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हेल्थ टिप्स /शौर्यपथ/
र्दियों में इंसान की फिजिकल एक्टिविटी काफी कम हो जाती है. इसके अलावा सर्दियों में लोग चटपटा, तला-भुना, घी वाली दाल, गर्म गर्म समोसे तथा गर्म चाय खाता-पीता है. इससे आपका वजन काफी बढ़ने लगता है. सर्दियों में इंसान की पाचन क्षमता प्राकृतिक रूप से मजबूत हो जाती है. इस कारण सर्दियां मोटापा कम करने का सबसे अच्छा मौका होती हैं.
सुबह उठकर पिएं दो गिलास गर्म पानी
अगर आप अपनी डाइट में थोड़ा बदलाव करते हैं तो आपका मोटापा आसानी से घटाया जा सकता है. आपको इसके लिए सुबह दो गिलास गर्म पानी पीना चाहिए.
ब्रेकफास्ट में खाएं ये चीजें
इसके बाद फ्रेश होकर नाश्ते में एक गिलास दूध के साथ कम तेल में बना पोहा, इडली, खीरा, टमाटर आदि के साथ दो ब्रेड खा सकते हैं. आप नाश्ते में ओट्स, मूसली तथा एक उबला अंडा खा सकते हैं.
स्नैक्स में खाएं ये चीजें
स्नैक्स में आप कम चीनी वाला दूध व चीनी डली हुई एक कप हर्बल-टी या अदरक-तुलसी चाय साथ में चना, कुरमुरा, खाखरा खा सकते हैं.
रात के खाने में रखें ये याद
रात के खाने में आपको याद रखना होता है कि सलाद के साथ एक कटोरी वेजिटेबल सूप,उबली सब्जियां, दाल के साथ एक-दो मिस्सी या मल्टीग्रेन रोटी , एक कटोरी मूंग दाल व चावल की बनी हल्की डाइट ले सकते हैं.
रायपुर /शौर्यपथ/
झारखंड के मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन ने आज यहां छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के र्साइंस कॉलेज मैदान में ‘राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव’ एवं ’राज्योत्सव 2021’ का दीप प्रज्जवलित कर शुभारंभ किया। समारोह की अध्यक्षता छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कार्यक्रम की।
रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में 28 अक्टूबर से एक नवंबर तक आयोजित होने वाले ‘राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव’ एवं ’राज्योत्सव 2021 समारोह में देश के 27 राज्यों और 6 केन्द्रशासित प्रदेशों के कलाकारों के साथ ही 07 देशों के नाइजीरिया, उजबेकिस्तान, श्रीलंका, यूगांडा, स्वाजीलैण्ड, मालदीप, पेलेस्टाइन और सीरिया से आए विदेशी कलाकार अपनी छटा बिखेरेंगे।
रायपुर/शौर्यपथ/
.झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के राजधानी रायपुर पहुंचने पर स्वामी विवेकानंद विमानतल पर आत्मीय स्वागत किया गया। संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत और उद्योग मंत्रीकवासी लखमा ने उनकी अगुवानी की। उल्लेखनीय है कि झारखंड के मुख्यमंत्री राजधानी रायपुर के सांइस कालेज मैदान में आज से आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव-छत्तीसगढ़ राज्योत्सव का शुभारंभ करेंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता मुख्यमंत्री भूपेश बघेल करेंगे
रायपुर /शौर्यपथ/
उद्योग मंत्री कवासी लखमा ने आज सुकमा जिले के प्रवास के दौरान सुदूर वनांचल ग्राम पंचायत किस्टाराम में आयोजित सुविधा शिविर में शामिल हुए। लखमा ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि दूरस्थ क्षेत्र में सुविधा शिविर का संचालन कर ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाओं और शासकीय योजनाओं का लाभ प्रदाय करने के लिए जिला प्रशासन द्वारा सुविधा शिविर का आयोजन किया जा रहा है। इस शिविर में अंदरूनी क्षेत्रों के ग्रामीणों का आधार कार्ड, राशन कार्ड, पेंशन पंजीयन, स्वास्थ्य कार्ड आदि अब सहजता से बनने लगा है। मंत्री ने कहा कि आमजन की समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता से कार्य करते हुए जिला प्रशासन ने उमदा कार्य किया है। इसी का परिणाम है कि लगभग 20 हजार ग्रामीणों को इन सुविधा शिविर से लाभान्वित किया गया है।
उद्योग मंत्री ने कहा कि मुख्यमंत्री बघेल के मार्गदर्शन में जिले में विकास कार्यों का विस्तार तेजी से हो रहा है और बस्तर का आदिवासी समुदाय सरकार पर भरोसा करने लगा है। वर्षों से कई क्षेत्र सड़कविहीन और अविद्युतीकृत थे, आज वहाँ चमचमाती सड़के है, विद्युत विस्तार है। सुकमा जिलेवासियों के लिए यह सरकार नए सवेरे की तरह है जिसने आदिवासी जन सामान्य के जीवन में रोशनी लाई है। जिले के कई ऐसे क्षेत्र थे जहाँ स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच नही थी, आज उन क्षेत्र के ग्रामीणों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ मिल रहा है। माताओं तथा छोटे बच्चों को सुपोषित आहार प्रदान करने नवीन आंगनबाड़ी केन्द्र का संचालन, अंदरुनी क्षेत्रों के बच्चों को स्कूली शिक्षा सुलभ करने, वर्षों से बन्द पड़े स्कूलों का पुनः संचालन शिक्षादूत के माध्यम से किया जा रहा है, वहीं संवेदनशील क्षेत्रों जैसे जगरगुण्डा, भेज्जी में स्कूल संचालित किए जा रहे हैं। मंत्री श्री लखमा ने अधिकारियों को आगामी दिवसों में ग्राम पंचायत वार सुविधा शिविर का आयोजन करने के निर्देश दिए हैं, ताकि प्रत्येक पंचायत में शत प्रतिशत व्यक्तियों को लाभ मिले। इस दौरान बीजापुर विधायक विक्रम शाह मण्डावी, सुकमा नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष जगन्नाथ साहू, सहित अन्य जनप्रतिनिधि भी उपस्थित थे।
रायपुर /शौर्यपथ/
रबी सीजन 2021-22 में दलहन फसलों की बोनी का सिलसिला तेजी से शुरू हो गया है। अब तक 11 हजार 450 हेक्टेयर रकबे में विभिन्न प्रकार की दलहन फसलों की बोनी हो चुका है। इस साल राज्य में 8 लाख 20 हजार हेक्टेयर में दलहन फसलों की बोनी का लक्ष्य है, जो गत वर्ष राज्य में 7 लाख 52 हजार हेक्टेयर में हुई दलहन फसलों की खेती की तुलना में 68 हजार हेक्टेयर अधिक है।
कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस साल रबी सीजन में चना की बोनी 4 लाख हेक्टेयर में, मटर की 55 हजार हेक्टेयर, मसूर की 40 हजार हेक्टेयर, मूंग की 35 हजार, उड़द की 30 हजार, तिवडा की 2 लाख 30 हजार तथ कुल्थी की 30 हजार हेक्टेयर मे बुआई का लक्ष्य है। इसके विरूद्ध अब तक चना, मटर, मसूर, तिवडा, कुल्थी एवं अन्य दलहन की फसलों की 11 हजार 450 हेक्टेयर में बुआई हो चुकी है।
रायपुर /शौर्यपथ/
वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री मोहम्मद अकबर के मार्गदर्शन में छत्तीसगढ़ में हाथी-मानव द्वंद पर नियंत्रण के उद्देश्य से विभाग द्वारा चलाये जा रहे महत्वपूर्ण अभियान के तहत 27 अक्टूबर को सूरजपुर वनमण्डल के प्रतापपुर बीट में एक और मादा हाथी का सफलतापूर्वक रेडियो कॉलर किया गया। ज्ञात हो कि तीन दिवस पूर्व ही 24 अक्टूबर को सरगुजा वृत्त के सूरजपुर वनमण्डल के मोहनपुर, कक्ष क्रमांक पी 2552 में एक मादा हाथी को सफलतापूर्वक रेडियो कॉलर किया गया है।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ शासन वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग तथा भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून की संयुक्त परियोजना के तहत मानव-हाथी द्वंद को कम करने के उद्देश्य से हाथियों के विचरण की जानकारी प्राप्त करने हेतु हाथियों का रेडियो कॉलरिंग करने के अभियान जारी है। इसके तहत दिनांक 27.10.2021 को सरगुजा वृत्त के सूरजपुर वनमण्डल के प्रतापपुर बीट कक्ष क्र. आरएफ 36 में एक मादा हथनी को रेडियो कॉलरिंग करने में सफलता प्राप्त हुई है।
वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री मोहम्मद अकबर के निर्देश पर तथा प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख राकेश चतुर्वेदी, प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) पी. वी. नरसिंग राव के मार्गदर्शन में वन विभाग की स्थानीय टीम तथा साइंटिस्ट-एफ डॉं. पराग निगम, भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून एवं उनकी टीम, तमिलनाडु के डॉ. मनोहरन द्वारा रेडियो कॉलरिंग का कार्य किया जा रहा है। आज 27 अक्टूबर को सूरजपुर वनमण्डल के प्रतापपुर से बनारस रोड, ग्राम सरहरी जंगल, परिक्षेत्र प्रतापपुर, कक्ष क्र. आर. एफ. 36 प्रतापपुर बीट में हाथी दल जिसमें 09 हाथी विचरण कर रहे थे, में से एक हथिनी उम्र 30-35 वर्ष की पहचान कर कुमकी हाथी राजू एवं दुर्योधन के सहयोग से पूर्वान्ह 11ः45 बजे डार्ट किया गया। रेडियोे कॉलरिंग की प्रक्रिया पूर्ण होने के पश्चात् हाथी दोपहर लगभग 1ः00 बजे अपने दल में वापस मिल गया।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) पी. वी. नरसिंग राव द्वारा अभियान की लगातार समीक्षा करते हुए रणनीति तैयार कर आवश्यक दिशा-निर्देश दिए जा रहे हैं। इस अभियान में मुख्य वन संरक्षक सरगुजा वृत्त अनुराग श्रीवास्तव, वन संरक्षक (वन्यप्राणी) एवं फील्ड डायरेक्टर (एलीफेंट रिजर्व) सरगुजा डॉं. के. मेचियो, भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून की टीम, अधीक्षक तमोर पिंगला अभ्यारण्य जयजीत केरकेट्टा, परिक्षेत्र अधिकारी पिंगला अजय सोनी एवं परिक्षेत्र अधिकारी प्रतापपुर श्री लक्ष्मी नरायण ठाकुर, डॉ. पी.के. चंदन, डॉ. सी.के. मिश्रा, डॉ. राकेश वर्मा, लक्ष्मी नारायण, अंकित, समर्थ मंडल, प्रभात दुबे एवं वन विभाग के मैदानी अमले सहित कुमकी हाथी राजू एवं दुर्योधन के महावतों का योगदान सराहनीय रहा।
रायपुर /शौर्यपथ/
राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में भाग लेने रायपुर आए फिलीस्तीन और श्रीलंका के कलाकारों नेे आज रायपुर के पुरखौती मुक्तांगन में छत्तीसगढ़ी गाने के साथ फ्यूजन डांस का वीडियो शूट किया। छत्तीसगढ़ी कलाकारों के साथ इन विदेशी कलाकारों के फ्यूजन डांस में विभिन्न संस्कृति का एक मेल दिखाई देगा। इसी तरह सांस्कृतिक आदान-प्रदान के कई बेहतरीन अवसर 28 अक्टूबर से शुरू हो रहे तीन दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में देश-विदेश के कलाकारों को मिलेंगे। इससे मेहमान कलाकारों को न सिर्फ छत्तीसगढ़ की कला और परम्परा को करीब से जानने का मौका मिलेगा बल्कि यह मंच छत्तीसगढ़िया संस्कृति और परम्परा को ग्लोबल पहचान देगा।
रायपुर /शौर्यपथ/
मंत्री डॉ डहरिया ने तिल्दा-नेवरा में जिन विकास एवं निर्माण कार्याें का लोकार्पण एवं भूमिपूजन किया
नगरीय विकास एवं प्रशासन मंत्री डॉ. शिव कुमार डहरिया ने आज रायपुर जिले के तिल्दा-नेवरा नगर पालिका क्षेत्र अंतर्गत करीब 2 करोड़ 30 लाख 23 हजार रूपए की लागत के विभिन्न निर्माण एवं विकास कार्योें का लोकार्पण एवं भूमिपूजन किया। उन्होंने तिल्दा नेवरावासियों को इस मौके पर बधाई और शुभकामनाएं देते हुए कहा कि शहरी क्षेत्रों से लेकर ग्रामीण इलाकों में जनसामान्य को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार की प्राथमिकता है। कोरोना काल के बावजूद भी राज्य के सभी क्षेत्रों में विकास एवं निर्माण के कार्य अनवरत रूप से जारी रहे हैं। आने वाले दिनों में विकास के कामों में और तेजी आएगी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में राज्य में विकास एवं निर्माण के लिए किसी भी तरह की कोई कमी नहीं आएगी। कार्यक्रम के प्रारंभ में मंत्री डॉ. डहरिया का नगर पालिका के पदाधिकारी सहित क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने आत्मीय एवं भव्य स्वागत किया गया।
नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. डहरिया ने तिल्दा-नेवरा नगर पालिका के वार्ड 6 में 20 लाख 96 हजार रूपए की लागत से बने पौनी पसारी चबूतरा का लोकार्पण किया।
मंत्री डॉ डहरिया ने तिल्दा-नेवरा में जिन विकास एवं निर्माण कार्याें का लोकार्पण एवं भूमिपूजन किया, उनमें पौनी-पसारी योजना के तहत पसरा निर्माण, गौठान निर्माण, मंगल भवन, तालाब गहरीकरण सहित अन्य कार्य शामिल हैं। डॉ. डहरिया तिल्दा-नेवरा के तहसील साहू संघ के नवनिर्वाचित पदाधिकारियों के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए और मुरा गांव का दौरा कर लोगों से मुलाकात की और विकास कार्यों की जानकारी ली।
नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. डहरिया ने तिल्दा-नेवरा नगर पालिका के वार्ड 6 में 20 लाख 96 हजार रूपए की लागत से बने पौनी पसारी चबूतरा का लोकार्पण किया। इसी तरह से वार्ड क्रमांक 22 में नरवा, गरवा, घुरूवा और बाड़ी योजना के अंतर्गत 18 लाख 92 हजार रूपए की लागत से बने गौठान का लोकार्पण भी किया। उन्होंने तिल्दा में एक करोड़ 28 लाख की लागत से बने डॉ. भीमराव अंबेडकर सर्व समाज मांगलिक भवन का लोकार्पण किया। डॉ. डहरिया ने वार्ड क्रमांक 20 में राज्य प्रवर्तित योजना के अंतर्गत 36 लाख रूपए की लागत से बने बननू बाई तालाब एवं तालाब गहरीकरण, सौंदर्यीकरण एवं पचरीकरण कार्य का लोकार्पण किया। इसी तरह से नगरीय प्रशासन मंत्री ने पौनी पसारी भूमिपूजन 26 लाख 33 हजार रूपए की लागत से बनने वाले पौनी पसारी के निर्माण कार्याें का भूमिपूजन भी किया। इस अवसर पर नगर पालिका तिल्दा की अध्यक्ष गुरू लेमिक्षा डहरिया जी, खुशवंत साहेब, जनक राम, महेश अग्रवाल सहित अन्य जनप्रतिनिधि एवं नागरिक उपस्थित थे।
रायपुर /शौर्यपथ/
आदिवासी समुदाय प्रकृति प्रेमी होते हैं। उनकी जीवनशैली सरल और सहज होती है।
आदिवासी समुदाय प्रकृति प्रेमी होते हैं। उनकी जीवनशैली सरल और सहज होती है। इसकी स्पष्ट छाप उनकी कला, संस्कृति, सामाजिक उत्सवों और नृत्यों में देखने को मिलती है। प्रकृति से जुड़ा हुआ यह समुदाय न केवल उसकी उपासना करता है, बल्कि उसे सहेजकर भी रखता है। ऐसा ही एक समुदाय गोंड़ जनजाति है। जिसकी कई उपजातियां हैं। जिनके रीति-रिवाजों में लोक जीवन के अनेक रंग देखने को मिलते हैं।
धुरवा जनजाति गोंड जनजाति की उपजाति है। धुरवा जनजाति छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर, दंतेवाडा तथा सुकमा जिले में निवास करती है। बांस के बर्तन एवं सामग्री बनाने मंे दक्षता के कारण धुरवा जनजाति को ‘बास्केट्री ट्राइब‘ अर्थात ‘बांस का कार्य‘ करने वाली जनजाति की संज्ञा दिया गया है। सन् 1910 के बस्तर के प्रसिद्ध (आदिवासी विद्रोह ‘भूमकाल के नायक शहीद वीर गुण्डाधुर की सेना द्वारा मड़ई नृत्य के माध्यम से अपनी भावना जनसामान्य तक पहुंचाने के लिए इसे मेला मड़ई में प्रदर्शित करते थे।
धुरवा युवक-युवतियां वीर रस से परिपूर्ण होकर मड़ई नृत्य करते हैं, पुरूष हाथ में कुल्हाडी एवं मोरपंख का गुच्छा (मंजूरमूठा) लेकर उंगली से मुंह से सुईक-सुईक की आवाज निकाल कर दुश्मनों को ललकारते हुए नृत्य करते है। युवतियां-युवकों के पीछे-पीछे लय मिलाते हुए सामूहिक रूप में नृत्य करती हैं। नृत्य के दौरान हाथ में मोर पंख का गुच्छा (मंजूरमूठा) रखते हैं।
मुरिया जनजाति छत्तीसगढ़ राज्य के दक्षिण मंे स्थित बस्तर संभाग में निवास करती है। मुरिया जनजाति गोड़ जनजाति की उपजाति हैं। मुरिया जनजाति के तीन उपभाग- राजा मुरिया, झोरिया मुरिया तथा घोटूल मुरिया होते है। रसेल एवं हीरालाल के ग्रंथ द टाइब्स एंड कास्टस ऑफ द सेन्टल प्रोविसेंस ऑफ इंडिया भाग-3, 1916 के अनुसार बस्तर के गोंड, मुरिया एवं माडिया दो समूह में बंटे हुए है। मुरिया शब्द की व्युत्पत्ति ‘मूर‘ अर्थात बस्तर के मैदानी क्षेत्रों में पाये जाने वाले पलाश वृक्ष या ‘मुर‘ अर्थात जड़ शब्द से हुई है‘‘। एक अन्य मान्यता के अनुसार ‘मूर‘ अर्थात ‘मूल‘ निवासी को मुरिया कहा जाता है।
वर्तमान में ग्राम देवी की वार्षिक, त्रि-वार्षिक पूजा के दौरान मड़ई नृत्य करते हैं
‘मड़ई लोक-नृत्य‘
वर्तमान में ग्राम देवी की वार्षिक, त्रि-वार्षिक पूजा के दौरान मड़ई नृत्य करते हैं, इसमें देवी-देवता के जुलूस के सामने मड़ई नर्तक दल नृत्य करते है एवं पीछे-पीछे देवी-देवता की डोली, छत्रा, लाट आदि प्रतीकों को जुलूस रहता है। मड़ई के अगले दिन मड़ई नर्तक दल ग्राम के सभी घरों में जाकर मड़ई नृत्य करते हैं, जिसे ‘बिरली‘ कहते हैं। ग्रामवासी मड़ई नर्तक दल को धान, महुआ और रूपए देते हैं। नृत्य के समापन के पश्चात ग्राम के मुखिया के साथ नर्तक दल भोज करता है और खुशियां मनाता हैं। नृत्य में धुरवा पुरूष सफेद शर्ट, काला हाफ कोट, धोती या घेरेदार लहंगा के साथ कपड़े मंे सिला हुआ कमर बंद या सिर में तुराई, पेटा (पगड़ी), मोर पंख, तुस (कपड़े से बनी पतली पट्टी), गले में विभिन्न प्रकार की मालाएं, पैरों में झाप (रस्सी में बंधा हुआ घुंघरू) का श्रृंगार करते हैं।
महिलाएं ब्लॉउज तथा पाटा, साड़ी पहनती हैं। बालों के खोंसा (जूडे़ में) कांटा, पनिया (बांस की कंघी), गले में चीप माला, सूता तथा बाजार में मिलने वाली विभिन्न प्रकार की मालाएं, कान में खिलवां, बांह में बांहटा, कलाई मंे झाडू तथा पैरों में पायल धारण करती हैं। मड़ई नृत्य वाद्य यंत्र हेतु ढोल, तुडबुड़ी, बांसुरी, किरकिचा, टामक, जलाजल, तोड़ी का उपयोग किया जाता है। नृत्य का प्रदर्शन मेला-मड़ई, धार्मिक उत्सव तथा मनोरंजन अवसर पर किया जाता है।
‘‘विवाह नृत्य‘‘
धुरवा जनजाति विवाह के दौरान विवाह नृत्य करते हैं। विवाह नृत्य वर-वधू दोनों पक्ष में किया जाता है। विवाह नृत्य तेल-हल्दी चढ़ाने की रस्म से प्रारंभ कर पूरे विवाह में किया जाता है। इसमें पुरूष और स्त्रियां समूह मंे गोल घेरा बनाकर नृत्य करते हैं। पुरूष सफेद शर्ट, काला हाफ कोट, धोती या घेरेदार लहंगा के साथ कपड़े में सिला हुआ कमर बंद या सिर में तुराई, पेटा (पगड़ी), मोर पंख, तुस (कपड़े से बनी पतली पट्टी), गले में विभिन्न प्रकार की मालाएं, पैरों में झाप (रस्सी में बंधा हुआ घुंघरू) का श्रृंगार करते हैं।
महिलाएं ब्लॉउज तथा पाटा, साड़ी पहनती है बालों के खोंसा (जूड़े में) कांटा, पनिया (बांस की कंघी), गले में चीप माला, सूता तथा बाजार में मिलने वाली विभिन्न प्रकार की मालाएं, कान में खिलवां, बांह में बांहटा, कलाई में झाडू तथा पैरों में पायल का श्रृंगार करती है। नृत्य के दौरान हाथ में मोरपंख का गुच्छा (मंजूरमूठा) रखती हैं। मड़ई नृत्य में ढोल, तुडबुड़ी, बांसुरी, किरकिचा, टामक, जलाजल, वाद्ययंत्रों का प्रयोग किया जाता है। नृत्य विवाह के अवसर पर तथा मनोरंजन हेतु किया जाता है।
‘गेड़ी नृत्य‘
मुरिया जनजाति के सदस्य नवाखानी त्यौहार के दौरान के दौरान लगभग एक माह पूर्व से गेड़ी निर्माण प्रारंभ कर सावन मास के हरियाली अमावस्या से भादो मास की पूर्णिमा तक गेड़ी नृत्य किया जाता है। गेड़ी नृत्य नवाखानी त्यौहार के समय करते हैं। इसमें मुरिया युवक बांस की गेंड़ी में गोल घेरा में अलग-अलग नृत्य मुद्रा में नृत्य करते हैं। नृत्य के दौरान युवतियां गोल घेरे में गीत गायन करती है। पूर्व समय ग्राम में बारिश के दिनों में ग्राम में अधिक कीचड़ होता था, ऐसी स्थिति में गेड़ी के माध्यम से एक दूसरे स्थान पर जाते है। पूर्व में ऊंचे-ऊंचे गेड़ी का निर्माण करते थे।
गेड़ी नृत्य के समय मुरिया जनजाति की महिलाएं लुगड़ा या साड़ी, पुरूष काले रंग की फूल शर्ट, प्लास्टिक की लंबी माला, इसे दोनों कंधें से छाती एवं पीठ में क्रास स्थिति में पहनते हैं। कमर में कपड़े में सिला हुआ कमर बंद या पट्टा, कमर के नीचे लाल-पीले रंग का घेरेदार लहंगा सिर में लाल पगड़ी, मोर पंख या पंखों का गुच्छा, कपड़े में सिला हुआ कपड़े से बने फूलों की पट्टी, गले में कपड़े के लाल गुच्छों की माला और अन्य माला, पैरों में घुंघरू (रस्सी में बंध अुआ) का श्रृंगार करते हैं।
वाद्य यंत्रों में बांस से बना गेंड़ी का मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है। जिसे विभिन्न रंगों से रंग कर सजाया जाता है। साथ ही वादक मांदरी, तुडबुडी, विसिल या सीटी एवं बांसुरी का उपयोग नृत्य में करते है।
गेंड़ी नृत्य विवाह, मेला-मंड़ई, धार्मिक उत्सव के अवसर तथा मनोरंजन के लिए करते हैं। गेंड़ी नृत्य युवाओं को नृत्य है। गेंड़ी नृत्य संतुलन, उत्साह तथा रोमांस से परिपूर्ण है। मुरिया जनजाति में गेंड़ी के अनेक खेल, गेंड़ी दौड़ आदि प्रतियोगिता होती है। जिसमें पुरूष गेंड़ी पर चढ़कर नृत्य करते हैं।
‘गवरमार नृत्य‘
गंवरमार नृत्य में मुरिया जनजाति के नर्तक दल गौर-पशु मारने का प्रदर्शन करते है। यह नाट्य तथा नृत्य का सम्मिलित रूप है। इस नृत्य में दो व्यक्ति वन में जाकर गौर-पशु का शिकार करने का प्रयास करते है, किन्तु शिकार के दौरान गौर-पशु से घायल होकर एक व्यक्ति घायल हो जाता है। दूसरा व्यक्ति गांव जाकर पुजारी(सिरहा) को बुलाकर लाता है जो देवी आह्वान तथा पूजा कर घायल व्यक्ति को स्वस्थ्य कर देता है तथा दोनों व्यक्ति मिलकर गंवर पशु का शिकार करते है। इसी के प्रतीक स्वरूप गवंरमार नृत्य किया जाता है।
महिलाएं लुगड़ा या साड़ी, पुरूष काले रंग की फूल शर्ट, प्लास्टिक की लंबी माला, इसे दोनों कंधों से छाती व पीठ में क्रास की स्थिति में पहनते हैं कमर में कपड़े में सिला हुआ कमरबंद या पट्टा कमर के नीचे लाल-पीले रंग का घेरेदार लहंगा, सिर में लाल पगड़ी मोर पंख या पंखों का गुच्छा, कपड़े में सिला हुआ कपड़े से बने फूलों की पट्टी, गले में कपड़े के लाल गुच्छों की माला एवं अन्य माला, पैरों में घुंघरू (रस्सी में बंधा हुआ) का श्रृंगार करते है।
वाद्य यंत्रों में ढोलक, तुडबुडी, सिटि, बांसुरी आदि का प्रयोग किया जाता है। नृत्य का प्रदर्शन मुरिया जनजाति के सदस्य गंवरमार मेला-मंडई, धार्मिक उत्सव के अवसर पर तथा मनोरंजन के लिए किया जाता है।
रायपुर /शौर्यपथ/
राष्ट्रीय बागवानी मिशन योजनांतर्गत केेले की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर लागत पर 50 हजार रूपए का अनुदान दिए जाने का प्रावधान है। वर्ष 2021-22 में राज्य में राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत एक हजार यूनिट (एक हजार हेक्टेयर) यूनिट लक्ष्य है। केले की व्यवसायिक खेती के इच्छुक कृषक अपने इलाके के उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों से सम्पर्क कर विस्तृत जानकारी एवं योजना का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। गौरतलब है कि राष्ट्रीय बागवानी मिशन अंतर्गत केले की व्यवसायिक खेती की प्रति हेक्टेयर 1 लाख 25 हजार रूपए की इकाई लागत पर 40 प्रतिशत अनुदान दिए जाने का प्रावधान है।
राज्य में वर्ष 2019-20 में लगभग 720 कृषकों द्वारा 1293 हेक्टेयर क्षेत्र में केला टिश्यु कल्चर पौध का रोपण कर 3 लाख 88 हजार टन केले का उत्पादन किया गया। वर्ष 2021-22 में भी केला क्षेत्र विस्तार हेतु 1000 ई. का लक्ष्य रखा गया है। उद्यानिकी विभाग द्वारा राष्ट्रीय बागवानी मिशन योजना संचालित की जा रही है। इस योजना के तहत बालोद, बलौदाबाजार, बलरामपुर, बेमेतरा, बिलासपुर, दुर्ग, गरियाबंद, गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही, जगदलपुर, जशपुर, कबीरधाम, कोण्डागांव, कोरबा, कोरिया, मुंगेली, रायगढ़, रायपुर, राजनांदगांव, सूरजपुर एवं सरगुजा जिला शामिल हैं। राष्ट्रीय बागवानी मिशन योजना के घटक केला क्षेत्र विस्तार से कृषकों को लाभान्वित किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य में मुख्यतः केले की प्रजाति जी-9 किस्म का रोपण व्यवसायिक खेती के लिए बहुतायत रूप से किया जाता है। कृषक केले के पौधों को एक बार अपने खेत में लगाकर 2-3 साल तक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। राज्य में प्रति हेक्टेयर औसतन 3 हजार केले पौधे को रोपित कर 250-500 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। प्रति हेक्टेयर केले की व्यवसायिक खेती पर औसतन एक लाख 10 हजार रूपए की लागत आती है, जबकि तीन वर्षाें तक इससे लगातार फलत्पादन प्राप्त कर 5 लाख से 10 लाख रूपए तक का मुनाफा अर्जित किया जा सकता है।