा दाऊ द्वारा दान की हुई जमीन पर निर्मित है ठगडा बाँध ) की नहीं पैसा किसी व्यक्ति विशेष का नहीं तो फिर ये नाम बदलने का खेल क्यों अगर ये खेल शुरू हुआ तो आगे भी बढेगा और भविष्य में फिर नाम परिवर्तन की आशंका रहेगी . क्या ऐसी ही सच्ची श्रधान्जली देना चाहती है दुर्ग निगम की सरकार और निविवाद जननेता रहे स्व. मोतीलाल वोरा के नाम से वर्तमान में चल रहे विवाद पर क्यों मौन है दुर्ग विधायक वोरा ...
शौर्य की बातें । मोहनी हाँ यही नाम दिया था जब पहली बार गोद मे लिया था मेरे निक्की को उसके नाना ने । जिंदगी में पल पल तकलीफ झेलते हुए भी ना किसी से कोई शिकायत की ना किसी को जिम्मेदार ठहराया हर पल गम के साये में रहकर भी सदा मुस्कुराते हुए ईश्वर को ध्यान करते हुए जिंदगी जी रहे थे मेरे अर्धांगनी के पिता । 22 साल के बेटे को खो देने के बाद 3 बेटियों की शादी की ससम्मान तीनो को विदा किया । मुझे याद है वो पल जब मैंने कहा बाबूजी अब आप हमलोगों के साथ रहिए अपनी जन्मभूमि को छोड़ते हुए एक पल भी नही सोंचा और साथ आ गए । आज की दुनिया मे जब कोई अपना एक खोटा सिक्का भी छोड़ने के लिए दस बार सोंचता है बाबूजी ने बिना एक पल सोंचे अपनी जन्मभूमि छोड़ दी । सालो से साथ रह रहे थे न कोई शिकायत की ना कोई फरमाइश हर हाल में खुश और शांत । जब मेरा निक्की हमसे बिछड़ गया तो सहारा दिया पल पल साथ रहे मेरे साथ , मेरे अर्धांगनी के साथ मेरी लाडो के साथ एक मजबूत चट्टान की तरह ना कुछ कहते न कोई शिकायत बस एक निस्वार्थ साथ । मेरी रत्ना उनकी जान थी उसे देखते और उसी में अपनी दुनिया तलाशते किन्तु ये कैसी दुनिया है ये कैसा लोक मेरी रत्ना को अपना सब कुछ मानने वाला मेरी रत्ना का जन्मदाता ही मेरी रत्ना की गोद मे अंतिम सांस लिया उन्होंने तो अपनी मौत में भी खुशी पा ली होगी पर अब मेरी रत्ना का क्या होगा पहले भाई को खोया फिर बेटे को खोया और अब अपने पापा को । ईश्वर ये क्या किया तूने ये तेरा कैसा इंसाफ है अब मैं कैसे जिंदगी के पल काटूंगा । मेरा लाल तो मेरे सीने में जो दर्द दिया वो अब तक ताज़ा है अब मेरी रत्ना के दुख को कैसे देख पाऊंगा कैसे सामना कर पाऊंगा । तू कोई ऐसा चमत्कार कर दे ईश्वर की हम सब तेरी शरण मे आ जाये क्या करेंगे ऐसी जिंदगी का जिसमे ना कोई खुशी ना कोई लक्ष्य ना कोई उमंग है बस सुबह उठने के बाद रात का इंतजार और रात के बाद सुबह का । यही रात दिन की जिंदगी काटते हुए इस लोक में जी रहे है कितनी परीक्षा लेगा अब तो पास कर दे और हमे अपने पास बुला ले सबको बुला ले हम सब साथ रहेंगे । मैं , रत्ना , सिद्धि अम्मा , बाबूजी और मेरा निक्की सब साथ रहेंगे वही जगह हमारे लिए स्वर्ग होगी भूखे रहे प्यासे रहे चाहे जैसे भी रहे साथ रहेंगे तो खुश रहेंगे । तू तो सब कर सकता है अपने बच्चो के लिए हम भी तेरे बच्चे है क्यो हमे भूल गया ... बाबूजी तुम बहुत याद आ रहे हो निक्की बेटा तेरे नाना तेरे पास आ गए रे अब हमारी बारी जल्दी हमे भी बुला ले रे ..
छत्तीसगढ़ सरकार के दो वर्ष पूरे होने पर संभागों, जिलों, विकासखंडों में फोटो-प्रदर्शनियां
हजारों लोगों ने उपलब्धियों को देखा, योजनाओं को समझा और सराहा
निरक्षरों तक भी सहज रूप से पहुंच रही हैं जानकारियां
लेख / शौर्यपथ / एक अच्छी तस्वीर में लाखों शब्दों की ताकत होती है। तस्वीरों की इसी ताकत का इस्तेमाल जनसंपर्क विभाग ने शासन की योजनाओं को दूरदराज के गांवों तक पहुंचाने के लिए किया है। विभाग ने संभागीय मुख्यालयों से लेकर जिलों और विकासखंड मुख्यालयों तक फोटो-प्रदर्शनी के आयोजनों का जो सिलसिला शुरु किया है, उसका अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है। ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की भीड़ इन प्रदर्शनियों में देखी जा रही है। तस्वीरों के जरिये योजनाओं की जानकारी उन लोगों तक भी पहुंच रही है, जिन तक अब तक साक्षरता की रौशनी नहीं पहुंच पाई।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली छत्तीसगढ़ सरकार के दो वर्ष पूरे होने के अवसर पर जनसंपर्क विभाग ने 17 दिसंबर से फोटो प्रदर्शनियों का आयोजन शुरु किया है। इन प्रदर्शनियों को योजनाओं की जानकारियों के साथ-साथ दो साल की उपलब्धियों पर भी केंद्रित किया गया है। प्रदर्शनी में आए लोगों को जानकारी परक प्रचार सामाग्री का भी वितरण किया जा रहा है। प्रदर्शनी की थीम गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ रूबात हे स्वाभिमान के छत्तीसगढ़ के अभिमान के रखी गई है। इस आयोजन की खासियत यह भी है कि प्रदर्शनी के माध्यम से लोगों को विभिन्न शहरों और जिलों की ऐतिहासिकता से भी जोड़ा गया। मसलन, राजधानी रायपुर में प्रदर्शनी का आयोजन ऐतिहासिक बूढ़ातालाब स्थित स्वामी विवेकानंद उद्यान परिसर में किया गया तो जगदलपुर के सिरहासार भवन के ठीक सामने टाउन क्लब में प्रदर्शनी आयोजित की गई। धमतरी में मकई गार्डन में फोटो प्रदर्शनी का आयोजन किया गया तो बीजापुर के सांस्कृतिक भवन में यह आयोजित हुई। जशपुर के बाजार डांड में प्रदर्शनी लगाई गई, बिलासपुर में के रिवर व्यू रोड में चार दिनों तक लोगों ने प्रदर्शनी का अवलोकन किया। इस प्रदर्शनी के माध्यम से सांसदों, विधायकों, महापौरों समेत तमाम जनप्रतिनिधियों ने भी जनसामान्य के साथ संवाद किया। छत्तीसगढ़ में विगत दो वर्षों में हुए विकास कार्यों, नवाचारों और शासन की लोक हितैषी नीतियों की जानकारी लेकर लोगों द्वारा इसे सराहा गया। प्रदर्शनी में मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लीनिक योजना, मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान, डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना, राजीव गांधी किसान न्याय योजना, गोधन न्याय योजना, मुख्यमंत्री शहरी स्लम स्वास्थ्य योजना, ऐतिहासिक बूढ़ातालाब का निखरा स्वरूप, रायपुर शहर का विकास और सौंदर्यीकरण, बिजली बिल हाफ योजना, राम वन गमन पर्यटन परिपथ का विकास, वन आश्रितों के कल्याणकारी योजनाओं, नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी, ग्रामीण विकास, दाई-दीदी क्लीनिक, सार्वभौम पीडीएस, गढ़ कलेवा योजना, पौनी पसारी योजना, साफ पेयजल की आपूर्ति हमारा लक्ष्य, पढ़ई तुंहर दुआर आदि योजनाओं से संबंधित तस्वीरें प्रदर्शित की जा रही हैं।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली सरकार के 2 वर्ष पूरे होने के अवसर पर सोशल मीडिया पर #CGSwabhimaanKe2Saal लगातार ट्रेन्ड करता रहा। फोटो प्रदर्शनी के अवलोकन के बाद सुशील प्रकाश ने कहा-फोटो प्रदर्शनी के माध्यम से राज्य में चल रहे विकास कार्यों की जानकारी मिली है। आगे भी ऐसी प्रदर्शनियां आयोजित होते रहनी चाहिए। तुषार देवांगन ने कहा की राज्य की जनहितैषी योजनाओं से ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है। गोधन न्याय योजना अपनी तरह की अनूठी योजना है जिससे लोगों के जीवन में परिवर्तन आया है। राकेश पाटले ने कहा कि उन्हें मुख्यमंत्री स्लम स्वास्थ्य योजना की जानकारी नहीं थी, इस प्रदर्शनी के माध्यम से योजना की जानकारी मिली। अजीत साहू ने कहा कि सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों को जनता तक पहुंचाने का यह अच्छा माध्यम है। उन्होंने कहा कि वे मुख्यमंत्री बघेल की रेडियो वार्ता लोकवाणी भी सुनते हैं। विनोद प्रजापति ने कहा कि प्रदर्शनी तो बढ़िया है ही, ब्रोशर और पांपलेट भी बहुत उपयोगी हैं।
अब तक छत्तीसगढ़ के सभी पांच संभागीय मुख्यालयों, सभी 28 जिला मुख्यालयों में प्रदर्शनी का आयोजन हो चुका है। अब क्रमश सभी विकासखंड मुख्यालयों में प्रदर्शनियां लगाई जा रही है।
आलेखः- श्री घनश्याम केशरवानी
बिलासपुर / शौर्यपथ / बिलासपुर में कई दिनों के बाद ऐसा हुआ कि प्रदेश के मुख्यमंत्री 2 दिन बिलासपुर में है । और 428 करोड़ की लागत के शिलान्यास तथा लोकार्पण कार्यक्रमों में हिस्सा लिया । लोकार्पण उन योजनाओं का होगा जिनका शिलान्यास पिछले शासन में हुआ था और शिलान्यास उन योजनाओं का होगा जो इस शासन के हैं। मुख्यमंत्री बिलासपुर आए और राजनैतिक कयास न लगे ऐसा नहीं हो सकता पिछले एक माह में कई बार निगम मंडलों में नियुक्ति का कयास लगाया जा रहा है।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मरकाम ने दिसंबर माह में 15 दिनों के भीतर नियुक्ति का वादा किया था पर यह वादा अभी तक पूरा नहीं हुआ है। दिसंबर माह में ही कांग्रेस ने अपनी सत्ता में वापसी का त्यौहार मनाया और इस त्यौहार के बाद से ही कार्यकर्ताओं को यह लगने लगा है कि अब सरकार चुनाव वोट पर आ गई है।
भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने भी जिस तरह से अपने प्रदेश संगठन पर ध्यान दिया है उससे लगता है कि भाजपा ने भी चुनाव के लिए भी तैयारी शुरू कर दी है, और भाजपा का यह इतिहास है कि जब वह केंद्र में शासन में होती है और किसी भी राज्य में चुनाव की तैयारी करती है तब राज्य सरकार से उसके संबंध लगातार खट्टे होते जाते हैं । इन दिनों छत्तीसगढ़ की राजनीति में भी ऐसा दिखाई दे रहा है जानकारों की माने तो केंद्र और राज्य के बीच यह खटास अब बढ़ती ही जाएगी। जिसका सीधा अर्थ है की छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री का अधिकतर समय केंद्र के साथ मतभेद निपटाने में लगेगा एक तरफ से यह मुख्यमंत्री बघेल के लिए चुनौती भी रहेगा कि वे केंद्र से किस तरह के संबंध रखें, ममता जैसा टकराव या फिर एक परिपक्व नेता की तर्ज पर अपनी जनता का हित देखकर रोज अपना काम निकालने का रास्ता प्रदेश का मुख्यमंत्री होने के नाते जनता तो उनसे यही उम्मीद करेगी कि वे वैसा मार्ग निकालें जिससे उन्होंने अपने घोषणा पत्र में जो वादे किए हैं उसे पूरा कर सकें ।
जबकि भाजपा पग पग पर उन्हें धोखेबाज मुख्यमंत्री के रूप में प्रचारित कर रही हैं। और अब भाजपा के नेताओं की जुबान भी तीखी होती जाएगी इस बीच में भाजपा संगठन के दोनों बड़े नेता छत्तीसगढ़ में लगातार दौरा कर रहे हैं । और उनका लक्ष्य सीधे कार्यकर्ताओं से बात करना है जबकि कांग्रेसी नेताओं के पास दो काम है जनता के हित करने वाली योजनाओं को लागू करना और अपने ही कार्यकर्ताओं के बीच बढ़ रहे असंतोष पर काबू पाना । भूपेश सरकार के मंत्रिमंडल में रविंद्र चौबे, टी एस सिंह देव, मोहम्मद अकबर जैसे दिग्गज नाम के मंत्री तो हैं किंतु वे अपने विभागों के साथ प्रभावी नजर नहीं आते। जिला पंचायत के कार्यक्रमों के दम पर सरकार जनता के हित में काम करती नजर तो आती है किंतु इस विभाग का मंत्री प्रभावी तौर पर खड़ा नहीं दिखाई देता कारण योजनाओं का श्रेय सीएम अपने खाते में डालते हैं यही हाल स्वास्थ्य विभाग का है पिछला 1 साल कोविड-19 से जूझते हुए बीता पर यहां भी इस विभाग का मंत्री वैसा प्रभाव नहीं छोड़ पाया जैसा उम्मीद थी खेती किसानी के मुद्दे पर भी बघेल मंत्रिमंडल के सदस्य मीडिया में प्रभाव छोड़ते नहीं दिख रहे हैं। कांग्रेस का मीडिया प्रभारी रायपुर छोड़ किसी भी अन्य जिले में प्रभावी नहीं है लोकार्पण और शिलान्यास विज्ञापन की दम पर कुछ घंटे प्रभाव दिखाया जा सकता है किंतु इससे नए छत्तीसगढ़ की संकल्पना कैसे पूरी होगी, और अपने आखरी कार्यकाल में यही गलती विश्वसनीय छत्तीसगढ़ के नाम पर डॉक्टर रमन ने की थी।
रिसाली / शौर्यपथ राजनीती / चुनाव और नेता एक सिक्के के दो पहलु है किसी भी दल के नेता हो उनका लक्ष्य रहता है चुनाव में टिकिट मिले और विजयी होकर जनप्रतिनिधि के रूप में एक अलग पहचान हो इसके लिए नेता सालो से मेहनत करते है और लक्ष्य प्राप्ति के लिए निरंतर आगे बढ़ने का प्रयास करते है . अभी तक दुर्ग में कांग्रेसी सिर्फ महापौर या पार्षद तक के सपने देखते थे क्योकि इसके आगे का रास्ता दुर्ग कांग्रेसी के लिए बंद रहता था . दुर्ग कांग्रेस में कांग्रेस के कद्दावर नेता मोतीलाल वोरा के पुत्र अरुण वोरा ने जब से राजनीती कदम रखा है दुर्ग विधानसभा से कांग्रेस के उम्मीदवार रहे है जीत हो या हार ये कोई मायने नहीं रहा टिकिट मिलने के लिए क्योकि पार्टी में जो स्थान मोतीलाल वोरा का है उस स्थान का ये लाभ मिलना लाजिमी भी रहा है . वैसे भी कांग्रेस में परिवारवाद हावी रहा . दुर्ग के कई कांग्रेसी पार्षद या महापौर से आगे उड़ान भरने के लिए दुर्ग विधान सभा सीट को छोड़ भिलाई , वैशाली नगर या ग्रामीण क्षेत्र पर दावेदारी करते नजर आ चुके है .
१५ साल बाद कांग्रेस की सत्ता आयी और आते ही दुर्ग जिले में एक और नगर निगम का एलान हुआ रिसाली नगर पालिक निगम . सारी कानूनी अड्चनो को पार करते हुए आखिरकार रिसाली निगम अस्तित्व में आ ही गया . निगम के अस्तित्व में आने के बाद दिसंबर में चुनाव होने थे किन्तु कोरोना आपदा के कारन चुनाव की तारीख टल गयी जो कि अब अप्रैल या मई माह में होने की सुगबुगाहट हो रही है . रिसाली निगम के निर्माण में प्रमुख भूमिका प्रदेश के गृहमंत्री और दुर्ग ग्रामीण विधान सभा के विधायक ताम्रध्वज साहू की अहम् भूमिका रही या कहा जाए तो जो वादा उनके द्वारा चुनाव के पहले किया गया था वो वादा पूरा हुआ . अब चूँकि चुनावी माहौल गर्म होते ही राजनीती हलको में ये चर्चा जोरो पर है कि रिसाली निगम क्षेत्र के कार्यो में जिस तरह सक्रीय गृहमंत्री के पुत्र जितेन्द्र साहू हुए है उससे यही चर्चा जोरो पर है कि रिसाली निगम के महापौर की दावेदारी जितेन्द्र साहू की बन रही है . इसमें कोई दो राय नहीं कि रिसाली निअगम के जन्मदाता के रूप में गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू को हमेशा याद किया जायेगा उसी तरह जो भी रिसाली निगम का महापौर बनेगा वो भी इतिहास के पन्नो में प्रथम महापौर के रूप में दर्ज हो जायेगा . ऐसे में सभी कोशिश कर रहे है कि इतिहास में अपना नाम दर्ज कराये किन्तु कांग्रेस पार्टी के कई नेता अपने सपनो को टूटते हुए देख रहे है कुछ का तो यह भी कहना है कि सालो से जमीनी रूप में कार्य करने के बाद अब जब एक सुनहरा मौका हाँथ आने की उम्मीद थी यो भी टूटती जा रही है और जैसा हाल दुर्ग निगम क्षेत्र का है वैसा ही हाल रिसाली निगम का भी हो सकता है .
जैसा कि सभी को मालूम है कि दुर्ग निगम में एल्डरमैन हो या प्रभारी या महापौर सभी पद विधायक की अनुशंषा के बैगर संभव नहीं है अगर दुर्ग में राजनीती करनी है तो वोरा निवास के तले ही चल सकती है भले ही राजनीती का ये सफ़र ऊँची उड़ान तक न पहुंचे . ठीक वही हालत अब रिसाली निगम की भी देखने को मिल सकती है रिसाली निगम का एक बड़ा क्षेत्र दुर्ग ग्रामीण में आता है ऐसे में दुर्ग ग्रामीण के विधायक के साथ साथ प्रदेश के गृह मंत्री के रूप में ताम्रध्वज साहू का एक अलग मुकाम है .अगर रिसाली निगम में महापौर के रूप में गृह मंत्री के पुत्र जितेन्द्र साहू दावेदारी करते है तो बगावत के स्वर तो उठेंगे ही किन्तु ये स्वर कितनी उंचाई तक पहुंचेंगे ये कहना मुश्किल है किन्तु ऐसे कांग्रेसी जो सालो से रिसाली क्षेत्र में जमीनी राजनीती कर रहे है वो निष्क्रिय हो जायेंगे जिसका फायदा भाजपा की मजबूत संगठन उठा लेगी . ऐसा नहीं है कि भाजपा संगठन में भीतरी घात नहीं है भाजपा में भी दो गुट आपस में परस्पर विरोधी है किन्तु रिसाली निगम और भिलाई निगम के चुनाव एक साथ होने से अगर दोनों गुट समझौता कर लेते है या प्रदेश संगठन से कोई कडा निर्देश मिल जाता है तो भाजपा रिसाली निगम में भारी पड़ सकती है .
हालाँकि अभी किसी भी दल के कोई नेता ने अधिकारिक रूप से महापौर की दावेदारी पेश नहीं की किन्तु राजनीती सक्रियता की माने तो चर्चो में जितेन्द्र साहू की दावेदारी के आसार नजर आ रहे है किन्तु ये राजनीती है जो हर पल बदलती रहती है जैसा की विधान सभा चुनाव के समय तुलसी साहू की टिकिट आखिरी दिन कटी और बद्दृद्दीन कुरैशी को टिकिट मिला वही प्रतिमा चंद्राकर की टिकिट कटी तो सांसद ताम्रध्वज साहू को टिकिट मिला इस अदला बदली में साहू तो जीत गए किन्तु कुरैशी की हार हुई यानी कि कही ख़ुशी कही गम ...
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से नक्सल प्रभावित दूरस्थ वनांचल ग्राम हालेपायली में लोगों को मिल रही आवागमन की सुविधा
तेज बारिश में भी अब बच्चों की पढ़ाई में नहीं आएगी बाधा
2 करोड़ 83 लाख 55 हजार रूपए की लागत से पुल-पुलिया एवं सड़क का निर्माण
राजनांदगांव / शौर्यपथ / जब रास्ते बनते हैं, तब जिंदगियां बदलती हंै, तरक्की की राहें खुलती हंै। ऐसी ही एक मिसाल है राजनांदगांव जिले के नक्सल प्रभावित विकासखंड मानपुर के दूरस्थ वनांचल ग्राम हालेपायली। जहां प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 4 किलोमीटर लंबी बारहमासी सड़क बनने पर ग्रामवासियों को आवागमन, स्वास्थ्य, खाद्यान्न एवं बच्चों को शिक्षा जैसी महत्वपूर्ण बुनियादी सुविधाएं मिल रही हैं। राज्य शासन द्वारा अधोसंरचना विकास के लिए निरंतर कार्य किए जा रहे हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सड़क का निर्माण करना चुनौतीपूर्ण रहा है। लेकिन इसके बावजूद छत्तीसगढ़ ग्रामीण विकास अभिकरण के मार्गदर्शन में इस कार्य को सफलतापूर्वक पूरा किया गया।
वर्ष 2018 में 2 करोड़ 83 लाख 55 हजार रूपए की लागत से बने पुल-पुलिया एवं सड़क दो गांव गट्टेपायली से हालेपायली को जोड़ रहे हैं। यही वजह है कि यहां के ग्रामवासियों में उत्साह एवं खुशी है। तेज बारिश में नदी-नाले भर जाने पर बच्चों की पढ़ाई में अब बाधा नहीं आएगी। कलेक्टर श्री टोपेश्वर वर्मा ने दूरस्थ अंचलों में अधोसंरचना निर्माण पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के कार्यपालन अभियंता श्री पीपी खरे ने बताया कि जिला मुख्यालय से मानपुर विकासखंड 100 किलोमीटर दूर है। वहीं ग्राम हालेपायली 45 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यहां की जनसंख्या 305 है। ग्राम गट्टेपायली से हालेपायली में जानी वाली सड़क में 5 पुल-पुलिया बनाया गया है एवं डामरीकरण का कार्य पूर्ण हो चुका है।
शौर्य की बाते / शौर्य वो नाम जिस पर मेरी दुनिया टिकी है . शौर्य हाँ यही नाम है जिससे मेरी पहचान बनी किन्तु अब सिर्फ नाम ही रह गया मेरी जिदगी में . जिस शौर्य के बिना एक पल जीना दूभर था अब सारी जिन्दगी उसी के बिना जीना है क्योकि शौर्य ने जीने के लिए अपनी बहन को जो छोड़ दिया शायद शौर्य को भी मालूम था कि उसके मम्मी पापा उसके बिना नहीं रह इसलिए अपने जन्म के 9 साल बाद अपनी छोटी बहन को बुला लिया दुनिया में और खुद दुनिया से दूर एक अनजाने जगह पर लम्बी सफर के लिए चला गया . और दे दी जिम्मेदारी सिद्धि की . हम तो शौर्य के साथ ही चले जाते पर सिद्धि का क्या होता .उसके जीने के हक को कैसे छिनते . शायद यही हमारा भाग्य है कि एक पत्थर की तरह जिन्दगी जी रहे है जिसमे ना कोई अहसास ना कोई भाव बस सिर्फ सुनी सुबह और अँधेरी रात कब सुबह होती है कब रात इसका भी कोई अहसास नहीं .
आज त्यौहार का समय चल रहा है सब तरफ एक उमंग दिख रही है एक उत्साह है किन्तु ये सब हमारे लिए बेमानी है जिन्दगी तो हमने जी ली बस अब एक कहानी के अंत का इंतज़ार है कब हमारी कहानी का आखरी अध्याय लिखा जाएगा इसी पल के इंतज़ार में हम दोनों जी रहे है ताकि जब अंत हो तब नयी शुरुवात फिर से शौर्य के संग हो . हम तुझे बहुत याद करते है मेरे लाल बस तुझे ही याद करते है . आजा मेरे लाल आजा मेरा बेटा आजा निक्की ...( शरद पंसारी - एक बेबस बाप )
शौर्यपथ विशेष / बिहार में विधान सभा चुनाव की तारीख नजदीक आते ही नौकरियों का अम्बार लग गया तो कही शराबबंदी हटाने के वादे किये जा रहे तो कही दल बदलुओ को सबक सिखाने की बात हो रही है जिस के मन में जो आये वादे पर वादे किये जा रहा है . खैर चुनावी वादों का पिटारा कितना भरा होता है और कितना खाली अब आम जनता भी समझने लगी है और सोंचने पर विवश भी हो रही है . बिहार के चुनाव में तेजस्वनी यादव 10 लाख की नौकरी देने का वादा कर रहे है किन्तु इन नौकरी के वादे में करोडो का भुगतान कैसे होगा इसका कोई जवाब नहीं दे पा रहे है वही भाजपा के राष्ट्रिय अध्यक्ष देश में लगभग 300 आतंकी के प्रवेश की आशंका जता कर भाजपा को जिताने की अपील कर रहे है अब अचानक ये आतंकी कहा से आगये इसका जवाब भाजपा राष्ट्रिय अध्यक्ष ही दे सकते है .
बिहार विधानसभा चुनाव में हो रही रैली को देख कर ऐसा नहीं लगता कि ये वही भारत है जहां अभी कोरोना के मरीज सबसे ज्यादा पाए जा रहे है और लगातार संख्या में बढ़ोतरी हो रही है . सोशल डिस्टेंस का ज्ञान देने वाले नेता सिर्फ टीवी में ही ज्ञान दे रहे है उन्हें पुरे देश में इसका पालन करवाने की अपील की जा रही है किन्तु बिहार और मध्यप्रदेश के उपचुनाव में ये सोशल डिस्टेंस सिर्फ किवदंती बनकर रह गयी है . खैर ये चुनावी वादे है राजनैतिक पार्टी कितना सिद्धांत पर चलती है और कितने वादे पुरे करती है ये भविष्य की गर्त में है क्योकि यहाँ यह भी देखा गया है कि सत्ता के लिए सारे सिद्धांत ताक पर रख दिए जाते है एक दुसरे पर आरोप की छड़ी लगाने वाले नेता सत्ता के लालच में देशभक्त और देशद्रोही की श्रेणी में एक दुसरे को तौलने और पाला बदलने से भी नहीं चुकते ये चलता रहा है और भविष्य में भी चलता रहेगा .
किन्तु इन वादों के बीच देश की वित्त मंत्री ने जो ब्यान दिया उससे देश की जनता को काफी आहात हुई है . बिहार चुनाव के देश की वित्त मंत्री ने अपने चुनावी वादे में कोरोना आपदा की तकलीफ को भी भुनाने में देर नहीं की कुछ समय पहले यही वित्त मंत्री जी ने प्याज की बढ़ती कीमत पर कहा था कि प्याज की कीमत बढऩे पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योकि हम प्याज नहीं खाते तब भी उनके इस तरह के ब्यान की काफी आलोचना हुई थी अब एक बार फिर वित्त मंत्री ने भारत के आम जनता के जिन्दगी में तूफ़ान मचने वाले कोरोना बिमारी पर एक ब्यान दे दिया वित्त मंत्री ने कहा कि अगर बिहार में भाजपा की जीत होगी तो बिहार की जनता को मुफ्त में कोरोना वेक्सिन दी जाएगी . वित्त मंत्री जी क्या भारत के सभी नागरिक और बिहार के नागरिक एक ही देश के निवासी नहीं है फिर ये कैसा सत्ता का नशा और कैसी सत्ता की ताकत आप वित्त मंत्री है जनता के द्वारा चुनी जनप्रतिनिधि है देश के लोकतंत्र में एक बड़े पद में विराजमान है आपने पद ग्रहण करते समय कसम खाई थी कि बिना भेदभाव के देश की सेवा करुँगी कहा गयी अब वो कसम .क्या आम जनो की जान की कीमत लगाना सही है . सिर्फ भारत ही नहीं पूरा विश्व कोरोना वेक्सिन का इंतज़ार कर रहा है और आप है कि सत्ता में जीत के बदले वेक्सिन की कीमत भी तय कर दी कि मुफ्त लगेगा या पैसे से लगाया जायेगा खैर आपकी गलती भी नहीं है भारत की विशाल जनसँख्या में अभी भी ऐसे कई लोग है जो आपके इस फैसले को देशभक्ति के रूप में प्रचारित करेंगे चलिए आपकी बात सही हो और बिहार में आपकी सत्ता आ जाये फिर कम से कम एक प्रदेश में तो मुफ्त में वेक्सिन लगवा दीजियेगा बस ये बता दीजिये कि वेक्सिन कब आएगी , क्या अच्छे दिन जैसे इंतज़ार करना पड़ेगा , क्या जिस तरह सालाना 2 करोड़ नौकरी के वादा पूरा होने का इंतज़ार कर रहे उस तरह इन्तजार करना पड़ेगा या सिर्फ जुमलेबाजी है जो भी हो एक बार तो सच बोल दीजिये कि हमारी जिन्दगी बचेगी कि नहीं हम भी उस देश के निवासी है जिस देश में आप वित्त मन्त्री है ...( शरद पंसारी की कलम से )
शौर्य की बाते / मेरा बेटा निक्की उसका जन्म दिन १२ अगस्त को और मेरा जन्मदिन १२ अक्तूबर को किन्तु देखिये कैसा योग है बचपन में जो भूल हुई वही भूल जिन्दगी के कुछ साल इतनी ख़ुशी दे गया कि उस भूल को अपना सौभाग्य समझने लगा और आज वही भूल जिन्दगी भर का दर्द बन गयी जिन्दगी का हर गुजरा कल एक दर्द बनकर उभर जाता है . भूल कुछ यु हो गयी थी कि फ़ार्म में १२ अक्तूबर की जगह १२ अगस्त हो गया और इस तरह १२ अगस्त के दिन जन्मदिन सभी शासकीय दस्तावेज में अंकित हो गए और एक दिन ऐसा आया कि वही १२ अगस्त मेरी खुशियों का सबसे बड़ा दिन हो गया जब मेरा लाल १२ अगस्त २००६ को इस दुनिया में कदम रखा तब से १२ अगस्त और १२ अक्तूबर दो दिन अपने जन्मकी खुशिया मनाने लगा किन्तु आज जब भी इस दिन को याद करता हूँ तो १२ अगस्त याद आ जाता है और मेरा लाल फिर से मेरे सामने खडा हो जाता है एक जिन्दा अहसास की तरह . अब तू ही बता ऐ जिन्दगी मै अपने जन्मदिन की खुशिया कैसे मनाऊ क्या खुदगर्ज बन जाऊ और अपने लाल को भूल जाऊ जिसने मुझे १४ साल खुशिया दी साल में दो बार जन्मदिन मनाने का मौका दिया अब क्या साल में दो बार मौत को गले लगाऊ .
मै तो इतना कमजोर हूँ की वो भी नहीं कर सकता तभी तो मेरा लाल मुझसे दूर हुए २० माह हो गए अब भी जी रहा हूँ खूब मजे कर रहा हूँ दिनभर ऐश करता हूँ पाखंडी हूँ मै जो बेटे के लिए रोता हूँ पर उसके पास जाने से डरता हूँ और इंतज़ार करता हूँ कि कोई ले जाए . चलो आज एक कदम तो आगे बढ़ ही गया हूँ बेटे तक जाने के लिए . कहते है ना सबकी जिन्दगी का समय उपर वाले ने तय किया है और सब को बस तय समय के इंतज़ार में दिन काटना है तो बेटा आज मैंने भी अपनी जिन्दगी के एक साल और काट लिए अब तेरे और करीब आ गया हूँ बस तू कही मत जाना बेटा मेरा इंतज़ार करना मेरे लाल फिर हम एक साथ रहेंगे हमेशा हमेशा के लिए कभी दूर नहीं होंगे मम्मी और मै एक साथ आयेंगे रे . तेरी मम्मी की ख़ुशी तो सिर्फ छलावा है तू तो अच्छे से जानता है ना अब सब तेरे ऊपर है कब हमे अपने पास बुलाता है सिद्धि से तो तू बात करता है बेटा हमसे ही नाराज है जब आयेंगे तो फिर बताना तेरी सारी नाराजगी दूर कर देंगे और एक बार फिर १२ अगस्त और १२ अक्तूबर को खुशियों की बारिश होगी बस अब खुशियों के सावन का इंतज़ार है बेटा वो भी जल्दी ही आ जायेगा बस तू धैर्य रखना . लव यु निक्की ..
शौर्यपथ । निक्की बेटा आज तेरी मम्मी का जन्मदिन है इस दुनिया मे लोग अपने जन्मदिन में खुश होते है खुशियां बांटते है पर बेटा हम तो ऐसे बदनसीब है कि खुशियां एक दरवाज़े से आती है तो दुख के 100 दरवाजे खुल जाते है । जिंदगी खुशियों से आबाद होने के बजाए दुख के सागर में डूब जाती है ऐसी जिंदगी हो गई हमारी । तू जानता है बेटा तेरे बिना एक एक पल मौत के इंतजार में जी रहे है हर पल मर रहे है तेरी मा को बेटा मैं कोई खुशी नही दे पाया कितनी भी कोशिश कर लूं खुशियां देने की खुशी कम दुख ज्यादा दिया । कभी कभी तो लगता है मेरी जिंदगी का कोई मकसद ही नही बेकार इस दुनिया मे जी रहा हूँ और इस सबका कारण तू है तू गया तो हमे भी साथ ले जाता बेटा हम भी तेरे साथ खुशी खुशी चलते लेकिन तू तो छलिया निकला रे अपने पीछे अपनी बहन को छोड़ गया तू तो सब जानता है कि तेरे बिना एक पल जीना भी हजार मौत के बराबर है पर तुझे तो अकेले जाना था और हमे नही लेजाने की सोंच कर सिद्धि को छोड़ दिया अब सिद्धि को कैसे छोड़े हम वो तो मासूम है उसे तो जीने का हक है उसका हक के छीन ले रे । देख ना बेटा तू तो भगवान है तुझे सब मालूम है कि तेरे बिना जिंदगी बंजर है हंसी के पीछे गम का सागर है अब इस भवसागर से पार तू ही लगा सकता है । कुछ ऐसा कर बेटा कि हम एक बार फिर साथ हो जाये तेरे लिए कोई भी काम असंभव नही है तो कुछ कर ताकि तेरी मम्मी के चेहरे में खुशी लौट आये । मैं तो मेरी रत्ना को लाया था पलको में बैठाकर किन्तु उसे कोई खुशी नही दे पाया कांटो के बिस्तर पर सुला दिया फूलों की जगह पथरीले रास्ते पर सफर करवा दिया कैसे करूँ क्या करूँ अब तू ही बता सकता है मेरे लाल तेरी जुदाई सहने की हिम्मत नही है और जिंदगी है कि लम्बी होती जा रही है इतनी लंबी की एक पल सदियों समान लगने लगी है देख न आज फिर खुशियों के रास्ते गम का सागर आ गया हमारी खुशी तुझसे है तेरे बिना जग वीराना आजा बेटा देख आज तेरी मम्मी का जन्मदिन है जो तेरे बिना अधूरा है तू है तो सब कुछ तू नही तो कुछ भी नही क्या तू अपनी मम्मी को हैप्पी बर्थडे नही बोलेगा मेरे लाल आजा मेरे लाल तेरा अभागा पापा तेरा इंतज़ार कर रहा है खुशियों का इंतजार कर रहा है इस पल को एक बार फिर खुशियों में बदल दे इस वीरान जिंदगी में बहार ले आ बेटा जो तेरे बिना अधूरा है अपनी मम्मी के लिए आजा निक्की आजा निक्की तेरा अभागा बाप विनती कर रहा आजा बेटा छोटी बहन के लिए आजा मम्मी के लिए लौट आ बेटा