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कोंडागांव। शौर्यपथ से दीपक वैष्णव की विशेष रिपोर्ट।
छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में मुख्यमंत्री समग्र ग्रामीण विकास योजना के तहत स्वीकृत मिनी स्टेडियम निर्माण में भारी भ्रष्टाचार और वसूली घोटाला उजागर हुआ है। बड़ेकनेरा और राजागांव ग्राम पंचायतों में कुल 26 लाख 9 हजार 791 रुपये की वसूली का मामला जांच में सामने आया है, जिसने स्थानीय शासन प्रणाली की विश्वसनीयता पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं।
मामले की पड़ताल में यह तथ्य सामने आया कि दोनों पंचायतों ने बिना निर्माण मूल्यांकन और कार्य पूर्णता के पहली किस्त की भारी राशि ठेकेदार को जारी कर दी, वह भी कथित रूप से जिला पंचायत के दो अधिकारियों के दबाव में।
सूत्रों और पंचायत सचिवों के लिखित बयान के अनुसार,
मुख्यमंत्री समग्र विकास योजना के अंतर्गत बड़ेकनेरा और राजागांव ग्राम पंचायतों को 31 लाख 61 हजार रुपये की प्रशासनिक स्वीकृति मिली थी। इसका उद्देश्य था—ग्रामीण युवाओं के लिए खेल सुविधा हेतु मिनी स्टेडियम का निर्माण।
लेकिन योजना का “मैदान” अभी तक धरातल पर नजर नहीं आया, जबकि पैसा उड़ान भर गया।
ग्राम पंचायत बड़ेकनेरा और राजागांव, दोनों ने ही लगभग 15.80 लाख रुपये की राशि कार्य प्रारंभ से पहले ही ठेकेदार को चेक के माध्यम से दे दी।
दोनों पंचायत सचिवों ने जांच में साफ कहा है कि —
“जिला पंचायत कार्यालय में पदस्थ सहायक परियोजना अधिकारी गजेन्द्र कश्यप और डाटा एंट्री ऑपरेटर मनीष पटेल के कहने पर ही राशि ठेकेदार विवेक कुमार गावड़े (ग्राम ठाकुरटोला, जिला राजनांदगांव) को दी गई। उन्होंने कहा था कि यही ठेकेदार कार्य करेगा।”
इस बयान ने जिला पंचायत कार्यालय तक भ्रष्टाचार की परतें खोल दी हैं।
जब निर्माण कार्य का मूल्यांकन ही नहीं हुआ, तो ठेकेदार को इतनी बड़ी रकम क्यों और किस अधिकार से दी गई?
क्या यह पूरा प्रकरण पंचायतों और जिला पंचायत अधिकारियों की मिलीभगत का परिणाम नहीं है?
आखिर वसूली की प्रक्रिया कब शुरू होगी, जबकि जांच में तथ्य स्पष्ट हो चुके हैं?
क्या इस प्रकार का “कागजी विकास” ही नया प्रशासनिक मॉडल बन गया है?
इस पूरे मामले पर जब शौर्यपथ ने अनुविभागीय अधिकारी अजय उरांव से चर्चा की, तो उन्होंने कहा —
“जांच जारी है, और जो भी दोषी पाया जाएगा, उससे वसूली की जाएगी — चाहे वह प्रशासनिक अधिकारी ही क्यों न हो।”
लेकिन यह कथन भी अब जनता के मन में भरोसा नहीं जगा पा रहा। कारण साफ है — घोटाले का पैसा चला गया, मैदान बना नहीं, और कार्रवाई अब तक अधर में।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की जनहित नीति और विकास की पारदर्शी छवि को ऐसे मामले कलंकित कर रहे हैं। अगर शासन ने तत्काल सख्त कार्रवाई नहीं की, तो यह घोटाला आने वाले समय में ग्रामीण विकास योजनाओं की विश्वसनीयता पर स्थायी चोट कर सकता है।
कोंडागांव का यह मामला केवल “एक पंचायत” की कहानी नहीं, बल्कि यह बताता है कि विकास योजनाओं की जड़ें जब ईमानदारी से नहीं सींची जातीं, तो भ्रष्टाचार का पौधा स्वयं फल देने लगता है।
अब सवाल सिर्फ 26 लाख की वसूली का नहीं — बल्कि जनधन की रक्षा और प्रशासनिक जवाबदेही की पुनःस्थापना का है।
संघ मुख्यमंत्री से दोषियों पर कठोरतम कार्रवाई की करेगा मांग : बालमुकुन्द तम्बोली
यह हमला एक अधिकारी पर नहीं, पूरे प्रशासनिक तंत्र पर है : जनसंपर्क अधिकारी संघ
रायपुर / शौर्यपथ /
छत्तीसगढ़ जनसंपर्क अधिकारी संघ के अध्यक्ष श्री बालमुकुंद तंबोली ने छत्तीसगढ़ संवाद कार्यालय, नवा रायपुर में विभागीय अपर संचालक श्री संजीव तिवारी के साथ हुई अभद्रता, झूमा-झटकी, गाली-गलौज, तोडफ़ोड़ और धमकी की घटना की कटु शब्दों में निंदा की है। उन्होंने कहा कि यह केवल एक जनसंपर्क अधिकारी पर हमला और शासकीय कार्य में बाधा पहुँचाने का ही मामला नहीं हैं, बल्कि पूरे जनसंपर्क विभाग की संस्थागत गरिमा पर सीधा आघात है।
छत्तीसगढ़ जनसम्पर्क अधिकारी संघ के अध्यक्ष श्री तंबोली ने इस घटना को योजनाबद्ध और सोची-समझी साजिश करार दिया। उन्होंने कहा कि हमलावरों का एक साथ शासकीय कार्यालय में घुसना, वरिष्ठ अधिकारी के साथ अभद्रता करना, सरकारी संपत्ति को क्षतिग्रस्त करना और खुलेआम धमकियां देना इस बात का प्रमाण है कि कुछ असामाजिक तत्व पत्रकारिता की आड़ में गुंडागर्दी कर रहे हैं।
श्री तंबोली ने कहा कि जनसंपर्क विभाग शासन द्वारा संचालित जनकल्याणकारी योजनाओं का समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक पहुँचाने का कार्य करता है। छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग के अधिकारी पूरी प्रतिबद्धता के साथ न सिर्फ शासन और समाज के लिए कार्य करते हैं बल्कि पत्रकारों के हित में सदैव तत्पर रहते हैं, ऐसी स्थिति में पत्रकारिता के नाम पर कानून को हाथ में लेने वाले असामाजिक तत्वों के विरुद्ध कठोरतम कार्रवाई अत्यंत आवश्यक है।
छत्तीसगढ़ जनसंपर्क अधिकारी संघ ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार की घटनाएँ केवल किसी अधिकारी की व्यक्तिगत गरिमा पर ही नहीं, बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र पर हमला हैं। संघ ने मांग की है कि इस प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच कर दोषियों को तत्काल गिरफ्तार किया जाए। घटना में शामिल व्यक्तियों पर भारतीय न्याय संहिता की कठोर धाराओं के तहत अपराध दर्ज कर कड़ी कार्रवाई की जाए।
छत्तीसगढ़ जनसम्पर्क अधिकारी संघ के अध्यक्ष श्री तंबोली ने कहा कि प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय जी जनसंपर्क विभाग के भी भारसाधक मंत्री हैं, उनके नेतृत्व में जनसंपर्क विभाग के प्रत्येक अधिकारी कर्मचारी पूरी निष्ठा से कार्य करते हैं, ऐसे में माननीय मुख्यमत्री जी से आग्रह है कि वह इस विषय में दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई सुनिश्चित करने की कृपा करें, साथ ही विभागीय अधिकारियों एवं कर्मचारियों को सुरक्षा एवं अपना संरक्षण प्रदान करें। संघ ने यह भी निर्णय लिया है कि शीघ्र ही मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय से प्रतिनिधिमंडल भेंट करेगा।
संघ के अध्यक्ष श्री तंबोली ने कहा कि यदि दोषियों पर शीघ्र और ठोस कार्रवाई नहीं की गई, तो जनसंपर्क विभाग का प्रत्येक अधिकारी और कर्मचारी राज्यव्यापी विरोध आंदोलन करने के लिए बाध्य होगा।
भिलाई।शौर्यपथ । सिख मार्शल आर्ट गतका की ध्वजा एक बार फिर छत्तीसगढ़ की औद्योगिक नगरी भिलाई में फहराने जा रही है। शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025 को 13वीं नेशनल गतका चैम्पियनशिप का भव्य उद्घाटन समारोह गुरुनानक इंग्लिश सीनियर सेकेंडरी स्कूल, सेक्टर-6 में प्रातः 10 बजे से आरंभ होगा।
इस राष्ट्रीय आयोजन के मुख्य अतिथि दुर्ग लोकसभा सांसद विजय बघेल होंगे, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एवं वरिष्ठ नेता प्रेम प्रकाश पांडेय करेंगे।
नेशनल गतका एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष श्री हरजीत सिंह ग्रेवाल और छत्तीसगढ़ सिख पंचायत के चेयरमैन श्री जसवीर सिंह चहल विशिष्ट अतिथि के रूप में समारोह में शामिल होंगे।
आयोजन की व्यवस्था न्यू गतका स्पोर्ट्स एसोसिएशन छत्तीसगढ़ द्वारा की जा रही है।
संस्था के अध्यक्ष इंदरजीत सिंह (छोटू), महासचिव जरवण सिंह खालसा, और कोषाध्यक्ष मलकीत सिंह (लल्लू) ने बताया कि इस प्रतियोगिता में देशभर से आने वाले खिलाड़ियों के बीच पारंपरिक शौर्यकला का रोमांचक प्रदर्शन देखने को मिलेगा।
गतका केवल युद्धकला नहीं, बल्कि सिख परंपरा, अनुशासन और आत्मसंयम का प्रतीक है। आयोजकों ने कहा —
“हमारा उद्देश्य गतका के माध्यम से युवाओं में साहस, सम्मान और सेवा की भावना को जागृत करना है।”
कार्यक्रम में शहर और प्रदेश के अनेक गुरुद्वारा समितियाँ, युवा सेवा संस्थान, तथा खेल प्रेमी बड़ी संख्या में शामिल होंगे। आयोजन समिति ने समस्त नागरिकों से अपील की है कि वे अपनी उपस्थिति से इस ऐतिहासिक क्षण की शोभा बढ़ाएं।
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास की गति तेज करने के लिए सरकार सतत प्रयासरत – मुख्यमंत्री साय
रायपुर / शौर्यपथ / बस्तर अंचल को महाराष्ट्र से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 130-डी के निर्माण को नई गति मिली है। छत्तीसगढ़ शासन ने कुतुल से नीलांगुर (महाराष्ट्र सीमा) तक 21.5 किलोमीटर हिस्से के निर्माण के लिए टेंडर प्रक्रिया पूरी कर ली है। इस सड़क के निर्माण के लिए न्यूनतम टेंडर देने वाले ठेकेदार से अनुबंध की प्रक्रिया शर्तों सहित पूरी करने के निर्देश लोक निर्माण विभाग मंत्रालय द्वारा प्रमुख अभियंता, राष्ट्रीय राजमार्ग परिक्षेत्र रायपुर को दिए गए हैं। कुल तीन खंडों में निर्मित होने वाले 21.5 किलोमीटर सड़क के निर्माण हेतु लगभग 152 करोड़ रुपए न्यूनतम टेंडर दर प्राप्त हुई है, जिसे छत्तीसगढ़ शासन ने मंजूरी प्रदान कर दी है।
यह उल्लेखनीय है कि कुतुल, नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ क्षेत्र में स्थित है और कुतुल से महाराष्ट्र सीमा पर स्थित नीलांगुर की दूरी 21.5 किलोमीटर है। यह नेशनल हाईवे 130-डी का हिस्सा है। इस सड़क का निर्माण टू-लेन पेव्ड शोल्डर सहित किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि एनएच-130डी राष्ट्रीय राजमार्ग है, जिसकी कुल लंबाई लगभग 195 किलोमीटर है। यह एनएच-30 का शाखा मार्ग (स्पर रूट) है। यह कोण्डागांव से शुरू होकर नारायणपुर, कुतुल होते हुए नीलांगुर (महाराष्ट्र सीमा) तक जाता है। आगे महाराष्ट्र में यह बिंगुंडा, लहरे, धोदराज, भमरगढ़, हेमा, लकासा होते हुए आलापल्ली तक पहुँचता है, जहाँ यह एनएच-353डी से जुड़ जाता है। इस मार्ग के विकसित होने से बस्तर क्षेत्र सीधे राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क से जुड़ जाएगा और व्यापार, पर्यटन एवं सुरक्षा को बड़ी मजबूती प्राप्त होगी।
नेशनल हाईवे 130-डी का कोण्डागांव से नारायणपुर तक का लगभग 50 किमी हिस्सा निर्माणाधीन है। नारायणपुर से कुतुल की दूरी 50 किमी है और वहाँ से महाराष्ट्र सीमा स्थित नीलांगुर तक 21.5 किमी की दूरी है। इस राष्ट्रीय राजमार्ग की कुल लंबाई 195 किमी है, जिसमें से लगभग 122 किमी का हिस्सा कोण्डागांव-नारायणपुर से कुतुल होते हुए नीलांगुर तक छत्तीसगढ़ राज्य में आता है। इस सड़क के बन जाने से बस्तर अंचल को महाराष्ट्र से सीधा और मजबूत सड़क संपर्क मिलेगा तथा नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षित एवं सुगम यातायात सुविधा सुलभ हो सकेगी।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के सहयोग से इस नेशनल हाईवे के अबूझमाड़ इलाके में स्थित हिस्से के लिए फॉरेस्ट क्लियरेंस और निर्माण की अनुमति प्राप्त हुई, जिससे इस महत्वाकांक्षी परियोजना के निर्माण का रास्ता खुल गया है। राष्ट्रीय राजमार्ग 130-डी केवल सड़क नहीं बल्कि बस्तर अंचल की प्रगति का मार्ग है। हमारी सरकार ने इस परियोजना को तेजी देने के लिए लगातार प्रयास किए हैं। इस सड़क से बस्तर के लोगों को सीधा लाभ मिलेगा। यह सड़क न केवल छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र को जोड़ेगी, बल्कि बस्तर अंचल के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में भी अहम भूमिका निभाएगी। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास की गति तेज करने के लिए यह परियोजना मील का पत्थर साबित होगी।
- मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय
बीजापुर के 32 पूर्व माओवादियों ने सीखा कुक्कुटपालन और बकरीपालन का गुर
समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए शासन की अभिनव पुनर्वास नीति से मिल रहा लाभ
रायपुर / शौर्यपथ / माओवाद का रास्ता छोड़कर समाज की मुख्यधारा में लौटे बीजापुर जिले के 32 आत्मसमर्पित माओवादियों ने अब विकास और स्वरोजगार की ओर एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है। इन सभी ने जगदलपुर स्थित क्षेत्रीय स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान में एक महीने का कुक्कुटपालन और बकरीपालन का विशेष प्रशिक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया है। इस प्रशिक्षण के माध्यम से पूर्व नक्सलियों ने न केवल पशुपालन के वैज्ञानिक तरीके सीखे, बल्कि एक सफल उद्यमी बनने की बारीकियों को भी जाना। एक माह की गहन ट्रेनिंग में आत्मसमर्पित माओवादियों को कुक्कुटपालन और बकरीपालन से संबंधित हर महत्वपूर्ण जानकारी दी गई। यहां उन्होंने उन्नत नस्लों का चयन, चारा प्रबंधन और संतुलित आहार की जानकारी, टीकाकरण, रोगों की पहचान और उपचार के तरीके के साथ सरकारी योजनाओं का लाभ लेने, ऋण प्राप्त करने और अपने उत्पादों को बाजार तक पहुंचाने की रणनीति के संबंध में प्रशिक्षण लिया।
प्रशिक्षण लेने वाले एक आत्मसमर्पित माओवादी ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि जंगल में जीवन बहुत मुश्किल और खाली था। प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय की पहल पर आत्मसमर्पित माओवादियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए जो पुनर्वास नीति बनाई गई है, वह एक अभिनव प्रयास है। जिससे अब हम अपने हाथों से काम करके परिवार के लिए एक स्थिर और सम्मानजनक जीवन-यापन कर सकते हैं। सरकार के इस कदम से हमें बहुत हिम्मत मिली है।
दुर्ग / शौर्यपथ /
दुर्ग नगर निगम की हालिया योजना — नगर के 40 सुलभ शौचालयों को दो जोन में बाँटकर सिर्फ दो एजेंसी के माध्यम से संचालित कराने के फैसले — स्थानीय महिला स्व सहायता समूहों / एन जी ओ के लिए भंवर बनती नजर आ रही है। 24 अक्तूबर को होने वाली निविदा खोलने से ठीक पहले संचालन कर रहीं दर्जनों समूहों में भारी असमंजस और भय व्याप्त है कि दीपावली के बाद लगभग 38 समूहों का रोजगार ठप हो सकता है।
प्रमुख तथ्य (Quick facts)
कुल शौचालय: 40 (दुर्ग नगर निगम क्षेत्र)।
निविदा जमा की अंतिम तिथि: 24 अक्तूबर।
निगम ने शौचालयों को दो जोन में बाँटकर टेंडर निकालने का निर्णय लिया है — केवल दो एजेंसी को कॉन्ट्रैक्ट दिया जाएगा।
स्थानीय संचालक: अभी कई शौचालय महिला स्व सहायता समूह चला रहे हैं।
नियम-आधार: टेंडर में 24×7 संचालन, केयरटेकर की वर्दी व नेम प्लेट, रजिस्टर संधारण जैसे लगभग दो दर्जन बिंदु पालन अनिवार्य बताए गए हैं — पर मौजूदा स्थिति में इन नियमों का पालन सीमित रहा है।
क्या है मामला?
निगम की नई प्रक्रिया के तहत 40 शौचालयों को दो जोन में बांटकर उनकी देखरेख व संचालन केवल दो एजेंसी—ठेकेदारों के हवाले करने का निर्णय पारित किया गया है। इन शौचालयों में अब तक कई महिला स्वयं सहायता समूह दैनिक आधार पर सफाई, रखरखाव और संचालन का काम करते आए हैं। नई व्यवस्था लागू होने पर इन छोटे-छोटे समूहों की जगह बड़ी एजेंसियां ले लेंगी — और परिणामस्वरूप लगभग 38 समूह बेरोजगार हो सकते हैं, यह आशंका स्थानीय स्तर पर गूंज रही है।
स्थानीय संचालकियों का कहना है कि उन्होंने वर्षों से यही काम किया है, उन्हें स्थानीय जरूरतों और शौचालयों के व्यवहार की जानकारी है — पर अब उनकी योग्यता/अनुभव को दरकिनार कर एक केंद्रीकृत मॉडल को लागू किया जा रहा है। दूसरी तरफ नैतिक और प्रशासनिक दृष्टि से यह भी कहा जा रहा है कि यदि चुनी गई एजेंसियां नियमों का कठोर पालन करें तो सिटी में स्वच्छता और सुविधा में सुधार भी दिख सकता है — बशर्ते अनुबंध पारदर्शी और जवाबदेह हों।
प्रमुख चिंताएं
1. रोज़गार पर बड़ा प्रभाव — छोटे महिला समूहों को आय का स्रोत समाप्त हो सकता है।
2. पारदर्शिता का अभाव — निविदा प्रक्रिया पहले से तय शर्तों और पक्षपात के आरोपों से ग्रसित दिखाई दे रही है; चर्चा है कि पहले से तय एजेंसियों को लाभ दिए जा सकते हैं।
3. कमीशन-खोरी का खतरा — बड़े कॉन्ट्रैक्ट में कमीशन की संभावना स्थानीय लोगों में चिंता बढ़ा रही है।
4. निगम का अनुपालन और निरीक्षण — 24×7 नियम, केयरटेकर वर्दी, रजिस्टर संधारण जैसे बिंदुओं का अब तक पूरा पालन नहीं हुआ — लेकिन इनका कठोर पालन भी आवश्यक होगा।
दो सम्भावित परिदृश्य
सकारात्मक परिदृश्य: यदि चुनी गई एजेंसियाँ नियमों के अनुरूप हर शौचालय पर कर्मियों की तैनाती, नियमित सफाई, समय-समय पर निरीक्षण और पारदर्शी रिपोर्टिंग करती हैं, तो सार्वजनिक सुविधाओं की गुणवत्ता में सुधार संभव है।
नकारात्मक परिदृश्य: यदि टेंडर प्रक्रिया अपारदर्शी रही और एजेंसियाँ निजी हित साधने के लिए संसाधनों को केंद्रीकृत कर लें, तो न तो स्थानीय समूहों को न्याय मिलेगा और न ही शौचालयों की गुणवत्ता टिकाऊ रूप से सुधरेगी — उल्टा भ्रष्टाचार व कमीशन-खोरी बढ़ सकती है।
शारीरिक व प्रशासनिक चुनौतियाँ
निगम की पहले से चली आ रही कचरा प्रबंधन और सफाई व्यवस्था में जो कमियाँ रही हैं, वे इस नए मॉडल के सफल क्रियान्वयन के सामने बड़ी चुनौती बनेंगी। केवल टेंडर देना और एजेंसी बदलना पर्याप्त नहीं होगा — अनुबंध की मॉनिटरिंग, स्वास्थ्य विभाग का सख्त निरीक्षण और नियमित रिपोर्टिंग-तंत्र आवश्यक हैं।
स्थानीय प्रतिक्रिया और मांग
महिला स्वयं सहायता समूह और नागरिक संगठन अब निगम से पारदर्शिता, निविदा दस्तावेजों की सार्वजनिक उपलब्धता और पूर्व संचालकों के अनुभव को योग्यता मानने की मांग कर रहे हैं। आरोप है कि कुछ समूहों के आवेदन तकनीकी कारणों से खारिज किए जा सकते हैं ताकि चयन पहले से तय एजेंसी को मिल सके — यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि ऐसी कोई गड़बड़ी न हो।
आगे क्या देखने को मिलेगा
24 अक्तूबर को निविदा खुलने के बाद ही स्पष्ट होगा कि कौनसी एजेंसी(यां) विजयी होती हैं और क्या निविदा दस्तावेजों में पारदर्शिता बनी रहती है।
स्थानीय प्रतिनिधियों, समूहों और नागरिकों को भी इस प्रक्रिया पर नजर रखनी होगी — ताकि रोज़गार-क्षति और संभावित भ्रष्टाचार को रोका जा सके।
निष्कर्ष: निर्णय—जो सैद्धान्तिक रूप से स्वच्छता सुधार का माध्यम बन सकता है—वह यदि निष्पक्ष, पारदर्शी और कड़ाई से लागू न किया गया तो 38 के आसपास महिला स्वयं सहायता समूहों के रोजगार के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है। दुर्ग नगर निगम के लिए चुनौती यह है कि वह निविदा प्रक्रिया और बाद के अनुबंध-पालन में इतने पारदर्शी और जवाबदेह बने कि न सिर्फ सेवाओं की गुणवत्ता सुधरे बल्कि स्थानीय हितधारकों — विशेषकर उन महिलाओं — का जीवन-यापन प्रभावित न हो।
10 अक्टूबर को संदीप शर्मा करेंगे दुर्ग का दौरा, निरीक्षण सूची में ‘चुने हुए ईमानदार संचालक’?— विभाग की कार्यप्रणाली पर फिर सवाल
दुर्ग। शौर्यपथ।
छत्तीसगढ़ राज्य खाद्य आयोग के अध्यक्ष संदीप शर्मा शुक्रवार 10 अक्टूबर को दुर्ग जिले के दौरे पर रहेंगे। आयोग द्वारा जारी प्रोटोकॉल के अनुसार वे दुर्ग में विभागीय समीक्षा बैठक एवं राशन दुकानों का निरीक्षण करेंगे। लेकिन उनके दौरे से पहले ही जिला खाद्य विभाग की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े हो गए हैं।
जानकारी के अनुसार, दुर्ग जिले की कई शासकीय राशन दुकानों में मार्च–अप्रैल माह के भौतिक सत्यापन के दौरान सैकड़ों किलो सरकारी चावल कम पाया गया था, जिस पर स्पष्ट अनियमितताओं के प्रकाश में आने के बावजूद अब तक किसी भी संचालक पर ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। विभाग लगातार “तारीख पर तारीख” देकर मामले को लटकाता रहा है, जबकि नियमों के अनुसार जिन दुकानों में खाद्यान्न कम पाया जाता है, उनसे शासन द्वारा निर्धारित शुल्क वसूला जाना चाहिए।
शौर्यपथ समाचार द्वारा पूर्व में प्रकाशित खुलासे में यह भी सामने आया था कि ऐसे मामलों में विभाग को लगभग ₹8 करोड़ की वसूली करनी थी, मगर छह माह बीत जाने के बाद भी किसी भी संचालक से राशि की वसूली नहीं हुई। उल्टा, कई दुकानों में खुलेआम पीडीएस चावल की खरीद-फरोख्त चल रही है और संचालक अपने स्टॉक की पूर्ति काला बाजारी से कर रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार, खाद्य विभाग अब आयोग के अध्यक्ष के दौरे के पहले केवल “साफ-सुथरी दुकानों” की सूची तैयार कर रहा है, ताकि निरीक्षण के दौरान विभाग की छवि पर कोई आंच न आए। यह भी कहा जा रहा है कि कुछ वरिष्ठ अधिकारी निरीक्षण के कार्यक्रम को औपचारिकता में बदलने की तैयारी में हैं।
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि —
क्या राज्य खाद्य आयोग के अध्यक्ष संदीप शर्मा को विभाग वास्तविक स्थिति से अवगत कराएगा, या फिर उन्हें तैयारशुदा रिपोर्ट और दिखावटी निरीक्षण के जरिए गुमराह करने का प्रयास किया जाएगा?
दुर्ग जिले में हाल ही में पदभार संभालने वाले जिला खाद्य अधिकारी भदौरिया जी के लिए यह पहला बड़ा अवसर होगा, जहां उनकी निष्पक्षता और कार्यकुशलता की परख होगी।
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि 10 अक्टूबर को होने वाला खाद्य आयोग का निरीक्षण वास्तविक सच्चाई उजागर करेगा या सिर्फ़ औपचारिकता साबित होगा। जनता और मीडिया की निगाहें अब पूरी तरह इस दौरे पर टिकी हैं।
नहीं थम रही पीडीएस चावल की कालाबाजारी: भौतिक सत्यापन के बाद भी विभागीय ढिलाई, जिम्मेदारों पर कार्रवाई अब तक अधर में
https://shouryapathnews.in/khas-khabar/33930-2025-07-05-05-29-55
(विशेष व्यंग्य): लेखक- शरद पंसारी, संपादक- शौर्यपथ दैनिक समाचार
दुर्ग। 'सेनापति का पता नहीं और फ़ौज चली जंग लड़ने,' यह कहावत इन दिनों दुर्ग कांग्रेस पर इतनी सटीक बैठती है कि खुद कहावत को भी इस पर नाज़ हो रहा होगा। दुर्ग शहर कांग्रेस का हाल यह है कि यहाँ अध्यक्ष महोदय (गया पटेल) ने पिछले साल ही त्यागपत्र रूपी 'श्वेत ध्वज' प्रदेश संगठन के सामने फहरा दिया था। भले ही संगठन ने कागज़ी तौर पर इस्तीफ़ा स्वीकार नहीं किया है, लेकिन ज़मीनी हकीकत यही है कि दुर्ग कांग्रेस एक साल से 'सेनापति विहीन' यानी बिना मुखिया के ही 'विपक्ष की जंग' लड़ने का नाटक कर रही है।
फ़िलहाल स्थिति यह है कि दुर्ग कांग्रेस की लंका में हर छोटे-बड़े 'नामधारी' नेता स्वयं को राम, लक्ष्मण और हनुमान तीनों समझ रहा है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या बाहर के 'शत्रु' नहीं, बल्कि भीतर के 'विभीषण' और 'शकुनि' हैं। कुछ नेता अपनी छोटी-छोटी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने के लिए संगठन के भीतर ही षड्यंत्रों का ताना-बाना बुन रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे महाभारत में शकुनि ने किया था। और कुछ 'विभीषण' बनकर भाजपा की जीत की पटकथा अंदरखाने से लिख रहे हैं।
प्रदेश नेतृत्व की 'महा-अनदेखी' और केंद्रीय नेतृत्व का 'हास्यास्पद प्रयास'
दुर्ग कांग्रेस के अस्तित्व पर मंडराता सबसे बड़ा खतरा आपसी कलह से भी बड़ा है: प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व की उदासीनता। ऐसा लगता है जैसे प्रदेश कांग्रेस ने दुर्ग शहर इकाई को लगभग 'भूल' ही दिया है। एक साल से अध्यक्ष का इस्तीफा लटका है, गुटबाजी चरम पर है, लेकिन रायपुर से कोई प्रभावी दखल नहीं।
इस बीच, जब लगा कि आग बुझाने के लिए कोई तो आएगा, तब केंद्रीय नेतृत्व ने पर्यवेक्षक भेजे। मगर कमाल देखिए! गुटों की लड़ाई इतनी ज़ोरदार निकली कि केंद्रीय नेतृत्व को अपना भेजा हुआ पर्यवेक्षक ही वापस बुलाना पड़ा। इस कदम ने आग बुझाने के बजाय, जली हुई गाड़ी पर पेट्रोल छिड़कने का काम किया है। यानी, शीर्ष नेतृत्व ने खुद ही यह मान लिया कि दुर्ग कांग्रेस के मामले इतने पेचीदा हैं कि उनसे सुलझ नहीं पाएंगे।
यह 'महा-अनदेखी' और केंद्रीय नेतृत्व का यह 'हास्यास्पद प्रयास' ही है जिसने दुर्ग कांग्रेस को संगठनात्मक शून्य में धकेल दिया है।
आपसी कटाक्ष और भाजपा का 'चटकारे' वाला जश्न
कांग्रेस की फ़ौज ने अपना सारा 'युद्ध कौशल' एक-दूसरे पर 'तीरंदाजी' में झोंक रखा है। एक-दूसरे पर छींटाकशी करना, आरोप-प्रत्यारोप लगाना और नीचा दिखाना यहाँ की सबसे बड़ी 'संगठनात्मक गतिविधि' बन चुकी है। अभिव्यक्ति की आज़ादी का आलम यह है कि हर नेता, जिसे मंच पर बैठने के प्रोटोकॉल का आनंद लेने की आदत है, आज स्वयं को ज़मीनी नेता घोषित कर रहा है, जबकि उनके पद की गरिमा सिर्फ़ मंच की हद तक ही सीमित है।
यह अच्छा भी है! आखिर 'घर के घर में ही जंग' हो तो कम से कम बाहर नुकसान होने का डर तो नहीं रहता।
दुर्ग कांग्रेस की इस 'महाभारत' ने विपक्षी भाजपा के लिए एकदम 'अनुकूल परिस्थिति' का निर्माण कर दिया है। भाजपा कार्यालय में नेतागण बड़े आराम से बैठकर कांग्रेस का यह 'तमाशा' देख रहे हैं और 'चटकारे' ले रहे हैं। उन्हें तो अब किसी भी विरोध का सामना करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ रही।
लब्बोलुआब यह है कि सेनापति ने पहले ही हथियार डाल दिए हैं, प्रदेश नेतृत्व ने आँखें मूंद ली हैं, केंद्रीय नेतृत्व ने पर्यवेक्षक को वापस बुलाकर अपनी लाचारी दिखा दी है, और 'सेना' सिर्फ बड़े पद की लालसा में एक-दूसरे को नीचा दिखाने में व्यस्त है। यदि शीर्ष नेतृत्व ने जल्द ही इस 'विभीषण-शकुनि' युक्त और अध्यक्षविहीन इकाई को नहीं संभाला, तो दुर्ग में कांग्रेस का अस्तित्व सिर्फ 'यादों' में सिमट कर रह जाएगा।
वाह रे दुर्ग कांग्रेस! तुम्हारी यह वीरगाथा इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों से नहीं, बल्कि 'व्यंग्य' की स्याही से लिखी जाएगी!
दुर्ग / शौर्यपथ / सर्व विदित है कि छत्तीसगढ़ सहित संपूर्ण भारतवर्ष में बौद्ध गया महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन बड़े ही जोर शोर से वर्तमान में चल रहा है इसी परिपेक्ष में विगत दिनों सर्व दलीय बैठक केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री रामदास आठवले के नेतृत्व में सम्पन्न हुई।
जिसमें प्रमुख रूप से आंदोलन के प्रणेता भंते विनयाचार्य, दीक्षाभूमि समिति के सचिव डॉ.राजेंद्र गवई , प्रो. जोगेंद्र कवाड़े , बौद्ध महासभा के ट्रस्टी अध्यक्ष चंद्रबोधी पाटिल , ऑल PSU एससी/एसटी फेडरेशन के चेयरमैन शसुनील रामटेके , मा. देशक खोबरागड़े संयुक्त रूप से उपस्थित थे।
जिसमें संयुक्त रूप से आव्हान किया गया कि 14 अक्टूबर 2025 को मुंबई आजाद मैदान में लाखों भीम सैनिकों का रैली एवं मोर्चा होगा।
इस आंदोलन को आर.पी.आई. के विभिन्न ग्रुप सभी बौद्ध भिक्षुगण एवं सभी बौद्ध संस्थाएं बौद्ध महासभा, समता सैनिक दल सहित सर्वदलीय नेताओं ने इस आंदोलन का पुरजोर समर्थन किया।
उपरोक्त परिपेक्ष में रैली को सफल बनाने ऑल PSU एससी/एसटी फेडरेशन के चेयरमैन दm 9 अक्टूबर 2025 को नागपुर जिला, 10 अक्टूबर 2025 को भंडारा जिला एवं लाखनी , 11 अक्टूबर को गोंदिया जिला एवं 12 अक्टूबर को वर्धा जिला आदि जिलों का दौरा करेंगे एवं उनके साथ विभिन्न बौद्ध संस्थाओं के प्रतिनिधि साथ में रहेंगे।
अहिंसा के दूत आचार्य विद्यासागर महाराज का अवतरण दिवस हर्षोल्लास से मनाया गया
राजनांदगांव। शौर्यपथ ।
शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर सोमवार को अहिंसा के दूत, समाधि सम्राट आचार्य 108 श्री विद्यासागर महाराज जी एवं नव आचार्य 108 श्री समयसागर जी महाराज जी का अवतरण दिवस पूरे भक्ति भाव और उल्लास के साथ मनाया गया। दिगंबर जैन समाज द्वारा इस अवसर पर धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों की श्रृंखला आयोजित की गई, जिसमें शहरभर के श्रद्धालुओं ने सहभागिता की।
दिगंबर जैन पंचायत के सचिव सूर्यकांत जैन ने बताया कि प्रातः 7:30 बजे आचार्य श्री की पूजा एवं सर्वमंगलकारी आचार्य छत्तीसिंह विधान का आयोजन परम पूज्या आर्यिका 105 सुशांत मति माताजी एवं 105 तथामति माताजी के सानिध्य में संपन्न हुआ। समाज के अध्यक्ष अशोक झंझरी एवं श्रेष्ठी जनों ने आदिनाथ भगवान का अभिषेक पूजन सौधर्म इंद्र बनकर किया। माताजी के बुखार बिंद से भगवान की शांति धारा सम्पूर्ण जीव कल्याण के लिए संपन्न हुई।
दोपहर 2 बजे से अहिंसा प्रवेश द्वार (गंज लाइन) पर समाज एवं चातुर्मास समिति की ओर से 21,000 लड्डुओं का वितरण किया गया। इस पुण्य कार्य में गुरु भक्तों, मोहल्ले के वरिष्ठ नागरिकों, गणमान्य व्यक्तियों और बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लेकर अहिंसा और सेवा का संदेश प्रसारित किया।
इसी क्रम में जैन आदर्श महिला मंडल द्वारा मूकबधिर बच्चों के बीच मिठाई और आवश्यक सामग्री वितरित की गई, जिससे सेवा, करुणा और सहानुभूति का भाव समाज में प्रकट हुआ।
संध्या 7 बजे दिगंबर जैन मंदिर में संगीतमय महाआरती का आयोजन हुआ। श्रद्धालुओं ने भावविभोर होकर आरती में सहभागिता की, और मंदिर प्रांगण “जय आचार्य विद्यासागर महाराज” तथा “अहिंसा परमो धर्मः” के जयघोषों से गुंजायमान हो उठा।
इस भव्य आयोजन में समाज के वरिष्ठ जन एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे, जिनमें डी.सी. जैन, अखिलेश जैन, पार्षद रानू जैन, रविकांत जैन, पंकज जैन, रिंकू झंझरी, निखिल द्विवेदी, राधावल्लभ राठी, शरद जैन, अनिल जैन, ललित जैन, रचित जैन, राजेश जैन खन्ना, सुधीर जैन मीनू, रवि जैन, धर्मेश जैन, मनोज जैन, शिरीष जैन, आलोक जैन लल्ली, कमलेश जैन, सीमा जैन, प्रियंका जैन, राजीव जैन, मुकेश जैन, नरेश नाहटा, अंशुल जैन, जितेन्द्र जैन, वंदना जैन, मीना जैन, दर्शना जैन, कल्पना जैन, सुषमा जैन, अनीता जैन, माया जैन और श्रद्धा जैन सहित बड़ी संख्या में भक्तों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
पूरा परिसर इस दौरान आचार्य श्री की महिमा, भक्ति भाव और अहिंसा के जयघोषों से सराबोर रहा।