August 02, 2025
Hindi Hindi

        व्रत त्यौहार / शौर्यपथ / करवाचौथ के व्रत के दिन सुबह सर्योदय से पहले सरगी खाने की परंपरा होती है। यूं तो सरगी की थाली में कई सारी चीजें शामिल होती हैं, जिसे सुहागिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर खाती हैं। सर्योदय के बाद यह व्रत शुरू माना जाता है। जिसे महिलाएं चांद देखकर खोलती हैं। पूजा से पहले स्त्रियां ना तो कुछ खाती हैं और न पीती हैं। ऐसे में सरगी की थाली में ऐसी चीजों को शामिल करना जरूरी हो जाता है, जिससे व्रत रखने वाली महिलाओं को पूरा दिन पोषण और एनर्जी मिलती रहे। ऐसी ही एक डिश का नाम है ड्राई फ्रूट पराठा। आइए जानते हैं कैसे बनाया जाता है यह टेस्टी पराठा।
ड्राई फ्रूट पराठा बनाने के लिए सामग्री-
-1.5 कप गेहूं का आटा या मल्टीग्रेन आटा
-1 टेबल स्पून तेल/घी
-1/2 कप सूखे मेवे पिसे हुए जैसे बादाम, काजू, पिस्ता
- 3 बड़े चम्मच हरा धनिया कटा हुआ
- 1 छोटा चम्मच लाल मिर्च
-नमक
ड्राई फ्रूट पराठा बनाने की विधि-
ड्राई फ्रूट पराठा बनाने के लिए सबसे पहले एक कटोरी में, गेहूं का आटा, नमक और तेल एक साथ मिलाने के बाद आवश्यक मात्रा में पानी डालकर आटा गूंथ लें। उसके बाद आटे को 10 बराबर भागों में बांटकर हर भाग पर थोड़ा सूखा आटा छिड़क कर एक छोटे गोलाकार में बेल लें। कुछ सूखे मेवे का पाउडर डालें और उसमें लाल मिर्च तथा हरा धनिया डालें।  इसके बाद इस रोटी को दूसरी बेली हुई रोटी से ढकने के बाद सभी किनारों को अच्छे से दबा दें। ऐसे ही सारे भरवां पराठे बना लें। एक टेबल स्पून घी गरम करके पराठे को दोनों तरफ से सुनहरा भूरा होने तक पकाएं। करवाचौथ की सरगी के लिए आपका टेस्टी पराठा बनकर तैयार है।

   व्रत त्यौहार /शौर्यपथ /करवाचौथ पर आप अगर कुछ मीठा खाकर व्रत खोलना चाहते हैं, तो मिष्टी दोई सबसे बेस्ट ऑप्शन है। सबसे अच्छी बात यह है कि पूरे दिन भूखे रहने के बाद भी अगर आप मिष्टी दोई खाकर व्रत खोलते हैं, तो इससे आपका डाइजेशन सिस्टम भी बेहतर रहता है और फूड पॉयजनिंग का खतरा भी कम होता है। आज हम आपके लिए मिष्टी दोई की ऐसी रेसिपी लेकर आए हैं, जिसे घर पर बनाने में कम टाइम लगेगा और इसका स्वाद मार्केट वाली मिष्टी दोई से कम नहीं होगा। आप अपने स्वाद के हिसाब से मिष्टी में फल या ड्राई फ्रूट्स डालकर भी खा सकते हैं।
मिष्टी दोई बनाने के लिए सामग्री
एक लीटर दूध
दस बड़ा चम्मच चीनी
एक कप पानी
एक कप ताजा दही
मिष्टी दोई बनाने की विधि
-सबसे पहले मीडियम आंच में एक पैन में दूध गरम करने के लिए रखें।
- दूध  को इतना उबालें कि यह आधा रह जाए।
- इसी बीच दूसरी ओर मीडियम आंच में एक पैन में चीनी और पानी डालकर चाशनी उबालने के लिए रखें।
- चाशनी के रंग बदलने तक इसे लगातार कड़छी से चलाते रहें और आंच बंद कर दें।
- आंच बंद कर थोड़ा और पानी  डालकर चलाएं।
- अब तक दूध आधा हो चुका होगा। दूध में चाशनी  डालकर इसे अच्छे से चला लें।
- दूध के ठंडा होने पर इसमें ताजा दही  डालकर अच्छे से मथ लें।
- इसके बाद इसे मटके में डालकर ठंडा होने के लिए 5-6 घंटे के लिए फ्रिज में रख दें।
- तैयार है मिष्टी दोई।


गुरु पूर्णिमा का पर्व महार्षि वेद व्यास के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। वेदव्यास जो ऋषि पराशर के पुत्र थे। शास्त्रों के अनुसार महर्षि व्यास को तीनों कालों का ज्ञाता माना जाता है।

हमारे देश में गुरूओं का बहुत सम्मान किया जाता है। क्योंकि एक गुरु ही है जो अपने शिष्य को गलत मार्ग से हटाकर सही रास्ते पर लाता है। पौराणिक काल से संबंधित ऐसी बहुत सी कथाएं सुनने को मिलती है जिससे ये पता चलता है कि किसी भी व्यक्ति को महान बनाने में गुरु का विशेष योगदान रहा है। इस दिन को मनाने के पीछे का एक कारण ये भी माना जाता है कि इस दिन महान गुरु महर्षि वेदव्यास जिन्होंने ब्रह्मसूत्र, महाभारत, श्रीमद्भागवत और अट्ठारह पुराण जैसे अद्भुत साहित्यों की रचना की उनका जन्म हुआ था। शास्त्रों में आषाढ़ी पूर्णिमा को वेदव्यास का जन्म समय माना जाता है। इसलिए आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। और इस साल गुरू पूर्णिमा 20 oct को मनाया जा रहा है। इस दिन सभी शिष्य अपने-अपने गुरूओं का आशीर्वाद लेते हैं और उन्होंने अब तक जो कुछ भी दिया है उसके लिए धन्यवाद करते हैं।

महत्व: गुरू के बिना एक शिष्य के जीवन का कोई अर्थ नहीं है। रामायण से लेकर महाभारत तक गुरू का स्थान सबसे महत्वपूर्ण और सर्वोच्च रहा है। गुरु की महत्ता को देखते हुए ही महान संत कबीरदास जी ने लिखा है- “गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाये, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाये।” यानि एक गुरू का स्थान भगवान से भी कई गुना ज्यादा बड़ा होता है। गुरु पूर्णिमा का पर्व महार्षि वेद व्यास के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। वेदव्यास जो ऋषि पराशर के पुत्र थे। शास्त्रों के अनुसार महर्षि व्यास को तीनों कालों का ज्ञाता माना जाता है। महार्षि वेद व्यास के नाम के पीछे भी एक कहानी है। माना जाता है कि महार्षि व्यास ने वेदों को अलग-अलग खण्डों में बांटकर उनका नाम ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद रखा। वेदों का इस प्रकार विभाजन करने के कारण ही वह वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए।

     लाइफस्टाइल / शौर्यपथ /अपने रिश्ते को मजबूत बनाने की कोशिश हर कोई करता है लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि रिलेशनशिप मजबूत करने की कोशिश में हमसे जाने-अनजाने ऐसी गलतियां हो जाती हैं, जिनकी वजह से रिश्ता कमजोर होता चला जाता है। इस बात पता तब चलता है, जब ब्रेकअप होने की नौबत आने लगती है।
     ऐसे में शुरुआत से ही कुछ चीजें करने से बचना चाहिए।
रोमांटिक रहें, प्यार जताएं
       यह बात सही है कि लंबे समय तक साथ रहने से आपको वे चीजें नहीं दोहरानी पड़ती, जो आप पहले किया करते थे लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आपके पार्टनर को प्यार नहीं चाहिए। वक्त बीतने के साथ भी आपको पार्टनर के साथ रोमांटिक होने और प्यार जताना चाहिए। इसकी कमी से भी दूरियां आ जाती हैं।
दूसरों से कम्पेयर न करें
       हर व्यक्ति की अपनी विशेषता होती है. ऐसे में अपने प्यार को किसी से कम्पेयर न करें। अपने आपको खुशकिस्मत समझें कि आपके पास एक बेहतर पार्टनर है। हर इंसान में अच्छाई और बुराई दोनों होती हैं लेकिन एक रिलेशनशिप को चलाने में यह बात मैटर करती है कि आप साथ निभाना चाहते हो। दूसरों से तुलना करने पर आपके पार्टनर के मन में हीन भावना आ जाती है।
पार्टनर के लुक्स पर कमेंट
         आप जब प्यार में होते हैं, तो आपको अपना पार्टनर सबसे ज्यादा सुंदर लगता है लेकिन कभी- कभी आप अपने पार्टनर को मजाक में कुछ कहते होंगे लेकिन किसी और से तुलना करते हुए पार्टनर का मजाक न उड़ाएं। ऐसा करने से पार्टनर को बुरा लग जाएगा और उनके मन में यह बात घर कर जाएगी कि आपको अपने पार्टनर में कुछ भी पसंद नहीं है।

      खाना खजाना / शौर्यपथ /आपने चाय के साथ आलू या केले के चिप्स तो कई बार खाए होंगे लेकिन क्या आपने मूंगदाल के हेल्दी चिप्स खाए हैं? अगर नहीं, तो देर किस बात की है? आप घर पर आसानी से मूंगदाल के चिप्स बना सकते हैं। आलू की बजाय अगर आप चाय के साथ मूंगदाल चिप्स खाते हैं, तो इससे आपका वेट भी कंट्रोल रहता है। साथ ही आपको डाइजेस्ट भी हो जाते हैं। घर पर इन्हें बनाना बेहद आसान है। आइए, जानते हैं रेसिपी।
मूंगदाल चिप्स की सामग्री
      3 ग्राम मूंग दाल, 1/2 कप गेहूं का आटा, 1/2 सूजी, 1 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर,1 टी स्पून काली मिर्च, 1 टेबल स्पून सूखा धनिया, स्वादानुसार नमक।
मूंगदाल चिप्स बनाने की वि​धि
         इस स्नैक को बनाने के लिए सबसे पहले मूंग दाल को दो घंटे के लिए भिगो दें। अब इसे पीस लें। सुनिश्चित करें कि दाल पानीदार न हो। इसकी एक मोटी बनावट होनी चाहिए। अब इसे बाउल में निकाल लीजिए और इसमें गेहूं का आटा और सूजी डालकर मिक्स कर लीजिए। लाल मिर्च पाउडर, काली मिर्च, सूखा हरा धनिया और स्वादानुसार नमक जैसे मसाले डालें।मिला कर आधा नरम आटा गूंथ लें। अब छोटी-छोटी लोइयां बनाकर बेल लें।इसे लंबे चिप्स जैसे आकार में काटकर हल्का ब्राउन होने तक फ्राई या बेक करें।
कुकिंग टिप्स
मूंगदाल पौष्टिकता से भरी हुई होती है। आप इसकी गुडनेस बढ़ाने के लिए इसे कोकोनट ऑयल में भी तल सकते हैं।
आप अपने हिसाब से मूंगदाल को किसी भी शेप में काट सकते हैं।
मूंगदाल चिप्स पर काली मिर्च पाउडर छिड़ककर भी इसे खाया का सकता है।

   सेहत / शौर्यपथ / इंसान हमेशा एक ऐसी जिंदगी के बारे में सोचता हो लंबी हो लेकिन किसी प्रकार की बीमारी नहीं हो। हर दिन खुशनुमा बीते। लेकिन बदलते दौर पर लाइफ बहुत छोटी हो गई है। कम
 उम्र में ही गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि 80 फीसदी चीजें आपकी लाइफ स्‍टाइल पर निर्भर करती है और 20 फीसदी फैक्‍टर जेनेटिक आधारित होते हैं। आपको बता दें कि दुनिया में एक ब्‍लू जोन ऐसा हिस्सा है जहां पर लोगों की उम्र अन्य देशों के मुकाबले अधिक है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इसका राज है डाइट प्‍लान। आप क्‍या खाते हैं। आइए जानते हैं लंबी उम्र का राज -
डाइट
    ब्‍लू जोन में रहने वाले लोग अपनी डाइट में भिन्‍न- भिन्‍न दाल और मटर का सेवन करते हैं। द अमेरिकन जर्नल ऑफ लाइफस्टाइल मेडिसिन में एक अध्ययन छपा है। जिसमें भी यह बात सामने आई है। वहां के लोग रोज एक कप बीन्‍स खाते हैं। बीन्‍स विभिन्न प्रकार के होते हैं। जैसे - मूंग की दाल, मूंग पीली दाल, साबुत मूंग, मसूर, राजमा, उड़द की
काली दाल, सफेद राजमा, काबुली चना, काला चना।
बीन्स खाने के फायदे
  बीन्‍स सेहत के लिए बहुत अच्‍छे होते हैं। इनमें फाइबर, सोडियम, फोलेट्स, विटामिन, कैल्शियम और अन्‍य पोषक तत्व होते हैं। इसलिए सुबह एक कटोरी बीन्स खाने की सलाह दी जाती है। खनिज तत्व के साथ ही कॉपर, विटामिन बी 6, मैग्नीशियम, जिंक, सेलेनियम और विटामिन के की भरपूर मात्रा होती है। बीन्‍स कोलेस्ट्रॉल के लेवल को कम करता है। यह दिल के मरीजों के लिए एक अच्‍छा स्‍त्रोत है।
ब्लू जोन प्रकृति के अधिक करीब
  जी हां, ब्‍लू जोन के लिए प्राकृतिक चीजों के अधिक करीब रहते हैं। वे पैदल चलना अधिक पसंद करते हैं। प्राकृतिक स्‍त्रोत पर अधिक निर्भर रहना। सुबह धूप लेना, पेड़-पौधों की छांव में रहना। साथ ही यहां के लोग भूख से कम खाना पसंद करते हैं। प्राकृतिक तौर पर यही सलाह दी जाती है जितनी भूख है उससे कम ही खाना चाहिए। सुबह में हैवी ब्रेकफास्ट, दिनमें हल्का भोजन और शाम को थोड़ा बहुत कुछ ज्यादा पेट भर कर नहीं।

गौतम बुद्ध (563 ईसा पूर्व–483 ईसा पूर्व) को महात्मा बुद्ध, भगवान बुद्ध, सिद्धार्थ व शाक्यमुनि नाम से भी जाना जाता है । वह श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ उनका जन्म लुंबिनी में इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थीं, जिनका इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ, उनका पालन महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया। सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और धर्मपत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य दिव्य ज्ञान की खोज में रात्रि में राजपाठ का मोह त्यागकर वन की ओर चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए।

 क्या है आष्टांगिक मार्ग

1. सम्यक दृष्टि : इसे सही दृष्टि कह सकते हैं। इसे यथार्थ को समझने की दृष्टि भी कह सकते हैं। सम्यक दृष्टि का अर्थ है कि हम जीवन के दुःख और सुख का सही अवलोकन करें। आर्य सत्यों को समझें।

2. सम्यक संकल्प : जीवन में संकल्पों का बहुत महत्व है। यदि दुःख से छुटकारा पाना हो तो दृढ़ निश्चय कर लें कि आर्य मार्ग पर चलना है।

3. सम्यक वाक : जीवन में वाणी की पवित्रता और सत्यता होना आवश्यक है। यदि वाणी की पवित्रता और सत्यता नहीं है तो दुःख निर्मित होने में ज्यादा समय नहीं लगता।

4. सम्यक कर्मांत : कर्म चक्र से छूटने के लिए आचरण की शुद्धि होना जरूरी है। आचरण की शुद्धि क्रोध, द्वेष और दुराचार आदि का त्याग करने से होती है।

5. सम्यक आजीव : यदि आपने दूसरों का हक मारकर या अन्य किसी अन्यायपूर्ण उपाय से जीवन के साधन जुटाए हैं तो इसका परिणाम भी भुगतना होगा इसीलिए न्यायपूर्ण जीविकोपार्जन आवश्यक है।

6. सम्यक व्यायाम : ऐसा प्रयत्न करें जिससे शुभ की उत्पत्ति और अशुभ का निरोध हो। जीवन में शुभ के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।

7. सम्यक स्मृति : चित्त में एकाग्रता का भाव आता है शारीरिक तथा मानसिक भोग-विलास की वस्तुओं से स्वयं को दूर रखने से। एकाग्रता से विचार और भावनाएँ स्थिर होकर शुद्ध बनी रहती हैं।

8. सम्यक समाधि : उपरोक्त सात मार्ग के अभ्यास से चित्त की एकाग्रता द्वारा निर्विकल्प प्रज्ञा की अनुभूति होती है। यह समाधि ही धर्म के समुद्र में लगाई गई छलांग है।

क्या है चार आर्य सत्य : इसे चतुष्टय आर्यसत्य भी कहते हैं।

(1) दुःख

(2) दुःख-समुदाय

(3) दुःख-निरोध

(4) दुःखनिरोध-गामिनी

बौद्ध धर्म ग्रंथ : बौद्ध धर्म के मूल तत्व है- चार आर्य सत्य, आष्टांगिक मार्ग, प्रतीत्यसमुत्पाद, अव्याकृत प्रश्नों पर बुद्ध का मौन, बुद्ध कथाएँ, अनात्मवाद और निर्वाण। बुद्ध ने अपने उपदेश पालि भाषा में दिए, जो त्रिपिटकों में संकलित हैं। त्रिपिटक के तीन भाग है- विनयपिटक, सुत्तपिटक और अभिधम्मपिटक। उक्त पिटकों के अंतर्गत उप-ग्रंथों की विशाल श्रृंखलाएँ है। सुत्तपिटक के पाँच भाग में से एक खुद्दक निकाय की पंद्रह रचनाओं में से एक है धम्मपद। धम्मपद ज्यादा प्रचलित है।

 

  टिप्स ट्रिक्स / शौर्यपथ /  दिनभर अगर काम करते-करते आप थकान महसूस करते हैं या पैर के पंजों में दर्द बना रहता है तो हम आपको बता रहे हैं कुछ आसान-सी 5 एक्सरसाइज जिन्हें अपनाकर आप दिनभर की थकान से छुटकारा पा सकते हैं। आइए जानते हैं-
 टांगें सीधी करके बैठें और बाजू शरीर को सहारा देते हुए पीठ के पीछे रहेंगे। अंगुलियां पीछे की ओर खुली होंगी।
सामान्य श्वास लेते हुए पंजों को ऊपर की ओर करें और बारी-बारी से पंजों को अंदर की ओर मोड़ें व बाहर की ओर फैलाएं।
सामान्य श्वास लेते हुए पंजों को शरीर की तरफ लचीला व ढीला करें और फिर उनको बाहर की ओर फैलाएं, यह क्रिया आहिस्ता और सचेत रहते करें। जहां तक संभव हो, पैरों को दोनों दिशाओं में घुमाएं।
सामान्य श्वास लेते हुए दोनों पैरों के साथ 5 बार दाईं ओर से बाईं ओर तथा 5 बार बाईं ओर से दाईं ओर घुमाने की क्रिया करें।
 बायां पैर मोड़ें और बाएं पैर को दाईं जांघ के ऊपर रखें। बाएं हाथ से बाईं टांग को टखने के ऊपर से पकड़ लें और बाएं पैर की अंगुलियों को दाएं हाथ से पकड़ लें। सामान्य श्वास लेते हुए टखने को दोनों दिशाओं में 5 बार घुमाएं। टांग बदल लें और इसी व्यायाम को दोहराएं।

     आस्था / शौर्यपथ /करवा चौथ का व्रत रखने की परंपरा कब से और कैसे प्रारंभ हुई? क्या है इसके पीछे की पौराणिक कथाएं? करवा चौथ की 1 नहीं लगभग 4 कथाएं प्रचलन में हैं जिनसे जुड़ा हुआ है करवाचौथ का व्रत त्योहार। आओ जानते हैं इन्हीं चारों कथाओं को संक्षिप्त में।
    पहली कथा : कहते हैं कि एक बार देवताओं और दानवों में घोर युद्ध चल रहा था और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों की रक्षार्थ व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। ऐसा करने पर सभी देवताओं की जीत होगी। ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया।
ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानि देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। इस शुभ समाचार को सुनकर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था। माना जाता है कि इसी दिन से करवा चौथ का व्रत रखा जाने लगा।
 दूसरी कथा : एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए और जब बहुत काल तक लौटे नहीं तो द्रोपदी को चिंता सताने लगी। उन्होंने श्री कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की। तब श्री कृष्ण ने कहा- इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था। तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी।
प्राचीन काल में एक शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण था। उसके सात लड़के एवं एक गुणवती लड़की वीरवती थी। एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके सातों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी। भाइयों से रहा नहीं गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया।
एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने भोजन ग्रहण किया। भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। अब वह दु:खी हो विलाप करने लगी, तभी वहां से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दु:ख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला। अब तू वर्षभर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा। उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। यह कथा सुनकर द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्तकर वापस लौट आए। तभी से अपने अखंड सुहाग के लिए हिन्दू महिलाएं करवा चौथ व्रत करती हैं।
 तीसरी कथा : प्राचीन काल की बात है कि एक साहूकार के 7 बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।
 तीसरी कथा : प्राचीन काल की बात है कि एक साहूकार के 7 बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।
 सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो। इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है।
वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है। उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।

सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सुईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। एक साल बाद फिर कार्तिक चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सुई ले लो, पिय सुई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।
इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।
अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्री गणेश-श्री गणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।
 चौथी पौराणिक कथा : कहते हैं कि करवा नाम की एक पतिव्रता धोबिन अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित गांव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। एक दिन जब वह नदी के किनारे कपड़े धो रहा था तभी अचानक एक मगरमच्छ वहां आया, और धोबी के पैर अपने दांतों में दबाकर यमलोक की ओर ले जाने लगा। वृद्ध पति यह देख घबराया और जब उससे कुछ कहते नहीं बना तो वह करवा..! करवा..! कहकर अपनी पत्नी को पुकारने लगा।
पति की पुकार सुनकर धोबिन करवा वहां पहुंची, तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुंचाने ही वाला था। तब करवा ने मगर को कच्चे धागे से बांध दिया और मगरमच्छ को लेकर यमराज के द्वार पहुंची। उसने यमराज से अपने पति की रक्षा करने की गुहार लगाई और साथ ही यह भी कहा की मगरमच्छ को उसके इस कार्य के लिए कठिन से कठिन दंड देने का आग्रह किया और बोली- हे भगवन्! मगरमच्छ ने मेरे पति के पैर पकड़ लिए है। आप मगरमच्छ को इस अपराध के दंड-स्वरूप नरक भेज दें।
करवा की पुकार सुन यमराज ने कहा- अभी मगर की आयु शेष है, मैं उसे अभी यमलोक नहीं भेज सकता। इस पर करवा ने कहा- अगर आपने मेरे पति को बचाने में मेरी सहायता नहीं कि तो मैं आपको श्राप दूंगी और नष्ट कर दूंगी। करवा का साहस देख यमराज भी डर गए और मगर को यमपुरी भेज दिया। साथ ही करवा के पति को दीर्घायु होने का वरदान दिया।

तब से कार्तिक कृष्ण की चतुर्थी को करवा चौथ व्रत का प्रचलन में आया। जिसे इस आधुनिक युग में भी महिलाएं अपने पूरी भक्ति भाव के साथ करती है और भगवान से अपनी पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
 उल्लेखनी है कि इस व्रत का पालन उत्तरी भारत में किया जाता है। पहले पुरुष मुगलों के खिलाफ युद्ध के लिए बाहर जाते थे और महिलाएं बच्चों के साथ घरों में अकेली रहती थीं। इसलिए, पति की जीत और भलाई के लिए प्रार्थना करने के लिए, पत्नी भगवान की पूजा करती थीं और निर्जला व्रत रखती थीं। प्राचीन काल में लोग समय की गणना चन्द्रमा और सूर्य के परिभ्रमण से करते थे। इसलिए, अश्विन महीने में कृष्ण पक्ष के चौथे दिन, महिलाएं युद्ध से अपने पति के आने की प्रतीक्षा करती थीं और अपना व्रत खोलती थीं।

भारतीय संस्कृति दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृतियों में से एक है. यही वजह है कि भारतीय एक लंबे समय से कला, विज्ञान, तकनीकी और गणित के क्षेत्र में अपना योगदान देते रहे हैं. चाहे जीरो का अविष्कार हो या अणुओं की बातें, भारतीय वैज्ञानिक आज से कई हजार वर्ष पहले ही दुनिया को वो आधार प्रदान कर चुके थे जिसपर मॉडर्न विज्ञान की शिला रखी गई. ईसा से पूर्व ही भारत में कई आविष्कार हो चुके थे जिन्हें कई सदियों बाद दुनिया ने भी माना.

. प्लास्टिक सर्जरी:

आज के दौर में ऑपरेशन, प्लास्टिक सर्जरी और कॉस्मेटिक सर्जरी बहुत आम हो चले हैं. हालाँकि इन्हें करवाने का खर्च बहुत अधिक है लेकिन मॉडर्न तकनीकों के साथ यह बहुत आसान हो गए हैं. लेकिन सोचिये, आज से 2600 साल पहले, जब दुनिया की बहुत सी संस्कृतियां सिर्फ अंगड़ाई ही ले रही थीं, भारत के आचार्य सुश्रुत ने इसमें महारथ हासिल कर ली थी. इससे जुडी एक किवदंती के हिसाब से 2600 साल पहले कभी एक व्यक्ति बहुत बुरी तरह से घायल होकर आचार्य सुश्रुत के पास आया था. उसकी नाक पूरी तरह से फट चुकी थी.

सुश्रुत ने उसको थोड़ी शराब पिलाई, जिससे इस दर्द का एहसास कम हो, और गाल का कुछ मांस काटकर उसकी नाक पर लेपों के सहारे बाँध दिया. कुछ ही दिनों में उसकी नाक और गाल दोनों ही स्थानों पर पहले जैसा मांस और चमड़ी आ गयी. यह थी दुनिया की पहली प्लास्टिक सर्जरी. आचार्य सुश्रुत बहुत गहरे आतंरिक ऑपरेशन भी करते थे. उनके ग्रन्थ सुश्रुत संहिता में उनके द्वारा की गयीं 300 शल्यचिकित्साओं और 150 यंत्रों का भी जिक्र है.



. आयुर्वेद:

दुनिया को दवाओं कि पहली समझ भारतीयों ने ही दी. 300 से 200 ई. पू. कुषाण राज्य के राजवैद्य चरक ने अपने ग्रन्थ चरक संहिता में उन्होंने एक से एक प्राकृतिक दवाओं का जिक्र किया है. इनके अलावा उन्होंने सोना, चांदी वगैरह हो पिघलाकर उसके भस्म का प्रयोग भी चरक ने ही बताया. उस दौर में मौजूद ऐसी कोई बीमारी नहीं थी, जिसका तोड़ चरक के पास नहीं था. उन्हें अपने इसी योगदान के लिए भारतीय चिकित्सा और दवाओं का पिता कहा जाता है.

 गणित:

कहा जाता है कि पूरी दुनिया में भारतीय गणित के मामले में सबसे होशियार और तेज होते हैं. बहुत हद तक यह सही भी है. इसका श्रेय हमारे पूर्वजों को जाता है. जीरो का अंक पूरी दुनिया को भारतीयों ने ही दिया था. आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त ने यह नंबर प्रणाली दी जिसका उपयोग पूरी दुनिया में तेजी से हुआ. इससे पहले रोमन अंकों का प्रयोग किया जाता था. लेकिन उनमें संकेतों से लिखने वाली लिपि के चलते बड़ी संख्याएं लिखने में तकलीफ हुआ करती थी. लेकिन जब दशमलव प्रणाली आई, इसने सभी समस्याओं को सुलझा दिया. कंप्यूटर की भाषा कि नीव भी भारतीयों ने ही रखी थी. कंप्यूटर सिर्फ 0 और 1 की भाषा समझता है और 0 का उद्गम भारत से ही हुआ था.

इसके साथ ही आर्यभट्ट ने आज से हजारों साल पहले बिना किसी टेलेस्कोप या यंत्र के पृथ्वी का व्यास लगभग के करीब सही सही नाप लिया था. साथ ही उन्होंने हेलिकोसेंट्रिक थ्योरी भी कॉपरनिकस से पहले ही सिद्ध कर दी थी जिसके मुताबिक पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमने के साथ ही सूरज की भी परिक्रमा करती है. इसके अलावा बोद्धायन ऋषि ने हजारों साल पहले जिस सिद्धांत को प्रमाणित कर दिया था, बाद में पाइथागोरस ने उसे सिद्ध किया और यह सिद्धांत कहलाया बोद्धायन-पाइथागोरस सिस्टम.

 अणुओं का सिद्धांत:

अगर कोई आपसे पूछे कि केमेस्ट्री में अणुओं की खोज किसने की. आपका जवाब होगा, डाल्टन. लेकिन डाल्टन के जन्म से सदियों पहले भारत में एक ऋषि हुए थे, ऋषि कणाद. उन्होंने हजारों साल पहले ही यह बता दिया था कि कोई भी द्रव्य अणुओं और परमाणुओं से मिलकर बनता है. परमाणु सबसे छोटी इकाई है जिसे नष्ट नहीं किया जा सकता. बिना माइक्रोस्कोप या किसी अयना यन्त्र के यह पता लगाना वाकई एक चमत्कार जैसा था. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि यह परमाणु या तो स्थिर अवस्था में रहता है या ऊर्जा के रूप में. यही बाद में हेजनबर्ग का अनसर्टेनिटी लॉ बना.


 वुट्ज स्टील:

मिश्र धातुओं कि नीव तो बहुत सी पुरानी सभ्यताओं में पद चुकी थी लेकिन भारत ने यहां भी अपनी पहचान बनाई. उस दौर में युद्ध और घरेलु उपकरणों के लिए लोहे का ही प्रयोग किया जाता था. लेकिन लोहे के साथ समस्या यह थी कि उसमें बहुत जल्दी जंग लग जाती थी. जैसे ही लोहा वायु के संपर्क में आया, उसमें जंग लगना पक्का था. लेकिन भारतीयों ने दुनिया को ऐसा लोहा प्रदान किया जिसमें जंग लग ही नहीं सकती थी. इसे बनाने का तरीका ही इसका मुख्य प्लस पॉइंट था. कार्बन धातु के साथ लोहे को गलाने से वो जंगनिरोधक हो जाता है, यह पद्दति भारत ने ही पूरी दुनिया को दी. इसी लोहे से बहुत मशहूर तलवारें बनती थी जिन्हें दमिश्क लोहे कि तलवारें कहा जाता था. सम्राट सिकंदर की तलवार भी इसी धातु की बनी थी.

इसके अलावा भारत ने पूरी दुनिया को योग की शक्ति से परिचित करवाया. अपने शरीर, मन और आत्मा को पवित्र रखने के लिए किया जाने वाला योग आज पूरी दुनिया में योगा के नाम से मशहूर हो रहा है.

 

हमारा शौर्य

हमारे बारे मे

whatsapp-image-2020-06-03-at-11.08.16-pm.jpeg
 
CHIEF EDITOR -  SHARAD PANSARI
CONTECT NO.  -  8962936808
EMAIL ID         -  shouryapath12@gmail.com
Address           -  SHOURYA NIWAS, SARSWATI GYAN MANDIR SCHOOL, SUBHASH NAGAR, KASARIDIH - DURG ( CHHATTISGARH )
LEGAL ADVISOR - DEEPAK KHOBRAGADE (ADVOCATE)