November 21, 2024
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शौर्य की बाते ( सम्पादकीय )

शौर्य की बाते ( सम्पादकीय ) (160)

नई दिल्ली / कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश में केन्द्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने एक पत्रकार पर बिफरते हुए कहा था कि क्षेत्र की जनता का अपमान नहीं सहूंगी अगर क्षेत्र की जनता का अपमान हुआ तो आपके मालिक को शिकायत कर दूंगी . मामला अमेठी क्षेत्र में किसी मामले के सवाल जवाब पर हुआ था किन्तु तब केन्द्रीय मंत्री ने इसे जनता का अपमान से जोड़ कर सवाल से बचने की सफल कोशिश की और अपरोक्ष रूप से सवाल पूछने वाले पत्रकार को नसीहत भी दे दी किन्तु अब जब सनातन धर्म के अपमान की बात हो रही है तो फिर मंत्री महोदय मौन क्यों है . जिस तरह से आदिपुरुष में मा सीता के चरित्र को गलत तरीके से पेश किया गया वस्त्रो के चयन पर देश में सनातन धर्म को मानने वालो ने आपत्ति उठाई यहाँ तक कि कई भाजपा के कद्दावर नेताओ ने भी सवाल उठाये और इस फिल्म को बंद करने की बैन करने की प्रदेश के मुख्यमंत्री से मांग की किन्तु केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी अब इस मामले पर मौन साधे हुए है . क्या मंत्री महोदया हिन्दू धर्म की आस्था की देवी मा सीता के चित्रण को गलत तरह से प्रस्तुत करने वाले फिल्म निर्माता , पास करने वाले सेंसर बोर्ड , सेंसर बोर्ड जिस मंत्रालय के अधीन है उनके मंत्री को अब जिम्मेदार नहीं मान सकती क्योकि वे सब सत्ता से जुड़े हुए लोग है और मा सीता के अपमान के विरोध में बोल कर राजनितिक नुक्सान का डर है जो अब महिला सम्मान की बात पर मौन है केरल स्टोरी जो कि सत्यापित फिल्म नहीं उस पर महिला सम्मान की बात करने वाली केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के आदिपुरुष में सनातन धर्म पर किये प्रहार पर विचारों का इंतज़ार अब भारत की जनता कर रही शायद इसका जवाब केन्द्रीय मंत्री महोदय के पास नहीं होगा क्या मा सीता का अपमान से बड़ा सत्ता का सुख है आखिर मंत्री महोदय मौन क्यों है क्या सोशल मिडिया पर महिला सम्मान की बात सिर्फ एक राजनितिक क्षेत्र का खेल बस है .
   मोदी सरकार में महिलाओं के सम्मान बढ़ने की बात कहने वाली मंत्री जी सनातन धर्म की आराध्य देवी के चरित्र को गलत रूप से पेश करने वाले जिम्मेदारो पर क्यों है मौन ...
  वही आदिपुरूष फिल्म पर रोक की मांग करते हुये अखिल भारत हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष दिनेश कौशिक ने कहा कि हिन्दुओं की भावना को आहत करने वाली फिल्म को हरी झंडी देने के पीछे मंशा की भी उच्च स्तरीय जांच की जानी चाहिये।
  गौरतलब है कि फिल्‍म में कथित तौर पर सनातम धर्म का, प्रभु श्री राम जी का, हनुमान जी का, भगवा ध्‍वज का और सीता मैया का अपमान किया गया है। फिल्‍म का चित्रण गलत और कलाकारों की वेशभूषा अनुचित है और इसके संवाद आपत्तिजनक हैं। असल रामायण का गलत प्रस्तुतीकरण किया गया है। उधर, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने फिल्‍म 'आदिपुरुष' को लेकर भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधा, लेकिन उन्‍होंने फिल्म का नाम नहीं लिया। सपा नेता यादव ने ट्वीट कर कहा, '' जो राजनीतिक आकाओं के पैसों से, उनके एजेंडे वाली मनमानी फिल्में बनाकर लोगों की आस्था से खिलवाड़ कर रहे हैं, उनकी फिल्मों को प्रमाणपत्र देने से पहले सेंसर बोर्ड को उनके ‘राजनीतिक-चरित्र' का प्रमाणपत्र देखना चाहिए। क्या सेंसर बोर्ड धृतराष्ट्र बन गया है?''

रायपुर / छत्तीसगढ़ / सीएम बघेल आज प्रदेश के ऐसे मुख्यमंत्री है जिन्होंने हर वर्ग हर क्षेत्र में कार्य किया और छत्तीसगढ़ को एक नयी पहचान दी इसमे कोई अतिश्योक्ति नहीं कि एक समय में छत्तीसगढ़ की पहचान सिर्फ नक्सलियों का आतंक और धान का कटोरा के साथ सस्ती मजदुर मिलने वाले राज्यों के रूप में पहचान थी . छत्तीसगढ़ की मूल अस्मिता को ना तो पूर्व मुख्यमंत्री जोगी ने राष्ट्रिय मंच दिया और ना हीई 15 साल सत्ता में रहने वाले पूर्व मंत्री डॉ. रमन सिंह ने . किन्तु सीएम बघेल ने छत्तीसगढ़ के ग्रामीणों के जीवन स्तर में सुधर लाने जिस तरह प्रयास किया , चुनावी वादों पूरा किया इन सब कार्यो के साथ चाहे जितनी भी व्यस्तता हो सीएम बघेल को अगर मच में /समारोह में कही भी कोई छोटा मासूम नजर आये सब भूल कर हर प्रोटोकाल को दरकिनार करते हुए बच्चो में खो ही जाते है बच्चो के प्रति अथाह प्रेम के समय उनके भाव निश्छल प्रतीत होते है . ना घमंड , ना अहम्, ना कोई दुरी सिर्फ एक निश्छल प्रेम की डोरी .. सादुवाद ऐसे सीएम को .

  आज मौका था एक ख़ास भोज का आज उन लोगो की मेजबानी सीएम बघेल ने की जिनके घर कभी मेहमान बन कर गए थे अपने प्रदेश व्यापी भेंट मुलाक़ात के दौरान सीएम बघेल ने जिनके घर भी भोजन किया था अब उन्हें संभाग वार सीएम आवास में मेजबान के रूप में स्वागत कर रहे है है आज इसी कड़ी में बिलासपुर संभाग के अथितियो की मेजबानी सीएम बघेल ने की और आये हुए मेहमानों में एक बाल रूप के साथ खुशनुमा पल बिताया . 

  बिलासपुर संभाग से आये अतिथियों की मेजबानी करते सीएम बघेल

रायपुर / शौर्यपथ / किसी भी क्षेत्र के बुनियादी विकास में पानी, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा की सुव्यवस्था और आवागमन की सुलभता मुख्य मानक माने जाते है, इनमें भी विद्युतीकरण का होना इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाता है कि विकास के बाकी मापदंड इस पर ही टिके रहते है। एक विद्युत विहीन ग्राम के निवासी होने की व्यथा वहां बसे हुए व्यक्ति ही समझ सकते है। वर्तमान दौर में हमें बिना विद्युत व्यवस्था के रहने की कल्पना भी असाध्य प्रतीत होती है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने ऐसे ही दुर्गम विद्युत विहीन गांवों में विद्युतीकरण का दायित्व अधिकारियों को सौंपा और इसी का परिणाम है दंतेवाड़ा जिलें का सुदूर गांव परचेली अब रोशन हो गया है।
   दंतेवाड़ा जिले के कटेकल्याण ब्लाक अंतर्गत सुदूर ग्राम परचेली के ग्रामीणों की यह विडंबना थी कि वे सालो साल अंधेरे में रहने के लिए विवश थे, इसके प्रमुख कारणों में कुछ तो इस ग्राम की दुर्गम भौगोलिक बसाहट थी उस पर सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र के रूप में भी यह चिन्हित था और भी कई अन्य कारणों से भी यह ग्राम विद्युतीकरण से अब तक वंचित रहा परंतु कहते है न कि परिस्थितियां सदैव एक जैसी नहीं रहती है परेशानियों के बादल भी आखिरकार छंट ही जाते है। आज परचेली ग्राम की स्थिति बदल गई है और यह रोशनी से जगमगा रहा है और इन गांव में रहने वाले 4 हजार परिवार के घर भी रोशन हो उठे है, और परचेली के सभी 12 पारा टोला मजरा, (पटेलपारा, कोरोपालपारा, तहसीलपारा, जंगलपारा, सिलपतपारा, कुकुरपारा, फुलमपारा, कुआरामपारा, कोटवारपारा, बोरपदरपारा, बंड़ीपारा, बोथापारा) में विद्युतीकरण हो चुका है इस प्रकार सभी पारा में बिजली पहंुचने से ग्रामीणों के चेहरों में खुशी है। पूर्व में बिजली न होने से होने वाली दिक्कतों के संबंध में ग्रामीण बताते है कि उन्हें शाम ढलते तक अपने पूरा काम धाम निपटाकर घरों में बंद हो जाना पड़ता था और रात में मजबूरीवश कहीं आने-जाने के लिए लालटेन और दीये का ही सहारा था। इसके पश्चात क्रेडा द्वारा वैकल्पिक व्यवस्था के तहत सौर ऊर्जा प्रकाश की व्यवस्था से परेशानियों से कुछ निजात मिली थी। परंतु अब ग्राम का शत प्रतिशत विद्युतीकरण होने से पूरे क्षेत्र को राहत मिली है। गौरतलब है कि कलेक्टर श्री विनीत नंदनवार के मार्गदर्शन में जिला विद्युत वितरण कंपनी मर्यादित द्वारा जिले के ग्रामों का शत प्रतिशत विद्युतीकरण किया गया है। बहरहाल लालटेन और दीए के युग में जी रहें ग्राम परचेली के ग्रामीणों के लिए गांव में विद्युतीकरण का होना विकास का उजाला लेकर आया है।
आभार : जनसंपर्क विभाग छत्तीसगढ़

लेख /  पिछले कई महीनों से देखा जा रहा है कि प्रदेश में किसी भी प्रकार की घटना घटित होने पर भाजपा के नेता मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से इस्तीफे की मांग करने लग जाते हैं खैर विपक्ष का यह काम है कि सरकार के काम का आंकलन करना कमजोरियों को उजागर करना और सरकार को घेरना ताकि सरकार पर कार्य को लेकर ,गुणवत्ता को लेकर ,निष्पक्षता को लेकर दबाव बना रहे लोकतंत्र की यही खूबसूरत तस्वीर है कि सत्ता पक्ष की कमियों को उजागर करने का काम विपक्ष करता है और विपक्ष की हमेशा से यही मांग रहती है कि सरकार नहीं चला सकते तो इस्तीफा दे दें यही भारत का लोकतंत्र है किंतु पिछले दिनों देखने में आया कि बालेश्वर रेल दुर्घटना में किस तरह से लापरवाही के कारण वीभत्स और दर्दनाक दुर्घटना घटित हुई जो देश ही नहीं दुनिया के 20 साल के इतिहास में यह सबसे बड़ी दुर्घटना के रूप में सामने आए जिसमें लगभग 300 लोगों की मृत्यु और 1000 से ज्यादा लोगों के घायल होने की जानकारी सामने आई . इस दुर्घटना पर विपक्ष ने भी अपने सवाल खड़े किए और जिम्मेदार लोगों पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही की मांग के साथ इस्तीफे की मांग भी की यही लोकतंत्र है इसी लोकतंत्र की सुंदर तस्वीर सत्ता पक्ष और विपक्ष के द्वारा राजनीतिक की सीढ़ियों पर चढ़ने का एक मार्ग है देखने में आया कि जब विपक्ष इस्तीफे की मांग कर रहे थे तो कई भाजपा के नेता इसे गंदी और तुच्छ राजनीति करार देने में नहीं चूक रहे थे, नैतिकता की बात कर रहे थे कई नेताओं ने तो यहां तक भी कह दिया कि विपक्ष मौत पर गंदी राजनीति कर रही है .
  बड़ा सवाल ये उठता है कि ऐसे ही मामले जब छत्तीसगढ़ में हुए तब नैतिकता की बात करने वाले कई भाजपा ही नेता मुख्यमंत्री से इस्तीफे की मांग किस नैतिकता के आधार पर कर रहे थे साल भर पहले कवर्धा की घटना को देखा जाए तो एक तरफ कवर्धा में सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने की संभावना जागृत हो रही थी वहीं भाजपा के नेता इसे राजनीतिक रूप देकर प्रदेश में जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे थे एवं इस्तीफे की मांग कर रहे थे वही हाल में बेमेतरा के एक गांव में आपसी दुश्मनी की वजह से हुई हत्या को किस तरह से सामाजिक रंग देने की कोशिश हुई जिस पर पुलिस प्रशासन ने सामाजिक संगठनों के साथ बैठक कर मामले को शांत करने का भरपूर प्रयास किया और सफल भी हुए किंतु इस आपसी विवाद ने पूरे प्रदेश को ही हिला कर रख दिया जगह-जगह प्रदर्शन हुए और इस्तीफे की मांग की गई तब कहां गई थी नेताओं की कि नैतिकता की बातें . आज 300 लोगों की जानें गई कई गंभीर रूप से घायल हैं जबकि इनमें से किसी की भी कोई गलती नहीं थी . किसी और की लापरवाही की सजा है यह भुगत रहे हैं कई लोगों के परिवार के चिराग बुझ गए और इस पर जवाब देने के लिए कोई भी सामने नहीं आ रहा है सिर्फ नैतिकता की बात की जा रही है क्या देश के इतिहास में इतनी बड़ी दुर्घटना होने के बावजूद भी सवाल करना गुनाह है क्या लोकतंत्र में अब सत्ता पक्ष से सवाल करने पर देशद्रोही का प्रमाण पत्र देने का काम करेंगे कुछ सोशल मिडिया के धुरंधर . देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की जनता को इस मामले पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे उन्होंने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस कैंसिल कर दी तब सबकी नजर इस प्रेस कांफ्रेंस पर थी सत्ता सँभालने के ९ साल बाद देश के पीएम किसी प्रेस कांफ्रेंस के ज़रिये चौथे स्तंभ के सामने होने वाले थे किन्तु वह भी स्थगित हो गई . आज पूरा देश जानना चाहता है कि 300 लोगों की अकाल मृत्यु और हजारों लोगों के घायल की जिम्मेदारी किसकी है छोटी-छोटी बातों पर इस्तीफा मांगने वाले आज नैतिकता की बात कर रहे हैं क्या वह इन मृत लोगों के परिजनों को कोई जवाब दे सकते हैं कि आखिर बिना गलती के इनकी मौत क्यों हुई और किसकी जिम्मेदारी बनती है इस घटना पर . आश्चर्य की बात है कि कुछ चाटुकार मिडिया ग्रुप पुरानी घटनाओं की तुलना करने लगा आश्चर्य तो तब हुआ जब एक केन्द्रीय मंत्री ने पुराने मामलो की जाँच का हवाला देते हुए सवाल पूछने वालो से ही सवाल करने लगे . केन्द्रीय मंत्री शायद यह भूल गए कि इन्ही अव्यवस्थाओ के कारण देश की जनता ने उन्हें मौका दिया किन्तु जवाब देने की जगह पुरानी घटनाओं का हवाला देकर क्या आज के जीवंत सवाल से बचा जा सकता है क्या जिम्मेदारी से भागा जा सकता है अगर जिम्मेदारी नहीं तो सरकार से मिलने वाली सुविधाओ का जिस पर लाखो करोडो खर्च होते है दोहन क्यों आखिर लोकतंत्र में अब सवाल क्या सत्ताधारी करेंगे अगर ऐसा है तो कहा है लोक तंत्र कहा है नैतिकता कौन है इतने लोगो की मृत्यु का दोषी किसकी है जिम्मेदारी सवाल बहुत है किन्तु जवाब देने वाले अभी नैतिकता की बात कर रहे ....
लेखक के निजी विचार
शरद पंसारी

 छत्तीसगढ़ / टन-टन-टन की आवाज के साथ मेरे घर के निकट स्थित घण्टा घर ने रात के तीन बजने की सूचना दी। घण्टे की आवाज से मेरी नींद टूट गई। दोबारा सोने की मेरी कोशिश को गरमी ने नाकाम कर दिया।मैं पसीना पोंछते हुए करवट बदलकर सोने की कोशिश करता रहा। तभी मुझे किसी के रोने सिसकने की आवाज सुनाई दी।
          रोने की आवाज से बेचैन मन लिए मैं अपने घर के पीछे स्थित बगीचे के उस दिशा में चल पड़ा,जहाॅ से रोने सिसकने की आवाज आ रही थी। वहाॅ पेड़,पौधों से टूटकर गिरे सूखे पत्तों पर जब जब मेरे पैर पड़ते थे,तब तब चर्र-चर्र चर्र-चर्र की आवाज आती थी। इसे सुनकर मुझे ऐसे लगा मानों सूखे पत्ते ही रो रहे हैं,सिसक रहें हैं। मैंने अपने पैरों के नीचे दबे पत्ते को उठाते हुए पूूछा- क्यों रो रहे हो भाई ?
          मेरे इस प्रश्न पर सूखे पत्ते ने आहें भरते हुए कहा- हमारे हिस्से में तो अब रोना ही बचा है। क्योंकि बड़ी पुरानी कहावत है ‘सबका पकना अच्छा लगता है,पर पत्तों का पकना उनके पतन का सूचक होता है’। पेड़ पर लगे हरे-हरे पत्ते जब पीले होकर शाखाओं से टूटकर जमीन पर गिरते हैं तो लोग ऐसे पत्तों को कूड़ा करकट मान लेते हैं और बड़ी बेरहमी से जला देते हैं। ऐसी हरकत से वे अपनी नासमझी का परिचय देते हुए खुद के पाॅव पर कुल्हाड़ी मारने का काम करते हैं    
        दरअसल ऐसे लोग इस बात से अनभिज्ञ होते हैं कि डगालियों से टूटकर गिरे हुए पत्ते भी बहुपयोगी होते हैं।
पत्ते के साथ बातचीत की रोचकता बढ़ती जा रही थी, मैंने जिज्ञासावश पूछा - पत्ता भाई सूखे पत्ते भला कैसे बहुपयोगी होते हैं? मेरे इस प्रश्न पर मुरझाये पीले पड़ चुके  पत्ते पर भी एक मुस्कान आ गई । वह बोला - पेड़ पौधों का नाता जन्म जन्म से जीव,जंतुओं और मानव समुदाय से जुड़ा होता है। तीज त्यौहारों पर तथा विभिन्न परंपराओं -संस्कारों में पेड़ पौधों सहित उनके फल, फूल पत्तों और डगालियों का उपयोग अनादिकाल से मानव समुदाय करता आया है। जीवनकाल की पूर्णता पर सूखे पेड़ भी विविध रूपों में उपयोगी होते हैं।
         लकड़ियों के उपयोग का ज्ञान तो मुझे भली भाॅति हैं,पर पत्तों का क्या उपयोग ? मैंने बातचीत के बीच में पुनः यह सवाल उठाया। तब पत्ते ने कहा- पत्तों का उपयोग औषधी,कच्ची मिटटी के घरों में छावन, पत्तल-दोना,खिलौना, झाडू जैसे अनगिनत कामों में होता है। पेड़ से गिरे सूखे पत्तों को जलाने से विषैली गैस निकलती है,जो कि वातावरण के लिए घातक है।इससे वातावरण की नमी का भी नाश होता है।
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पत्ते से बातचीत करते हुए नये नये ज्ञान की प्राप्ति हो रही थी। बातचीत को आगे बढ़ाते हुए मैंने पूछा- पत्ते पीले पड़कर क्यों गिर जाते हैं? इस प्रश्न का जवाब देते हुए पत्ते ने कहा- हरे पत्तों में हरित पर्ण (क्लोरोफील) नामक एक पदार्थ होता है। मनी प्लांट सहित अनेक क्रोटन प्रजाति के पौधों के पत्ते में कहीं-कहीं क्लोरोफील का अभाव होता है जिससे वे चितकबरे दिखाई देते हैं। पत्तों में उपस्थित क्लोरोफील पेड़ पौधों के लिए भोजन बनाने का काम करते हुए प्राणवायु आक्सीजन का उत्सर्जन करता है। इसी हरित पर्ण की समाप्ति पर ही पत्ते पीले पड़ जाते हैं और सूखकर पेड़ों से गिर जाते हैं।
         पर ऐसे सूखे पत्तों में भी प्रोटीन,विटामीन, नाइट्रोजन आदि बहुमूल्य तत्वों की उपस्थिति बनी होती है। यही वजह है कि सूखे पत्ते सड़ कर ‘‘कम्पोस्ट खाद’’ बन जाते हैं, जो कि पेड़ पौधे,साग भाजी,अनाज,फल-फूल के पौधों को नवजीवन के साथ मजबूती प्रदान करते हैं।
         पत्ते की बातें सुनकर मैं उसकी पीठ थपथपाने लगा। तब उसने कहा कि सूखे पत्तों की सुरक्षा के लिए नेशनल ग्रिन ट्रिब्यूनल (हरित न्यायाधीकरण) ने कड़े कानून भी बनाये हैं। इसके बावजूद जन जागरूकता के अभाव में लोग अपने फायदे के लिए जंगलों में आग लगा देते हैं। पेड़-पौधों की कटाई करते हैं। जंगलों में और सूखे पत्तों में आग लगाने वालों को स्मरण में रखना होगा कि इससे जीव जंतु,जलकर मर जाते हैं,उनका वंश विनाश हो जाता है। अनेक जंतुओं की स्थिति इसलिए लुप्तप्राय भी हो चली है।
           पत्ते से बातचीत करते हुए मुझे भी अपनी एक गलती का एहसास हुआ कि हम वन भ्रमण, पर्यटन पर रहते हैं तो जलती हुई बीड़ी,सिगरेट फेंक देते हैं अथवा पिकनिक के दौरान जलाये गये चूल्हे को बिना बुझाये छोड़ देते हैं, जिससे कभी कभी जंगलों में भयानक आग लग जाती है।पत्ते के साथ अपनी बात को समाप्त करते हुए मैंने कहा कि आज के बाद अपने साथ ही अपने साथियों को भी यह सिखाता रहूंगा कि पेड़ पौधे से गिरे पत्तों को जलाने में नहीं, बचाने में ही समझदारी है। तभी तो किसी ने क्या खूब लिखा है-
नीचे गिरे सूखे पत्तों पर अदब से चलना जरा,
कभी कड़ी धूप में तुमने इनसे ही पनाह मांगी थी।
विजय मिश्रा‘अमित’
पूर्व अति महाप्रबंधक(जन)
एम-8, सेक्टर-2, अग्रोहा सोसायटी पो आ- सुंदरनगर,रायपुर (छग)492013
मोबा 9893123310

  रायपुर / छत्तीसगढ़ की स्थापना के 18 साल बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने वो कार्य किया जो इतिहास के पन्नो पर सदा के लिए दर्ज हो गया . आने वाले समय में सत्ता चाहे किसी की भी हो किन्तु श्रीराम की कर्मस्थली को पुनः सजीव करने का जो दायित्व श्रीराम ने मुख्यमंत्री बघेल को दिया उसे उन्होंने बखूबी निभाया . हालाँकि भारत में भारतीय जनता पार्टी राम नाम को आधार बना कर आज दुनिया की सबसे बड़ी राजनितिक दल होने की बात करती है किन्तु राम नाम के सहारे सत्ता में पहुँचाने वाली भाजपा सरकार अपने 15 साल के कार्यकाल में कभी भी छत्तीसगढ़ से प्रभु राम के सम्बन्धो की गहराई को सहजने और सवारने का कार्य नहीं किया . ये कहने में कोई संकोज नहीं कि 15 साल के शासन काल में भाजपा सरकार ने कभी भी छत्तीसगढ़िया अस्मिता को राष्ट्रिय मंच पर लाने का प्रयास की हो छत्तीसगढ़िया सभ्यता को बड़ा मंच दिया हो . हो सकता है इसका सबसे बड़ा कारण सरकार के फैसले लेने वाले वो मंत्री हो जो छत्तीसगढ़ में तो निवास करते है किन्तु आज भी अपने पूर्वजो के याद को अन्य प्रदेशो में देखते है . गैर छत्तीसगढ़ी होने के कारण छत्तीसगढ़ की परंपरा को कभी महत्तव ही नहीं दिया . यहाँ तक छत्तीसगढ़ी बोली भी अंधेरो में कही खो रही थी . राम जी की माता का एकमात्र मंदिर होने के बाद भी भाजपा सरकार की इस दिशा में कभी कोई पहल नहीं रही . इसे अगर दुसरे शब्दों में कहे तो प्रभु श्रीराम ने ये अवसर उन्हें कभी दिया ही नहीं कि उनकी यादो को उनके कर्म भूमि को वो सहेजे . इस मामले में कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि प्रभु राम ने इस नेक कार्य के लिए भूपेश बघेल को चुना . प्रदेश में कांग्रेस की सरकार ने अपने चुनावी वादों में राम वनगमन पथ , कौशल्या मंदिर संधारण की बात नहीं की इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता कि इसमें कांग्रेस पार्टी का भी योगदान है . यह सभी सोंच सीएम बघेल की थी जिसे उन्होंने सार्थक किया और जमीनी स्तर पर लाये .
   ये कहने में भी कोई अतिश्योक्ति नहीं कि प्रदेश के एक बड़े वर्ग को यह भी नहीं मालुम था कि प्रभु श्री राम का काफी वक्त इसी पवन भूमि में गुजरा जो आज छत्तीसगढ़ की भूमि है जिसकी भूमि को श्रीराम ने अपने चरणों से पावन कर दिया है . प्रभु श्री राम जब महल से निकल कर दंडकारण्य (वर्तमान में छत्तीसगढ़ ) आये थे तब श्री राम थे किन्तु जब वापस महल गए तब मर्यादा पुरषोत्तम राम हुए . इसी दंडकारण्य में प्रभु राम ने अपने जीवन के महत्तवपूर पल गुजारे , इसी दंडकारण्य में प्रभु राम ने वंचितों को साथ लिया और समाज को एकसार का सन्देश दिया , इसी दंडकारण्य में प्रभु श्री राम ने शबरी माता के स्नेह को प्राप्त किया , इसी दंडकारण्य में प्रभु श्री राम ने वनवास के कई साल बिताये  , इसी दंडकारण्य में प्रभु श्रीराम ने अपने चरणों से इस भूमि को तीर्थ बनाया आज इसी दंडकारण्य को सहेजने का कार्य की सोंच को रामवन गमन पथ के जरिये सार्थक सीएम बघेल कर रहे है , आज विश्व के एकमात्र माता कौशिल्या मंदिर की रौनक को वापस लौटाने का कार्य सीएम बघेल ने किया और कौशिल्या माता महोत्सव के जरिये प्रदेश की जनता को श्री राम के करीब लाने का सफल प्रयास किया , राष्ट्रिय रामय प्रतियोगिता के जरिये प्रभु राम के दंडकारण्य में बिताये जीवन को मंचन द्वारा जीवंत करने के सफल प्रयास के जनक के रूप में सीएम बघेल को प्रदेश की जनता हमेशा याद रखेगी . सीएम बघेल ने कभी राम के नाम की राजनीती नहीं की किन्तु मर्यादा पुरषोत्तम राम को प्रदेश की जनता के बहुत करीब लाने का श्रेय सीएम बघेल को ही जाता है .


   जिस तरह छत्तीसगढ़िया मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ की परंपरा , छत्तीसगढ़ के धार्मिक स्थलों को एक बार फिर विश्व मंच पर लाया वो पहल अनुकरणीय है . हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले सभी लोगो का विश्वास है कि जो भी काम होता है वो प्रभु की मर्जी से होता है प्रभु की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता . धन्य है भूपेश बघेल जिन्हें प्रभु श्री राम ने ये जिम्मेदारी दी कि छत्तीसगढ़ में राम जी के महत्तव को आम जानो तक पहुंचाए और इस कार्य में भूपेश बघेल ने सभी राजनितिक बाधाओ टिप्पणियों को अनसुना करते हुए आज छत्तीसगढ़ को राममय कर दिया . राम का नाम सब लेते है किन्तु राम में समाने का सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता जिस पर प्रभु राम की कृपा होती है वही राम का प्रिय होता है . छत्तीसगढ़ के भांचा राम अब एक बार फिर छत्तीसगढ़ की गलियों में हर घरो में नजर आ रहे है . अभी तक छत्तीसगढ़ सिर्फ एक प्रदेश था किन्तु अब छत्तीसगढ़ वो तपोभूमि के नाम से पुरे विश्व में पहचाना जाने लगा जहाँ श्री राम ने वनवास के एक बड़े काल को जिया था छत्तीसगढ़ में अब प्रभु राम नहीं छत्तीसगढ़ के भांचा राम हो गए  जय श्री राम ...

 भगवान श्रीराम को लेकर छत्तीसगढ़ में ऐसी मान्यता है कि उन्होंने 14 वर्ष के वनवास काल में से 10 वर्ष दण्डकारण्य में व्यतीत किया था . रामायण कथा के कई प्रसंगों में भगवान श्रीराम के छत्तीसगढ़ में प्रवास के वृतांत हैं. दण्डकारण्य में भगवान श्रीराम के वनगमन यात्रा की पुष्टि वाल्मीकि रामायण से होती है.
शरद पंसारी
संपादक - शौर्यपथ दैनिक समाचार 

शौर्यपथ /  आज छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह छत्तीसगढ़ की हर छोटी-छोटी समस्याओं को गंभीरता से ले रहे हैं और लगातार भूपेश सरकार पर वार कर रहे हैं सोशल मीडिया में जिस तरह से एक्टिव होकर डॉक्टर रमन सिंह हर छोटी छोटी बात पर भूपेश सरकार पर आक्रमक हो रहे हैं और सरकार की कमजोरियों को उजागर कर रहे हैं उसे देखकर कहीं ना कहीं यह बात भी अच्छी लगती है कि छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को अब छत्तीसगढ़ीयो की चिंता होने लगी है. 15 साल सत्ता में रहने के बाद डॉ रमन सिंह को अब छत्तीसगढ़ प्रदेश का महत्व समझ में आया,छत्तीसगढ़ बोली का अस्तित्व अब उन्हें भी याद आ गया 15 साल तक सत्ता में रहने वाले रमन सिंह ने कभी छत्तीसगढ़ी बोली का उपयोग नहीं किया.
  किंतु जब से सत्ता से बाहर हुए हैं तबसे छत्तीसगढ़िया संदेश देने में उनका नाम भी शामिल हो गया है कई जगहों पर मंच से छत्तीसगढ़ी बोली का भी संवाद करते देखे गए हैं .15 साल की सत्ता में कभी छत्तीसगढ़ी बोली को छत्तीसगढ़ी त्यौहार को इतनी अहमियत नहीं मिली किंतु अब यकीनन छत्तीसगढ़ में किसी की भी सरकार हो छत्तीसगढ़िया तीज त्यौहार की धूम बनी रहेगी. 15 साल तक सत्ता में रहने के बाद भी रमन सरकार ने किसानों को किया वादा पूरा नहीं किया आज जब भूपेश सरकार वादा पूरा कर रही और किसानों को जिस तरह से लाभ मिल रहा है उनकी पहल अतुलनीय है. 15 साल सत्ता में रहने के बाद भी छत्तीसगढ़िया को रोजगार की बात पर सिर्फ वादा ही मिलता रहा किंतु रोजगार नहीं मिला आज भूपेश सरकार ने बिना कर्ज लिए छत्तीसगढ़ की जनता को कई सुविधाएं और कई योजनाओं से लाभ पहुंचाया जा रहा है जो शायद मजबूत इच्छाशक्ति के साथ पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह भी कर सकते थे किंतु यह कार्य नहीं हुआ .
   शराबबंदी की बात करने वाले पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के जिम्मेदार मंत्री यह क्यों भूल जाते हैं कि गली-गली शराब दुकान खोलने का कार्य भाजपा सरकार में ही हुआ है प्रभु राम के नाम से सत्ता में आने वाले प्रभु राम को कभी याद नहीं किया छत्तीसगढ़ की जनता के बड़े वर्ग को तो यह भी नहीं मालूम था कि चंदखुरी में माता कौशल्या का मंदिर विश्व का एकमात्र मंदिर है 15 साल भाजपा राम राज की बात करती रही किंतु प्रभु श्री राम के वन गमन पथ की तरफ कभी ध्यान ही नहीं दिया, माता कौशल्या मंदिर की तरफ कभी नजर ही नहीं गई खैर जो भी हो सरकार किसी की भी रहे किंतु छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी परंपरा और धार्मिक स्थलों का, छत्तीसगढ़ी बोली का, छत्तीसगढ़ी महतारी का जो मान सम्मान पूरे प्रदेश में होने लगा वह अब निरंतर चलता रहेगा. छत्तीसगढ़ राजकीय राजकीय गीत छत्तीसगढ़ निर्माण के 19 साल बाद होना भी पूर्ववर्ती सरकार की निष्क्रियता का ही एक परिणाम है.

dr. raman singh ke facbook waal se
  छत्तीसगढ़ की जनता ने छत्तीसगढ़ी और गैर छत्तीसगढ़ी के महत्व को भी समझ लिया आज छत्तीसगढ़ मैं भूपेश सरकार है कल छत्तीसगढ़ में वापस से भाजपा की सरकार बन सकती है या किसी अन्य राजनीतिक दलों की सरकार बन सकती है क्योंकि लोकतंत्र में सब संभव है आज के समय में भारत का लोकतंत्र कितना मजबूत है यह तो कई प्रदेशों के सत्ता परिवर्तन और विधायकों की तथाकथित खरीद-फरोख्त से साफ नजर आ  ही रहा है वरना मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जब कमलनाथ के मुख्यमंत्री के बाद मुख्यमंत्री निवास छोड़ा तो पूरे विश्वास के साथ यह बात भी कही थी कि 6 महीने में वापसी होगी जिसका सीधा साधा राजनीति निष्कर्ष यही निकलता है कि अगर लोक मंत्र में बहुमत के आधार पर सत्ता ना मिले तो क्या हो गया खरीद-फरोख्त की राजनीति अभी भी सत्ता का रास्ता खोले हुए हैं बिहार और महाराष्ट्र की राजनीति में उलटफेर गोवा में कम सीटों के बाद भी सत्ता में काबिज होना यह सब किसी बात का प्रमाण है कि लोकतंत्र में जनता का काम सिर्फ वोट देना ही रह गया है सत्ता किसकी बनेगी यह तो राजनीतिक दल सत्ता की ताकत के बलबूते तय करते हैं.मजबूत लोकतंत्र की बात करने वाले राजनेता सत्ता में काबिज होने के लिए जोड़ तोड़ की राजनीती किस तरह करते है यह सबी को ज्ञात है . 15 साल बाद ही सही छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री को छत्तीसगढ़िया अस्मिता को अब स्वीकार करना ही पड़ा और यही सबसे अच्छी बात है एक परम्परा की शुरुवात हुई जो निरंतर चलती ही रहेगी . छत्तीसगढ़ी महतारी की जय ....
शरद पंसारी ...

*परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी संभालने सिक्यूरिटी गार्ड की ट्रेनिंग ले रही हैं कांकेर की रेणुका साहू*
*प्रमाणिक पुस्तकें खरीदने के लिए अब नहीं हो रही है परेशानी, योजना से तैयारी को मिल रही है धार : आदित्य राज, एमसीबी*
*हम सहायता देकर छोड़ नहीं देते बल्कि स्किल डेवलप कर लोगों को सशक्त भी कर रहे है : मुख्यमंत्री भूपेश बघेल*


रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज रायपुर स्थित निवास कार्यालय में बेरोजगारी भत्ता योजना के हितग्राहियों को उनके बैंक खाते में राशि का अंतरण किया। इस दौरान प्रदेश के अलग अलग हिस्सों से हितग्राही मुख्यमंत्री निवास कार्यालय पहुंचे थे। इसके साथ ही जिलों से भी हितग्राही वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से जुड़े हुए थे।
राशि अंतरण के बाद मुख्यमंत्री बघेल ने हितग्राहियों से योजना के बारे में पूछा। रायपुर की रहन वाली पूनम सोनी ने मुख्यमंत्री ने कहा कि बेरोजगारी एक अभिशाप है और आप हमें भत्ता देने के साथ ही हमें स्किल डेवलप के लिए ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। पूनम ने मुख्यमंत्री को धन्यवाद देते हुए कहा कि आप छत्तीसगढ़ से इस अभिशाप को दूर कर रहे हैं जिसकी वजह से मेरे जैसे युवाओं को नया संबल मिल रहा है और रोजगार मिलने की संभावनाएं भी बढ़ रही हैं।
कांकेर की रहने वाली रेणुका साहू ने मुख्यमंत्री को बताया कि उनके घर की आर्थिक हालत काफी खराब है। बेरोजगारी भत्ते से वो अपनी पढ़ाई भी पूरी कर रही है और साथ में शासन द्वारा उन्हें सिक्यूरिटी गार्ड की ट्रेनिंग भी करायी जा रही है जिसके बाद वो अपने परिवार की आर्थिक समस्या को दूर करेंगी।
इसी तरह से मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर जिले से आए आदित्य राज नाम के युवा ने मुख्यमंत्री से कहा कि उसके पिता की दुर्घटना के बाद वो निराश हो गया था क्योंकि आगे की पढ़ाई के लिए कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। आदित्य ने मुख्यमंत्री से कहा कि बेरोजगारी भत्ता योजना से मिलने वाली ये राशि उसके लिए काफी ज्यादा महत्व रखती है और इसी राशि के दम पर मैने फिर से नौकरी के लिए अपनी पढ़ाई और तैयारी शुरू कर दी है।
बिलासपुर के रहने वाले लालाराम कर्ष ने बताया कि वो बेरोजगार हैं और तकनीकी दक्षता नहीं होने की वजह से उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिल पा रही है। लालाराम ने बेरोजगारी भत्ता योजना शुरू करने के लिए मुख्यमंत्री का धन्यवाद देते हुए कहा कि उन्होंने योजना के अंतर्गत सहायक इलेक्ट्रीशियन कोर्स में प्रशिक्षण लेना भी शुरू कर दिया है ताकि उन्हें रोजगार मिल सके और खुद को व्यवसाय शुर कर वो दूसरो को भी रोजगार से जोड़ सकें।
कुछ इसी तरह से अनेक युवाओं ने मुख्यमंत्री के सामने अपने मन की बात रखी और उन्हें बेरोजगारी भत्ता योजना और स्किल डेवलपमेंट ट्रेनिंग दिलाने के लिए धन्यवाद दिया। मुख्यमंत्री श्री बघेल की इस पहल पर अभी तक 1701 युवाओं को 33 अलग अलग संस्थानों में रोजागर मूलक प्रशिक्षण मिलना शुरू हो गया है।
इस मौके पर मुख्यमंत्री बघेल ने अपने संबोधन में कहा कि बेरोजगार युवाओं को इस योजना से लाभ मिल रहा है लेकिन मुझे इससे भी ज्यादा खुशी तब होगी प्रत्येक बेरोजगार युवा के हाथ में रोजगार होगा। मुख्यमंत्री ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि हम सरकारी नौकरी के लिए लगातार वैकेंसी निकाल रहे हैं, इसके साथ ही आपको भी कौशल प्रशिक्षण भी दे रहे हैं ताकि आप अपना काम भी शुरू कर सकें।

साभार : मनोज सिंह, सहायक संचालक

*रामनामी संप्रदाय की दुर्लभ पंरपरा: गोदना के जरिए करते हैं* 

*भगवान राम के प्रति भक्ति और आस्था का भाव*

   लेख । आजकल टैटू का चलन बहुत है। कोई अपने देह में प्रिय वाक्य टैटू के रूप में लगा देता है, तो कोई अपने आराध्य का टैटू लगा लेता है और कोई अन्य किसी तरह का डिजाइन बनाता है। पुराने समय में गोदना होता था और शरीर में कुछ हिस्सों में गोदना करा देते थे। भारत में गोदना हमेशा सीमित दायरे में ही रहा। पहली बार छत्तीसगढ़ में एक ऐसा संप्रदाय उभरा जिसने राम के नाम को अपने भीतर ऐसे समा लिया और राम के नाम में इतने गहराई से डूबे कि अपने सारे अंगों में राम के नाम का गोदना करा लिया। वस्त्र राम नाम से रंग लिया। भक्ति भाव की ऐसी गहन परंपरा देश में अन्यत्र दुर्लभ है।

रामनामी संप्रदाय ने पूरी तरह अपने को राम के रंग में रंग लिया है। उनका पूरा जीवन अपने आराध्य की भक्ति में लीन है। उनका मानना है कि उनके भगवान भक्त के बिना अधूरे हैं। सच्चे भक्त की खोज भगवान को भी होती है। छत्तीसगढ़ में यह पद्य बहुत चर्चित है कि हरि का नाम तू भज ले बंदे, पाछे में पछताएगा जब प्राण जाएगा छूट। रामनामी संप्रदाय के हिस्से में इस पछतावे के लिए जगह ही नहीं है क्योंकि उनका हर पल राम के नाम में लिप्त है। न केवल राम का नाम अपितु आचरण भी वे अपने जीवन में उतारते हैं। जिस तरह वे सुंदर मोर पंख धारण करते हैं उसी प्रकार की मन की सुंदरता भी उनके भीतर है। भगवान श्रीराम का नाम और उनका आदर्श चरित्र उनके मन को निर्मल रखता है और मयूर की तरह ही सुंदर मन के साथ वे प्रभु की भक्ति में लीन रहते हैं।

उनका बसेरा उन्हीं क्षेत्रों में है जहां से भगवान श्रीराम के पवित्र चरण गुजरे और जिन्हें अभी मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल श्रीराम वन गमन पथ के रूप में विकसित कर रहे हैं। उनका बसेरा जांजगीर चांपा, शिवरीनारायण, सारंगढ़, बिलासपुर के पूर्वी क्षेत्र में है और अधिकतर ये नदी किनारे पाए जाते हैं। भगवान श्रीराम अपने वनवास के दौरान महानदी के किनारों से गुजरे और संभवतः इन इलाकों में रहने वाले लोगों को सबसे पहले उन्होंने अपने चरित्र से प्रभावित किया होगा। 

    छत्तीसगढ़ के रामनामी संप्रदाय के रोम-रोम में भगवान राम बसते हैं। तन से लेकर मन तक तक भगवान राम का नाम है। इस समुदाय के लिए राम सिर्फ नाम नहीं बल्कि उनकी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ये राम भक्त लोग ‘रामनामी’ कहलाते हैं। राम की भक्ति भी इनके अंदर ऐसी है कि इनके पूरे शरीर पर ‘राम नाम’ का गोदना गुदा हुआ है। शरीर के हर हिस्से पर राम का नाम, बदन पर रामनामी चादर, सिर पर मोरपंख की पगड़ी और घुंघरू इन रामनामी लोगों की पहचान मानी जाती है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की भक्ति और गुणगान ही इनकी जिंदगी का एकमात्र मकसद है। रामनामी संप्रदाय के पांच प्रमुख प्रतीक हैं। ये हैं भजन खांब या जैतखांब, शरीर पर राम-राम का नाम गोदवाना, सफेद कपड़ा ओढ़ना, जिस पर काले रंग से राम-राम लिखा हो, घुंघरू बजाते हुए भजन करना और मोरपंखों से बना मुकट पहनना है। रामनामी समुदाय यह बताता है कि श्रीराम भक्तों की अपार श्रद्धा किसी भी सीमा से ऊपर है। प्रभु राम का विस्तार हजारों पीढ़ियों से भारतीय जनमानस में व्यापक है।

    गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के पूर्वी और मैदानी क्षेत्रों में सतनाम पंथ के अनुयायी सतनामी समाज के लोग बड़ी संख्या में निवास करते है। तत्कालीन समय में जब समाज में कुरीतियां काफी व्याप्त थीं। मंदिरों में प्रवेश पर कई तरह के प्रतिबंध थे। ऐसे समय में सतनामी समाज के ही एक सदस्य वर्तमान में जांजगीर-चांपा जिले के अंतर्गत ग्राम चारपारा निवासी श्री परशुराम ने रामनामी पंथ शुरू की थी ऐसा मानना है। यह समय सन् 1890 के आस-पास मानी जाती है।

     रामनामी समाज के लोगों के अनुसार शरीर में राम-राम शब्द अंकित कराने का कारण इस शाश्वत सत्य को मानना है कि जन्म से लेकर और मृत्यु के बाद भी पूरे देह को ईश्वर को समर्पित कर देना है। जब हमारी मृत्यु हो जाती है तो राम नाम सत्य है पंक्ति के साथ अंतिम संस्कार की ओर आगे बढ़ते हैं और राम नाम सत्य के उद्घोष के साथ ही पूरा शरीर राख में परिवर्तित हो जाता है। रामनामी समाज के लोग इस हाड़-मांस रूपी देह को प्रभु श्री राम की देन मानते है। रोम-रोम में राम की उपस्थिति मानते हैं। 

     राम को ईष्ट देव मानकर रामनामी जीवन-मरण को जीवन के वास्तविक सार को ग्रहण करते हैं। इसी वास्तविकता को मानते हुए रामनामी समाज के लोग सम्पूर्ण शरीर में गोदना अंकित कर अपने भक्ति-भाव को राम को समर्पित करते हैं। छत्तीसगढ़ में लोक पंरपरा है कि बड़े-छोटे, रिश्ते-नाते को सम्मान देने सुबह हो या शाम या रात्रि का समय हो राम-राम शब्द नाम का अभिवादन किया जाता है। 

  रामनामी अहिंसा पर विश्वास करते है। सत्य बोलते है। सात्विक भोजन करते हैं। सतनाम पंथ के लोग सतनाम की आराधना करते है, वहीं रामनामी राम की आराधना करते हैं। संतनाम पंथ के संस्थापक संत गुरू घासीदास बाबा ने कहा है कि ‘अपन घट के ही देव ला मनइबो, मंदिरवा में का करे जइबों के जरिए अपने शरीर को ही मंदिर मानकर उन्हीं की पूजा आराधना व विचार को बदलने की बात कही है, वहीं रामनामी संप्रदाय के लोगों ने भी मंदिर और मूर्ति के बजाय अपने रोम-रोम में ही राम को बसा लिया और तन को मंदिर बना दिया। अब इस समाज के सभी लोग इस परंपरा को निभा रहे हैं। इनकी एक अलग पहचान है। पूरे बदन पर राम नाम का गुदना गुदवाते हैं। घरों की दीवारों पर राम के ही चित्र होते है। अभिवादन भी राम का नाम लेकर करते हैं । 

मानव तन ईश्वर का सबसे सुंदर रूप माना जाता है। रामनामी संप्रदाय के लोगों ने इस सुंदर रूप में राम को बसाकर उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा दिये हैं। उनकी भक्ति की श्रेष्ठ परंपरा के आगे हम सब नतमस्तक हैं।

साभार: डॉ. ओमप्रकाश डहरिया 

     विचार : भारत अपने आजादी का अमृत काल मना रहा है भारत वर्तमान समय में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र के रूप में भारत की पहचान है . लोकतंत्र जहां आम जनता की चुनी हुई सरकार होती है जहाँ न्यायपालिका का अपना महत्तव है, कार्यपालिका की जिम्मेदारी होती है , प्रशासनिक व्यवस्था का अपना एक अलग स्थान है , चुने हुए जनप्रतिनिधियों की अलग गरिमा होती है . आज भारत के लिए बड़ा महत्तवपूर्ण दिन है आज आजादी के अमृत काल में भारत अपने नए संसद भवन में प्रवेश कर रहा है . यह गौरव की बात है . नए संसद भवन की स्थापना नए भारत की दिशा में एक महत्तवपूर्ण कदम है . नए भारत के उदय पर पूरी दुनिया की निगाहें है किन्तु उसके साथ ही कई प्रश्न है जो मन में पीड़ा को भी जन्म दे रहे है . नव निर्माण की इस दिशा में क्या लोकतंत्र मजबूत हो रहा है या राजतन्त्र की ओर अग्रसर कई सवाल है जिनका जवाब किसी के पास नहीं . पिछले कुछ सालो में अगर देखा जाए तो कई बार जनता की भावनाओं को कुचला गया और जनता की भावनाओं को कुचलने का कार्य किसी और ने नहीं जनता के उन प्रतिनिधियों ने किया जिन्हें जनता ने ही चुना .
  आम जनता के मताधिकार को कई बार कुचला गया ....
   तात्पर्य यह है कि जनता की भावनाओ को दरकिनार कर चुने हुए जनप्रतिनिधि अपने हित की ओर कदम बढ़ने लगे . मध्यप्रदेश , महाराष्ट्र , मेघालय , गोवा , दिल्ली , बिहार जैसे कई राज्य है जहां आमजनता कि भावनाओं को दरकिनार किया गया . महाराष्ट्र की बात ले तो महाराष्ट्र में शिवसेना बड़ी पार्टी बनकर उभरी और त्रिशंकु विधानसभा के आसार बन गए तब शिवसेना / एनसीपी/कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई यहाँ शिवसेना ने अपने पुराने राजनैतिक साथी को छोड़कर नए दलों के साथ गंठबंधन कर सरकार बनाई महाराष्ट्र की जनता ने शिव सेना पर ज्यादा भरोसा किया किन्तु बड़ा पद किसे की मंशा ने आम जनता के सोंच को बदल दिया और महा अघाड़ी के नेत्रित्व में सरकार बनी किन्तु क्या हुआ जब से सरकार बनी तब से ही इसे तोड़ने की लगातार कोशिशे जारी रही शायद यही कारण रहा कि कभी अधनगे कपड़ो में नशे के आगोश में पार्टियों में शिरकत करने वाली अभिनेत्री के मामले को इतना तुल दिया गया और ऐसे प्रचारित किया गया जैसे कि उसके साथ कोई बड़ा जुर्म हो गया हो और वह अबला अकेले सबला बनकर जंग लड़ रही हो यहाँ तक की केन्द्रीय एजेंसियों द्वारा उच्च श्रेणी की सुरक्षा भी दे दी गए राज्यपाल/केन्द्रीय मंत्रियो ने मुलाकाते शुरू कर दी तब यह कहा जाने लगा कि नारी के सम्मान के लिए सदैव तत्पर रहा जाएगा अच्छी बात भी है ऐसा होना चाहिए किन्तु यही सोंच अब क्यों नजर नहीं आ रही जब भारत के लिए कई अंतरराष्ट्रिय पदक ला कर विदेशो में देश का मान बढाने वाले महिला रेसलर आज हड़ताल पर है उनकी कोई क्यों नहीं सुन रहा क्योकि उनके साथ देने से खुद के सरकार के सदस्यों पर ही ऊँगली उठ रही . अब कहा गया नारी सम्मान जिस पर सब मौन यहाँ तक की महिला अभिनेत्री के विवाद में सरकार तक हिल गयी और महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन हो गया पर जनता की सोंच और मताधिकार का क्या हुआ कहा बनी उनके मन की चुनी हुई सरकार .ऐसा ही मध्यप्रदेश की बात ले तो मध्यप्रदेश में आम जनता ने बहुमत कांग्रेस को दिया किन्तु सरकार चलना तो दूर रेंगने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा आखिर में सिंधिया ने अपने राजनैतिक फायदे को देखते हुए भाजपा का दामन थाम लिया और शिवराज चौहान की वह बात सही साबित हुई जब उन्होंने मुख्यमंत्री आवास छोड़ते समय कहा था कि छह महीने में वापस आ जायेंगे आवास में . यहाँ भी जनता की भावनाए कुचली गयी कारण सिंधिया रहे और रही उनकी महत्तवकाक्षा . दिल्ली की बात करे तो सरकार तो केजरीवाल की किन्तु बड़े फैसले लेने का कोई अधिकार नहीं अध्यादेश इसका सबसे बड़ा उदहारण जिससे न्यायपालिका के आदेश की भी महत्ता पर सवाल उठा गए . बिहार की बात करे तो यहाँ जनता ने नितीश सरकार पर भरोसा जताया और भाजपा गठबंधन की सरकार को फिर बहुमत दिया किन्तु क्या हुआ रातो रात मतलब के लिए खुर्सी के लिए पलटने में माहिर नितीश कुमार ने फिर से वही रास्ता अपनाया और जिस तरह से भाजपा के समर्थन में सरकार बनाई एक बार फिर लालू यादव की पार्टी के सहयोग से सरकार बना ली यहाँ भी जनता सिर्फ देखती रही . कर्णाटक में भी सत्ता परिवर्तन का खेल कई बार हो चुका है . ऐसे में जनता के मत सिर्फ दिखावा मात्र ही रह गए है सरकार किसे बनानी और पद पर किसे कब किसके साथ बीतना यह जनप्रतिनिधि ही कर रहे जनता की भावनाए तो अब कही नजर नहीं आ रही क्या यही लोकतंत्र है ...
 2014 के बाद बदली भारत की तस्वीर ...
इन दिनों एक ऐसा माहौल तैयार किया जा रहा है कि भारत में जो भी कार्य हुए 2014 के बाद हुए 2014 के पहले भारत में कुछ भी नहीं था सब निर्माण और उन्नति 2014 के बाद हुई तब यह क्यों भूल जाते है कि 2014 के पहले इसी भारत में निवास करते हुए मजबूत न्यायपालिका ,कार्यपालिका के सहारे ही आज यह स्थिति हुई है .2014 के पहले सर्वोच्च पदों पर बैठे राजनेताओ का अपमान जायज था आज देश की आन के साथ जोड़ा जाने लगा जो हाँ में हाँ मिलाये वो देशभक्त जो ना मिलाये वो देश द्रोही क्या अभिव्यक्ति की आजादी यही है . क्या इसे ही लोकतंत्र कहते है जहा राजा के सुर में सुर मिलाया जाता है जिसे किसी की सुनना नहीं सिर्फ अपनी ही कहना यह परता राजतन्त्र में होती थी जहां सिर्फ राजा की बात ही सही होती थी अब लोकतंत्र कहा है ....
कौन है भारत का राजा ....
   राजतंत्र में एक राजा होता था जो हर कार्य का श्रेय स्वयं लेता था अगर कुछ गलत भी करे तो चाटुकारों की फौज तैनात रहती थी राजा की बात को सही साबित करने के लिए राजतन्त्र में राजा सिर्फ अपनी कहता किसी सवालों का जवाब देना राजा के लिए जरुरी नहीं होता क्या आज भी ऐसी ही स्थिति है कुछ क्षण ऐसे भी आये है जो यह सोंचने पर मजबूर करते है नोटबंदी का मामला ही देखे तो कालाधन वापसी की बात हुई थी पर आज नोटबंदी के सालो बाद भी यह ज्ञात नहीं हुआ कि कितना कालाधन वापस आया यह भी ज्ञात नहीं हुआ कि इस कालेधन के प्रकरण में कितने लोग घेरे में आये , पुलवामा की बात करे तो देश में इतने बड़े कांड के बाद भी अभी तक इस विषय पर और इसके जाँच पर कोई नतीजे वाली पहल नहीं हुई वही पूर्व राज्यपाल के आरोपों पर भी तथ्यात्मक जवाब नहीं मिलना भी लोकतान्त्रिक देश में आम जनता के साथ एक धोखा ही प्रतीत हो रहा है . जहाँ एक ओर मोदी जाति को लेकर एक महीने में ही सुनवाई पूरी हो गयी और सजा भी हो गयी वही दिल्ली के जंतर मंतर  पर देश का मान विदेशो में बढाने वाले खिलाडी अभी भी न्याय की आस में बैठे है .
चाटुकार मिडिया का भी अहम् हिस्सा लोकतंत्र को कुचलने में ....
   देश में इनदिनों चाटुकार मिडिया चेनल की भरमार है जो सत्य की जगह अपनी ही धुन में एक तरफ़ा प्रचार में लगे है . जिस तरह महिला अभिनेत्री पर अत्याचार की बात पर 24 घंटे आवाज़ बुलंद करने वाली मिडिया अब महंगाई पर बात नहीं करती रोजगार की बात पर मौन , सरकार के कार्यो पर जवाब विपक्ष से मांगती कार्य न करने पर आरोप विपक्ष पर लगाती . पत्रकार का धर्म होता है कि सरकार के कामो की /कमियों की बात करे किन्तु वर्तमान परिदृश्य में देखा जा रहा है कि काम करे तो सरकार की सफलता और काम ना करे तो विपक्ष की आलोचना जबकि फैसले लेने का सम्पूर्ण अधिकार सत्ता के पास फिर भी आरोप विपक्ष पर जिस प्रदेश में गैर भाजपा सरकार वो सरकार देश द्रोही . सभी को याद होगा कि किस तरह कुछ चेनल के चाटुकार पत्रकार एक तरफ तो देश के प्रधान मंत्री के बारे में टिपण्णी को देश की आन के साथ जोड़ते हुए दिखते  है वही प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बारे में खुले आम अनगर्ल बाते करते हुए अपमान जनक  टिपण्णी करने से भी बाज नहीं आते . देश का मुखिया हो या प्रदेश का मुखिया दोनों ही लोकतंत्र में देश व प्रदेश में प्रमुख होते है दोनों का ही सम्मान होना चाहिए किन्तु अक्सर यह देखा गया है कि इसमें भी भेदभाव की झलक देखने को मिल जाति है . हास्यपद खबर भी सरकार के पक्ष में चलाने वाली घटनाएं बहुत हुई सभी ने देखा है कि जब देश में नोटबंदी के बाद 2000 का नोट आया तो कैसे कई मिडिया चेनल्स ने इसमें नेनो चिप की बात को प्रमुखता से उठाया और सरकार के कदम की सराहना की अब जब 2000 के नोट को एक बार फिर बंद करने का आदेश जारी हुआ तो नेनो चिप  की प्रशंशा करने वाले मौन है क्या आम जनता की भावनाओं से खेलने का अधिकार मिल गया चाटुकार पत्रकारों को जो अपनी जिम्मेदारियों को भी दफ़न कर देते है . ये सत्य है कि सत्ताधारी के पक्ष की बाते वर्तमान समय में जरुरत बन जाती  है किन्तु क्या उनकी कमजोरियों को उजागर कर समाज हित में कार्य नहीं किया जा सकता . अगर कमजोरियों को उजागर किया जाता तो हो सकता है उसमे सुधार हो किन्तु यहाँ गलत कार्यो को भी सही करार देने की प्रथा क्या आने वाले समय में मजबूत भारत की दिशा में रुकावट नहीं ...
ईडी की कार्यवाही प्रश्नीय और एक अच्छे प्रथा का उदय ....
   आज जिस तरह प्रवर्तन निदेशल कार्य कर रहा है वह सराहनीय है आज भले ही ईडी ने विगत 9 सालो में 95 % कार्यवाही विपक्ष पार्टियों के नेताओं पर की है किन्तु इस प्रथा से यह तो उम्मीद जगी है कि सत्ता परिवर्तन की दिशा में सत्ताधारी भी ऐसे ही कार्यवाही की दिशा में आगे बढेगा . आज कोई भी यह नहीं कह सकता कि फला राजनायक ने कोई घोटाला ना किया हो परोक्ष अपरोक्ष रूप से सभी शामिल रहते है किन्तु सत्ताधारी की ताकत के सामने कार्यवाही विपक्ष पर ही होती है जिसके पास राजदंड वही आदेश जारी करेगा ऐसी प्रथा से आने वाले समय में सभी का नंबर लगेगा जो भ्रष्टाचार में लिप्त होंगे कम से कम तब राजनेताओ को इस बात का डर तो रहेगा कि अगर भ्रष्टाचार हुआ तो आज नहीं तो कल उनका भी नंबर आया . यह भारत देश है यहाँ ना तो पंडित नेहरु का हमेशा शासन रहा ना इंदिरा का रहा और ना मोदी का रहेगा शासन की बागडोर परिवर्तित होगी ही क्योकि किसी ने भी अमृत नहीं पिया आज नहीं तो कल ईश्वर  के आगे सभी को नतमस्तक होना ही होगा .....
राजदंड की प्रथा क्या लोकतंत्र में जरुरी ...
  आज राजदंड सेंगोल पर हर तरफ चर्चा हो रही है कि एक राज को उसके राज्याभिषेक के समय यह शक्ति दी जाति है और इसकी पौराणिक महत्ता भी है किन्तु क्या भारत में राजदंड की आवश्यकता है . भारत लोकतान्त्रिक देश है लोकतान्त्रिक देश में कार्यपालिका , न्यायपालिका का अपना अपना महत्तव है किसी एक को सर्वशक्तिमान घोषित नहीं किया जा सकता जैसा कि राजतन्त्र में होता है लोकतंत्र में सभी एक दुसरे के पूरक है भारत के इस नव निर्माण में अगर लोकतंत्र से ज्यादा महत्तव राजतन्त्र को दिया जाएगा तो क्या भारत में एक बार फिर राजतंत्र की दिशा में बढ़ रहा भारत .बात अगर राजदंड के स्वरुप सेंगोल की करे तो सेंगोल आज के लोकतंत्र में कई बातो को भी याद दिलाता है भारत शुरू से ही तपोभूमि के रूप में इतिहास के पन्नो में दर्ज है यहाँ धर्म,न्याय,सर्वभाव,समृद्धि सभी को महत्तव दिया जा रहा है सेंगोल सिर्फ एक राजदंड ही नहीं नंदी का स्वरुप समर्पण का प्रतिक ,नंदी की स्थापना एक गोल मंच पर की गई है, यह गोल मंच संसार का प्रतीक ,लक्ष्मी का रूप राज्य के वैभव का प्रतिक ,देवी लक्ष्मी के आस-पास हरियाली के तौर पर फूल-पत्तियां, बेल-बूटे उकेरे गए हैं, जो कि राज्य की कृषि संपदा का प्रतीक . ऐसी खूबियों से शोभित है सेंगोल जिसकी स्थापना की गयी है . यह सेंगोल भृत्य लोकतंत्र में यह भी दर्शाता है कि लोकतंत्र में राजधर्म का भी विशेष महत्तव है और हिन्दू प्रधान देश में धार्मिक आस्थाव का भी महत्तव . भारत की जनता एक स्वस्थ लोकतंत्र की कल्पना ही कर रही जहां पक्ष विपक्ष और कार्यपालिका समाज और देश हित में फैसले ले . अब से कुछ देर में ही नए संसद भवन का उद्घाटन होगा जिसमे लोकतंत्र के कई हिस्से ( विपक्षी पार्टी ) शामिल नहीं होंगे ऐसे में क्या यह उद्घाटन राजतन्त्र की दिशा में सिर्फ एक शुरुवात है .
   मेरे विचार से लोकतंत्र के इस पवित्र मंदिर का उद्घाटन का दृश्य ऐसा होना चाहिए था कि जिसमे न्यायपालिका /कार्यपालिका पक्ष विपक्ष सभी मौजूद हो और पूरी दुनिया के सामने एक मिसाल बने कि भारत के लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद भवन के उद्घाटन पर सभी पुरे मन से मौजूद है और सभी का सम्मान लोकतंत्र की खुबसूरत तस्वीर के रूप में आने वाली पीढ़ी याद रखे काश ऐसा होता किन्तु यह सत्य है कि ऐसा नहीं हो रहा . संसद भवन के उदघाटन पर विपक्ष का बड़ा धडा नहीं , देश की प्रथम नागरिक उपस्थित नहीं और इसके जिम्मेदार सत्ता पक्ष ही नहीं विपक्ष भी है जो लोकतंत्र के मंदिर में भी राजनितिक कर रहे है ...

शरद पंसारी ...

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