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व्रत त्यौहार / शौर्यपथ / करवाचौथ के व्रत के दिन सुबह सर्योदय से पहले सरगी खाने की परंपरा होती है। यूं तो सरगी की थाली में कई सारी चीजें शामिल होती हैं, जिसे सुहागिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर खाती हैं। सर्योदय के बाद यह व्रत शुरू माना जाता है। जिसे महिलाएं चांद देखकर खोलती हैं। पूजा से पहले स्त्रियां ना तो कुछ खाती हैं और न पीती हैं। ऐसे में सरगी की थाली में ऐसी चीजों को शामिल करना जरूरी हो जाता है, जिससे व्रत रखने वाली महिलाओं को पूरा दिन पोषण और एनर्जी मिलती रहे। ऐसी ही एक डिश का नाम है ड्राई फ्रूट पराठा। आइए जानते हैं कैसे बनाया जाता है यह टेस्टी पराठा।
ड्राई फ्रूट पराठा बनाने के लिए सामग्री-
-1.5 कप गेहूं का आटा या मल्टीग्रेन आटा
-1 टेबल स्पून तेल/घी
-1/2 कप सूखे मेवे पिसे हुए जैसे बादाम, काजू, पिस्ता
- 3 बड़े चम्मच हरा धनिया कटा हुआ
- 1 छोटा चम्मच लाल मिर्च
-नमक
ड्राई फ्रूट पराठा बनाने की विधि-
ड्राई फ्रूट पराठा बनाने के लिए सबसे पहले एक कटोरी में, गेहूं का आटा, नमक और तेल एक साथ मिलाने के बाद आवश्यक मात्रा में पानी डालकर आटा गूंथ लें। उसके बाद आटे को 10 बराबर भागों में बांटकर हर भाग पर थोड़ा सूखा आटा छिड़क कर एक छोटे गोलाकार में बेल लें। कुछ सूखे मेवे का पाउडर डालें और उसमें लाल मिर्च तथा हरा धनिया डालें। इसके बाद इस रोटी को दूसरी बेली हुई रोटी से ढकने के बाद सभी किनारों को अच्छे से दबा दें। ऐसे ही सारे भरवां पराठे बना लें। एक टेबल स्पून घी गरम करके पराठे को दोनों तरफ से सुनहरा भूरा होने तक पकाएं। करवाचौथ की सरगी के लिए आपका टेस्टी पराठा बनकर तैयार है।
व्रत त्यौहार /शौर्यपथ /करवाचौथ पर आप अगर कुछ मीठा खाकर व्रत खोलना चाहते हैं, तो मिष्टी दोई सबसे बेस्ट ऑप्शन है। सबसे अच्छी बात यह है कि पूरे दिन भूखे रहने के बाद भी अगर आप मिष्टी दोई खाकर व्रत खोलते हैं, तो इससे आपका डाइजेशन सिस्टम भी बेहतर रहता है और फूड पॉयजनिंग का खतरा भी कम होता है। आज हम आपके लिए मिष्टी दोई की ऐसी रेसिपी लेकर आए हैं, जिसे घर पर बनाने में कम टाइम लगेगा और इसका स्वाद मार्केट वाली मिष्टी दोई से कम नहीं होगा। आप अपने स्वाद के हिसाब से मिष्टी में फल या ड्राई फ्रूट्स डालकर भी खा सकते हैं।
मिष्टी दोई बनाने के लिए सामग्री
एक लीटर दूध
दस बड़ा चम्मच चीनी
एक कप पानी
एक कप ताजा दही
मिष्टी दोई बनाने की विधि
-सबसे पहले मीडियम आंच में एक पैन में दूध गरम करने के लिए रखें।
- दूध को इतना उबालें कि यह आधा रह जाए।
- इसी बीच दूसरी ओर मीडियम आंच में एक पैन में चीनी और पानी डालकर चाशनी उबालने के लिए रखें।
- चाशनी के रंग बदलने तक इसे लगातार कड़छी से चलाते रहें और आंच बंद कर दें।
- आंच बंद कर थोड़ा और पानी डालकर चलाएं।
- अब तक दूध आधा हो चुका होगा। दूध में चाशनी डालकर इसे अच्छे से चला लें।
- दूध के ठंडा होने पर इसमें ताजा दही डालकर अच्छे से मथ लें।
- इसके बाद इसे मटके में डालकर ठंडा होने के लिए 5-6 घंटे के लिए फ्रिज में रख दें।
- तैयार है मिष्टी दोई।
गुरु पूर्णिमा का पर्व महार्षि वेद व्यास के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। वेदव्यास जो ऋषि पराशर के पुत्र थे। शास्त्रों के अनुसार महर्षि व्यास को तीनों कालों का ज्ञाता माना जाता है।
हमारे देश में गुरूओं का बहुत सम्मान किया जाता है। क्योंकि एक गुरु ही है जो अपने शिष्य को गलत मार्ग से हटाकर सही रास्ते पर लाता है। पौराणिक काल से संबंधित ऐसी बहुत सी कथाएं सुनने को मिलती है जिससे ये पता चलता है कि किसी भी व्यक्ति को महान बनाने में गुरु का विशेष योगदान रहा है। इस दिन को मनाने के पीछे का एक कारण ये भी माना जाता है कि इस दिन महान गुरु महर्षि वेदव्यास जिन्होंने ब्रह्मसूत्र, महाभारत, श्रीमद्भागवत और अट्ठारह पुराण जैसे अद्भुत साहित्यों की रचना की उनका जन्म हुआ था। शास्त्रों में आषाढ़ी पूर्णिमा को वेदव्यास का जन्म समय माना जाता है। इसलिए आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। और इस साल गुरू पूर्णिमा 20 oct को मनाया जा रहा है। इस दिन सभी शिष्य अपने-अपने गुरूओं का आशीर्वाद लेते हैं और उन्होंने अब तक जो कुछ भी दिया है उसके लिए धन्यवाद करते हैं।
महत्व: गुरू के बिना एक शिष्य के जीवन का कोई अर्थ नहीं है। रामायण से लेकर महाभारत तक गुरू का स्थान सबसे महत्वपूर्ण और सर्वोच्च रहा है। गुरु की महत्ता को देखते हुए ही महान संत कबीरदास जी ने लिखा है- “गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाये, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाये।” यानि एक गुरू का स्थान भगवान से भी कई गुना ज्यादा बड़ा होता है। गुरु पूर्णिमा का पर्व महार्षि वेद व्यास के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। वेदव्यास जो ऋषि पराशर के पुत्र थे। शास्त्रों के अनुसार महर्षि व्यास को तीनों कालों का ज्ञाता माना जाता है। महार्षि वेद व्यास के नाम के पीछे भी एक कहानी है। माना जाता है कि महार्षि व्यास ने वेदों को अलग-अलग खण्डों में बांटकर उनका नाम ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद रखा। वेदों का इस प्रकार विभाजन करने के कारण ही वह वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए।
लाइफस्टाइल / शौर्यपथ /अपने रिश्ते को मजबूत बनाने की कोशिश हर कोई करता है लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि रिलेशनशिप मजबूत करने की कोशिश में हमसे जाने-अनजाने ऐसी गलतियां हो जाती हैं, जिनकी वजह से रिश्ता कमजोर होता चला जाता है। इस बात पता तब चलता है, जब ब्रेकअप होने की नौबत आने लगती है।
ऐसे में शुरुआत से ही कुछ चीजें करने से बचना चाहिए।
रोमांटिक रहें, प्यार जताएं
यह बात सही है कि लंबे समय तक साथ रहने से आपको वे चीजें नहीं दोहरानी पड़ती, जो आप पहले किया करते थे लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आपके पार्टनर को प्यार नहीं चाहिए। वक्त बीतने के साथ भी आपको पार्टनर के साथ रोमांटिक होने और प्यार जताना चाहिए। इसकी कमी से भी दूरियां आ जाती हैं।
दूसरों से कम्पेयर न करें
हर व्यक्ति की अपनी विशेषता होती है. ऐसे में अपने प्यार को किसी से कम्पेयर न करें। अपने आपको खुशकिस्मत समझें कि आपके पास एक बेहतर पार्टनर है। हर इंसान में अच्छाई और बुराई दोनों होती हैं लेकिन एक रिलेशनशिप को चलाने में यह बात मैटर करती है कि आप साथ निभाना चाहते हो। दूसरों से तुलना करने पर आपके पार्टनर के मन में हीन भावना आ जाती है।
पार्टनर के लुक्स पर कमेंट
आप जब प्यार में होते हैं, तो आपको अपना पार्टनर सबसे ज्यादा सुंदर लगता है लेकिन कभी- कभी आप अपने पार्टनर को मजाक में कुछ कहते होंगे लेकिन किसी और से तुलना करते हुए पार्टनर का मजाक न उड़ाएं। ऐसा करने से पार्टनर को बुरा लग जाएगा और उनके मन में यह बात घर कर जाएगी कि आपको अपने पार्टनर में कुछ भी पसंद नहीं है।
खाना खजाना / शौर्यपथ /आपने चाय के साथ आलू या केले के चिप्स तो कई बार खाए होंगे लेकिन क्या आपने मूंगदाल के हेल्दी चिप्स खाए हैं? अगर नहीं, तो देर किस बात की है? आप घर पर आसानी से मूंगदाल के चिप्स बना सकते हैं। आलू की बजाय अगर आप चाय के साथ मूंगदाल चिप्स खाते हैं, तो इससे आपका वेट भी कंट्रोल रहता है। साथ ही आपको डाइजेस्ट भी हो जाते हैं। घर पर इन्हें बनाना बेहद आसान है। आइए, जानते हैं रेसिपी।
मूंगदाल चिप्स की सामग्री
3 ग्राम मूंग दाल, 1/2 कप गेहूं का आटा, 1/2 सूजी, 1 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर,1 टी स्पून काली मिर्च, 1 टेबल स्पून सूखा धनिया, स्वादानुसार नमक।
मूंगदाल चिप्स बनाने की विधि
इस स्नैक को बनाने के लिए सबसे पहले मूंग दाल को दो घंटे के लिए भिगो दें। अब इसे पीस लें। सुनिश्चित करें कि दाल पानीदार न हो। इसकी एक मोटी बनावट होनी चाहिए। अब इसे बाउल में निकाल लीजिए और इसमें गेहूं का आटा और सूजी डालकर मिक्स कर लीजिए। लाल मिर्च पाउडर, काली मिर्च, सूखा हरा धनिया और स्वादानुसार नमक जैसे मसाले डालें।मिला कर आधा नरम आटा गूंथ लें। अब छोटी-छोटी लोइयां बनाकर बेल लें।इसे लंबे चिप्स जैसे आकार में काटकर हल्का ब्राउन होने तक फ्राई या बेक करें।
कुकिंग टिप्स
मूंगदाल पौष्टिकता से भरी हुई होती है। आप इसकी गुडनेस बढ़ाने के लिए इसे कोकोनट ऑयल में भी तल सकते हैं।
आप अपने हिसाब से मूंगदाल को किसी भी शेप में काट सकते हैं।
मूंगदाल चिप्स पर काली मिर्च पाउडर छिड़ककर भी इसे खाया का सकता है।
सेहत / शौर्यपथ / इंसान हमेशा एक ऐसी जिंदगी के बारे में सोचता हो लंबी हो लेकिन किसी प्रकार की बीमारी नहीं हो। हर दिन खुशनुमा बीते। लेकिन बदलते दौर पर लाइफ बहुत छोटी हो गई है। कम
उम्र में ही गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि 80 फीसदी चीजें आपकी लाइफ स्टाइल पर निर्भर करती है और 20 फीसदी फैक्टर जेनेटिक आधारित होते हैं। आपको बता दें कि दुनिया में एक ब्लू जोन ऐसा हिस्सा है जहां पर लोगों की उम्र अन्य देशों के मुकाबले अधिक है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इसका राज है डाइट प्लान। आप क्या खाते हैं। आइए जानते हैं लंबी उम्र का राज -
डाइट
ब्लू जोन में रहने वाले लोग अपनी डाइट में भिन्न- भिन्न दाल और मटर का सेवन करते हैं। द अमेरिकन जर्नल ऑफ लाइफस्टाइल मेडिसिन में एक अध्ययन छपा है। जिसमें भी यह बात सामने आई है। वहां के लोग रोज एक कप बीन्स खाते हैं। बीन्स विभिन्न प्रकार के होते हैं। जैसे - मूंग की दाल, मूंग पीली दाल, साबुत मूंग, मसूर, राजमा, उड़द की
काली दाल, सफेद राजमा, काबुली चना, काला चना।
बीन्स खाने के फायदे
बीन्स सेहत के लिए बहुत अच्छे होते हैं। इनमें फाइबर, सोडियम, फोलेट्स, विटामिन, कैल्शियम और अन्य पोषक तत्व होते हैं। इसलिए सुबह एक कटोरी बीन्स खाने की सलाह दी जाती है। खनिज तत्व के साथ ही कॉपर, विटामिन बी 6, मैग्नीशियम, जिंक, सेलेनियम और विटामिन के की भरपूर मात्रा होती है। बीन्स कोलेस्ट्रॉल के लेवल को कम करता है। यह दिल के मरीजों के लिए एक अच्छा स्त्रोत है।
ब्लू जोन प्रकृति के अधिक करीब
जी हां, ब्लू जोन के लिए प्राकृतिक चीजों के अधिक करीब रहते हैं। वे पैदल चलना अधिक पसंद करते हैं। प्राकृतिक स्त्रोत पर अधिक निर्भर रहना। सुबह धूप लेना, पेड़-पौधों की छांव में रहना। साथ ही यहां के लोग भूख से कम खाना पसंद करते हैं। प्राकृतिक तौर पर यही सलाह दी जाती है जितनी भूख है उससे कम ही खाना चाहिए। सुबह में हैवी ब्रेकफास्ट, दिनमें हल्का भोजन और शाम को थोड़ा बहुत कुछ ज्यादा पेट भर कर नहीं।
गौतम बुद्ध (563 ईसा पूर्व–483 ईसा पूर्व) को महात्मा बुद्ध, भगवान बुद्ध, सिद्धार्थ व शाक्यमुनि नाम से भी जाना जाता है । वह श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ उनका जन्म लुंबिनी में इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थीं, जिनका इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ, उनका पालन महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया। सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और धर्मपत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य दिव्य ज्ञान की खोज में रात्रि में राजपाठ का मोह त्यागकर वन की ओर चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए।
क्या है आष्टांगिक मार्ग
1. सम्यक दृष्टि : इसे सही दृष्टि कह सकते हैं। इसे यथार्थ को समझने की दृष्टि भी कह सकते हैं। सम्यक दृष्टि का अर्थ है कि हम जीवन के दुःख और सुख का सही अवलोकन करें। आर्य सत्यों को समझें।
2. सम्यक संकल्प : जीवन में संकल्पों का बहुत महत्व है। यदि दुःख से छुटकारा पाना हो तो दृढ़ निश्चय कर लें कि आर्य मार्ग पर चलना है।
3. सम्यक वाक : जीवन में वाणी की पवित्रता और सत्यता होना आवश्यक है। यदि वाणी की पवित्रता और सत्यता नहीं है तो दुःख निर्मित होने में ज्यादा समय नहीं लगता।
4. सम्यक कर्मांत : कर्म चक्र से छूटने के लिए आचरण की शुद्धि होना जरूरी है। आचरण की शुद्धि क्रोध, द्वेष और दुराचार आदि का त्याग करने से होती है।
5. सम्यक आजीव : यदि आपने दूसरों का हक मारकर या अन्य किसी अन्यायपूर्ण उपाय से जीवन के साधन जुटाए हैं तो इसका परिणाम भी भुगतना होगा इसीलिए न्यायपूर्ण जीविकोपार्जन आवश्यक है।
6. सम्यक व्यायाम : ऐसा प्रयत्न करें जिससे शुभ की उत्पत्ति और अशुभ का निरोध हो। जीवन में शुभ के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।
7. सम्यक स्मृति : चित्त में एकाग्रता का भाव आता है शारीरिक तथा मानसिक भोग-विलास की वस्तुओं से स्वयं को दूर रखने से। एकाग्रता से विचार और भावनाएँ स्थिर होकर शुद्ध बनी रहती हैं।
8. सम्यक समाधि : उपरोक्त सात मार्ग के अभ्यास से चित्त की एकाग्रता द्वारा निर्विकल्प प्रज्ञा की अनुभूति होती है। यह समाधि ही धर्म के समुद्र में लगाई गई छलांग है।
क्या है चार आर्य सत्य : इसे चतुष्टय आर्यसत्य भी कहते हैं।
(1) दुःख
(2) दुःख-समुदाय
(3) दुःख-निरोध
(4) दुःखनिरोध-गामिनी
बौद्ध धर्म ग्रंथ : बौद्ध धर्म के मूल तत्व है- चार आर्य सत्य, आष्टांगिक मार्ग, प्रतीत्यसमुत्पाद, अव्याकृत प्रश्नों पर बुद्ध का मौन, बुद्ध कथाएँ, अनात्मवाद और निर्वाण। बुद्ध ने अपने उपदेश पालि भाषा में दिए, जो त्रिपिटकों में संकलित हैं। त्रिपिटक के तीन भाग है- विनयपिटक, सुत्तपिटक और अभिधम्मपिटक। उक्त पिटकों के अंतर्गत उप-ग्रंथों की विशाल श्रृंखलाएँ है। सुत्तपिटक के पाँच भाग में से एक खुद्दक निकाय की पंद्रह रचनाओं में से एक है धम्मपद। धम्मपद ज्यादा प्रचलित है।
टिप्स ट्रिक्स / शौर्यपथ / दिनभर अगर काम करते-करते आप थकान महसूस करते हैं या पैर के पंजों में दर्द बना रहता है तो हम आपको बता रहे हैं कुछ आसान-सी 5 एक्सरसाइज जिन्हें अपनाकर आप दिनभर की थकान से छुटकारा पा सकते हैं। आइए जानते हैं-
टांगें सीधी करके बैठें और बाजू शरीर को सहारा देते हुए पीठ के पीछे रहेंगे। अंगुलियां पीछे की ओर खुली होंगी।
सामान्य श्वास लेते हुए पंजों को ऊपर की ओर करें और बारी-बारी से पंजों को अंदर की ओर मोड़ें व बाहर की ओर फैलाएं।
सामान्य श्वास लेते हुए पंजों को शरीर की तरफ लचीला व ढीला करें और फिर उनको बाहर की ओर फैलाएं, यह क्रिया आहिस्ता और सचेत रहते करें। जहां तक संभव हो, पैरों को दोनों दिशाओं में घुमाएं।
सामान्य श्वास लेते हुए दोनों पैरों के साथ 5 बार दाईं ओर से बाईं ओर तथा 5 बार बाईं ओर से दाईं ओर घुमाने की क्रिया करें।
बायां पैर मोड़ें और बाएं पैर को दाईं जांघ के ऊपर रखें। बाएं हाथ से बाईं टांग को टखने के ऊपर से पकड़ लें और बाएं पैर की अंगुलियों को दाएं हाथ से पकड़ लें। सामान्य श्वास लेते हुए टखने को दोनों दिशाओं में 5 बार घुमाएं। टांग बदल लें और इसी व्यायाम को दोहराएं।
आस्था / शौर्यपथ /करवा चौथ का व्रत रखने की परंपरा कब से और कैसे प्रारंभ हुई? क्या है इसके पीछे की पौराणिक कथाएं? करवा चौथ की 1 नहीं लगभग 4 कथाएं प्रचलन में हैं जिनसे जुड़ा हुआ है करवाचौथ का व्रत त्योहार। आओ जानते हैं इन्हीं चारों कथाओं को संक्षिप्त में।
पहली कथा : कहते हैं कि एक बार देवताओं और दानवों में घोर युद्ध चल रहा था और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों की रक्षार्थ व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। ऐसा करने पर सभी देवताओं की जीत होगी। ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया।
ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानि देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। इस शुभ समाचार को सुनकर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था। माना जाता है कि इसी दिन से करवा चौथ का व्रत रखा जाने लगा।
दूसरी कथा : एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए और जब बहुत काल तक लौटे नहीं तो द्रोपदी को चिंता सताने लगी। उन्होंने श्री कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की। तब श्री कृष्ण ने कहा- इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था। तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी।
प्राचीन काल में एक शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण था। उसके सात लड़के एवं एक गुणवती लड़की वीरवती थी। एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके सातों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी। भाइयों से रहा नहीं गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया।
एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने भोजन ग्रहण किया। भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। अब वह दु:खी हो विलाप करने लगी, तभी वहां से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दु:ख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला। अब तू वर्षभर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा। उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। यह कथा सुनकर द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्तकर वापस लौट आए। तभी से अपने अखंड सुहाग के लिए हिन्दू महिलाएं करवा चौथ व्रत करती हैं।
तीसरी कथा : प्राचीन काल की बात है कि एक साहूकार के 7 बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।
तीसरी कथा : प्राचीन काल की बात है कि एक साहूकार के 7 बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।
सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो। इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है।
वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है। उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।
सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सुईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। एक साल बाद फिर कार्तिक चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सुई ले लो, पिय सुई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।
इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।
अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्री गणेश-श्री गणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।
चौथी पौराणिक कथा : कहते हैं कि करवा नाम की एक पतिव्रता धोबिन अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित गांव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। एक दिन जब वह नदी के किनारे कपड़े धो रहा था तभी अचानक एक मगरमच्छ वहां आया, और धोबी के पैर अपने दांतों में दबाकर यमलोक की ओर ले जाने लगा। वृद्ध पति यह देख घबराया और जब उससे कुछ कहते नहीं बना तो वह करवा..! करवा..! कहकर अपनी पत्नी को पुकारने लगा।
पति की पुकार सुनकर धोबिन करवा वहां पहुंची, तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुंचाने ही वाला था। तब करवा ने मगर को कच्चे धागे से बांध दिया और मगरमच्छ को लेकर यमराज के द्वार पहुंची। उसने यमराज से अपने पति की रक्षा करने की गुहार लगाई और साथ ही यह भी कहा की मगरमच्छ को उसके इस कार्य के लिए कठिन से कठिन दंड देने का आग्रह किया और बोली- हे भगवन्! मगरमच्छ ने मेरे पति के पैर पकड़ लिए है। आप मगरमच्छ को इस अपराध के दंड-स्वरूप नरक भेज दें।
करवा की पुकार सुन यमराज ने कहा- अभी मगर की आयु शेष है, मैं उसे अभी यमलोक नहीं भेज सकता। इस पर करवा ने कहा- अगर आपने मेरे पति को बचाने में मेरी सहायता नहीं कि तो मैं आपको श्राप दूंगी और नष्ट कर दूंगी। करवा का साहस देख यमराज भी डर गए और मगर को यमपुरी भेज दिया। साथ ही करवा के पति को दीर्घायु होने का वरदान दिया।
तब से कार्तिक कृष्ण की चतुर्थी को करवा चौथ व्रत का प्रचलन में आया। जिसे इस आधुनिक युग में भी महिलाएं अपने पूरी भक्ति भाव के साथ करती है और भगवान से अपनी पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
उल्लेखनी है कि इस व्रत का पालन उत्तरी भारत में किया जाता है। पहले पुरुष मुगलों के खिलाफ युद्ध के लिए बाहर जाते थे और महिलाएं बच्चों के साथ घरों में अकेली रहती थीं। इसलिए, पति की जीत और भलाई के लिए प्रार्थना करने के लिए, पत्नी भगवान की पूजा करती थीं और निर्जला व्रत रखती थीं। प्राचीन काल में लोग समय की गणना चन्द्रमा और सूर्य के परिभ्रमण से करते थे। इसलिए, अश्विन महीने में कृष्ण पक्ष के चौथे दिन, महिलाएं युद्ध से अपने पति के आने की प्रतीक्षा करती थीं और अपना व्रत खोलती थीं।
भारतीय संस्कृति दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृतियों में से एक है. यही वजह है कि भारतीय एक लंबे समय से कला, विज्ञान, तकनीकी और गणित के क्षेत्र में अपना योगदान देते रहे हैं. चाहे जीरो का अविष्कार हो या अणुओं की बातें, भारतीय वैज्ञानिक आज से कई हजार वर्ष पहले ही दुनिया को वो आधार प्रदान कर चुके थे जिसपर मॉडर्न विज्ञान की शिला रखी गई. ईसा से पूर्व ही भारत में कई आविष्कार हो चुके थे जिन्हें कई सदियों बाद दुनिया ने भी माना.
. प्लास्टिक सर्जरी:
आज के दौर में ऑपरेशन, प्लास्टिक सर्जरी और कॉस्मेटिक सर्जरी बहुत आम हो चले हैं. हालाँकि इन्हें करवाने का खर्च बहुत अधिक है लेकिन मॉडर्न तकनीकों के साथ यह बहुत आसान हो गए हैं. लेकिन सोचिये, आज से 2600 साल पहले, जब दुनिया की बहुत सी संस्कृतियां सिर्फ अंगड़ाई ही ले रही थीं, भारत के आचार्य सुश्रुत ने इसमें महारथ हासिल कर ली थी. इससे जुडी एक किवदंती के हिसाब से 2600 साल पहले कभी एक व्यक्ति बहुत बुरी तरह से घायल होकर आचार्य सुश्रुत के पास आया था. उसकी नाक पूरी तरह से फट चुकी थी.
सुश्रुत ने उसको थोड़ी शराब पिलाई, जिससे इस दर्द का एहसास कम हो, और गाल का कुछ मांस काटकर उसकी नाक पर लेपों के सहारे बाँध दिया. कुछ ही दिनों में उसकी नाक और गाल दोनों ही स्थानों पर पहले जैसा मांस और चमड़ी आ गयी. यह थी दुनिया की पहली प्लास्टिक सर्जरी. आचार्य सुश्रुत बहुत गहरे आतंरिक ऑपरेशन भी करते थे. उनके ग्रन्थ सुश्रुत संहिता में उनके द्वारा की गयीं 300 शल्यचिकित्साओं और 150 यंत्रों का भी जिक्र है.
. आयुर्वेद:
दुनिया को दवाओं कि पहली समझ भारतीयों ने ही दी. 300 से 200 ई. पू. कुषाण राज्य के राजवैद्य चरक ने अपने ग्रन्थ चरक संहिता में उन्होंने एक से एक प्राकृतिक दवाओं का जिक्र किया है. इनके अलावा उन्होंने सोना, चांदी वगैरह हो पिघलाकर उसके भस्म का प्रयोग भी चरक ने ही बताया. उस दौर में मौजूद ऐसी कोई बीमारी नहीं थी, जिसका तोड़ चरक के पास नहीं था. उन्हें अपने इसी योगदान के लिए भारतीय चिकित्सा और दवाओं का पिता कहा जाता है.
गणित:
कहा जाता है कि पूरी दुनिया में भारतीय गणित के मामले में सबसे होशियार और तेज होते हैं. बहुत हद तक यह सही भी है. इसका श्रेय हमारे पूर्वजों को जाता है. जीरो का अंक पूरी दुनिया को भारतीयों ने ही दिया था. आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त ने यह नंबर प्रणाली दी जिसका उपयोग पूरी दुनिया में तेजी से हुआ. इससे पहले रोमन अंकों का प्रयोग किया जाता था. लेकिन उनमें संकेतों से लिखने वाली लिपि के चलते बड़ी संख्याएं लिखने में तकलीफ हुआ करती थी. लेकिन जब दशमलव प्रणाली आई, इसने सभी समस्याओं को सुलझा दिया. कंप्यूटर की भाषा कि नीव भी भारतीयों ने ही रखी थी. कंप्यूटर सिर्फ 0 और 1 की भाषा समझता है और 0 का उद्गम भारत से ही हुआ था.
इसके साथ ही आर्यभट्ट ने आज से हजारों साल पहले बिना किसी टेलेस्कोप या यंत्र के पृथ्वी का व्यास लगभग के करीब सही सही नाप लिया था. साथ ही उन्होंने हेलिकोसेंट्रिक थ्योरी भी कॉपरनिकस से पहले ही सिद्ध कर दी थी जिसके मुताबिक पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमने के साथ ही सूरज की भी परिक्रमा करती है. इसके अलावा बोद्धायन ऋषि ने हजारों साल पहले जिस सिद्धांत को प्रमाणित कर दिया था, बाद में पाइथागोरस ने उसे सिद्ध किया और यह सिद्धांत कहलाया बोद्धायन-पाइथागोरस सिस्टम.
अणुओं का सिद्धांत:
अगर कोई आपसे पूछे कि केमेस्ट्री में अणुओं की खोज किसने की. आपका जवाब होगा, डाल्टन. लेकिन डाल्टन के जन्म से सदियों पहले भारत में एक ऋषि हुए थे, ऋषि कणाद. उन्होंने हजारों साल पहले ही यह बता दिया था कि कोई भी द्रव्य अणुओं और परमाणुओं से मिलकर बनता है. परमाणु सबसे छोटी इकाई है जिसे नष्ट नहीं किया जा सकता. बिना माइक्रोस्कोप या किसी अयना यन्त्र के यह पता लगाना वाकई एक चमत्कार जैसा था. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि यह परमाणु या तो स्थिर अवस्था में रहता है या ऊर्जा के रूप में. यही बाद में हेजनबर्ग का अनसर्टेनिटी लॉ बना.
वुट्ज स्टील:
मिश्र धातुओं कि नीव तो बहुत सी पुरानी सभ्यताओं में पद चुकी थी लेकिन भारत ने यहां भी अपनी पहचान बनाई. उस दौर में युद्ध और घरेलु उपकरणों के लिए लोहे का ही प्रयोग किया जाता था. लेकिन लोहे के साथ समस्या यह थी कि उसमें बहुत जल्दी जंग लग जाती थी. जैसे ही लोहा वायु के संपर्क में आया, उसमें जंग लगना पक्का था. लेकिन भारतीयों ने दुनिया को ऐसा लोहा प्रदान किया जिसमें जंग लग ही नहीं सकती थी. इसे बनाने का तरीका ही इसका मुख्य प्लस पॉइंट था. कार्बन धातु के साथ लोहे को गलाने से वो जंगनिरोधक हो जाता है, यह पद्दति भारत ने ही पूरी दुनिया को दी. इसी लोहे से बहुत मशहूर तलवारें बनती थी जिन्हें दमिश्क लोहे कि तलवारें कहा जाता था. सम्राट सिकंदर की तलवार भी इसी धातु की बनी थी.
इसके अलावा भारत ने पूरी दुनिया को योग की शक्ति से परिचित करवाया. अपने शरीर, मन और आत्मा को पवित्र रखने के लिए किया जाने वाला योग आज पूरी दुनिया में योगा के नाम से मशहूर हो रहा है.
धर्म संसार / शौर्यपथ /21 अक्टूबर 2021 गुरुवार से कार्तिक मास प्रारंभ हो चुका है। कार्तिक माह भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का महीना है। इस महीने में दोनों की पूजा के साथ ही तुलसी पूजा का खास महत्व होता है। माता लक्ष्मी और तुलसी की पूजा करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस माह की देवउठनी ग्यारस एकादशी पर तुलसी करने का खासा महत्व है। आओ जानते हैं तुलसी पूजा के लाभ
महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।
1. भगवान विष्णु को तुलसीजी बहुत ही प्रिय हैं। कार्तिक मास में तुलसीजी का पूजा करने से विशेष पुण्य लाभ मिलता है और जीवन से सारे दुख-संकट दूर हो जाते हैं।
2. शालिग्राम के साथ तुलसीजी की पूजा ऐसा करने से अकाल मृत्यु नहीं होती है।
3. कार्तिक मास में तुलसीजी की पूजा करके इसके पौधे का दान करना श्रेष्ठ माना गया है।
4. कार्तिक माह में तुलसी के पौधे को हर गुरुवार को कच्चे दूध से सींचना चाहिए। इससे माता तुलसी प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं।
5. कार्तिक महीने में प्रतिदिन शाम को तुलसी के पौधे के सामने दीपक जलाकर रखना चाहिए। इसे पुण्य की प्राप्ति होती है और घर में सुख शांति बनी रहती है।
6. कार्तिक में ब्रह्म मुहूर्त में उठकर तुलसी को जल चढ़ाने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
7. तुलसी की पूजा और इसके सेवन से हर तरके रोग और शोक मिट जाते हैं और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
ये 10 काम करेंगे तो कभी नहीं आएगा शोक, नहीं सताएगा कोई रोग
आश्विन माह के अंतिम दिन शरद पूर्णिमा के बाद से कार्तिक माह प्रारंभ हो जाता है। इस माह की शुरुआत कृष्ण पक्ष से होती है। इस पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस और अमावस्या को दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। पुराणों में कार्तिक माह की महीमा का वर्णन किया गया है क्योंकि इसे सर्वश्रेष्ठ माह मानया गया है। यह माह पाप का नाश करके व्यक्ति के सभी संकट दूर कर देता है और धन, सुख, समृद्धि, शांति एवं निरोग प्रदान करता है। आओ जानते हैं कि इस माह में कौन से प्रमुख 10 कार्य करने से रोग और शोक मिट जाते हैं।
रोगापहं पातकनाशकृत्परं सद्बुद्धिदं पुत्रधनादिसाधकम्।
मुक्तेर्निदांन नहि कार्तिकव्रताद् विष्णुप्रियादन्यदिहास्ति भूतले।।-(स्कंदपुराण. वै. का. मा. 5/34)...
अर्थात- कार्तिक मास आरोग्य प्रदान करने वाला, रोगविनाशक, सद्बुद्धि प्रदान करने वाला तथा मां लक्ष्मी की साधना के लिए सर्वोत्तम है।
1. नदी स्नान : इस मास में श्री हरि जल में ही निवास करते हैं। अत: इस माह में पवित्र नदी में स्नान करने बहुत ज्यादा महत्व है। मदनपारिजात के अनुसार कार्तिक मास में इंद्रियों पर संयम रखकर चांद-तारों की मौजूदगी में सूर्योदय से पूर्व ही पुण्य प्राप्ति के लिए स्नान नित्य करना चाहिए।
2. दान : इस माह में दान का भी बहुत ही ज्यदा महत्व होता है। अपनी क्षमता अनुसार अन्न दान, वस्त्र दान और अन्य जो भी दान कर सकते हो वह करें।
3. दीपदान : इस माह में दीपदान का बहुत ही महत्व है। नदी, तालाब आदि जगहों पर दीपदान करने से सभी तरह के संकट समाप्त होते हैं और जातक कर्ज से भी मुक्ति पा जाता है।
4. पूजा : इस माह में तीर्थ पूजा, गंगा पूजा, विष्णु पूजा, लक्ष्मी पूजा और यज्ञ एवं हवन का भी बहुत ही महत्व है। इस दिन चंद्रोदय पर शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छह कृतिकाओं का अवश्य पूजन करना चाहिए।
5. तुलसी पूजा : इस माह में तुलसी की पूजा, सेवन और सेवा करने का बहुत ही ज्यादा महत्व है। इस कार्तिक माह में तुलसी पूजा का महत्व कई गुना माना गया है।
6. व्रत : इस दिन उपवास करके भगवान का स्मरण, चिंतन करने से अग्निष्टोम यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है तथा सूर्यलोक की प्राप्ति होती है। कार्तिकी पूर्णिमा से प्रारम्भ करके प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं।
7. भूमि पर शयन : इस माह में भूमि पर सोने से मन में सात्विकता का भाव निर्मित होकर सभी तरह के रोग और विकारों का समाधान होता है।
8. दलहन खाना मना है : कार्तिक महीने में उड़द, मूंग, मसूर, चना, मटर, राईं आदि नहीं खाना चाहिए। लहसुन, प्याज और मांसाहर का सेवन न करें।
9. तेल लगाना मना है : इस माह में नरक चतुर्दशी (कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी) को छोड़कर अन्य दिनों में तेल लगाना वर्जित माना गया है।
10. इंद्रिय संयम : कार्तिक मास में इंद्रिय संयम में खासकर ब्रह्मचर्य का पालन अति आवश्यक बताया गया है। इसका पालन नहीं करने पर अशुभ फल की प्राप्ति होती है। इंद्रिय संयम में अन्य बातें जैसे कम बोले, किसी की निंदा या विवाद न करें, मन पर संयम रखें, खाने के प्रति आसक्ति न रखें, न अधिक सोएं और न जागें आदि।
/शौर्यपथ/
अजन्ता गुफाएँ महाराष्ट्र, भारत में स्थित तकरीबन 29 चट्टानों को काटकर बना बौद्ध स्मारक गुफाएँ जो द्वितीय शताब्दी ई॰पू॰ के हैं। यहाँ बौद्ध धर्म से सम्बन्धित चित्रण एवम् शिल्पकारी के उत्कृष्ट नमूने मिलते हैं। इनके साथ ही सजीव चित्रण भी मिलते हैं। यह गुफाएँ अजन्ता नामक गाँव के सन्निकट ही स्थित है, जो कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में है। (निर्देशांक: 20° 30’ उ० 75° 40’ पू॰) अजन्ता गुफाएँ सन् 1983 से युनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित है।
नेशनल ज्यॉग्राफिक के अनुसार: आस्था का बहाव ऐसा था कि प्रतीत होता है, जैसे शताब्दियों तक अजन्ता समेत, लगभग सभी बौद्ध मन्दिर, उस समय के बौद्ध मत के शासन और आश्रय के अधीन बनवाये गये हों।
८ कि॰मी॰ दूर से अजन्ता गुफाओं का विहंगम दृश्य; इसका आकार घोड़े की नाल जैसा है।
अजंता गुफाओं से जातक कथाएँ
गुफाएँ एक घने जंगल से घिरी, अश्व नाल आकार घाटी में अजंता गाँव से 3½ कि॰मी॰ दूर बनी है। यह गाँव महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर से 106 कि॰मी॰ दूर बसा है। इसका निकटतम कस्बा है जलगाँव, जो 60 कि॰मी॰ दूर है, भुसावल 70 कि॰मी॰ दूर है। इस घाटी की तलहटी में पहाड़ी धारा वाघूर बहती है। यहाँ कुल 29 गुफाएँ (भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग द्वारा आधिकारिक गणनानुसार) हैं, जो कि नदी द्वारा निर्मित एक प्रपात के दक्षिण में स्थित है। इनकी नदी से ऊँचाई 35 से 110 फीट तक की है।
अजंता का मठ जैसा समूह है, जिसमें कई विहार (मठ आवासीय) एवं चैत्य गृह हैं (स्तूप स्मारक हॉल), जो कि दो चरणों में बने हैं। प्रथम चरण को गलती से हीनयान चरण कहा गया है, जो कि बौद्ध धर्म के हीनयान मत से सम्बन्धित है। वस्तुतः हिनायन स्थविरवाद के लिए एक शब्द है, जिसमें बुद्ध की मूर्त रूप से कोई निषेध नहीं है। अजंता की गुफा संख्या 9, 10, 12, 13 15ए (अंतिम गुफा को 1956 में ही खोजा गया और अभी तक संख्यित नहीं किया गया है।) को इस चरण में खोजा गया था। इन खुदाइयों में बुद्ध को स्तूप या मठ रूप में दर्शित किया गया है।
दूसरे चरण की खुदाइयाँ लगभग तीन शताब्दियों की स्थिरता के बाद खोजी गयीं। इस चरण को भी गलत रूप में महायान चरण ९ बौद्ध धर्म का दूसरा बड़ा धड़ा, जो कि कमतर कट्टर है, एवं बुद्ध को सीधे गाय आदि रूप में चित्रों या शिल्पों में दर्शित करने की अनुमति देता है।) कई लोग इस चरण को वाकाटक चरण कहते हैं। यह वत्सगुल्म शाखा के शासित वंश वाकाटक के नाम पर है। इस द्वितीय चरण की निर्माण तिथि कई शिक्षाविदों में विवादित है। हाल के वर्षों में कुछ बहुमत के संकेत इसे पाँचवीं शताब्दी में मानने लगे हैं। वॉल्टर एम॰ स्पिंक, एक अजंता विशेषज्ञ के अनुसार महायन गुफाएँ 462-480 ई॰ के बीच निर्मित हुई थी। महायन चरण की गुफाएँ संख्या हैं 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 11, 14, 15, 16, 17, 18, 19, 20, 21, 22, 23, 24, 25, 26, 27, 28, एवं 29। गुफा संख्या 8 को लम्बे समय तक हिनायन चरण की गुफा समझा गया, किन्तु वर्तमान में तथ्यों के आधार पर इसे महायन घोषित किया गया है।
महायन, हिनायन चरण में दो चैत्यगृह मिले थे, जो गुफा संख्या 9 व 10 में थे। इस चरण की गुफा संख्या 12, 13, 15 विहार हैं। महायन चरण में तीन चैत्य गृह थे जो संख्या 19, 26, 29 में थे। अपने आरम्भ से ही अंतिम गुफा अनावासित थी। अन्य सभी मिली गुफाएँ 1-3, 5-8, 11, 14-18, 20-25, व 27-28 विहार हैं।
खुदाई में मिले विहार कई नापों के हैं, जिनमें सबसे बड़ा 52 फीट का है, प्रायः सभी वर्गाकार हैं। इनके रूप में भी भिन्नता है। कई साधारण हैं, तो कई अलंकृत हैं, कुछ के द्वार मण्डप बने हैं, तो कई के नहीं बने हैं। सभी विहारों में एक आवश्यक घटक है— एक वृहत हॉल कमरा। वाकाटक चरण वालों में, कईयों में पवित्र स्थान नहीं बने हैं, क्योंकि वे केवल धार्मिक सभाओं एवम् आवास मात्र हेतु बने थे; बाद में उनमें पवित्र स्थान जोड़े गये। फिर तो यह एक मानक बन गया। इस पवित्र स्थान में एक केन्द्रीय कक्ष में बुद्ध की मूर्ति प्रायः धर्म-चक्र-प्रवर्तन मुद्रा में बैठे हुए होती थी। जिन गुफाओं में नवीनतम विशेषताएँ हैं, वहाँ किनारे की दीवारों, द्वार मण्डपों पर और प्रांगण में गौण पवित्र स्थल भी बने दिखते हैं। कई विहारों के दीवारों के फलक नक्काशी से अलंकृत हैं। दीवारों और छतों पर भित्ति चित्रण किया हुआ है।
प्रथम शताब्दी में हुए बौद्ध विचारों में अन्तर से, बुद्ध को देवता का दर्जा दिया जाने लगा और उनकी पूजा होने लगी। परिणामतः बुद्ध को पूजा-अर्चना का केन्द्र बनाया गया; जिससे महायन की उत्पत्ति हुई।
पूर्व में, शिक्षाविदों ने गुफाओं को तीन समूहों में बाँटा था, किन्तु साक्ष्यों को देखते हुए और शोधों के चलते उसे नकार दिया गया। उस सिद्धान्त के अनुसार 200 ई॰ पूर्व से 200 ई॰ तक एक समूह, द्वितीय समूह छठी शताब्दी का और तृतीय समूह सातवीं शताब्दी का माना जाता था।
आंग्ल-भारतीयों द्वारा विहारों हेतु प्रयुक्त अभिव्यंजन गुफा-मंदिर अनुपयुक्त माना गया। अजंता एक प्रकार का महाविद्यालय मठ था। ह्वेन त्सांग बताता है कि दिन्नाग, एक प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक, तत्वज्ञ, जो कि तर्कशास्त्र पर कई ग्रन्थों के लेखक थे, यहाँ रहते थे। यह अभी अन्य साक्ष्यों से प्रमाणित होना शेष है। अपने चरम पर विहार सैंकड़ों को समायोजित करने की सामर्थ्य रखते थे। यहाँ शिक्षक और छात्र एक साथ रहते थे। यह अति दुःखद है कि कोई भी वाकाटक चरण की गुफा पूर्ण नहीं है। यह इस कारण हुआ कि शासक वाकाटक वंश एकाएक शक्तिविहीन हो गया, जिससे उसकी प्रजा भी संकट में आ गयी। इसी कारण सभी गतिविधियाँ बाधित होकर एकाएक रूक गयीं। यह समय अजंता का अंतिम काल रहा।
यह एक प्रथम कदम है और इसका अन्य गुफाओं के समयानुसार क्रम से कोई मतलब नहीं है। यह अश्वनाल आकार की ढाल पर पूर्वी ओर से प्रथम गुफा है। स्पिंक के अनुसार इस स्थल पर बनी अंतिम गुफाओं में से एक है और वाकाटक चरण के समाप्ति की ओर है। हालाँकि कोई शिलालेखित साक्ष्य उपस्थित नहीं हैं; फिर भी यह माना जाता है कि वाकाटक राजा हरिसेना इस उत्तम संरक्षित गुफा के संरक्षक रहे हों। इसका प्रबल कारण यह है कि हरिसेना आरम्भ में अजंता के संरक्षण में सम्मिलित नहीं था, किन्तु लम्बे समय तक इनसे अलग नहीं रह सका, क्योंकि यह स्थल उसके शासन काल में गतिविधियों से भरा रहा और उसकी बौद्ध प्रजा को उस हिन्दू राजा का इस पवित्र कार्य को आश्रय देना प्रसन्न कर सकता था। यहाँ दर्शित कई विषय राजसिक हैं।
इस गुफा में अत्यंत विस्तृत नक्काशी कार्य किया गया है, जिसमें कई अति उभरे हुए शिल्प भी हैं। यहाँ बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित कई घटनाएँ अंकित हैं, साथ ही अनेक अलंकरण नमूने भी हैं। इसका द्वि-स्तंभी द्वार-मण्डप, जो उन्नीसवीं शताब्दी तक दृश्य था (तब के चित्रानुसार), वह अब लुप्त हो चुका है। इस गुफा के आगे एक खुला स्थान था, जिसके दोनों ओर खम्भेदार गलियारे थे। इसका स्तर अपेक्षाकृत ऊँचा था। इसके द्वार मण्डप के दोनों ओर कोठियाँ हैं। इसके अन्त में खम्भेदार प्रकोष्ठों की अनुपस्थिति बताती है कि यह मण्डप अजंता के अन्तिम चरण के साथ नहीं बना था, जब कि खम्भेदार प्रकोष्ठ एक नियमित अंग बन चुके थे। पोर्च का अधिकांश क्षेत्र कभी मुराल से भरा रहा होगा, जिसके कई अवशेष अभी भी शेष हैं। यहाँ तीन द्वार पथ हैं, एक केन्द्रीय व दो किनारे के। इन द्वारपथों के बीच दो वर्गाकार खिड़कियाँ तराशी हुई है, जिनसे अंतस उज्ज्वलित होता था।
महाकक्ष (हॉल) की प्रत्येक दीवार लगभग 40 फीट लम्बी और 20 फीट ऊँची है। बारह स्तम्भ अन्दर एक वर्गाकार कॉलोनेड बनाते हैं जो छत को सहारा देते हैं, साथ ही दीवारों के साथ-साथ एक गलियारा-सा बनाते हैं। पीछे की दीवार पर एक गर्भगृहनुमा छवि तराशी गयी है, जिसमें बुद्ध अपनी धर्म-चक्र-प्रवर्तन मुद्रा में बैठे दर्शित हैं। पीछे, बायीं एवं दायीं दीवार में चार-चार कमरे बने हैं। यह दीवारें चित्रकारी से भरी हैं, जो कि संरक्षण की उत्तम अवस्था में हैं। दर्शित दृश्य अधिकतर उपदेशों, धार्मिक एवम् अलंकरण के हैं। इनके विषय जातक कथाओं, गौतम बुद्ध के जीवन, आदि से सम्बन्धित हैं।
अजंता गुफाएँ
संख्या 1 से लगी गुफा सं॰ 2, दीवारों, छतों एवं स्तम्भों पर संरक्षित अपनी चित्रकारी के लिए प्रसिद्ध है। यह अत्यन्त ही सुन्दर दिखती है एवम् गुफा संख्या के लगभग समान ही दिखती है, किन्तु संरक्षण की कहीं बेहतर स्थिति में है।
फलक
इस गुफा में दो द्वार-मण्डप हैं, जो कि संख्या 1 से बहुत अलग है। बल्कि फलकों की नक्काशी भी उससे अलग दिखती है। इस गुफा को सहारा दिये दो अच्छे खासे मोटे स्तम्भ हैं, जो कि भारी नक्काशी से अलंकृत हैं। हाँ, आकार, नाप एवम् भूमि योजना में अवश्य यह पहली गुफा से काफी मिलती है।
द्वार-मण्डप
सामने का पोर्च दोनों ओर स्तम्भों से युक्त प्रकोष्ठों से युक्त है। पूर्व में रिक्त छोड़े स्थानों पर बने कमरे आवश्यक होने पर बाद में स्थान की आवश्यकता होने पर बने, क्योंकि बाद में आवास की अधिक आवश्यकता बढ़ी। सभी बाद की वाकाटक निर्माणों में, पोर्च के अन्त में प्रकोष्ठ आवश्यक अंग बन गये। इसकी छतों और दीवारों पर बने भित्ति चित्रों का पर्याप्त मात्रा में प्रकाशन हुआ है। इनमें बुद्ध के जन्म से पूर्व बोधिसत्व रूप के अन्य जन्मों की कथाएँ हैं। पोर्च की पीछे की दीवार के बीच एक द्वार-पथ है, जिससे महाकक्ष (हॉल) में प्रवेश होता है। द्वार के दोनों ओर वर्गाकार चौड़ी खिड़कियाँ हैं जो प्रचुर प्रकाश उपलब्ध कराती हैं; जिससे सुन्दरता एवम् सम्मिति लाती हैं।
/शौर्यपथ/
आयुर्वेद – शरीर, मस्तिष्क और आत्मा का सामंजस्य
लगभग 5000 वर्ष पहले भारत की पवित्र भूमि में शुरु हुई आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति लंबे जीवन का विज्ञान है और दुनिया में स्वास्थ्य के देखभाल की सबसे पुरानी प्रणाली है जिसमें औषधि और दर्शन शास्त्र दोनों के गंभीर विचारों शामिल हैं। प्राचीन काल से ही आयुर्वेद ने दुनिया भर की मानव जाति के संपूर्ण शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास किया है । आज यह चिकित्सा की अनुपम और अभिन्न शाखा है, एक संपूर्ण प्राकृतिक प्रणाली है जो आपके शरीर का सही संतुलन प्राप्त के लिए वात, पित्त और कफ सा नियंत्रित करने पर निर्भर करती है।
केरल, आयुर्वेद की भूमि
केरल जिसने विदेशी और देशी दोनों प्रकार के अनेक आक्रमणों और घुसपैठ का सामना किया है, का आयुर्वेद के साथ अटूट संबंध रहा है। सैकड़ों वर्षों से केरल में हर तरह की बीमारी का इलाज करने के लिए लोग आयुर्वेद वैद्य (आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में पारंपरिक अभ्यास करने वाले) ही निर्भर रहा करते थे। वैद्यों के विख्यात आठ परिवार (अष्ट वैद्य) और उनके उत्तराधिकारियों ने सदियों से इस राज्य में उपचार सेवा प्रदान की है। अन्य भारतीय राज्यों की तरह केरल में आयुर्वेद ने केवल वैकल्पिक चिकित्सा नहीं बल्कि मुख्य चिकित्सा है। वास्तव में, आज केरल भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली को पूरे समर्पण के साथ अपनाया जाता है।
लोगों के इलाज के एकमात्र साधन के रूप में, केरल के वैद्यों को आयुर्वेद के सिद्धांतों का अर्थ निर्वचन करना पड़ता था और रोज़मर्रा के जीवन में प्रभावी इलाज करने के लिए उन्हें सक्रिय रूप से अपनाना पड़ता था। इस तरह, आयुर्वेद के लगभग सभी समकालीन प्रक्रियाएँ और नियम केरल के इर्द-गिर्द घूमते हैं।
प्रकृति का वरदान
केरल की संतुलित जलवायु, वनों की स्वाभाविक प्रचुरता और मानसून का ठंडा मौसम आयुर्वेद के उपचार करने वाले और कष्ट निवारण के लिए बहुत उपयुक्त हैं। केरल शायद इस पृथ्वी के ऐसे कुछेक जगहों में एक है जहाँ लगातार बारिश में भी तापमान 24 से 28 डिग्री तक बना रहता है। हवा में और त्वचा में इतनी आर्द्रता के कारण प्राकृतिक दवाइयाँ अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करती हैं। इस राज्य में अनेक जड़ी बूटियाँ पाई जाती हैं और कारगर इलाज की प्रकिया के लिए आवश्यक आयुर्वेदिक दवाइयाँ लगातार उपलब्ध रहती हैं। हर मौसम में समान क्षमता की समान जड़ी-बूटियाँ हर वर्ष उपलब्ध रहती हैं। विभिन्न जगहों की अलग अलग मिटिटी की तुलना में मिट्टी की अल्कालाएट मात्रा अनेक आयुर्वेदिक दवाइयों के गुणधर्म और क्षमता को बढ़ती है।
केरल के आयुर्वेदिक इलाज के फायदे
अष्टांगह्रदयम जो आयुर्वेद का व्यावहारिक और आसान अर्थ निर्वचन है जिसे महान संत वाग्बटा द्वारा समेकित किया गया है, का दुनिया में कहीं भी इतना इस्तेमाल नहीं किया जाता है जितना केरल में किया जाता है। केरल के वैद्य आयुर्वेद के इस सर्वाधिक समकालीन इलाज में दक्ष होते हैं और अनेक विद्वान मानते हैं कि इन वैद्यों ने आयुर्वेद के अग्रणी विशेषज्ञ चरक और सुश्रुत द्वारा किए गए कार्य को आगे बढ़ाया है। केरल में ही कषाय चिकित्सा (काढ़े द्वारा उपचार) का मानकीकरण किया गया जिसमें हज़ारों कषायम को वैज्ञानिक ढंग से वर्गीकृत किया जाता है और इलाज की ज़रूरतों के अनुसार तैयार किया जाता है। केरल के वैद्यों ने ही पहली बार अभयंगम के एन्टी ऑक्सीडेंट गुणधर्मों पर ध्यान दिया जिसके कारण किझी अधिक होता है। दुनिया की किसी भी जगह की तुलना में केरल के आयुर्वेद कॉलेजों की संख्या और इस पद्धति की प्रैक्टिस करने वाले लोग यहाँ सबसे अधिक हैं जिसके कारण यहाँ वैज्ञानिक विधि से आयुर्वेदिक अनुसंधान करने की परंपरा बनी।
जीवन शैली के रूप में आयुर्वेद
केरल में आयुर्वेद न केवल स्वास्थ्य की देखभाल करने की प्रणाली है बल्कि आयुर्वेद यहाँ के लोगों के जीवन के हर पहलू में है। लकवाग्रस्त लोगों का ठीक होकर चलना, लाइलाज बीमारियों का इलाज जैसे चमत्कार यहाँ आए दिन होते रहते हैं जिसके कारण यहाँ के वैद्यों को लोग सम्मान से देखते हैं और आश्चर्य भी करते हैं।
/शौर्यपथ/
लाइफस्टाइल डेस्क। उम्र बढ़ने के साथ ही लोगों की बॉडी में बदलाव आना शुरु हो जाते हैं। इन बदलावों की वजह से बॉडी में ऊर्जा का स्तर कम होने लगता है और आप जल्दी थकान महसूस करते हैं। उम्र बढ़ने पर बॉडी अंदर और बाहर दोनों तरह से कमजोर होने लगती है। सेहत पर सबसे ज्यादा असर हमारे खानपान का होता है। शरीर में पोषक तत्वों की कमी की वजह से हम कई तरह की बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं। उम्र बढ़ने पर खान-पान की वजह से आंखों की रोशनी कम हो सकती है, साथ ही हड्डियां भी कमजोर होने लगती है। लेकिन कुछ लोगों का लाइफस्टाइल और खान-पान ऐसा होता है कि उम्र बढ़ने पर भी वो एनर्जेटिक और हेल्दी रहते हैं। आप भी 40 साल के बाद भी बॉडी को स्ट्रॉन्ग रखना चाहते है तो कुछ खास हेल्दी हैबिट्स को अपनाएं।
नियामित रूप से एक्सरसाइज करें
एक्सरसाइज करने से मसल्स मजबूत होते हैं और हड्डियों को ताकत मिलती है। बढ़ती उम्र में आप जितने एक्टिव रहेंगे उतने ही फिट भी रहेंगे और खुद को एनर्जेटिक महसूस करेंगे। एक्टिव और एनर्जेटिक रहने के लिए एक्सरसाइज करना बेहद जरूरी है। एक्सरसाइज से हमारे शरीर का ब्लड फ्लो अच्छी तरह काम करता है और मांसपेशियां भी अच्छे से काम करती है। एनर्जेटिक रहने के लिए नियमित रूप से मॉर्निंग वॉक, योगा, प्राणायाम, ध्यान या थोड़ी बहुत एक्सरसाइज जरूर करें।
भरपूर नींद लेना है जरूरी:
एक्टिव और एनर्जेटिक रहने के लिए भरपूर नींद लेना जरूरी है। समय से सोए और सुबह समय से जागे तो आप हेल्दी महसूस करेंगे। अच्छी और गहरी नींद मानसिक और शारीरिक तनाव से राहत दिलाती है।
बॉडी को हाइड्रेट रखें:
रोज़ाना पर्याप्त मात्रा में पानी पीएं, जिससे आपकी बॉडी में डिहाइड्रेशन की समस्या नहीं हो। लिक्विड इंटेक बढ़ाने के लिए नारियल पानी, फलों का जूस और ग्रीन टी का पर्याप्त सेवन करें।