November 21, 2024
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शौर्य की बाते ( सम्पादकीय )

शौर्य की बाते ( सम्पादकीय ) (160)

शौर्य की बातें / ये क्या हो रहा है मेरे देश में अब इंसानों को गद्दार और देशभक्त की संज्ञा कानून नहीं कुछ लोगो द्वारा दिया जा रहा है ये कुछ लोग वो है जो समाज के अभिन्न अंग है जो दिनभर सभी कार्य सभी समाज के साथ मिलकर करते है ये कपडे के व्यापारी है जो अपने दूकान में आने वालो को ये नहीं पूछते की किस धर्म से हो जिस समाज से हो सभी को एक भाव से देखते है और कोशिश करते है कि उनके दूकान से कुछ खरीद कर जाए , ये होटल वाले है जो अपने ग्राहकों का धर्म पूछ कर अपने होटल में आने जाने से नहीं रोकते सभी को ग्राहक मानते है और इनकी सेवा करते है , ये मिल मालिक है जो अपने कर्मचारियों को काबिलियत के पैमाने में परख कर काम और पद देते है , ये राजनेता है जो चुनाव के समय सभी से हाँथ जोड़ कर अपने पक्ष में मतदान के लिए निवेदन करते है , ये वकालत से समबन्ध रखते है अपने यहाँ आने वाले हर फरियादी को न्याय के मंदिर से न्याय दिलाने के लिए प्रयासरत रहते है , ये बिल्डर है जो सभी को आदर भाव के साथ अपनी प्रॉपर्टी को बेचने के लिए उसकी अच्छे बताते है . कहने का तात्पर्य यह है कि जब सामन्य जीवन में अपनी आय बढाने के लिए किसी जाति धर्म का भेद भाव नहीं करते तो फिर सोशल मिडिया में आते ही कैसे किसी को भी देशभक्त या देश द्रोही करार दे देते है क्या तब उन्हें ये अहसास नहीं होता कि उनका चरित्र दोहरे मापदंड पर टिका हुआ है सोशल मिडिया में एक अलग रूप रहता है और सामाजिक जीवन में एक अलग रूप रहता है . आखिर कैसे इन लोगो की सोंच जहाँ कमाई के साधन की बात आती है तो समभाव के रूप में दर्शित होती है और जबी सोशल मिडिया पर ऊँगली चलती है तो आरोप प्रत्यारोप की झड़ी लग जाती है .
क्या हम अपना दोहरा चरित्र छोड़ कर एक ही मानसिकता से नहीं जी सकते . अगर हमें किसी जाति/ धर्म विशेष से नफरत है तो क्यों ना उनसे सामजिक जीवन में भी दुरी बना कर रखे ना तो उनसे बात करे ना तो उनके बनाये वास्तु को ईस्तमाल करे और ना ही उनको कोई सामान बेचे और ना ही उनके करीबियों से कोई सम्बन्ध रखे अगर ऐसा कर सकते है तो खुल कर अपने विचार समाज में और सोशल मिडिया में भी रखे अगर नहीं तो फिर क्यों दोहरे चरित्र के साथ जी कर अपने ही अस्तित्व को अपनी ही परछाई को धोखा दे रहे है .
कल देश के मशहूर पत्रकार रोहित सरदाना की मौत की खबर आयी . सभी को दुःख हुआ यह भी नहीं कह सकता क्योकि सोशल मिडिया में देखा कोई अच्छा हुआ कह रहा है कोई गलत हुआ करके दुःख जता रहा है कोई ऐसी तुलना कर रहा है कि हे भगवान् रोहित सरदाना की जगह फला व्यक्ति को ले जाना था नाम के मात्राओं में थोड़ी फेर बदल करके अपनी चतुराई तो पेश कर रहा है किन्तु किस ओर इशारा कर रहा सभी को समझ आता है किसी को कोरोना संक्रमण ने घेर रखा हो तो उसके पाप पुन्य गिनाने वालो की भी फौज सामने आ जाती है जैसे कि ईश्वर ने सबका हिसाब किताब उसे ही दे रखा हो और कह दिया हो कि जाओ इसे प्रचारित करो . मौत किसी की दुःख होता है और वो भी ऐसी मौत जिसकी जिम्मेदार वैश्विक आपदा और सही समय में सही इलाज का मिलना . वर्तमान समय में हमने कई अपनों को खोया ऐसे कई चेहरे सोशल मिडिया में दीखते है जिनसे हमारा कही न कही कोई सम्बन्ध रहा हो कभी व्यापारिक तो कभी सामजिक तो कभी दोस्ताना तो कभी पारिवारिक . कोरोना आपदा किसी पर भी भेदभाव नहीं कर रही है सभी के लिए एक काल बनकर आयी है और सभी की यही कोशिश है कि इस काल से जंग में जीत इंसानों की हो किन्तु यहाँ तो इंसान के जंग हारने के बाद उसके पाप पुन्य का फैसला और विश्लेषण शुरू होने लग गया है क्या यही समाज में रहना चाहते है हम क्या हमें ऐसे ही समाज की आवश्यकता है जहां उसके कर्मो का लेखा जोखा चंद मतलब परस्त लोग कर रहे है और अपने आप को समझदार समझने लगे है अपने आको को खुश करने के लिए अपनों के जाने के दुःख को भूल कर मौत को भी तुलनात्मक दृष्टी से देखने लगे है .
एक मौत का अर्थ सिर्फ एक इंसान की जान का जाना ही नहीं होता एक मौत के कारण किसी की खोख सुनी होती है तो कोई अनाथ होता है , कोई बहन अपने भाई को खो देती है , कोई दोस्त अपने जिगरी दोस्त से बिछड जाता है . एक मौत कई लोगो को दुःख पहुंचती है कई परिवार टूट जाते है कई लोगो के भविष्य अँधेरे की गर्त में चले जाते है . मेरी नजर में देश द्रोही वो है गद्दार वो है जिसे कानून ने सजा दी हो भारत के संविधान में उसे मुजरिम का दर्ज दिया हो उनकी मौत उनके कर्मो के आधार पर हो रहा है किन्तु कोरोना आपदा में हुई मौत का भी अगर विश्लेषण हो ये क्या सही है . शौर्यपथ समाचार पत्रकारिता की दुनिया में अपना मुकाम बनाने वाले रोहित सरदाना को श्रधांजलि अर्पित करता है और ईश्वर से ये प्रार्थना करता है कि काल के इस खेल से हमें और हमारे देश को बाहर निकाले . कोरोना से जंग में भारत की जीत हो सब कुशल से हो सभी का मंगल हो . जय हिन्द ( शरद पंसारी - संपादक , दैनिक शौर्यपथ समाचार पत्र )

दुर्ग / शौर्यपथ / दुर्ग जिले में 6 अप्रेल से जारी लॉक डाउन के बीच अब आम जनता का सब्र का बांध टूटता नजर आ रहा है, छोटी छोटी चीजों के लिए लोगो को तरसते देखा जा रहा है ! रोज मजदूरी कर जीवन यापन करने वाले परिवार अब सड़कों पर भीख मांग कर अपना काम चलाने को मजबूर हो गए है, तो वही मध्यम वर्गीय परिवार भी एक दुसरे की आगे क़र्ज़ के लिए हाथ फैलाते नजर आ रहे है ! पूर्व वर्ष में लगाए गए लॉकडाउन से सबसे ज्यादा निचले स्तर और मध्यम वर्गीय लोग प्रभावित हुए थे, और आज पहले से जयादा बद्तर स्थिति में जीवन यापन कर रहे है !
गंभीर सवाल है विचार करे सरकार क्योकि सिर्फ किसान किसान करने से नहीं चलेगा शहर में भी लोग बसते है
आज आम जनता का सवाल है शासन प्रशासन से अगर इस प्रकार से आपको लॉकडाउन करने का आदेश देता है, तो लॉकडाउन के दौरान घर का और दुकान बिजली का मीटर, टेलेफोन और मोबाइल का मीटर, दुकानों में काम करने वाले लोगो का सैलरी, बच्चों के स्कूल की फीस और घर में लगने वाला राशन ये सब शासन प्रशासन क्यों नहीं देता ! क्योकि हम तो शासन प्रशासन का सहयोग करने उनके आदेश का पालन करने घरों में बैठे है, कहा से आएगा ये पैसा !
शासन प्रशासन के लिए पूरी गंभीरता से विचार करने योग्य विषय
दुर्ग जिले की बात करे तो लगभग सभी ग्राम पंचायत में एक से दो मुक्तिधाम है इस हिसाब से दुर्ग जिले में लगभग 500 से अधिक मुक्तिधाम है जहा शवों का दाह संस्कार किया जाता है, लेकिन आज सभी के शवों का कुछ सिमित जगहों पर अंतिम संस्कार किया जा रहा है, तो स्वभाविक सी बात है कि वहा शवों की संख्या भी जयादा होगी और लोगो को आशंकित भी करेगी !
इसी तरह दुर्ग जिले में बहुत से छोटे और बड़े क्लिनिक और अस्पताल संचालित है, अब क्योकि मरीज और अस्पताल के बीच अब कोरोना टेस्ट आ गया है, जिसको लेकर नार्मल इलाज प्रतिबंधित है, अब मजबूरन लोगो को इलाज के लिए सिमित और शासन द्वारा चिन्हित अस्पतालों में ही आना पड़ रहा है, और शासन प्रशासन ने मेडिकल स्टोर पर कुछ दवाइयों को प्रतिबंधित किया हुआ है, जो बिना किसी डॉ की पर्ची के आपको नहीं दी जायेगी, इसलिए भी थोड़ी थोड़ी तकलीफ के लिए लोगो सिमित अस्पताल तक आना पड़ रहा है, तो स्वभाविक सी बात है कि जब सिमित जगह पर लोग इलाज करायेंगे तो भीड़ भी होगी और इलाज में लापरवाही भी होगी, और स्वाभाविक रूप से होने वाली मौतों के साथ कुछ तो भीड़ की वजह से इलाज के आभाव में भी मौत हो रही ! ऐसे में जिले भर की अनेक जगहों पर होने वाले दाह संस्कार को सिमित जगह पर किया जाए तो देखकर दहशत का माहौल बनना भी लाजमी है !
मै कोरोना के संक्रमण और उससे होने वाली मौतों पर सवाल खड़ा कर रहा हूँ जिसपर विचार तो जरुर किया जाना चाहिए, मै किसी भी प्रकार से ये नहीं कहता कि कोरोना है या नहीं है, लेकिन जिस तरह से अस्पतालों में बिना पीपीई किट और बिना दस्तानो के कोरोना मरीजों का इलाज जारी है, उसके मद्देनजर कोरोना मरीज को लेकर होने वाली गंभीरता, दहशतगर्दी और लॉकडाउन जैसी स्थिति से हमें बाहर जरुर आने का प्रयास करना चाहिए ! क्योकि गंभीरता और दहशतगर्दी के कारण जहा लोग मानसिक रूप से बीमार हो रहे है, तो वही लॉकडाउन के चलते आबादी का एक बड़ा हिस्सा भुखमरी के मुहाने पर पहुच गया है ! जिसमे से आने वाले समय में कई लोग के पास अपराध का रास्ता अपनाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा, क्योकि इंसान की तीन जरूरतें उनको अपराध की ओर खिचती है जहा वो अंजाम से बेपरवाह हो जाता है ! पहला अगर परिवार को भुखमरी का सामना करना पड़ रहा हो तो, दूसरा अगर उसका कोई अस्पताल में भर्ती हो और इलाज के लिए उसके पास पैसे ना हो तब और अगर फीस के आभाव में उसके बच्चों का स्कूल निकालने की बात हो तब, ये तीन ऐसी जरूरतें है जिसको लेकर कोई भी किसी भी हद तक जा सकता है !

    शौर्य की बातें / आपदा में अवसर का मतलब आज हर कोई धन कमाने के बारे में सोंचने लगता है किन्तु जगदलपुर के इस चिकित्सक ने आपदा में अवसर मानव सेवा के रूप में अर्जित किया है . बहुत ही कम सुनने में आया कि कोई चिकित्सक इस समय मुफ्त में कार्य कर रहा हो , डॉक्टर अपनी गरिमा का ध्यान रख कर कुछ गरीब लोगों का इलाज़ फ्री कर देंगे तो शायद कुछ लोगों का जीवन बचाया जा सकेगा। भगवान का नाम बाद में पहले डॉक्टर याद आता है शारीरिक पीड़ा होने पर भगवान् से पहले कोई याद आता है तो वो चिकित्सक ही होता है इंसान बड़ी उम्मीद के साथ उसके पास
उसका केवल यह कहना कि चिन्ता की कोई बात नहीं मन को सुकून मिल जाता है आधी बीमारी भाग जाती है . प्रसव से लेकर मृत्यु तक साथ निभाने वाला ,नन्हें दूधमुँहे बच्चे को भी उसके इलाज पर छोड़कर निश्चिंत यहां सब कोई बराबर होता है न कोई अमीर न कोई गरीब न जात- पात न धर्म का बंधन अपनी जीवन की डोर उस पर सौंपते हैं .रात हो या दिन हर वक्त इलाज को तत्पर दंगा-फ़साद हो या दुर्घटना लाइलाज बीमारी हो या सर्दी-जुखाम वह भी अपनी पूरी ताकत और ज्ञान के साथ अगर अच्छा हो जाए तो तमाम दुआएं मिलती है .हर शख्स धन्यवाद देता है चेहरे खिल उठते हैं पर अगर वह सफल न हुआ तो तोड़-फोड़ शुरु हो जाती है .वह ईश्वर तो नहीं है वह भी जब ऑपरेशन करता होगा
तो कामना करता होगा कि उसके हाथ कांपें नहीं तभी तो कहता है ऑपरेशन सफ़ल है आगे ऊपर वाले के हाथ में है जीवन बचाने वाले का धन्यवाद तो करना ही चाहिए कोशिश तो की .डॉक्टर का सम्मान करना सभी की जिम्मेदारी है आखऱि उसके भरोसे तो हम हैं ऊपर वाला तो नहीं आ सकता तभी तो उसने अपने प्रतिनिधि के रूप में उसे भेजा है .
एक ऐसे ही चिकित्सक है जगदालपुर निवासी डॉ. भंवर शर्मा जिन्होंने इस आपदा के समय मोबाइल द्वारा निशुल्क परामर्श देने की पहल की और आम जनता से अपील की कि जो भी होम आइसोलेशन में है वो निर्धारित समय में स्वास्थ्य सम्बन्धी परामर्श ले सकते है . डॉक्टर भंवर शर्मा के विषय में जिन्होंने मानव सेवा में अपना 10 वर्ष लगा दिया तथा मरीजों का साथ कभी फीस के कारण नहीं छोड़ा अपनी सामथ्र्य अनुसार हर संभव मदद की धन्य हैं ऐसे डॉक्टर, यदि मैं डॉक्टर होता तो मैं भी ऐसा करने का प्रयत्न करता.
नरेन्द्र भवानी के कलम से - संभाग प्रमुख ( जगदलपुर - दैनिक शौर्यपथ समाचार )

शौर्यपथ नजरिया / ऑक्सीजन सिलेंडर पर गुजरात के नेताजी ने अपनी फोटो क्या लगाई बवाल मच गया है। इसकी आलोचना के साथ लोग तरह-तरह की टिप्पणियां कर रहे है। किंतु इस पर मेरा अपना एक नज़रिया है। मेरा मानना है कि कोई अपने जेब के पैसे खर्च कर सेवा कर रहा है तो सेवा का महत्व होना चाहिए। 200 बिस्तरों का कोविड अस्पताल बनाना और मरीजों को सिलेंडर उपलब्ध कराना कोई छोटा काम नही है। ऐसे में अगर वो पैसे खर्च कर नेम और फेम चाहता है तो इसमें गलत क्या है। यहा तो ऐसे भी है जो भ्रष्टाचार से करोड़ों-अरबों कमाकर भी आज के इस बुरे दौर में घर के भीतर दुबके बैठे है। मित्रों, मोदी जी हो या भुपेश बघेल जी किस सरकारी योजना में इनकी फोटो नही है यह बताइये? हमने तो मोबाइल बस्ते,राशनकार्ड तक में कभी रमन सिंह जी फिर भुपेश बघेल जी की फोटो देखी है।
इतना सब तर्क करने के पीछे मेरा यही मकसद है कि सेवा में लगे किसी व्यक्ति की आलोचना नही होनी चाहिए। अगर नाम और सम्मान के मकसद से ही सही अगर कोई जरूरतमंदों की मदद कर रहा है तो उसे सराहे। एक बात और ध्यान रखना चाहिए कि हमारे देश का सरकारी सिस्टम कोरोना से लड़ाई में बेहद कमजोर है। आज जो भी बेहतर स्थिति बन रही है उसके पीछे कही न कही विभिन्न सामाजिक संस्थाओं, स्वयंसेवी लोगों का अमूल्य योगदान है। ऐसे में उनसे जुड़े किसी तुच्छ विषय को अगर कोई बहस का मुद्दा बनाता है तो निश्चित ही वे हतोत्साहित होंगे। यह मेरी सोंच है, इस मुद्दे पर आपकी राय क्या है बताये?
( देवेन्द्र गुप्ता के फेसबुक वाल से )

दुर्ग / शौर्यपथ / प्रदेश में कांग्रेस की सरकार , दुर्ग विधान सभा में कांग्रेस के विधायक , दुर्ग निगम में कांग्रेस की सरकार होने के बाद भी अगर दुर्ग विधायक और महापौर अपने प्रशासनिक अधिकारियों की शिकायत लेकर जायेंगे तो क्या समस्या का हल निकल जाएगा क्या दुर्ग में जो आपदा आयी है वो कम हो जायेगी . दुर्ग इस समय विकट परिस्थितियों में जी रहा है . आम जनता दो वक्त के अच्छे भोजन के लिए तरस रही है बावजूद इसके जिला प्रशासन के साथ है . आये दिन निजी अस्पतालों की मनमानी , दवाइयों की कमी , बेड की कमी , शमशान घाट में अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी की कमी , स्थान की कमी , घर में पौष्टिक भोजन का अभाव , इलाज के अभाव में मौत के आंकड़ो का लगातार बढ़ना इन सब विपरीत स्थिति के बाद भी दुर्ग जिला प्रशासन अपने जिलाधिकारी के आदेश का पालन करते हुए २४ घंटे कार्यरत है . आज की तारीख में हर शासकीय कर्मचारी २४ घंटे की ड्यूटी में है कभी भी किसी भी समय कार्य के लिए बुलाने का आदेश हो रहा है . इस विषम परिस्थिति में जिला प्रशासन के हर अधिकारी कोरोना से जंग लड़ने की कोशिश कर रहे है , सामजिक संस्थाए अपने अपने स्तर पर मदद कर रही है , ऐसी ही कुछ सामजिक संस्थाओ ने निगम के द्वारा गरीबो को निःशुल्क भोजन उपलब्ध करा रहा है , अस्पतालों में साईं प्रसाद द्वारा निःशुल्क भोजन तो जन समर्पण समिति के सदस्यों द्वारा रेलवे स्टेशन में गरीबो को निर्बाध भोजन की व्यवस्था कराने में लगा है .
ये सही है कि स्थिति काबू से बाहर हो रही है बावजूद इसके दुर्ग जिलाधीश डॉ. नरेन्द्र भूरे लगातार कोशिश कर रहे है कि हर ज़रूरतमंद को समय से इलाज मिले इसके लिए निरंतर नए नए कदम उठा रहे है . निजी अस्पताल सहित शासकीय व शासन के अधिकृत अस्पताल में सभी श्रेणी के बेड बढाने की कवायद कर रहे है . स्वास्थ्यकर्मी अपनी जान की परवाह किये बिना सेवा दे रहे है . हालाँकि ऐसे समय में कुछ निजी नर्सिंग होम के संचालको द्वारा मरीजो के परिजनों से मनमानी शुल्क लेने की भी शिकायत मिल रही है जिस पर प्रशासन कार्यवाही भी कर रहा है , दवाइयों की कालाबाजारी रोकने नित नए नए कदम उठाये जा रहे है . सीमित संसाधनों के बाद भी सुविधाओ का विस्तार किया जा रहा है .
ऐसे विपत्ति के समय दुर्ग को हमर दुर्ग कहने वाले विधायक अरुण वोरा और उनके द्वारा दुर्ग निगम में चुने गए महापौर धीरज बाकलीवाल द्वारा जिला प्रशासन की शिकायत प्रदेश के मुख्यमंत्री से करना कहा तक उचित है . शिकायत करना नहीं करना उनका स्वाधिकार है पूर्व में भी दुर्ग विधायक एवं महापौर द्वारा बाजार अधिकारी की शिकायत तात्कालिक आयुक्त बर्मन से , तात्कालिक आयुक्त बर्मन की शुइकायत जिलाधीश से एवं सुनवाई ना होने पर मुख्यमंत्री से , अमृत मिशन की लचर कार्यप्रणाली पर अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा करना ये समय समय पर सही भी हो सकता है किन्तु वर्तमान स्थिति में जब जिला प्रशासन के साथ क्या अमीर क्या गरीब हर कोई खडा है और दुवा कर रहा है कुछ अच्छा होने की ऐसे समय में जिला प्रशासन की शिकायत , स्वास्थ्य विभाग की शिकायत कही ना कही उन अधिकारियों / कर्मचारियों का मनोबल तोड़ रही है जो अपनी जान जोख़िम में डाल कर २४ घंटे कार्य कर रहे है .
आज दुर्ग निगम क्षेत्र के ऐसे कई मोहल्ले है जहाँ सेनेटाईजर तक नहीं हुआ है , कई परिवार ऐसे है जो तकलीफों में है , कई परिवार ऐसे है जो कु व्यवस्था से अपनों को खो चुके है ऐसे समय में उनका संबल बढाने की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी निगम के महापौर और क्षेत्र के विधायक की रहती है किन्तु जिस तरह दो दिन पूर्व दुर्ग विधायक और निगम के महापौर ने जिले के स्वास्थ्य विभाग की लचर व्यवस्था की शिकायत मुख्यमंत्री से की और उसे प्रेस विज्ञप्ति जारी कर सभी को सूचित किया इससे ये तो यही संकेत जाता है कि दुर्ग विधायक स्वयं ये मानते है कि भूपेश सरकार के अंतर्गत अधिकारी लापरवाह हो गए है और स्वास्थ्य मंत्री की विभाग में कोई पकड़ नहीं क्योकि कुछ दिन पहले ही प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिंहदेव दुर्ग में मेराथन बैठक लेकर स्थिति के जल्द सुधरने की बात कही थी और अधिकारी उस दिशा में कलेक्टर भूरे के मार्गदर्शन में कार्य कर भी रहे है .

दुर्ग / शौर्यपथ  ( सम्पादकीय ) / दुर्ग शहर आज संक्रमण की चपेट में है , अस्पताल में बिस्तर नहीं , मुक्तिधाम में जगह नहीं , मेडिकल में दवाई नहीं , रसोई में राशन नहीं कुछ ऐसा ही मंजर है वर्तमान में दुर्ग शहर का किन्तु दुर्ग शहर की जनता ने जिन प्रतिनिधियों को चुना आज वो सब नदारद है चाहे भाजपा से राज्य सभा सांसद डॉ. सरोज पाण्डेय हो , लोकसभा सांसद विजय बघेल हो , दुर्ग के विधायक अरुण वोरा हो या फिर विधायक के निर्देश पर चलने वाले महापौर धीरज बाकलीवाल हो आज लॉक डाउन के ५ दिन हो गए शहर की स्थिति बद से बद्दतर हो रही है किन्तु इनमे से कोई भी जनप्रतिनिधि ऐसा नहीं जो जमीन में आकर आम जनता की परेशानियों को हल करने की कोई पहल कर रहा हो . साल भर हो गए कोरोना संक्रमण की बीमारी के दहशत को किन्तु इन साल भर में किसी भी जनप्रतिनिधियों द्वारा कोई ऐसा कदम उठाया गया हो जो समाज के लिए एक मिसाल बने . सांसद बघेल भिलाई तक सिमिति है दुर्ग की जनता से उन्हें सिर्फ इतना ही कार्य की वोट के लिए मैदान में उतरते है जबकि वो ये भूल गए कि दुर्ग विधानसभा की जनता ने उन्हें बहुमत से विजयी बनाने में अपना योगदान दिया है किन्तु बयानबाजी के अलावा आम जनता के स्वास्थ्य के लिए चर्चो के अलावा कोई सार्थक पहल की हो ऐसा कही से नजर नहीं आता . डॉ. सरोज पाण्डेय जिनकी राजनीती की शुरुवात दुर्ग से हुई और केन्द्र में एक ताकतवर नेता के रूप में पहचान बनाई किन्तु क्या उनके द्वारा दुर्ग की जनता के स्वास्थ्य के लिए केंद्र से कोई विशेष मदद के लिए कदम उठाया गया है आज दुर्ग की जनता बेबस ससी नजर आ रही है शासकीय अधिकारी अपनी ड्यूटी निभा रहे है जो अच्छा करेगा उसे प्रमोशन मिलेगा जो कुछ नहीं करेगा उसे स्थानान्तरण इससे ज्यादा उन अधिकारियों के साथ कुछ नहीं होना ये अधिकारी जनता की पसंद के नहीं शासन के भेजे हुए अधिकारी है आज यहाँ कल वह किन्तु दुर्ग की जनता ने जिन प्रतिनिधियों को अपना अमूल्य मत दिया और इस मुकाम तक पहुँचाया वो प्रतिनिधि आज कहा है जब मुक्तिधाम में शव जलाने की जगह नहीं , अस्पताल में बिस्तर नहीं , रसोई में खाना नहीं .


दुर्ग शहर की जनता ने दुर्ग के विधायक के रूप में अरुण वोरा को चुना हजारो मतों से विजयी बनाया किन्तु आज साल भर की विकट स्थिति में विधायक वोरा द्वारा शहर को स्वास्थ्य के नाम पर क्या दिया गया , शिक्षा के नाम पर क्या दिया गया वर्तमान से में जो स्थिति है उस पर विधायक क्या प्रयास कर रहे है . दुर्ग में जनता कोरोना से नहीं कोरोना का सही समय पर समुचित इलाज के अभाव में दम तोड़ रही है . शहर के विकास के लिए जितनी आवश्यकता सड़क नाली की होती है उतनी ही आवश्यकता , स्वास्थ्य और शिक्षा की होती है दुर्ग के स्वास्थ्य विभाग की हालत अब सारी दुनिया के सामने है हर कोई बेबस है मजबूर है क्योकि ना सही समय पर इलाज हो पा रहा है और ना सही समय पर दवा मिल पा रही है . कौन दोषी है स्थानीय विधायक , सांसद ,राज्य सरकार या फिर केंद्र सरकार जिम्मेदार जो कोई भी हो किन्तु दुर्ग की जनता प्रति पल एक डर में जी रही है कि कब कहा से कौन सी खबर आ जाए कब कोई अपना हमसे बिछड जाए इसी शंका और भय में आज दुर्ग के लोग जी रही है . शहर के महापौर को इसमें कोई दोष दिया भी नहीं जा सकता क्योकि ये तो सभी जानते है कि दुर्ग के महापौर जनता की पसंद के नहीं विधायक की पसंद के है और हर कार्य विधायक की मंशा के अनुरूप करते है .
अब सोंचने का समय आ गया है कि इस विपत्ति में बयानबाजी करने वाले नेताओ का सच सबके सामने है अब आवश्यकता है ऐसे को चुने जो आम जनता की तकलीफों में साथ रहे हौसला बढ़ाये ना कि बंद कमरों में मीटिंग करे और उस मीटिंग की बात को सोशल मीडिया में प्रचारित कर अपने आप को जनता का हितैषी बताये . आज दुर्ग वासियों के लिए विपत्ति की घडी है ईश्वर भी आज परीक्षा ले रहा है जो पास हुआ वो कल का सूरज देखेगा जो फेल हुआ वो इश्वर के चरणों में जाएगा जितनी अँधेरी रात होगी उजाला भी उतनी ही सुहानी होगी . अब भी वक्त है दुर्ग की जनता के हितो के लिए बिना राजनितिक के बिना दोषारोपण के एक सार्थक कदम बढाए और संविधान में दी गयी शक्तियों के सहारे दुर्ग की बदहाल व्यवस्था को पटरी पर लाये एक बार फिर दुर्ग की जनता के दिलो में अपनी जगह बनाए .

शौर्य की बाते / होली का त्योहार रंगों का त्योहार सोचे अगर जिंदगी में कोई रंग ही ना हो तो कैसी रहेगी जिंदगी आज सब यह कोशिश में लगे हैं कि कैसे भी प्रशासन की नजर से बस कर होली खेले खूब मस्ती करें किंतु क्या यह सही होगा कोरोना जैसी संक्रमण जो आज दुर्ग में और प्रदेश में तेजी से फैल रहा है ऐसे माहौल में होली खेलकर अपनी जिंदगी दाव में लगाना है क्या सही होगा होली तो हर साल आता है किंतु यह बीमारी है सदियों में पहली बार आई है आज जो भी इस दुनिया में है उसने ऐसी महामारी कभी नहीं देखी होगी अगर होली के रंग में डूब कर इस गंभीर बीमारी को गले लगाते हैं तो जीवन खतरे में पड़ सकता है ,
होली तो अगले साल भी बनाई जा सकती है किंतु यह सोचिए कि अगर इस बीमारी के कारण है कोई अपना हम से सदा के लिए दूर हो गया तो क्या कोई भी त्यौहार बना पाएंगे नहीं मना पाएंगे ऐसा इसलिए कह रहा हूं की होली के इस रंग में अब डूबने की इच्छा नहीं होती कोरोना तो पहली बार आया है किंतु जब से मेरा लाल मेरा निक्की मेरा शौर्य मुझसे दूर हुआ है तब से क्या होली क्या दिवाली हर त्यौहार बेरंग हो गई जिंदगी बियाबान है सिर्फ जी रहे हैं दो वक्त खा रहे हैं और सांस ले रहे हैं क्या खुशी क्या गम किसी बात का एहसास नहीं है .
मेरे लाल के बिना मेरी जिंदगी एक विराने से ज्यादा कुछ नहीं परिवार में एक भी व्यक्ति ना रहे तो परिवार का हो जाता है आज मेरा परिवार अधूरा है और हर खुशी मुझसे खुश हो दूर सिर्फ एक याद की ऐसी ही होली में मेरा निक्की रंग से सराबोर रहता था दिनभर होली के त्यौहार में मदमस्त रहता था उसे देख कर दिल खुश हो जाता था और बिना रंग के ही यह दुनिया रंगीन गलती थी आज उसके बिना हर रंग फीका है इस संक्रमण में आप अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें एक 2 साल होली नहीं खेलने से जिंदगी नहीं रुकेगी किंतु अगर जिंदगी रुक गई तो पूरे परिवार टूट जाता है इसलिए निवेदन है कि जो दुख जो तकलीफ मैं मेरी पत्नी मेरी बेटी झेल रहे हैं पैसा दुख आपके पास कभी ना आए आपका परिवार हमेशा आपके साथ रहे लव यू निक्की

दुर्ग / शौर्यपथ ख़ास रिपोर्ट /

छत्तीसगढ़ एक ऐसा प्रदेश जिसका जन्म हुए अभी 21 वर्ष भी पूर्ण नहीं हुए है . अगर छत्तीसगढ़ की बात करे तो छत्तीसगढ़ में ऐसे कई नेता हुए है जिनका राजनितिक कद प्रदेश ही नहीं देश में बहुत उंचा रहा है . श्यामा चरण शुक्ल , विद्या चरण शुक्ल , चंदुलाल चंद्राकर , अजीत जोगी , ताराचंद साहू , मोतीलाल वोरा ये ऐसे नाम है जिनका जिक्र राजनितिक गलियारों सहित आम जनमानस में बड़े सम्मान से लिया जाता है . ये वो नाम है जो किसी पहचान के मोहताज नहीं है . ये खुद में एक पहचान है इनके नाम के सहारे कई लोगो की राजनीती परवान चढ़ी है . आज इस दुनिया में भले ही ये महापुरुष नहीं है किन्तु इनका नाम आज भी जीवित है अजर अमर है .
किन्तु इन दिनों राजनितिक हलको में चर्चा है तो स्व. मोतीलाल वोरा के समाधी स्थल निर्माण की . बता दे कि 22 दिसंबर को शिवनाथ नदी तट पर स्व. मोतीलाल जी वोरा का अंतिम संस्कार हुआ था जिसमे प्रदेश सहित देश के बड़े बड़े नेता श्रधांजलि देने आये हुए थे . शिवनाथ नदी तट पर स्थित मुक्ति धाम में हुए अंतिम संस्कार के बाद किसी ने यह नहीं सोंचा था कि शमशान घाट भूमि पर समाधी स्थल का निर्माण हुआ था शायद परिजनों ने भी नहीं सोंचा होगा इस बात को किन्तु कहते है चाटुकारिता की अति कभी कभी विवादों का तूफ़ान ले आती है ऐसा ही कुछ हो रहा है इस समाधी स्थल निर्माण पर .
वैसे तो मुक्तिधाम की जमीन एवं साथ में लगी पुष्प वाटिका की जमीन पर जमीनी विवाद काफी सालो से चल रहा है . खाते है कि यह जमीन शर्मा परिवार ने शहर की जनता को मुक्ति धाम के लिए दी थी वही कुछ हिस्सा पटेल परिवार ने भी शासन को दान किया था . बस यही चर्चा का विषय है कि दान की जमीन पर देश के कद्दावर नेता का समधी स्थल आखिर किस मद से और किस नियम के तहत बन रहा है और आखिर ऐसी क्या ज़रूरत आ पड़ी है समाधी स्थल के निर्माण की जबकि दुर्ग के बाबूजी स्व. मोतीलाल वोरा दुर्ग की जनता के दिलो में वर्षो से राज कर रहे है फिर ये विवाद क्यों .
दुर्ग सहित प्रदेश की बात करे तो छत्तीसगढ़ में ऐसे कई दिग्गज नेता हुए है जो स्व. मोतीलाल वोरा के समकक्ष रहे है किन्तु किसी भी के परिजनों ने या शासन ने उनकी समाधी स्थल बनाने की नहीं सोंची . हालाँकि चंदुलाल चंद्राकर जिन्हें छत्तीसगढ़ में राजनितिक का चाणक्य कहा जाता है छत्तीसगढ़ का स्वप्न दृष्टा के रूप में पहचान बनाए है उनकी समाधी स्थल उनके पैत्रिक ग्राम में है किन्तु जिस स्थान पर समाधी स्थल का निर्माण हुआ है वो जमीन भी उनके परिवार की निजी जमीन है और समाधी स्थल का निर्माण भी परिवार के सदस्यों ने अपनी पूंजी से बनाया है .
वही दुर्ग की ही बात करे तो दुर्ग से चार बार ?म जनता के आशीर्वाद से सांसद रह चुके स्व. तारचंद साहू प्रदेश के कद्दावर नेता रह चुके है . उनके मृत्यु के पश्चात प्रतिवर्ष उनकी पुन्तिथि तो मनाई जाती है किन्तु उनका कोई समाधी स्थल नहीं है . प्रदेश की बात करे तो प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में इतिहास के पन्नो पर सदैव अजीत जोगी का नाम अंकित हो गया उनकी भी समाधी स्था है किन्तु वो उनके पैत्रिक गाँव में और निजी भूमि पर जिस पर निर्माण भी उनकी निजी संपत्ति से हुआ है . वही प्रदेश में श्यामाचरण शुक्ल जैसे राजनेता है जो अविभाजित छत्तीसगढ़ के ऐसे नेता है जो मध्यप्रदेश के तीन बार के मुख्यमंत्री रहे है . विद्या चरण शुक्ल का नाम भी प्रदेश के ऐसे कद्दावर नेताओ में आता है जो केन्द्रीय राजनीती में भी अपनी मजबूत पकड़ बनाए हुए थे विधायक व सांसद भी रह चुके विद्या चरण शुक्ल की नक्सली हमले में मौत हुई जिसे आज भी कांग्रेस पार्टी शहादत दिवस के रूप में मनाता है जिसमे शुक्ल सही प्रदेश के कई कद्दावर नेताओ की मौत हुई थी किन्तु इनमे से किसी की भी समाधी स्थल का कही भी निर्माण शासकीय भूमि में शासन के खर्चे से नहीं हुआ ऐसे में क्या कुछ चाटुकारों के चाटुकारिता का प्रभाव है कि स्व. मोतीलाल वोरा जैसे कद्दावर नेता की छवि इस निर्माण के सहारे धूमिल किया जा रहा है . आज भले ही सत्ता की ताकत के आगे सब मौन है किन्तु ये लोकतंत्र है यहाँ सत्ता आती जाती रहती है जिस तरह शहर में हो रहे अव्यवस्था पर लगातार महापौर धीरज बाकलीवाल और विधायक वोरा का विरोध हो रहा है और पोस्टर की राजनीती के सहारे शहर को भ्रमित किया जा रहा है जिस तरह रबर स्टाम्प की सत्ता की बात विपक्ष में रह कर कांग्रेस कर रही थी आज उन पर भी यही आरोप लग रहा है . आने वाले समय में यही समाधी स्थल विवाद को हमेशा हवा देता रहेगा भले ही आज सब मौन है किन्तु चर्चा तो लगातार चल ही रही है कि आखिर क्यों ,कैसे और किस मद से किस नियम से हो रहा है समाधी स्थल का निर्माण जिसका जवाब ना तो महापौर बाकलीवाल दे रहे है , ना शहर के विधायक वोरा दे रहे है , ना निगम आयुक्त हरेश मंडावी दे रहे है ....

दुर्ग / शौर्यपथ / स्व. मोतीलाल जी वोरा वो एक नाम ही नहीं एक ऐसी शख्सियत है जिनको किसी पहचान की ज़रूरत नहीं आजीवन अविवादित रहे स्व. मोतीलाल जी वोरा के समाधी स्थल निर्माण में जिस तरह शासन के नियमो की अनदेखी हो रही उससे दुर्ग शहर की जनता में चर्चा का विषय है , खुल कर तो कोई नहीं कह रहा किन्तु अधिकाश लोगो का मत है कि जिस तरह निगम की शहरी सरकार के मुखिया और पीडब्ल्यूडी विभाग के अधिकारियो द्वारा चुप चाप निर्माण कराया जा रहा है परदे के पीछे उससे जनता को ये तो अहसास हो गया कि शहरी सरकार सिर्फ अपने स्व हित का विचार कर रही .
स्व. मोतीलाल जी वोरा अपने जीवन काल में किसी के मोहताज़ नहीं रहे किसी विवाद से उनका नाता नहीं रहा वही स्थिति वर्तमान समय में दुर्ग विधायक और मोतीलाल जी वोरा के पुत्र अरुण वोरा के साथ है . भरे पुरे धनाड्य परिवार से है और अपने बाबूजी के चहेते ऐसे में निगम प्रशासन के अधिकारियों और चाटुकारों द्वारा यु समाधी स्थल निर्माण जिसकी अनुमति न तो शासन से मिली और ना ही निगम से कोई मद प्राप्त हुआ बिना अनुमति के निर्माणाधीन कार्य से शहर विधायक की छवि भी पुरे शहर में धूमिल हो रही है और आम जनता इसे सत्ता की ताकत का खेल समझ रही है . वही निगम के जिम्मेदार इंजिनियर चापलूसी की पराकाष्ठ को पार करते हुए अपने हित के लिए विधायक को खुश करने में लगे है किन्तु इन सबका असर ये हो रहा है कि प्रदेश ही नहीं देश की राजनीती में एक निर्मल छवि के रूप में पहचान बनाने वाले दुर्ग के सबसे सम्मानित नेता स्व. मोतीलाल जी वोरा का नाम अनचाहे रूप से सामने आ रहा है शायद ये स्वयं उनके पुत्रो अरविन्द वोरा , अरुण वोरा और उनके पोतो तथा दुर्ग के कम समय में सबसे ज्यादा प्रसिद्धि पाने वाले संदीप वोरा और सुमित वोरा को भी ये अच्छा नहीं लगेगा कि उनके परिवार के आदरणीय की समाधी स्थल बिना अनुमति के दान की जमीन पर बने .
अज कोई गरीब या आम जनता नाली के उपर एक फीट भी निर्माण कर लेती है या फिर बिना अनुमति भवन ( खुद की जमीन पर ) बनाने का कार्य शुरू कर देती है , या एक दो घंटे के लिए सडक के किनारे कोई प्रदर्शनी लगा लेती है तब नेता , जनप्रतिनिधि ज्ञान देना शुरू कर देते है , अधिकारी पुरे लाव लश्कर सहित तोड़फोड़ के लिए पहुँच जाते है किन्तु यहाँ मुक्तिधाम में निर्माणाधीन समाधि स्थल में निगम का टेंकर पानी सप्लाई कर रहा है निगम के इंजिनियर देख रेख कर रहे और एक ठेकेदार बिना किसी अनुमति के शासकीय भूमि वो भी मुक्तिधान की जहा लोग जाने के लिए मरते है ऐसी जगह पर निर्माण कार्य कर रहा है और शहर के विधायक मौन है , महापौर बाकलीवाल मौन है , पीडब्ल्यूडी प्रभारी मौन है , जिला प्रशासन मौन है आखिर क्या सत्ता की ताकत के आगे सब नत मस्तक है और नियम कानून सिर्फ आम जनता के लिए है क्या यही विचार को लेकर शहर के विधायक जगह जगह हमर दुर्ग लिखवा रहे है क्या दुर्ग शहर पर आम जनता का अधिकार नहीं है क्या हर जनप्रतिनिधि अपने सत्ता के ताकत से आम जनता के लिए बने स्थानों पर कब्ज़ा करते रहेगा भविष्य में क्योकि आज तो शुरुवात है , सत्ता बदलती है सत्ता का केंद्र बिंदु बदलता है और परिणाम आम जनता को भुगतना पड़ता है . क्या जिला प्रशासन ऐसे अवैध निर्माण पर जिम्मेदार ठेकेदार के उपर कार्यवाही करेगा ? अगर नहीं कर सकता तो समाधी स्थल को विधिवत मान्यता देने का कार्य करे ताकि दुर्ग की शान कहे जाने वाले राजनीती के भीष्म पितामह स्व. मोतीलाल जी वोरा के नाम पर कोई दाग ना लगे ....

दुर्ग / शौर्यपथ / दुर्ग निगम आयुक्त इन्द्रजीत बर्मन जो दुर्ग निगम के सबसे युवा आयुक्त के रूप में जाने जाते है हालाँकि अब उनका ट्रांसफर कबीरधाम सयुक्त कलेक्टर के पद पर हो गया . आयुक्त बर्मन और दुर्ग निगम के मुखिया धीरज बाकलीवाल दोनों में आपसी सामंजस्य शुरू से ही नहीं बैठा या सीधे तौर पर कहा जाए तो दुर्ग के विधायक के अनुसार आयुक्त नहीं चले और दुर्ग निगम आयुक्त का ट्रांसफर हो गया . सत्ता पक्ष ख़ुशी मना रही है कि उनके लगातार शिकायतों का परिणाम रहा आयुक्त का ट्रान्सफर और इस बात को विधायक की हर बातो को बढ़ा चढ़ा कर समाचार बनाने वाले कुछ निजी वेब पोर्टल वालो ने भी लिखा और इस तरह लिखा कि विधायक वोरा से सामंजस्य नहीं बना पाने के कारण आयुक्त का स्थानान्तरण हो गया . वैसे आज आयुक्त बर्मन का स्थानान्तरण तो हो गया किन्तु उनके पद में कोई कटौती नहीं हुई जबकि ट्रांसफर कराने का दम भरने वाले कई छुटभैये नेता आज पद में है कल रहेंगे या नहीं ये भी निश्चित नहीं है .
वैसे आयुक्त बर्मन ने दुर्ग शहर को एक तरह से बर्बाद ही कर दिया था . जब से आयुक्त बर्मन ने दुर्ग निगम का पदभार संभाला निगम में फर्जी ठेकेदारों को लापरवाही से कार्य करने वाले ठेकेदारों को प्रतिबंधित किया वही गुपचुप ठेका पद्दति को खत्म करके ओपन ठेका चालू करवाया आयुक्त बर्मन के इस कार्य से चाटुकारों को काम मिलने में दिक्कत होने लगी जो कि सत्ताधारी नेताओ के चाटुकारिता के दम पर कार्य हांसिल करते थे . खैर अब एक बार फिर चाटुकारों को कार्य मिलने लगेगा और खुल कर कमीशन का खेल चलेगा पर इससे हमारे जनप्रतिनिधियों को क्या मतलब क्योकि चुनाव में अभी काफी समय है अभी तो अपने समर्थको का भला करना है .
         आयुक्त की दूसरी गलती यह रही की जिस नाली और नालो की सफाई का कार्य लाखो के ठेका से होता था और जिसे चंद लोग ख़ास लोग लेकर लीपापोती करके बड़े बड़े बिल निकाल लेते थे उस कार्य को बिना खर्च किये निगम के कर्मचारियों से ही करा लिया . आखिर क्या फायदा हुआ आयुक्त बर्मन को इससे उलटे ठेकेदारों की लाखो की कमाई पर रोक लग गयी यक्त बर्मन को ऐसा नहीं करना चाहिए था क्योकि पैसा कोई उनकी जेब से तो जा नहीं रहा जनता के टेक्स का पैसा था जिसका भुगतान ठेकेदारों को करना था कम से कम कुछ चाटुकार ठेकेदारों का तो भला हो जाता चार घर की रोटी की व्यवस्था तो हो जाती . जनता के पैसे का क्या जनता तो है ही पिसने के लिए . आखिर अभी भी तो जनता के पैसे से कार्य हो रहा है और नाम हमारे सम्मानीय विधायक का लिखा जा रहा है . दुर्ग के लाडले विधायक जो तीन बार विधायक रह चुके है ये अलग बात है कि तीन बार हार भी हुई है किन्तु राजनीती में हार जीत लगी रहती है . वर्तमान में तो शहर में विकास की धारा बह रही है कहा बह रही ये सिर्फ पोस्टर में ही नजर आता है . वैसे वर्तमान समय में विकास की धारा शहर के मुक्तिधाम तक पहुँच चुकी है जहा दान की जमीन पर निगम मद से भव्य समाधी स्थल बन रहा है . अब ये अलग बात है कि समाधी स्थल बनाने की अनुमति अभी न तो निगम प्रशासन से मिली और ना जिला प्रशासन से मिली . वैसे भी जिला प्रशासन की जमीन तो है नहीं वो उसे भी किसी परिवार ने दान किया है ताकि आम जनता अपने मृत परिजनों का अंतिम संस्कार कर सके किन्तु भविष्य में अब एक समाधी स्थल दुर्ग में भी होगा जहां बड़े बड़े नेताओ की समाधी बनेगी . शुरुवात तो हो चुकी है तो मंजिल तक ज़रूर पहुंचेगी . आम जनता का क्या है मुक्ति धाम में जब समाधि स्थल की श्रृंखला तैयार हो जाएगी तो कही भी किसी एक कोने में परिजनों का अंतिम संस्कार कर देंगे . आम जनता और कीड़े मकोड़े में आज के जमाने में ज्यादा अंतर नहीं है . वैसे मैंने भी विचार किया था कि मेरे बेटे के नाम से किसी चौक का नाम रखा जाए किन्तु मई तो आम जनता हूँ मेरी क्या औकात किन्तु एक दिन खुद अपनी जमीन लेकर एक भव्य मूर्ति और सुन्दर बगीचा बनाने का वादा किया है मैंने शौर्य से जिसे जनता को समर्पित करूँगा आम जनता के लिए जिस तरह मुक्ति धाम की जमीन को एक परिवार ने आम जनता के लिए समर्पित किया है .
           आयुक्त बर्मन एक प्रशासनिक अधिकारी है आज उनका ट्रांसफर जरुर हुआ है पर क्या नए आने वाले आयुक्त विधायक से सामंजस्य बैठा पायेंगे क्योकि महापौर से सामंजस्य बैठना उतना जरुरी नहीं जितना विधायक से सामंजस्य बैठाना ज़रूरी है क्योकि सारा कार्य विधायक की मंशा के अनुरूप होता है . वैसे दुर्ग की जनता के साथ अक्सर यही होता आया है अभी तक पूर्व की भाजपा सरकार के समय यही कांग्रेस पूर्व महापौर को कठपुतली के रूप में प्रचारित करते थे ये अलग बात है कि पूर्व महापौर के प्रेस विज्ञप्ति में मंशारूप शब्द में किसी का नाम नहीं होता था अब तो खुले आम मंशारूप चल रहा है जब सब कुछ मंशारूप चल रहा तो महापौर क्या शहर में सिर्फ शासकीय संसाधनों के उपभोग के लिए है जब उनका कोई लक्ष्य ही नहीं उनकी कोई सोंच ही नहीं तो क्यों शासकीय संसाधनों पर हक जता रहे . खैर दुर्ग की जनता सब जानती है इसलिए निगम के किसी भी उथल पुथल का जिम्मेदार महापौर को नहीं मानती महापौर एक शालीन व्यक्ति है सभी के जज्बातों को समझते है सभी का आदर करते है घमंड नाम का कोई स्थान नहीं है उनके अंदर एक साफ़ और निर्मल छवि के युवा महापौर के रूप में बाकलीवाल को पाकर जनता यहाँ तक की विपक्ष भी उनके व्यवहार की कायल थी किन्तु हस्तक्षेप में मौन रहने के आज उन पर भी कठपुतली का आरोप लगने लगा और निगम के बदहाल व्यवस्था पर आम जनता सवाल उठाने लगी . बात आम जनता तक रहती तो सही था किन्तु अब तो कई कांग्रेसी भी अंदर ही अंदर चिन्न भिन्न है सिवाय उनके जिनके पास शौचालय साफ करने की लम्बी फेहरिस्त है , चखना सेंटर चलाने का मौन स्वीकृत है , निगम के ठेके में जिनका बड़ा योगदान है , राशन दुकानों की भरमार है . ये अलग बात है कि ऐसी सुविधा सिर्फ चंद लोगो के पास है फिर भी ये सब राजनीती का हिस्सा है . आज जीत जनप्रतिनिधि की हुई है आयुक्त का क्या आज यहाँ कार्य कर रहे कल कही और कार्य करेंगे उन्हें तो कही ना कही कार्य करना है किन्तु जनप्रतिनिधि का क्षेत्र सिमित होता है ऐसे में कोई उनकी बात ना सुने ये तो गलत बात है . अब तो बस यही दुआ है कि नए आयुक्त ऐसे आये जो हमारे शहर के लाडले , मृदु भाषी , सरल हृदयी विधायक की मंशा के अनुरूप चले जैसा कि महापौर जी आदरणीय धीरज बाकलीवाल जी चलते है ताकि शहर में विकास की गंगा बहे और एक बार फिर शहर के नालो की सफाई का कार्य लाखो की निविदा से शुरू हो , निगम के कार्यो का ठेका रिंग बना कर हो , कार्यकर्ताओ का भला हो , अधिकारियों की मनमानी चले ताकि पुरे निगम में एक खुशनुमा वातावरण बना रहे और चौतरफा जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक मुखिया का गुणगान होता रहे . जनता का क्या है वो तो पिछले १० सालो से कठपुतली महापौर को देख रही है ५ साल और सही जब जनता ही चाहती है कि यही सब चलता रहे तो फिर मेरे विचार से ऐसा ही होना चाहिए ताकि कोई मुद्दा ही नहीं रहे विपक्ष का क्या वो तो छोटी छोटी बात का भी विरोध करेगी और अपना राजनितिक धर्म निभाएगी .

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