August 03, 2025
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      धर्म संसार / शौर्यपथ /हर साल कार्तिक मास में शुक्ल की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु के शालीग्राम अवतार और माता तुलसी का विवाह किया जाता है। इस दिन को देवउठनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी कहा जाता है। सनातन धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्ल है। इस साल देवउठनी एकादशी या तुलसी विवाह  15 नवंबर 2021, सोमवार को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन ही भगवान विष्णु चार महीने बाद योग निद्रा से उठते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन मांगलिक या शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं।
तुलसी विवाह  शुभ मुहूर्त 2021
 तुलसी विवाह तिथि- 15 नवंबर, सोमवार
द्वादशी तिथि आरंभ- 15 नवंबर, सोमवार को सुबह 06 बजकर 39 मिनट से।
द्वादशी तिथि समाप्त- 16 नवंबर, मंगलवार को 08 बजकर 01 मिनट से।
एकादशी तिथि समापन 15 नवंबर को सुबह 06 बजकर 39 मिनट पर होगा और द्वादशी आरंभ होगी।
तुलसी पूजा में इन बातों का रखें ध्यान-
  देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु (शालीग्राम अवतार में) और माता तुलसी का विवाह होता है। इसलिए हर सुहागन स्त्री को तुलसी विवाह जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से अंखड सौभाग्य और सुख-समृद्धि का प्राप्ति होती है। तुलसी विवाह के दौरान इन बातों का खास ध्यान रखना चाहिए।
  पूजा के समय मां तुलसी को सुहाग का सामान और लाल चुनरी जरूर चढ़ाएं।
गमले में शालीग्राम को साथ रखें और तिल चढ़ाएं।
तुलसी और शालीग्राम को दूध में भीगी हल्दी का तिलक लगाएं
 पूजा के बाद किसी भी चीज के साथ 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें।
 मिठाई और प्रसाद का भोग लगाएं। मुख्य आहार के साथ ग्रहण और वितरण करें।
पूजा खत्म होने पर शाम को भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करें।

         ब्यूटी टिप्स / शौर्यपथ /ग्लोइंग स्किन पाने के लिए अगर आप बेसन, आटा और टमाटर को लगा कर थक गए हैं तो आप इस बार कुछ अलग ट्राई करें। चेहरे पर चमक बनाए रखने के लिए आप घर में बने फेस पैक का इस्तेमाल कर सकती है। ये स्किन को ग्लो देने में मदद करते हैं। इन फेस पैक को बनाना बेहद आसान है और ये चेहरे को डीप मॉइश्चराइज करने में भी मदद करते हैं।
1) केसर-गुलाब जल
     इसे बनाने के लिए एक कटोरी में केसर और गुलाब जल मिलाएं और अच्छी तरह से मिक्स करें। केसर में गुलाब जल डालने के 10 मिनट तक रख दें। फिर कुछ देर बाद इसमें एलोवेरा जेल डालें और अच्छे से मिक्स करें। फेस पैक तैयार है इसे चेहरे और गर्दन पर अच्छे से लगाएं। पोषक तत्वों से भरा हुआ ये फेस मास्क स्किन की कई समस्याओं को कम करने में या फिर यूं कहें की नियंत्रित करने में मदद करता है। पिंपल्स, फाइन लाइम, बेजान त्वचा जैसी समस्याओं पर काफी असरदार होता है।
2) चुकंदर- एलोवेरा
     इसके लिए एक कटोरी में चुकंदर और एलोवेरा डालें। फिर इस मिश्रण को मिक्सी में डालकर पीस लें और स्मूद पेस्ट बनाएं। चेहरे को ठंडे पानी से धोने के बाद इस फेस पैक को अप्लाई करें।
3) चने की दाल-कच्चा दूध
      ये बेहद किफायती है साथ ही इसे घर पर बनाना भी बेहद आसान है। फेस पैक बनाने के लिए एक कटोरी में चने की दाल और कच्चा दूध मिलाएं और देर रात के लिए रख दें। फिर इसे मिक्सी में पीस लें और स्मूद पेस्ट बनाएं। अब इसमें एलोवेरा जेल और हल्दी मिलाएं। इसे लगाने से पहले चेहरे को पूरी तरह साफ करें और फिर अप्लाई करें। 

       सेहत / शौर्यपथ /लैपटॉप, मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल करने से ज्यादातर लोगों की आंखों में प्रॉब्लम होनी शुरू हो जाती है। कुछ संकेतों से पता चलता है कि आपकी आंखें कमजोर हो रही हैं। ऐसे में उन संकेतों को इग्नोर नहीं करना चाहिए। आइए, जानते हैं आंखों के कमजोर होने के लक्षण क्या हैं।
आंखों में खुजली होना
       लंबे समय तक लैपटॉप पर काम करने से आपकी आंखों में तनाव शुरू हो जाता है। ऐसे में आंखों में खुजली शुरू हो जाती है और आंखें बार-बार रगड़ने का मन करता है।
सुबह उठते ही धुंधला दिखना
        सुबह उठने पर कुछ घंटों तक धुंधला दिखाई दे सकता है। ऐसे में आप कितनी बार ही आंखें धो लें लेकिन फिर भी आपको पूरी तरह साफ नजर नहीं आ पाता। उठने के काफी देर बाद आपकी नजर सामान्य होने लगती है।
आंखों से पानी आना
        आंखों से पानी आना भी आंखें कमजोर होने का संकेत है। यह समस्या तब और भी बढ़ जाती है, जब आप कुछ लिखते, पढ़ते या फिर देखते हैं। आंखों से पानी आने की समस्या को रोकने का सबसे अच्छा उपाय है कि आंखों में कोई आयुर्वेदिक दवा डालें या फिर आप डॉक्टर से आंखें चेक कराने के बाद उनकी बताई दवा लें।
आंखें लाल होना
      आंखों के कोनों का लाल होना भी आंखें कमजोर होने का संकेत है। ऐसी स्थिति में आपकी आंखें लाल ही नहीं होती बल्कि आंखें ड्राई भी हो जाती हैं।
सिरदर्द या सिर के पीछे दर्द
      आंखें कमजोर होने पर पूरे दिन सिर में हल्का दर्द हो सकता है। कभी-कभी सिर के पीछे भी दर्द शुरू हो जाता है। खासतौर पर जब आप आंखें झुकाकर नीचे देखते हैं, तो परेशानी बढ़ जाती है।

        ब्यूटी टिप्स / शौर्यपथ /जब बात मेकअप की हो तो महिलाएं खुद को खूबसूरत दिखाने के लिए कड़ी मेहनत करती हैं। मेकअप में हमेशा सबसे ज्यादा ध्यान देने वाला पार्ट हमारी आंखें होती है, वैसे तो सभी कुछ जरूरी हिस्सों की गिनती में आते हैं लेकिन आंखों का मेकअप सही तरह से किया हो तो मेकअप अट्रैक्टिव लगता है। ब्यूटीफुल लुक के लिए आईलैश को घना दिखाने की जरूरत होती है। जिसके लिए मस्कारे की जरूरत होती है। हालांकि यह सभी चीजें कुछ पल के लिए ही आपकी आईलैश को घना दिखाने में मदद करती है, साथ ही इन सभी चीजों में केमिकल की मात्रा भी ज्यादा होती है। ऐसे में आप नेचुरल चीजों से बने आईलैश जेल का इस्तेमाल कर सकती हैं। ये बेहद कम सामान में तैयार हो जाता है और आईलैश को नेचुरली थिक व खूबसूरत दिखाने में मदद करता है। इसके इस्तेमाल से पलकों पर किसी तरह का नुकसान नहीं होता, साथ ही ये लैश को मजबूत बनाने में मदद करता है।  आप इसे दो तरीकों से बना सकते हैं। आइए, जानते हैं-
1) बादाम का तेल
      इसे बनाने के लिए एक कटोरी में आधा चम्मच बादाम का तेल लें और उस तेल में कुछ बूंदे कैस्टर ऑयल मिलाएं। फिर इसमें विटामिन ई कैप्सूल डालें और अच्छी तरह से मिक्स करें। इसे बनाने के लिए आपको एलोवेरा जेल की जरूरत होगी। अगर आपके पास घर में इसका पौधा है तो अच्छी बात है और अगर नहीं है तो आप बाजार के एलोवेरा जेल का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। इस जेल को मिक्चर में डालें और अच्छी तरह से ब्लेंड करें और जेल जैसी एक स्मूद कंसिस्टेंसी बनाएं। आप इसे ऐक साफ मस्करा ट्यूब में डालें और फिर मस्कारा वैंड को डिप करें और अपनी पलकों पर लगाएं। आप इसे रात भर के लिए लगाए रख सकते हैं या फिर एक घंटे बाद टिशू से साफ कर के सो सकते हैं। अच्छे रिजल्ट के लिए दो हफ्ते तक लगातार इस्तेमाल करें।
2) विटामिन-ई कैप्सुल
     इसे बनाने के लिए नारियल का तेल, अरंडी/कैस्टर ऑयल, ऑलिव ऑयल लें और इसमें विटामिन ई कैप्सूल डालकर अच्छी तरह मिक्स करें। इसे मस्कारा ट्यूब या कंटेनर में रखें और फिर वैंड की मदद से रात भर के लिए लगाएं। सुबह उठ कर अच्छे से क्लीन करें।

     सेहत / शौर्यपथ /उपवास को अक्सर आस्था और धर्म से जोड़कर देखा जाता है। मगर एक हालिया अध्ययन की मानें तो उपवास जिंदगी को लंबी बनाने में मददगार हैं, साथ ही मोटापे से भी बचाव होगा। चूहों पर हुए एक हालिया अध्ययन में पता चला है कि आहार में कैलोरी खपत कम करके उन सभी का सेवन एक वक्त के भोजन में करना लंबा जीवन जीने और छरहरी काया पाने का सबसे अच्छा तरीका हो सकता है। विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का कहना है कि कम कैलोरी वाले भोजन का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। उपवास के साथ-साथ डाइटिंग भी बेहतर रहती है।
  आठ महीने अधिक रही आयुः
       शोधकर्ताओं ने चूहों के चार समूहों को अलग-अलग आहार देते हुए अध्ययन किया। दो ऐसे समूह, जिन्होंने पूरे दिन उपवास किया और रात के खाने में भरपूर भोजन किया। दो ऐसे जिन्होंने नियमित रूप से छोटे-छोटे भोजन का सेवन किया। अध्ययन में पाया गया कि उपवास करने वाले समूह के वे चूहे, जिनकी कैलोरी में 30 प्रतिशत की कटौती हुई थी, वे कम कैलोरी का नियमति भोजन करने वालों की तुलना में आठ महीने अधिक जीवित रहे।
इंसुलिन और मेटाबॉलिज्म में सुधारः
     उपवास और डाइटिंग के मिश्रण ने इंसुलिन की संवेदनशीलता में सुधार किया और ऊर्जा के स्रोत के रूप में बॉडीफैट का उपयोग कर मेटाबॉलिज्म को दुरुस्त किया। प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर डडले लैमिंग का कहना है कि अगर यह स्वास्थ्य को बेहतर रखने में मददगार है तो कम कैलोरी वाला आहार नियमित रूप से लेने की बजाय उपवास पर फोकस करना चाहिए। हालांकि अध्ययन में शामिल एक विशेषज्ञ ने यह भी कहा है कि चूहों और मनुष्यों के बीच बहुत बड़ा जैविक अंतर होता है, इस कारण अध्ययन के निष्कर्ष मनुष्यों पर लागू नहीं हो सकते हैं।
   उपवास करने वाले चूहों का लीवर स्वस्थः
      शोधकर्ताओं ने चूहों के लिए चार अलग-अलग आहार तैयार किए। एक समूह ने जब और जितना चाहा उतना खाया। दूसरे समूह ने भोजन की भरपूर मात्रा का सेवन किया, लेकिन एक समय। इससे पहले उसने पूरे दिन उपवास रखा। हालांकि पहले दो समूहों को आहार में लगभग 30 प्रतिशत कम कैलोरी दी गई। वहीं दूसरे समूह ने अपनी सभी कैलोरी का सेवन दिनभर के उपवास के बाद एक ही वक्त के भोजन में किया। पहले ग्रुप ने भी एक बराबर खाना ही खाया, लेकिन दिनभर में कई बार खाया।
      अध्ययन में पाया गया कि जिन चूहों ने दिनभर उपवास के बाद एक वक्त में रोजाना की कैलोरी का सेवन किया वह अधिक सेहतमंद भी थे और उनकी आयु भी अधिक रही। उपवास करने वाले चूहों का लीवर और मेटाबॉलिज्म भी अधिक स्वस्थ था। हालांकि जिन चूहों ने बिना कभी उपवास किए बिना कम कैलोरी का सेवन किया, उनमें ब्लड शुगर नियंत्रित देखा गया, मगर उनकी मृत्यु आठ माह पहले हो गई। यह अध्ययन नेचर मेटाबॉलिज्म में प्रकाशित हुआ है।

       सेहत /शौर्यपथ /वैज्ञानिकों ने एक खास हेलमेट विकसित किया है। यह डिमेंशिया (मनोभ्रंश) के इलाज में मददगार साबित हो सकता है। इस हेलमेट में इंफ्रारेट लाइट है और यह मस्तिष्क के हिस्से में इस लाइट को भेजता है। कनाडा के डरहम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा हेलमेंट उपकरण तैयार किया है, जो सिर के माध्यम से सीधे मस्तिष्क में प्रकाश भेजता है।
   स्वस्थ वयस्कों पर किया गया परीक्षणः
       परीक्षण में देखा गया कि दिनभर में दो बार छह मिनट के लिए हेलमेट बनने से याददाश्त में सुधार होता है, मोटर फंक्शन और मस्तिष्क कौशल दुरुस्त होता है। हालांकि फिलहाल हेलमेट का परीक्षण स्वस्थ वयस्कों पर किया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर परिणाम डिमेंशिया वाले लोगों में भी एक समान आए तो इस लाइलाज बीमारी के खिलाफ लड़ाई में यह हेलमेट ‘गेम-चेंजर’ साबित हो सकता है। ब्रिटेन में 850,000 लोग डिमेंशिया से प्रभावित हैं।
14 प्रतिभागियों पर हुआ अध्ययनः
         इस हेलमेट की कीमत 7,250 पाउंड (5,43,853.68 रुपए) है। यह ‘फोटो बायोमॉड्यूलेशन’ नामक एक प्रक्रिया के जरिए काम करता है, जहां इंफ्रारेड लाइट को सीधे मस्तिष्क में गहराई तक भेजा जाता है। हेलमेट को डॉ गॉर्डन डौगल द्वारा तैयार किया गया है, जिन्होंने ट्रांसक्रैनियल फोटोबायोमोड्यूलेशन थेरेपी (पीबीएम-टी) का परीक्षण करने के लिए वैज्ञानिकों के साथ काम किया। अध्ययन में 45 वर्ष और उससे अधिक उम्र के 14 स्वस्थ प्रतिभागियों को एक महीने तक दिन में दो बार छह मिनट के लिए हेलमेट पहनाया गया।
       1068 नैनोमीटर की तरंग दैर्ध्य से उन प्रतिभागियों के मस्तिष्क में इंफ्रारेड लाइट डाली गई। शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों के मोटर फंक्शन, याददाश्त और मस्तिष्क प्रक्रिया स्पीड में निश्चित सुधार देखा। शोधकर्ताओं ने कहा कि याददाश्त में तेजी से सुधार से पता चला है कि इन्फ्रारेड लाइट से उपचार, डिमेंशिया रोगियों के लिए 'गेम-चेंजिंग थेरेपी' साबित हो सकती है।

      खाना खजाना / शौर्यपथ /फेस्टिव सीजन में ज्यादातर घरों में खीर भी बनाई जाती है। चावल की खीर तो आपने कई बार खाई होगी लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं मखाने और काजू की खीर बनाने की रेसिपी। इस रेसिपी की सबसे खास बात यह है कि इसमें चावल का इस्तेमाल नहीं किया जाता, इसके सिर्फ ड्राई फ्रूट्स से बनाया जाता है।
मखाने और काजू की खीर बनाने की सामग्री-
1 कप मखाने और काजू, रोस्टेड1/2 लीटर दूध2 टेबल स्पून देसी घी3 टेबल स्पून खोया1/4 टी स्पून हरी इलाइची पाउडर1 टेबल स्पून बादाम, टुकड़ों में कटा हुआ1 टेबल स्पून पिस्ता, टुकड़ों में कटा हुआ
मखाने और काजू की खीर बनाने की वि​धि-
एक पैन में घी गर्म करें। इसमें दूध डालें और उबाल आने दें। पैन में पहले मखाने और काजू को हल्का भून लें। इसे आंच से उतार लें। दूध में खोया और पाउडर चीनी डालें और इसे धीमी आंच पर उबालें। इसमें मखाने डालें और हल्के से मिलाएं। हरी इलाइची पाउडर, बादाम और पिस्ता डालें। सभी चीजों को अच्छी तरह मिलाएं और आंच को बंद कर दें। इसे रूम टेम्परेंचर पर ठंडा होने दें और इसे फ्रिज में ठंडा करने के लिए रखें। ठंडा सर्व करें।
कुकिंग टिप्स-
आपको अगर मीठा खाने से वजन बढ़ने का डर है, तो आप चीनी की बजाय गुड़ डालकर भी खीर बना सकते हैं।
आपको अगर खीर में एक्स्ट्रा फ्लेवर का तड़का लगाना है, तो आप इसमें 2-3 काजू की बर्फी भी डाल सकते हैं, इससे खीर का टेस्ट और भी बढ़ जाता है।
आप इसमें कुछ ड्राई फ्रूट्स डालने से परहेज़ भी कर सकते हैं।

अशफाकउल्ला खान एक लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्हें बिस्मिल के साथ सच्ची दोस्ती के लिए जाना जाता था,

  • जन्म: 22 अक्टूबर 1900, शाहजहांपुर
  • मृत्यु: 19 दिसंबर 1927, फैजाबाद
  • संगठन: हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन
  • प्रसिद्ध रूप से जाना जाता है: अशफाक उल्ला खान

22 अक्टूबर 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में जन्मे अशफाकउल्ला खान महात्मा गांधी के नेतृत्व में चल रहे असहयोग आंदोलन के साथ बड़े हुए। जब वह एक युवा सज्जन थे, तभी अशफाकउल्ला खान राम प्रसाद बिस्मिल से परिचित हो गए। वह गोरखपुर में हुई चौरी-चौरा कांड के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक था। वह स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक थे और चाहते थे कि अंग्रेज किसी भी कीमत पर भारत छोड़ दें। अशफाकउल्ला खान एक लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्हें बिस्मिल के साथ सच्ची दोस्ती के लिए जाना जाता था, उन्हें काकोरी ट्रेन डकैती के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी। इसे 1925 के काकोरी षडयंत्र के नाम से जाना जाता था।

महात्मा गांधी के सिद्धांतो का समर्थन करते थे। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए कार्य किया, तथा वे अलग मुस्लिम राष्ट्र (पाकिस्तान) के सिद्धांत का विरोध करने वाले मुस्लिम नेताओ में से थे। खिलाफत आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद' या अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन 11 नवंबर1888 - 22 फरवरी1958 एक प्रसिद्ध भारतीय मुस्लिम विद्वान थे। वे कवि, लेखक, पत्रकार और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत की आजादी के बाद वे एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक पद पर रहे। वे महात्मा गांधी के सिद्धांतो का समर्थन करते थे। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए कार्य किया, तथा वे अलग मुस्लिम राष्ट्र (पाकिस्तान) के सिद्धांत का विरोध करने वाले मुस्लिम नेताओ में से थे। खिलाफत आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। 1923 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे कम उम्र के प्रेसीडेंट बने। वे 1940 और 1945 के बीच कांग्रेस के प्रेसीडेंट रहे। आजादी के बाद वे भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के रामपुर जिले से 1952 में सांसद चुने गए और वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने।

वे धारासन सत्याग्रह के अहम इन्कलाबी (क्रांतिकारी) थे। वे 1940-45 के बीच भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे जिस दौरान भारत छोड़ो आन्दोलन हुआ था। कांग्रेस के अन्य प्रमुख नेताओं की तरह उन्हें भी तीन साल जेल में बिताने पड़े थे। स्वतंत्रता के बाद वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना उनके सबसे अविस्मरणीय कार्यों में से एक था।

 कर्म ही उनका जीवन था। अनेक संस्थाओं के जनक एवं सफल संचालक के रूप में उनकी अपनी विधि व्यवस्था का सुचारु सम्पादन करते हुए उन्होंने कभी भी रोष अथवा कड़ी भाषा का प्रयोग नहीं किया।

जन्म -25 दिसम्बर 1861

प्रयाग,- ब्रिटिश भारत

मृत्यु- 12 नवम्बर 1946 (आयु: 85 वर्ष)

बनारस-, ब्रिटिश भारत

राष्ट्रीयता- भारतीय

राजनैतिक पार्टी- हिन्दू महासभा

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

विद्या -अर्जन प्रयाग विश्वविद्यालय

धर्म -हिन्दू

कर्म ही उनका जीवन था। अनेक संस्थाओं के जनक एवं सफल संचालक के रूप में उनकी अपनी विधि व्यवस्था का सुचारु सम्पादन करते हुए उन्होंने कभी भी रोष अथवा कड़ी भाषा का प्रयोग नहीं किया।
मालवीयजी का जन्म प्रयागराज में 25 दिसम्बर 1861 को पं० ब्रजनाथ व मूनादेवी के यहाँ हुआ था। वे अपने माता-पिता से उत्पन्न कुल सात भाई बहनों में पाँचवें पुत्र थे। मध्य भारत के मालवा प्रान्त से प्रयागराज उनके पूर्वज मालवीय कहलाते थे। आगे चलकर यही जातिसूचक नाम उन्होंने भी अपना लिया। पंडित इनको और इनके पिता जी को उपाधि मे मिली पिता पण्डित ब्रजनाथजी संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे। वे श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर अपनी आजीविका अर्जित करते थे।

पाँच वर्ष की आयु में उन्हें उनके माँ-बाप ने संस्कृत भाषा में प्रारम्भिक शिक्षा लेने हेतु पण्डित हरदेव धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला में भर्ती करा दिया जहाँ से उन्होंने प्राइमरी परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके पश्चात वे एक अन्य विद्यालय में भेज दिये गये जिसे प्रयागराज की विद्यावर्धिनी सभा संचालित करती थी। यहाँ से शिक्षा पूर्ण कर वे प्रयागराज के जिला स्कूल पढने गये। यहीं उन्होंने मकरन्द के उपनाम से कवितायें लिखनी प्रारम्भ की। उनकी कवितायें पत्र-पत्रिकाओं में खूब छपती थीं। लोगबाग उन्हें चाव से पढते थे। 1879 में उन्होंने म्योर सेण्ट्रल कॉलेज से, जो आजकल इलाहाबाद विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है, मैट्रीकुलेशन (दसवीं की परीक्षा) उत्तीर्ण की। हैरिसन स्कूल के प्रिंसपल ने उन्हें छात्रवृत्ति देकर कलकत्ता विश्वविद्यालय भेजा जहाँ से उन्होंने 1884 ई० में बी०ए० की उपाधि प्राप्त की।

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