December 07, 2025
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धर्म संसार / शौर्यपथ / प्रभु यीशु के जन्म की ख़ुशी में मनाया जाने वाला क्रिसमस का त्योहार पूरी दुनिया में मनाया जाता है। यह त्योहार कई मायनों में बेहद खास है। क्रिसमस को बड़ा दिन, सेंट स्टीफेंस डे या फीस्ट ऑफ़ सेंट स्टीफेंस भी कहा जाता है। प्रभु यीशु ने दुनिया को प्यार और इंसानियत की शिक्षा दी। उन्होंने लोगों को प्रेम और भाईचारे के साथ रहने का संदेश दिया। प्रभु यीशु को ईश्वर का इकलौता प्यारा पुत्र माना जाता है। इस त्योहार से कई रोचक तथ्य जुड़े हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में।
क्रिसमस ऐसा त्योहार है जिसे हर धर्म के लोग उत्साह से मनाते हैं। यह एकमात्र ऐसा त्योहार है जिस दिन लगभग पूरे विश्व में अवकाश रहता है। 25 दिसंबर को मनाया जाने वाला यह त्योहार आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च में 6 जनवरी को मनाया जाता है। कई देशों में क्रिसमस का अगला दिन 26 दिसंबर बॉक्सिंग डे के रूप मे मनाया जाता है। क्रिसमस पर सांता क्लॉज़ को लेकर मान्यता है कि चौथी शताब्दी में संत निकोलस जो तुर्की के मीरा नामक शहर के बिशप थे, वही सांता थे। वह गरीबों की हमेशा मदद करते थे उनको उपहार देते थे। क्रिसमस के तीन पारंपरिक रंग हैं हरा, लाल और सुनहरा। हरा रंग जीवन का प्रतीक है, जबकि लाल रंग ईसा मसीह के रक्त और सुनहरा रंग रोशनी का प्रतीक है। क्रिसमस की रात को जादुई रात कहा जाता है। माना जाता है कि इस रात सच्चे दिल वाले लोग जानवरों की बोली को समझ सकते हैं। क्रिसमस पर घर के आंगन में क्रिसमस ट्री लगाया जाता है। क्रिसमस ट्री को दक्षिण पूर्व दिशा में लगाना शुभ माना जाता है। फेंगशुई के मुताबिक ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि आती है। पोलैंड में मकड़ी के जालों से क्रिसमस ट्री को सजाने की परंपरा है। मान्यता है कि मकड़ी ने सबसे पहले जीसस के लिए कंबल बुना था।

विशेष लेख

 

दुर्ग। शौर्यपथ। 

आज के समय में प्रतिष्ठा, पद और प्रोटोकॉल अक्सर व्यक्ति को आम जनजीवन से दूर ले जाते हैं। लेकिन जब कोई व्यक्तित्व अपने उच्च पदों, सत्ता-संबंधों और सामाजिक प्रतिष्ठा से ऊपर उठकर सरलता, सादगी और मानवीयता को अपनाए — तो वह केवल सम्मान ही नहीं, बल्कि प्रेरणा का स्रोत बन जाता है।

ऐसी ही एक प्रेरणादायी मुलाकात बीती रात दुर्ग सर्किट हाउस में हुई, जब ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन की टीम का सामना देश की एक अत्यंत विशिष्ट, परंतु उतनी ही विनम्र और सरल शख्सियत से हुआ —

डॉ. कमल रामकृष्ण गंवई,जिन्हें देश पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) की माता, तथा पूर्व राज्यपाल (बिहार और सिक्किम) आर. एस. गवई की धर्मपत्नी होने के नाते जानते हैं।उनका व्यक्तित्व पद से बड़ा है — और उनका व्यवहार हर पद से ऊँचा।

परिवार स्वयं न्यायपालिका का शिखर—फिर भी जमीन से जुड़े लोग

डॉ. कमल गंवई का परिवार देश की न्यायपालिका और प्रशासनिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है—

उनके पति आर. एस. गवई, भारत के बिहार व सिक्किम के राज्यपाल रह चुके हैं।

उनका बेटा भूषण रामकृष्ण गंवई, देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे।

उनकी बेटी बॉम्बे हाई कोर्ट में न्यायाधीश हैं।

इतने उच्च और प्रभावशाली पदों से जुड़े परिवार की माता का व्यवहार यदि एक साधारण गृहिणी की तरह सरल, सहज और सत्संगी हो — तो यह आज के समाज के लिए एक मूल्यवान सीख है।सर्किट हाउस में किसी प्रकार का प्रोटोकॉल, सुरक्षा या विशेष व्यवस्था न देखकर ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन की पूरी टीम भावुक हो उठी।वे एक सामान्य नागरिक की तरह बैठीं, सुना, समझा और मुस्कराकर हर बात का उत्तर दिया—यही उनकी महानता है।

ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन की टीम ने किया सम्मान

संगठन के विस्तार और जनसेवा से जुड़े कार्यों पर उनसे सार्थक चर्चा हुई । हल्की मुस्कान और सहज व्यवहार में उन्होंने टीम को दिशा-निर्देश भी दिए। संगठन ने उन्हें शाल और मोमेंटो प्रदान कर सम्मानित किया,और सभी सदस्यों ने उनका आशीर्वाद प्राप्त किया।इस अवसर पर उपस्थित थे—अध्यक्ष जितेंद्र हासवानी,उपाध्यक्ष जे. सूफी रूमी,महासचिवडी. मोहन राव,सचिव मनोज राय,जावेद भाई, पीयूष वासनिक और संदीप बामबूढ़े।

समाज को बड़ा संदेश: पद बड़ा नहीं, व्यक्तित्व बड़ा होता है

आज जब छोटे-से पद पर आसीन लोग भी भारी-भरकम प्रोटोकॉल, विशेष सुरक्षा और लाइमलाइट की चाह में रहते हैं । वहीं न्यायपालिका के सर्वोच्च पद से जुड़े परिवार की माता का इतना सहज, सादगीपूर्ण और निर्व्याज व्यवहार समाज को यह याद दिलाता है कि—

 

“अहंकार पद से आता है, परंतु सम्मान व्यवहार से।”

“असर ओहदों का नहीं होता, व्यक्तित्व का होता है।”

एक ऐसी माता, जिसने राष्ट्र को उच्चतम स्तर की न्यायिक सेवा देने वाले पुत्र का संस्कार दिया —उनकी विनम्रता ही बताती है कि महानता कैसी दिखती है।

दुर्ग सर्किट हाउस में डॉ. कमल रामकृष्ण गंवई से हुई यह मुलाकात सिर्फ एक औपचारिक मुलाकात नहीं थी बल्कि सरलता, सादगी और मानवता की जीवंत पाठशाला थी।

उनके शांत व्यक्तित्व और विनम्र व्यवहार ने यह सिद्ध किया कि—"प्रोटोकॉल से नहीं, व्यवहार से मन जीते जाते हैं।”ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन की टीम के लिए यह निस्संदेह एक अविस्मरणीय क्षण रहा —और समाज के लिए एक प्रेरक संदेश।

चार दशक से बदलती राजनीति नहीं, बल्कि स्थिरता की कड़वी सच्चाई — कार्यकर्ताओं का समर्पण सलाम-योग्य, पर पार्टी में उनके लिए उन्नति का रास्ता कहीं खो गया।

दुर्ग / शौर्यपथ / जिस शहर ने कभी कांग्रेस को स्थानीय कांग्रेसियों के दम पर नई राह दिखाई थी, वही शहर आज 40 साल से उसी राजनीतिक ठहराव की गूँज सुनाता है। जहां एक ओर नित नए चेहरे, परंपरागत परिवारों के साये और पार्टी के भीतर सीमित अवसरों की वजह से तमाम कामकाजी कांग्रेसी वही पुराने ओहदे-संरचना में जमे हुए हैं — और जनता अब मुखर होकर पूछने लगी है: क्या दुर्ग कांग्रेस का भविष्य हमेशा केवल कार्यकर्ता स्तर तक ही सीमित रहेगा?

चार दशक की कहानी को समझने के लिए हमें जमीनी हकीकत देखनी होगी। 40 साल पहले अरुण वोरा ने दुर्ग शहर से विधायक के रूप में अपना राजनीतिक सफर शुरू किया — और आज वही नाम, वही शख्स संगठन में जिलाध्यक्ष जैसी जगहों के लिए फिर से उभर रहा है। यही संकेत देता है कि संगठन में नेताओं का चक्र लगभग लगातार वही पुरानी राह पकड़ता आया है। जबकि पार्षद, ब्लॉक अध्यक्ष, और बुनियादी स्तर के कार्यकर्ता दशकों से अपनी भूमिकाएँ बखूबी निभा रहे हैं, पर उनमें से बहुत से लोग संगठन के उच्च ओहदों तक नहीं पहुँच पाए — क्योंकि जो नियंत्रण और निर्णय शक्ति है, वह अक्सर कुछ सीमित हाथों में ही केंद्रित रहती है।
यह कोई सनक या अतिशयोक्ति नहीं कि पिछले 40 सालों में दुर्ग कांग्रेस का संगठन एक स्थिर जल की तरह रहा — ऊपर से हल्की हलचल दिखती रही पर भीतर कोई गहरा परिवर्तन नहीं हुआ। पार्षद वही रहे, कार्यकर्ता वही रहे, और कुछ अपवादों को छोड़ कर कोई नेता विधायक या उससे ऊपर के पायदान तक नहीं पहुंच पाया। ब्लॉक स्तर पर समय-समय पर थोड़े बहुत बदलाव दिखाई देते हैं, पर अधिकतर बार वे भी “रिमोट कंट्रोल” जैसा ठहराव लिए हुए होते हैं — परिवर्तन का नहीं, केवल पदों का नामांतरण लगता है।
इसी ठहराव का परिणाम ये होता है कि चुनाव की मोहब्बत और संगठन के प्रति निष्ठा रखने वाले हजारों कांग्रेसी जिनका जज़्बा और समर्पण असली है, वे भी बार-बार वही भूमिका निभाते रहे — झंडा उठाना, रैलियों में हिस्सा लेना, विरोध-आंदोलन की अगुवाई करना — पर सत्ता के ठीक फायदे, शक्तियों और निर्णायक भूमिकाओं का लाभ चंद लोगों तक ही सिमटा रहता है। जनता भी अब इस असंतुलन को देख रही है और सवाल उठा रही है कि क्या परिवारवाद और पुराने किले ही संगठन के भविष्य का निर्धारण करेंगे?
अरुण वोरा का फिर से जिला अध्यक्ष पद के लिए आवेदन चर्चा की आग में घी डालने जैसा हुआ — न केवल इसलिए कि एक पुराना नाम वापस आया है, बल्कि इसलिए कि यह पुरानी परंपरा का प्रतीक बन चुका है: वही नेता, वही पथ। यही वजह है कि कार्यकर्ता समुदाय में बेचैनी और असंतोष बढ़ रहा है — वे पूछते हैं: क्या पूरी जिंदगी सिर्फ कार्यकर्ता बने रहने के लिए ही है? क्या किसी को संगठन के अंदर आगे बढ़ना है तो उसे किस ‘एनिवर्सरी पास’ या ‘परिवार के नाम’ की मोहर चाहिए?
दुर्ग की सियासत में यह ठहराव केवल कांग्रेस तक सीमित नहीं है; परन्तु विशेष रूप से दुर्ग कांग्रेस के लिए यह चिंताजनक है क्योंकि एक मजबूत स्थानीय पार्टी का मतलब ही होता है—तन-मन से जुड़े कार्यकर्ता जिनमें नेतृत्व कौशल विकसित होने पर वे पार्टी को नए ऊँचाई पर ले जा सकें। पर जब नेतृत्व और निर्णय सीमित तब प्रतिभा दबकर रह जाती है, नए विचारों का मार्ग बंद होता है और युवा/नवोदित कार्यकर्ता निराश होते हैं।
क्या है विकल्प?
यहाँ कुछ आवश्यक कदम हैं जिन्हें लागू कर के दुर्ग कांग्रेस अपने संगठनात्मक स्वास्थ्य और जनता के भरोसे को फिर से हासिल कर सकती है — (निम्न सुझाव जरूरी हैं पर उपयुक्त नीति-रूप देने का काम संगठन पर निर्भर करेगा):
पदोन्नति व संसाधन आवंटन में पारदर्शिता: स्थानीय स्तर पर सक्रिय कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन व सेवा को मापकर उन्हें आगे बढ़ाने का स्पष्ट मार्ग बनाना।
युवा और नए चेहरों के लिए आरक्षण/प्रोत्साहन: ताकि पार्टी में नयापन आए और परिवारवाद के आरोप कम हों।
समय-सीमित नेतृत्व और रोटेशन पॉलिसी: लंबे समय तक एक ही नामों का प्रभुत्व खत्म करके नए नेतृत्व को मौका।
कार्यकर्ता-केन्द्रित प्रशिक्षण और राजनीतिक विकास कार्यक्रम: ताकि पार्षद, ब्लॉक अध्यक्ष व अन्य कार्यकर्ता नेतृत्व की योग्यता विकसित कर सकें।
स्थानीय जनभागीदारी और संवाद: जनता व कार्यकर्ताओं की आशाओं को सुनने और नीति में शामिल करने का सशक्त मंच।

दुर्ग कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का हौसला और समर्पण काबिले-तारीफ है — वे 40 साल से जिन जिम्मेदारियों के साथ पार्टी के प्रति वफादार रहे, वे शहर की राजनीतिक संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। पर सवाल यह है कि क्या पार्टी उन पर भी भरोसा कर सकेगी कि वे संगठन का भविष्य हों? या फिर वही पुराना सिलसिला चलता रहेगा — कुछ नाम ऊपर, बाकियों के लिए वही कार्यकर्ता जीवन? जनता और पार्टी के अंदर के लोग दोनों अब जवाब की मांग कर रहे हैं। यदि दुर्ग कांग्रेस सचमुच रचनात्मक बदलाव चाहती है तो उसे इन वर्षों की असंतुलता को पहचान कर उसकी जड़ में जाकर परिवर्तन लागू करना होगा—वरना 40 साल का यह ठहराव और भी लंबा चल सकता है।

पुल-कोट: “यदि केवल कुछ ही नेता सत्ता के लाभ उठा सकें और बाकी जीवनभर ‘कार्यकर्ता’ बने रहें — तो लोकतंत्र की जड़ें कमजोर पड़ती हैं; दुर्ग को अब जमीनी बदलाव चाहिए, न कि केवल नामों का फेर।”

“दुर्ग में विपक्ष गायब! नेता प्रतिपक्ष को बस शासकीय सुविधा चाहिए, जनता की आवाज़ नहीं”
“इतना शांत विपक्ष कभी नहीं देखा—संजय कोहले की चुप्पी ने कांग्रेस संगठन की पोल खोल दी”

दुर्ग / शौर्यपथ / दुर्ग नगर निगम में विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस आजकल एक सवाल से घिरी हुई है—क्या उनका नेता प्रतिपक्ष जनता की आवाज़ उठाने के लिए चुना गया था या सिर्फ शासकीय कक्ष पाने के लिए?
शहर में आज यही चर्चा है कि बीते छह महीने में विपक्ष के नेता संजय कोहले की आवाज़ सिर्फ एक ही मुद्दे पर सुनाई दी—अपने लिए कक्ष का आवंटन।

जहाँ दुर्ग में बदबूदार मोहल्लों की समस्या,मुख्य मार्गों पर जानवरों की फौज,गड्ढों से पटी सड़कें,अंधेरी गलियाँ,शनिवार बाजार का अवैध संचालन,नलघर हादसा,और अतिक्रमण पर पक्षपातपूर्ण कार्रवाइयाँ
लगातार जनता को परेशान कर रही थीं वहीं दूसरी ओर विपक्ष के नेता को इन मुद्दों पर न किसी आंदोलन की ज़रूरत महसूस हुई, न किसी सशक्त विरोध की।

कक्ष मिला… और विपक्ष मौन

संजय कोहले ने छह महीनों तक आयुक्त कार्यालय के नीचे जमीन पर बैठकर अपना “कार्यालय” बनाकर विरोध जताया। पर जैसे ही निगम ने कक्ष का आवंटन कर दिया—विरोध भी समाप्त, आवाज़ भी समाप्त, और विपक्ष भी समाप्त।इस खामोशी ने विपक्ष की विश्वसनीयता पर जोरदार सवाल खड़े कर दिए हैं।
जनता तंज कसते हुए कह रही है—
“कोहले जी की आवाज़ जनता के लिए नहीं, बल्कि सिर्फ कक्ष के लिए निकलती है!”

इतिहास में इतना कमजोर विपक्ष कभी नहीं दिखा
दुर्ग के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इतना निष्क्रिय विपक्ष शहर ने दशक भर में पहली बार देखा है।जबकि पिछली परिषद में, तब कम संख्या बल के बावजूद BJP नेता प्रतिपक्ष अजय वर्मा
लगातार—आंदोलन,धरना,तीखे विरोध,और हर नीति-विरुद्ध निर्णय पर सख्त बयान देकर जनता की आवाज़ बनते थे। मगर वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष संजय कोहले के कामों का मूल्यांकन जनता यूँ कर रही है—
“10% भी विपक्ष की भूमिका निभा लेते तो बड़ी बात होती।”

क्या परदे के पीछे कोई ‘सेटिंग’?

शहर में यह सवाल अब खुलेआम उठ रहा है कि “क्या शहरी सरकार और विपक्ष के बीच कोई बड़ी सेटिंग है, जिसके कारण कोहले हर मामले में मौन हैं?”कई कांग्रेसी पार्षद भी निजी बातचीत में इस बात पर हैरानी जताते हैं कि इतने बड़े मुद्दों पर संजय कोहले की चुप्पी ने संगठन की छवि को गंभीर नुकसान पहुँचाया है।

पूर्व महापौर धीरज बाकलीवाल की छवि पर भी सवाल

नेता प्रतिपक्ष के चयन में जो महत्वपूर्ण भूमिका पूर्व महापौर धीरज बाकलीवाल की थी,उस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि—“क्या ऐसे निर्जीव नेतृत्व को विपक्ष की बागडोर देना सही निर्णय था?”

कांग्रेस की स्थिति—अस्तित्व संकट?
शहर की राजनीतिक हवा कह रही है कि अगर विपक्ष की यही स्थिति रही तो आने वाले वर्षों में दुर्ग में कांग्रेस का रहा-सहा अस्तित्व भी गायब हो सकता है।आज की स्थिति यह है कि नेता प्रतिपक्ष संजय कोहले अपनी भूमिका का निर्वहन बस कुछ ज्ञापन देकर और कागजी बयान जारी कर कर रहे हैं—
और शहर की जनता पूछ रही है—
“क्या यही है दुर्ग का विपक्ष? या फिर यह विपक्ष सिर्फ सुविधा पाने वाली संस्था बन चुका है?”

“राम के नाम पर कब्ज़ा… और सुशासन के नाम पर मौन! दुर्ग निगम में ‘चयनात्मक बुलडोज़र नीति’ पर उठे सवाल” दुर्ग / शौर्यपथ / शहर की व्यस्ततम सड़क और सरकारी…

“दुनिया से मिलने का समय — जनता से नहीं।”

दुर्ग / शौर्यपथ / जनता के समस्या-समाधान के लिए बने लगभग हर सरकारी द्वार पर आज आम नागरिकों को इंतज़ार, धक्का-मुक्की और निराशा ही हाथ लग रही है। दुर्ग निगम क्षेत्र के दो सबसे बड़े जिम्मेदार — महापौर श्रीमती अलका बाघमार और आयुक्त सुमित अग्रवाल — बड़े-बड़े कार्यक्रमों, संगठनों और आयुक्त मीटिंगों में व्यस्त दिखते हैं; वहीं जो लोग जीवन-यापन, सड़क-नालियों, स्वच्छता, कब्जा, पेंशन या राहत के लिए इन अधिकारियों से मिलने आते हैं, उन्हें महापुरुषों के कक्षों के सामने बस एक ही चीज़ देखने को मिलती है — इंतज़ार।
नागरिकों के मुताबिक़ निगम कक्ष और महापौर कार्यालय के बाहर घंटों पापड़ बेलने के बावजूद भी मिलने का समय नहीं मिलता। शिकायतकर्ता, बुजुर्ग, माँ-बच्चे और छोटे व्यापारी—सब अपने मसलों के साथ प्रशासनिक दरवाज़ों पर भटकते हुए नजर आते हैं।

क्या है समस्या — सीधे शब्दों में

किसी तय ‘जनसुबिधा-समय’ (public hour) का अभाव: आयुक्त व महापौर द्वारा आम जनता से मिलने के लिए कोई सार्वजनिक, नियमित समय निर्धारित नहीं है।

पहुँच आसान, पर मिलने का रास्ता मुश्किल: कुछ खास लोगों और पदाधिकारियों से मुलाकात सहजता से हो जाती है; सामान्य नागरिकों के लिए वही विभाग अक्सर ‘सुलभ’ नहीं बन पाते।

शिकायतों का फ़ॉलो-अप गायब: शिकायत दर्ज कराने के बाद भी आवेदक को आगे की जानकारी या समाधान नहीं मिलता; बार-बार निगम चक्कर काटने की नौबत आती है।

आचरण में पक्षपात के आरोप: शिकायतकर्ता कहते हैं कि मामलों में पक्षपात या अनियमित प्राथमिकता दिए जाने की छवि बन रही है — और यही प्रशासनिक भरोसे को चोट पहुंचा रहा है।

धरातल पर असर — जनता की तकलीफें

जो लोग सीधे मिलकर समस्याएँ बताना चाहते हैं, जैसे कि सड़क की दिक्कत, अवैध कब्जा, पेंशन का मुद्दा या सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी शिकायत — उन्हें कई बार लंबा इंतज़ार, अनदेखा किया जाना या प्राथमिकता न मिलना पड़ता है। इससे छोटे-व्यापारी, बुज़ुर्ग और कमजोर तबके के लोग सबसे अधिक प्रभावित हैं। शहरी शासन पर विश्वास कम होना शुरू हो गया है — यही सबसे बड़ा प्रश्न है।

प्रशासनिक जवाबदेही — क्या चाहिए?

नागरिकों की लगातार बढ़ती नाराज़गी को देखते हुए कुछ त्वरित और व्यावहारिक सुझावः

1. साप्ताहिक ‘जनसुनवाई-घंटे’ तय करें — उसी समय पर हर सप्ताह महापौर/आयुक्त आम नागरिक मिलें।
2. ऑनलाइन अपॉइंटमेंट व ट्रैकिंग — शिकायत-रिकॉर्ड और फॉलो-अप के लिए डिजिटल सिस्टम (टोकन/अपॉइंटमेंट) सार्वजनिक करें।
3. नोडल अधिकारी व शिकायत समाधान टीम — हर वार्ड के लिए जिम्मेदार अधिकारी/नोडल प्वाइंट घोषित हों।
4. पारदर्शिता रिपोर्ट — हर महीने सार्वजनिक करें कि कितनी शिकायतें मिली, कितनी निस्तारित हुईं और किनसे निपटा गया।
5. खुले दरवाज़े की नीति — ‘विशेष मुलाक़ात’ और ‘सार्वजनिक मुलाक़ात’ में स्पष्ट अंतर रखें; विशेष मुलाक़ात के निर्णय का रेकॉर्ड भी सार्वजनिक हो।

“जब समय है बाहर कार्यक्रमों के लिए, पर जनता के लिए नहीं”

नागरिकों का तर्क है कि महापौर और आयुक्त सार्वजनिक-कार्यक्रमों, बैठकों और निजी मुलाकातों में समय दे देते हैं पर वही समय सीधे मिलने के लिए जनता को नहीं मिल पाता। सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग अक्सर ‘सुलभता’ के वादे करते हैं — पर जमीन पर वह वादा खोखला दिखता है। यह कटाक्ष केवल नाराज़गी नहीं, बल्कि एक चेतावनी भी है कि अगर प्रशासन ने समयबद्धता और सार्वजनिक पहुँच सुनिश्चित नहीं की, तो जनता का भरोसा और घटेगा — और यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है।

दुर्ग के नागरिक आज भी उम्मीद करते हैं कि उनके चुने हुए जनप्रतिनिधि और सौंपे गए प्रशासक कम से कम मिलने का समय दें। महापौर अलका बाघमार और आयुक्त सुमित अग्रवाल के पास बड़े-बड़े एजेंडे और कार्यक्रम हों, यह स्वीकार्य है — पर जनता की आवाज़ सुनना और समस्याओं का समय पर निस्तारण करना ही सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। प्रशासनिक व्यस्तता को जनता की पहुँच से ऊपर नहीं रखा जा सकता — वरना ‘सुलभ सरकार’ का नार बनकर रह जाएगा।

दुर्ग / शौर्यपथ / सोमवार 25 नवंबर को दुर्ग जिले में तकनीकी विकास, प्रशासनिक निर्णय, सुरक्षा व्यवस्था, आगजनी, राजनीतिक गर्माहट और कानून-व्यवस्था से जुड़े कई अहम घटनाक्रम सामने आए। जिले में पूरे दिन एक के बाद एक घटनाएं चर्चाओं में रहीं। प्रस्तुत है दिनभर की प्रमुख गतिविधियों का संपूर्ण विशेष समाचार—

 दुर्ग में आईटी पार्क की शुरुआत — युवाओं के लिए बड़े अवसरों का दौर शुरू

दुर्ग शहर के लिए गर्व की बात है कि तकनीकी नवाचार का नया अध्याय शुरू हो चुका है। जिले में प्रस्तावित आईटी पार्क में एआई आधारित परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जाएगी। यह पार्क डिजिटल प्रगति को गति देगा और स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार, प्रशिक्षण और स्टार्टअप के नए अवसर खोलेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि आईटी पार्क दुर्ग को मध्य भारत के प्रमुख तकनीकी केंद्रों में शामिल कर सकता है।

धान खरीदी शुरू—150 में से 70 मिलर इस बार अपात्र, शासन के सामने नई चुनौती

सहकारी समितियों की हड़ताल के बीच शासन ने तय समय पर धान खरीदी शुरू की, परन्तु दुर्ग में एक बड़ा बदलाव देखा गया।
पिछले वर्ष 150 राइस मिलर धन उठाव के लिए पात्र थे, जबकि इस वर्ष केवल 80 मिलर्स को पात्रता मिली है।
70 मिलर्स अपात्र पाए गए— इसका प्रमुख कारण यह है कि उन्होंने पिछले वर्ष का चावल एफसीआई में जमा नहीं किया।
यह स्थिति अब शासन के लिए नई चुनौती बनकर सामने आई है।

अवैध कब्जे को हटाने पहुंची निगम टीम पर विवाद, मामला थाने पहुंचा

भिलाई निगम की अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के दौरान जोन-1 नेहरू नगर में महिला और निगम टीम के बीच विवाद हो गया।
महिला का आरोप — बिना नोटिस कार्रवाई।
निगम का आरोप — आबंटित भूमि से अधिक हिस्से पर अवैध निर्माण।
दोनों पक्षों ने थाने में शिकायत दर्ज कराई, फिलहाल एफआईआर नहीं, जांच जारी है।

फोम फैक्ट्री में भीषण आग—6 दमकलों की मदद से नियंत्रण

कुम्हारी के मुरमुंडा क्षेत्र स्थित फोम मैन्युफैक्चरिंग प्लांट में अचानक भीषण आग लग गई।
आग की लपटों से क्षेत्र के लोग घबरा गए और भारी भीड़ जमा हो गई।
6 दमकलें पहुंचीं और आग पर काबू पाया गया।
प्लांट के अंदर रखा सारा सामान जलकर खाक हो गया।
फैक्ट्री मालिक व कर्मचारी मौके पर पहुंचकर नुकसान का जायजा लेते रहे।

महिला पार्षद और बेटी पर मारपीट का आरोप — वीडियो वायरल

भिलाई चरौदा में वार्ड की महिला पार्षद माया यादव और उनकी बेटी पर निवासी संध्या सिंह के साथ डंडों से मारपीट का आरोप लगा है।
पुराने विवाद के चलते यह घटना होने का दावा।
दोनों पक्षों ने थाने में शिकायत दर्ज कराई।
घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल, पुलिस जांच में जुटी।

तांत्रिक आरोपी थाने से फरार — तीन पुलिसकर्मी लाइन अटैच

जामुल पुलिस द्वारा पकड़े गए तांत्रिक आरोपी हेमंत अग्रवाल के भिलाई-3 थाने से फरार होने पर एसएसपी ने बड़ी कार्रवाई की है।
रोजनामचा में दर्ज नहीं, थाने के बाहर बैठा छोड़ दिया गया— ऐसी गंभीर लापरवाही सामने आई।
तीन पुलिसकर्मी—

प्रधान आरक्षक दिनेश कुमार,आरक्षक रत्नेश शुक्ला,आरक्षक चेतराम को लाइन अटैच कर दिया गया।

 गाइडलाइन शुल्क बढ़ोतरी के विरोध में हंगामा — भाजपा अध्यक्ष का वाहन रोका गया

कलेक्ट्रेट के सामने जमीन व्यवसायियों का पंजीयन शुल्क बढ़ोतरी के विरोध में चल रहा प्रदर्शन सोमवार को अचानक गरमा गया।
इसी दौरान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंह देव के वाहन को प्रदर्शनकारियों ने रोकने की कोशिश की।
भाजपा कार्यकर्ताओं और व्यापारियों में धक्का-मुक्की हुई।
पुलिस की सक्रियता से स्थिति संभली।
यह घटना पूरे दिन जिले और सोशल मीडिया पर चर्चा में रही।

संस्थानों में आवारा कुत्तों से सुरक्षा कड़ी — सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर निगम सक्रिय

सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के अनुपालन में दुर्ग निगम ने विभिन्न संस्थानों में आवारा कुत्तों से सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त कर दिए हैं।
नागरिकों, बच्चों और मरीजों की सुरक्षा के उद्देश्य से यह कदम महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
निगम ने आम जनता से स्वच्छता एवं जनहित में सहयोग की अपील की है।

वार्ड 15 सिकोला बस्ती के सामाजिक भवन का शिक्षा मंत्री ने निरीक्षण किया

दुर्ग नगर निगम के वार्ड 15 में निर्माणाधीन सामाजिक भवन का स्कूल शिक्षा मंत्री गजेन्द्र यादव ने निरीक्षण किया।
उन्होंने निर्माण की गुणवत्ता, प्रगति और उपयोगिता की समीक्षा की तथा अधिकारियों को समय पर गुणवत्तापूर्ण निर्माण करने के निर्देश दिए।
यह भवन क्षेत्र के लिए सांस्कृतिक, सामाजिक तथा सार्वजनिक गतिविधियों का केंद्र बनेगा।

धान खरीदी में तकनीकी सुधार से किसान खुश — तेज प्रक्रिया, बेहतर सुविधा

राज्य में धान खरीदी के पहले ही दिन किसानों ने इस बार तेज प्रक्रिया और बेहतर सुविधा का अनुभव बताया।
ग्राम जजगीर के किसान गौकरण साहू ने 139 क्विंटल धान बेचकर बताया कि—

तुंहर टोकन तुंहर ऐप से घर में बैठकर टोकन मिल गया

केंद्रों में बिजली, संचार और भंडारण की व्यवस्था बेहतर
किसान लगातार शासन की नई तकनीकी व्यवस्थाओं से संतुष्टि जाहिर कर रहे हैं।

 समापन

सोमवार को दुर्ग जिले में तकनीकी विकास, राजनीतिक टकराव, कानून-व्यवस्था, सामाजिक सुरक्षा और कृषि प्रबंधन से जुड़े बड़े और महत्वपूर्ण घटनाक्रमों ने पूरे जिले को चर्चा में बनाए रखा।
दुर्ग के आईटी पार्क की घोषणा जहां भविष्य की उम्मीद जगाती है, वहीं पुलिस लापरवाही, आगजनी और राजनीतिक हंगामे ने कई गंभीर सवाल भी खड़े किए।

पोषण तत्वों के साथ ही रोजगार के अवसरों की दी जानकारी

रायपुर / शौर्यपथ / एनआईएफ़टीईएम के छात्रों ने मोटे अनाज में पाए जाने वाले फ़ाइबर, मिनरल्स, एंटीऑक्सीडेंट्स के महत्व के साथ ही इनके नियमित उपयोग से होने वाले स्वास्थ्य लाभों पर विस्तार से जानकारी दी। प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभागी महिलाओं को मोटे अनाज आधारित उत्पादों से होने वाली आमदनी और बाज़ार संभावनाओं के बारे में भी बताया गया।

प्रशिक्षण में स्व-सहायता समूह की 25 महिलाओं की रही सहभागिता
हरियाणा के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़ूड टेक्नोलॉजी, एंटरप्रेन्योरशिप एंड मैनेजमेंट द्वारा महुआ पर स्थापित सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस में विगत दिवस मोटे अनाज के पोषण तत्वों और इनके उपयोग से बेकरी उत्पाद बनाने संबंधी हैंड्स-ऑन ट्रेनिंग आयोजित की गई। इस प्रशिक्षण में स्व सहायता समूह की 25 महिलाओं ने सहभागिता की।

मोटे अनाज का उपयोग बढ़ाकर पोषण स्तर में करना है वृद्धि
कार्यक्रम का उद्देश्य नान खटाई, न्यूट्रीबार, कुकीज़ जैसे बेकरी आइटम्स में मोटे अनाज का उपयोग बढ़ाकर इनके पोषण स्तर में वृद्धि करना और ग्रामीण महिलाओं के लिए रोजगार के नए अवसर तैयार करना है। यह प्रशिक्षण जिला प्रशासन के सहयोग से संचालित किया जा रहा है।

स्थानीय समुदायों को खाद्य प्रसंस्करण आधारित उद्यमिता से है जोड़ना
जशपुर में एनआईएफ़टीईएम टीम वैल्यू-एडेड फ़ूड प्रोडक्ट्स के उत्पादन के साथ-साथ पैकेजिंग, ब्रांडिंग और मार्केटिंग के लिए तकनीकी सहायता प्रदान कर रही है। यह पूरी पहल स्थानीय समुदायों को खाद्य प्रसंस्करण आधारित उद्यमिता से जोड़ने के उद्देश्य से चलाए जा रहे ग्राम अंगीकरण कार्यक्रम के अंतर्गत की जा रही है। इस कार्यक्रम का नेतृत्व प्रो. प्रसन्ना कुमार जी.वी. और अभिमन्यु गौर कर रहे हैं, जबकि यह कार्यक्रम एनआईएफ़टीईएम के डायरेक्टर डॉ. हरिंदर सिंह ओबेरॉय के निर्देशन में संचालित हो रहा है। कार्यक्रम के संचालन और विभिन्न गतिविधियों के समन्वय में मिशन मैनेजर श्री विजय शरण प्रसाद और जय जंगल एफपीसी जशपुर के डायरेक्टर समर्थ जैन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

दैनिक शौर्यपथ महासमुन्द ब्यूरो संतराम कुर्रे

महासमुंद / शौर्यपथ / राज्य शासन के निर्देशानुसार धान खरीदी प्रणाली को पारदर्शी एवं सुव्यवस्थित तरीके से संचालित किए जाने हेतु इस वर्ष टोकन जारी करने की प्रक्रिया को और अधिक सरल तथा किसान हितैषी बनाया गया है। किसानों की सुविधा के लिए नवीन टोकन व्यवस्था लागू करते हुए निर्धारित पात्रता के आधार पर टोकन जारी किए जा रहे हैं।
शासन द्वारा जारी व्यवस्था के अनुसार 2 एकड़ तक भूमि वाले किसानों को अधिकतम 1 टोकन, 2 से 10 एकड़ तक के कृषकों को अधिकतम 2 टोकन तथा 10 एकड़ से अधिक भूमि वाले किसानों को अधिकतम 3 टोकन की पात्रता निर्धारित की गई है।
किसानों की सहूलियत को ध्यान में रखते हुए राज्य शासन ने टोकन तुहर ऐप की सुविधा उपलब्ध कराई है। इसके माध्यम से कुल उपलब्ध टोकनों में से 80 प्रतिशत टोकन लघु एवं सीमांत किसानों के लिए तथा 20 प्रतिशत टोकन दीर्घ किसानों के लिए आरक्षित किए गए हैं। किसान अपनी सुविधानुसार ऐप में लॉगिन कर निर्धारित मानदंडों के अनुसार टोकन प्राप्त कर सकते हैं।
किसानों द्वारा आवेदन करने की तिथि से अगले सात खरीदी दिवस तक का टोकन जारी किया जा सकता है।
समितियों के माध्यम से टोकन वितरण रविवार से शुक्रवार तक प्रतिदिन प्रातः 9:30 बजे से सायं 5:00 बजे तक किया जा रहा है। वहीं टोकन तुहर ऐप के माध्यम से ऑनलाइन टोकन प्राप्त करने की सुविधा प्रतिदिन प्रातः 8:00 बजे से सायं 5:00 बजे तक उपलब्ध है।
जिला प्रशासन ने किसानों से अपील किया है कि वे नवीन टोकन व्यवस्था का लाभ उठाते हुए अपने निर्धारित समय में ही धान लेकर खरीदी केंद्र पहुंचे। शासन-प्रशासन द्वारा सभी आवश्यक व्यवस्थाएँ सुनिश्चित की गई हैं, जिससे खरीदी प्रक्रिया सुचारू, पारदर्शी और किसानों के हित में संचालित हो।

ब्यूरो प्रमुख संतराम कुर्रे

महासमुन्द / शौर्यपथ / शहीद भगत सिंह खेल मैदान में चल रहे पिथौरा प्रीमियम लीग के सेमीफाइनल मैच का शुभारंभ मुख्य अतिथि श्रमजीवी पत्रकार संघ के जिला अध्यक्ष स्वप्निल तिवारी अध्यक्षता कर रहे संघ के संरक्षक पवन गुप्ता विशेष अतिथि परमित सिंह निशु माटा ऋषिकेश शुक्ला राजेश मिश्रा विजय गुप्ता मनराखन ठाकुर राजेश बंसल नानू सोनी ने खिलाड़ियो का परिचय प्राप्त कर सेमीफाइनल मैच का शुभारंभ किया।
उपस्थित खिलाड़ियो एवं दर्शकों को संबोधित करते हुवे मुख्य अतिथि के आसंदी से श्रमजीवी पत्रकार संघ के जिला अध्यक्ष स्वप्निल तिवारी ने कहा कि पिथौरा का नाम खेल आयोजनो के लिये प्रदेश भर में जाना जाता है समय समय पर आयोजित होने वाले ऐसे खेल आयोजन पिथौरा क्षेत्र के खेल प्रतिभाओ को आगे लाने मिल का पत्थर साबित हो रहे है जिसका परिणाम है कि प्रदेश स्तर पर हमारे क्षेत्र के खिलाड़ियो का चयन हो रहा है ऐसे आयोजनों के लिये आयोजकों की मेहनत और लगन सराहनीय है।
इस अवसर पर आयोजन समिति के कौशलदास मानिकपुरी नवीन साहू सुनील यादव मोहम्मद कलीम मोहम्मद असलम सैलेन्द्र सिन्हा कुशल यादव राहुल चौधरी जय साहू विकास डड़सेना बाबू रौतिया भीमा रौतिया हर्ष पटेल मुख्य रूप सें उपस्थित थे।

केन्द्रीय गृह मंत्री शाह ने NCB और दिल्ली पुलिस की संयुक्त टीम को दी बधाई

नई दिल्ली / एजेंसी (पीआईबी ) केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने ऑपरेशन “Crystal Fortress” के तहत मेगा ट्रांस-नेशनल मेथामफेटामाइन कार्टेल के भंडाफोड़ के लिए NCB और दिल्ली पुलिस की संयुक्त टीम को बधाई दी। X पर एक पोस्ट में केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने कहा कि हमारी सरकार बहुत तेज़ी से ड्रग कार्टेल को खत्म कर रही है। उन्होंने कहा कि ड्रग्स की जांच के लिए Top-to-bottom और bottom-to-top अप्रोच को सख्ती से अपनाते हुए, नई दिल्ली में ₹262 करोड़ कीमत का 328 kg मेथामफेटामाइन की ज़ब्ती और दो लोगों को गिरफ्तारी से एक बड़ी कामयाबी मिली।
श्री शाह ने कहा कि यह ऑपरेशन प्रधानमंत्री मोदी के नशामुक्त भारत के विज़न की दिशा में कई एजेंसियों के बीच सीमलैस तालमेल का एक शानदार उदाहरण था। NCB और दिल्ली पुलिस की संयुक्त टीम को बधाई।
एक बड़ी कामयाबी में, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (OPS ब्रांच) ने स्पेशल सेल (CI) दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर 20.11.2025 को ऑपरेशन क्रिस्टल फोर्ट्रेस के तहत छतरपुर, दिल्ली के एक घर से करीब 328 किलोग्राम हाई-क्वालिटी मेथामफेटामाइन ज़ब्त कर एक ट्रांस-नेशनल ट्रैफिकिंग नेटवर्क का भंडाफोड़ किया है। ऑपरेशन क्रिस्टल फोर्ट्रेस एक समन्वित और इंटेलिजेंस-ड्रिवन अभियान था जो सिंथेटिक ड्रग की अधिक मात्रा वाले नेटवर्क को टारगेट कर रहा था।
यह अहम कार्रवाई पिछले कुछ महीनों से खुफिया जानकारी और तकनीकी इंटरसेप्ट्स के आधार पर लगातार की जा रही जांच का नतीजा है, जिससे एक ट्रैफिकिंग चेन का पता चला और यह बड़ी कामयाबी मिली।
पकड़े गए दो लोगों, जिनमें नागालैंड की एक महिला भी शामिल है और जिसके घर से बड़ी मात्रा में ज़ब्ती की गई थी, को नागालैंड पुलिस के सहयोग से गिरफ्तार कर लिया गया है। इसके अलावा, दूसरे लोगों की पहचान भी हो गई है। इनमें विदेश से काम करने वाला गिरोह का सरगना भी शामिल है। वह पिछले साल दिल्ली में NCB द्वारा 82.5 किलोग्राम हाई-ग्रेड कोकीन ज़ब्ती के मामले में भी वांछित है। इंटरनेशनल एनफोर्समेंट पार्टनर्स के साथ मिलकर, उसे कानूनी कार्रवाई का सामना करने के लिए भारत लाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
यह दिल्ली में मेथमफेटामाइन की सबसे बड़ी ज़ब्ती में से एक है। शुरुआती जांच से पता चला है कि यह कार्टेल कई कूरियर, सेफ-हाउस और लेयर्ड हैंडलर के ज़रिए काम कर रहा था और दिल्ली को भारत और विदेशी बाज़ार में इसके डिस्ट्रीब्यूशन के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था।
ऑपरेशन “क्रिस्टल फोर्ट्रेस” सिंथेटिक ड्रग कार्टेल और उनके ट्रांस-नेशनल नेटवर्क को खत्म करने के प्रति NCB की प्रतिबद्धता को दिखाता है। ड्रग ट्रैफिकिंग से लड़ने के लिए, देशवासी NCB की मदद करें। कोई भी व्यक्ति MANAS- नेशनल नारकोटिक्स हेल्पलाइन टोल फ्री नंबर-1933 पर कॉल कर नशीले पदार्थों की बिक्री से जुड़ी जानकारी शेयर कर सकता है।

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